बुधवार, 26 सितंबर 2018

जानिए- क्या है राफेल सौदे का सच?


आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जोरों पर, जानिए- क्या है राफेल सौदे का सच?
नई दिल्ली: राफेल का सच क्या है? क्या यह सच इस बात से तय होगा कि आप राजनीतिक विचारधारा को बांटने वाली रेखा के किस ओर खड़े हैं? ऐसा क्यों होता है कि राजनीतिक पार्टियां सत्ता में रहते हुए कुछ कहती हैं और विपक्ष में आने के बाद कुछ और? राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर लग रहे तमाम आरोपों में कुछ बड़े आरोपों की पड़ताल के बाद एक अलग ही तस्वीर सामने आई है. सबसे बड़ा आरोप कीमतों को लेकर है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अलग-अलग ट्वीट में इस घोटाले के आकार के बारे में अलग-अलग बातें कर रहे हैं. 16 मार्च 2018 को ट्वीट में उन्होंने कहा कि दसां ने रक्षा मंत्री के झूठ का पर्दाफाश कर दिया है और अपनी रिपोर्ट में राफेल की कीमत बताई है. जिसके मुताबिक कतर को 1319 करोड़, मोदी सरकार को 1670 करोड़ और मनमोहन सिंह सरकार को 570 करोड़ रुपये में देने की बात है. राहुल के गणित के मुताबिक हर हवाई जहाज पर 1100 करोड़ रुपया ज्यादा दिया गया जो कि 36 विमान के हिसाब से छत्तीस हजार करोड़ रुपया है जो रक्षा बजट का दस फीसदी है.
इसके बाद दूसरे ट्वीट में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि राफेल सौदे की वजह से सरकारी खजाने को चालीस हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. कुछ दिनों बाद आए राहुल के ट्वीट में उन्होंने इसे 58 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया. हाल ही में उन्होंने अपने एक ट्वीट में इसे एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया.
तो हकीकत क्या है? सरकारी सूत्रों के मुताबिक पहली बात तो यह है कि यूपीए के वक्त राफेल का कोई सौदा हुआ ही नहीं. कीमतों की तुलना करने पर भी एक अलग तस्वीर सामने आती है. अगर सिर्फ हवा में उड़ने लायक लड़ाकू विमान की कीमत की बात करें, जिस पर कोई भी मारक हथियार, रडार या दूसरे आयुध सिस्टम नहीं लगे हैं, तो सबसे पहले यूपीए-एक के समय रफाल के सौदों पर चर्चा शुरू हुई जिसमें अकेले विमान की कीमत 538 करोड़ रुपये थी. मई 2015 में यूपीए के लिए यही कीमत 737 करोड़ रुपये प्रति विमान होती जबकि एनडीए ने 670 करोड़ रुपये में सौदा किया. सितंबर 2019 में जब पहला विमान आएगा तब यूपीए के सौदे के हिसाब से कीमत 938 करोड़ रुपये होती जबकि एनडीए के सौदे के हिसाब से यह 794 करोड़ रुपये बैठेगी.
यह गणना यूरो के बदले रुपये के बदलते मूल्य के हिसाब से की गई है. सरकारी सूत्रों के अनुसार इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि अकेले हवा में उड़ने लायक विमान को एनडीए ने यूपीए की तुलना में 20 फीसदी कम दामों पर खरीदा है.
दूसरा बड़ा आरोप यह है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों का सौदा करते समय भारत की अपनी सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को नजरअंदाज कर दिया गया. अप्रैल 2015 में पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा से सत्रह दिन पहले का एक वीडियो कांग्रेस ने जारी किया जिसमें दसां एविएशन के चेयरमैन कहते दिख रहे हैं कि भारत में एचएएल की ओर से 108 राफेल लड़ाकू विमान बनाने का करार जल्द होने वाला है. तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर ने 8 अप्रैल को प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि एचएएल बातचीत में शामिल है. सवाल है कि फिर ऐसा क्या हुआ कि एचएएल इस करार से बाहर हो गया और भारत ने सीधे 36 लड़ाकू विमान फ्रांस से खरीदने का करार कर लिया.
