"जय हिन्द" के नारे की शुरूआत जिनसे होती है, उन क्रांतिकारी 'चेम्बाकरमण पिल्लई' का जन्म 15 सितम्बर 1891 को तिरूवनंतपुरम में हुआ था. गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के के दौरान "जय हिन्द" को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया. 1908 में पिल्लई जर्मनी चले गए. अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की. प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो - उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला.
पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब "जय हिन्द" से उनका अभिवादन किया. पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए. इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था, उनमें भारतीय सैनिक भी थे. 1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया. आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया तब हुसैन ने "जय हिन्द" का सुझाव दिया. उसके बाद 2 नवम्बर 1941 को "जय हिन्द" आजाद हिंद फ़ौज का युद्धघोष बन गया. जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा.
जय हिन्द.... दय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया.