सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

मैंने गांधी को गोली क्यो मारा-: नाथूराम गोडसे

सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया 
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे 
का अंतिम भाषण -
                    #मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा !

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया 
नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति_खोसला से नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l

                     *मैंने गांधी को क्यों मारा*

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 
150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की
नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश....
नाथूराम जी का विचार था कि गांधी की अहिंसा हिन्दुओं 
को कायर बना देगी कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को 
कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी 
प्राप्त नहीं कर पायेंगे...
1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड 
के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ 
आक्रोश उफ़ान पे था...
भारतीय जनता इस नरसंहार के #खलनायक_जनरल_डायर 
पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी के पास गयी 
लेकिन गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन 
देने से साफ़ मना कर दिया 
महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया  महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो #केरल_के_मोपला_मुसलमानों द्वारा वहाँ के 
1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं 
को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध 
तक नहीं कर सके 
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में #नेताजी_सुभाष_चन्द्रबोस 
को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी ने #अपने_प्रिय_सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे गांधी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया...
23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को 
टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया 
गांधी #कश्मीर_के_हिन्दू_राजा_हरि_सिंह से कहा कि 
#कश्मीर_मुस्लिम_बहुल_क्षेत्र_है_अत:वहां का शासक 
कोई मुसलमान होना चाहिए अतएव राजा हरिसिंह को 
शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था गांधी जी की नीतियाँ 
धर्म के साथ बदलती रहती थी उनकी मृत्यु के पश्चात 
सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को 
भारत में मिलाने का कार्य किया गांधी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता 
पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया 
महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा 
के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर 
तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके 
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय 
प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया गांधी अपनी मांग 
को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात 
न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम 
निकलवाने में माहिर थे इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे
14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहाँ पहुँच कर 
प्रस्ताव का समर्थन करवाया यह भी तब जबकि गांधी  
ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश 
पर होगा न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों 
निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी 
ने कुछ नहीं किया....
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे  बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का 
चलन शुरू हुआ...
कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने 
पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत 
का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया 
गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी महाराणा प्रताप व 
गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा वही दूसरी 
ओर गांधी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम 
कहकर पुकारते था
कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के 
लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने 
सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का 
राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी 
की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया 
जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ 
मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य 
भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव 
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला 
भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये 
दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की 
राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने 
विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान 
को दे दी महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान 
के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में 
खड़े रहे फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या 
नाजायज गांधी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की 
उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम 
गोड़से जी ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित 
ठहराने का प्रयास किया...
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की  
मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त 
को देश के टुकड़े करने के एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ गांधी की हत्या के 
सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था...!!
#नाथूराम_गोड़सेजी द्वारा अदालत में 
दिए बयान के मुख्य अंश...
मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का वध किया है..
वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के 
लिए घातक साबित हो रहे थे...
जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी 
में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति 
के प्रति गांधी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे 
मजबूर किया...
पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की 
गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी अनशन पर बैठे..
बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती 
और दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...
अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी के कारण मुस्लिम लीग 
के आगे घुटने टेक रहा था...
बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 
विभाजित होना असहनीय था...
अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..
मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को 
गांधी मानते जा रहे थे..
मैने ये निर्णय किया कि भारत माँ को अब और 
विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है 
तो मुझे गांधी को मारना ही होगा
और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!
मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी ही होगी 
और मैं इसके लिए भी तैयार हूं...
और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे 
तो मै यह अपराध बार बार करूँगा हर बार करूँगा ...
और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने 
लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना...!!
मुझे  फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज 
और दूसरे हाथ में #अखंड_भारत का नक्शा हो...
मै फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय 
जयकार बोलना चाहूँगा...!!
हे भारत माँ मुझे दुःख है मै तेरी इतनी 
ही सेवा कर पाया....!!
#नाथूराम_गोडसे

🙏 🙏🙏जय हिंद🇮🇳जय हिन्दुस्तान 🙏🙏🙏
#गाँधीजयंति #सेवाएककर्तव्य #भाईसचिनमिश्र #teamsachinmishra #bhaisachinmishra #plasticmuktbanaras #PlasticMuktBharat #सचिनमिश्र

Sachin Mishra ji

शनिवार, 7 अगस्त 2021

भारत देश नकली गांधी परिवार की संपत्ति नही है ।

कल केंद्र सरकार ने ''राजीव गांधी खेल रत्न'' का नाम बदल कर ''मेजर ध्यानचंद खेल रत्न'' कर दिया है ।

अच्छा कदम है, और कई सालों से लोग इसकी मांग भी कर रहे थे, और उम्मीद थी कि सभी इसका स्वागत भी करेंगे,लेकिन विरोध तो जरूरी है, आखिर इनके अस्तित्व का सवाल है ।

सबसे बड़ा लॉजिक दिया गया कि गुजरात मे बनाये गए स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम से बदल कर किसी खिलाड़ी के नाम पर करना चाहिए

सुझाव बहुत अच्छा है, लेकिन दरअसल वो स्टेडियम एक private entity का है, इसलिए उनकी मर्जी है वो क्या नाम रखें और क्या नही। लेकिन फिर भी, for the sake of arguement, मैं मानता हूँ कि किसी भी स्टेडियम या अन्य पब्लिक convenience प्रॉपर्टी का नाम नेता पर नही होना चाहिए सरकारी संपत्ति का तो बिल्कुल नही।

खेल रत्न अवार्ड एक सरकारी योजना हैं, इसलिए उसका नाम बदलने का अधिकार सिर्फ सरकार को है, और उसने ये किया भी। रही बात गुजरात के स्टेडियम की, तो उसका नाम बदलने के लिए मैं स्वयं मोदी जी से बात करूंगा।

और इस बीच अंध विरोधियों ने मेरी request है, कि नीचे दी गयी सरकारी संपत्तियों के नाम भी बदलने का अभियान चलाइये.....अगर आप गुजरात के स्टेडियम से परेशान हैं, तो इन सरकारी संपत्तियों के नाम की वजह से आपको नींद भी नही आनी चाहिए,आओ साथ मिलकर केंद्र सरकार को इन सब नामो को बदलने पर मजबूर करें।

गुजरात के स्टेडियम के बदले इतनी प्रॉपर्टी के नाम बदल जाएंगे....Not a bad deal 😊😊

स्टेडियम .....

 1. इंदिरा गांधी खेल परिसर, दिल्ली
 2. इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, नई दिल्ली
 3. जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली
 4. राजीव गांधी स्पोर्ट्स स्टेडियम, बवाना
 5. राजीव गांधी राष्ट्रीय फुटबॉल अकादमी, हरियाणा
 6. राजीव गांधी एसी स्टेडियम, विशाखापत्तनम
 7. राजीव गांधी इंडोर स्टेडियम, पांडिचेरी
 8. राजीव गांधी स्टेडियम, नाहरगुन, ईटानगर
 9. राजीव गांधी बैडमिंटन इंडोर स्टेडियम, कोचीन
 10. राजीव गांधी इंडोर स्टेडियम, कदवंतरा, एर्नाकुलम
 11. राजीव गांधी खेल परिसर, सिंघू
 12. राजीव गांधी मेमोरियल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, गुवाहाटी
 13. राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम, हैदराबाद
 14. राजीव गांधी इंडोर स्टेडियम, कोचीन
 15. इंदिरा गांधी स्टेडियम, विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश
 16. इंदिरा गांधी स्टेडियम, ऊना, हिमाचल प्रदेश
 17. इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम, विशाखापत्तनम
 18. इंदिरा गांधी स्टेडियम, देवगढ़, राजस्थान
 19. गांधी स्टेडियम, बोलंगीर, उड़ीसा
 20. जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, कोयंबटूर
 21. राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, देहरादून
 22. जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, चेन्नई
 23. नेहरू स्टेडियम (क्रिकेट), पुणे
                                                      

हवाई अड्डे / बंदरगाह:

 1. राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, शमशाबाद, हैदराबाद, तेलंगाना
 2. राजीव गांधी कंटेनर टर्मिनल, कोचीन
 3. इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली
 4. इंदिरा गांधी डॉक, मुंबई
 5. जवाहरलाल नेहरू नवीन शेवा पोर्ट ट्रस्ट, मुंबई

विश्वविद्यालय / शिक्षा संस्थान:
 1. राजीव गांधी भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग
 2. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ एरोनॉटिक्स, रांची, झारखंड
 3. राजीव गांधी तकनीकी विश्वविद्यालय, गांधी नगर, भोपाल, म.प्र।
 4. राजीव गांधी स्कूल ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ, खड़गपुर, कोलकाता
 5. राजीव गांधी विमानन अकादमी, सिकंदराबाद
 6. राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ, पटियाला, पंजाब
 7. राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान, तमिलनाडु युवा मामले और खेल मंत्रालय
 बजटीय आवंटन 2008-09 - 1.50 करोड़
 बजटीय आवंटन 2009-10 - 3.00 करोड़
 8. राजीव गांधी विमानन अकादमी, बेगमपेट, हैदराबाद, ए.पी.
 9. राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, कोट्टायम, केरल
 10. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी, चंद्रपुर, महाराष्ट्र
 11. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, ऐरोली, नवी मुंबई, महाराष्ट्र
 12. राजीव गांधी विश्वविद्यालय, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश
 13. राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, चोल नगर, बैंगलोर, कर्नाटक
 14. राजीव गांधी प्राउडियोगी विश्व विद्यालय, गांधी नगर, भोपाल, म.प्र।
 15. राजीव गांधी D.e.d.  कॉलेज, लातूर, महाराष्ट्र
 16. राजीव गांधी कॉलेज, शाहपुरा, भोपाल
 17. राजीव गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान, नई दिल्ली
 18. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी, रायबरेली, यू.पी.
 19. राजीव गांधी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, भोपाल, म.प्र।
 20. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट स्टडीज, पूर्वी गोदावरी जिला, ए.पी.
 21. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ एजुकेशन, ठाकुर, कर्नाटक
 22. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेस, पांडिचेरी, तमिलनाडु
 23. राजीव गांधी आईटी और जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय विद्यापीठ
 24. राजीव गांधी हाई स्कूल, मुंबई, महाराष्ट्र
 25. राजीव गांधी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, सतना, म.प्र।
 26. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, श्रीपेरंबुदूर, तमिलनाडु
 27. राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र, नागपुर विश्वविद्यालय के आर.टी.एम.
 28. राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम, केरल
 29. राजीव गांधी महाविद्यालय, मध्य प्रदेश
 30. राजीव गांधी पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, इलाहाबाद, यू.पी.
 31. राजीव गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, बैंगलोर, कर्नाटक
 32. राजीव गांधी सरकार।  पीजी आयुर्वेदिक कॉलेज, पपरोला, हिमाचल प्रदेश
 33. राजीव गांधी कॉलेज, सतना, म.प्र।
 34. राजीव गांधी अकादमी फॉर एविएशन टेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम, HB GB HDD gv gv c dc fc केरल
 35. राजीव गांधी मध्य विद्यालय, महाराष्ट्र
 36. राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान, नई दिल्ली
 37. राजीव गांधी सेंटर फॉर इनोवेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप
 38. राजीव गांधी औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र, गांधीनगर
 39. राजीव गांधी ज्ञान प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश
 40. राजीव गांधी दूरस्थ शिक्षा संस्थान, कोयम्बटूर, तमिलनाडु
 41. राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर, तमिलनाडु
 42. राजीव गांधी विश्वविद्यालय (अरुणाचल विश्वविद्यालय), ए.पी.
 43. राजीव गांधी स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर (RGSMC), केरल
 44. राजीव गांधी विज्ञान केंद्र, मॉरिटस
 45. राजीव गांधी कला मंदिर, पोंडा, गोवा
 46. ​​राजीव गांधी विद्यालय, मुलुंड, मुंबई
 47. राजीव गांधी मेमोरियल पॉलिटेक्निक, बैंगलोर, कर्नाटक
 48. राजीव गांधी मेमोरियल सर्कल दूरसंचार प्रशिक्षण केंद्र (भारत), चेन्नई
 49. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, कासगोड, केरल
 50. राजीव गांधी मेमोरियल कॉलेज ऑफ एरोनॉटिक्स, जयपुर
 51. राजीव गांधी मेमोरियल फर्स्ट ग्रेड कॉलेज, शिमोगा
 52. राजीव गांधी मेमोरियल कॉलेज ऑफ एजुकेशन, जम्मू और कश्मीर
 53. राजीव गांधी साउथ कैंपस, बरकछा, वाराणसी
 54. राजीव गांधी मेमोरियल टीचर ट्रेनिंग कॉलेज, झारखंड
 55. राजीव गांधी डिग्री कॉलेज, राजमुंदरी, ए.पी.
 56. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU), नई दिल्ली
 57. इंदिरा गांधी विकास और अनुसंधान संस्थान, मुंबई, महाराष्ट्र
 58. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून
 59. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय अकादेमी, फुर्सतगंज एयरफील्ड, रायबरेली, उत्तर प्रदेश
 60. इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान, मुंबई
 61. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा
 62. इंदिरा गांधी बी.एड.  कॉलेज, मैंगलोर
 63. श्रीमती।  इंदिरा गांधी कॉलेज ऑफ एजुकेशन, नांदेड़, महाराष्ट्र
 64. इंदिरा गांधी बालिका निकेतन बी.एड.  कॉलेज, झुंझुनू, राजस्थान
 65. इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़
 66. श्रीमती।  इंदिरा गांधी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नवी मुंबई, महाराष्ट्र
 67. श्रीमती।  इंदिरा गांधी कोलज, तिरुचिरापल्ली
 68. इंदिरा गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज, सागर, मध्य प्रदेश
 69. इंदिरा गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, कश्मीरी गेट, दिल्ली
 70. इंदिरा गांधी प्रौद्योगिकी संस्थान, सारंग, जिला।  धेनकनाल, उड़ीसा
 71. इंदिरा गांधी एयरोनॉटिक्स संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र
 72. इंदिरा गांधी इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, नई दिल्ली
 73. इंदिरा गांधी शारीरिक शिक्षा और खेल विज्ञान संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
 74. इंदिरा गांधी हाई स्कूल, हिमाचल
 75. इंदिरा कला संघ विश्व विद्यालय, छत्तीसगढ़
 76. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, शिमला
 77. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुकटपल्ली, आंध्र प्रदेश
 78. नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी
 79. पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यावसायिक प्रबंधन संस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय
 80. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
 81. जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बैंगलोर
 82. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुकटपल्ली, एपी
 83. जवाहरलाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज औरंगाबाद, महाराष्ट्र में
 84. जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, एक डीम्ड यूनिवर्सिटी, जक्कुर, पी.ओ.  बैंगलोर
 85. जवाहरलाल नेहरू सामाजिक अध्ययन संस्थान, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ (पुणे, महाराष्ट्र) से संबद्ध
 86. जवाहरलाल नेहरू कॉलेज ऑफ एरोनॉटिक्स एंड एप्लाइड साइंसेज, कोयंबटूर, (ईएसडी 1968)
 87. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, कतरास, धनकवड़ी, पुणे, महाराष्ट्र
 88. कमल किशोर कदम, जवाहरलाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज औरंगाबाद, महाराष्ट्र
 89. जवाहरलाल नेहरू शिक्षा और तकनीकी अनुसंधान संस्थान, नांदेड़, महाराष्ट्र
 90. जवाहरलाल नेहरू कॉलेज, अलीगढ़
 91. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हैदराबाद
 92. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर
 93. जवाहरलाल नेहरू बी.एड.  कॉलेज, कोटा, राजस्थान
 94. जवाहरलाल नेहरू पी.जी.  कॉलेज, भोपाल
 95. जवाहरलाल नेहरू सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज, सुंदरनगर, जिला मंडी, एच.पी.
 96. जवाहरलाल नेहरू पब्लिक स्कूल, कोलार रोड, भोपाल
 97. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, काकीनाडा, ए.पी.
 98. जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, इब्राहिमपट्टी, आंध्र प्रदेश
 99. जवाहर नवोदय विद्यालय

