सोमवार, 16 जनवरी 2012

!!मोक्ष क्या है?जानते है क्या ?


यदि देहम् पृथक्कृत्य चिति विश्राम्य तिष्ठसि ।
अधुनैव सुखी शान्त: बंधमुक्तो भविष्यसि ॥ 4॥

अर्थ : अगर तू देह को अलग करके और चैतन्य आत्मा में विश्राम करके अर्थात चित्त को एकाग्र करके स्थित है तो अभी तू सुखी और शान्त होता हुआ बन्ध से मुक्त हो जावेगा ॥

हे राजन! जब तू देह से आत्मा को पृथक विचार करके और अपने आत्मा में चित्त को स्थिर करके स्थिर हो जाएगा तब तू सुख और शांति को प्राप्त होवेगा। जब तक चिदजड़ग्रन्थि का नाश नहीं होता है अर्थात परस्पर के अध्यास का नाश नहीं होता है, तब तक ही जीव बंधन में है। जिस काल में अध्यास का नाश हो जाता है उसी काल में जीव मुक्त होता है। शिवगीता में भी इसी वार्ता को कहा है-

मोक्षस्य न हि वासोsस्ति न ग्रामन्तरमेव वा ।
अज्ञानहृदयग्रन्थि नाशो मोक्ष इति स्मृत: ॥ 1॥

मोक्ष का किसी लोकांतर में निवास नहीं है, और न किसी गृह या ग्राम के भीतर मोक्ष का निवास है किन्तु चिदजड़ग्रन्थि का नाश ही मोक्ष है अर्थात जड़ चेतन का जो परस्पर अध्यास है, उस अध्यास के जो जड़ अंतःकरण के कर्तृत्व भोक्तृत्वादिक धर्म है, वे आत्मा में प्रतीत होते है एवं आत्मा को जो चेतनतादिक धर्म है, वे भी अग्नि में तपाये हुए लोहपिंड की तरह अंतःकरण में प्रतीत होने लगते है। याने जब लोहे का पिंड अग्नि में तपाया हुआ लाल हो जाता है और हाथ लगाने से वह हाथ को जला देता है तब लोग ऐसा कहते है – देखो, यह अग्नि कैसा गोलाकार है, लोहे जैसा जलता है किन्तु जलना लोहे का धर्म नहीं है और गोलाकार धर्म अग्नि का नहीं है किन्तु परस्पर दोनों का तादात्म्य-अध्यास होने से अग्नि का जलाना रूप धर्म लोहे में आ जाता है और लोहे का गोलाकार धर्म अग्नि में चला जाता है वैसे ही अंतःकरण के साथ आत्मा का तादात्म्य अध्यास होने से जब आत्मा के चेतन आदिक धर्म अंतःकरण में आ जाते है और अंतःकरण के कर्तृत्व-भोक्तृत्वादिक धर्म आत्मा में चले जाते हैं तब पुरुष अपने आत्मा को कर्ता और भोक्ता मानने लग जाता है और उसी से जन्म-मरण रूपी बंधन को प्राप्त होता है। जब आत्मज्ञान करके अपने को अकर्ता, अभोक्ता, शुद्ध और असंग मानता है तब स्वयं साक्षी होकर अंतःकरण का भी प्रकाशक होता है और तब ही अध्यास का नाश हो जाता है। अध्यास के नाश का नाम ही मुक्ति है, इसके अतिरिक्त मुक्ति कोई वस्तु नहीं है

!! बहुजन समाज पार्टी स्वयं सुखाय स्वयं हिताय के पथ पर अग्रसर !!

