गुरुवार, 16 नवंबर 2023

गांधी मुस्लिम समुदाय के समर्थक क्यों थे ??

प्रो. के एस नारायणाचार्य ने अपने पुस्तक में कुछ संकेत दिए हैं ...

यह वात सभी जानते हैं कि - नेहरू और इंदिरा मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते थे। लेकिन बहुत कम ही लोग गांधीजी की जातिगत जड़ों को जानते हैं...!! आइए यहां एक नजर डालते हैं कि वे क्या कारण देते हैं...!?

1. मोहनदास गांधी करमचंद गांधी की चौथी पत्नी पुतलीबाई के पुत्र थे।

पुतलीबाई मूल रूप से प्रणामी संप्रदाय की थीं । यह प्रणामी संप्रदाय हिंदू भेष में एक इस्लामिक संगठन है...।
 
2. मि. घोष की पुस्तक "द कुरान एंड द काफिर" में भी गांधी की उत्पत्ति का उल्लेख है...।

मोहनदास गांधी जी के पिता करमचंद एक मुस्लिम जमींदार के अधीन काम करते थे । एक बार उसने अपने जमींदार के घर से पैसे चुराए और भाग गया । फिर मुस्लिम जमींदार करमचंद की चौथी पत्नी पुतलीबाई को अपने घर ले गया और उसे अपनी पत्नी बना लिया । मोहनदास के जन्म के समय करमचंद गान्धी तीन साल तक छिपे रहे..।

3. गांधीजी का जन्म और पालन- पोषण गुजराती मुसलमानों के बीच में ही हुआ था।

4. कॉलेज (लंदन लॉ कॉलेज) तक की उनकी स्कूली शिक्षा का सारा खर्च उनके मुस्लिम पिता ने ही उठाया !!

5. दक्षिण अफ्रीका में गांधी की कानूनी प्रक्टिस ओर वकालत करवाने वाले भी मुसलमान थे !!

 6. लंदन में गांधी अंजुमन-ए- इस्लामिया संस्थान के भागीदार थे...। 

इसलिए, यह नोट करना आश्चर्यजनक नहीं है कि गांधीजी का झुकाव मुस्लिम समर्थक क्यू था...!?

उन गान्धी का आखिरी स्टैंड था: ✒️
☆ "भले ही हिंदुओं को मुसलमानों द्वारा मार दिया जाए, हिंदु चुप रहें उनसे नाराज न हों। 
☆ हमें मौत से नहीं डरना चाहिए। 
☆ आइए हम एक वीर मौत मरें।"  
इसका क्या मतलब है?

स्वतंत्रता संग्राम के किसी भी चरण में गांधीजी ने हिंदुत्ववादी रुख नहीं अपनाया । वह मुसलमानों के पक्ष में ही बारंबार बोलते रहे।
जब भगत सिंह और अन्य देशभक्तों को फाँसी दी गई तो गांधीजी ने उन्हें फांसी न देने की याचिका पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया ।
हमें ध्यान देना चाहिए कि ऐनी बेसेंट ने खुद इसकी निंदा की थी...
मोहन दास गांधी के अंडरस्टैंड ::
1. स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद का बचाव किया...
2. तुर्की में मुस्लिम खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था । जिससे डा. हेगड़ेवार ने गांधी से नाता तोड़ लिया और आर.एस.एस. की स्थापना की..!
3. सरदार वल्लभभाई पटेल के पास पूर्ण बहुमत होने पर भी गांधी ने एक कट्टर मुस्लिम जवाहरलाल खान नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया..!! 
तत्कालीन 40 करोड़ भारतवासियों को बेवकूफ बनाकर उस मुस्लिम के नाम के पीछे पंडित का तमगा लगाया , ताकि मूर्ख अज्ञानी हिंदुओं को पागल बनाया जा सके...!!
4. पाकिस्तान विभाजित को 55 करोड़ रुपए देने के लिए अनशन भी किया..।।
5. हमेशा मुसलमानों का तुष्टीकरण किया ओर हिंदुओं का अपमान किया...॥ 
हिन्दुओं को भारत में छोटे दर्जे का नागरिक माना...। जो आज भी उसके गांधीवादी राजनीतिज्ञों द्वारा जारी रखा जा रहा है...।।

