सोमवार, 5 दिसंबर 2016

भारत वसुधैव कुटुम्बकम वाला देश है



1942 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया था ... सबसे खराब हालत पोलैंड की थी ..क्योकि पोलैंड ब्रिटेन को जितने के लिए जर्मनी को पोलैंड को जितना जरूरी था ..पोलैंड पर रूस अमेरिका ब्रिटेन और जर्मनी जापान आदि देशो की सेनाओ ने कब्जे के लिए हमला बोल दिया ..



पोलैंड के सैनिको ने अपने 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक शीप में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया ..और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ ..जहाँ इन्हें शरण मिल सके ..अगर जिन्दगी रही ..हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे ..
पांच सौ शरणार्थी पोलिस महिलाओ और दो सौ बच्चो से भरा वो जहाज ईरान के इस्फहान बंदरगाह पहुंचा .. वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली .. फिर सेशेल्स .. में भी नही मिली .. फिर अदन में भी अनुमति नही मिली .. अंत में समुद्र में भटकता भटकता वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया ... जामनगर के तत्कालीन महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ पांच सौ महिलाओ बच्चो के लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया ..बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कुल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की .. ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे ..
उन्ही शरणार्थी बच्चो में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना .. आज भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते है और अपने पूर्वजो को याद करते है .. उनके फोटो और नाम सब रखे हुए है ...
पोलैंड की राजधानी वर्साय में चार सडको का नाम महराजा दिग्विजय सिंह रोड है ..उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनाये चलती है .. हर साल पोलैंड के अखबारों में महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपता है दया/परहित का दूसरा धर्मनाम " सनातन " भारत वसुधैव कुटुम्बकम वाला देश है, और आज कल हमें ही सहिष्णुता सिखाई जाती है। 

अगर यही उपकार किसी मुल्ले पर किया जाता तो वो मुल्ला उसी राजा का राज्य हड़प लेता, और राजा की पुत्री को भागा ले जाता और अंत में राजा की हत्या कर देता जैसा टीपू सुल्तान के बाप हैदर अली ने किया था। ..

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

उत्तरप्रदेश की सपा सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण

गाजियावाद में अखिलेश ने हज हाऊस का उद्घाटन किया.इस हज हाऊस का बजट 1300 करोड़ रु था
यह एशिया के सबसे सुन्दर हज हाऊसों में से एक है...
मै एक आम नागरिक होने के नाते अखिलेश भईया, उन्के समर्थकों,एंव सभी सपाईयो से ये पूछना चाहता हुँ और ये उनकी जिम्मेदारी भी है ! कि वो मुझे और सभी उत्तर प्रदेश वासीयों को इसका जवाब पूरी ईमानदारी के साथ दे....
1) क्या सपा सरकार ने इतनी लागत से कभी किसी मन्दिर का निर्माण भी कराया है अगर नही तो क्यो...?
2) इतनी लागत से बने इस हज हाऊस का यूपी राज्य के विकास में कितना योगदान है...?
3) अगर इतना पैसा किसी और योजना मे लगता तो क्या राज्य का विकास नही होता...?
4) यह सरकारी खजाने से खर्च कि गई रकम है या किसी की निजी खजाने से...?
5) इसके रख रखाव के लिए रखे जाने वाले कर्मचारी के वेतन पर हर महीने लाखों खर्च होने वाली रकम सरकारी खजाने से दी जायेगी या निजी खजाने से...?
6) अगर यह रकम सरकारी खजाने से खर्च की गई है,और हर महीने की जायेगी तो मेरे अखिलेश ये पैसा हम आम जनता की मेहनत का वो एक हिस्सा है जो हम टैक्स के रूप में सरकार को देते है ! यह किसी के बाप का पैसा नही है कि जहाँ मन किया वहाँ खर्च किया जाये...
7) अगर यहाँ सरकारी पैसा लगा है तो क्या यह पैसै की बरबादी नही है....?
8) अगर यहाँ सरकारी पैसा लगा है और ये पैसे की बरबादी भी नही है तो क्या यह हम हिन्दुओ के साथ पक्षपात नही है....?
9)अगर ये पक्षपात है तो क्या हम हिन्दुओ को मान लेना चाहिये कि सपा बस मुसलामानों की सरकार है...?
10) यह सभी को दिखता हुआ सरकार का एक पक्षपात पूर्ण रवैया है ! तो फिर सपा सरकार हम हिन्दुओ से किस आधार पर वोट की उम्मीद करती है या हम हिन्दू किस आधार पर सपा को वोट दें....?
...
यह 10 सवाल मेरे उन हिन्दू भाईयो की आँखे खोलने के लिए काफी है जो तन,मन,धन से सपा सरकार के साथ जुड़े हैं ! अगर अभी भी उन्की आँखे नही खुली तो या तो वो अपने निजी हित के लिए सपा के साथ है ! उन्हे धर्म और समाज से कोई मतलब नही है या फिर उनको जन्मजात अन्धा मान लिया जाऐ....
हिंदुओं की आँखे खोलने के लिये आज इतना ही काफी है इति सिदम्

मोदी/गोडसे और गाँधी ?