आला सरकारी सूत्रों के अनुसार दसां एविएशन और एचएएल के बीच बात नहीं बनी. दोनों पक्षों के बीच टेक्नॉलाजी ट्रांसफर एक बड़ा मुद्दा था. साथ ही दसां एविएशन भारत में बनने वाले 108 लड़ाकू विमानों की गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था. दसां एविएशन भारत में विमान बनाने के लिए तीन करोड़ मैन आवर का अंदाजा था तो वहीं एचएएल का आकलन इससे कहीं तीन गुना अधिक था जिससे कीमत कई गुना ज़्यादा हो जाती. ऐसे अनसुलझे मुद्दों के चलते ही यह सौदा बरसों से लटका हुआ था.
एक तीसरा आरोप लगाया गया कि मोदी सरकार एचएएल की अनदेखी कर रही है. इस पर सरकारी सूत्रों का कहना है कि यूपीए के वक्त किए जा रहे सौदे में भी एचएएल को शामिल नहीं किया गया था. यूपीए के वक्त तैयार विमान खरीदने की बात थी और बाकियों को भारत में बनाने की. लाइसेंस लेकर बनाने में और टेक्नॉलाजी ट्रांसफर में फर्क है. भारत में बनाने से कीमत अधिक आती. यूपीए के वक्त भी एचएएल को लेकर चल रही बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची थी. एचएएल को यूपीए के वक्त हर साल औसत तौर पर दस हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए गए. जबकि मोदी सरकार ने हर साल औसत 22 हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए. 83 लाइट काम्बेट एयरक्राफ्ट बनाने का पचास हजार करोड़ का ऑर्डर भी मोदी सरकार ने एचएएल को दिया है. अभी वे साल में सिर्फ आठ बना रहे हैं, उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रयास हो रहा है.
चौथा बड़ा आरोप है कि मोदी सरकार ने अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस इंड्रस्ट्रीज की मदद की और इसे रफाल के निर्माता दसां एविएशन से ऑफसेट कांट्रेक्ट दिलवाया. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद इस आरोप ने तेजी पकड़ी. हालांकि बाद में ओलांद ने सफाई दी कि यह दो कंपनियों के बीच का करार था. इस पर सरकारी सूत्रों का कहना है कि ऑफसेट का नियम यूपीए ने 2006 में बनाया था. ऑफसेट के लिए सिर्फ एक कंपनी नहीं है. दसां एविएशन के मुताबिक उसने 72 भारतीय कंपनियों से करार किया है. छोटी बड़ी कंपनियों को तीन अरब यूरो से अधिक का काम मिलेगा. इससे रोजगार के नए अवसर मिलेंगे. एयरफ्रेम बनाने के लिए 20 कंपनियों से करार हो गया जबकि 14 से विचारधीन है. एयरो इंजिन के लिए पांच कंपनियों से करार हुआ. रडार, ईडब्ल्यू और एवियोनिक्स इंटीग्रेशन के लिए 13 से करार हुआ. एयरोनॉटिकल पुर्जों और उपकरण के लिए 14 से हो गया दो से विचाराधीन है. इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर और सेवाओं के लिए 20 कंपनियों से करार हुआ.
जहां तक रिलायंस डिफेंस इंडस्ट्रीज का सवाल है आला सरकारी सूत्रों के अनुसार तब भी दसां एविएशन और रिलायंस के बीच करार हुआ था. बाद में परिवार में विभाजन के कारण डिफेंस का काम छोटे भाई अनिल अंबानी के पास आ गया. बाद में हुए समझौते के तहत रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के 51 फीसदी और दसां एविएशन के 49 फीसदी भागीदारी के साथ साझा उपक्रम बनाया गया. ओलांद का बयान आने के बाद दसां कह चुका है कि 2016 के डीपीपी नियमों के तहत और मेक इन इंडिया नीति के मद्देनजर उसने रिलायंस के साथ समझौता किया.
दसां और रिलायंस मिलकर नागपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नजदीक मिहान एसईजेड में एक संयंत्र स्थापित कर रहे हैं. इसके लिए दसां एविएशन ने सौ मिलियन यूरो का निवेश किया है जो भारत में किसी एक जगह पर रक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश है. वहां रफाल और फाल्कन विमानों के लिए फाइनल एसेंबली बनाई जाएगी
Akhilesh Sharma NDTV के पत्रकार हैं ।
 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

