संघ ने लड़ी थी स्वतंत्रता की वास्तविक लड़ाई,सबूत सहित पढ़िए और कांगियों, वामियों, आपियों का मुझ बन्द करिये ।
टीवी पर चलने वाली बहस में या चुनावी भाषण में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हुए मिल जाएंगे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वातंत्र्य की लड़ाई में कुछ योगदान नहीं दिया है। संघ का योगदान दिखाई भी कैसे देगा जब आजादी का इतिहास ही कांग्रेस के चाटुकार इतिहासकारों ने लिखा हो। कोर्स की किताबों में, भारतीय स्वतंत्रता के ‘आधिकारिक रिकॉर्ड’ में षड्यंत्रपूर्वक संघ के महती योगदान की अनदेखी की गई है लेकिन आज भी ऐसे साक्ष्य हैं जो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि संघ ने स्वतंत्रता की लड़ाई में बराबरी का योगदान दिया था।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कांग्रेस के चाटुकार लेखकों की कलम चल रही थी तो कई देशभक्त लेखक थे जो सच्चे इतिहास को अपने लेखन में समेट रहे थे। समय गुजरने के साथ ही ये लेखक और इनकी किताबों को अप्रासंगिक कर दिया गया और गाँधी-नेहरू को ही आजादी का सच्चा सिपाही मान लिया गया। जब कांग्रेस ने संघ के योगदान पर सवाल खड़े किये तो कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने इस पर व्यापक शोध किया ताकि सत्य सबके सामने आ सके। व्यापक शोध और अध्ययन के बाद ये पता चला कि संघ के संस्थापक हेडगेवार जी ने गाँधी और नेहरू से अधिक योगदान स्वतंत्रता युद्ध में दिया था। आज आपको देश पर मर मिटी इन लेखकों की कलम न केवल पढ़ना चाहिए बल्कि प्रशंसा भी करनी चाहिए कि पैसों के लिए उन्होंने अपने राष्ट्रवाद को नहीं बेचा।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कांग्रेस के चाटुकार लेखकों की कलम चल रही थी तो कई देशभक्त लेखक थे जो सच्चे इतिहास को अपने लेखन में समेट रहे थे। समय गुजरने के साथ ही ये लेखक और इनकी किताबों को अप्रासंगिक कर दिया गया और गाँधी-नेहरू को ही आजादी का सच्चा सिपाही मान लिया गया। जब कांग्रेस ने संघ के योगदान पर सवाल खड़े किये तो कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोगों ने इस पर व्यापक शोध किया ताकि सत्य सबके सामने आ सके। व्यापक शोध और अध्ययन के बाद ये पता चला कि संघ के संस्थापक हेडगेवार जी ने गाँधी और नेहरू से अधिक योगदान स्वतंत्रता युद्ध में दिया था। आज आपको देश पर मर मिटी इन लेखकों की कलम न केवल पढ़ना चाहिए बल्कि प्रशंसा भी करनी चाहिए कि पैसों के लिए उन्होंने अपने राष्ट्रवाद को नहीं बेचा।
बालशास्त्री हरदास ने अपनी किताब ‘आर्म्ड स्ट्रगल फ़ॉर फ्रीडम’ के पेज नंबर 372 पर लिखा है ‘डॉ हेडगेवार जी ने 16 वर्ष की आयु में युवाओं में राष्ट्रीय घटनाओं पर चर्चा और क्रांतिकारी गुणों के विकास के लिए 1901 में चर्चा मण्डल “देशबंधु समाज “की शुरुआत की । इसी किताब के पेज नंबर पेज 374 पर वे लिखते हैं ‘डॉ हेडगेवार ने इस संगठन में शामिल होने के लिए जो प्रतिज्ञा रखी थी ..करितो संमित्र हो निश्च्च्ये ..अपर्णी देहास देश कारयी..अर्थात अपना शरीर और आत्मा मातृभूमि की सेवा में अर्पित करता हूँ। इसी किताब में एक जगह दर्ज है ‘रासबिहारी बोस, विपिनचन्द्र पाल, से डॉ हेडगेवार का परिचय था, अपनी देशभक्ति,संगठन कौशल,सात्विक चरित्र से हेडगेवार जी ने क्रांतिकारियों का दिल जीत लिया था।