निवेदन है की लेख पुरा पढ़े ..
प्रश्न :- मैं एक पढ़ा लिखा मुस्लिम हूँ । मेरी अपनी खुद की एक राजनीतिक सोच है और यदि मैं मोदी का विरोध करता हूँ तो मैं देशद्रोही कैसे हो गया ?
उत्तर :- मोदी जी ने अपनी शख्शियत ऐसी बनाई है की वो देशभक्ति का पर्यायवाची शब्द बन गये है ।और जब कोई उनके विरोध में खड़ा होता है तो वो स्वतः अपने आप को देशद्रोहीयों की कतार खड़ा पाता है ।
ऐसी परिस्थिति में वो और भी ज्यादा खिजकर मोदी विरोध करता है और मोदी विरोध करते करते देशविरोध की सीमा भी लांघ जाता है ।
प्रश्न :- मोदी जी देशभक्ति का पर्याय कैसे है ?
उत्तर :- मोदी जी का आज तक का राजनीतिक जीवन निष्कलंक रहा है l
उन्होने हमेशा अपने राज्य और देश की भलाई के लिये काम किया है ।
मोदी जी ने कोई भ्रष्टाचार नही किया
मोदी जी के पास अपनी कोई सम्पत्ति नही है ।
मोदी जी का अपना खुद का कोई परिवार नही है ।
मोदी जी के भाई बहन अत्यंत साधारण जीवन यापन करते है ।
प्रश्न :- निष्कलंक !!!...लेकिन मोदी ने गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम कराया था । वो ?
उत्तर :- दंगे हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होते है । और ये पहला या अंतिम दंगा नही था । इससे पहले भी महात्मा गाँधी की हत्या के बाद उनके अहिंसा और शान्ती के समर्थको ने 6000 मराठी ब्राह्मणों का महाराष्ट्र में कत्लेआम किया था । इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भी हजारों सिखों का संहार किया गया था । कश्मीर में दस सालों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार करके उनको बेघर किया गया लेकिन मुस्लिमों की तरह कोई छाती नही पीटता । उत्तर प्रदेश में आये दिन कहीँ न कहीँ दंगा होता ही रहता है लेकिन मोदी जी ने जिस तरह से गुजरात में दंगा कंट्रोल किया उसके बाद कोई दंगा नहीँ हुआ ।
प्रश :- लेकिन मोदी की विचारधारा rss वाली है उसे मैं क्यों स्वीकार करूँ ?
उत्तर :- पिछले 60 साल से राष्ट्रवादी लोग भी कॉंग्रेस की गली सड़ी झूठी विचारधारा को न चाहते हुए भी स्वीकार करते रहे है । और मोदी जी कोई डेमोक्रेसी को hijack करके तो P M बने नहीँ है । अब ये बदलाव स्वीकार करना ही होगा । और rss अन्य मुस्लिम तंजीमों की तरह कोई आतंकवादी संगठन तो है नहीँ और न ही कोई banned organisation है ।
प्रश्न :- फ़िर हिंदू उनका विरोध क्यों करते है ?
उत्तर :- अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते या अपने कमअकल होने की वजह से ।
प्रश :- ये कौन सी बात हुई की मोदी के विरोध में है तो वो कमअकल या गद्दार है ?
उत्तर :- जो हिंदू, मोदी rss का विरोध करते है वो कमअकल होने की वज़ह से इतिहास का सही अध्ययन नहीँ कर पाये और वर्तमान का सही विश्लेषण नहीँ कर पाते ।
वो मंदबुद्धि होने के कारण नहीँ समझ पाते की राष्ट्रवाद क्यो ज़रूरी है।
प्रश्न :- लेकिन ये राष्ट्र अकेले हिन्दुओं का नहीँ है हमारा भी है ।
उत्तर :- नहीँ इस्लाम भारत का मूल धर्म नहीँ है l यह आयातित धर्म है ।
प्रश्न :- लेकिन हम तो भारतीय मुसलमान है
उत्तर :- नहीँ आप लोगों को आइडेंटिटी crisis है ।
प्रश्न :- अब ये identity क्राइसिस क्या है ?
उत्तर :- आइडेंटिटी क्राइसिस या दूसरे शब्दों मे परिचय अज्ञानता या परिचय संकट है ।
और किस तरह ये परिचय अज्ञानता कुंठा का रुप धारण करके देश और समाज को एक लम्बे समय से सिर्फ और सिर्फ नुकसान पहुँचाती रही है
इसको थोड़ा विस्तार से समझते है..
बाहर से असभ्य दुर्दांत मुस्लिम आक्रांता किस तरह से भारत मे आये और यहाँ की संस्कृति को नष्ट किया ये एक विषय है दूसरा विषय है आज मौजूद उनके पैरोकारों का, जो जूठी आइडेंटिटी के साथ जी रहे है,
उनके पूर्वजों का सच जो वो हमेशा नकारते है ।
आज मौजूद 20-25 करोड़ मुस्लिम वही है जिनके पूर्वजों को बलात तलवार की नोक पर मुस्लिम बनाया गया या
ज़मीन और जागीरदारी का लालच देकर उनको मुस्लिम बनाया गया या वो मुस्लिम बने जिनको तथाकथित तौर अपने हिंदू समाज में नीचा स्थान प्राप्त था या
वो मुस्लिम बने जिन्होने अपने परिवार और समाज को अपने कृत्यों से नीचा दिखाया और उनका सामाजिक व पारिवारिक बहिष्कार किया गया ।
लेकिन अब मसला ये है की क्या आप इन सत्यों को आत्मसात करते है ।
प्रश्न :- ये क्या बकवास है ?
उत्तर :- क्यों क्या ये सच नहीँ की महमूद गज़नवी गौरी तैमूर ...और न जाने कितने लुटेरे थे और वो सब इस्लाम को मानते थे ।
प्रश्न :- तो अँगरेज़ भी तो इंडिया को लूटने आये थे ।
उत्तर :- बिल्कुल, इसीलिए उनको हमने भगाया ना वापस
प्रश्न :- आपने नहीँ महात्मा गाँधी ने भगाया
उत्तर :- exactly, जब अँगरेज़ और मुस्लिम दोनो ही लुटेरे थे और दोनो ही बाहर से आये थे तो गाँधी जी सिर्फ अंग्रेजों से ही क्यों लड़े l और न केवल अंग्रेजों से लड़े बल्कि हमेशा हिंदू मुसलमानो में मुसलमानो का पक्ष लेते रहे इसीलिए पंडित नाथूराम गोडसे ने उनका वध किया था
और इस विषय में एक पुस्तक भी है "गाँधी वध क्यों "
*गांधी वध क्यों* एक ऐसी पुस्तक है जिससे डरकर कांग्रेस ने इस पर *प्रतिबंध* लगा दिया था
गाँधी वध क्यों ?
क्या थी विभाजन की पीड़ा ?
विभाजन के समय हुआ क्या क्या ?
विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों दृष्टिकोण ?
क्या थी पीड़ा पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों की ... मदन लाल पाहवा और विष्णु करकरे की?
क्या थी गोडसे की विवशता ?
क्या गोडसे नही जानते थे की आम आदमी को मरने में और एक राष्ट्रपिता को मरने में क्या अंतर है ?
क्या होगा परिवार का ?
कैसे कैसे कष्ट सहने पड़ेंगे परिवार और सम्बन्धियों को और मित्रों को ?
क्या था गांधी वध का वास्तविक कारण ?
क्या हुआ 30 जनवरी की रात्री को ... पुणे के ब्राह्मणों के साथ ?
क्या था सावरकर और हिन्दू महासभा का चिन्तन ?
क्या हुआ गोडसे के बाद नारायण राव आप्टे का .. कैसी नृशंस फांसी दी गयी उन्हें l
यह लेख पढने के बाद कृपया बताएं कैसे उतारेगा भारतीय जनमानस पंडित नाथूराम गोडसे जी का कर्ज....
आइये इन सब सवालों के उत्तर खोजें ....
पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं.अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए lरेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी l बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,," आज़ादी का तोहफा " रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई
थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा l ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की... भयानक बदबू......
सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे l मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हल्ला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं- बच्चियों को भगाया गया.बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी ... बलात्कार किये बिना.....?
जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी....
डॉक्टर ने पूछा क्यों ???