🙏 वंदे भारतम् 🇮🇳

_उपरोक्त कथन सत्य पर आधारित है, कृपया इसे मिथ्या न समझें । आवश्यक हुई तो उक्त ग्रंथ : 
"द कुरान एंड द काफिर" को आप किसी लाइब्रेरी में जाकर अध्ययन कर सकते हैं...॥_

🚩 जय हिंद, जय भारत🚩

बुधवार, 15 नवंबर 2023

साम्यवादी आक्रमण और भारत

सीताराम गोयल लिखते हैं, "भारत अंग्रेजों और मुसलमानों से बच गया यह आश्चर्य का विषय नहीं है, वह साम्यवादी आक्रमण से बच गया यह हमारे देश का सौभाग्य और संसार की सबसे आश्चर्यजनक घटना है।"
सीताराम गोयल जैसे महान विद्वान के इस मूल्यांकन के पीछे उनका अनुभव है। वे स्वयं इस आक्रमण का हिस्सा रहे हैं और उन्होंने कई जगह इस भयानक आक्रमण की चर्चा की है। यह इतना सुनियोजित, इतना शातिर और इतना शक्तिशाली था कि आज भी हम उसके थपेड़ों को झेलते हैं।।
100 साल के इस आक्रमण ने हिन्दुओं को सर्वथा बेहोश, विवेकशून्य और हीनभावना से ग्रस्त बना दिया।

