शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

सुक्रिया सेकुलर मीडिया ?

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, ऐसा संविधान में लिखा है ! हर मज़हब के लोगों को अपने रीति-रिवाजों के मुताबिक जीने का हक़ है ! संविधान की धारा 19 (a) के तहत अभिव्यक्ति का अधिकार है! हाल-फिलहाल, आसाराम के केस में, मीडिया ने अभिव्यक्ति की "आज़ादी" को खूब "कैश" भी कराया! हालांकि मीडिया ने अति कर दी पर यकीनन शाबाशी मिलने की भी हक़दार है! क्योंकि आसाराम जैसे पाखंडियों पर लगाम ज़रूरी है! लेकिन इन आसाराम जैसों की वज़ह से बद भी बदनाम होने लगें तो? एकतरफा "सेक्युलर" मीडिया ने एक सवाल आमजनमानस के मन में पैदा कर दिया है कि क्या हिन्दू धर्म वास्तव में इतना या सबसे खराब है ?

क्या सारे "कुकर्मी" इसी धर्म में मौजूद हैं ? क्या हिन्दू धर्म से जुडी आस्था बकवास है ? क्या हिन्दू धर्म से जुड़े गुरू और बाबा "ढोंगी" हैं ? ये सारे सवाल इसलिए क्योंकि टीवी देखने वाले दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा, शायद ही ये बताने में कामयाब हो कि किसी और धर्म के "पापी आसारामी" टाइप नुमाइंदों को, मीडिया इतने व्यापक स्तर पर कब उठाया ?

किस धर्म के आसारामी टाइप पाखंडी गुरू के यौन-शक्ति को तौला गया ? किस धर्म के पाखंडी बाबाओं की रासलीला का बेशर्म प्रसारण न्यूज़ चैनलों पर लगातार, एक मुहिम के तहत, होता रहा? कानून और आरोपी के बीच मीडिया की सक्रियता का राज़ क्या है? गर मीडिया, देश के साथ है तो ज़ाकिर और ओवैसी जैसे कई "गुरुओं" के भाषणों के खिलाफ मुहिम चलाता! आतंक की सरपरस्ती करने वाले इस देश के गद्दारों के खिलाफ "युद्ध" छेड़ देता! मीडिया गर संवेदनशील है और आम आदमी का हाथ है तो कालाहांडी और बस्तर दुर्दशा के ज़िम्मेदार नालायक लोगों को खोजने के लिए भी मुहिम चलाता! मीडिया गर वॉच-डॉग की भूमिका में है तो सूदूर के प्रान्तों में मासूमों के साथ हो रही ज़्यादती के खिलाफ़ मुहिम चलाता! कोयला घोटाले जैसे हज़ारों-करोड़ के घोटाले को लेकर सरकार और विपक्ष का बाहर निकलना मुश्किल कर देता! इस देश के आम आदमी का पैसा लूट कर अपनी तिजोरी भरने वालों को आसाराम की तरह, जेल में जाने के लिए विवश कर देता! पर हकीक़त में न्यूज़ चैनल्स ने किया क्या?

कुकर्मी आसाराम की यौन क्षमता न्यूज़ चैनल्स की टीआरपी बढाने का हथियार बन गयी ? पाखंडी आसाराम की रासलीला, न्यूज़ चैनल्स की ज़रुरत बन गयी ? मतलब न्यूज़ चैनल अब इस स्तर पर आ चुके हैं कि किसी कुकर्मी की यौन क्षमता से अपनी क्षमता बढायें ? हद तो तब हो गयी जब पुण्य-प्रसून वाजपेयी जैसे ज़िम्मेदार पत्रकार, अपनी (माफ़ कीजियेगा) अपने चैनल ("आज तक") की क्षमता बढाने के लिए सेक्सोलौजिस्ट प्रकाश कोठारी को पकड़ कर ले आये ! पर बात यहीं तक सीमित नहीं है। सबसे अहम् मुद्दा ये रहा कि किसी एक धर्म के कुकर्मी प्रतिनिधियों पर ही मीडिया ने इतना बवंडर क्यों किया? पिछले एक दशक गवाही के लिए काफी हैं कि तथा-कथित टी.वी. न्यूज़ चैनल्स ने (हिन्दू) धर्म-विशेष के पाखंडियों पर ही विलाप किया? क्या ये सब प्रायोजित है एफडीआई की तरह? क्या कुछ विदेशी ताक़तों और न्यूज़ चैनल्स के बीच में कुछ अदृश्य गठजोड़ है? ग़र ऐसा है तो मामला संगीन है! इसकी जांच होनी चाहिए!