उन महिलाओं ने जवाब दिया... हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ?
हमपर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं...उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे.
"आज़ादी का तोहफा"
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया l
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा जी का आग्रह था...क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था l
विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे....और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए.....पैसे दो, नहीं तो मैं मर जाउगा....एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l
दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए... क्या यह हिंसा नहीं थी .. अहिंसक आतंकवाद की आड़ में
दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई
ताबा नहीं रहना चाहिए l निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं...
जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे
रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि... तुम हिन्दू हो....
4000000 हिन्दू भारत में आये थे,ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं....ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब
गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ??
यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?
कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़ गंधासुर ... कितना महान ...
जिसने बिना तलवार उठाये ... 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार करवाया
2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआऔर उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंची l
10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गया l
20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया, तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद
ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो ...
परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज नहीं ...वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल
विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र ...
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आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि ... परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l
और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए... क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया... या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l
परन्तु ऐसा नही हुआ .... यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी ...
यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था ... मोहनदास करमचन्द के अनुसार l
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l
पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे ...
उन्होंने फिर से मांग की ... की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए .... कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए....
2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो ... (NH - 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो ...
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो ... (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी ...मान लिया जायेगा l
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में ...और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l
हुतात्मा का अर्थ होता है जिस आत्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी हो .... जिसको की वीरगति को प्राप्त होना भी कहा जाता है l
यहाँ यह सार्थक चर्चा का विषय होना चाहिए की हुतात्मा पंडित नाथूराम गोडसे जीने क्या एक बार भी नहीं सोचा होगा की वो क्या करने जा रहे हैं ?
किसके लिए ये सब कुछ कर रहे हैं ?
उनके इस निर्णय से उनके घर, परिवार, सम्बन्धियों, उनकी जाती और उनसे जुड़े संगठनो पर क्या असर पड़ेगा ?
घर परिवार का तो जो हुआ सो हुआ .... जाने कितने जघन्य प्रकारों से समस्त परिवार और सम्बन्धियों को प्रताड़ित किया गया l
परन्तु ..... अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलाया l
10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गए l
सोचने का विषय यह है की उस समय संचार माध्यम इतने उच्च कोटि के नहीं थे, विकसित नही थे ... फिर कैसे 3 घंटे के अंदर अंदर इतना सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा नरसंहार कर दिया गया ....
सवाल उठता है की ... क्या उन अहिंसक आतंकवादियों को पहले से यह ज्ञात था की गांधी वध होने वाला है ?
जस्टिस खोसला जिन्होंने गांधी वध से सम्बन्धित केस की पूरी सुनवाई की... 35 तारीखें पडीं l
अदालत ने निरीक्षण करवाया और पाया हुतात्मा पनदिर नाथूराम गोडसे जी की मानसिक दशा को तत्कालीन चिकित्सकों ने एक दम सामान्य घोषित किया l पंडित जी ने अपना अपराध स्वीकार किया पहली ही सुनवाई में और अगली 34 सुनवाइयों में कुछ नहीं बोले ... सबसे आखिरी सुनवाई में पंडित जी ने अपने शब्द कहे ""
गाँधी वध के समय न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी | नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था |इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी वध के सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायलय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दे दी। नाथूराम गोडसे ने न्यायलय के समक्ष गाँधी वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?
प्रश्न यह भी उठता है की पंडित नाथूराम गोडसे जी ने तो गाँधी वध किया उन्हें पैशाचिक कानूनों के द्वारा मृत्यु दंड दिया गया परन्तु नाना जी आप्टे ने तो गोली नहीं मारी थी ... उन्हें क्यों मृत्युदंड दिया गया ?
नाथूराम गोडसे को सह अभियुक्त नाना आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब के अम्बाला की जेल में मृत्यु दंड दे दिया गया। उन्होंने अपने अंतिम शब्दों में कहा था...
यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वो पाप किया है और यदि यह पुन्य है तो उसके द्वारा अर्जित पुन्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ
– पंडित नाथूराम गोडसे
आशा है कि लोग पंडित नाथूराम को समझे व् जानें। प्रणाम हुतात्मा को।
भारत माता की जय
"तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें!"
*अगर आप नाथूराम गोडसे का पूरा बयान पढ़ना चाहते है तो उनके द्वारा लिखित "गाँधी वध क्यों?"
अगर आप नाथूराम गोडसे के समर्थक है तो इस पोस्ट को और तक भी पहुँचाए। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो तक सच्चाई पहुँचे। निश्चित ही एक दिन सत्य की विजय होगी।
(
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मंगलवार, 27 सितंबर 2016