एक उदाहरण: 
विश्वनाथ 1917 में जन्मा और 1939 में उसने दिल्ली प्रेस क्लब की स्थापना की। दुर्भाग्य से इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। आजकल इसके बेटे बेटियां (नाथपरिवार) संभालते हैं। वह एक घनघोर हिन्दू द्रोही, खांटी कम्युनिस्ट व्यक्ति था जो निरन्तर हिन्दू धर्म के खिलाफ लिखता रहा।
क्या यह बिना रूसी सहयोग के सम्भव था? उनकी एक दर्जन से अधिक पत्र पत्रिकाएं निकलती है।
चंपक, सरस सलिल, मुक्ता, सरिता, कारवाँ.... इत्यादि। किसी समय पूरी हिंदी पट्टी की कुल पत्रिकाओं का 60% विज्ञापन राजस्व इन्हें मिलता था।
आज का प्रत्येक 40प्लस व्यक्ति कभी न कभी इसका पाठक रहा है।
इसकी पत्रिकाओं में कुछ स्थायी स्तम्भ होते थे जैसे "ऐसी कैसी परम्परा" में हिंदुओं की उन परम्पराओं का मजाक उड़ाया जाता था जो उनमें प्रचलित थी। कुछ पाठक उन्हें पत्र लिखकर बताते थे और वह छप जाता था। ज्यादातर महिलाएं होती थी। जैसे शादी में सास द्वारा दूल्हे की नाक खींचने का या विदाई के समय रोने का अथवा कोई व्रत उपवास कथा इत्यादि का।
यह सब इतने मनोरंजक तरीके से लिखा जाता था कि और कुछ पढ़े न पढ़े, इसे अवश्य पढ़ा जाता था।
तुलसीदास को पथभ्रष्टक दिखाने के आलेख लगभग हरेक पत्रिका में होते थे। इस विषय पर मुकदमा भी चला था।
प्रत्येक अंक में एक कहानी ऐसी अवश्य होती थी जिसमें कोई साधु या तांत्रिक बलात्कार करता था। इस घटना को काफी रस लेकर लिखा जाता था जैसे --- साधु की उंगलियां बहू के नङ्गे जिस्म पर रेंग रही थी.... एक स्टोरी या अनुभव ढोंगी पंडित को समर्पित रहता था। ज्योतिषी पर अनंत कहानियां होती थी। सूदखोर लाला भी इन्हीं का कॉन्सेप्ट था। दलित की नव ब्याहता को सुहागरात से पहले ठाकुर अपनी हवेली ले जाता है, मन्दिर का पुजारी देवदासी रखता है, दान के पैसे से मौज मस्ती और कुंए से पानी न भरने देना, खेत में बेगार मजदूरी करवाना, स्कूल में अलग मटकी, दलित को घोड़ी पर न बिठाना इत्यादि इनकी कहानियों की विषयवस्तु रहते थे।
युवाओं को सॉफ्ट पोर्न और अधनंगी तस्वीरे दिखाई जाती। हाई स्कूल के बच्चे इनकी किताबो से ऐसे फोटू काटकर अपनी किताबों में छिपाकर रखते। हस्तमैथून पर इनकी मेडिकल एडवाइजरी होती। हरेक पर्व त्यौहार पर उपदेश और मजाक उड़ाने का सिलसिला इसी ने आरम्भ किया था। इतना सब होने के बावजूद कभी भी exmuslim जो मुद्दे उठाते हैं उनका कोई जिक्र नहीं होता। कभी भी कांग्रेस के किसी घोटाले या परिवारवाद पर कहानी न लिखी।
अब्दुल अच्छा और रहीम चाचा का बलिदान भी इन्हीं की बनाई परम्परा है। सास बहू सीरियल और परिवार विघटन के एकता कपूर सीरियल के बीज इन्हीं पत्रिकाओं में बोए गये थे।
इनका व्याप्त और बौद्धिक दबदबा इतना था कि हर रेलवे, बस स्टैंड इनके साहित्य से अटा पड़ा रहता। लोग टाइमपास के लिए इसे पढ़ते और आगे शेयर करते।
इन्हीं के कथन को फिल्मों द्वारा, कवियों द्वारा, पाठ्यक्रम द्वारा पुष्ट किया जाता। एक एक विषय पर परिचर्चा होती। अमेरिका और रूस प्रयोजित एनजीओ लगातार इस पर सेमिनार करवाते। आज के रवीश, बरखा, ध्रुव राठी, अपूर्वानंद, केजरीवाल, ये सब उसी की उपज हैं और आज भी वहीं से कंटेंट लेते हैं।
इनकी पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से 5 से 85 वर्ष के प्रति सप्ताह करोडों हिन्दू निरन्तर एन्टीहिन्दूडोज ले रहे होते। लगभग 75 वर्ष तक यह सिलसिला चला। जब इंटरनेट और सोशल मीडिया आया, इन्होंने सोचा अब इनके कार्य को गति मिलेगी। करोड़ों साधनों से हिन्दुओं पर एंटीहिन्दू की #अग्निवर्षा की जाएगी।
ऐसा हुआ भी। 2010 तक ये जीत रहे थे। निराशा की भयंकर व्याप्ति हो गई थी। लेकिन सत्य तो सत्य ही होता है। 2012 कि बाद, बहुत थोड़ी संख्या में , बहुत अल्प साधनों से, अपने अनगढ़ कॉन्टेंट के साथ कुछ लोग आगे आये औऱ आज देखते देखते इनमें से कई तोपों को फुस्स कर दिया और ज्यादातर खदेड़ दिए गए।
मैंने यहाँ केवल एक मीडिया घराने के बारे में बताया है। ऐसे हजारों हमले हुए और चल रहे हैं।
जब सीताराम गोयल यह कहते हैं कि ये सबसे बड़ा हमला था तो सच में यह भयावह था। आप इसका पूरा ताना बाना जानेंगे तो भारतभूमि और हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा और बढ़ जाएगी। साथ ही यह भी समझ पाओगे कि आरएसएस ने कितनी प्रतिकूलताओं में अपने विचार को न केवल सुरक्षित रखा, उसे स्थापित भी किया।
#NSB 

