बुधवार, 4 जनवरी 2012

!!आस्था की आड़ में देवी -देवताओं का अपमान क्यों ?

विश्वविद्यालय  अच्छी से अच्छी सिक्षा का एक केंद्र है और हम बड़े गर्व से कहते है की मैं अमुक विश्वविद्यालय में पढ़ता हु पर इन्ही में से एक है ""जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय ""!मैं वहां नहीं पढ़ा इसकी कसक हमेशा थी लेकिन अब नहीं है। अब तक हमें पता था कि ये लीक से अलग हटकर सोचने वाले युवाओं का बौद्धिक तीर्थस्थल है अब मै ये कह सकता हूँ ये हिन्दुस्तान में तालिबानियों की एक पूरी जमात पैदा कर रहा है।
एक ऐसी जमात जिसने ब्राह्मणवाद के विरोध की आड़ में हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के खिलाफ जेहाद छेड़ रखा है अगर ये सब सिर्फ धार्मिक वितंडावाद और धर्मजनित शोषण उत्पीडन और गैर बराबरी के खिलाफ होता तो निस्संदेह इसका स्वागत किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा न करके आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंस फोरम (एआइबीएसएफ)और यूनाईटेड दलित स्टूडेंटस फोरम (यूडीएसएफ) जैसे तथाकथित छात्र संगठनों ने न सिर्फ हिन्दू देवी देवताओं का अपमान शुरू कर दिया बल्कि हिंदी और हिन्दुस्तान के घोर विरोधी मैकाले की जयंती भी मनाई। इस विरोध में दलितों पिछड़ों के ये तथाकथित विचारक ये भूल गए कि आज देश में सवर्णों और एलिटों की धार्मिक आस्था तो पूरी तरह से उपभोग और मध्यमवर्गीय कुंठा में विलीन हो गयी है ,ये धर्म का इस्तेमाल भी फैशन की तरह करते है ,असली आस्था और आस्थाओं से जुडी जीवन शैली तो हमारे गाँवों, देहातों में दलितों, आदिवासियों -गिरिजनों ने अपना रखी है। अभी कुछ समय पहले  उड़ीसा में आदिवासियों ने अपने हाथों से अपनी झोपडियों में आग लगा दिया है, वजह ये थी कि पुलिस के जवान माओवादियों की तलाश में उनके घरों में घुस आये थे। इस दौरान जूते पहनकर वो उनके रसोईघर में भी चले गए जहाँ वो आमतौर पर अपने देवी-देवताओं की तस्वीरें रखते हैं, इसलिए उन्होंने पुलिस के घर में घुसने के बाद पवित्रता के लिए घर को भी जलाने में कोई संकोच नहीं किया शर्मनाक स्थिति ये है कि आज देश में दलितवाद के पुरोधाओं और दलितों के तथाकथित मसीहाओं ने दलितों, आदिवासियों को देखा ही नहीं है, उनके विचार युद्ध भी उन दलितों -पिछडों के लिए होते हैं जिसके पेट भरे हुए हैं। ये विचारक या तो इस दम पर सत्ता हासिल करना चाहते हैं या खुद को जबरिया बुद्धिजीवी मनवाने पर तुले हुए हैं। हम इसे धोखाधड़ी कहते हैं। शायद बात अजीबोगरीब लगे लेकिन ये सच है कि वो लोग जो जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में महिसाषुर की जयंती मना रहे हैं अगर किसी बैगा या धरकार आदिवासी के घर जाकर उनको अपने उद्देश्यों के बारे में बताएं तो वो अगले ही पल घर में रखी कुल्हाड़ी से उनकी गर्दन अलग कर देगा। वो भी इसे वध कहना कहते हैं। धर्म से जुड़े मिथकों से दलितों-आदिवासियों ने अपने अपने किस्से गढ़ लिए हैं, जो कहीं भी किसी भी किताब में पढऩे को नहीं मिलते। जिरही, अमिला जैसे दुर्गा के नाम आपको किसी भी हिंदू धर्म के ग्रंथों में नहीं मिलेंगे। वो उन्हें अपनी खेती किसानी और अपनी संस्थाओं से जोड़ कर देखता हैं। मजे की बात ये है कि आदिवासियों को हिन्दू धर्म से कोई मतलब नहीं है। मध्य प्रदेश पूर्वी उत्तर प्रदेश और छतीसगढ़ की कई