1914 के क्रिमिनल इंटेलिजेंस के रिकॉर्ड में दर्ज है कि डॉ हेडगेवार जी को स्कूल में अंग्रेज अफसर के निरीक्षण के समय वन्देमातरम के नारे लगवाने , नागपुर के मॉरिस कालेज सहित 2000 छात्रों की हड़ताल कराने और भरी सभा मे अंग्रेजो से माफी मांगने से इनकार करने पर सर रेजिंलेण्ड क्रडोक के निर्देश पर पुलिस महानिरीक्षक सीआर क्लीवलैंड की अनुशंसा पर स्कूल से निष्काषित कर दिया गया। ये जानकारी 5 जुलाई 1914 के केसरी अख़बार और गोविंद गणेश आवडे के हवाले से भी दी गई है।
अंग्रेजी किताब पोलिटिकल क्रिमिनल हूज हु के पेज 97 में जानकारी दी गई है कि रामपायली में सन 1908 में अगस्त माह में डॉ हेडगेवार ने पुलिस चौकी पर बम फेंका ,जो निकट के तालाब पर फटा ,पर पुलिस के पास कोई सबूत नही था इसलिए गिरफ्तारी से बच गए। इसी स्थान पर अक्तूबर 1908 में दशहरे के रावण दहन कार्यक्रम में उन्होंने देशभक्ति पूर्ण जोशीला भाषण दिया ,पूरी भीड़ वन्दे मातरम का नारा लगाने लगी। डॉ हेडगेवार पर अंग्रेजो ने राजद्रोही भाषण आईपीसी धारा 108 में केस दर्ज कर लिया।
नई दिल्ली स्थितराष्ट्रीय अभिलेखागार के राजनीतिक भाग A जून 1910 की फाइल में दर्ज किया गया है कि ‘ 1909 में डॉ हेडगेवार यवतमाल आ गए यहां भी बांधव समाज की स्थापना ,पुलिस चौकी पर बम विस्फोट में नाम फिर डॉ हेडगेवार जी का आया पर सबूत नही मिला। डॉ हेडगेवार के विद्यालय को 1908 के अधिनियम 16 के तहत गैरकानूनी करार देकर बन्द कर दिया गया।
सन 1963 में कलकत्ता में प्रकाशित चक्रबर्ती की किताब ‘थर्टी इयर्स इन प्रिजन’ में उल्लेख किया गया है कि डॉ हेडगेवार जी का नाम उनकी देशभक्ति को देखकर क्रांतिकारी संगठन “अनुशीलन समिति “में जोड़ा गया। जोगेश चन्द्र चटर्जी की लिखी किताब इन सर्च ऑफ फ्रीडम में लिखा है ‘ डॉ हेडगेवार क्रांतिकारियों में ‘कोकेन’ के नाम से जाने जाते थे ,ओर “एनाटोमी”,उनके शस्त्र का छद्म नाम था ,क्रांतिकारियों में उनका सम्मान था। अतुल्य रत्न घोष ने 1941 में ‘मॉडर्न रिव्यू’ लिखी थी। इसमें लिखा गया है कि ‘प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामसुंदर चक्रवर्ती की पुत्री के विवाह में लोक सहायता ,मौलवी लियाकत हुसेन फेज केप की जगह गांधी टोपी पहनाना उनके उल्लेखनीय कार्य थे।
जीवी केतकर रनझुनकर और पी सी खान खोजे की लिखी मराठी किताब ‘यांचा चरित्र’ में लिखा है ‘ डॉ हेडगेवार बंगाल और मध्यप्रान्त के क्रांतिकारियों के बीच की कड़ी थे और नागपुर में शस्त्र छिपाकर लाया करते थे। 12 फरवरी 1916 में ‘हितवाद’ अख़बार की एक खबर में लिखा गया ‘ राष्ट्रीय मेडिकल कालेजो के छात्रों की क्रांतिकारी भूमिका के कारण यहां की डिग्री अमान्य करने के कारण नागपुर में डॉ हेडगेवार ने इस बिल के विरोध में प्रस्ताव पारित कराया जिससे अंग्रेजो को अपना निर्णय वापिस लेना पड़ा। इसी अख़बार की 29 जून 1918 को छपी खबर में लिखा गया ‘डॉ हेडगेवार जी ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजी सेना में युवकों की भर्ती का विरोध किया और जनजागरण किया’। इस अख़बार में 24- 20 दिसंबर 1933 की खबर में लिखा गया ‘ अंग्रेजी मध्य भारत सरकार के स्थानिय स्वशासन विभाग ने नोटिस जारी संघ के कार्यक्रमो को रोकने की कार्यवाही की’।