011 2012से 2017-2018 तक मध्य प्रदेश में आर्थिक विकास

2011 2012से 2017-2018 तक मध्य प्रदेश में आर्थिक विकास की यह पोस्ट उन छोकरों के लिए है जो आज से 15 साल पहले पेंट में ही मूत देते थे और अब जब 25 साल के हुए कुछ समझ आई तो पूछते है क्या किया शिवराज ने ?
मुझे पता है इसके बाद इन छोकरों का एक प्रश्न यही आएगा की कहाँ हुआ विकास ? तो भइया अपने मम्मी पापा से पूछना की दिग्गी राज क्या था ? शिवराज क्या है ?
Madhya Pradesh is an agrarian state. The primary sector accounts for 42.89 per cent of the state’s GVA, as of 2017-18. It is among the fastest growing states in #India. Between 2011-12 and 2017-18, Gross State Domestic Product (#GSDP) expanded at a Compound Annual Growth Rate (#CAGR) of 14.39 per cent (in rupee terms) to US$ 109.70 billion. According to the Department of Industrial Policy & Promotion (DIPP), FDI inflows in the state, between April 2000 and June 2018, totalled to US$ 1,407 miliyan .
#NSB

सोमवार, 17 सितंबर 2018

इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन के साथ वामपंथी कुचक्र

यदि आप वामपंथियों और कांग्रेसियों की देश बिरोधी चाल को समझना चाहते है तो इस पोस्ट को ध्यान से पढियेग ।
इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन पर आपने अभी कुछ दिन पहले समाचारो में सूना होगा । इनकी कहानी देश के हर नागरिक को जाननी चाहिए ताकि वो समझ सकें कि कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का गठजोड़ किस तरह से धीरे-धीरे पूरे देश की जड़ें कमजोर करने में जुटा है। नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने जासूसी और भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी दुश्मन देश को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया था। तब ये मामला कई दिन अखबारों की सुर्खियों में रहा था। मीडिया ने बिना जांचे-परखे पुलिस की थ्योरी पर भरोसा करते हुए उन्हें गद्दार मान लिया था। गिरफ्तारी के समय नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे। इस गिरफ्तारी ने देश के पूरे रॉकेट और क्रायोजेनिक प्रोग्राम को कई दशक पीछे धकेल दिया था। उस घटना के करीब 24 साल बाद इस महान वैज्ञानिक को अब जाकर इंसाफ मिला है।वैसे तो नंबी नारायणन 1996 में ही आरोपमुक्त हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने सम्मान की लड़ाई जारी रखी और अब 24 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ के सारे नेगेटिव रिकॉर्ड को हटाकर उनके सम्मान को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने ने केरल सरकार को आदेश दिया कि नारायणन को उनकी सारी बकाया रकम, मुआवजा और दूसरे लाभ दिए जाएं। ये रकम केरल सरकार देगी और इसकी रिकवरी उन पुलिस अधिकारियों से की जाएगी जिन्होंने उन्हें जासूसी के झूठे मामले में फंसाया। साथ ही सभी सरकारी दस्तावेजों में नंबी नारायणन के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें हुए नुकसान की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है, लेकिन नियमों के तहत उन्हें 75 लाख रुपये का भुगतान किया जाए। कोर्ट का आदेश सुनने के लिए 76 साल के नंबी नारायणन खुद कोर्ट में मौजूद थे।
नंबी नारायण के खिलाफ लगे आरोपों की जांच सीबीआई से करवाई गई थी और सीबीआई ने 1996 में उन्हें सारे आरोपों से मुक्त कर दिया। जांच में यह बात सामने आ गई कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार ने नंबी नारायण को फंसाया था। लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। सीबीआई की जांच में ही इस बात के संकेत मिल गए थे कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी को साजिश का शिकार बनाया। एक इतने सीनियर वैज्ञानिक को न सिर्फ गिरफ्तार करके लॉकअप में बंद किया गया, बल्कि उन्हें टॉर्चर किया गया कि वो बाकी वैज्ञानिकों के खिलाफ गवाही दे सकें। ये सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी। ये वो दौर था जब भारत जैसे देश अमेरिका से स्पेस टेक्नोलॉजी करोड़ों रुपये किराये पर लिया करते थे। भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को अपना कारोबारी नुकसान होने का डर था। जिसके लिए सीआईए ने वामपंथी पार्टियों को अपना हथियार बनाया। एसआईटी के जिस अधिकारी सीबी मैथ्यूज़ ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डीजीपी बना दिया था। सीबी मैथ्यूज के अलावा तब के एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आ चुकी है। केरल सरकार के अलावा तब केंद्र की कांग्रेस सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है, जिसने इतने बड़े वैज्ञानिक के खिलाफ साजिश पर अांखें बंद कर ली थीं। माना जाता है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इसके लिए ऊपर से नीचे तक नेताओं और अफसरों को मोटी रकम पहुंचाई थी। अगर नंबी नारायण के खिलाफ साजिश नहीं हुई होती तो भारत को अपना पहला क्रायोजेनिक इंजन 15 साल पहले मिल गया होता और इसरो आज पूरी दुनिया से पंद्रह वर्ष आगे होता। उस दौर में भारत क्रायोजेनिक इंजन को किसी भी हाल में पाना चाहता था। अमेरिका ने इसे देने से साफ इनकार कर दिया। जिसके बाद रूस से समझौता करने की कोशिश हुई। रूस से बातचीत अंतिम चरण में थी, तभी अमेरिका के दबाव में रूस मुकर गया। इसके बाद नंबी नारायणन ने कहा कि सरकार को भरोसा दिलाया कि वो और उनकी टीम देसी क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाएंगे। उनका ये मिशन सही रास्ते पर चल रहा था कि तब तक वो साजिश के शिकार हो गए। नंबी नारायण ने अपने साथ हुई साजिश पर ‘रेडी टु फायर’ नाम से एक किताब भी लिखी है। ये किताब आंखें खोलने वाली है। देश के इस महान वैज्ञानिक के साथ साजिश के खिलाफ बीजेपी को छोड़ किसी भी राजनीतिक दल ने कभी आवाज नहीं उठाई। सीपीएम और कांग्रेस ने तो बाकायदा उन्हें बदनाम करने के लिए मीडिया में झूठी खबरें भी छपवाईं। बीजेपी ने उनके समर्थन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दोषियों के खिलाफ जांच की मांग की थी। बीजेपी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी इस मामले में खुलकर बोलती रही हैं। उन्होंने 2013 में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस साजिश के तमाम पहलुओं को उजागर किया था। ये वीडियो आप नीचे देख सकते हैं।
#NSB
http://newsloose.com/2018/05/12/isro-scientists-lost-reputation-nambi-narayanan/