आषाढ़ पूर्णिमा का दिन में  भगवान बुध  ने अपने पहले पांच भिछुवों को अपना प्रथम उपदेश दिया था , बुद्ध ने भिछुवों से कहा " हे भिछुवों तुम सभी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय " का प्रचार प्रसार करो, आषाढ़ पूर्णिमा के उस दिन अपने गुरु के इस आदेश को पाकर पांचो भिछु " कौण्डिन्य ,वप्प ,भाद्दिया , अस्सजी और महानाम ने चारिका शुरू की, और जन जन तक बुद्ध के इस उपदेश ( धम्म) को पहुँचाने लगे, भिछुवों ने लोंगो को ये बताया की यह धम्म चक्क मनुष्य के भीतर त्वरित आध्यात्मिक परिवर्तन का सूचक है.. सदियों बाद आज की तारीख में इस उपदेश को बहुत कम लोग ही जानते है, पर नब्बे के दशक में अस्तित्वा में आई बहुजन समाज पार्टी भगवान् बुद्ध के इस उपदेश को अपनी पार्टी का मुख्य उद्देश्य बनाया. भले ही यह राजनीतिक स्वार्थ भावना के चलते अपनाया गया पर जाने अन्जाने पार्टी द्वारा ये अच्छा काम हुआ, वर्तमान समय में पार्टी सता में है और भगवान् बुद्ध के इस विचार को अपनाकर अपनी सरकार की नीति " बहुजन सुखाय बहुजन हिताय " के रूप में प्रदेश की जनता के सामने स्पष्ट कर दिया, विपछियों ने जहाँ इसका मज़ाक उड़ाया, वहीँ स्वच्छ प्रशासन और भयमुक्त समाज की चाह रखने वालों ने इसका स्वागत किया, पर वर्तमान समय में पार्टी दूर दूर तक अपने उद्देश्य के आस पास नज़र नहीं आ रही है... उत्तरप्रदेश  सरकार के कार्यकाल पूरा हो गया पाच  साल का समय पूर्र्ण हो गया  ये उम्मीद अभी की जा सकती है की पार्टी अपने मुख्य उद्देश्य पर वापस आ सकती है, और  आषाढ़ पूर्णिमा के दिन बुद्ध की तरह काश मुख्यमंत्री मायावती के अनुयाई ( कार्यकर्त्ता और मंत्री विधायक गण ) " अपने स्वयं सुखाय स्वयं हिताय " के पथ से हटकर " बहुजन सुखाय बहुजन हिताय " के पथ पर चले, और २०१२ में पार्टी की राह बजाये कठिन बनाने को कुछ आसान बना सके, क्योंकि राहुल गाँधी का दलित प्रेम जिस कदर परवान चढ़ रहा है उस लिहाज से वैसे भी मायावती को सावधान रहना होगा..

।। बौध्ध धर्म में बौद्धोँ का ढोग और पाखंड ।।

बुद्ध एक ढोँगी पाखंडी धर्म है आत्मा परमात्मा को मानते नहीं  फिर भी क्या जाने किसकी ,तपस्या साधना मेँ मगन रहते हैँ, बिना आत्मा का पुर्नजनम भी करवा देते हैँ।एक दिन मेँ ग्यान प्राप्त कर लेते हैँ।दुःख का कारण खोजने मेँ हि दुःखी रहते हैँ ।संसार दुःख का कारण है इसे छौड़ दो बोलकर आत्महत्या को बढाबा देते है इस जीवन से इतना डरे हुए होते हैँ कि दुसरा जन्म नहि चाहते।यहाँ देखेँ बौद्ध भि...क्षु किस अंधविशवास मेँ अपना प्राण त्यागता है
ब्राह्मण कर्मकांडो के विरोधी हैँ खुद उल जुलुल कर्मकाँड करते हैँ सिर मुँडबा लेते हैँ भिक्षा माँगते हैँ पहिया घुमाते हैँ अगरबती घुमाते है बुद्ध के सामने और उन्हेँ भगबान भी नहि मानते ।कर्मकांड ब्राह्मणोँ जैसेकरते हैँ फिर भी ब्राह्मण कर्मकांडोँ का विरोध करते हैँ।वेद का विरोध करते हैँ लेकिन तत्बग्यान उपनिषद से ही चोरी करते है।यहाँ देखेँ बौद्धोँ का हिन्दु धर्म से साहित्यिक चोरी
ये हिन्दु धर्म के अंधविशवास का विरोधकरते हैँ लेकिन ये आज तक अपने धर्म संप्रदाय का हि अंधविशवास खत्म नहिँ कर पाये।व्रज्यान पुरा जादु टोने का हि बौद्ध का संप्रदाय है।ये अत्यंत बहशी प्रवृति के होते हैँ ।इनके शव संस्कार कि प्रक्रिया अत्यंत बहशी और मानवता के विरुद्ध होता है ये लोग अपने घर के परिजनोँ के लाश को काट काट कर या पुरे गिद्धोँ के हवाले कर देतेँहै जो कसाई से भी बदतर कृत माना जायेगा।यहाँ देखेँ कैसे ये शव संस्कार करते हैँ
अय्याशी अवैध संबंधोँ को ढकने के लिए कैसी बात उडा कर रखे है देखेँ शीलावती बौद्ध भिक्षुनी कि ढोँढी पैर के अँगुठे से शाक्य देव देवलोक से आकर छु देते हैँ तो बच्चा पैदा हो जाता है। बौद्ध का इतिहास गद्दारी से भरा पड़ा है आपको अशोक के पहले का एक भी बङा मंदिर नहि मिलेगा ।बहुत सारे मंदिरोँ को लूट कर बौद्धोँ ने विध्वंश कर दिया।ये पहले ग्रीक फिर मुगलोँ को भी अपने मठ विहारमेँ छुपाते थे मंदिरोँ को लुटबाते थे।इस तरह भारत मुगलोँ के गुलाम बना।इनकी गद्दारी देख लाखोँ बौद्ध लोग फिर से हिन्दु बनगये।ये चोरवा धर्म है कुछ भी अपना नहि है इसका ।दान नहि लेते मगर स्तुप बना लेते हैँ।मठ डकैती के सँपत्ति से भर जाता था पहले।अभी इस सँपति पर दलाइलामा काबिज रहते हैँ ।भारत के धर्मशाला छोङते नहि हैँ और यहिँ सबसे ज्यादा र्पोर्पटि है बोद्धोँ का।बौद्ध मेँ समानता देखने बाले ये बताओ बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदायोँ मेँ क्योँ बंटा हुआ हैं जो एक दुसरे को गरियाते नहि थकते--------- संदीप अग्रवाल जी द्वारा लिखित 

