भगवान् राम और माँ सीता के विवाह से सम्बंधित कुछ भ्रांतियां
हाल ही में नेट पर देखा की कुछ विशिष्ट जन को भगवान राम और माँ सीता के विवाह के सन्दर्भ में कुछ भ्रान्ति है. कुछ तर्क वाल्मीकि रामायण से लेकर ये निष्कर्ष निकला जा रहा है की विवाह के वक़्त माँ सीता की उम्र महज छ साल की थी, जो कतई सही नहीं है.
जैसा की हम सब जानते है, समय के साथ साथ लोगो ने धर्म को अपनी सुविधा और धर्म के व्यापार के हिसाब से तोड़ मरोड़ दिया है. उदहारण के तौर पर हिन्दू धर्म में के कुछ कुख्यात बाबाओ के कारनामे हमने पिछले एक महीनो में हर हफ्ते देखे सुने और पढ़े है. ठीक वैसे ही मुस्लिम धर्म में कुछ लोग मानते है की किसी भी बेगुनाह को मारने वाले को अल्लाह कभी माफ़ नहीं करता वही मुस्लिम कुछ लोग इस तरह के खून खराबे को अल्लाह के रसूल का हुकुम मान कर आतंक को धर्म का पर्याय बनाने को आतुर है. कहने का तात्पर्य ये है की समय के साथ साथ मान्यताये बदली और फिर अल्पबुद्धि लोगो ने धर्म ग्रंथो का अपनी सुविधा के हिसाब से व्याख्यान कर दिया. कहा भी गया है धर्म प्रदर्शन की नहीं अपितु धारण करने की चीज़ है. धर्म वो है जो व्यक्ति को संयमी बनाता है.
राम जन्म :
बाल काण्ड सर्ग १८ शलोक ८-९-१० में महार्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजित महूर्त में मध्याह्न में हुआ था। कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह २१ फरवरी, ५११५ ई पू आता है। इस दिन नवमी तो आती है लेकिन नक्षत्र पुष्य आता है। नवमी तिथि के बारे में तुलसी राम चरितमानस में भी उल्लेख मिलता है एवं रामनवमी चैत्र शुकल की नवमी को ही मनाई जाती है। बाल काण्ड के दोहा १९० के बाद की प्रथम चौपाई में तुलसीदास जी लिखते हैं
नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता |
मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा ||
मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा ||
पवित्र चैत्र मास के शुकल पक्ष की नवमी तिथि को मधाहं में अभिजित महूर्त में श्री राम का जन्म हुआ था। अतः नवमी तिथि को आधार मान कर एवं नक्षत्र की अनदेखी कर राम नवमी तिथि की गणना करते हैं तो २१ फरवरी ५११५ ई पू प्राप्त होती है। इस प्रकार राम जन्म को ७१२५ वर्ष पूरे हो चुके है.
तपोवन :
श्री राम १६वे वर्ष में ऋषी विश्वमित्र के साथ तपोवन को गए थे। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मीक रामायण के बाल काण्ड के वीस्वें सर्ग के शलोक दो से भी हो जाती है, जिसमे राजा दशरथ अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहते हैं- उनका कमलनयन राम सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ और उसमें राक्षसों से युद्ध करने की योग्यता भी नहीं है।
उनषोडशवर्षो में रामो राजीवलोचन: न युद्धयोग्य्तामास्य पश्यामि सह राक्षसौ॥ (वाल्मीक रामायण /बालकाण्ड /सर्ग २० शलोक २)
चूँकि भगवान राम विश्वामित्र के साथ सोलह वर्ष की उम्र में गए थे और उसके बाद ही उनका विवाह हुआ था इसे ये सिद्ध हो जाता है की प्रभु राम की शादी सोलह वर्ष के उपरान्त हुई थी.
माँ सीता की उम्र के विषय में वाल्मीकि रामायण के जिन श्लोको से निष्कर्ष निकला जा रहा है, वे श्लोक है :
उषित्वा द्वा दश समाः इक्ष्वाकुणाम निवेशने | भुंजाना मानुषान भोगत सेव काम समृद्धिनी || ३-४७-४ ||
मम भर्ता महातेजा वयसा पंच विंशक ||३-४७-१० ब ||
अष्टा दश हि वर्षिणी नान जन्मनि गण्यते ||३-४७-११ अ ||
अष्टा दश हि वर्षिणी नान जन्मनि गण्यते ||३-४७-११ अ ||
गौर से ध्यान दे की पहले श्लोक में द्वा और दश शब्द अलग अलग है. ये द्वादश यानि बारह नहीं बल्कि द्वा "दो" को और दश "दशरथ" को संबोधित करता है. इसमें माँ सीता, रावन से, कह रही है की इक्ष्वाकु के राजा दशरथ के यहाँ पर दो वर्ष में उन्हें हर प्रकार के वे सुख जो मानव के लिए उपलब्ध है उन्हें प्राप्त हुए है.
