अन्ना से अलग होना, राजनीतिक पार्टी बनाना |
सेकुल्रिज़िम की तरफ झुकाव |
लोकपाल' का दामन छोड़ना
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जो उम्मीद दूसरों से, उस पर खुद खरे नहीं |
सबका विरोध? |
नीतियों में खामियां, साफगोई की कमी |
!! जो उम्मीद दूसरों से, उस पर खुद खरे नहीं !!
अरविंद केजरीवाल जी के कुछ सहयोगियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। लेकिन
केजरीवाल जी ने उनके खिलाफ एक आंतरिक जांच आयोग गठित कर कुछ दिनों बाद उन्हें
क्लीनचिट दे दी। जब यही काम दूसरी राजनीतिक पार्टियां करती हैं तो केजरीवाल जी
उन्हें भ्रष्ट बताते हैं। लेकिन जब यही आरोप उनके साथियों पर लगे तो
उन्होंने वही किया जो आम तौर पर अन्य पार्टियां भी करती हैं। लोकपाल आंदोलन
की वजह से केजरीवाल जी से जनता की उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं। ऐसे में उनसे
बेहतर बर्ताव की उम्मीद लोगों को रही होगी। लेकिन जब वे उसी रास्ते पर चलते
दिखे, जिस पर अन्य पार्टियां चल रही हैं तो उनकी लोकप्रियता को धक्का लगा।
आरोपों की जांच तक केजरीवाल जी अपने साथ खड़े उन साथियों को दूर कर सकते थे,
जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
!! नीतियों में खामियां, साफगोई की कमी !!
केजरीवाल जी की राय कई मुद्दों पर उलझी हुई है। कई अहम मुद्दों पर निर्णय
लेने के लिए वे जनमत की वकालत करते हैं। लेकिन केजरीवाल जी इस बात को क्यों
नहीं समझते हैं कि भारत जैसे 1.21 अरब आबादी वाले देश में यह आसान काम नहीं
है। वह भी तब जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा पढ़ा-लिखा नहीं है। इसके अलावा
आर्थिक मुद्दों पर उनकी जानकारी बहुत भरोसा नहीं जगा पाती है। मशहूर लेखक
चेतन भगत जी के मुताबिक, 'केजरीवाल को नई वैश्वीकृत विश्व अर्थव्यवस्था की
ज्यादा समझ नहीं है। उनकी विचारधारा विकास विरोधी वामपंथी विचारों के
ज्यादा करीब लगती है, जहां पर तमाम विदेशियों, बड़ी-बड़ी कंपनियों और अमीर
लोगों को बुरा और भ्रष्ट समझा जाता है, जबकि छोटे कारोबार तथा गरीब लोग
अच्छे माने जाते हैं। यह सोच भाषणों में तालियां बटोरने के लिहाज से तो खूब
कारगर हो सकती है, लेकिन राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा नहीं। भले
ही भारत आज भ्रष्टाचार मुक्त देश हो जाए, लेकिन तब भी हम एक अमीर देश नहीं
होंगे। सुनियंत्रित पूंजीवाद, खुली अर्थव्यवस्थाओं और मुक्त बाजारों ने
दुनियाभर में धन-संपत्ति निर्मित की है। हमें इन्हें मंजूर करना चाहिए,
ताकि भारत में भी ऐसा हो।' दिल्ली में बिजली-पानी के बिल का विरोध करते हुए
वे कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति बिजली का बिल न चुकाए। क्या ऐसी अपील से
निरंकुशता नहीं बढ़ेगी? क्या ऐसे मुद्दों पर कोर्ट के दरवाजे बंद हैं ?
!! अन्ना से अलग होना, राजनीतिक पार्टी बनाना !!
अन्ना हजारे से अलग होकर सामाजिक आंदोलनों की राह छोड़कर नई राजनीतिक
पार्टी बनाने के अरविंद केजरीवाल जी के फैसले की भी आलोचना हुई है। कई लोगों
का कहना है कि राजनीति से बाहर रहकर ही नेताओं और पार्टियों पर नैतिक दबाव
बनाया जा सकता है। उनके मुताबिक जब तक अन्ना और अरविंद साथ-साथ थे और उनका
आंदोलन सामाजिक था तब तक लोग उनके साथ थे। लेकिन जैसे ही अरविंद ने आप
पार्टी बनाई, वैसे ही कई लोगों की नजरों में उनकी नैतिक शक्ति खत्म हो गई
और वे भी उसी जमात में शामिल हो गए, जिनकी वे आलोचना कर रहे थे। इसके अलावा
पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ चुके पूर्व सैनिक अन्ना हजारे से अलग होने का
भी खामियाजा अरविंद को भुगतना पड़ रहा है।
!! लोकपाल' का दामन छोड़ना !!
कई लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल जी को लोकपाल कानून के लिए
आंदोलन को राजनीतिक या गैर राजनीतिक तरीके से चलाते रहना चाहिए था। लेकिन
आप पार्टी बनाने के बाद अरविंद ने कहा कि जब तक अच्छे लोग (जैसे उनकी
पार्टी के संभावित उम्मीदवार) संसद या विधानसभाओं में नहीं पहुंचेंगे तब तक
लोकपाल जैसे अन्य अच्छे कानून नहीं बनेंगे। अरविंद जी के इस बयान से कई लोगों
के बीच यह संदेश गया कि मौजूदा हालात में लोकपाल नहीं बन सकता और उन्हें
भ्रष्टाचार से मुक्ति जल्द नहीं मिल सकती। यह लोकपाल आंदोलन ही है, जिसकी
वजह से लोग अन्ना और अरविंद जी से जुड़े थे। लेकिन अरविंद के इस रुख से लोग
निराश हो गए और मीडिया ने भी अरविंद को ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया।
यार ये तो गलत है ..साथी भूखो मर रहा है 6 दिन से और है की होली के रंग गुलाल में मस्त ...! |