 2015-16 तक पूरे भारत में 598 जेएनवी

 696. जवाहर नवोदय विद्यालय
 697. इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, कल्पक्कम
 698. इंदिरा गाँधी विश्वविद्यालय हरियाणा 

पुरस्कार:

 1. राजीव गांधी अवार्ड फॉर आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट
 2. राजीव गांधी शिरोमणि पुरस्कार
 3. राजीव गांधी श्रमिक पुरस्कार, दिल्ली श्रम कल्याण बोर्ड
 4. राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार
 5. राजीव गांधी मानव सेवा पुरस्कार
 6. राजीव गांधी वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार
 7. ज्ञान विज्ञान पर मूल पुस्तक लेखन के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार योजना
 8. राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
 9. राजीव गांधी राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार, 1991 में भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा स्थापित
 10. स्वच्छ गांधी, पर्यावरण और वन मंत्रालय, सरकार के लिए राजीव गांधी पर्यावरण पुरस्कार।  भारत की
 11. राजीव गांधी ट्रैवलिंग स्कॉलरशिप
 12. राजीव गांधी (यूके) फाउंडेशन छात्रवृत्ति
 13. राजीव गांधी फिल्म अवार्ड्स (मुंबई)
 14. राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार
 15. राजीव गांधी पेरिस प्रशस्ति, कर्नाटक
 16. राजीवगांधी व्यावसायिक उत्कृष्टता पुरस्कार
 17. राजीव गांधी उत्कृष्टता पुरस्कार
 18. इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार
 19. राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार
 20. इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी पुरस्कार
 21. इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, पर्यावरण और वन मंत्रालय
 22. इंदिरा गांधी मेमोरियल नेशनल अवार्ड फॉरबीस्ट एनवायर्नमेंटल एंड इकोलॉजिकल
 23. इंदिरा गांधी पीरवरन पुरशकर
 24. इंदिरा गांधी एनएसएस अवार्ड
 25. राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार
 26. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार योजना
 27. सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार
 28. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार द टाउन राजभाषा के लिए
 29. इंदिरा गांधी पुरस्कार ”शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए
 30. विज्ञान कार्यान्वयन को लोकप्रिय बनाने के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार
 31. इंदिरा गांधी शिरोमणि पुरस्कार
 32. इंदिरा गांधी एनएसएस पुरस्कार / राष्ट्रीय युवा
 33. इंदिरा गांधी पीरवरन पुशर पुरस्कार - खोज n सही
 34. इंदिरा गांधी N.S.S पुरस्कार
 35. सामाजिक सेवा के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, एमपी सरकार।
 36. पोस्ट ग्रेजुएट इंदिरा गांधी छात्रवृत्ति योजना
 37. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार योजना
 38. इंदिरा गांधी राजभाषा शील्ड योजना
 39. इंदिरा गांधी वन्यजीव संरक्षण चिड़ियाघर के विजन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी।
 40. जवाहरलाल नेहरू को हर साल कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को दी जाने वाली 15 लाख रुपये की अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए पुरस्कार दिया जाता है, जिसमें 1988 में फिलिस्तीन लिबरेशन फ्रंट के यासर अराफात और 1965 में यू थान्ट शामिल हैं।
 41. सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, रु। का नकद पुरस्कार।  उपरोक्त फिल्म की मान्यता में, श्याम बेनेगल को दिसम्बर 89 में दिया गया 20,000।
 42. जवाहरलाल नेहरू बालकल्याण सरकार द्वारा प्रत्येक 10 जोड़े को 10,000 रुपये का पुरस्कार।  महाराष्ट्र का (TOI-28-4-89)।
 43. शैक्षणिक उपलब्धि के लिए जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड, नई दिल्ली
 44. ऊर्जा के लिए जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी अनुसंधान पुरस्कार
 45. इंटरनेशनल अंडरस्टैंडिंग के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार
 46. ​​नेहरू बाल समिति बहादुरी पुरस्कार
 47. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडल
 48. जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार “1998-99 से, विज्ञान के लोकप्रियकरण के लिए संगठनों (अधिमानतः गैर सरकारी संगठनों) को दिया जाना।
 49. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय विज्ञान प्रतियोगिता
 50. डीएनए के विकास की अनुसंधान परियोजना के लिए जवाहरलाल नेहरू छात्र पुरस्कार
 
 छात्रवृत्ति / फैलोशिप:

 1. विकलांग छात्रों के लिए राजीव गांधी छात्रवृत्ति योजना
 2. एससी / एसटी उम्मीदवारों के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप योजना, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय
 3. एसटी उम्मीदवारों के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप योजना
 4. राजीव गांधी फैलोशिप, इग्नू
 5. राजीव गांधी विज्ञान प्रतिभा अनुसंधान अध्येता
 6. राजीव गांधी फैलोशिप, जनजातीय मामलों का मंत्रालय
 7. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दी गई राजीव गांधी राष्ट्रीय फैलोशिप योजना
 8. राजीव गांधी फेलोशिप को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ मिलकर राष्ट्रमंडल शिक्षण द्वारा प्रायोजित किया गया
 9. राजीव गांधी विज्ञान प्रतिभा अनुसंधान फैलोशिप जवाहरलाल नेहरू सेंटर द्वारा उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान (नवोदित वैज्ञानिकों को बढ़ावा देने के लिए) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ मिलकर किया गया।
 10. हैबिटेट सेक्टर में राजीव गांधी हुडको फैलोशिप
 11. इंदिरा गांधी मेमोरियल फैलोशिप की जाँच
 12. फुलब्राइट स्कॉलरशिप का नाम अब फुलब्राइट- जवाहरलाल नेहरू स्कॉलरशिप रखा गया है
 13. कैम्ब्रिज नेहरू छात्रवृत्ति, संख्या में 10, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन में अनुसंधान के लिए, 3 वर्षों के लिए पीएचडी के लिए अग्रणी, जिसमें शुल्क, रखरखाव भत्ता, ब्रिटेन की यात्रा और वापस शामिल हैं।
 14. स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप की योजना, सरकार।  भारत की।
 15. नेहरू शताब्दी (ब्रिटिश) फैलोशिप / पुरस्कार
 
राष्ट्रीय उद्यान / अभयारण्य / संग्रहालय :

 1. राजीव गांधी (नागरहोल) वन्यजीव अभयारण्य, कर्नाटक
 2. राजीव गांधी वन्यजीव अभयारण्य, आंध्र प्रदेश
 3. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उद्यान, तमिलनाडु
 4. इंदिरा गांधी प्राणि उद्यान, नई दिल्ली
 5. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिमी घाट पर अनामलाई हिल्स
 6. इंदिरा गांधी प्राणी उद्यान, विशाखापत्तनम
 7. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संघालय (IGRMS)
 8. इंदिरा गांधी वन्यजीव अभयारण्य, पोलाची
 9. राजीव गांधी स्वास्थ्य संग्रहालय
 10. राजीव गांधी प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय
 11. इंदिरा गांधी मेमोरियल संग्रहालय, नई दिल्ली
 12. राज्य सरकार द्वारा औरंगाबाद, महाराष्ट्र में जवाहरलाल नेहरू संग्रहालय खोला गया।
 13. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल गैलरी, लंदन
 14. जवाहरलाल नेहरू तारामंडल, वर्ली, मुंबई।
 15. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय विज्ञान प्रदर्शनी बच्चों के लिए
                                             
अस्पताल / चिकित्सा संस्थान 

 1. राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलोर, कर्नाटक
 2. राजीव गांधी कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र, दिल्ली
 3. राजीव गांधी होम फॉर हैंडीकैप्ड, पांडिचेरी
 4. श्री राजीव गांधी कॉलेज ऑफ डेंटल ... साइंस एंड हॉस्पिटल, बैंगलोर, कर्नाटक
 5. राजीव गांधी सेंटर फॉर बायो टेक्नोलॉजी, तिरुवंतपुरम, केरल
 6. राजीव गांधी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, बैंगलोर, कर्नाटक
 7. राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, रायचूर
 8. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट डिजीज, बैंगलोर, कर्नाटक
 9. राजीव गांधी पैरामेडिकल कॉलेज, जोधपुर
 10. राजीव गांधी मेडिकल कॉलेज, ठाणे, मुंबई
 11. राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, कर्नाटक
 12. राजीव गांधी अस्पताल, गोवा
 13. राजीव गांधी मिशन ऑन कम्युनिटी हेल्थ, मध्य प्रदेश
 14. राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, दिल्ली
 15. राजीव गांधी होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज, चिनार पार्क, भोपाल, म.प्र
 16. उत्तर पूर्वी इंदिरा गांधी क्षेत्रीय स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान संस्थान, शिलांग, मेघालय
 17. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, शिमला
 18. इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान, बैंगलोर
 19. इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, शेखपुरा, पटना
 20. इंदिरा गांधी बाल चिकित्सालय, अफगानिस्तान
 21. इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य अस्पताल, धर्माराम कॉलेज, बैंगलोर
 22. इंदिरा गांधी बाल संस्थान, बैंगलोर
 23. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, शिमला
 24. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंस, केरल
 25. इंदिरा गांधी मेमोरियल आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, भुवनेश्वर
 26. इंदिरा गांधी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, नागपुर
 27. इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, कोलकाता
 28. इंदिरा गांधी अस्पताल, शिमला
 29. इंदिरा गांधी महिला एवं बाल अस्पताल, भोपला
 30. इंदिरा गांधी गैस राहत अस्पताल, भोपाल
 31. कमला नेहरू अस्पताल, शिमला
 32. चाचा नेहरू बाल चिकत्सालय
 33. जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER), पुदुचेरी
 34. जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, भोपाल
 35. रायपुर में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज।
 36. नेहरू होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, नई दिल्ली
 37. नेहरू विज्ञान केंद्र, मुंबई
 38. जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, भोपाल
 39. पंडित जवाहरलाल नेहरू होम्योपैथिक चिकित्सा विज्ञान संस्थान, महाराष्ट्र
 40. इंदिरा गांधी अस्पताल द्वारका, दिल्ली
 
संस्थान / अध्यक्ष / त्यौहार :

 1. राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान।  (RGNIYD), युवा और खेल मंत्रालय
 2. राजीव गांधी नेशनल ग्राउंड वाटर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, फरीदाबाद, हरियाणा
 3. आदिवासी क्षेत्रों में राजीव गांधी खाद्य सुरक्षा मिशन
 4. राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान
 5. राजीव गांधी शिक्षा मिशन, छत्तीसगढ़
 6. राजीव चेयर एंडोमेंट की स्थापना 1998 में साउथ एशियन इकोनॉमिक्स का चेयर बनाने के लिए की गई
 7. राजीव गांधी परियोजना - जमीनी स्तर तक शिक्षा को व्यापक उपग्रह संपर्क प्रदान करने के लिए एक पायलट
 8. राजीव गांधी ग्रामीण आवास निगम लिमिटेड (कर्नाटक उद्यम सरकार)
 9. राजीव गांधी सूचना और प्रौद्योगिकी आयोग
 10. राजीव गांधी शांति और निरस्त्रीकरण के लिए अध्यक्ष
 11. राजीव गांधी संगीत समारोह
 12. राजीव गांधी मेमोरियल लेक्चर
 13. राजीव गांधी अक्षय उर्जा दिवस
 14. राजीव गांधी एजुकेशन फाउंडेशन, केरल
 15. राजीव गांधी पंचायती राज सम्मेलन
 16. राजीव गांधी मेमोरियल एजुकेशनल एंड चैरिटेबल सोसाइटी, कासगोड, केरल
 17. राजीव गांधी मेमोरियल ट्रॉफी इकनिका स्पर्धा, प्रेरणा फाउंडेशन, कारी रोड
 18. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, जनपथ, नई दिल्ली
 19. इंदिरा गांधी पंचायती राज और ग्रामीण विकास संस्थान, जयपुर, राजस्थान
 20. इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (IGCAR), कल्पक्कम
 21. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड रिसर्च, मुंबई
 22. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी (IGIC), पटना
 23. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली
 24. इंदिरा गांधी नेशनल फाउंडेशन, तिरुवनंतपुरम, केरल
 25. इंदिरा गांधी महिला सहकारी सौत गिरानी लिमिटेड, महाराष्ट्र
 26. इंदिरा गांधी संरक्षण निगरानी केंद्र, पर्यावरण और वन मंत्रालय
 27. सिंगल गर्ल चाइल्ड के लिए पोस्ट-ग्रेजुएट इंदिरा गांधी छात्रवृत्ति
 28. जवाहर शतकरी सहकारी सखार लिमिटेड
 29. नेहरू युवा केंद्र संगठन
 30. जवाहरलाल नेहरू शताब्दी समारोह
 31. जवाहरलाल नेहरू की स्मृति में विभिन्न संप्रदायों के डाक टिकट और एक रुपये के सिक्के।
 32. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट (U.K.) छात्रवृत्ति
 33. जवाहरलाल नेहरू कस्टम हाउस न्हावा शेवा, महाराष्ट्र
 34. जवाहरलाल नेहरू केंद्र के लिए।  उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान, बैंगलोर
 35. जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र, भारत का दूतावास, मास्को
 36. किशोरियों के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू उद्योग केंद्र, पुणे, महाराष्ट्र
 37. पंडित जवाहरलाल नेहरू कृषि और अनुसंधान संस्थान, पांडिचेरी
 

