इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।। !! दुर्भावना रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और कई वेब साइटों पर आधारित हैं!! Contact No..7089898907
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
!! वाड्रा को दी सस्ती जमीन, बना विधायक !!
कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर अरविंद केजरीवाल के बाद
अब इंडियन नैशनल लोकदल के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला ने हमला बोल दिया है।
चौटाला के मुताबिक वाड्रा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए गुड़गांव से
सटे मेवात इलाके की बेशकीमती जमीन से 2 साल में मोटा मुनाफा कमाया है।
जमीन की रजिस्ट्री के मुताबिक वाड्रा ने 2009 में 28 एकड़ जमीन सिर्फ 71
लाख रुपये में खरीदी और 2011 में इसी जमीन को 2 करोड़ 15 लाख रुपये में बेच
दिया। वाड्रा को जमीन बेचने वाले शख्स को विधानसभा चुनावों में कांग्रेस
का टिकट भी मिला।
न्यूज चैनल आईबीएन 7 के मुताबिक, दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, लेकिन 3 साल पहले सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस इलाके में काफी कम कीमत में 28 एकड़ जमीन खरीदी। वाड्रा ने यह जमीन 6 पार्टियों से करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ के भाव से खरीदी। दिलचस्प बात यह है कि 2009 में खुद राज्य सरकार ने इस इलाके में 16 लाख रुपये प्रति एकड़ स्टॉम्प ड्यूटी तय की हुई थी। लिहाजा वाड्रा ने जो जमीन करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ कीमत पर खरीदी उस पर 16 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से राज्य सरकार को स्टॉम्प ड्यूटी अदा किया। यानी जमीन की मूल कीमत से स्टॉम्प ड्यूटी 8 गुणा ज्यादा थी। अब वाड्रा का यह सौदा विपक्षी दल इंडियन नैशनल लोकदल के गले नहीं उतर रहा। इंडियन नैशनल लोकदल के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला ने वाड्रा द्वारा सस्ती दर में खरीदी गई जमीन की जांच करने की मांग की है।
विपक्ष का सवाल यह है कि सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से कम दाम में यह जमीन कैसे खरीदी और बेची गई। कहीं ऐसा तो नहीं की वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन को बाजार से कम दाम पर बेचा दिखाया गया। रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी कम्पनी मेसर्स रियल अर्थ एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के तौर पर मेवात के फिरोजपुर जिरका के शकरपुरी गांव के 6 लोगों से करीब 28 एकड़ जमीन खरीदी है। कागजात के मुताबिक वाड्रा ने रूबी तबस्सुम से 7 लाख में 2 एकड़, आनंद फुड इंडिया से करीब साढ़े आठ एकड़ जमीन 20 लाख रुपये में, मेमूना और सुभाष चंद्र से 2-2 एकड़ जमीन 7-7 लाख रुपये में और फिरदौस बेगम से सवा 11 एकड़ जमीन 24 लाख रुपये में खरीदी। यानी वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन 71 लाख रुपये में 2009 में खरीदी।
हरियाणा सरकार के कागजातों के मुताबिक 2 साल बाद यानी नवंबर 2011 में वाड्रा ने यही जमीन दिल्ली की साउथ एक्स इलाके की कंपनी हिंद इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को 7 लाख 68 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर 2,15,01,562 रुपये में बेची।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकश चौटाला के मुताबिक वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन में से 17 एकड़ जमीन कांग्रेस के नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अफताब अहमद के परिवार से खरीदी है। चौटाला का आरोप है कि इस जमीन की एवज में आफताब को नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की तरफ से टिकट दिया गया। यही नहीं विधायक के परिवार की बाकी बची जमीन को अर्बन डिवेलपमेंट प्लान में शामिल कर लिया गया। जिसकी वजह से उनकी जमीनों की कीमत कई गुणा बढ़ गईं। फिरोजपुर जिरका से चौटाला की पार्टी के विधायक नसीम अहमद के मुताबिक हुड्डा सरकार की छत्रछाया में वाड्रा और आफताब को फायदा पहुंचाया गया।http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16764066.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16807139.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16847905.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/senior-official-probing-vadra-dlf-land-deal-shunted-out/articleshow/16832209.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/chautala-accuses-rahul-gandhi-of-evading-stamp-duty/articleshow/16858418.cms
