मंगलवार, 19 जून 2018

गृहयुद्ध शुरू हो चुका है।


अधिकतर मध्यमवर्गी हिंदू अभी भी अपने आरामदायक कमरों में शांति से बैठे हैं और सोचते हैं कि मुस्लिम पृथकतावाद और आतंकवाद कुछ भटके नौजवानों कीतक सोच है। ये वर्ग हिंदुओं का सबसे बड़ा कायर वर्ग मुस्लिमों की ढाल है।
उन्हें दिख ही नहीं रहा कि केरल, कर्नाटक, बंगाल और असम धीरे धीरे कश्मीर बनने की कगार पर हैं और फिर एक और विभाजन की मांग।
दूसरी ओर हैं कुछ कथित राष्ट्रवादी जो हर मुद्दे पर बस मोदी और भाजपा को कोसकर सोचते हैं कि आज हमने राष्ट्र की बड़ी सेवा की है जबकि जमीनी हकीकत में कुछ करने के नाम से दासियों व्यवहारिक कठिनाइयां गिना देते हैं।
अगर आप स्वयं को इस कायर हिंदू वर्ग और इस खोखले शब्दवीर हिंदू वर्ग में नहीं मानते तो अपनी मातृभूमि को एक और विभाजन से बचाने के लिये कुछ सार्थक और सक्रिय काम कीजिये।
अगर आप इस निर्णायक युद्ध को जीतना चाहते हैं और अपनी पवित्र मातृभूमि को इन नरपिशाचों के खूनी हाथों में जाने और इस हिंदू भूमि को पाकिस्तान में परिवर्तित होने से रोकना चाहते हैं तो इस युद्ध में सक्रिय भाग लीजिये और इसका सबसे आसान तरीका है , उनके तरीके को उन पर ही पलट देना और वो है--
----- गांधी का असहयोग आंदोलन -----
अशांतिदूतों से असहयोग! उनका आर्थिक सामाजिक बहिष्कार।
आर्थिक व सामाजिक बहिष्कार का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं कि आप हमेशा नुकसान झेलें।
आर्थिक बहिष्कार को अहिंसाव्रत की तरह लें ।
जैसे अहिंसा का मतलब है यथासंभव जीवों के नुकसान पहुंचाने से बचाना उसी तरह आर्थिक बहिष्कार से तात्पर्य है स्वयं को नुकसान से बचाकर जितना संभव हो इन्हें आर्थिक चोट पहुंचाना।
जैसे ---
1-- दूध, फल, सब्जी आदि कभी भी किसी 'अशांतिदूत' ठेले वाले से ना खरीदें भले ही वो पड़ौसी हिंदू ठेले वाले से सस्ता क्यों ना बेच रहा हो। (और इसे दोंनों के सामने खुलकर जाहिर भी करें ताकि हिंदू ठेले वाले में भी हिन्दुत्व पर क्रियात्मक विश्वास जमे और अशांतिदूत हतोत्साहित हो)
2-- अगर मुहल्ले में अकेली दुकान भी 'शांतिदूत' की हो और कितना भी मीठा बोलता हो बहुत इमरजेंसी को छोड़कर उसकी दुकान से सामान कभी ना खरीदें।(उम्मीद है हिन्दुत्व की खातिर बाजार तक जाकर टांगों को कष्ट दे सकेंगे या थोड़ा पेट्रोल और जला लेंगे)
3-- अशांतिदूत नाइयों का बहिष्कार करें।
(ये अल तकिया और 'इंसानियत की चर्चा' के बहुत बड़े अडडे हैं।)
4-- अशांतिदूतों की टैक्सी, टायर पंक्चर दुकानों का बहिष्कार भले ही नया टायर क्यों ना खरीदना पड़े।
घर पर किसी शांतिदूत प्लम्बर, मिस्त्री, इलेक्ट्रीशियन को भूलकर भी न बुलायें चाहे वह सालों का विश्वसनीय क्यों ना हो।
(उम्मीद है कुछ परेशानी और चंद रुपये ज्यादा तो आप हिन्दुत्व की खातिर खर्च कर ही सकते हैं)
#ये बहिष्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ग के लड़के लवजेहाद में सबसे ज्यादा संलग्न पाये गये हैं
5-- 90% मांसाहारी भोजनालय अशांतिदूतो के होते हैं। अगर आप मांसाहारी हैं उनका बहिष्कार कर सरदारों या हिंदूओं के ढाबों पर जायें चाहे थोडा मंहगा ही क्यों ना पड़े।
घर पर पकाना हो तो हिंदू कसाइयों से खरीदें और अगर वो नहीं हैं तो या तो खुद काटें या और बेहतर होगा कि अपने चटोरेपन को हिन्दुत्व की खातिर काबू में रखें। (अगर इतना भी नहीं कर सकते तो फर्जी हिंदुत्व का पाखंड बंद कीजिये)