लंबी प्रक्रिया के बाद खुद ही ममी में परिवर्तित हो जाते थे जापानी भिक्षु----

उत्तरी जापान में लगभग दो दर्जन से अधिक जापानी भिक्षुओं की ममी मिली थी। इतिहासकारों के अनुसार इन बौद्ध भिक्षुओं को 'सोकूसिनबुत्सू' के नाम से जाना जाता था। शूगेन्दों (बौद्ध धर्म का पुराना पंथ) के अनुयायियों के अनुसार जापान के ये भिक्षु अपने पापों से मुक्ति के लिए आत्मबलिदान दिया करते थे और स्वयं को ममी में परिवर्तित किया करते थे।
इतिहासकारों के अनुसार देह त्यागने की इस प्रथा की शुरूआत 1000 साल पहले माउंट कोया स्थित मंदिर के कुकई नामक एक भिक्षु ने की थी। 'सेल्फ ममीफिकेशन' (जीवित शरीर को ममी में बदलना) की इस प्रथा को तीन प्रक्रियाओं के अनुसार अंजाम दिया जाता था और इस प्रक्रिया को पूरी होने में दस साल का समय लगता था।
सेल्फ ममीफिकेशन की प्रक्रिया -
इस प्रक्रिया का पहला चरण था खान-पान बदलना। इस चरण में भिक्षु मंदिर के आस-पास जंगलों में मिलने वाले बीज आदि खाया करते थे। इस तरह का आहार भिक्षुओं द्वारा 1000 दिनों तक लिया जाता था। लंबे समय तक इस तरह के आहार लेने से उनके शरीर की चर्बी कम हो जाती थी।
इसके बाद की प्रक्रिया-
भिक्षु खाने में सिर्फ देवदार के पेड़ की जड़ें खाया करते थे। परिणामस्वरूप उनके शरीर की नमी ख़त्म होने लगती थी और उनका शरीर सूखने लगता था और शरीर पर कंकाल मात्र शेष रह जाता था।
1000 दिनों की इस प्रक्रिया में भिक्षु ऊरूषि नामक पेड़ के पत्तों से बनी चाय का सेवन किया करते थे। यह काफी जहरीला होता है।
अंतिम प्रक्रिया-
इस अंतिम प्रक्रिया में भिक्षु एक बंद कमरे में खुद को कैद कर लिया करते थे, जहां कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो जाती थी और भिक्षु का शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था।
ममी बनने की अनोखी प्रक्रिया-
मिस्त्र के इतिहास में झांका जाए तो ममी बनाने के लिए मृतकों की देह पर रासायनिक लेप लगाया जाता था, लेकिन इन भिक्षुओं के द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी प्रक्रिया और अनोखे आहार सेवन के कारण इनका शरीर स्वयं ही ममी में परिवर्तित हो जाता था। कई चरणों में होने वाली सेल्फ ममीफिकेशन में हर प्रक्रिया 1000 दिनों की होती थी, जिसके कारण इसे पूरा होने में लगभग 10 सालों का समय लगता था।