*सड़कों / भवन / स्थानों:*

 1. राजीव चौक, दिल्ली
 2. राजीव गांधी भवन, सफदरजंग, नई दिल्ली
 3. राजीव गांधी हस्तशिल्प भवन, नई दिल्ली
 4. राजीव गांधी पार्क, कालकाजी, दिल्ली
 5. इंदिरा चौक, नई दिल्ली
 6. नेहरू तारामंडल, नई दिल्ली
 7. नेहरू युवा केंद्र, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली
 8. नेहरू नगर, नई दिल्ली
 9. नेहरू प्लेस, नई दिल्ली
 10. नेहरू पार्क, नई दिल्ली नेहरू हाउस, बीएसजेड मार्ग, नई दिल्ली
 11. जवाहरलाल नेहरू सरकार हाउस नई दिल्ली
 12. राजीव गांधी अक्षय ऊर्जा पार्क, गुड़गांव, हरियाणा
 13. राजीव गांधी चौक, अंधेरी, मुंबई
 14. इंदिरा गांधी रोड, मुंबई
 15. इंदिरा गांधी नगर, वडाला, मुंबई
 16. इंदिरा गांधी खेल परिसर, मुलुंड, मुंबई
 17. नेहरू नगर, कुर्ला, मुंबई
 18. मुंबई के ठाणे में जवाहरलाल नेहरू उद्यान
 19. राजीव गांधी मेमोरियल हॉल, चेन्नई
 20. जवाहरलाल नेहरू रोड, वाडापलानी, चेन्नई, तमिलनाडु
 21. राजीव गांधी सलाई (राजीव गांधी के नाम पर पुरानी महाबलीपुरम सड़क)
 22. राजीव गांधी शिक्षा शहर, हरियाणा
 23. पर्वत राजीव, हिमालय की एक चोटी
 24. राजीव गांधी आईटी हैबिटेट, गोवा
 25. राजीव गांधी नगर, चेन्नई
 26. राजीव गांधी पार्क, विजयवाड़ा
 27. तमिलनाडु के कोयम्बटूर में राजीव गांधी नगर
 28. राजीव गांधी नगर, त्रिची, तमिलनाडु
 29. राजीव गांधी आईटी पार्क, हिंजेवाड़ी, पुणे
 30. राजीव गांधी पंचायत भव, पालनपुर बनासकांठा
 31. राजीव गांधी चंडीगढ़ प्रौद्योगिकी पार्क, चंडीगढ़
 32. राजीव गांधी स्मृति वन, झारखंड
 33. राजीव गांधी की प्रतिमा, पणजी, गोवा
 34. राजीव गांधी रोड, चित्तूर
 35. श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी स्मारक
 36. इंदिरा गांधी मेमोरियल लाइब्रेरी, हैदराबाद विश्वविद्यालय
 37. इंदिरा गांधी म्यूजिकल फाउंटेन, बैंगलोर
 38. इंदिरा गांधी तारामंडल, लखनऊ
 39. इंदिरा गांधी भारतीय संस्कृति केंद्र (IGCIC), भारतीय उच्चायोग, मौरिटस
 40. इंदिरा गांधी प्राणि उद्यान, भारत के पूर्वी घाट
 41. इंदिरा गांधी नहर, रामनगर, जैसलमेर
 42. इंदिरा गांधी औद्योगिक परिसर, रानीपेट, वेल्लोर जिला
 43. इंदिरा गांधी पार्क, ईटानगर
 44. इंदिरा गांधी स्क्वीयर, पांडिचेरी
 45. इंदिरा गांधी रोड, विलिंगडन द्वीप, कोचीन
 46. ​​इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन, कश्मीर
 47. इंदिरा गांधी सागर बांध, नागपुर
 48. इंदिरा गांधी पुल, रामेश्वर, तमिलनाडु
 49. इंदिरा गांधी अस्पताल, भिवंडी निजामपुर नगर निगम
 50. इंदिरा गांधी स्मारक सांस्कृतिक परिसर, यूपी सरकार।
 51. इंदिरा गांधी खेल स्टेडियम, रोहड़ू जिला, शिमला
 52. इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान, भोपाल
 53. इंदिरा गांधी नगर, राजस्थान
 54. इंदिरा नगर, लखनऊ
 55. सड़कें कई शहरों में जवाहरलाल नेहरू के नाम पर हैं जयपुर, नागपुर, विले पार्ले, घाटकोपर, मुलुंड आदि में।
 56. नेहरू नगर, गाजियाबाद
 57. जवाहरलाल नेहरू गार्डन, अमरनाथ
 58. जवाहरलाल नेहरू गार्डन, पन्हाला
 59. जवाहरलाल नेहरू बाजार, जम्मू।
 60. जम्मू श्रीनगर राजमार्ग पर जवाहरलाल नेहरू सुरंग
 61. नेहरू चौक, उल्हास नगर, महाराष्ट्र।
 62. मांडवी, पणजी, गोवा में नेहरू पुल
 63. नेहरू नगर गाजियाबाद
 64. जवाहरलाल नेहरू रोड, धर्मताल, कोलकाता
 65. नेहरू रोड, गुवाहाटी
 66. जवाहर नगर, जयपुर
 67. नेहरू विहार कॉलोनी, कल्याणपुर, लखनऊ
 68. नेहरू नगर, पटना
 69. जवाहरलाल नेहरू स्ट्रीट, पांडिचेरी
 70. नेहरू बाज़ार, मदनपल्ली, तिरुपति
 71. नेहरू चौक, बिलासपुर।  एमपी
 72. नेहरू स्ट्रीट, पोनमालिपट्टी, तिरुचिरापल्ली
 73. नेहरू नगर, एस.एम.  रोड, अहमदाबाद
 74. नेहरू प्राणि उद्यान, हैदराबाद
 75. राजीव गांधी प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर), पुणे
 76. राजीव गांधी इन्फोटेक पार्क, हिंजेवाड़ी, पुणे।
 77. नेहरू नगर, नासिक पुणे।  सड़क।  और बहुत सारे।

 *इसके अतिरिक्त, नेहरू-इंदिरा-राजीव के नाम पर 100+ राज्य और केंद्र सरकार की योजनाएं हैं।*
 
हमारे पास संजय गांधी के नाम की चीजों की सूची है।
 संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान, मुंबई।
 संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल, नई दिल्ली।
 संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ।
 संजय गांधी पशु देखभाल केंद्र, नई दिल्ली।
 संजय गांधी संस्थान यदि ट्रामा और आर्थोपेडिक्स (SGITO), बैंगलोर।
 संजय गांधी अस्पताल, जयनगर, बैंगलोर।
 संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल, रीवा, मप्र।
 पर्यावरण और पारिस्थितिकी में संजय गांधी पुरस्कार
 संजय गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेयरी टेक्नोलॉजी, पटना।
 संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना।
 संजय गांधी पॉलिटेक्निक कॉलेज, बेल्लारी
 संजय गांधी पॉलिटेक्निक कॉलेज, जगदीश पुर, अमेठी
 संजय गांधी कॉलेज ऑफ एजुकेशन, बैंगलोर।
 संजय गांधी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, बैंगलोर।
 संजय गांधी मेमोरियल कॉलेज, रांची।
 संजय गांधी महिला कॉलेज, गया
 संजय गांधी सरकार।  स्वायत्त पीजी कॉलेज, सीधी, मप्र।
 संजय गांधी कॉलेज, शिमला।
 संजय गांधी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, सुल्तानपुर, दिल्ली।
 संजय गांधी कॉलेज और अनुसंधान केंद्र, विदिशा, मप्र।
 संजय गांधी बीएड कॉलेज, विदिशा, मप्र।
 संजय गांधी सर्वोदय साइंस कॉलेज, जबलपुर।
 संजय गांधी इंटर कॉलेज, सारण, बिहार।
 संजय गांधी कॉलेज ऑफ लॉ, जयपुर।
 संजय गांधी मेमोरियल गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज, हैदराबाद।
 संजय गांधी पीजी कॉलेज, सुरपुर, मेरठ, यूपी।
 संजय गांधी स्टेडियम, पटना।
 संजय गांधी स्टेडियम, नरसिंहगढ़, म.प्र।
 संजय गांधी मार्केट, जालंधर।
 संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर, दिल्ली

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

अयोध्या...मनु से मोदी तक ।

5अगस्त: हिंदू उत्थान दिवस पर ...
अयोध्या:....मनु से मोदी तक ....

अयोध्या ! भारत की पवित्र सप्तपुरियों में से एक। एक प्राचीन नगरी जो स्थित है पवित्र सरयू के तट पर। 

सरयू जो कभी उद्गमित होती थी कैलाश से लेकिन अब उत्तराखंड के सरमूल ग्राम से प्रारंभ होने वाली एक हिमालयीन नदी। बाद में  गंगा भले ही भारत की पवित्रतम नदी बनी लेकिन इस राष्ट्र का उदय तो सरयू के  किनारे बसी अयोध्या में ही होना था। 

पुरातत्वविद भले ही भूगर्भीय जलस्तर तक हुये उत्खनन के आधार पर इसे 700 ई.पू. की एक बस्ती घोषित करें लेकिन उनके द्वारा निर्धारित इस समयसीमा पर यह नगरी व्यंग्य से मुस्कुराती है क्योंकि पुरातत्व इतिहास का भौतिक श्रृंगार तो हो सकता है लेकिन उसके शरीर व आत्मा का निर्माण नहीं कर सकता। उसका निर्माण तो उन घटनाओं के सातत्य में होता है जो  संपूर्ण आर्य साहित्य में बिखरी हुई हैं और जिनके प्रमाण आधुनिक भूगोल व उन घटनाओं के तारतम्य में उपस्थित हैं। इसलिये जो इतिहासकार केवल पुरातत्व को ही इतिहास मानता है वह इतिहास के मर्म से अनभिज्ञ है। चूंकि भारत का संपूर्ण इतिहास ही  इतिहासकारों की इस विडंबना का शिकार है तो अयोध्या इसका अपवाद कैसे बनती? 

लेकिन, अयोध्या  केवल एक नगरी का नाम नहीं है बल्कि राष्ट्र की अवधारणा और उसके मूर्त रूप में उदय की महागाथा भी है, एक जीवंत इतिहास है। अतः उसका अनुशीलन आवश्यक है। इसी प्रक्रम में आर्ष साहित्य में अयोध्या के इतिहास की वे कड़ियाँ प्राप्त होती हैं जिनके प्राचीनतम छोर का प्रारंभ वस्तुतः सभ्यता का प्रारंभ था। 

 पामीर, 

संसार की छत अर्थात सुमेरु पर्वत पर जिस देव सभ्यता ने जन्म लिया उसके कुछ गण स्वायंभुव मनु के एक पुत्र उत्तानपाद के नेतृत्व में हिमालयीन रास्तों से यमुनोत्री क्षेत्र के आगे तक आ बसे। उनके पुत्र ध्रुव ने यक्ष जाति को पीछे धकेल कर इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाया। एक पीढ़ी बाद उत्तानपाद के भाई प्रियव्रत के पोते नाभि के नेतृत्व में दूसरा जत्था और नीचे तराई में उतरकर बस गया और यह क्षेत्र 'हिमवर्ष' के स्थान पर उनके नाम से 'अजनाभवर्ष' कहलाने लगा ठीक वैसे ही जैसे देवों से अलग हुये ये गण समूह स्वयं को 'मानव' अर्थात मनु की संतान और 'आर्य' अर्थात श्रेष्ठ कहने लगे। 
 
नाभि के प्रतापी और संवेदनशील पुत्र ऋषभ ने इस बस्ती को लकड़ी के कठोर सुरक्षा घेरे से आवृत्त करवाया और नाम दिया 'अयोध्या' अर्थात 'जहाँ कभी युद्ध न हो'।  यह संवेदनशील ऋषभ के व्यक्तित्व के अनुरूप ही था क्योंकि कुछ समय बाद यही ऋषभ विरक्त होकर भगवान विष्णु के अवतार के रूप में सनातन मार्गियों में पूजित होने वाले थे और  अहिंसाव्रती भगवान आदिनाथ के रूप में जैनों की निवृत्तिमार्गी श्रमण परंपरा की नींव रखने वाले थे। 

भगवान ऋषभ की अहिंसा वृत्ति उनके अपने पुत्र भरत को प्रभावित न कर सकी और उन्होंने आसपास के सारे गण समूहों और जातियों पर आक्रमण कर अपने जनों के विस्तार की राह खोली लेकिन 'गणसमानता' के प्रश्न पर छोटे भाई बाहुबली से आंतरिक विग्रह हो गया। व्यक्तिगत द्वंद में भरत पर बाहुबली भारी पड़े परंतु पराजय से क्षुब्ध भरत के दीन म्लान चेहरे को देखकर बाहुबली को स्वयं पर ग्लानि हो आई और वे ज्येष्ठ के चरण पकड़कर रो दिये। ज्येष्ठ को भी अनुज पर बाल्यकाल का स्नेह याद आ गया और वे बाहुबली को गले से लगकर सबकुछ भूल गये। 

उस दिन भातृप्रेम में बहे उन आँसुओं पर विश्व के प्रथम राष्ट्र की नींव रखी गई और साथ ही जैनों की श्रमण परंपरा ने पाया एक और कैवलिन। 

राष्ट्र निर्माण के तीन मुख्य कारक 'जन', 'भूमि' और 'संस्कृति' उपस्थित थे। आधुनिक प्रकार का 'राष्ट्र राज्य' तो नहीं लेकिन फिर भी 'राष्ट्र' का जन्म हो चुका था। विश्व का प्रथम 'राष्ट्र' जिसकी भावनात्मक पारिकल्पना आगे चलकर ऋषियों के मुख से माँ और संतान के पवित्र संबंध के रूप में अभिव्यक्त हुई- 

”माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या”

भरत के प्रभावक्षेत्र की सारे आर्य गण कहलाये 'भरत' और यह भूखंड कहलाया 'भरतखंड'। 

'मानव'  अपनी संस्कृति की ध्वजा लेकर बस्तियां बसाते अन्य जातियों से समन्वय व सांस्कृतिक संबंध स्थापित करते आगे बढ़ते रहे और जा पहुंचे दक्षिणी  समुद्र तक। इस तरह पामीर से लेकर  दक्षिणी समुद्रतट के भूक्षेत्र को एक भौगोलिक संज्ञा मिली 'भारतवर्ष' व इसका राजनैतिक सांस्कृतिक केंद्र बनी 'अयोध्या'। 

सन्तानवृद्धि की अपार आकांक्षा, सर्वसमावेशीकरण व पुर्नसंस्कार की अद्भुत क्षमता के कारण 'आर्यत्व' के ध्वज तले विभिन्न गण जातियाँ राष्ट्रीय भाव में गूँथी जाने लगीं पर तभी.......

....तभी आया एक महान संकट। एक ऐसी भयानक आपदा जिसने केवल अयोध्या व भारत ही नहीं पूरे विश्व के  इतिहास को बदल कर रख दिया। 

जल प्रलय!