मांसाहार क्यूँ जायज़ है ?

अक्सर कुछ लोगों के मन में यह आता ही होगा कि जानवरों की हत्या एक क्रूर और निर्दयतापूर्ण कार्य है तो क्यूँ लोग मांस खाते हैं? जहाँ तक मेरा सवाल है मैं एक मांसाहारी हूँ. मुझसे मेरे परिवार के लोग और जानने वाले (जो शाकाहारी हैं) अक्सर कहते हैं कि आप माँस खाते हो और बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार करके जानवरों के अधिकारों का हनन करते हो.

शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है, बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं. निसंदेह दुनिया में माँसाहारों की एक बड़ी संख्या है और अन्य लोग मांसाहार को जानवरों के अधिकार (जानवराधिकार) का हनन मानते हैं.

मेरा मानना है कि इंसानियत का यह तकाज़ा है कि इन्सान सभी जीव और प्राणी से दया का भावः रखे| साथ ही मेरा मानना यह भी है कि ईश्वर ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे बड़े हर प्रकार के जीव-जंतुओं को हमारे लाभ के लिए पैदा किया गया है. अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम ईश्वर की दी हुई अमानत और नेमत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करते है.

आइये इस पहलू पर और इसके तथ्यों पर और जानकारी हासिल की जाये...

1- माँस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है
माँस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है. इसमें आठों अमीनों असिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति खाने से पूरी हो सकती है. गोश्त यानि माँस में लोहा, विटामिन बी वन और नियासिन भी पाए जाते हैं (पढ़े- कक्षा दस और बारह की पुस्तकें)



2- इन्सान के दांतों में दो प्रकार की क्षमता है
अगर आप घांस-फूस खाने वाले जानवर जैसे बकरी, भेड़ और गाय वगैरह के तो आप उन सभी में समानता पाएंगे. इन सभी जानवरों के चपटे दंत होते हैं यानि जो केवल घांस-फूस खाने के लिए उपयुक्त होते हैं. यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता और बाघ आदि के दंत देखें तो उनमें नुकीले दंत भी पाएंगे जो कि माँस खाने में मदद करते हैं. यदि आप अपने अर्थात इन्सान के दांतों का अध्ययन करें तो आप पाएंगे हमारे दांत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं. इस प्रकार वे शाक और माँस दोनों खाने में सक्षम हैं.

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दांत क्यूँ देता. यह इस बात का सबूत है कि उसने हमें माँस और सब्जी दोनों खाने की इजाज़त दी है.

3- इन्सान माँस और सब्जियां दोनों पचा सकता है
शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल केवल सब्जियां ही पचा सकते है और मांसाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल माँस पचाने में सक्षम है लेकिन इन्सान का पाचन तंत्र दोनों को पचा सकता है.

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमको केवल सब्जियां ही खिलाना चाहता तो उसे हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यूँ देता जो माँस और सब्जी दोनों पचा सकता है.

4- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है
एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है. मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं.

5- कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की अनुमति देता है
पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है. कुरआन की आयतें इस बात की सबूत है-

"ऐ ईमान वालों, प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो| तुम्हारे लिए चौपाये जानवर जायज़ है, केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है" (कुरआन 5:1)

"रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी और अन्य कितने लाभ. उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो" (कुरआन 16:5)

"और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदहारण हैं. उनके शरीर के अन्दर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं और इसके अलावा उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका माँस तुम प्रयोग करते हो" (कुरआन 23:21)

6- हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की अनुमति देतें है !
बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं. उनका विचार है कि माँस सेवन धर्म विरुद्ध है. लेकिन सच ये है कि हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ मांसाहार की इजाज़त देतें है. ग्रन्थों में उनका ज़िक्र है जो माँस खाते थे.

A) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनु स्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि-
"वे जो उनका माँस खाते है जो खाने योग्य हैं, अगरचे वो कोई अपराध नहीं करते. अगरचे वे ऐसा रोज़ करते हो क्यूंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है"

(B) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है-
"माँस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है"

(C) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि -
"स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं"

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठर और पितामह के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए? प्रसंग इस प्रकार है -

"युधिष्ठिर ने कहा, "हे महाबली!मुझे बताईये कि कौन सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेट की जाये तो उनको शांति मिले? कौन सा हव्य सदैव रहेगा ? और वह क्या जिसको यदि सदैव पेश किया जाये तो अनंत हो जाये?"

भीष्म ने कहा, "बात सुनो, हे युधिष्ठिर कि वे कौन सी हवी है जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित है और कौन से फल है जो प्रत्येक से जुडें हैं| और श्राद्ध के समय शीशम, बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाये तो पूर्वजो को एक माह तक शांति मिलती है. यदि मछली भेंट की जाये तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है. भेंड का माँस तीन माह तक उन्हें शांति देता है| खरगोश का माँस चार माह तक, बकरी का माँस पांच माह और सूअर का माँस छह माह तक, पक्षियों का माँस सात माह तक, पृष्ठा नामक हिरन से वे आठ माह तक, रुरु नामक हिरन के माँस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं. "GAWAYA" के माँस से दस माह तक, भैस के माँस से ग्यारह माह तक और गौ माँस से पूरे एक वर्ष तक. प्यास यदि उन्हें घी में मिला कर दान किया जाये यह पूर्वजों के लिए गौ माँस की तरह होता है| बधरिनासा (एक बड़ा बैल) के माँस से बारह वर्ष तक और गैंडे का माँस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्यु वर्ष पर भेंट किया जाये तो यह उन्हें सदैव सुख शांति में रखता है. क्लासका नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियां और लाल बकरी का माँस भेंट किया जाये तो वह भी अनंत सुखदायी होता है. अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत काल तक सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का माँस भेंट करना चाहिए"
7- हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावित
हालाँकि हिन्दू धर्म ग्रन्थ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं, फिर भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली, क्यूंकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे.

8- पेड़ पौधों में भी जीवन
कुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार अपना लिया क्यूंकि वे पूर्णरूप से जीव-हत्या से विरुद्ध है. अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता. आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है. अतः जीव हत्या के सम्बन्ध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता.