द इलेस्ट्रेड वीकली आफ इंडिया के 7-13 अक्टूबर 1979 के संस्करण में लिखा गया ‘ डॉ हेडगेवार जी नागपुर ओर वर्धा में सक्रिय गुप्त क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य थे । इसी तरह 25 जून 1940 को छपे केसरी अख़बार की एक खबर में लिखा गया ‘ देश प्रेम के भाव के कारण डॉ की डिग्री हासिल करने ,और परिवार की आर्थिक स्थिति दरिद्रता में होने पर भी प्रेक्टिस ओर नौकरी छोड़ दी। इसी अख़बार में 5 जनवरी 1939 को छपी खबर में लिखा गया ‘डॉ हेडगेवार जी के नेतृत्व में संघ के सामाजिक कार्यो से प्रेरित होकर संघ के समर्थन में नागपुर नगर पालिका ने 10 मार्च 1921 समर्थन भी पारित किया। नागपुर में 30 दिसम्बर 1938 को संघ के कार्यक्रम में 15000 से अधिक लोग उपस्थित थे’।
‘महाराष्ट्र अख़बार’ के 2 फरवरी 1921 के अंक में उल्लेख किया गया कि ‘ डॉ हेडगेवार असहयोग आंदोलन में कांग्रेस की नागपुर आंदोलन समिति में रहे और 11 नवम्बर 1920 से एक सप्ताह “असहयोग सप्ताह “के रूप में आयोजित कर सरकार के राजस्व को खत्म करने के लिए नशाबंदी आंदोलन चलाया। इसी अख़बार के 20 अप्रैल 1921 के अंक में लिखा गया ‘ डॉ हेडगेवार पर आमसभाओं में भाग लेने पर नोटिस दिया गया लेकिन डॉ हेडगेवार ने खुला उल्लंघन किया।
राष्ट्रीय अभिलेखागार की फाइल नंबर ’28 /1921 राजनीतिक भाग’ में लिखा गया है ‘ डॉ हेडगेवार पर अक्टूबर 1920 में काटोल ओर भारत वाड़ा की सभाओं में अंग्रेज विरोधी भड़काऊ भाषणों ओर 1908 के उग्र लेखन को लेकर आईपीसी धारा 108 के अंतर्गत मई 1921 में राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। डॉ हेडगेवार ने योजना पूर्वक अपनी पैरवी स्वयं की। उन्हें 1 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। ‘पूर्वोक्त’ किताब में उल्लेख है ‘डॉ हेडगेवार ने जेल में भी अनेक कष्ट झेलते हुए हिद धर्म की जागृति की ,गीता महाभारत का पाठ बंदी साथियो को सुनने और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में हड़ताल की ,11जुलाई 1922 को जेल से रिहा हुए। इसी किताब में लिखा है ‘ भारत मे अंग्रेजी सरकार के सचिव एम जी हैलेट ने 27 जनवरी 1933 को आरएसएस के बारे में जानकारी लेने एवम गतिविधियों को रोकने के निर्देश दिए ओर डॉ हेडगेवार को संघ का हिटलर कहा। अभिलेखागार की फाइल ’88/33’ में लिखा है ‘ संघ को मिले समर्थन को देखकर सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखा में जाने पर अंग्रेजो ने रोक लगा दी थी’।