एक ऐसी घटना जिसका विवरण विश्व की प्रत्येक सभ्यता की पुस्तक में दर्ज है लेकिन ब्राह्मण व पुराण आदि ग्रंथों  में इसका विवरण पूरे वैज्ञानिक तथ्यों के साथ वर्णित किया गया। 

कोई एस्ट्रॉयड या भूमि की कोर में किसी हलचल के कारण दक्षिणी महासागर से महाभयंकर सुनामी आने वाली थी लेकिन रहस्यमय रूप से यह जानकारी पामीर पर उपस्थित देवों को हो गई और 'विष्णु पद' पर अभिषिक्त 'भगवान विकुण्ठ' ने  पूरे शरीर पर मछली जैसी पोशाक धारण करने वाले, दक्षिण भारत से ईराक स्थित बेबीलोन तक सागरसंचारी 'मत्स्य जनों' की सहायता से संसार की सभ्यताओं को बचाने का महाअभियान प्रारंभ किया। इन्हीं मत्स्यजनों ने बाद में राजस्थान में मत्स्य गण की स्थापना की जिसकी राजधानी विराटनगर बनी। 

सभी को ऊंचे स्थान पर पहुंचने का निर्देश दिया गया। भारत के दक्षिण में उपस्थित विवस्वान जाति के श्राद्ध देव उपनाम  'सत्यव्रत' के नेतृत्व में महाअभियान प्रारंभ हुआ जो दक्षिण में एक आर्य बस्ती का नेतृत्व करते थे।  

हिमालय तक स्थलमार्ग से इतना त्वरित आवागमन संभव नहीं था अतः विशाल नौकाओं के बेड़े में 'मत्स्यजन' के सागरज्ञान व  दिशानिर्देश की सहायता से यथासंभव सभी गण जातियों के स्वस्थ युवक युवतियों तथा ज्ञात अन्न, औषधि, फलों के बीजों व पालतू पशुओं के जोड़ों को लेकर समुद्री मार्ग से पंजाब की ओर से हिमालय तक पहुंचाया गया। 

अयोध्या व हिमालय की तराई में उपस्थित 'भरत जन' भी कैलास व त्रिवष्टिप अर्थात तिब्बत पर  हिमालय की ऊंचाइयों पर पहुंचकर सुरक्षित होकर सूर्यपूजक विवस्वान जाति के अतिथि बने जिसके गणमुख्य सूर्य के प्रतिनिधि मानकर पूजे जाते थे।  

सागर के लवणीय जल ने पूरे दक्षिणी प्रायःद्वीप को जलाक्रान्त कर दिया और सुनामी की लहरें हिमालय की तराई को भी डुबो गईं। जीव जंतुओं सहित वनस्पतियों का भारी विनाश हुआ। 

पर यह बुरा वक्त भी गुजर गया। अंततः बाढ़ का जल उतरा और जातियाँ वापस अपने स्थानों की ओर लौटने लगीं। 

लेकिन लवणीय जल के कारण भूमि की उत्पादक क्षमता नष्ट हो चुकी थी अतः भोजन की कमी के कारण भरत गणसंघ में आंतरिक विग्रह  उठ खड़े हुये और वेन की हत्या हो गई। उनके उत्तराधिकारी पृथु ने परंपरा तोड़कर भूमि पर हल चलाने और खाद के द्वारा भूमि की उर्वरता को पुनः प्राप्त करने की विधि ढूंढ निकाली। इन्ही पृथु  के अनुवर्ती पृथुगण अपने दायाद बांधव 'प्रशुओं' के साथ पश्चिम की ओर निकल कर ईरान में क्रमशः 'पार्थियन' व 'पारसीक' साम्राज्यों का निर्माण करने वाले थे। 

इधर पृथु की कृषि तकनीक से संपन्न सातवें मनु पद पर निर्वाचित विवस्वान के पुत्र श्राद्धदेव 'सत्यव्रत' अर्थात वैवस्वत मनु के वंशज और और भरत जन भी दो हिस्सों में विभक्त हो गये। 'सोम' अर्थात 'चंद्र' के वंश से जुड़े 'पंच जन' 'भरतों' के नेतृत्व में पश्चिम की ओर अफगानिस्तान के रास्ते सप्तसिंधु में आ बसे और उधर भरतों के शेष जन वैवस्वत श्राद्धदेव मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वैवस्वत वंशी गणों के साथ  प्राचीन  हिमालयीन मार्ग से भरतों के प्राचीन क्षेत्र हिमालय की तराई वाले क्षेत्र में उतर गये। इक्ष्वाकुओं से निकले  लिच्छिवि, विदेह, कोसल आदि गणों ने पूर्वी भारत में वैशाली व मिथिला जैसी स्थायी बस्तियों की स्थापना की। 

इसी क्रम में सरयू के तट पर प्राचीन अयोध्या  की ही स्मृति में नवीन बस्ती को भी 'अयोध्या' नाम ही दिया गया। लेकिन इक्ष्वाकुओं के पराक्रम के कारण इसका अर्थ प्रचलित हुआ  'जिसे जीता न जा सके'।  

इक्ष्वाकु गणसंघ की विभिन्न शाखाओं ने एक ही समय पर अपने अपने क्षेत्रों राज्य किया लेकिन वे  गणसंघ के रूप में अयोध्या से सम्बंधित मान लिये गये जिसे पुराणकारों ने भ्रमवश एक ही वंश में गूंथ दिया और यही कारण है कि वाल्मीकि रामायण में श्रीराम तक केवल 24 राजा हैं जाबकि भागवत में 43। 

जब इक्ष्वाकु गण पूर्वी क्षेत्र में फैल रहे थे तब उसी समय पश्चिम से भरतों के नेतृत्व में पंचजन - यदु,तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु व पुरु उत्तरी व पश्चिमी भारत में अन्य आर्य गणों के साथ फैल रहे थे। सिन्धुवसौवीर क्षेत्र में फोनेशियन व यवन आर्यों की बस्तियां भी विकसित हो रहीं थी जिन्हें आज हम मोएंजोदारो, हड़प्पा व लोथल कहते है। 

इक्ष्वाकुओं का देवभूमि से संपर्क अभी भी था और कभी कभी  देवासुर संग्राम में देवपक्ष की ओर खड़े हो जाते थे लेकिन असली मुसीबत आई गृहयुध्द के रूप में।

दाशराज्ञ अर्थात दस राजाओं का युद्ध जो कहने को तो दस राजाओं का युद्ध था लेकिन वास्तव में इसमें उत्तरी भारत की हर गण जाति की तरह  अयोध्या व इक्ष्वाकुओं को भी भाग लेना पड़ा। 

वसिष्ठ व विश्वामित्र के बीच 'वर्ण व वर्णान्तरण' की परिभाषा को लेकर छिड़ा सैद्धांतिक विवाद सैन्य संघर्ष में बदल गया। सुदूर अफगानिस्तान के पठानों से लेकर पूर्व के इक्ष्वाकु और तृत्सु जैसे आर्य शुद्धतावादियों से लेकर शिश्णु, यक्ष और पिशाच जैसे अनार्य संस्कृति के कबीलों ने भाग लिया। परुष्णी अर्थात रावी के तट पर अंतिम संग्राम हुआ। विश्वामित्र सैन्य रूप से परास्त हुये लेकिन सैद्धांतिक तौर पर विजयी हुये। वसिष्ठ को उनकी गायत्री विद्या को सर्वोच्च मान्यता देनी पड़ी और उन्हें क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि भी स्वीकार करना पड़ा। 

विश्वामित्र की इस विजय में  अयोध्या में इक्ष्वाकु संघ के तत्कालीन  प्रमुख हरिश्चन्द्र व उनके पुत्र रोहिताश्व सबसे बड़े माध्यम बने और 'नरमेध' सदैव के लिये प्रतिबंधित हो गया। 
पर यह युद्ध पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ और हैहय व भृगुओं के बीच संघर्ष के रूप में पुनः भड़क उठा।परशुराम ने  हैहयों को कुछ समय के लिये कुचल दिया परंतु इक्ष्वाकुओं में फूट पड गई और कुछ इक्ष्वाकु जो हैहयों से जुड़े थे उन्हें परशुराम का कोप झेलना पड़ा, इस तथ्य के बावजूद कि उनकी माँ रेणुका एक इक्ष्वाकु सरदार की ही पुत्री थीं। 

इस बीच भरतों व पुरुओं का विलय हो गया और  इस स्मृति में दुष्यंत के बेटे का नाम प्रतीकात्मक तौर पर भरत रखा गया जिन्होंने पूरे भारत की गणजातियों को अपनी प्रभुसत्ता स्वीकारने पर बाध्य कर एक बार फिर भारत का 'राष्ट्रीय' संगठन किया व आदि भरत का नाम सार्थक किया। 

अयोध्या इस समय बुरे दौर से गुजर रही थी और भरत के वंशजों की कमजोरी का लाभ उठाकर हैहय एक बार फिर प्रबल हो उठे और इस बार उनके निशाने पर थे काशी और कोशल। इक्ष्वाकु संघ परास्त हुआ और गर्भवती रानी भृगुओं की शरण में पहुंची। राजकुमार सगर ने भृगुओं की सहायता से केवल हैहयों को ही नहीं हराया बल्कि उनके साथ आये द्रुह्यु तथा विदेशी भाड़े के योद्धाओं को पश्चिमोत्तर की ओर खदेड़ दिया। 

पर सगर व उनके वंशजों का सर्वाधिक महान कार्य था सुदूर हिमालय से महारुद्र शिव को प्रसन्न कर उनकी सहायता से हिमालयीन ग्लेशियर गोमुख से जलधारा को अलकनंदा में मिलाना और नवीन धारा को गंगा के रूप में मैदानों तक उतारने में सफलता प्राप्त करना। संपूर्ण इक्ष्वाकु मंडल अब धनधान्य से संपन्न हो उठा और अयोध्या साम्राज्य प्रगति करने लगा। हालांकि अयोध्यावासियों के लिये सरयू ही गंगा थी।  

पर अयोध्या के स्वर्णिम दिन तो अभी आने बाकी थे। 
इक्ष्वाकुओं की एक और शाखा के प्रमुख दिलीप का अधिकार अयोध्या पर हुआ जो अपनी गोभक्ति और गोधन के वैभव के लिये विख्यात थे। उनके पुत्र हुये रघु जिन्होंने लगभग संपूर्ण उत्तरीभारत के समस्त राज्यों व गणों को कर देने पर विवश किया और दक्षिण भारत पर भी अभियान किया। रघु के प्रताप के कारण इक्ष्वाकुओं की इस शाखा के वंशज स्वयं को रघुवंशी कहने लगे। इसी वंश में रघु के प्रपौत्र के रूप में जन्म लिया उन्होंने जिनके कारण अयोध्या ही नहीं संपूर्ण धराधाम ही धन्य हो उठा। 

#मर्यादापुरुषोत्तम #श्रीराम

जिनकी महानता का वर्णन आजतक होता आया है उनके गुण लीलाओं का वर्णन इस लघुनिबन्ध में कैसे संभव हो सकता है लेकिन इतना कहना पर्याप्त होगा कि ''राम" शब्द इस राष्ट्र के प्रत्येक जन के ह्रदय में आत्मा की तरह अंकित हो गया। हर श्वास से लेकर मृत्य तक ही नहीं बल्कि उससे परे परलोक में भी प्रत्येक भारतीय का संबल बन गया। राम से बेहतर इस राष्ट्र की कोई दूसरी परिभाषा हो ही नहीं सकती। 

राम अपना नाम और मर्यादा की शिक्षायें इस धरा को भेंट कर चले गये और उनके  पीछे रह गई उजाड़ अयोध्या क्योंकि अधिसंख्य अयोध्याजनों ने राम के पीछे ही सरयू में अपने नश्वर देह त्यागकर उनका अनुगमन किया। 

कुश ने दक्षिण कोशल से लौटकर पिता की स्मृतियों को संरक्षित किया लेकिन उनकी दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद अयोध्या का पतन रुका नहीं और रुकता भी कैसे? मर्यादापुरुषोत्तम के वंश में अग्निवर्ण जैसे कामुक वंशज जो पैदा होने लगे। 

यूँ भी प्रकृति में उद्विकास का अटल नियम है- 'शीर्ष के बाद ढलान शुरू होती है।' 

आठ चक्र और नौ द्वारों वाली जिस वैभवशाली अयोध्या की तुलना ऋषियों ने आठ जागृत ऊर्जा चक्रों वाले अभेद्य योगी से की थी वही अयोध्या भोगों के कारण 'रोगी' बन गई।  उसकी अजेयता समाप्त हुई और महाभारत में भगवान राम का वंशज वृहद्वल अभिमन्यु के हाथों गौरवहीन मृत्यु को प्राप्त हुआ। 

बौद्धकाल में प्रसेनजित तक आते आते अयोध्या के स्थान पर श्रावस्ती इक्ष्वाकुओं की राजधानी बन गई लेकिन तथागत बुद्ध अपने उस महान पूर्वज को कैसे भूलते जिसके वंश की एक शाखा में वह स्वयं जन्मे थे?  तथागत के आगमन से अयोध्या धन्य हुई लेकिन उन्होंने अपने पूर्वजों के स्थान का अतिक्रमण करना उचित नहीं समझा और उन्होंने अपने संघ सहित अयोध्या के एक उपनगरीय क्षेत्र में विहार किया जो #साकेत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

सम्राट अशोक ने जब तथागत के स्मृति स्थलों को सहेजा तो साकेत में भी विहार बनवाये यद्यपि मूल अयोध्या अपने राम के साथ भक्तिमग्न रही। 

मौर्य साम्राज्य दुर्बल हुआ। बौद्ध संघारामों में राजनीति व विलासिता का बोलबाला होने लगा। यूनानियों ने मौका पाया और सिकंदर के अधूरे स्वप्न को पूरा करने वे निकल पड़े बैक्ट्रिया से। 

बृहद्रथ की कायरता व विलासिता से क्रुद्ध पुष्यमित्र शुंग ने सेना के समक्ष ही उसे वहाँ पहुंचा दिया जहाँ कभी चाणक्य द्वारा धननंद को पहुंचाया गया था। उधर  यूनानी सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी। राजस्थान व मथुरा को रौंदते हुये डेमेट्रियस व मिनांडर आगे बढ़ रहे थे। एक सेना के साथ डेमेट्रियस पाटलिपुत्र की ओर बढ़ा व दूसरी सेना के साथ मिनांडर अयोध्या की ओर। 

बौद्धों ने देशद्रोह किया और अयोध्या का पतन हो गया। 
कहते हैं कि मिनांडर पहला विदेशी आक्रांता था जिसने राम की जन्मभूमि व अन्य स्मृति चिन्हों का विध्वंस किया। देशद्रोही बौद्धों ने ये भी न सोचा कि विदेशी आक्रांता जिस राम के स्मृति चिन्हों का अपमान कर रहा है वे राम स्वयं तथागत के पूर्वज थे। 

बौद्धों की देशद्रोही भूमिका से क्रुद्ध पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध विहारों पर आक्रमण कर 'घर के भेदियों को साफ' किया, यूनानियों को खदेड़ दिया व अयोध्या का वैभव पुनः लौटाने की कोशिश की। 

लेकिन वास्तविक प्रतिशोध लिया एक ब्राह्मण ने जिसका नाम था नागसेन जिसने मिनांडर को उसकी ही राजधानी में शास्त्रार्थ में परास्त कर अपना शिष्य बनाया। यूनान अयोध्या के चरणों में नत हुआ। मिनांडर बना मिलिंद और विश्व को मिली बौद्ध दर्शन की अनुपम कृति 'मिलिंदपन्हों'।

शकों-मुरुण्डों के आक्रमण की बाढ़ में अयोध्या पूर्ण  रूपेण उजाड़ हो गई लेकिन प्रवासी ब्राह्मण, क्षत्रिय व व्यापारी अयोध्या व राम के नामों की महिमा को बाहर पूर्वी एशिया में ले गये जिसके कारण वहाँ कई'अयोथिया' बसीं और थाईलैंड के अयोथिया शासक तो आज भी 'सेरी राम' की उपाधि ही धारण करते हैं। 

इधर मालव गणराज्य के राष्ट्रपति विक्रमादित्य ने शकों को कुछ समय के लिये पश्चिमोत्तर में खदेड़ दिया और  श्रीराम जन्मभूमि को कुछ शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर ढूंढकर वहाँ मंदिर बनवाया। 

गुप्तकाल में और विशेषतः चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने अयोध्या ने कुछ अच्छे दिन पुनः देखे और अयोध्या गुप्त साम्राज्य की तीसरी राजधानी बनी।

यह भी कहा जाता है कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि ढूंढकर वहाँ मंदिर बनवाने वाले विक्रमादित्य वस्तुतः यही गुप्तवंशी विक्रमादित्य थे। लकड़ी के भवन और मंदिरों का स्थान अब पाषाण स्थापत्य ने लिया। 

वर्धन, प्रतिहार व गाहड़वाल युग में राजनैतिक सांस्कृतिक केंद्र कन्नौज बन गया और अयोध्या पुनः उपेक्षित हो गई। यद्यपि गाहड़वाल राजाओं ने श्रीराम मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 

तराइन के द्वितीय युद्ध में पराजय के बाद मुस्लिम सत्ता इस देश में परजीवी के समान जड़ बनाकर बैठ गई और फिर शुरू हुआ मंदिरों के विध्वंस व पुनर्निर्माण का क्रम। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर इसका अपवाद क्यूं कर रहता?

इस दौरान अयोध्या ने मंदिर विध्वंस ही नहीं बल्कि  बलवन जैसे क्रूर बर्बर शासकों द्वारा मीलों तक खड़ी सूलियों में बिंधे मानव शरीरों की श्रृंखलाओं जैसे घिनौने दृश्य और बलात धर्मांतरण भी होते देखे। 

फिर आ घुसा मुगल बाबर। मिनांडर काल का इतिहास फिर दोहराया गया जब अयोध्या में हिंदू साधु के मुस्लिम शिष्यों ने गुरुद्रोह व देशद्रोह कर बाबर के शिया सेनापति मीर बाकी की मदद से श्रीराम जन्मभूमि पर खड़े जीर्णशीर्ण मंदिर को भी तुड़वा डाला और उसके स्थान पर मंदिर के ही मलबे से बनाई गई कुख्यात बाबरी मस्जिद। 

पर जो नाम हर भारतवासी के ह्रदयमन्दिर में  धड़कन की तरह धड़क रहा हो उसके अपमान पर वे कैसे चुप बैठते? लाखों ने अपने शीश दिये। यहाँ तक कि सुदूर पंजाब से आकर सिखों ने भी अपने गुरु साहिबान के इन महान पूर्वज के स्मृति चिन्ह की मुक्ति के लिये अपना खून उसी तरह बहाया जैसे महताब सिंह जैसे राजपूतों व ब्राह्मण, अहीर, गुर्जर, भूमिहार आदि हर जाति के हिंदू ने। 

1947 में आजादी आई लेकिन दुर्भाग्य से सत्ता पर काबिज था एक अर्धमुस्लिम विचार का व्यक्ति जिसे हिंदू होने पर शर्म आती थी अतः हिंदुओं को अपने ही देश में अपने राष्ट्र प्रतीक के स्मृति चिन्हों को पुनः प्राप्त करने के लिये आंदोलन करने पड़े, गोलियाँ खानी पड़ीं। कोठारी बंधु जैसे कई राष्ट्रनिष्ठ हिंदुओं ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। 

एक पूरी पीढ़ी ने इस आंदोलन को अपने श्रम, आंसुओं व रक्त से सींचा और कई तो भव्य राममन्दिर का स्वप्न देखते हुये इस संसार से विदा हो गये। 

राष्ट्रनिष्ठ संतों के आह्वान पर श्री लालकृष्ण आडवाणी, स्व.अटल जी, श्री मुरलीमनोहर जोशी, स्व. श्री अशोक सिंहल, श्री प्रवीण भाई तोगड़िया, साध्वी दीदी ऋतंभरा, साध्वी उमा भारती सहित सैकड़ों नेताओं ने विविध स्तरों पर इस आंदोलन का नेतृत्व किया। 

अंततः हिंदुओं की आहों और रक्त बलिदानों से विधाता का भी ह्रदय पसीजा और उन्होंने इस आंदोलन में चुपचाप अपना योगदान दे रहे ऐसे राष्ट्रसेवक को रामकाज हेतु चुना जो  'कांटे से कांटा' निकालने की कला में पारंगत था--  नरेंद्र दामोदरदास मोदी 

अंसारी, औवेसी, शहाबुद्दीन जैसे विधर्मियों तथा आसुरी  इटालियन कांग्रेस व कपिल सिब्बल जैसों के तमाम कुटिल प्रयत्नों के बाद भी हिंदुओं की आकांक्षाओं के सच्चे प्रतिनिधि, भारत माता के सपूत, यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी और उनके परम विश्वसनीय कौटिल्य बुद्धि गृहमंत्री श्री अमितभाई शाह के प्रयत्नों से रामजन्मभूमि इन असुरों के काले पाश से 2019 में मुक्त हुई और अंततः 5 अगस्त 2020 को सुबह 9 बजे भूमिपूजन द्वारा भव्य मंदिर के निर्माण का श्रीगणेश हुआ।

अब आशा है कि अयोध्या भारत की सांस्कृतिक राजधानी के साथ साथ पुनः आठ चक्र व नौ द्वारों वाले सुव्यवस्थित महानगर के रुप में विकसित होकर भारत की राजनैतिक राजधानी भी घोषित हो क्योंकि भारत की राष्ट्रीय आकांक्षाओं की नाभि अयोध्या में ही निहित है।

इतिहास से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। 

इति!
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स्रोत:-
ऋग्वेद,
अथर्ववेद,
शतपथ ब्राह्मण,
वाल्मीकि रामायण,
महाभारत,
सारे पुराण, 
पश्चिम एशिया व ऋग्वेद:डॉ रामविलास शर्मा, 
महागाथा:रांगेय राघव ..
मूल लेखक... अनुज श्री देवेंद्र सिंह सिखरवार जी 

रविवार, 18 जुलाई 2021

पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए कितने संगठन कार्य कर रहे हैं ?


आइये जानते हैं ।

1) अल -शबाब (अफ्रीका) 
2) अल मुराबितुंन (अफ्रीका), 
3) अल -कायदा (अफगानिस्तान), 
4) अल -क़ाएदा (इस्लामिक मघरेब), 
5) अल -क़ाएदा (इंडियन सबकॉन्टिनेंट), 
6) अल -क़ाएदा (अरेबियन पेनिनसुला),
7) हमास (पलेस्टाइन), 
8) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन), 
9) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ (पलेस्टाइन), 
10) हेज़बोल्ला (लेबनान), 
11) अंसार अल -शरीया -बेनग़ाज़ी (लेबनान), 
12) असबात अल -अंसार (लेबनान), 
13) ISIS (इराक), 
14) ISIS (सीरिया),
15) ISIS (कवकस)
16) ISIS (लीबिया)
17) ISIS (यमन)
18) ISIS (अल्जीरिया), 
19) ISIS (फिलीपींस)
20) जुन्द अल -शाम (अफगानिस्तान), 
21) मौराबितौं (लेबनान), 
22) अलअब्दुल्लाह अज़्ज़म ब्रिगेड्स (लेबनान), 
23) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
24) अल -हरमैन फाउंडेशन (सऊदी अरबिया), 
25) अंसार -अल -शरीया (मोरोक्को),
26) मोरोक्को मुदजादिने (मोरक्को), 
27) सलफीआ जिहदिआ (मोरक्को), 
28) बोको हराम (अफ्रीका), 
29) इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (उज़्बेकिस्तान), 
30) इस्लामिक जिहाद यूनियन (उज़्बेकिस्तान), 
31) इस्लामिक जिहाद यूनियन (जर्मनी), 
32) DRW True -रिलिजन (जर्मनी)
33) फजर नुसंतरा मूवमेंट (जर्मनी)
34) DIK हिल्देशियम (जर्मनी)
35) जैश -ए -मुहम्मद (कश्मीर), 
36) जैश अल -मुहाजिरीन वल -अंसार (सीरिया), 
37) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टाइन (सीरिया), 
38) जमात अल दावा अल क़ुरान (अफगानिस्तान), 
39) जुंदल्लाह (ईरान)
40) क़ुद्स फाॅर्स (ईरान)
41) Kata'ib हेज़बोल्लाह (इराक), 
42) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
43) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt), 
44) जुन्द अल -शाम (जॉर्डन)
45) फजर नुसंतरा मूवमेंट (ऑस्ट्रेला)
46) सोसाइटी ऑफ़ द रिवाइवल ऑफ़ इस्लामिक हेरिटेज (टेरर फंडिंग, वर्ल्डवाइड ऑफिसेस)
47) तालिबान (अफगानिस्तान), 
48) तालिबान (पाकिस्तान), 
49) तहरीक -i-तालिबान (पाकिस्तान), 
50) आर्मी ऑफ़ इस्लाम (सीरिया), 
51) इस्लामिक मूवमेंट (इजराइल)
52) अंसार अल शरीया (तुनिशिया), 
53) मुजाहिदीन शूरा कौंसिल इन द एनवीरोंस ऑफ़ (जेरूसलम), 
54) लिबयान इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप (लीबिया), 
55) मूवमेंट फॉर वेनेस्स एंड जिहाद इन (वेस्ट अफ्रीका), 
56) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन)
57) तेव्हीद-सेलम (अल -क़ुद्स आर्मी)
58) मोरक्कन इस्लामिक कोंबटेंट ग्रुप (मोररोको), 
59) काकेशस अमीरात (रूस),

60) दुख्तरान -ए -मिल्लत
फेमिनिस्ट इस्लामिस्ट्स
             (इंडिया)
61) इंडियन मुजाहिदीन
             (इंडिया),
62) जमात -उल मुजाहिदीन
             (इंडिया)
*63) अंसार अल -इस्लाम*
             *(इंडिया)*
*64) स्टूडेंट्स इस्लामिक*
*मूवमेंट ऑफ़ (इंडिया)* 
*65) हरकत मुजाहिदीन*
           *(इंडिया)*
*66) हिज़्बुल मुझेडीन*
            *इंडिया*
*67) लश्कर ए इस्लाम*
           *(इंडिया)*

68) जुन्द अल खिलाफह*
(अल्जीरिया), 
69) तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी ,
70) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt),
71) ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स' फ्रंट (तुर्की),
72) हरकत -उल -जिहाद अल -इस्लामी (पाकिस्तान),
73) तहरीक -ए -नफ़ज़ -ए -शरीअत -ए -मोहम्मदी (पाकिस्तान), 
74) लश्कर ए तोइबा (पाकिस्तान)
75) लश्कर ए झांगवी (पाकिस्तान)
76) अहले सुन्नत वल जमात (पाकिस्तान ),
77) जमात उल -एहरार (पाकिस्तान), 
78) हरकत -उल -मुजाहिदीन (पाकिस्तान), 
79) जमात उल -फुरकान (पाकिस्तान), 
80) हरकत -उल -मुजाहिदीन (सीरिया), 
81) अंसार अल -दिन फ्रंट (सीरिया), 
82) जब्हत फ़तेह अल -शाम (सीरिया), 
83) जमाह अन्शोरूट दौलाह (सीरिया), 
84) नौर अल -दिन अल -ज़ेन्कि मूवमेंट (सीरिया),
85) लिवा अल -हक़्क़ (सीरिया), 
86) अल -तौहीद ब्रिगेड (सीरिया), 
87) जुन्द अल -अक़्सा (सीरिया), 
88) अल-तौहीद ब्रिगेड(सीरिया), 
89) यरमूक मार्टियर्स ब्रिगेड (सीरिया), 
90) खालिद इब्न अल -वालिद आर्मी (सीरिया), 
91) हिज़्ब -ए इस्लामी गुलबुद्दीन (अफगानिस्तान), 
92) जमात -उल -एहरार (अफगानिस्तान) 
93) हिज़्ब उत -तहरीर (वर्ल्डवाइड कलिफाते), 
94) हिज़्बुल मुजाहिदीन (इंडिया), 
95) अंसार अल्लाह (यमन), 
96) हौली लैंड फाउंडेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट (USA), 
97) जमात मुजाहिदीन (इंडिया), 
98) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया), 
99) हिज़्बुत तहरीर (इंडोनेशिया), 
100) फजर नुसंतरा मूवमेंट (इंडोनेशिया), 
101) जेमाह इस्लामियाह (इंडोनेशिया), 
102) जेमाह इस्लामियाह (फिलीपींस), 
103) जेमाह इस्लामियाह (सिंगापुर), 
104) जेमाह इस्लामियाह (थाईलैंड), 
105) जेमाह इस्लामियाह (मलेशिया), 
106) अंसार दीने (अफ्रीका), 
107) ओस्बत अल -अंसार (पलेस्टाइन), 
108) हिज़्ब उल -तहरीर (ग्रुप कनेक्टिंग इस्लामिक केलिफेट्स अक्रॉस द वर्ल्ड इनटू वन वर्ल्ड इस्लामिक केलिफेट्स)
109) आर्मी ऑफ़ द मेन ऑफ़ द नक्शबंदी आर्डर (इराक)
110) अल नुसरा फ्रंट (सीरिया), 
111) अल -बदर (पाकिस्तान), 
112) इस्लाम 4UK (UK), 
113) अल घुरबा (UK), 
114) कॉल टू सबमिशन (UK), 
115) इस्लामिक पथ (UK), 
116) लंदन स्कूल ऑफ़ शरीया (UK), 
117) मुस्लिम्स अगेंस्ट क्रुसडेस (UK), 
118) नीड 4Khilafah (UK), 
119) द शरिया प्रोजेक्ट (UK), 
120) द इस्लामिक दवाह एसोसिएशन (UK), 
121) द सवियर सेक्ट (UK), 
122) जमात उल -फुरकान (UK), 
123) मिनबर अंसार दीन (UK), 
124) अल -मुहाजिरों (UK) (Lee Rigby, लंदन 2017 मेंबर्स), 
125) इस्लामिक कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन (UK) (नॉट टू बी कन्फ्यूज्ड विद ओफ़फिशिअल मुस्लिम कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन), 
126) अहलुस सुन्नाह वल जमाह (UK), 
128) अल -गामा'अ (Egypt), 
129) अल -इस्लामियया (Egypt), 
130) आर्म्ड इस्लामिक मेन ऑफ़ (अल्जीरिया), 
131) सलाफिस्ट ग्रुप फॉर कॉल एंड कॉम्बैट (अल्जीरिया), 
132) अन्सारु (अल्जीरिया), 
133) अंसार -अल -शरीया (लीबिया), 
134) अल इत्तिहाद अल इस्लामिआ (सोमालिया), 
135) अंसार अल -शरीया (तुनिशिया), 
136) शबब (अफ्रीका), 
137) अल -अक़्सा फाउंडेशन (जर्मनी)
138) अल -अक़्सा मार्टियर्स' ब्रिगेड्स (पलेस्टाइन), 
139) अबू सय्याफ (फिलीपींस), 
140) अदेन-अबयान इस्लामिक आर्मी (यमन), 
141) अजनाद मिस्र (Egypt), 
142) अबू निदाल आर्गेनाइजेशन (पलेस्टाइन), 
143) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया)

अपने देश के कई नेता ये कहते है कि, कई लोग गलत तरीके से इस्लाम को बदनाम करते हैं। ये ऊपर लिखे सारे इस्लामिक संगठन तो शांति की स्थापना में लगे हुए है।
बस केवल "आरएसएस" ही ऐसा संगठन है, जो पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाता है।

ऐसी सोच का क्या मतलब है.? 
ये तो है मानसिक विकलांगता है ।

सरकारी कम्पनी को बेचने की सुरुआत कांग्रेस ने किया है ।।

आज जो निजी क्षेत्र के 3 सबसे बड़े बैंक है, यानी ICICI बैंक,  HDFC बैंक, और AXIS बैंक - यह तीनों कभी सरकारी बैंक हुआ करती थी, लेकिन पी.वी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ.मनमोहन सिंह ने इन्हें बेच दिया!