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

सनातन संस्कृति और विश्व अर्थव्यवस्था ।

दुनिया को मजबूरी में भारतीय संस्कृति को अपनाना होगा ।
कुछ स्थूल उदाहरण रखता हूँ, सूक्ष्म बातें फिर कभी :-
(1) अपनी अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने के लिए विकसित देश समय समय पर दुनिया में कृत्रिम युद्ध का माहौल खड़ा करते हैं। उनके पास शांति की अर्थव्यवस्था का कोई विकल्प नहीं है। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद जो ईसाई संस्कृति की लूट का तरीका है और गजवा, जिहाद इत्यादि इस्लामिक लूट का तरीका।
क्या कोई शांति की अर्थव्यवस्था भी है? कुम्भ के मेले हों या कावड़ यात्रा। अभी अयोध्या में भी कुछ बड़ा होगा। ये सारे धार्मिक आयोजन अर्थव्यवस्था के महान उद्धारक हैं।
 भारत में अकेला दीपावली का त्यौहार इतनी इकोनॉमी खड़ी कर देता है जितनी पाकिस्तान की एक वर्ष की जीडीपी है।
सभी देश अपने देशों में दीपावली मनाना चाहते हैं। वे शुरू कर रहे हैं। पाकिस्तान ने भी दीपावली मनाने का निर्णय लिया है। सऊदी और व्हाइट हाउस के आधिकारिक एजेंडे में वह पहले से ही है।
इसके अलावा यूरोप अब मंदिरों पर आधारित मेले आयोजित कर रहा है क्योंकि उससे एक निरापद अर्थतंत्र का नियमित व निरन्तर सिलसिला चालू हो जाता है।
संसार के अद्यतनअर्थशास्त्री हैरान हैं कि यह आइडिया उन्हें पहले क्यों नहीं आया?
(2)यही हाल स्वास्थ्य को लेकर है।
आप नित्य जिम नहीं जा सकते, प्रवचन नहीं सुन सकते जबकि शरीर और दिमाग खतरनाक कोलाहल से भर गया है:- आपको योग की शरण लेनी होगी जिसमें थोड़ा सा समय निकाल कर स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों को दिनचर्या में शामिल किया गया है। आयुर्वेद भी दुनिया की नई मजबूरी बनने जा रहा है। उपवास, पर्यटन, वेगन, हर्बल का बोलबाला यूँ ही नहीं है।
(3)इन्द्रिय सुख की नीरसता भी दुनिया को समझ आ रही है। भारत के अलावा ज्यादातर स्थानों पर यही माना जाता है कि सेक्स के मजे से बड़ा आनंद दुनिया में कुछ भी नहीं है।
यूरोप की ओपन कल्चर या इस्लाम का 72 हूर का कॉन्सेप्ट, सबमें जननांगों द्वारा सुख लेने के कई हथकंडे भरे पड़े हैं। 6साल से लेकर 96 साल तक इन्द्रिय भोग में सर्वथा लिप्त रहकर, सैकड़ों विपरीत लिंगियों की व्यवस्था करके भी, समलैंगिक और विकृत यौन संबंधों के बावजूद मानव मन अतृप्त और उत्पीड़ित है। वियाग्रा और वाइब्रेटर के बावजूद जो उन्हें चाहिए था वह नहीं मिला।
और समाधान मिला, पूरब के उस हरि कीर्तन में, जहां एक मुरलीवालेग्वाले के स्टेच्यू के सामने ढोलक, खड़ताल हारमोनियम लिए हरे राम हरे कृष्ण पर झूमता जनसमूह, मात्र आधे घण्टे के सत्संग और नाच के बाद समग्र संसार मिथ्या लगने लगता है, सारे विषय भोग फीके पड़ जाते हैं और अतृप्त मन को एक असीम सुख मिलता है। भारत ऐसी विधियों का खजाना है। ज्यों ज्यों अशांति बढ़ेगी, लोग अधिकाधिक हाथ पैर मारकर इधर दौड़े चले आएंगे।
(4) छवि निर्माण के लिए करोड़ों रुपए व्यय करके संसार ने कुछ काल्पनिक, थोथे नायक खड़े किए, कम्पनियों को हायर किया, टीम लगाई, लेखक, पत्रकारों को लालच देकर झूठी किताबें लिखवाई, पुरस्कार दिलवाए लेकिन वे सब, उस समय ठगे से रह गए जब देखा कि 26 साल का एक सुंदर सा लड़का, बागेश्वर बाबा बनकर, खेल खेल में ही करोड़ों दिलों में स्थापित हो गया। अब सभी सिर धुन रहे हैं कि वह क्या तत्त्व है जो इस व्यक्ति के पास है लेकिन उनके पास नहीं। उस तत्त्व की खोज में सारे आलोचक और आविष्कारक पागल बने घूम रहे हैं।
(5) संसार के बड़े बड़े राजनेता, जिनकी तुती बोलती है, जिन्हें जबरदस्त प्रशिक्षण, अनुभव और बैक सप्पोर्ट मिला है, अचानक इस बात से हैरान हैं कि मांगकर खाने वाला, चाय बेचने वाला, जंगल की खाक छानने वाला, जिसका न घर है न ठिकाना और देश का प्रधानमंत्री बन जाता है, मात्र 10 वर्षों में विगत 1000 वर्षों के नुकसान की भरपाई कर देता है और जाने से पहले एक स्थायी, दृढ़, निरापद व्यवस्था का विकल्प देकर जाना चाहता है, ऐसा क्या है इसमें ? इसके सामने तो सारे कयास धरे के धरे रह गए। इसने तो रेत में से तेल निकाल दिया।