दुसरे श्लोक में माँ सीता कह रही है की उस समय (वनवास प्रस्थान के समय) मेरे तेजस्वी पति की उम्र पच्चीस साल थी और उस समय मैं जन्म से अठारह वर्ष की हुई थी. इसे ये ज्ञात होता है की वनवास प्रस्थान के समय माँ सीता की उम्र अठारह साल की थी और वो करीब दो साल राजा दशरथ के यहाँ रही थी यानि माँ सीता की शादी सोलह साल की उम्र के आस पास हुई थी. ये केवल सोच और समझ का फेर है.
द्वादश को एक साथ जोड़ने पर ये बारह वर्ष बन जाते है और द्वा यानि दो और दश यानि दशरथ को विच्छेद करने पर एक नवीन अर्थ आ जाता है. इसी कारण कुछ टीकाकारो ने ये मान लिया की सीता जी को विवाह उपरांत बारह वर्ष अयोध्या में रही थी और इस गणित के हिसाब से माँ सीता को विवाह के समय छ वर्ष का मान लिया है.
उदहारण के तौर पर मान लीजिये कोई कहना चाह रहा है कि "उस समय छोटे बच्चो को कमरे में बंद रखा जाता था" लेकिन इस वाक्य में एक रिक्त स्थान अपने स्थान से एक शब्द आगे सरक जाता है तो ये वाक्य कुछ यूँ बन जायेगा "उस समय छोटे बच्चो को कमरे में बंदर खा जाता था". देखा आपने एक रिक्त स्थान के केवल एक वर्णाक्षर से आगे बढ़ जाने पर वाक्य के अर्थ का कैसा अनर्थ हो गया. क्या कहना चाह रहे थे और क्या कह दिया. अब जब हमारे वेद और ग्रन्थ जो सदियों पहले लिखे गए थे. पेड़ के पत्तो पर लिखे हुए उन श्लोको को आज अगर हम किताब में छपा हुआ देखते है तो स्वाभाविक है की इतने रूपांतरण के दौरान उनका अपने मूल रूप से थोडा बहुत परिवर्तित होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. भगवान् ने इसीलिए सबको अक्ल दी है ताकि हम इसका सही इस्तेमाल करे और खुले दिमाग से सोच कर और अपनी समझ के हिसाब से इनकी सही व्याख्या कर सके.
तुलसी रामायण में और भी कई दृष्टांत है, जिसमे माँ सीता को विवाह के समय किशोर अवस्था का बतलाया गया है न की बाल्यावस्था का. पुष्पवाटिका में सीता जी जब माँ भवानी का पूजन के लिए आई थी तो उस समय तुसलीदास जी ने लिखा है :
संग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥
यानी सीता जी के साथ में सब सुंदरी और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। "सयानी" शब्द से साफ़ है की माँ सीता बाल्यावस्था को पार कर गई है.
आज शायद इन चीजो को न तो को ढंग से समझने वाला शिष्य है और न ही समझाने वाला गुरु. और फिर ये अपनी अपनी सोच और भावना है क्योनी तुलसी बाबा ने रामचरितमानस में लिखा है, "जिनकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी". मानो तो भगवान् नहीं मानो तो पत्थर.
भगवान् श्री राम हमेशा से थे और बर्तमान में भी है एक एक हिन्दू के ह्रदय में !
*****भगवान् राम के जन्म समय से सम्बंधित कुछ और तथ्य ******
भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर के सहारे रामायण काल की सूर्य/ चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा खगोलीय पद्धति से भगवान् राम की जन्म तिथि (आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर) 5114 ई.पू. निकाली है | तो भटनागर जी साफ्टवेयर के सहारे कह रहे हैं की भगवान् राम का जन्म द्वापर मैं हुआ था त्रेता मैं नहीं, क्योंकि 5114 ई.पू. तो द्वापर युग ही चल रहा था | लगभग सभी वैदिक विद्वान् उनके द्बारा दिए गए तिथि को गलत साबित किया है | आईये देखते हैं कैसे :
* वही रामायण (जिसपे भटनागर जी की गणना आधारित है) कहती है भगवन राम त्रेता युग मैं आये थे | कलि युग मैं ४,३२,००० (४ लाख ३२ हज़ार वर्ष), द्वापर मैं ८,६४,००० (८ लाख ६४ हज़ार) और त्रेता युग मैं १७,२८,००० (१७ लाख २८ हज़ार ) वर्ष हैं | reference :
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/images/articles/devanagari/51.3.gif
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/articles/51_the_bhartiya_chronology.htm
त्रेता युग, कलि और द्वापर के पहले था | तो भगवन राम का जन्म कलियुग के अबतक बीते वर्षों ५१०० + द्वापर युग के ८,६४,००० = ८, ६९, १०० (८ लाख ५९ हज़ार कम से कम ) तो अवश्य ही होगे | इसमें तो कोई दो राय होनी ही नहीं चाहिए | ये तो यहीं सिद्ध हो गया की भगवन का जन्म 5114 ई.पू. गलत है |
हिन्दुओं के सारे ग्रन्थ कलि युग मैं ४ लाख ३२ हज़ार, द्वापर मैं ८ लाख ६४ हज़ार और त्रेता युग मैं १७ लाख २८ हज़ार वर्ष ही बताते हैं | और लगभग सभी पुराण, महाभारत और अन्य ग्रन्थ स्पस्ट रूप से कहता है - भगवान् राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ था | जब सारे ग्रन्थ ये कह रहा है की राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ तो भटनागर साहब को मानने मैं क्या तकलीफ है? ये तो वही बात हुई की सारे ग्रंथों को नहीं मानता पर उसी ग्रन्थ से २-४ श्लोक निकाल के मैं अपने ढंग से अपनी कल्पना और अनुमान से गलत तिथि निकालूँगा | जब पुरे ग्रन्थ को नहीं मानते तो उसी ग्रन्थ से ग्रहों की स्थिति लेने की क्या आवश्यकता?