6-- अशान्तिदूतों की कोचिंग्स, टीचर्स का बहिष्कार करें। हिंदू कोचिंग संचालकों से साफ साफ शर्त रखें कि उनका बच्चा किसी अशांतिदूत टीचर से नहीं पढ़ेगा।
स्वयं अपने बच्चों को विशेषतः लड़कियों को पद्मावती के जौहर, गुरु तेगबहादुर के बलिदान, दशम गुरु के दीवार में चिनवाये गए साहिबजादों के बलिदानों , शम्भाजी महाराज की क्रूरतापूर्ण हत्या का विस्तृत वर्णन करें।
नजदीक स्थित किसी विध्वंसित हुए मंदिरों व तोड़ी गई मूर्तियों को दिखाकर व नालंदा की कहानी सुनाकर उनके मन में आक्रोश पैदा करें।
7-- हमदर्द जैसी कंपनी जिनके मालिक अशांतिदूत हैं उनके उत्पाद व सेवाओं का 'यथासंभव' बहिष्कार करें।
8-- 'अशांतिदूत दर्जी' आपके घर की इज्जत के लिये सबसे बड़े खतरे हैं। भूलकर भी इनके यहाँ कपड़े सिलने ना डालें।(ये हिंदू औरतों की जानकारी जुटाकर लव जेहादियों तक पहुंचाते हैं।)
9-- 'अशांतिदूतों' की चादर वगैरह पर कभी भी फूटी कौड़ी ना चढ़ाएं और उन्हें अपने इलाकों में ना घुसने दें।
10-- अशांतिदूतों और उनके चमचों की फिल्मों का बहिष्कार करें और टोरेंट पर अपलोड होने तक इंतजार करें।
11-- अगर परिवार की महिला/कन्या सदस्य के आसपास कोई अशांतिदूत छात्र आदि दिखे तो उसे सख्ती से रोकें और पड़ोसी के घर में ऐसा हो रहा है तो उन्हें सचेत करें या फेक आई डी से उन्हें पूरी नमकमिर्च लगाकर जानकारी दें। फिर भी ना मानें तो बजरंगियों से संपर्क कर अशांतिदूतों के अस्थिभंजन जैसे नेक काम को अंजाम दें।
अगर आपकी लड़की की दोस्त कोई अशांतिदूत की लड़की है तो उसे भी सख्ती से घर आने से रोकें और अपनी बेटी को भी समझाएं। ( ये लड़कियां लवजेहादियों की एजेंट होतीं हैं और अपने भाइज़ानों से यही हिंदू लड़कियों को मिलवातीं हैं।)
12-- अजमेर के ख्वाजा चिश्ती से लेकर दिल्ली के निजामुद्दीन और खुसरो जैसे सूफियों के काले कारनामों को उजागर करें और अन्य हिंदुओं को इनकी मजारों पर 'बाई हुक ऑर बाई क्रुक' रोकें।
13-- सोशल मीडिया पर ताबिश सिद्दीकी जैसे सूफी मुखौटे के पीछे छिपे शातिर शांतिदूतो को पहचानें और उनके अल तकिया से प्रभावित ना हों।
आपकी लिस्ट में कोई भी सैक्यूलर हिंदू या तनिक भी बचाव करता 'अशांतिदूत' दिखे तुरंत उसे इनबॉक्स में सूचित कर अमित्र कर दें।
14-- अपने आसपास के अशांतिदूतों को खुलकर 'घर वापसी' का आमंत्रण दें और बिंना गाली दिये आक्रामक होकर शांतिदूतों की किताब की पोल खोलें और इस हेतु Abhijeet जी जैसे विद्वान की मदद लें।
सूफियों की पोल खोलें, जो हिंदू वहां जायें उनकी बिंना। लिहाज कठोर शब्दों में निंदा करें।
15-- ट्रेन,पार्क, बस आदि में इनपर निगाह रखें और इन्हें लगातार घूरते रहें जिससे ये असहज महसूस करें।
अगर हम सिर्फ चार महीने के बहिष्कार से हजारों किलोमीटर दूर 150 करोड़ लोगों के शक्तिशाली देश चीन को घुटनों पर ला सकते हैं तो ये 30 करोड़ केंचुए तो कुछ महीने बाद रेंगने लगेंगे। जम्मू के लोगों द्वारा कश्मीर घाटी के लोगों की आर्थिक नाकेबंदी और गुजरातियों द्वारा इनकी आर्थिक नाकेबंदी याद है ना?
अगर हम इसे पूरे उत्तरी भारत पर भी लागू कर दें तो ये अशांतिदूत 7-8 महीनों के अंदर हिंदू धर्म में वापसी का तरीका पूछते नज़र आएंगे।
साभार देवेंद्र सिकरवार जी की फेसबुक पोस्ट .....