जनजातियाँ तो जानती ही नहीं उनका धर्म क्या है। हाँ उनके आस्था के प्रतीक वही हैं जो हिन्दुओं के है ,लेकिन उनकी पूजा शैली भी बिलकुल भिन्न है। वो नवरात्र में महिसाषुर के नाम पर अमिला देवी के मंदिर पर हजारों पशुओं की बलि चढ़ा देगा और उन्हें खायेगा भी ,जबकि कोई भी हिन्दू धर्म का अनुयायी नवरात्र में मांस को हाँथ तक नहीं लगाएगा। आप और हम मिथकों को नए तरीकों से परिभाषित कर अपनी अपनी कुंठाओं को शांत कर सकते हैं ,वो उन्हें परिभाषित हरगिज नहीं करेगा ,क्यूंकि उसे लगता है कि वो इन्ही की बदौलत वो सरकार ,सवर्णवादी समाज और प्रकृति से लड़ सकता है। हमारे कहने का मतलब ये हरगिज नहीं है कि मिथकों को परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए ,लेकिन मिथक दूसरे मिथक को ही जन्म देंगे, ये सच है।
शायद हममे से कुछ लोगों ने ने इतिहासकार डॉ युगेश्वर को पढ़ा हो उन्होंने कई किताबें लिखी है जिनमे एक किताब है रावण एक जीवन  उनकी ये किताब पढ़ते वक्त मुमकिन है आपकी आस्था रावण में हो जाए ,इतिहास से जुड़े पात्रों का चुनाव हमें व्यक्तिगत तौर पर करना है ,लेकिन इसे किसी समूह पर कैसे अध्यारोपित किया जा सकता है ?
फेसबुक और ब्लागिंग के इस शानदार युग में जब विचारों का बेरोक टोक आदान प्रदान संभव है ,शहरी एलिट वर्ग को ये स्वतंत्रता बर्दाश्त नहीं हो पा रही है। ये कुछ ऐसा है कि बढिय़ा पकवान को अति खाना और शर्मनाक तरीके से उलटी कर देना। उन्हे यूँ लगता है कि इन माध्यमों का उपयोग करके वो किसी भी व्यक्ति या समुदाय पर पूरी ताकत से हमला बोल सकते हैं ,नतीजा ये है कि ये हमले वेब से निकलकर विश्वविद्यालाओं के गलियारों तक पहुँच चुके हैं। एक ऐसे समय में जब सत्ता ने विश्वविद्यालयों के लोकतंत्र को अपने पैरों से रौंद डाला हैं। छात्र संघ चुनावों को ख़त्म करके छात्रों से विरोध का एक आखिरी हथियार भी छिन्न लिया गया हो ,जहाँ नहीं तहां छात्र लतियाए जा रहे हों ,लठीयाये जा रहे हों ,मेस में दलित छात्रों का सबके साथ भोजन करना अभी तक वर्जित हो ,इस तरह की कोई भी कोशिश बेहद खेदपूर्ण है। आस्था और अनास्था हमें खुद तय करनी है ,लेकिन किसी भी व्यक्ति या वर्ग की आस्था को अवैज्ञानिक और अतार्किक आधार पर चोट पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। याद रखें ये वही जेएनयु है जहाँ अश्लील एम्एम्एस बनाने कों भी एक किस्म की बुद्धिजीविता माना जाता है ,ये वही जेएनयु है जहाँ के छात्र ,किताबों और जनांदोलनों की राह छोड़कर गांजे और चरस के अँधेरे में गुम हैं। ये वही विश्वविद्यालय है जो दुनिया भर के लाखों छात्रों का निर्माण करने वाले काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के कुलगीत का अपमान करता है। अतिवादिता हमेशा खतरनाक होती है ,मुमकिन है आगे देवी देवताओं के चित्र जलाये जाएँ,केम्पस जंग के मैदान में तब्दील हो जाए और कुछ  ब्लाग्स और वेबसाइट्स इसे भुनाए भी। जो भी हो ये तय है महिषासुर और मैकाले कों पूजने वाले इस विश्वविद्यालय ने अब वो अधिकार खो दिया है, जिससे वो देश भर के छात्रों और छात्र आन्दोलनों का नेतृत्व कर सके।और अब इन विश्वविद्यालय में गुंडा तत्वों का आतंक्गाह बनता जा रहा है ,,,,,,,,,,,,,,,,,क्या यह देश हित में है क्या समाज को इसी दिशा में ले जाना चाहते है ,,,,,

!!रीवा (बाघेल या बाघेला) राज घराने का इतिहास !!


                           REWAH (Princely State)

                      (17 gun salute)






AREA: 33,670 km2 PRIVY PURSE: 1,000,000Rs ACCESSION: 1st January 1950
STATE: Madhya Pradesh  DYNASTY: Baghela  RELIGION: Hindu
PRESENT RULER: HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja PUSHPRAJ SINGH Ju Deo Bahadur, 36th Maharaja of Rewah since 20th November 1995. (Rewa House, Mumbai, India)
born 3rd July 1960, married HH Maharani Ragini Singh, and has issue.
  • Yuvraj Divyaraj Singh
  • Rajkumari Mohena Kumari
PREDECESSORS AND SHORT HISTORY: Predecessor state was founded circa 1140. The chiefs of Rewa were Baghel Rajputs descended from the Solanki clan which ruled over Gujrat from the tenth to the thirteenth century. Vyaghra Deo, brother of the ruler of Gujarat, is said to have made his way into northern India about the middle of the thirteenth century and obtained the fort of Marpha, 18 miles north-east of Kalinjar. His son Karandeo married a Kalchuri (Haihaya) princess of Mandla and received in dowry the fort of Bandhogarh which, until its destruction in 1597 by Akbar was the Baghel Capital. In 1298, Ulugh Khan, acting under orders of emperor Alauddin drove the last Baghel ruler of Gujrat from his country and this is believed to have caused a considerable migration of the Baghels to Bandhogarh. Until the 15th century the Baghels of Bandhogarh were engaged in extending their possessions and escaped the attention of the Delhi kings, in 1498-9, Sikandar Lodi failed in his attempt to take the fort of Bandhogarh. Rulers were...
Maharaja PUSHPRAJ SINGH Ju Deo Bahadur,

  1. Maharaja SHAKTIVAN Deo, Maharaja of Bandhogarh 1495/1500
  2. Maharaja VEER SINGH Deo, Maharaja of Bandhogarh 1500/1540, married and had issue.
    • Thakur Nadbhanu [Horildeo], third son, he received the estate of Beerha as his patrimony in 1550, he was appointed a mansabdar with the title of Horilshah by Emperor Humayun of Delhi.
  3. Maharaja VIRBHAN SINGH, Maharaja of Bandhogarh 1540/1555
  4. Maharaja RAMCHANDRA SINGH, Maharaja of Bandhogarh 1555/1592
  5. Maharaja DURYODHAN SINGH [Birbhadra Singh], 19th Maharaja of Bandhogarh 1593/1618 (deposed), his accession gave rise to disturbances, and Padshah Akbar of Delhi intervened, captured and dismantled the Bandhogarh fort in 1597 after a siege of eight months; married 1618, a natural daughter of Raja Badan Singh of Bhadawar, because of which he was expelled and retired to Bhadawar.
  6. Maharaja VIKRAMADITYA, Maharaja of Rewah 1618/1630, after the capture of the Fort of Bandhogarh, the town of Rewa, was founded by Raja Vikramaditya in 1618 (which perhaps means that he undertook the construction of palaces and other buildings there because the place had already assumed importance in 1554 when it was held by Jalal Khan son of emperor Shershah), and started gaining in importance; married and had issue, four sons.
    • Maharaja Amar Singh II (qv)
    • Kunwar Indra Singh, he was granted Patharhat Estate.
    • Kunwar Sarup Singh, he was granted Panasi Estate.
    • Kunwar Angad Rai, he was granted Chandiya Estate.
  7. Maharaja AMAR SINGH II, Maharaja of Rewah 1630/1643, married and had issue.
    • Maharaja Anoop Singh (qv)
    • Raja Fateh Singh, he rebelled against his father and established himself in Sohawal.
  8. Maharaja ANOOP SINGH, Maharaja of Rewah 1643/1660, married and had issue, three sons.
    • Maharaja Bhao Singh (qv)
    • Kunwar Yashwant Singh, he was granted the Jagir of Gudh, married and had issue, two sons.
      • Kunwar Mukund Singh, he was granted the estate of Semariya.
      • Kunwar Anirudh Singh, adopted by his uncle adn succeeded as Maharaja Anirudh Singh (qv)
    • Kunwar Jhujhar Singh, he was granted the estate of Ramnagar Itma.