* वही रामायण (जिसपे भटनागर जी की गणना आधारित है) कहती है भगवन राम त्रेता युग मैं आये थे | कलि युग मैं ४,३२,००० (४ लाख ३२ हज़ार वर्ष), द्वापर मैं ८,६४,००० (८ लाख ६४ हज़ार) और त्रेता युग मैं १७,२८,००० (१७ लाख २८ हज़ार ) वर्ष हैं | reference :
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/images/articles/devanagari/51.3.gif
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/articles/51_the_bhartiya_chronology.htm
त्रेता युग, कलि और द्वापर के पहले था | तो भगवन राम का जन्म कलियुग के अबतक बीते वर्षों ५१०० + द्वापर युग के ८,६४,००० = ८, ६९, १०० (८ लाख ५९ हज़ार कम से कम ) तो अवश्य ही होगे | इसमें तो कोई दो राय होनी ही नहीं चाहिए | ये तो यहीं सिद्ध हो गया की भगवन का जन्म 5114 ई.पू. गलत है |
हिन्दुओं के सारे ग्रन्थ कलि युग मैं ४ लाख ३२ हज़ार, द्वापर मैं ८ लाख ६४ हज़ार और त्रेता युग मैं १७ लाख २८ हज़ार वर्ष ही बताते हैं | और लगभग सभी पुराण, महाभारत और अन्य ग्रन्थ स्पस्ट रूप से कहता है - भगवान् राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ था | जब सारे ग्रन्थ ये कह रहा है की राम का जन्म लगभग १८ लाख वर्ष पूर्व हुआ तो भटनागर साहब को मानने मैं क्या तकलीफ है? ये तो वही बात हुई की सारे ग्रंथों को नहीं मानता पर उसी ग्रन्थ से २-४ श्लोक निकाल के मैं अपने ढंग से अपनी कल्पना और अनुमान से गलत तिथि निकालूँगा | जब पुरे ग्रन्थ को नहीं मानते तो उसी ग्रन्थ से ग्रहों की स्थिति लेने की क्या आवश्यकता?
* 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर को इतिहास के ग्रहों की स्थिति के लिए तैयार किया ही नहीं गया है | इतिहास मैं वर्णित ग्रहों , नक्षत्रों की स्थिति के आधार पे कोई निश्चित तिथि निकालने के लिए Archeoastronomy (as just like archeology it can help date events as described in literature. Also, it touches on ancient calendar systems, concepts of time and space, mathematics especially counting systems and geometry, navigation, and architecture.) का सहारा लिया जाता है | जब 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' साफ्टवेयर Archeoastronomy पे आधारित ही नहीं है तो ये इतिहास की सही सही तिथि कैसे बता सकती है ?
मुझे लगता है पुष्कर भटनागर ने भगवान् राम का गलत जन्म तिथि निकाल कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश की है | लगता है पुष्कर भटनागर जी पूरी रामायण पढ़े बिना ही चल दिए भगवान् राम की जन्म तिथि निकालने |
भगवान् राम के होने के एनी प्रमाण है जो श्रीलंका में आज भी मौजूद है देखे चित्र में ---
The Sri Lankan tourism promotion bureau must have been watching very closely when the Setusamudram Project rocked Parliament last year. Their attempt to cash in on the Ramayana craze in India seems to have hit jackpot.
Ever since the launch in January of the ‘Sri Lanka’s Ramayana Trail’ — a religious/ spiritual tourism venture by Lanka — tour operators have been flooded with enquiries from India.