ICICI का पूरा नाम था इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया! यह भारत सरकार की ऐसी संस्था थी, जो बड़े उद्योगों को ऋण देती थी!

एक झटके में वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसका डिसइनवेस्टमेंट करके, इसे प्राइवेट बना दिया, और इसका नाम और ICICI बैंक हो गया!

आज जो HDFC बैंक है, उसका पूरा नाम हाउसिंग डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया था! यह भारत सरकार की एक ऐसी संस्था हुआ करती थी, जो मध्यम वर्ग के नागरिकों को सस्ते ब्याज पर होम लोन देने का काम करती थी!

नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, "सरकार का काम केवल गवर्नेंस करना है, होम लोन बेचना नहीं है!"

डॉ. मनमोहन सिंह  इसे आवश्यक कदम बताते हैं, और कहते हैं, "सरकार का काम केवल सरकार चलाना है, बैंक चलाना, या लोन देना नहीं है!"

और एक झटके में वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने HDFC बैंक को बेच दिया! और यह निजी क्षेत्र का बैंक बन गया!

इसी तरह की बेहद दिलचस्प कहानी AXIS बैंक की है!

भारत सरकार की एक संस्था हुआ करती थी, उसका नाम था यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया! यह संस्था लघु बचत को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी! यानी आप इसमें छोटी-छोटी रकम जमा कर सकते थे!

नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा, "सरकार का काम चिटफंड की स्कीम चलाना नहीं है!"

और एक झटके में इसे बेच दिया गया! पहले इसका नाम UTI बैंक हुआ, और बाद में इसका नाम AXIS बैंक हो गया!

इसी तरह आज IDBI बैंक है, जो एक प्राइवेट बैंक है! एक समय में यह भारत सरकार की संस्था हुआ करती थी, जिसका नाम था इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया! इसका भी काम उद्योगों को ऋण देना था! लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे भी बेच दिया! और आज यह निजी बैंक बन गया है!

अपनी याददाश्त को कमजोर न होने दें कभी!

डिसइनवेस्टमेंट पॉलिसी को भारत में कौन लाया था? जरा सर्च कर लो!

जब नरसिम्हा राव के समय में डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, तब डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में कहा था, "मैक्सिमम गवर्नमेंट, लेस गवर्नेंस!"

उन्होंने कहा था, कि "सरकार का काम व्यवसाय (धंधा) करना नहीं, सरकार का काम गवर्नेंस देना है! ऐसा वातावरण देना है, कि देश के नागरिक यह सब काम कर सकें!"

डॉ. मनमोहन सिंह ने ही सबसे पहले "टोल टैक्स पॉलिसी" लाई थी! यानी "निजी कंपनियों द्वारा सड़क बनाओ, और उन कंपनियों को टोल टैक्स वसूलने की अनुमति दो!"

डॉ. मनमोहन सिंह ने "सबसे पहले एयरपोर्ट के निजी करण" को आरंभ करवाया था, और सबसे पहला दिल्ली का "इंदिरा गांधी एयरपोर्ट" को जी.एम.आर ग्रुप को व्यवसायिक स्वरूप से चलाने के लिए दिया गया!

आज चम्पक उछल-उछल कर नाच-नाच कर, बेसुर राग गाता फिर रहा है, "मोदी ने अपने मित्रों में बेच दिया!"

डॉ. मनमोहन सिंह करें तो - विनिवेश!और मोदी करें तो - देश को बेचा!!

 2009-2010 में डॉ. मनमोहन सिंह ने 5 सरकारी कंपनियां बेचीं!
1. HPC Ltd.;
2. OIL - ऑयल इंडिया लिमिटेड;
3. NTPC - नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन;
4. REC - ग्रामीण विद्युतीकरण निगम;
5. NMDC - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम!

 2010-2011  में डॉ. मनमोहन सिंह ने 6 सरकारी कंपनियाँ और बेचीं!

1. SJVN - सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड;
2. EIL - इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड;
3. CIL - कोल इंडिया लिमिटेड;
4. PGCIL - पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया;
5. MOIL - मैंगनीज ऑर इंडिया लिमिटेड;
6. SCI - शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया!
 2011-2012  में डॉ. मनमोहन सिंह ने 2 सरकारी कंपनियाँ और बेचीं!

1. PFC - पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन;
2. ONGC - तेल और प्राकृतिक गैस निगम!

2012-2013 में डॉ. मनमोहन सिंह ने बेचीं और 8 सरकारी कंपनियां!

1. SAIL - भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड;
2. NALCO - नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड;
3. RCF - राष्ट्रीय रसायन और उर्वरक;
4. NTPC - नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन;
5. OIL - ऑयल इंडिया लिमिटेड;
6. NMDC - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम;
7. HCL - हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड;
 8.  एनबीसीसी!

 2012-2014 में डॉ. मनमोहन सिंह ने 11 और सरकारी कंपनियां बेचीं!

1. NHPC - नेशनल हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन;
2. BHEL - भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड;
3. EIL - इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड;
. NMDC - राष्ट्रीय खनिज विकास निगम;
5. CPSE - सीपीएसई-एक्सचेंज ट्रेडेड फंड;
6. PGCI - पावर ग्रिड कॉर्पोफ़ इंडिया लिमिटेड;
7. NFL - राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटेड;
8. MMTC - धातु और खनिज व्यापार निगम;
9. HCL - हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड;
10. ITDC - भारतीय पर्यटन विकास निगम;
11. STC - स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन;
12. NLC - नेयवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड!

  इन सभी का प्रमाण भी है...

 1. वित्त मंत्रालय, केंद्र सरकार के द्वारा, "निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन" विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ - www.dipam.gov.इन

2. सबसे पहले Dis-Investment पर क्लिक करें! इसके बाद Past Dis-Investment पर क्लिक करें!

 3. पोस्ट में दिए गए सभी जानकारियाँ (डेटा) वहां उपलब्ध हैं!

यह पोस्ट उन नागरिकों की आँखे खोलने के लिए किया है, जो सोचते हैं कि मोदी देश को बेच रहे हैं! मोदी देश को बेच रहे हैं, तो डॉ. मनमोहन सिंह पहले ही देश को बेच चुके हैं!

आपकी भाषा में डॉ. मनमोहन सिंह ने 2009-2014 तक  में 5 वर्षों में 26 सरकारी कंपनियों को बेचा।
व्यंग्य से ली गई है ।

राजपूतों नें क्या दिया भारत वर्ष को ?

एक गुर्जर लड़की का लेख राजपूतों पर...
मै जाति से गुर्जर हूँ , मेरा नाम सुमन कुमारी है और मैं राजस्थान की रहने वाली हूं। गोवा में रहकर software engineering  की पढ़ाई करती हूं। लेकिन आज एक ठाकुरवादी (राजपूती) पोस्ट लिख रही हूं।
राजपूतों के बारे में कहा जाता है.......

अजी साहब बहुत भेदभाव हुआ दलितों के साथ। उनसे खेतों में काम कराया गया, हरवाही कराई गई, गोबर उठवाया गया, उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया इत्यादि इत्यादि।

साब बहुत जुल्म हुआ दलितों पे ..!

यह बात बहुत जोरों से सोशल मीडिया, मास मीडिया के माध्मय से लोगों को बताई जा रही है।

मगर 1400 साल पहले जब मक्का से इंसानी खून की प्यासी इस्लाम की तलवार लपलपाते हुए निकली तो ...

एक झटके में ही...ईरान, इराक, सीरिया, मिश्र, दमिश्, अफगानिस्तान, कतर,  बलूचिस्तान से लेकर मंगोलिया और रूस तक ध्वस्त होते चले गए।

स्थानीय धर्मों और परम्पराओं का तलवार के बल पर  लुप्त कर दिया गया और सर्वत्र इस्लाम ही इस्लाम हो गया।

शान से इस्लाम का झंडा आसमान चूमता हुआ अफगानिस्तान होते हुए सिंध के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचा।

पर यहां पहुंचते ही इस्लाम की लगाम आगे बढ़ के क्षत्रियों ने थाम ली जिसके कारण भीषण रक्तपात हुआ।

आठ सौ साल तक क्षत्रिय राजवंशों से लेकर आम क्षत्रियों ने इस्लाम की नकेल ढीली न पड़ने दी। इनका साथ भी दिया जाटों ने, गुज्जरों ने, यादवों ने, ब्राह्मणों ने, वैश्यों ने .....! 
पर ये लोग फ्रंट लाइनर नहीं रहे कभी, सिर्फ आत्मरक्षार्थ डटे रहते थे .....!

*असली लड़ाई तो राजपूतों (ठाकुरों) ने ही लड़ी .......!*

एक समय ऐसा आया जब 18 साल से ऊपर के लड़के ही न रहे क्षत्रियों में। विधवाओं का अंबार लग गया। इसी वजह से सती प्रथा जौहर जैसी व्यवस्थाएं आकार लेने लगीं।

क्षत्राणियां खुद आगे बढ़कर अपने पति, बेटों को युद्ध में तिलक लगाकर भेजती थीं और खुद जौहर करती थीं ताकि कोई गैर उनके शरीर को हाथ भी न लगा सके।

परिणामतः UP जैसे बड़े राज्य में ये राजपूत घट के 1 % से भी नीचे आ गए। जनसंख्या बढ़ने के बाद अब लगभग 8% तक पहुंचे हैं। किसी-किसी राज्य में तो इनकी जड़ ही गायब हो गई।

जबकि तथाकथित शोषित वर्ग खुद को 54% बताता है ..!

जिसका नतीजा यह हुआ कि इस्लाम यहीं फंस कर रह गया और आगे नहीं बढ़ पाया। 

परिणामतः-- चाइना, कोरिया,जापान, नेपाल जैसे भारत के पूर्वी राज्य इस्लाम के हमले से बच गए।

इतना सब कुछ झेलने के बाद भी कहीं किसी इतिहास में ये नही मिलेगा कि इस्लाम के खिलाफ लड़ाई में क्षत्रियों ने खुद न जा के किसी और जाति  को मरने के लिए आगे कर दिया।

बाकी जातियों में जो लड़े वो सिर्फ आत्म रक्षार्थ ही लड़े।

राजपूत अपने नाबालिग बेटे कुर्बान करते रहे पर कभी अपने कर्म से विमुख नहीं हुए। सामाजिक जातीय वर्ण व्यवस्था का पूरा ख्याल रखा। जिसके वजह से आज की हिन्दू पीढ़ी मुसलमान होने से बची रह गई।

राजपूतो में आपसी मतभेद होने के वजह से मुसलमानों का भारत पर अधिकार तो हो गया लेकिन 800 सालों में भी भारत को इस्लामिक देश नहीं बना पाया।

कुछ को छोड़ कर बाकी पूरा समाज सदा ही इनका ऋणी रहेगा।⚔🚩

बाकी तो हर जगह राजपूतों को अत्याचारी ही बताया गया है, रही सही कसर बॉलीवुड ने पूरी कर दी। सभी फिल्मों में इन्हें अत्याचारी ठाकुर दिखा दिखा के लोगों के दिमाग में इनकी गलत छवि पेश की गई।

लेकिन ये नहीं दिखाया कि जब मुस्लिम तलवारें रक्त मांगती थी तब पहला सिर इन क्षत्राणि माँओं ने अपने पति और बेटों के दिया है। कद्र करो इनकी सभी लोग और अहसान मानों, ये न होते तो आज किसी मस्जिद में नमाज पढ़ रहे होते।

जिनके दादा परदादा राजपूती तलवार के छत्रछाया में न केवल जिंदा रहे बल्कि अपने धर्म को बचाये रखने में कामयाब रहे आज वही लोग राजपूतों पर जातिवाद का आरोप लगाते हैं। इतिहास पता करो, राजपूतों को गाली देने से पहले। हिंदुत्व की रक्षा में इस कौम ने अपनी संतानों की बलि चढ़ा दी, धन्य हैं वो राजपूती नारियां।

धन्य धन्य धरा जहां की शक्ति भक्ति और 
स्वाभिमान कभी बिका नहीं।
धन्य था वो शूरवीर राणा जिसकी 
ताकत के  आगे अकबर तक टिका नहीं।
क्या फौलादी सीना था उस राणा का 
टकराकर तीर सीने में टूट जाते थे।
हिनहिनाता था जब चेतक तो 
मुगलों के छक्के छूट जाते थे।
ऐसा भगवा उड़ाया राणा ने हल्दीघाटी में 
की सूर्यदेव भी छिप गए गगन पर।
और आदमी तो आदमी एक घोड़े ने 
जान दे दी वतन पर।

धन्य हैं ऐसे राजपुताना वीरों को जिनके शब्दकोष में डर शब्द नहीं था।
मेरी हमेशा उनको नमन रहेगी, राजपुतों आपको और आपके वंश को।

राजपूतों , ब्राह्मणों , जाट , गुज्जर भाइयों एवं बहनों से निवेदन है कि इस पोस्ट को शेयर करके ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजिये ताकि लोगों को राजपूतों के बलिदान और वीरता से अवगत कराया जा सके और जो लोग कहते हैं, राजपूतों ने शोषण किया है उनके मुँह पर तमाचा मारा जा सके।।

और मैं अपने गुर्जर व अन्य जातीय भाईयों एवं बहनों से कहना चाहती हूं कि राजपूतों से कभी बैर मत रखो और इनका हमेशा साथ देना, क्योंकि इन्होंने हमारे लिए बहुत बलिदान दिए हैं ।
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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

Communal violence Law हिन्दुओ के खिलाफ कांग्रेस की साजिश ।

कांग्रेस ने सोचा था कि भारत 2020- 22 तक इस्लामिक राष्ट्र बन जाएगा इसलिए  2011 से लेकर 2013 तक "कम्युनल वायलेंस लॉ" को कांग्रेस ने तीन बार लोकसभा में प्रस्तुत किया, परन्तु बीजेपी ने लोकसभा में इसका जोरदार विरोध किया जिस कारण यह हिन्दुओं को गुलाम बनाने वाला कानून पास नहीं हो सका,यदि कानून पास हो जाता तो हिंदू निश्चित रूप से गुलाम हो जाता l इसलिए पहले हीं गाँधी परिवार ने प्रियंका वाड्रा के बेटे का नाम रेहान  रखा गया जो एक मुस्लिम नाम है कि कांग्रेस के लोग कह सके कि हमारा तो नेता रेहान है   और यह मुस्लिम हैl यह रेहान वाड्रा कि जगह रेहान खान हों जाता  फिर यह कांग्रेस पीढ़ी दर पीढ़ी राज्य करती रहती l क्या है यह कानून  नीचे  पढ़े 
Communal violence Law
"हिंदुओ के लिए फांसी का फंदा तैयार करने को कांग्रेस किस तरह से तैयार थी।"  इस "लेख को पूरा पढ़िए।  इसे पढ़कर कांप उठेंगे। अफसोस! मरते न जिन्दा रहते तड़प 2 कर जीते।" "बहन बेटिया आपके ही सामने हबस का शिकार अलग बनती।" 🙁
    