  9. Maharaja BHAO SINGH, Maharaja of Rewah 1660/1690, married 1stly, Maharani Ajab Kunwar, daughter of Maharana Raj Singhji I of Udaipur, married 2ndly, 1668, Maharani Kunj Kumari, a daughter of Raikwar Thakur Sadan Singh of Nadan in Rewah State, and had adoptive issue. He died sp 1690.
  10. Maharaja ANIRUDH SINGH, Maharaja of Rewah 1690/1700, born as Kunwar Anirudh Singh, son of Thakur Yashwant Singh of Gudh, adopted by his uncle; married and had issue, one son.
    • Maharaja Avadhut Singh (qv)
  11. Maharaja AVADHUT SINGH, Maharaja of Rewah 1700/1755, the state was sacked by Hirde Shah of Panna in about 1731, causing the Raja to flee to Pratapgarh in Oudh; married (amongst others), (a), Maharani Ratan Kumari Devi, married (b), Maharani Sagun Kunwar, daughter of Umara-i-Uzzam Maharaja Mahendra Gopal Singh of Bhadawar, and his fifth wife, the daughter of Raja Madho Singh Sirnet of Bansi, and had issue, one son.
    • Maharaja Ajit Singh (qv)
  12. Maharaja AJIT SINGH, Maharaja of Rewah 1755/1809, married Maharani Kundan Kunwar, died 1802, daughter of Chandel Thakur Vikram Singh of Silpatra, and had issue, one son. He died 1809.
    • Maharaja Jai Singh (qv)
  13. Maharaja JAI SINGH, Maharaja of Rewah 1809/1835, born 4th January 1765; in 1812 a body of Pindaris raided Mirzapur from Rewa territory. Upon this Jaisingh was called upon to accede to a treaty, in which he acknowledged the protection of the British Government, and agreed to refer all disputes with neighbouring chiefs to their arbitration and to allow British troops to march through or be cantoned in his territories; married 1stly, a daughter of Gaharwar Raja Udhhat Singh of Manda, married 2ndly, a daughter of Dikshit Raja Madhav Singh of Goraiya, and had issue, three sons and one daughter. He died 1835. 
    • Maharaja Vishwanath Singh Bahadur (qv)
    • Babu Laxman Singh, he was granted the estate of Madhavgarh estate, married and  had issue, two sons.
      • Kunwar Ran Bahadur Singh, married a daughter of Sirnet Raja Prakash Singh of Bansi in U.P. He died sp.
      • Kunwar (name unknown), succeeded his brother in Madhavgarh, died without issue, and the estate was merged into Rewah.
      • Kumari (name unknown), married Maharana Jawan Singhji of Udaipur.
      • Kumari (name unknown), married 1834, Maharana Jawan Singhji of Udaipur.
    • Babu Balbhadra Singh, he was granted the estate of Amarpatan; married Rani Chhavinath Kunwari, daughter of Gaharwar Thakur Manbodh Singh of Kaithaha estate in Rewah (a relation of the Raja Saheb of Manda in U.P.), and had issue.
      • Kumari (name unknown), married 1837, Maharaja Sardar Singhji of Bikaner.
    • Maharajkumari Sahodar Kunwar, married 1823, Maharana Jawan Singhji of Udaipur.
  14. Maharaja VISHWANATH SINGH Bahadur, Maharaja of Rewah 1835/1854, born 1789, married and had issue, one sons and three daughters. He died 1854.
    • HH Maharaja Raghuraj Singh Bahadur (qv)
    • Maharajkumari (name unknown), married Maharaja Ram Singhji II of Jaipur.
    • Maharajkumari (name unknown), married Maharaj Mahabat Singh of Jodhpur.
    • Maharajkumari Subhadra Kumari, married 2nd July 1821, Yuvraj (later) Maharana Jawan Singhji Bahadur of Udaipur.
  15. Lt.Col. HH Maharaja Sir VENKATARAMAN SINGH Ju Deo Bahadur (1876-1918)HH Maharaja RAGHURAJ SINGH Bahadur, Maharaja of Rewah 1854/1880, born 1831, Maharaja Raghuraj Singh helped the British in quelling the uprisings in the neighbouring Mandla and Jabalpur districta in the mutiny of 1857, and in Nagod which is now a part of Satna district, for this, the Maharaja was rewarded by restoration to him of the Sohagpur (Shahdol) and Amarkantak parganas, which had been seized by the Marathas in the beginning of the century, Maharaja [cr.1857]; married eight wives, including 1stly, 1845, daughter of Bisen Raja of Bhadri in Oudh, married 2ndly, 1851, HH Maharani Sobhag Kanwar, daughter of Maharana Sardar Singhji Bahadur of Udaipur, and had issue, one son and several daughters. He died 5th February 1880.