9- पौधों को भी पीड़ा होती है
वे आगे तर्क देते हैं कि पौधों को पीड़ा महसूस नहीं होती, अतः पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है. आज विज्ञानं कहता है कि पौधे भी पीड़ा महसूस करते हैं लेकिन उनकी चीख इंसानों के द्वारा नहीं सुनी जा सकती. इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्ट्ज़ से 20,000 हर्ट्ज़ तक इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है| एक कुत्ते में 40,000 हर्ट्ज़ तक सुनने की क्षमता है. इसी प्रकार खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्ट्ज़ से कम होती है. इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं. एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है| अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का अविष्कार किया जो पौधे की चीख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है. जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को तुंरत ज्ञान हो जाता था. वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते है कि पौधे भी पीड़ा, दुःख-सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं.

10- दो इन्द्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं !!!
एक बार एक शाकाहारी ने तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इन्द्रियाँ होती है जबकि जानवरों में पॉँच होती हैं| अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुक़ाबले छोटा अपराध है.

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

बैसवारा (बैस राजपूत) का इतिहास


किसी क्षेत्र विशेष का महत्व उसकी भौगोलिक स्थिति सांस्कृतिक विरासत सामाजिक एवं ऐतिहासिक स्थिति की वजह से और भी अधिक बढ़ जाता है| इन्हीं विशेषताओं से समृद्ध उत्तरप्रदेश के अंतर्गत अवध क्षेत्र में अधिकतर अवधी भाषा बोली जाती है| यहां की बैसवारा रियासत उन्नाव, रायबरेली एवं फतेहपुर के एक बड़े भूभाग पर फैली हुई है| बैसवारा रियासत का डौडिया खेडा किला गत वर्ष सोने की खुदाई को लेकर चर्चित रहा| रियासत उन्नाव गजेटियर १९२३-पृष्ठ १५४ में बक्सर का उल्लेख करते हुए लिखा है- गंगा उत्तरायणी बह कर यहां शिव को अर्घ्य प्रदान करती है, जिससे यह बहुत महत्वपूर्ण स्थान है| यहां पर चिरजीवी दाल्भ मुनि के सुपुत्र बक ॠषि का आश्रम था, उसके पास स्थापित बकेश्‍वर महादेव मंदिर आज भी मौजूद है| बक्सर का वैदिक कालीन नाम बकाश्रम था| 
महाभारत के युद्ध के समय बलरामजी बक्सर के बकाश्रम में ॠषि से आशीर्वाद लेने आया करते थे| यही वह तपस्थली है जहां मेघातिथि ॠषि ने चंडिका देवी की गहन पूजा अर्चना करके राजा सुरथ एवं समधि वैश्य को तप विधि का ज्ञान कराया था| दुर्गा सप्तशती के अध्याय १३, श्‍लोक १३-१५ में इसी कथा का वर्णन है| देवी मां ने इसी स्थान पर चंड-मुंड एवं शुंभ-निशुंभ आदि राक्षसों का वध किया था| दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है| मार्कण्डेय ॠषि मृकण्ड मुनि के पुत्र भृगुवंशी ब्राह्मण थे| यहीं वे स्थल हैं जहां राजा सुरथ एवं समधि वैश्य ने तप करके चंडिका देवी को प्रसन्न किया था| समधि वैश्य ने मोक्ष की कामना की किंतु राजा सुरथ ने खोया हुआ राजपाट मांगते हुए अगले जन्म में प्रतापी राजा होने का वरदान प्राप्त किया| उन्हें राज्य वापस मिल गया और वे अगले जन्म में सावर्णिक मनु के रूप में पैदा होकर विश्‍वव्यापी सम्राट बने| उन्होंने विधि-विधान के लिए मनु स्मृति लिख कर राज्य का सूत्र संचालन किया| बक्सर गंगा तट पर मेघातिथि मुनि, राजा सुरथ तथा समधि वैश्य के टीले आज भी स्थित एवं प्रसिद्ध हैं|
उन्नाव गजेटियर १९२३ - पृष्ठ - १५४ पर बक्सर का विस्तृत उल्लेख करके महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए लिखा गया है कि बैसवारे के बक्सर-उन्नाव में चंडिका देवी का बहुत विशाल मंदिर है| जहां हर वर्ष नवरात्रि और हिंदू त्योहारों में एक विशाल मेला लगता है| रायबरेली गजेटियर १८९३ में लिखा है कि यह वही स्थान है जिसमें सन १८५७ में अंग्रेजी विद्रोह के समय राजा रावराम बक्स ने लगभग एक दर्जन अंग्रेजों को शिव मंदिर में सेना से जलवा कर मार दिया था|
बक्सर का विवरण बाल्मिकि रामायण में भी मिलता है| यह महर्षि विश्‍वामित्र की तपस्थली थी| वे कान्यकुब्ज प्रदेश के राजा गाधि के पुत्र तथा प्रसिद्ध गायत्री मंत्र के रचयिता थे| पिता के निधन के बाद वे राजा बने| गुरु वशिष्ठ जी से संघर्ष के बाद विश्‍वामित्र का मन पूजा-पाठ में नहीं लगा| वे यहीं बक्सर में आकर गंगा के किनारे तपस्या करने लगे| उन्होंने कई प्रकार की वनस्पतियों की सृष्टि की थी| यहीं पर वे राक्षसों के हवन-पूजन के विघ्न दूर करने के लिए अयोध्या से राम-लक्ष्मण को लेकर आए थे, जिन्होंने राक्षसों का वध करके ॠषि-मुनियों के विघ्नों को दूर किया था| वाल्मीकि रामायण में इस प्रदेश को कारूप्रद प्रदेश बताया गया है जो अयोध्या से पश्‍चिम-दक्षिण के कोने पर स्थित है| तत्कालीन दाण्यक-उपनिषद में अश्‍वशिर विद्या का यहीं बड़ा केंद्र था| महाराजा हाग्रीव की राजधानी भी यहीं थी| गर्ग ॠषि ने यहीं आकर गंगा तट पर गेगासों नगर (गर्गस्त्रोत धाम) बसाया जो आज भी लालगंज-बैसवारा-फतेहपुर रोड पर गंगा के किनारे स्थित है|