"Communal Violence Bill"

       कांग्रेस के लिये जान फूंकने वाले हिंदुओं सुनो मैं कांग्रेस का घोर विरोधी क्यों हूँ ।
    "एंटोनी माइनो" की भयानक खतरनाक साजिश।
      जिसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जायेगा। अगर लागू हो गया होता तो मरना भी दूभर हो जाता। जीने की बात ही छोड़ो। तुम्हारे विनाश वाला बिल जिसे काँग्रेस ने दो बार संसद मे पेश किया। 2005 मे और फिर 2011में ।  "कांग्रेस हिंदुओं के खिलाफ ऐसा बिल लेकर आई थी जिसको सुनकर आप कांप उठेंगे । परन्तु भाजपा के जबरदस्त विरोध के कारण वह पास नहीं करवा सकी" मुझे यकीन है कि 96% हिन्दुओ को  तो अपने खिलाफ आये इस बिल के बारे में कुछ पता भी नहीं होगा जिसमें शिक्षित हिंदू भी शामिल है, क्योंकि हिंदू सम्पत्ति जुटाने में लगा है उसको इन सब बातों को जानने के लिए समय नहीं है । जबकि मुसलमान के "अनपढ़ भी इतने जागरूक है कि पाकिस्तान," बांग्लादेश, अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किये गए हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देने वाले CAA क़ानून के खिलाफ मुसलमान का बच्चा बच्चा उठ खड़ा हुआ । अगर काँग्रेस दुबारा सत्ता में आई तो यह बिल फिर लेकर आएगी । 
       क्या है " दंगा नियंत्रण कानून" 
हिंदू समाज के लिए #फांसी का फंदा, कुछ एक लोगों को इस बिल के बारे में पता होगा, 2011 में इस बिल की रुप रेखा को सोनिया गाँधी की विशेष टीम ने बनाया था जिसे NAC भी कहते थे, इस टीम में दर्जन भर से ज्यादा सदस्य थे और सब वही थे जिन्हें आजकल अर्बन नक्सली कहा जाता है.. कांग्रेस का कहना था की इस बिल के जरिये वो देश में होने वाले दंगों को रोकेंगे। अब इस बिल में कई प्रावधानो पर जरा नजर डालिए :--
📌 इस बिल में प्रावधान था कि दंगों के दौरान दर्ज अल्पसंख्यक से सम्बंधित किसी भी मामले में सुनवाई कोई हिंदू जज नहीं कर सकता था ।
📌 अगर कोई अल्पसंख्यक सिर्फ यह आरोप लगा दे कि मुझसे भेदभाव किया गया है तो पुलिस को अधिकार था कि आपके पक्ष को सुने बिना आपको जेल में डालने का हक होगा और इन केसों में जज भी अल्पसंख्यक ही होगा..
📌 इस बिल में ये प्रावधान किया गया था कि कोई भी हिन्दू दंगों के दौरान हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ 
के लिये अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध केस दर्ज नहीं करवा सकता ।
📌 इस बिल में प्रावधान किया गया था कि अगर कोई अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू पर हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, हत्या का आरोप लगाता है तो कोर्ट में साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं है केवल मुकदमा दर्ज करवा देना ही काफ़ी है । बल्कि कोर्ट में निर्दोष साबित होने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की है जिस पर आरोप लगाया गया है ।
📌  इस बिल में ये प्रावधान किया गया था कि दंगों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को हुए किसी भी प्रकार के नुकसान के लिए बहुसंख्यक को जिम्मेदार मानते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के नुकसान की भरपाई हिंदू से की जाए । जबकि बहुसंख्यक के नुकसान के लिए अल्पसंख्यक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था ।
📌  अगर आपके घर में कोई कमरा खाली है और कोई मुस्लिम आपके घर आता है उसे किराए पर मांगने के लिए तो आप उसे कमरा देने से इंकार नहीं कर सकते थे क्योंकि उसे बस इतना ही कहना था कि आपने उसे मुसलमान होने की वजह से कमरा देने से मना कर दिया यानि आपकी बहन बेटी को छेड़ने वाले किसी अल्पसंख्यक के खिलाफ भी हम कुछ नहीं कर सकते थे। मतलब कि अगर कोई छेड़े तो छेड़ते रहने दो वर्ना वो आपके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा देता….. आपकी सीधी गिरफ़्तारी और ऊपर से जज भी अल्पसंख्यक..
📌 देश के किसी भी हिस्से में दंगा होता, चाहे वो मुस्लिम बहुल इलाका ही क्यों न हो, दंगा चाहे कोई भी शुरू करता पर दंगे के लिए उस इलाके के वयस्क हिन्दू पुरुषों को ही दोषी माना जाता और उनके खिलाफ केस दर्ज कर जांचें शुरू होती। और इस स्थिति में भी जज केवल अल्पसंख्यक ही होता ऐसे किसी भी दंगे में चाहे किसी ने भी शुरू किया हो..
📌अगर दंगों वाले इलाके में किसी भी हिन्दू बच्ची या हिन्दू महिला का रेप होता तो उसे रेप ही नहीं माना जाता । बहुसंख्यक है हिन्दू इसलिए उसकी महिला का रेप रेप नहीं माना जायेगा और इतना ही नहीं कोई हिन्दू महिला बलात्कार की पीड़ित हो जाती और वो शिकायत करने जाती तो अल्पसंख्यक के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का केस उस पर अलग से डाला जाता..
📌 इस एक्ट में एक और प्रस्ताव था जिसके तहत आपको पुलिस पकड़ कर ले जाती अगर आप पूछते की आपने अपराध क्या किया है तो पुलिस कहती की तुमने अल्पसंख्यक के खिलाफ अपराध किया है, तो आप पूछते की उस अल्पसंख्यक का नाम तो बताओ, तो पुलिस कहती – नहीं शिकायतकर्ता का नाम गुप्त रखा जायेगा..
📌 कांग्रेस के दंगा नियंत्रण कानून में ये भी प्रावधान था की कोई भी इलाका हो बहुसंख्यको को अपने किसी भी धार्मिक कार्यक्रम से पहले वहां के अल्पसंख्यकों का NOC लेना जरुरी होता यानि उन्हें कार्यक्रम से कोई समस्या तो नहीं है । ऐसे हालात में अल्पसंख्यक बैठे बैठे जजिया कमाते क्यूंकि आपको कोई भी धार्मिक काम से पहले उनकी NOC लेनी होती, और वो आपसे पैसे की वसूली करते और आप शिकायत करते तो भेदभाव का केस आप पर और ऐसे हालात में जज भी अल्पसंख्यक..
📌 और भी अनेको प्रावधान थे कांग्रेस के इस दंगा नियंत्रण कानून में जिसे अंग्रेजी में # Communal Violence Bill भी कहते है..
सुब्रमण्यम स्वामी ने इस बिल का सबसे पहले विरोध शुरू किया था और उन्होंने इस बिल के बारे में लोगों को जब बताया था तो 2012 में हिन्दू काँप उठे थे तभी से कांग्रेस के खिलाफ हिन्दुओं ने एकजुट होना शुरू कर दिया था। सुब्रमण्यम स्वामी का पूरा लेक्चर इस
 "Communal Violence Bill" पर आज भी मौजूद है, 45 मिनट से ज्यादा का है। आप चाहे तो  यू टयूब पर सर्च कर लें, और अच्छे से सुन लें..
अब इस के बाद भी जो हिन्दू कांग्रेस को support करता है वे जाने अनजाने अपने ही लोगो के लिए नरक का  द्वार खोल रहे हो इसे जानो,
 नोट -- इस सन्देश को जरूर शेयर करो  इस हिन्दू "विरोधी ओर राष्ट्रद्रोही कोंग्रेस  को देश व जनता के सामने नंगा कर दो।" 
ये है पक्का सबूत काग्रेस का हिन्दू विरोधी होने का
इसे "आप नेट पर भी सर्च कर सकते हैं !!"

रविवार, 27 जून 2021

पुष्पमित्र सुंग कौन थे ?

है तो कॉपी पेस्ट, पर इतिहास में रुचि है तो जरूर पढिये....🙏

जिसके सिर पर तिलक ना दिखे उसका सर धड़ से अलग कर दो-: सम्राट पुष्यमित्र शुंग 

यह बात आज से लगभग 2100 वर्ष पहले की है । एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया , जिसका नाम रखा गया पुष्यमित्र था अर्थात पुष्यमित्र शुंग ....... और वह बना एक महान हिंदू सम्राट जिसने भारत देश को बौद्ध देश बनने से बचाया ।

अगर पुष्यमित्र शुंग जैसा कोई राजा कंबोडिया मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिंदू देश होते ।

जब सिकंदर राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की ओर गया था तो उसके साथ आए हुए बहुत से यवन वहां बस गए थे  ।

सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपना लेने से उनके बाद उनके वंशजों ने भारत में बौद्ध धर्म लागू करवा दिया ।

ब्राह्मणों के द्वारा इस नीति का विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ , लाखों ब्राह्मणों की हत्याएं हुईं , हजारों मंदिर गिरा दिए गए , इसी समय पुष्यमित्र के माता-पिता को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया , जब उन्होंने मना कर दिया तो  छोटे से बालक पुष्यमित्र के सामने ही उसके माता-पिता को काट दिया गया  ।
बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो पर किसी ने नहीं सुनी माता-पिता को मरा देखकर पुष्यमित्र की आंखों में रक्त उतर आया उसे गांव वालों की संवेदना से नफरत हो गई और उसने प्रतिज्ञा ली कि वह इसका बदला बौद्धों से एक दिन जरूर देगा और जंगल की ओर भाग गया ।

ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण योग की सूक्ष्म क्रियाओं का ज्ञान पुष्यमित्र को था अतः उसने महान योग क्रियाओं के द्वारा अपने शरीर को अत्यधिक बलवान बना लिया , वह जंगल में रहता था निरंतर योग एवं शस्त्र विद्या का अभ्यास करता था ।

एक दिन बौद्ध राजा बृहद्रथ मौर्य वन में घूम रहा था अचानक वहां उसके सामने एक सिंह आ गया , सिंह सम्राट की ओर झपटा ही था तभी अचानक एक लंबा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवक  शेर  के सामने आ गया और उसने अपनी मजबूत भुजाओ से उस शेर के जबड़े को पकड़कर , उसके दो टुकड़े कर बीच से चीर दिया और सम्राट से कहा कि आप अब सुरक्षित हो ।

सम्राट ने पूछा - " कौन हो तुम "
युवक - " ब्राह्मण हूं महाराज "

उसका पराक्रम देखकर सम्राट ने कहा - " सेनापति बनोगे "

युवक  आकाश की ओर देखकर रक्त से अपना तिलक कर  बोला - "मातृभूमि को जीवन समर्पित है "

उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उप सेनापति घोषित कर दिया जल्दी ही अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर वह प्रधान सेनापति बन गया ।

 शांति का पाठ अधिक पढने के कारण मगध साम्राज्य कायर हो चुका था,लेकिन पुष्यमित्र के अंदर ज्वाला अभी भी जल रही थी वह रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में विश्वास रखता था ।

पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिंदू था और भारत को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना उसका स्वप्न था ।

आखिर वह दिन भी आ गया ,  यवनों की लाखों की फौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया ।
पुष्यमित्र समझ गया कि अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है , जब उसने यह बात सम्राट बृहद्रथ को बताई तो सम्राट बृहद्रथ युद्ध कर मगध रक्षा करने के पक्ष में नहीं  था , उसका कहना था की युद्ध से रक्तपात होता है और हमें शांति चाहिए युद्ध नहीं ।

मगध के नागरिकों में यवनों का भय व्याप्त होने लगा क्योंकि युद्ध के बाद यवन लूटपाट और हत्याएं तथा स्त्रियों का हरण करते थे  ।

पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को युद्ध के लिए तैयारी करने का आदेश दे दिया उसने कहा कि"  इससे पहले के दुश्मन के पैर हमारी मातृभूमि पर पड़े हम उसका शीश उड़ा देंगे" । यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के बौद्ध धार्मिक विचारों के विरुद्ध थी,
सम्राट बृहद्रथ पुष्यमित्र के पास गया और गुस्से से बोला  " यह किसके आदेश से तुम सेना को युद्ध के लिए तैयार र रहे हो " ।

पुष्यमित्र ने कहा - "मातृभूमि की रक्षा के लिए मुझे  किसी की आज्ञा की आवश्यकता नहीं है और ब्राह्मण किसी की आज्ञा नहीं  लेता है"  यह कहकर पुष्यमित्र ने सम्राट का सर तलवार के एक ही प्रहार से धड़ से अलग कर दिया ।

लाल आंखों वाले पुष्यमित्र ने सम्राट के रक्त से अपना तिलक किया और पुष्यमित्र ने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा  - " ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण है , ना पुष्यमित्र , महत्वपूर्ण है तो हमारी मातृभूमि क्या तुम मातृभूमि के लिए रक्त बहाने को तैयार हो पुष्यमित्र की शेर जैसी गरज की आवाज से सेना जोश में आ गई और सभी  सैनिक आगे बढ़कर बोले ..."हां सम्राट पुष्यमित्र हम तैयार हैं"

पुष्यमित्र ने कहा - " आज मैं सेनापति ही हूं " चलो काट दो यवनों को जो मगध पर अपनी विजय पताका फहराने का स्वप्न पाले हुए हैं और युद्ध में गाजर मूली की तरह ही यवनों को काट दिया गया ।

 एक सेना जो कल तक दबी हुई , डरी हुई रहती थी आज युद्ध में हर हर महादेव और जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही थी ।

यवनों ने मगध तो छोड़ दिया और अपना राज्य भी खो दिया ।

इसके बाद पुष्यमित्र का राज्याभिषेक हुआ ।

 सम्राट बनने के बाद पुष्यमित्र ने घोषणा की कि - " अब मगध में कोई बौद्ध धर्म नहीं मांनेगा , हिंदू सनातन धर्म ही राजधर्म है ,  और जिसके माथे पर तिलक ना दिखे वह सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा "

उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जो आज तक नहीं हुआ , जिससे आज भारत कंबोडिया नहीं है हजारों की संख्या में बौद्ध मंदिर जो कि हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर कर बनाए गए थे उन्हें ध्वस्त करा दिया गया बौद्ध मठों को तबाह कर दिया गया चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षशिला विश्वविद्यालय का सनातन शौर्य फिर से स्थापित हुआ और जो लोग अपने सनातन धर्म को त्याग कर बौद्ध बन गए थे उन्होंने पुनः सनातन धर्म में वापसी की और जिन लोगों ने सनातन धर्म का विरोध किया उनकी लाखों की संख्या में पुष्यमित्र ने हत्या करा दी ।

पुष्यमित्र शुंग के पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया वह बौद्धों को दौड़ता  हुआ चीन तक ले गया वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके संधि स्थापित की , और  इनके वंशज आज भी चीन में शुंग उपनाम नाम ही लिखते हैं ।

पंजाब,अफगानिस्तान,सिंध की शाही ब्राह्मण वंशावली के बाद शुंग वंश सबसे बेहतरीन सनातन साम्राज्य था शायद पेशवा से भी महान , जिसने सनातन धर्म को पुनः स्थापित करने का महान कार्य किया ।