न्यूज चैनल आईबीएन 7 के मुताबिक, दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं, लेकिन 3 साल पहले सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस इलाके में काफी कम कीमत में 28 एकड़ जमीन खरीदी। वाड्रा ने यह जमीन 6 पार्टियों से करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ के भाव से खरीदी। दिलचस्प बात यह है कि 2009 में खुद राज्य सरकार ने इस इलाके में 16 लाख रुपये प्रति एकड़ स्टॉम्प ड्यूटी तय की हुई थी। लिहाजा वाड्रा ने जो जमीन करीब 3 लाख रुपये प्रति एकड़ कीमत पर खरीदी उस पर 16 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से राज्य सरकार को स्टॉम्प ड्यूटी अदा किया। यानी जमीन की मूल कीमत से स्टॉम्प ड्यूटी 8 गुणा ज्यादा थी। अब वाड्रा का यह सौदा विपक्षी दल इंडियन नैशनल लोकदल के गले नहीं उतर रहा। इंडियन नैशनल लोकदल के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला ने वाड्रा द्वारा सस्ती दर में खरीदी गई जमीन की जांच करने की मांग की है।
विपक्ष का सवाल यह है कि सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से कम दाम में यह जमीन कैसे खरीदी और बेची गई। कहीं ऐसा तो नहीं की वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन को बाजार से कम दाम पर बेचा दिखाया गया। रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी कम्पनी मेसर्स रियल अर्थ एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के तौर पर मेवात के फिरोजपुर जिरका के शकरपुरी गांव के 6 लोगों से करीब 28 एकड़ जमीन खरीदी है। कागजात के मुताबिक वाड्रा ने रूबी तबस्सुम से 7 लाख में 2 एकड़, आनंद फुड इंडिया से करीब साढ़े आठ एकड़ जमीन 20 लाख रुपये में, मेमूना और सुभाष चंद्र से 2-2 एकड़ जमीन 7-7 लाख रुपये में और फिरदौस बेगम से सवा 11 एकड़ जमीन 24 लाख रुपये में खरीदी। यानी वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन 71 लाख रुपये में 2009 में खरीदी।
हरियाणा सरकार के कागजातों के मुताबिक 2 साल बाद यानी नवंबर 2011 में वाड्रा ने यही जमीन दिल्ली की साउथ एक्स इलाके की कंपनी हिंद इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड को 7 लाख 68 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर 2,15,01,562 रुपये में बेची।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकश चौटाला के मुताबिक वाड्रा ने करीब 28 एकड़ जमीन में से 17 एकड़ जमीन कांग्रेस के नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अफताब अहमद के परिवार से खरीदी है। चौटाला का आरोप है कि इस जमीन की एवज में आफताब को नूंह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की तरफ से टिकट दिया गया। यही नहीं विधायक के परिवार की बाकी बची जमीन को अर्बन डिवेलपमेंट प्लान में शामिल कर लिया गया। जिसकी वजह से उनकी जमीनों की कीमत कई गुणा बढ़ गईं। फिरोजपुर जिरका से चौटाला की पार्टी के विधायक नसीम अहमद के मुताबिक हुड्डा सरकार की छत्रछाया में वाड्रा और आफताब को फायदा पहुंचाया गया।http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16764066.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16807139.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16847905.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/senior-official-probing-vadra-dlf-land-deal-shunted-out/articleshow/16832209.cmshttp://navbharattimes.indiatimes.com/chautala-accuses-rahul-gandhi-of-evading-stamp-duty/articleshow/16858418.cms
!! दिल मागे मोर !!
आज
अगर हम चारो ओर देखें तो कोई भी अपनी जिंदगी से संतुष्ट दिखाई ही नहीं
देगा. हमारे पास जो है वह कम ही मालूम पड़ता है. हर किसी को “और” चाहिए………
और चाहिए ...और चाहिए ...इसी धुन में लगा रहता है ... चाहे किसी प्राप्य
को प्राप्त करने कि मेरी औकात नहीं होगी तो भी बस मैं उसके लिए छटपटाता
रहूँगा, बस एक धुन सवार हो जाएगी कि बस कैसे भी हो मुझे यह हासिल करना है.
अरे भाई हासिल करना है, तक तो ठीक है पर यह लोभ इतना भयंकर हो जाता है कि
फिर ना किसी मर्यादा कि परवाह……… जाये चाहे सारे कानून-कायदे भाड़ में.
...... और आज चारों तरफ देख लीजिये कि जो मर्यादाओं को तार - तार किये दें
रहें है उन्ही की यश-गाथाएं गाई जाती है. हम सब इस लोभ के मोह में वशीभूत
हुए वहशीपन कि हद तक गिर चुके है. किसी भी नैतिक प्रतिमान को तोड़ने में
हमें कोई हिचक नहीं होती.
या फिर आप खड़े रहिये नैतिकता का झुनझुना लिए, कोई आपके पास फटकेगा ...
भी नहीं.
ना तो कर्म-अकर्म कि भावना रही ना उनके परिणामों कि चिंता. और चिंता होगी
भी क्यों हमारे सारे सिद्धांतो को तो हम तृष्णा के पीछे भागते कभी के बिसरा
चुके हैं. अहंकार आदि सभी तरीके के नशों को दूर करने वाले धर्म को ही
अफीम कि गोली मानकर कामनाओं कि नदी में प्रवाहित कर चुकें है. !
यह लोभ जब तृष्णा को जन्म देता तब उसी के साथ साथ ही जीवन में ईष्र्या का
भी प्रवेश हो जाता है. तृष्णा में राग की प्रचुरता होती है. द्वेष ईर्ष्या
कि जड़ में दिखाई पड़ता है. आज कल जितना भी अनाचार, भ्रष्टाचार चारो तरफ
देखने में मिल रहा है, वह इसी अदम्य तृष्णा या मानव मन में व्याप्त अतृप्त
भूख का परिणाम है. पेट की भूख तो एक हद के बाद मिट जाती है, पर यह तृष्णा
जितनी पूरी करो उतनी ही बढती जाती है.!