ये सभी प्रक्रियाए ढोग नहीं है तो क्या है ??
                              ।। बौद्धोँ कि वेद से साहित्यिक चोरी ।।
The vocabulary of Buddhism is adopted from prevailing literature.
The word Buddha comes in Mahabharat Shantiparva 193/6 to mean ‘intelligent’.
Bodhisatva has been used for Sri Krishna in Shishupal Vadh 15/58 and its commentary by Vallabhdeva.
Bhikshu again is a word denotingcertain sage in Mahabharat Shantiparva 325/24 and Gautam Dharmasutra 3/2.
Shraman comes in BrihadaranyakUpanishad and Gautam Dharmasutra
Nirvana comes from Deval Dharmasutra
and so on.
2. The famous Buddhist chant of Om Mani Padme Hum speaks for itself on glory of Om – that originates from Vedas and is integral part of Hinduism.
If you review the basic precepts of Buddhism, they are simply Vedic teachings reworded.
- For example, the 4 cardinal truths on life, suffering, desire, cessation is straight from Yoga and Nyaya Darshan . In fact Nyaya Darshan 1.2 echoes almost the same essence in as many words.
- The 8 fold path is adequately covered in a variety of ways in all ancient texts – Vedas, Manusmriti, Mahabharat and Yoga Darshan for example.
- The emphasis on Ahimsa is adapted from Yoga Darshan that puts Ahimsa as the first essential discipline for progress in Yoga- the process of realizing self and God.
- Theory of rebirth and Law of Karma that Buddhism is built upon finds its foundation in mantras of Vedas .
- Rejection of birth-based caste-system is also in lines with Vedas .
- Emphasis on meditation is straight adopted from the Yoga Darshan that itself is based on Vedas.
- The 5 commandments for Buddhists and especially monks are from Yoga Darshan 1.2.3
In summary, one can state that Buddhism, as preached by Gautam Buddha, was a system of morality based on Vedas.
 
--द्वारा संदीप अग्रवाल जी --

 ""तथाकथित अहिंसा की प्राथमिकता वाला धर्म किस प्रकार से हिंसा करता है ओ भी मृत शरीर के साथ ""

 कई वर्षों पहले तक तिब्बत में मृतकों के क्रियाकर्म की अनोखी प्रथा प्रचलन में थी, जिसमें मृत व्यक्ति के शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें गिद्धों के सामने परोस दिया जाता था। शवों के टुकड़ों को गिद्धों के सामने परोसने से पहले उसमें चाय की पत्ती और याक का दूध मिलाया जाता था। इस अनोखी प्रथा में सबसे अधिक चकित करने वाली बात यह थी कि इसे मृतक के परिजन ही अपने हाथों से अंजाम देते थे।
इस अनोखे प्रचलन में कई बार शवों के टुकडों को बिना किसी पारंपरिक प्रक्रिया के ही पक्षियों के सामने डाल दिया जाता था। कई बार गिद्धों द्वारा शवों के टुकड़ों का मांस खा लिया जाता और हड्डियां छोड़ दी जाती, जिसके बाद मृतक के परिजन उन हड्डियों को हथौड़े से कूटकर दुबारा कौवों और बाज को खिलाते थे। 1960 के दशक में चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा इस प्रथा पर रोक लगा दी गई, लेकिन 1980 के दशक में कई जगह ये प्रथा फिर से देखने में आई।
http://www.youtube.com/watch?v=5z7gYj_ngso&feature=player_embedded

नोट --मैं ब्याक्तिगत रूप से सभी धर्मो का सम्मान करता हु और करता रहूगा !मैं किसी भी धर्र्म की खिल्ली उड़ाना या कमिया देखना मेरे स्वभाव में नहीं है, पर कुछ तथाकथित नव बौध्ध दिन भर वैदिक सनातन धर्र्म की निदा और बुराई करते रहते है जिससे त्रस्त  होकर उनको जबाब के रूप में यह ब्लॉग मेरे नव बौध्दो को समर्पित है !!

!!मजे का पैमाना!!

आप तमीज वाला लिखे
या बदतमीजी से भरा शब्द
वैसा ही प्रतिशब्द लौटकर आपके पास आयेगा
जो लिखेगा शब्द सुंदर भाषा से सजे
तो वाह वाह से गूंजे शब्दों का
... सुर आपके पास लहरायेगा।
जो अभद्र शब्द सजायेगा
तो कहीं से सुनेगा वैसा ही जवाब
कहीं से उठी आह का शिकार हो जायेगा।

ओ कवि! गुस्से में हो या खुशी में
लिखते हुए अपने जज्बातों में
बस उतनी ही तेजी से बहना
जितनी गति का हो सके आपसे  से सहना
पढ़ने वाली आंखों का भी ख्याल करना
जब तक हैं आपकी कमान में तीर की तरह शब्द
उनको छोड़ने से पहले
निशाने का भी ख्याल करना
तीर की तरह शब्द भी नहीं लौटते
पर उनके जवाब भी वैसे ही
सामने से भी आते हैं
जैसे होते हैं शब्द वैसे ही
प्रतिशब्द भी आते हैं
जिन अच्छे शब्दों को लिखने का
मजा आपने लिये लिया था
सामने से आये जवाब से
वह दोहरा आयेगा
जिन खराब शब्दों को लिख कर
आप बहुत खुश हुए थे
वह भी वैसे ही बुरे प्रतिशब्द लेकर आयेंगे
तब आपका दिल पछतायेगा
और मजे का पैमाना शून्य हो जायेगा...
मित्रो जय जय श्री राम ......