डॉ हेडगेवार ने जेल से बाहर आकर “स्वातंत्र्य” नामक समाचार पत्र का सम्पादन किया और अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया पत्र की पाठक संख्या 1200 हो गयी ।हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग , साइमन कमीशन का विरोध, सविनय अवज्ञा आंदोलन ,जंगल सत्याग्रह ,पुसद सत्याग्रह में भाग लिया। 21 जुलाई 1931 को पुनः गिरफ्तार कर आईपीसी की धारा 117 के अंतर्गत उन पर मुकदमा चलाया गया और फिर से 9 महीने के सश्रम कारावास की सजा हुई 14 फरवरी 1931 को जेल से रिहा हुए। डॉ हेडगेवार ने भागानगर सत्याग्रह ,रामसेना ,जैसे विवादों का सामना किया आरएसएस की स्थापना की।एच एम घोड़के की लिखी किताब ‘रिवोल्यूशनरी नेशनलिज्म इन वेस्टर्न इंडिया’ में उल्लेख है ‘ अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारी राजगुरु को भूमिगत रहने एवम अन्य सहायता प्रदान की।
भारत की आजादी का इतिहास लिखने वालों ने तो भगत सिंह को भी आतंकवादी करार दे दिया। चंद्रशेखर आजाद को भी सम्मान नहीं दिया जो चटगांव से लेकर पेशावर तक क्रांतिकारियों के नेता थे । तमाम प्रकार के क्रांतिकारियों के साथ में भेद भाव अपमानजनक व्यवहार आजादी के बाद भी होता रहा । आज भाजपा विरोध के कारण संघ विरोधवाद अपनाने वाले न केवल तथ्यों से परहेज कर रहे हैं बल्कि उन हूतआत्माओं के साथ में भी अन्याय है। यह उन शहीदो के साथ में अन्याय है। जिन्होंने आजादी की लडाई में अपना अमूल्य योगदान दिया। लाखों अनाम ऐसे शहीदों ने अपना नाम ना पत्थरों पर ना इतिहास के पन्नों पर लिखवाने की चाह रखी।
ब्रिटिश हुक्मरानों को संघ की योजना की भनक तक नहीं लग पाती थी। ब्रिटिश गुप्तचर विभाग इस बात से परेशान था कि वह संघ के अंदरुनी मामलों की जानकारी प्राप्त नहीं कर पा रहा है। राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित ब्रिटिश गुप्तचर विभाग की 1942-43 की रिपोर्ट बताती है कि संघ के इतिहास में पहली बार नागपुर के ग्रीष्म शिविर में एक विशेष सेंसरशिप विभाग की स्थापना की गई। बाहर जाने वाली डाक की पूरी तरह जांच-पड़ताल की गयी। मुंबई के संघ कार्यालय में प्रवेश पत्र प्रणाली का गठन किया गया है। मेरठ में मई माह में हुए संघ शिक्षा वर्ग में भाषणों के समय दरवाजे बंद कर दिये जाते थे। केवल विशेष पास वालों को ही भीतर प्रवेश दिया जाता था। बनारस के अधिकारी शिक्षा शिविर में भी यही सब सावधानियां बरती गईं। यहां शिक्षार्थियों को भाषणों एवं चर्चा के लिखित नोट्स न लेने का आदेश दिया गया।
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्व का था। केवल अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्तों को पकड़वा रहे थे। ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्ली के संघचालक लाला हंसराजगुप्त के यहां आश्रय प्राप्त करते थे। ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने 1943 के अन्त में संघ के विषय में जो रपट प्रस्तुत की, वह राष्ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है, जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजना पूर्वक स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है।
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