सोमवार, 3 जून 2013

!! वेद का शुक्त रचने वाले सूद्र !!

वेदो के बारे मे तथाकथित दलित विचारक कहते है की वेद पढने का अधिकार कभी शुद्रो को नही था. खैर ये  क्या कहते है क्या नही कहते उससे कोई खास फर्क तो नही पङता पर उन महान शुद्र विद्वानो के नाम बताना मै जरुरी समझता हुं जिन्होने वेद लिखने मे अहम भूमिका अदा की..
1- आचार्य कवस 2- एलुस 3- महिदास 4- ऐतरेय 5- दीर्घतमा 6- औशिज 7- काच्छीवान 8- वत्स 9- काण्वायन 10- सुदछिनच्छेमि 
11- रैक्यमुनि 12- सत्यकाम 13- जाबाल
इन सब महान विद्वानो के चरणो मे कोटि कोटि नमन..
वे आर्य जो न तो वैश्य थे न च्छत्रिय थे वो या तो ब्राह्मण थे या शुद्र थे. वे ब्राह्मण जो अध्ययन के बजाय शिल्प कार्य मे लगे उन्हे शुद्र कहा गया. ( तो क्या ब्राह्मण और शुद्र एक उत्पत्ति के नही हुए???) - रिगवेद           मण्डल सात सुक्त 32 मंत्र 20
जो ब्राह्मण वेद पठन पाठन नही करते कराते, अन्यत्र श्रम करते है वे और उनके तत्कालीन वंशज शुद्र होते है. - मनुस्मृति
महान वैदिक संस्कृति और सभ्यता मे कमी वही निकाल सकते हैं जिन्होने कभी इसका अध्ययन भी नहीं किया हैं ऐसे ज्ञानहीन लोगो   से हम सभी को सावधान रहना
चाहीये जो हम लोगो को बाटने के लिये झुठ का सहारा लेते है.!

!! हिन्दू विवाह पद्धति में स्थिरिता है !!