    • Lt.Col. HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja Sir Venkat Raman Ramanuj Prasad Singh Ju Deo Bahadur (qv)
    • Maharajkumari Vishnuprasad Kunwar, born 1846, married 1864, Maharaj Kishore Singh of Jodhpur.
    • Maharajkumari (name unknown) [HH Maharani (name unknown) Sahiba of Bundi], married 2nd February 1903, Colonel HH Maharao Raja Shri Sir Raghubir Singhji Sahib Bahadur of Bundi. She died 31st December 1904 in Bundi.
  16. Lt.-Col. HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja Sir VENKAT RAMAN RAMANUJ PRASAD SINGH Ju Deo Bahadur, Maharaja of Rewah 1880/1918, born 23rd July 1876, G.C.S.I. [cr.1897], married 1stly, 1892, HH Maharani Shivraj Kumari Devi, died 1917, daughter of Maharaja Sir Radha Prasad Singhji Bahadur of Dumraon in Bihar, married 2ndly, HH Maharani Gulab Kumari, died 1913, daughter of HH Maharaja Sir Ranjit Singhji of Ratlam, married 3rdly, 1904, HH Maharani Keerat Kumari, daughter of General Parihar Thakur Bakhsh Singh of Thikana Jhagarpur in U.P., and had issue, two sons and one daughter. He died 3rd November 1918.
    • Major-General HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhvesh Shri Maharaja Sir Ghulab Singh Ju Deo Bahadur (qv)
    • Maharajkumar Ravendra Ramanuj Prasad Singh (by Maharani Keerat Kumari), born 10th January 1917; died 10th June 1940.
    • HH Maharani Sudarshan Prasad Kumari, born 5th September 1906, married 18th April 1922, HH Maharajadhiraj Sri SADUL SINGH of Bikaner, and had issue. She died 19th December  1971.
  17. Major-General HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja Sir GHULAB SINGH Ju Deo Bahadur, Maharaja of Rewah 1918/1946 (deposed 30th January 1946), born 12th March 1903, G.C.I.E. [cr.1.1.1931], K.C.S.I. [cr. 1.1.1927], married 1stly, 25th June 1919, HH Bandhveshwari Shri Maharani Sahiba Samrajyi Kunwar, born 1903, died 1954, daughter of HH Maharaja Dhiraj Maharaja Sri Sir Sardar Singhji Bahadur of Jodhpur, married 2ndly, 18th February 1925, HH Maharani Ballabh Kumari, daughter of Lt.-Col. HH Umdae Rajhae Buland Makan Maharajadhiraja Maharaja Sir Madan Singhji Bahadur of Kishangarh, and had issue, one son. He died 13th April 1950.
    • HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja Martand Singhji Ju Deo Bahadur (qv)
  18. HH Bandhvesh Maharaja Sir GHULAB SINGH Bahadur (1903-1950)HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja MARTAND SINGH Ju Deo Bahadur, Maharaja of Rewah 1946/1995, born 15th March 1923, elected to the Fifth, Seventh and Eighth Lok Sabha representing Rewa Parliamentary Constituency of Madhya Pradesh during 1971-1977 and 1980-1989. An agriculturist and businessman by profession, he was Raj Pramukh of Vindhya Pradesh. He was a very popular and active social worker. As a philanthropist, he built hospitals, dispensaries and organised camps for providing medical aid to indigent and sick people. He donated his palace at Satna and other properties for establishment of educational institutions like Banaras Hindu University and College in Satna. A widely travelled person, he evinced keen interest in the fields of sports, education, photography, archaeology and wildlife preservation. He established and developed National Park at Bandhogarh. He had served as a member of All India Wildlife Preservation Board and as the Director of Madhya Pradesh Udyog Vikas Nigam, Bhopal. He also made special efforts for development of irrigation, industries, transport, electrification and rail services in his area, married 1943, HH Maharani Praveen Kunverba, born 1926, daughter of HH Maharajadhiraj Mirzan Maharao Shri Vijayarajji Khengarji Sawai Bahadur of Kutch, and his wife, HH Maharani Shri Padmakunwar Ba Sahiba, and had issue. He died 20th November 1995 at Rewah.
    • HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja Pushpraj Singh Ju Deo Bahadur (qv)
  19. HH Samrajya Maharajadhiraja Bandhresh Shri Maharaja PUSHPRAJ SINGH Ju Deo Bahadur, Maharaja of Rewah in present time .....
    1.  
      1- MAHARAJA ByaghrDEV 
      (''बाघेल या बाघेला'' वंस के पहले राजा )
      2- MAHARAJA karan DEV
      3- MAHARAJA Sohag Dev
      4- MAHARAJA Sarang Dev
      5- MAHARAJA Vishal Dev
      6- MAHARAJA Bheemal Dev
      7- MAHARAJA Shrinak DEv
      8- MAHARAJA Balan Dev
      9- MAHARAJA Dalkeswar Dev
      10-MAHARAJA Malkeshwar Dev
      11-MAHARAJA Bariyal Dev
      12-MAHARAJA Ballar Dev(1349-1351)
      13-MAHARAJA Singh dev(1351-1380)
      14-MAHARAJA Bherav Dev(1380-1420)
      15-MAHARAJA Lhar Dev (1420-1440)
      16-MAHARAJA Bhaigh Dev(1440-1495)
      17-MAHARAJA sali Vahan(1495-1500)
      18-MAHARAJA Veer Singh(1500-1540)
      19-MAHARAJA Veerbhan Singh(1540-1555)
      20-MAHARAJA Ramchandr Singh(1555-1592)
      21-MAHARAJA Veerbhadr Singh(1592-1593)
      22-MAHARAJA Vikrmaditya Singh(1593-1624)
      23-MAHARAJA Amar Singh(1624-1640)
      24-MAHARAJA Anoop Singh(1640-1660)
      25-MAHARAJA Bhaav Singh(1660-1690)
      26-MAHARAJA Anirudh Singh(1690-1700)
      27-MAHARAJA Avdhoot Singh(1700-1755)
      28-MAHARAJA Ajeet Singh(1755-1809)
      29-MAHARAJA Jay Singh(1809-1833)
      30-MAHARAJA Vishvnath Singh(1833-1854)
      31-MAHARAJA Raghuraj Singh(1854-1880)
      32-MAHARAJA Venkatraman Singh(1880-1918)
      33-MAHARAJA Gulab Singh(1918-1947)
      34-MAHARAJA Martand Singh(1947-1997)
      ( MAHARAJA Martand Singh is last MAHARAJA of rewa state.. )
      35-MAHARAJA pushpraj Singh
      36- Kuvanr Divyraj Singh Judev

       http://members.iinet.net.au/~royalty/ips/r/rewah.html
    1. http://htcedws.blogspot.in/2015/07/blog-post_17.html 

!!गलतियों से सीखे ना की कोशे ...!!

अधिकतर छत पर बनी पानी की टंकी की दशा को सुधारनें या देखने के लिए ऊपर चढऩा पड़ता है। ऊपर जाना कोई बडी बात नही पर सीढिय़ों के बजाय बास की बनी नसैनी से ऊपर जाना मानो ना मानो सही में बड़ी बात है। और उस पर अगर नसैनी की हालत खस्ता है। और उसमें से कुछ पायदान भी गायब है। जो पायदान है। उनके बास भी चटक गए है। उनको थामने वाली कीले भी जंग से कमजोर हो चुकी है। तब तो उस पर चढ़कर ऊपर जाने में अच्छे अच्छो का हलक सूख जाएगा। फिर भी महीने में एक-दो बार तो वो लोग इस जोखिम को लेने से नही क तराते जिनके घर में सीढिय़ा नही है। क्यो कि वो इसका उपयोग पहले से करे आ रहे है।
इसलिए उनका नसैनी से गिर जाने का डर खत्म हो गया है। किसी ने सही कहा है जिस भी काम से डर या उसको करने में हिचकिचाहट हो उसे ज्यादा करना चाहिए  या बार -बार  करना चाहिए उस काम के प्रति हमारा डर है वो खत्म हो जाएगा। इसी कथन को ध्यान में रखकर एक बडी पेय पदार्थ कंपनी ने तो इस पेय पदार्थ की पब्लिसिटी करने के लिए तथा दूसरे पेय पदार्थाे से अधिक बेचने के लिए एक अपना अलग ही डायलाग/सलोग्न बना डाला डर के आगे जीत है।