अभय सिंह बैस और निर्भय सिंह बैस ने बक्सर के गंगा मेले में गंगा स्नान करने आई अर्गल नरेश की राजकुमारी रत्ना एवं राजमाता को अवध नवाब के सेनापति से युद्ध करके बचाया था| वह जबरदस्ती अपहरण करके रत्ना को नवाब के हरम की शोभा बनाना चाहता था| उनकी वीरता से प्रसन्न होकर राजा ने अपनी पुत्री रत्ना का विवाह अभय सिंह के साथ कर दिया था और दहेज में बैसवारे का किला दे दिया| उन दिनों किले में हर जाति के लोगों का कब्जा था| वे राजा को लगान भी नहीं देते थे| होली की रात दोनों भाइयों ने सेना लेकर किले पर हमला कर दिया| उस भीषण युद्ध में उनकी विजय तो हुई किंतु युद्ध में निर्भय सिंह शहीद हो गए| अभय सिंह किले में रह कर राज्य संचालन करने लगे|
उन दिनों कन्नौज के राजा जयचंद का राज्य डलमऊ तक फैला हुआ था| इसलिए यहां के ब्राह्मणों को कनवजिया बाह्मण भी कहा जाता है| डलमऊ में गंगा तट पर आल्हा-ऊदल की बैठक तथा राजा जयचंद के किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं| गंगा के किनारे इसी किले के पास स्थित अवधूत आश्रम में बैठ कर महाकवि निरालाजी पत्नी मनोहरा के वियोग में आंसू बहाकर कविताएं लिखा करते थे| राजा जयचंद के पतन के बाद तेरहवीं शताब्दी में राजा डलदेव डलमऊ रियासत के राजा बने जो जौनपुर के शासक मुहम्मद तुगलक के सेनापति शाह सर्की द्वारा युद्ध करते हुए शहीद हो गए थे| उसके बाद डलदेव के पुत्र चंदा-बंदा ने बाल्यावस्था में ही शर्की से युद्ध करके उसे मार डाला, उसकी कब्र आज भी डलमऊ में गंगा पुल के किनारे देखी जा सकती है| 
गौतम बुद्ध के काल में इस क्षेत्र को हामुख या अयोमुख कहा जाता था| यहीं द्रोणिक्षेत्र नगर का द्रौणिमुख बंदरगाह था, जो गंगाजी के जलमार्ग से नाव द्वारा व्यापारिक सुविधा के लिए बनवाया गया था| द्रौणि का अर्थ (तट) किनारा होता है| यही गांव आज डौडिया खेडा के नाम से जाना जाता है| सन २०१३ में सोने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा इसी बैसवारा रियासत के (डौडिया खेडा) किले की आंशिक खुदाई की गई थी जो बाद में राजनीति का शिकार होकर बंद कर दी गई| 
एलेक्जेंडर-कनिंघम् और चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा कुछ अन्य देशी-विदेशी विद्वानों ने ‘अयोमुख’ नगर को ही डौडिया खेडा बताया है| हर्षवर्धन के राजकवि बाणभट्ट ने कादंबरी और हर्षचरित्र में चंडिका देवी के मंदिर का उल्लेख किया है जो डौडिया खेडा रियासत के किले से एक मील की दूरी पर स्थित है|
चौदहवीं शताब्दी में बैसवारे के राजा जाजन देव के पिता श्री घाटम देव थे, जिन्होंने कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील को बसाया| बाद में वह बड़ा नगर बन गया| तुगलकी बादशाहों के आक्रमण से राज्य की स्थिति बहुत बिगड़ गई थी| राजा घाटमदेवजी माता चण्डिका देवी की शरण में गए| चंडिका मां के तत्कालीन पुजारी ने मंदिर के जीर्णोद्धार की सलाह दी| देवी मंदिर का जीर्णोद्धार होते ही उनका खजाना कई गुना बढ़ गया तथा वे महान शासकों में प्रसिद्ध हो गए| उन्होंने अपनी पुत्री की शादी रीवां भद्र नरेश के साथ की थी|
पंद्रहवीं शताब्दी में राजा त्रिलोकचंद्र सिंह का जन्म होते ही उनके पिता सातनदेव की अचानक मृत्यु हो गई तथा उनकी बाल्यावस्था बड़े संकट-विपन्नता में बीती| उनके गुरु लक्ष्मणदेव ने कुलदेवी चंण्डिका का हवन-पूजन करवाया| देवी मां के वरदान से त्रिलोकचंद्र सिंह ने थोड़ी सी सेना से ही समस्त खोया हुआ राज्य फिर से जीत लिया तथा बैसवारा क्षेत्र का निर्माण तथा बहुत प्रसार किया| लोगों का कहना है कि उनके समान शूरवीर तथा प्रतापी राजा बैसवारे में कोई दूसरा नहीं पैदा हुआ| वे युद्ध में कभी नहीं हारे|
मां चंण्डिका देवी के परम भक्त कविवर्य आचार्य सुखदेवजी मिश्र थे| वे पहले असोथर के राजा भगवंतराय खीची के यहां रहते थे, वे वहां से डौडिया खेडा (बैसवारा) चले आए| उन्होंने १६७९ में पुस्तक रसार्णव, वृत्ति विचार पिंगल एवं मर्दन विरुदावली लिखी थी| उन दिनों बैसवारे में राजा मर्दन सिंह का राज्य था| उन्होंने सुखदेव मिश्र को चंडिका देवी के पूजन हेतु एक आश्रम की जगह दे रखी थी| एक दिन मिश्रजी अमेठी गए थे, उसी समय मौरावां के विख्यात कवि निशाकर बक्सर (डोडिया खेडा) आए| राजा ने सुखदेव जी का निवास उन्हें रहने के लिए दे दिया| पं. सुखदेव मिश्र लौट कर आए तो अपने निवास पर दूसरे को ठहरा हुआ देख कर बहुत क्रोधित हुए| उन्होंने गुस्से में राजा को श्राप दे दिया कि ‘अब बैसवारा में हम नहीं सिर्फ निशाचर ही निवास करेंगे|’ उनके जाने के दो वर्ष बाद राज्य में भीषण समस्याएं आने लगीं|