जब हम तृष्णाग्रस्त
होतें तो हमारे मन पर ईष्र्या का आवरण पड़ जाता है. हमें “चाहिए” के अलावा
कोई दूसरी चीज समझ में ही नहीं आती है. चाहिए भी येन-केन-प्रकारेण. जीवन
के हर क्षेत्र में स्पर्धा ही स्पर्घा दिखाई देती है. यह स्पर्धा कब
प्रतिस्पर्धा बनकर हमारे जीवन कि सुख शान्ति को लील जाती है हमें पता ही
नहीं चलता है. और प्रतिस्पर्धा भी खुद के विकास कि नहीं दूसरे के अहित करने
कि हो जाती है दूसरों के नुक्सान में ही हम अपना प्रगति पथ ढूंढने लगें
है. खुद का विकास भूल कर आगे बढ़ने के लिए दूसरों के अहित कि सोच ही तो
राक्षसी प्रवत्ति है. इस आसुरी सोच के मारे हम खुद को तुर्रम खाँ समझने
लगते हैं. खुद को सर्वसमर्थ मान दूसरों के ललाट का लेखा बदलने का दु:साहस
भी करने लगतें है. !
याहीं हम चूक कर बैठतें है जो क्षमता प्रकृति
ने हमको दी, जो वातावरण जीने के लिए उसे मिला, उसे ठुकरा कर जीने का
प्रयास कर लेना महत्वाकांक्षा और अहंकार का ही रूप है. किसी दूसरे के भाग्य
में आमूलचूल परिवर्तन तो हम ला भी नहीं पाते उलटे हमारा खुद का विकास भी
अवरुद्ध कर बैठते है. बस सारी उर्जा इसी में निकल जाती है. इसी अहंकार के
मारे क्रोध उपजता है और कौन नहीं जानता कि क्रोध से हम अपना ही कितना
नुक्सान कर बैठते है.
बाकि अब ज्यादा क्या लिखा जाए यह तो अपने खुद के समझने कि चीज है......
ना तो कर्म-अकर्म कि भावना रही ना उनके परिणामों कि चिंता. और चिंता होगी भी क्यों हमारे सारे सिद्धांतो को तो हम तृष्णा के पीछे भागते कभी के बिसरा चुके हैं. अहंकार आदि सभी तरीके के नशों को दूर करने वाले धर्म को ही अफीम कि गोली मानकर कामनाओं कि नदी में प्रवाहित कर चुकें है. !
यह लोभ जब तृष्णा को जन्म देता तब उसी के साथ साथ ही जीवन में ईष्र्या का भी प्रवेश हो जाता है. तृष्णा में राग की प्रचुरता होती है. द्वेष ईर्ष्या कि जड़ में दिखाई पड़ता है. आज कल जितना भी अनाचार, भ्रष्टाचार चारो तरफ देखने में मिल रहा है, वह इसी अदम्य तृष्णा या मानव मन में व्याप्त अतृप्त भूख का परिणाम है. पेट की भूख तो एक हद के बाद मिट जाती है, पर यह तृष्णा जितनी पूरी करो उतनी ही बढती जाती है.!
जब हम तृष्णाग्रस्त होतें तो हमारे मन पर ईष्र्या का आवरण पड़ जाता है. हमें “चाहिए” के अलावा कोई दूसरी चीज समझ में ही नहीं आती है. चाहिए भी येन-केन-प्रकारेण. जीवन के हर क्षेत्र में स्पर्धा ही स्पर्घा दिखाई देती है. यह स्पर्धा कब प्रतिस्पर्धा बनकर हमारे जीवन कि सुख शान्ति को लील जाती है हमें पता ही नहीं चलता है. और प्रतिस्पर्धा भी खुद के विकास कि नहीं दूसरे के अहित करने कि हो जाती है दूसरों के नुक्सान में ही हम अपना प्रगति पथ ढूंढने लगें है. खुद का विकास भूल कर आगे बढ़ने के लिए दूसरों के अहित कि सोच ही तो राक्षसी प्रवत्ति है. इस आसुरी सोच के मारे हम खुद को तुर्रम खाँ समझने लगते हैं. खुद को सर्वसमर्थ मान दूसरों के ललाट का लेखा बदलने का दु:साहस भी करने लगतें है. !
याहीं हम चूक कर बैठतें है जो क्षमता प्रकृति ने हमको दी, जो वातावरण जीने के लिए उसे मिला, उसे ठुकरा कर जीने का प्रयास कर लेना महत्वाकांक्षा और अहंकार का ही रूप है. किसी दूसरे के भाग्य में आमूलचूल परिवर्तन तो हम ला भी नहीं पाते उलटे हमारा खुद का विकास भी अवरुद्ध कर बैठते है. बस सारी उर्जा इसी में निकल जाती है. इसी अहंकार के मारे क्रोध उपजता है और कौन नहीं जानता कि क्रोध से हम अपना ही कितना नुक्सान कर बैठते है.
बाकि अब ज्यादा क्या लिखा जाए यह तो अपने खुद के समझने कि चीज है......
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