ऐसा ही कुछ मैं भी बहुत सारी दूसरी चीजों के साथ भी करता हू। कई दफा पुराने दफ्तर कि लिफ्ट अटक जाने पर उसे ताकत लगाकर खोलता हू और दोनों तलो के बीच से निकलकर बाहर आ जाता हू। जानता हू ऐसे काम बेहद खतरनाक है। पर दिल बहुत से खतरे उठाने की इजाजत बेहिचक दे देता है। दिल कहता है अभी तो मैं जवान हू। मुझे किसी चीज से डरने कि क्या जरूरत है।
मैं नयी चीजे करने से नही कतराता जब छोटा था आठ -नौ सीढिय़ा एक साथ कूदकर उतरने मे अपनी शान समझता था। इसके अलावा मैं ऐसी बहुत सी चीजे करके देखता हू। जिनमें मुझे चोट लगने का अंदेशा होता है। जितने ज्यादा खतरे उठाए है। उतना अधिक ही मैं चीजों को और दुनिया को समझ पाया हू। खतरे उठाने से मेरा मतलब है। नपे-तुले रिस्क के साथ नए काम करके देखना।
खैर खतरे उठाने वाले बहुत से काम हम सभी बचपन में करते थे। पेडों पर चढऩा, झाडियो में घुसना,अगांरो से खेलना, कुछ जोश में आकर हम खुद को खतरे में डालकर भी नया सीखतें है। जैसा कि मुझे क्रिकेट बहुत पसंद है। खेलना और भी अधिक मै ज्यादा बडा खिलाड़ी तो नही बना सका और नाही किसी रणजी,ईरानी ट्राफी का प्लेयर। पर मैरे गांव व आस-पास के क्षेत्रो में तो अपनी गिनती हमेशा शीर्ष में ही रही। बाऊंडरी पार जाती गेंद को फिसलकर गांव के मैदानों में पकडना अपने आपको जानबूझकर चलती गाडी से गिराने जैसा है। उस वक्त तो फिसलने से लगी चोटो का एहसास नही होता। क्योकि एक तो मेच जीतने का जोश दूसरा दर्शको का उत्साहवर्धन करना दिल मे जोश भर देता है। पर बाद में महसूस होता है कि ऐसा करके आफत मोल ले ली।
बड़े होने पर हमने ये सब करना बंद कर दिया। इसके पीछे कई कारण थे। सबसे बड़ी वजह तो यह थी कि हमे सिद्धांतत बहुत सी बाते समझ में आने लगी। इसलिए उन्हे आजमा कर परखने की जरूरत खत्म हो गई है। एक और अहम वजह यह भी रही कि हर चीज को करके देखने के लिए हमने जितने दर्द सहे उनके एवज में हमे कुछ कीमती चीज नही मिली नजीजतन हम अपना बचाव करना सीख गए।
इस सबसे एक नुकसान:- हम खुद को महफूज रखने में कामयाब रहे पर खतरे उठाने फायदे में रहे जिन व्यक्तियों ने यथास्थितिवाद को उचित माना उनकी दुनिया वही थम गयी। मुश्किल तो यह है। कि वे समझ ही नही पाते कि दूसरे उनसे आगे क्यू निकल गए। यहा मै स्पष्ट कर दू कि दूसरो से आगे निकलने के मेरे मापदंड कुछ अलग है। मैं उस व्यक्ति को दूसरो से आगे मानता हू जो हर पल कुछ न कुछ सीखता और आंतरिक विकास करता रहता है। दूसरो से ज्यादा कमाई करना या अधिक धन जुटा लेना आगे बढऩे या बड़ा होने का बड़ा लचर पैमाना है।
इस तरह मै अपनी दुनिया को हमेशा घूमती-डोलती देखना चाहता हू। मैँ अपनी नौका किनारे से खूटे से बंधी नही देख सकता किसी बडे आदमी कहा भी है कि नौकाए किनारे पर सबसे सुरक्षित होती है। पर नौकाओ को इसलिए नही बनाया जाता.............आप भी अपनी नौका को किनारे पर कूडा कचरा भरता नही देखना चाहेंगे।
एक महान दार्शनिक मुझे नाम सही से याद नही उसने कहा था कि हाथो कि उपस्थिति के कारण ही मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वाधिक बुद्धिमान है। चीजो को बेहतर तरीके से उठाने और थामने की हमारी योग्यता हमे अपने परिवेश में सबसे आगे रखती है। अपने अंगूठे और अंगुलियो की मदद से हम दाना चुनने से लेकर हथोडा पीटने जैसे काम बखूबी अजंाम देते है। और हमारा दिमाग इस तथ्य को जानता है। कि हमे कोनसा काम किस तरह करना है। अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने के लिए हमे बचपन से ही विविधतापूर्ण काम करके देखने चाहिए।