न्यूज़ चैनल्स को ये स्पष्टीकरण देना पडेगा कि आसाराम की तरह और जिन पाखंडियों के खिलाफ न्यूज़ चैनल्स ने, अब तक मुहिम छेड़ी है उनमें से कितने प्रतिशत टाइम किन-किन पाखंडियों को दिया गया और इनमें से कितने किस धर्म के थे? सेक्युलर देश मे ख़बरों का सेक्युलर प्रसारण हो तो लोकतंत्र को मज़बूती मिलती है, मगर जब नज़रिया दो-आँखों का हो तो सवाल उतना लाज़िमी है! अपराधी-आतंकी-कुकर्मी-वव्यभाचारी-भ्रष्ट के खिलाफ मुहिम का समर्थन, हर ईमानदार और नेक इंसान करेगा मगर जब सिख-दंगे, गुजरात और गोधरा जैसे वाकये होंगे तो एक वर्ग विशेष चीखेगा चिल्लाएगा! इन्साफ की मांग करेगा! लेकिन मीडिया को हर उस हरक़त पर चीखना और चिल्लाना आना चाहिए जो आम-आदमी के हितों की रक्षा ना करती हो।

मीडिया का चरित्र, साम्प्रदायिक ना हो। ख़बरों के प्रसारण में संतुलन बना रहे। किसी की सेक्स-पावर मीडिया की पावर ना बने। इस बात का ख़याल मीडिया को रखना चाहिए, जो न्यूज़ चैनल्स ने नहीं रखा। न्यूज़ चैनल के पास प्रसारण का लाइसेंस है। स्वनिय्मन का क़ानून भी है। मगर इसका मतलब ये नहीं कि ख़बरों के ज़रिये महज़ एक धर्म-विशेष के खिलाफ मुहिम का वातावरण बना दें! अपराधी को सज़ा कानून देगा। कानून और अपराधी के बीच मीडिया का अति-उत्साह शाबाशी का हक़दार है... लेकिन इस अति-उत्साह के आलम को एक धर्म-विशेष के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल से बाज़ आना चाहिए ! आसाराम जैसे पाखंडी और कुकर्मी हर मज़हब और जाति में है! कुकर्मी तो कुकर्मी होता है चाहे वो किसी भी मज़हब और जाति का हो तो फिर धर्म-विशेष के आधार पर आरक्षण क्यों?

पर ये सवाल अभी तक ना तो दर्शकों ने "अपने" प्रिय न्यूज़ चैनल्स से पूछा और ना ही न्यूज़ चैनल्स ने धर्मनिरपेक्षता दिखलाई! माना जा रहा है कि कट्टरपंथियों का डर, चैनल वाले जानते हैं ! लातों के भूत-बातों से नहीं मानते...ऐसा स्वर्गीय बाल ठाकरे समझाते थे....आज राज ठाकरे समझा रहे हैं! आज के दौर में खौफ़ और पैसा, यही दो ऐसे पहलू हैं, जो चैनल्स चलाने वाले इंसान को खरीद लेते हैं, चैनल क्या चीज़ है! शायद यही कारण है, न्यूज़ चैनल्स के "एकतरफा धर्मनिरपेक्ष" होने का! कुकर्मी आसाराम जैसों को भेजवाने के लिए शुक्रिया, "सेकुलर" मीडिया! आप लोगों ने पुख्ता कर दिया कि वाकई हिन्दू धर्म बहुत "खराब" है !



साभार --बिस्फोट डाट काम !