वे गुस्से में बक्सर छोड़ कर मुरारमऊ चले गए| तत्कालीन राजा अमर सिंह ने सुखदेवजी की मर्जी से गंगा के किनारे एक बड़ा भूखंड दान स्वरूप दे दिया| सुखदेव मिश्र ने उसी जगह ग्राम दौलतपुर बसाया, जहां हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ| जिन्होंने अंग्रेजी शासन काल में हिंदी भाषा-साहित्य का परिष्करण करके हिंदी भाषा-साहित्य का युग प्रवर्तन किया| बैसवारे के अंतिम राजा रावराम बक्स एवं राणा बेनीमाधव सिंह थे, जिन्होंने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया पर परास्त हो गए|
अंग्रेजों ने शंकरपुर एवं डौडिया खेडा बैसवारा रियासत के दोनों किले ध्वस्त कर दिए| अपने कुछ गद्दार सैनिकों के कारण १८५७ के भीषण संग्राम में राणा बेनी माधव तथा बैसवारे के राजा रावराम बक्स दोनों ही बुरी तरह परास्त हुए| राणा जी नेपाल की ओर चले गए जिनका आज तक पता नहीं चला, किंतु रावराम बक्स को अंग्रेजों ने अंग्रेजी शासन से गद्दारी करने का अभियोग लगाकर पुराने बक्सर के बरगद के पेड़ में खुले आम फांसी की सजा दी| आजादी के बाद वह उसी स्थान पर रावराम का स्मारक बनाया गया है|
बैसवारे के कवि-साहित्यकारों में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, डॉ. रामविलास शर्मा, मलिक मुहम्मद जायसी, भगवती चरण वर्मा, डॉ. जगदंबा प्रसाद दीक्षित, पं. प्रतापनारायण मिश्र, डॉ. राममनोहर त्रिपाठी, रमेशचंद्र, काका बैसवारी एवं डॉ. गिरिजाशंकर त्रिवेदी आदि ने हिंदी को गौरवांकित किया|
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गुरुवार, 25 अगस्त 2016

श्री राम को बदनाम करने से पहले अपने धर्म/मजहब में झांक कर देखो

बौद्ध काल में भारतीय धर्म और राजनीति के इतिहास के साथ छेड़खानी की गई जिसके परिणामस्वरूप आज समाज में बहुत ही भ्रम फैला हुआ है। खासकर राम और कृष्ण के बारे में। बौद्ध और मध्यकाल में जहां धार्मिक इतिहास को बिगाड़ा गया, वहीं मध्यकाल में साहित्यकारों ने कविता, उपन्यास आदि के माध्यम से इतिहास को अपने तरीके से लिखा। हम यह कह सकते हैं कि उपन्यासकार, फिल्मकार और धार्मिक कथा लिखने वाले लोगों ने धर्म को समझे बगैर मनमाने तरीके से मूल कहानी के साथ छेड़खानी की। रामलीला के माध्यम से राम का मजाक उड़ाया जाता रहा है।

पहले रामायण 6 कांडों की होती थी, उसमें उत्तरकांड नहीं होता था। फिर बौद्धकाल में उसमें राम और सीता के बारे में सच-झूठ लिखकर उत्तरकांड जोड़ दिया गया। उस काल से ही इस कांड पर विद्वानों ने घोर विरोध जताया था, लेकिन इस उत्तरकांड के चलते ही साहित्यकारों, कवियों और उपन्यासकारों को लिखने के लिए एक नया मसाला मिल गया और इस तरह राम धीरे-धीरे बदनाम होते गए। इसी उत्तरकांड को तुलसीदास ने लव-कुश कांड नाम से लिखा और कहानी को और विस्तार दिया।

बीइंग एसोसिएशन ने हाल में ही में एक नाटक का मंचन किया जिसका नाम है- 'म्यूजियम ऑफ स्पीशीज इन डेंजर'। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से मंचित इस नाटक में सीता और द्रौपदी जैसे चरित्रों के माध्यम से हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया। यह नाटक लेखिका और निर्देशक रसिका अगाशे ने लिखा। सिर्फ नाटक के लिए इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम को बदनाम करने का प्रयास किया गया। निश्चित ही हमारे समाज में राम के बारे में भ्रम के चलते इस तरह के नाटकों का मंचन होना आम है। जब प्राचीन साहित्यकार ऐसा कर सकते हैं तो इसमें लेखिका और निर्दे‍शक रसिका अगाशे का कोई दोष नहीं है। यह उनके धार्मिक ज्ञान की अपूर्णता का दोष है।


राम को 4 बातों के लिए बदनाम किया जाता है:- 

1. उन्होंने सीता का परित्याग कर दिया था, 

2. वे भगवान नहीं, महज एक राजा थे, 

3. राम का वचन, 'ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी...' और 

4. उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।


उपरोक्त 4 बातों के अलावा उन पर और भी कई तरीके से वार किए जाते रहे हैं। वार करने वाले लोगों की हिम्मत सिर्फ हिन्दू धर्म पर ही वार करने की होती है, किसी अन्य धर्मों पर वार करने की सोचने में ही उनमें दहशत पैदा हो जाती है।

राम और कृष्ण के विरोध की शुरुआत बौद्धकाल से ही होती आई है। भगवान बुद्ध ने कभी राम और कृष्ण का विरोध नहीं किया, लेकिन नवागत या कहें कि नवयान ने अपने धर्म का आधार नफरत को बनाया, बुद्ध के संदेश को नहीं। खैर...