यहाँ मात्र कुछ उदाहरण दिए हैं। पूरी दुनिया भारत और भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर रही है कि कुछ सूत्र उन्हें भी मिलें।
और वे सभी अंततः इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि बिना भारतीयता, बिना हिन्दू दृष्टि के,बिना सनातन पद्धति के, आगे के सभी द्वार बंद हैं।
मजबूरी में ही सही, उन्हें भारत को अपनाना ही होगा।
और जो देश जितना जल्दी इस पर आएगा, उतना फायदे में रहेगा।
झक मारकर दुनिया भारत को स्वीकार करेगी। 
नान्यः पन्थाः विद्यते अयनाय।
दूसरा कोई मार्ग ही नहीं है। आयातित आसुरी विचारों की चवन्नियां चल गई तब चल गई, अब ग्लोबल का जमाना है और संसार को एक साझा निरापद विकल्प की तलाश है।
गर्व कीजिए कि आप उस परम्परा के वाहक हैं ।
#कुमारsचरित
#NSB 

गुरुवार, 9 नवंबर 2023

गद्दारी / भ्रष्टाचार की सजा..

भ्रष्ट्राचारियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, उसका उदाहरण हमारे इतिहास में घटी एक घटना से मिलता है। यह सजा भी किसी राजा या सरकार द्वारा नही बल्कि उसके परिजन द्वारा ही दी गई। 
ई.सन 1311 में जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के फलस्वरूप पारितोषिक स्वरूप मिला धन लेकर विका दहिया खुशी खुशी अपने घर लौट रहा था। इतना धन उसने पहली बार ही देखा था। चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से रहेगा। हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे। उसकी पत्नी हीरादे सोने चांदी के गहनों से लदी रहेगी। अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी। घर पहुंचकर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई।
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फौज का अचानक जालौर की तरफ वापस मुड़ने का राज समझ आ गया। वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी की है। यह धन उसे इसी गद्दारी के पारितोषिक स्वरूप प्राप्त हुआ है।
उसने तुरंत अपने पति से पुछा- क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है?
विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व खुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया। उसे तत्काल समझ आ गया कि उसका पति भ्रष्ट्राचारी है। उसके पति ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है और अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है। हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी-  अरे! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने देश के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई? 
क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था? 
अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई? 
क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले राष्ट्रधर्म को भूल गए?
विका दहिया ने हीरादे को समझाने का प्रयास किया हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी? पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी। विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध को और ज्यादा भड़काने का ही कार्य किया।
हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई। उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी। उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे। इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे। जालौर दुर्ग की रानियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य, छोटे छोटे बच्चों के रोने कलपने के दृश्य। उसे उन योद्धाओं के चेहरे के भाव, जिनकी पत्नियां उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी, स्पष्ट दिख रहे थे। साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे। एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका भ्रष्ट्राचारी राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था।
ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई। उन वीभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी। उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इस सबका जिम्मेदार था।
हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था। उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया। उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति। उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग। आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि- "अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए। गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है।"
मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था। उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़प उठे। हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठाकर एक झटके में अपने गद्दार और देशद्रोही पति का सिर काट डाला।
हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर लुढक गया। 
वह एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर अपने राजा कान्हड़ देव के समक्ष उपस्थित हुई और अपने पति द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी।
कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर गर्व करते हुए अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द के लिए चल पड़े।
हीरादे अनायास ही अपने पति के बारे में बुदबुदा उठी-
"हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ"
अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा।
इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व भ्रष्टाचार का दंड देने से नहीं चूकी।
देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने देशद्रोह के लिए अपने पति को मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो। देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता।
काश आज हमारे देश में भ्रष्ट्राचार में लिप्त बड़े बड़े अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हीरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम न करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से तो रोक सकती ही है!!