“A swami from north India is bringing 400 of his students to go on the trail. An Andhra Pradesh tour operator has come and checked out the trail. We have already had batches of 50, 60, and 120 visitors from India,” said Asoka Perera, South Asia spokesperson for Sri Lanka Tourism. He is in Delhi to take part in the South Asia Travel and Tourism Exchange.
The trail, that can be anything between one and three weeks, comprises a maximum of 25 locations spread across central and western Sri Lanka.
“The objective of this venture is to create fellowship with other communities so that there can be some relief from the ethnic strife,” said Perera. Among the attractions is the Ravana Cave at Ella, 220 km from the capital Colombo. According to legend it served as a quick means of transport through the hills for Ravana.
Even a research study called Following the Trail of Ramayana in Sri Lanka is underway. “The study is based on the compilation of research conducted by academicians from India and Sri Lanka over the years. We are a team of six active members, including three Indians,” said T.Y. Sunderasan, director of the study.
But historians say such efforts must be condemned. “As far as historicity is concerned, these claims are unverifiable. As we know from the Ram Setu controversy, literal reading of the epic is problematic. In archeological terms, it is very difficult to verify. We as historians and scholars should condemn such efforts that give legitimacy to artificial geography,” said R Mahalakshmi, assistant professor, Centre for Historical Studies at JNU.
DN Jha retired professor of history from Delhi University and author of the controversial book The Myth of the Holy Cow attributes the success of the venture to ‘mythomania’. “I think this is bizarre. This is what we can call ‘mythomania’.
It is a myth that we have already exposed here. One needs to ask if these researchers have studied Sanskrit, have they read all the different versions of Ramayana — there are over 300 of them.”
भगवान् राम के होने के एनी प्रमाण है जो श्रीलंका में आज भी मौजूद है देखे चित्र में ---
The Ravana Palace which was burnt by Hanuman |
Sugriva Cave |
Floating Stone from Ramsethu(bridge made by lord Rama and Vanara sena) |
Floating Stone from Ramsethu(bridge made by lord Rama and Vanara sena) |
Ashok vatika where Ravana kept Sita |
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Ever since the launch in January of the ‘Sri Lanka’s Ramayana Trail’ — a religious/ spiritual tourism venture by Lanka — tour operators have been flooded with enquiries from India.
“A swami from north India is bringing 400 of his students to go on the trail. An Andhra Pradesh tour operator has come and checked out the trail. We have already had batches of 50, 60, and 120 visitors from India,” said Asoka Perera, South Asia spokesperson for Sri Lanka Tourism. He is in Delhi to take part in the South Asia Travel and Tourism Exchange.
The trail, that can be anything between one and three weeks, comprises a maximum of 25 locations spread across central and western Sri Lanka.
“The objective of this venture is to create fellowship with other communities so that there can be some relief from the ethnic strife,” said Perera. Among the attractions is the Ravana Cave at Ella, 220 km from the capital Colombo. According to legend it served as a quick means of transport through the hills for Ravana.
Even a research study called Following the Trail of Ramayana in Sri Lanka is underway. “The study is based on the compilation of research conducted by academicians from India and Sri Lanka over the years. We are a team of six active members, including three Indians,” said T.Y. Sunderasan, director of the study.
But historians say such efforts must be condemned. “As far as historicity is concerned, these claims are unverifiable. As we know from the Ram Setu controversy, literal reading of the epic is problematic. In archeological terms, it is very difficult to verify. We as historians and scholars should condemn such efforts that give legitimacy to artificial geography,” said R Mahalakshmi, assistant professor, Centre for Historical Studies at JNU.
DN Jha retired professor of history from Delhi University and author of the controversial book The Myth of the Holy Cow attributes the success of the venture to ‘mythomania’. “I think this is bizarre. This is what we can call ‘mythomania’.
It is a myth that we have already exposed here. One needs to ask if these researchers have studied Sanskrit, have they read all the different versions of Ramayana — there are over 300 of them.”
राम नाम का कोई भी धरती आदमी पैदा नहीं हुआ ऐसा कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं है हां पुष्यमित्र शुंग नाम का राजा राज करता आयोध्या में जो मौर्य सम्राज्य का आखिरी राजा वृहद्रथ की हत्या करने के बाद बना उस समय और भी हत्या हुई हैं लेकिन यही बताना चाहता हूँ कि उसके बाद कोई राजा अयोध्या में नहीं हुआ और यह बात सही है कि वाल्मीकि ने जो रामायण लिखा वह पुष्यमित्र शुंग को अपने सामने रखकर लिखा है और उसे ही राम की उपाधि दी है। क्योंकि वाल्मीकि जो ब्राह्मण थे वे पुष्यमित्र शुंग के राज्य में राजकवि थे...राजकवि थे इसलिए उन्होंने अपने राजा के प्रशंसा में लिखा यही सही है.............?
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