कुछ भी नया करते समय भीतर से भय का स्वंर उठता है। इस भय का सामना करना किसी भी उम्र में सीखा जा सकता है। खुद के मन को यह बार-बार कहने की जरूरत है हॉ मुझे चोट लग सकती है। पर एक बार करे देखने में क्या हर्ज है। इसे करके देखना चाहिए। अपने मन में उस कार्य के लिए ऐसा सोचना चाहिए कि ये इतना मुश्किल भी नही लगता कि मै न कर सकू । करके देखते है ज्यादा से ज्यादा नाकामयाब ही तो रहेंगे।
मेरे परिवार के छोटे बच्चे ऐसे तो इनकी संख्या अधिक है। पर यहा में सिर्फ दो की चर्चा करना ठीक समझूंगा। क्यो कि यहा मैं जो बात स्पष्ट करना चाहता चाहता हू। उसके लिए ये दोनो एकदम सटीक उदाहरण है। मेरी भानजी धर्मष्ठिा (राधे),और मामा का लडका कान्हू। ये दोनो इनकी शैतानियों और चंचलता के कारण आए दिन अपने शरीर को कुछ न कुछ पीडा पहुचा ही लेते  है। विशेषकर जब घर में कुछ मांगलिक कार्य या त्योहार के कारण अधिक लोग जमा हो जाते है। राधे कई बार लौ को छूने के चक्कर में अपनी अंगुलिया जला चुकी है। और आग आजमाने के मामले में कान्हू की तो चूल्हे में से जलती लकड़ी को पकडकर कई बार अपने  हाथो को जला चुका है। ये दोनो तो दिन भर मे ऐसे कई कामों को अजांम देते है। और इन्हे चुप कराने में हमारी नानी याद आ जाती है। लेकिन आग से तो इन दोनो ने ऐसा सबक लिया की। राधे तो मोमबती/दिए/अगरबती से भी दूरी बनाकर चलती है।
बगाों को बिस्तर से नही गिरने देने के हर सभंव प्रयास करने के बाद अभी भी कोई न कोई टपक ही जाता हैं। एक मिनट का रोना फिर वही धमाचौकडी चालू। पहले तो मै इन सब चीजो बहुत घबरा जाता था। बात-बात पर मेरी दीदी को बोलता रहता आप राधे का खयाल नही रखते । पर अब जान गया हू कि गिरना-पडऩा,जलना उनकी विकासयात्रा का अनिवार्य चरण है। बस इनकी पुनरावृति न हो और हमेशा अहतियात बरता जाए।  हम मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वाधिक तेजी से सीखते है। और अपनी गलती से सबक लेकर आगे बढता है।  और जो गलतियों से सबक नही लेतें कभी आगे नही बढ़ पाते केवल मानसिकता ही हमे अक्सर पीछे धकेलती है। सभी गुणों में सीखना मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण है। ये ही सफल व्यक्ति को असफल से पृथक करता है। दफ्तर में चार सालो का अनुभव लेने के नाते में जानता हू जो व्यक्ति प्रयोगधर्मी होता है।
वह कार्यकुशल भी होता है। और अपने कार्य को बेहतर तरीके से व समय पर करता है। लेकिन अब इस मुद्दे पर बात बढाने पर विषय में अंतर आ जाएगा।  तो सारी बातो का सार यह है कि नए प्रयोग और नयी चीजे करके देखते रहना हमे आगे ले जाता है। और यथास्थितिवादी बने रहना जड बना देता है।
तो लोटा लाइए अपने भीतर अपना बचपन जब आप जिज्ञासा एंव ऊर्जा से भरपूर थे। और कुछ नया देखने करने के लिए आपको ऐसे प्रेरक लेखो की जरूरत नही पडती थी ! 
भगवान बुद्ध ने कहा "पहला पत्थर वो मरे जिसने पाप न किया हो " इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति
नहीं है ,जो पापी न हो यदि हम सब सही करते तो हम इश्वर होते इसलिए , गलतियों पर रोना मत सीखो...गलतिया सीख देती है ,गलतियों को सुधारना सीखो , गिरने और उठने वाले की ही जीत होती है !