हमें गर्व करना चाहिए अपने पूर्वजों पर जिन्होंने अपने बलिदान से हमें आज सर उठा कर जीने का अधिकार दिलाया ।

 आग लगा देनी  चाहिए इस फिल्म इंडस्ट्री को जो ब्राह्मण को कमजोर और भ्रष्ट बताती है ।

हिंदू चाहे किसी भी वर्ण का हो उसे सदैव गलत और पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाने वाले इस्लामिक आतंकवादियों से श्रेष्ठ बताती है ।

पुष्यमित्र जैसा सनातन धर्म का रक्षक आज तक कोई नहीं हुआ वह जानता था कि बिना शास्त्र और शस्त्र के धर्म की रक्षा नहीं हो सकती ।
आवश्यकता है अपने बच्चों को सही इतिहास बताने की ।

जयतु सनातन धर्म....🚩
#NSB

बुधवार, 16 जून 2021

बाघेल राजपूतों का उपनाम "बाघेल" कैसे बना

बघेलखण्ड में ‘‘बाघेला राज्य’’ स्थापित होने के पूर्व गुजरात में बघेलों की सार्वभौम्य सत्ता स्थापित हो चुकी थी, जिनकी राजधानी ‘‘अन्हिलवाड़ा’’ थी। बाघेल क्षत्रिय चालुक्यों की एक शाखा है, जिन्होंने दक्षिण भारत के चालुक्य क्षत्रियों की एक शाखा के रूप में गुजरात पहुँचकर 960ई. में अन्हिलवाड़ा में सोलंकियों का राज्य स्थापित किया था। रीवा स्टेट गजेटियर में भी यह उल्लेख किया गया है कि, बघेलखण्ड की रीवा रियासत के नरेश सोलंकी अर्थात् चालुक्य क्षत्रिय की बाघेल शाखा के राजपूत हैं। बाघेलों का इस क्षेत्र में आने के पूर्व इनके पूर्वज चालुक्यों और सोलंकियों का दक्षिणी भारत और गुजरात के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दक्षिण भारत में चालुक्यों का इतिहास छठीं शताब्दी से प्राप्त होता है। दक्षिण भारत के इन्हीं चालुक्य सम्राटों के वंशज गुजरात आये। गुजरात में ‘‘अन्हिलवाड़ा’’ के शासक के रूप में महाराज ‘‘मूलराज’’ ने सन् 960 में चालुक्य क्षत्रियों की सोलंकी शाखा की नींव डाली। इस वंश के प्रतापी नरेश ‘‘जयसिंह सिद्धराज’’ हुए, जिनके कोई सन्तान नहीं थी। इन्होंने अपने नजदीकी संबंधी  (छोटे भाई)  त्रिभुवनपाल के पुत्र कुमारपाल को अपना उत्तराधिकारी बनाया। कुमारपाल (1143-1173 ई.) ने अपनी मौसी के पुत्र अर्णोराज (गोत्र-भरद्वाज) को ‘‘व्याघ्रपल्ली’’ (बाघेला गाँव) का सामन्त/जागीरदार बना दिया। अर्णोराज के पुत्र लवण प्रसाद को गुजरात के लेखों में ‘‘व्याघ्रपल्लीय’’ कहा गया है, जो कालान्तर में अप्रभंश के रूप में ‘‘बघेल/बाघेला/वाघेला/बाघेल" हो गया। इस तरह व्याघ्रपल्ली गाँव में रहने के कारण अर्णोराज के उत्तराधिकारी ‘‘‘‘बघेल/बाघेला/वाघेला/बाघेल" कहलाये जाने लगे,किन्तु रीवा स्टेट गजेटियर, जीतन सिंह द्वारा लिखित रीवा राज्य दर्पण एवं गुरु राम प्यारे अग्निहोत्री ने रीवा राज्य के इतिहास में लिखा है कि, गुजरात के पाँचवें सोलंकी राजा भीमदेव के चैथे पुत्र सारंगदेव के पुत्र वीर धवल के सुपुत्र का नाम ‘‘बाघराव’’ था। गुजरात के शासक सिद्धराज जय सिंह (1093-1142ई.) ने ‘बाघराव’ को जागीर में व्याघ्रपल्ली (अन्हिलवाड़ा से 10 मील दक्षिण पश्चिम) (‘‘बाघेला गाँव) दिया था, जिसके आधार पर बाघराव की संतानें ‘‘बघेल/बाघेला/वाघेला/बाघेल" नाम से विख्यात हुई। बाघराव इससे संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने यह जागीर सिद्धराज जयसिंह के पुत्रों को देकर गुजरात से प्रस्थान किया। गुजरात के इस सोलंकी वंश का विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 

बाघराव को ‘‘बाघदेव’’ भी कहा जाता था, गुजराती में देव का अर्थ ठाकुर होता है। यही बाघदेव दक्षिण सोलंकी सम्वत् 631 यानी सन् 1233-34 में गुजरात से लाव लश्कर ले कर चलते हुए अनेक तीर्थों का भ्रमण तथा सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन करते हुए चित्रकूट पहुँचे । चित्रकूट में पहुँचकर उन्होंने आसपास के क्षेत्र को देखा। उस समय वहाँ पर कोई सुदृढ़ सत्ता नहीं थी। तरौंहा में चन्द्रावत परिहारों का राज्य था, जिसके राजा मुकुन्ददेव थे। कालिंजर भटों के राज्य के अन्तर्गत था। ‘बाघदेव’, जिन्हें ‘व्याघ्रदेव’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है, ने कालिन्जर से 16 मील उत्तर पूर्व की और पहाड़ी पर चन्देलों के  दुर्ग ‘‘मरफा’’ पर (जो कि समुद्र तल 1240 फुट ऊँचा था) अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और उन्होंने अपने रक्षार्थ अपने साथ आये हुए लोगों की जो बस्ती बसाई उसका नाम ‘‘बघेलवारी’’ पड़ गया । बांदा गजेटियर के अनुसार व्याघ्रदेव का प्रभुत्व इस किले के उत्तर में 15 मील (24 किमी.) ‘‘बघेल भवन’’ और दक्षिण में 15 मील (24 किमी) ‘‘बघेलन नाला’’ तक था। उस समय दिल्ली के सिंहासन पर कोई सुदृढ़ शासक नहीं था और आस पड़ोस के शासकों ने व्याघ्रदेव से किसी प्रकार छेड़-छाड़ नहीं की। परिणाम यह हुआ कि उन्होंने भटदेश के राजा से कालिंजर छीन लिया और साथ ही पड़ोसी मण्डीहा राजा को जीतकर उसका राज्य ले लिया। मण्डीहा रघुवंशी राजा था।
         गहोरा में लोधियों के राज्य को भी तिवारी ब्राह्मणों के सहयोग से व्याघ्रदेव ने अधिकार कर लिया । इसी लिए रीवा के तिवारी को "अधरजिया" कहते हैं । बाग़देव ने तिवारी ब्राह्मणों को अधराज देना चाहा तो तिवारियो ने लेने से मना कर दिया (हलाँकि इन बातों का कोई प्रमाण नही है) । अय्यास लोधी राजा के सलाहकार/मंत्री तिवारी ब्राह्मण थे जो व्याघ्रदेव से मिलकर लोधी राजा के साथ छलकर युद्ध मे हरवा दिया । 
इनका पाश्र्ववर्ती राज्य तरौंहा का था, जिसके शासक मुकुन्ददेव चन्द्रावत परिहार थे। उन्होंने अपनी इकलौती बेटी ‘‘सिन्दूरमती’’ का ब्याह व्याघ्रदेव के साथ कर दिया। इनके दूसरी कोई सन्तान भी न थी, अस्तु अपना राज्य भी इन्हीं को सौंप दिया। व्याघ्रदेव ने इसके पश्चात् परदवाँ और तरिहार प्रान्त भी जीत लिया। इस तरह 13वीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर ‘‘बाघेल’’ राजपूतों का आधिपत्य हुआ। व्याघ्रदेव का एक विस्तृत भू-भाग में अधिकार हो गया। इन्होंने अपनी राजधानी गहोरा में स्थापित की। गहोरा रीवा पठार के तलहारी क्षेत्र में स्थित था। वर्तमान समय में गहोरा बाँदा-चित्रकूट जिला, उत्तरप्रदेश में स्थित है। कर्बी से 14 मील पूर्व रयपुरा गाँव के निकट उसके दक्षिण में बह रही दो नदियों के मध्य ‘‘गहोरा खास’’ नामक गाँव बसा है। अभयराज सिंह परिहार ने ‘‘गहोरा का ऐतिहासिक अनुसन्धान’’ (पृष्ठ 17) में लिखा है कि, गहोरा का असली नगर नदी के दूसरे किनारे से प्रारंभ होता है, यहाँ महल, मन्दिर, कुएँ तथा नागरिकों की बस्ती के चिन्ह अभी भी पाये जाते हैं। यह हिस्सा अब ‘‘खेरवा’’ नाम से विख्यात है। उस समय इनके शासित प्रान्त की आमदनी अठारह लाख रुपये थी। गहोरा के दो हिस्से थे। एक तो ‘‘गहोराखास’’ और दूसरा ‘‘गहोराघाटी’’ था। व्याघ्रदेव की परिहारिन ठकुराइन से दो पुत्र हुए जिनमें जेठ कर्णदेव गहोरा के अधिकारी हुए और लहुरे पुत्र कन्धरदेव कसौटा और परदमा के ठाकुर हुए। व्याघ्रदेव (बाघराव) इस प्रदेश के बघेलों के आदि पुरुष हैं। जिन्होंने बघेलों की सत्ता इस प्रदेश में स्थापित की। इनका स्वर्गवास वि.सं. 1245 के आसपास हुआ। 


गुरुवार, 10 जून 2021

खाद्य तेल मंहगे क्यो हुए

कुछ समय से सरसों एवं अन्य खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ रही है ।  आखिरकार ऐसा क्यों हो रहा है? 
लेकिन सर्वप्रथम यह विचार करने की आवश्यकता है कि सरकार को क्या सुनिश्चित करना चाहिए - उत्पादकों को अधिक लाभ मिले या उपभोक्ताओं को सस्ता उत्पाद मिले ? द्वितीय,  किस बिंदु पर उत्पादकों और उपभोक्ताओं का हित एक हो सकता है?
अगर किसानों को सरसों के उत्पाद पे MSP से 25 प्रति शत अधिक दाम मिल रहा है, तो सरसों के तेल की कीमत कैसे कम रह सकती है?
फिर, सरकार ने पिछले वर्ष सरसों के तेल पे किसी प्रकार के खाद्य तेल के मिश्रण पर प्रतिबंध लगा दिया था।  यद्यपि यह प्रतिबंध तीन माह में रद्द कर दिया गया था, लेकिन सरकार ने पुनः 8 जून से सरसों के तेल के साथ किसी अन्य खाद्य तेल के मिश्रण पर प्रतिबंध लगा दिया है। दूसरे शब्दों में, "शुद्ध" सरसो के तेल में 20% तेल पाम वृक्ष का होता था जिसे मलेशिया एवं इंडोनेशिया से आयात किया जाता है। 
क्या हम सस्ते के चक्कर में मिलावटी तेल खाना चाहते है, वह भी उस देश का जो भारत का विरोध करता है; एक जिहादी को अपने यहाँ शरण दे रखी है?
अब कुछ तथ्य देखते है। 
अप्रैल 2021 में भारतीय बंदरगाहों पर पाम तेल की औसत कीमत 1,173 डॉलर प्रति टन थी, जो एक साल पहले 599 डॉलर थी। यानि कि मिलावट वाले तेल का दाम भी दोगुना हो गया है। 
पिछले वर्ष जून में सरसों बीज की मंडी में कीमत 46362 रुपये प्रति टन थी; आज 72500 रुपये है। सोया बीन 38208 रुपये बिका था; आज 72000 रुपये मिल रहा है। सूरजमुखी 47000 था; आज 68000 रुपये है। 
पिछले वर्ष जून में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोया बीन का 442 डॉलर प्रति टन मिल रहा था; आज 820 डॉलर में बिक रहा है। सरसों 214 डॉलर था; आज 320 डॉलर प्रति टन है।  
दूसरे शब्दों में, सभी जगह खाद्य तेल के उत्पादों में भारी उछाल है और हम चाहते है कि भारत में तेल सस्ता मिले। 
लेकिन एक अन्य बिंदु पर भी विचार करना आवश्यक है। 
आज हमारी प्रति व्यक्ति तेल की खपत लगभग 15-16 किलो प्रतिवर्ष है। इसका अर्थ है कि हमें लगभग 220-230 लाख टन की प्रति वर्ष आवश्यकता है। लेकिन भारत लगभग 80 लाख टन तेल का उत्पादन करता हैं।  अतः हमें अपनी आवश्यकता की पूर्ती के लिए लगभग 130 लाख टन पाम आयल और कुछ सोया तेल का आयात करना पड़ता हैं। 
तो क्या हम खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकते है? 
खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत में खाद्य तेल की खपत लगभग 20-21 किलो प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पे स्थिर हो जायेगी। इसका अर्थ है कि हमें प्रति वर्ष लगभग 300 टन तेल की आवश्यकता होगी और उस लक्ष्य तक पहुंचने का कोई आसान रास्ता नहीं है। 
इस कारण से तिलहन की कीमतों में उछाल आया हैं; सभी कीमतें एमएसपी से 15 से 25 प्रति शत अधिक हैं और किसानों के लिए यह अच्छी खबर है। लेकिन उपभोक्ताओं के लिए खराब। 
भारत में पारंपरिक तिलहन का प्रति हेक्टेयर लगभग 300-500 किलो तेल का उत्पादन होता हैं, चाहे वह सरसों, मूंगफली, बिनौला, या चावल की भूसी हो; जबकि पाम वृक्ष प्रति हेक्टेयर लगभग 3.5-4 टन तेल का उत्पादन करता है। जलवायु के कारण भारत में केवल 20 लाख  हेक्टेयर कृषि भूमि पे पाम वृक्ष उगाया जा सकता है।  लेकिन तब भी हम केवल 80 लाख टन पाम तेल लाख उत्पादन कर पाएंगे। अन्य तिलहनों की तुलना में पाम ऑयल में बड़ा निवेश करना पड़ता है और लगभग आठ वर्ष के बाद लाभ मिलना शुरू होता है। 
दूसरे शब्दों में, हमारा कुल तेल (पारम्परिक एवं पाम) उत्पादन केवल 160 लाख टन के आस-पास सिमट कर रह जाएगा, जबकि आवश्यकता 300 टन तेल की होगी। 
यहीं पर कृषि सुधारो का महत्त्व पता चलता है।  आज हम ऐसी फसलें (गेंहू, चावल, गन्ना) उगा रहे है जिनका उत्पाद आवश्यकता से कहीं अधिक है और जिनकी कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कहीं अधिक है। हालत यह है कि अगर हम आयात का गेंहू खाना शुरू कर दे, तो वह MSP के गेंहू से सस्ता पड़ेगा।
ऐसे में किसानो को अधिक तिलहन उगाने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा जिसे वे गेंहू, चावल, गन्ना से अपना ध्यान हटाए। 
तिलहन की अधिक कीमत उसी दिशा में एक कदम है।
लेख के साथ तिलहन एवं तेल के दाम की लिस्ट लगी है।
अमित सिंघल जी...