1. सीता का परित्याग कर दिया था? सीता 2 वर्ष तक रावण की अशोक वाटिका में बंधक बनकर रही लेकिन इस दौरान रावण ने सीता को छुआ तक नहीं। इसका कारण था कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था कि जब भी तुम किसी ऐसी स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। अत: रावण किसी भी स्त्री की इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं कर सकता था। वर्ना रावण इतना अच्छा नहीं था कि 2 वर्ष तक किसी स्त्री को गलत इरादे से नहीं छुए।


सीता को मु‍क्त करने के बाद समाज में यह प्रचारित है कि अग्निपरीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय से सीता को ग्रहण नहीं किया था। किंतु अब अग्निपरीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध होता है कि सीता पवित्र है, तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए। लेकिन इस अग्निपरीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया। यह बात उत्तरकांड में लिखी है। यह मूल रामायण में नहीं है।


वाल्मीकि रामायण, जो निश्‍चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखी गई थी, समस्त विकृतियों से अछूती है। इसमें सीता परित्याग, शम्बूक वध, रावण चरित आदि कुछ भी नहीं था। यह रामायण युद्धकांड (लंकाकांड) में समाप्त होकर केवल 6 कांडों की थी। इसमें उत्तरकांड बाद में जोड़ा गया।


शोधकर्ता कहते हैं कि हमारे इतिहास की यह सबसे बड़ी भूल थी कि बौद्धकाल में उत्तरकांड लिखा गया और इसे वाल्मीकि रामायण का हिस्सा बना दिया गया। हो सकता है कि यह उस काल की सामाजिक मजबूरियां थीं, लेकिन सच को इस तरह बिगाड़ना कहां तक उचित है? सीता ने न तो अग्निपरीक्षा दी और न ही पुरुषोत्तम राम ने उनका कभी परित्याग किया। 


विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है- 'राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।' यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्‍य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया। न ही सीता ने कभी अग्निपरीक्षा दी।

जिस सीता के लिए राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वे किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो। इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते।

अब सवाल यह भी उठता है कि रामायण और रामचरित मानस में तो ऐसा ही लिखा है कि राम ने सीता को कलंक से बचने के लिए छोड़ दिया था। दरअसल, शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है।

रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)

लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।

बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेर-फेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित 'रामचरित मानस' के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ। 
 राजा राम या भगवान : हिन्दू धर्म के आलोचक खासकर 'राम' की जरूर आलोचना करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि 'राम' हिन्दू धर्म का सबसे मजबूत आधार स्तंभ है। इस स्तंभ को गिरा दिया गया तो हिन्दुओं को धर्मांतरित करना और आसान हो जाएगा। इसी नी‍ति के चलते तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ मिलकर 'राम' को एक सामान्य पुरुष घोषित करने की साजिश की जाती रही है। वे कहते हैं कि राम कोई भगवान नहीं थे, वे तो महज एक राजा थे। उन्होंने समाज और धर्म के लिए क्या किया? वे तो अपनी स्त्री के लिए रावण से लड़े और उसे उसके चंगुल से मुक्त कराकर लाए। इससे वे भगवान कैसे हो गए?

भगवान राम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा गया है अर्थात पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ उत्तम पुरुष। अपने वनवास के दौरान उन्होंने देश के सभी आदिवासी और दलितों को संगठित करने का कार्य किया और उनको जीवन जीने की शिक्षा दी। इस दौरान उन्होंने सादगीभरा जीवन जिया। उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया। इसका उदाहरण सिर्फ रामायण में ही नहीं, देशभर में बिखरे पड़े साक्ष्यों में आसानी से मिल जाएगा।

14 वर्ष के वनवास में से अंतिम 2 वर्ष को छोड़कर राम ने 12 वर्षों तक भारत के आदिवासियों और दलितों को भारत की मुख्य धारा से जोड़ने का भरपूर प्रयास किया। शुरुआत होती है केवट प्रसंग से। इसके बाद चित्रकूट में रहकर उन्होंने धर्म और कर्म की शिक्षा दीक्षा ली। यहीं पर वाल्मीकि आश्रम और मांडव्य आश्रम था। यहीं पर से राम के भाई भरत उनकी चरण पादुका ले गए थे। चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था।

दंडकारण्य : अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद वे दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद वे 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे। यहीं पर उनकी जटायु से मुलाकात हुई थी, जो उनका मित्र था। जब रावण सीता को हरण करके ले गया था, तब सीता की खोज में राम का पहला सामना शबरी से हुआ था। इसके बाद वानर जाति के हनुमान और सुग्रीव से।

वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।

इसी दंडकारण्य क्षेत्र में रहकर राम ने अखंड भारत के सभी दलितों को अपना बनाया। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, अंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं। राम ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को एकजुट कर दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय इसीलिए माना जाता है। लेकिन अंग्रेज काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्मांतरण का कुचक्र चलाया और राम को दलितों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की, जो आज भी जारी है। 

राम राजा नहीं भगवान : जब भी कोई अवतार जन्म लेता है तो उसके कुछ चिह्न या लक्षण होते हैं और उसके अवतार होने की गवाही देने वाला कोई होता है। राम ने जब जन्म लिया तो उनके चरणों में कमल के फूल अंकित थे, जैसा कि कृष्ण के चरणों में थे। राम के साथ हनुमान जैसा सर्वशक्तिमान देव को होना इस बात की सूचना है कि राम भगवान थे। रावण जैसा विद्वान और मायावी क्या एक सामान्य पुरुष के हाथों मारा जा सकता है? इन सबको छोड़ भी दें तो ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने इस बात की पुष्टि की कि राम सामान्य पुरुष नहीं, भगवान हैं और वह भी विष्णु के अवतार। इक्ष्वाकु वंश में एक नहीं, कई भगवान हुए उनमें से सबसे पहला नाम ऋ‍षभनाथ का आता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे।
यह तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा- 'ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।' ऐसा श्रीराम ने कभी नहीं कहा। यदि रामानंद सागर कोई रामायण लिखते हैं और वे अपनी इच्छा से जब राम के डॉयलाग लिखते हैं, तो इसका यह मतलब तो नहीं लगाना चाहिए कि ऐसा राम ने बोला है। तुलसीदास द्वारा लिखे गए इस एक वाक्य के कारण राम की बहुत बदनामी हुई। कोई यह नहीं सोचता कि जब कोई लेखक अपने तरीके से रामायण लिखता है तो उस समय उस पर उस काल की परिस्थिति और अपने विचार ही हावी रहते हैं। 

दूसरी बात राम द्वारा जल समाधि लेने को आलोचकों ने आत्महत्या करना बताया। मध्यकाल में ऐसे बहुत से साधु हुए हैं जिन्होंने जिंदा रहते हुए सभी के सामने धीरे-धीरे देह छोड़ दी और फिर उनकी समाधि बनाई गई। राजस्थान के महान संत बाबा रामदेव (रामापीर) ने जिंदा समाधि ले ली थी, तो क्या हम यह कहें कि उन्होंने आत्महत्या कर ली?