‘विवाह’ मानव सभ्यता का सबसे सुन्दर वरदान है ,‘समूचे विश्व में समाज की इकाई के रूप में विवाह नाम की संस्था अस्तित्व में आई . विवाह संस्कार के विभिन्न रूप के होते हुए भी विवाह का उद्देश्य एक ही है, परिवार की स्थापना. जिसने समाज का निर्माण किया. विवाह की संस्था एक ओर समाज को स्थायित्व प्रदान करती है, तो दूसरी और परिवार के प्रत्येक सदस्य अर्थात बच्चे बूढ़े ,महिला एवं युवा को आर्थिक ,शारीरिक एवं मानसिक संरक्षण प्रदान करती है .
विश्व में जहाँ विवाह के अनेक रूप देखे जा सकते हैं जैसे बहु पत्नी विवाह ,पांचाली विवाह ,बहुपति विवाह गन्धर्व विवाह आदि , वहीँ विवाह पद्धतियों के भी अनेक रूप विद्यमान हैं .जो अपने देश और समाज के रीति रिवाजों से नियंत्रित होते हैं .परन्तु विश्व भर में हिन्दू विवाह पद्धति आज भी सर्वाधिक शक्ति शाली ,स्थायी एवं कामयाब पद्धति कही जा सकती है. यही कारण है भारतीय हिन्दू परिवार विश्व में एक अलग पहचान बनाय हुए हैं .भारतीय समाज विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का मिलन ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का मिलन होता है साथ ही दो परिवारों का संपर्क सूत्र भी होता है . जो एक दूसरे के सुख दुःख के साथी बन जाते हैं.यहाँ पति पत्नी आजीवन एक दूसरे का साथ निभाते हैं.सुख और दुःख में बराबर के भागीदार बनते हैं.जबकि दुनिया के अनेक देशों में विशेष तौर पर विकसित देशों में वैवाहिक जीवन एक कमजोर कड़ी बन गयी है ,और वैवाहिक संस्था अपना अस्तित्व खोती जा रही है .इन देशों में जहाँ विवाहपूर्व संबंधो में वृद्धि हो रही है , वहीँ विवाहेतर संबंधों की भी बहुलता है .दूसरी तरफ छोटी छोटी घटनाएँ छोटे छोटे कारण,तलाक में बदल जाती हैं.जो एक आम बात हो गयी है.वहां प्रत्येक व्यक्ति अर्थात पत्नी और पत्नी दोनों अपने स्वार्थ के लिए साथ निभाते हैं और जब उनके स्वार्थ सिद्ध होने में समस्या आती है तो सम्बन्ध विच्छेद कर लेना उनके लिए कोई अनहोनी बात नहीं है.प्रत्येक युवा या युवती अपने जीवन में तीन तीन चार चार विवाह करते हुए देखे जा सकते हैं .वहां स्थायी विवाह अपवाद के रूप में ही मिलते हैं .परिवार का अस्थिर वातावरण में बच्चों को माता और पिता दोनों का प्यार मिलना असंभव हो जाता है जबकि बालपन के विकास के लिए दोनों के प्यार एवं सहयोग की आवश्यकता होती है .परिणाम स्वरूप किशोर बच्चे भावनात्मक रूप से असुरक्षित और संवेदन हीन हो जाते हैं .जो उन्हें अपराधों ,अनैतिक कार्यों ,एवं नशाखोरी जैसी सामाजिक बुराइयों की दुनिया में धकेल देता है.उनके स्वभाव में स्वार्थ परता ,भौतिकता, गैर जिम्मेदारी जैसे अवगुणों का विकास होता है वे मानवता के प्रति संवेदन हीन और समाज के प्रति कृतघ्न होते हैं उनके लिए सामाजिक नियम कोई मायने नहीं रखते, और सामाजिक व्यवस्था के छिन्न, भिन्न करने में सहायक बनते हैं !.
हमारे देश में आज भी विवाह एक भावनात्मक दृढ़ता लिए हुए है .जो समाज के प्रत्येक नागरिक को सामाजिक नियमों ,पारिवारिक जिम्मेदारियों ,के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है .विवाह के इस स्थायित्व में अनेक लाभों के साथ साथ अनेक कष्टों का भी सामना करना पड़ता है . निम्न पंक्तियों में लाभ ,हानियों पर विचार करने का प्रयास किया गया है .
विवाह की स्थिरता के लाभ ; विवाह के स्थायित्व के कारण एक और जहाँ पति पत्नी को जीवन में स्थायित्व का लाभ मिलता है वहीँ बच्चों को स्वच्छ ,स्थिर एवं सुरक्षित वातावरण उपलब्ध होता है और उनके स्वस्थ्य विकास में मदद मिलती है. .क्योंकि जिस परिवार में माता पिता के बीच झगड़े होते रहते हैं, बच्चों के बालमन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है .जबकि परिवार के स्थायित्व में .बच्चे अपने भविष्य के प्रति आशावान बने रह कर शारीरिक एवं मानसिक विकास कर पाते हैं ,जो उन्हें जीवन की ऊँचाइयों को छू पाने में सहायक बनता है ,वे परिवार से भावनात्मक लगाव का कारण समाज और परिवार के प्रति भी जिम्मेदार बने रहते हैं .उनका चरित्र निर्माण भी ठीक ठाक से हो पाता है .!
प्रौढ़ अवस्था में पति और पत्नी दोनों को जीवन पर्यंत एक दूसरे का सहयोग एवं प्यार मिलता है .परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग भी आजीवन मिलता है, जीवन के अंतिम प्रहर में अधिक सुरक्षित वातावरण का अहसास होता है .!
परिवार में यदि कोई विकलांग है ,मानसिक रूप से अस्वस्थ्य है या आर्थिक रूप से कमजोर है इन अवस्थाओं में भी परिवार के साथ कम से कम कष्टों के साथ सम्मानित जीवन व्यतीत कर पाता है .विश्व भर में संयुक्त परिवारों की सर्वाधिक संख्या भारत में होना वैवाहिक स्थिरता के कारण ही संभव हो पाता है .संयुक्त परिवार स्वास्थ्य समाज की पहचान है .
स्थिर परिवार के नुकसान ; यह तो निश्चित है जहाँ लहलहाती फसल होती है कुछ खरपतवार भी जन्म ले लेती है .अतः जहाँ स्थिर वैवाहिक जीवन के अनेक लाभ हैं,कभी कभी अनेक कष्टों का सामना भी होता है ,
वैवाहिक संबंधों में स्थिरता के कारण अथवा एक तरफ़ा ट्रेफिक होने के कारण हमारे समाज में दहेज़ प्रथा का चलन बढा है दहेज़ विरोधी अनेकों कानून होने के बावजूद भी इस प्रथा पर अंकुश नहीं लग पाया है .जो बेटी के माता पिता के लिए अभिशाप साबित हो रहा है .
हमारे यहाँ तलाक लेना कानूनी तौर पर भी कोई आसान नहीं है और न ही हमारा समाज इसकी अनुमति देता है साथ ही दूसरा विवाह करना आसान नहीं है इसी कारण अनेकों बार ससुराल वाले बहू की मजबूरी का लाभ उठाते हुए उसे प्रताड़ित जीवन जीने को मजबूर करते हैं
यदि पति पत्नी के स्वभाव में सामंजस्य नहीं बैठ पाता तो भी उन्हें जीवन को ढोना पड़ता है वे इस कष्ट दायक जीवन से निजात पाने को तरसते रहते हैं,ऐसी परिस्थिति में घर के बच्चे एवं बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं .वे अपमानित एवं असुरक्षित जीवन जीने को मजबूर होते हैं .पूरे घर का वातावरण कलुषित हो जाता है . ऐसी परिस्थितियों में स्थिर विवाह का उद्देश्य अभिशाप साबित बन जाता है.अत्यधिक मजबूरी,असामान्य परिस्थिति में ही, कानून एवं समाज तलाक की अनुमति देता है  !




!! सात फेरो के सतो वचन !!

सात वचन और आज्ञा पालन--विवाह के समय वर के द्वारा वधु को सात वचन देने का रिवाज चला आ रहा है.... लेकिन ये सात वचन कौन-कौन से है और इन्हें कहाँ से लिया गया है और क्या इसमें वर-वधु को एक-दुसरे की आज्ञा पालन के लिए कहा गया है... इस पर हम चर्चा करते है.....हिंदू वैवाहिक रीति-रिवाजों का विचार करें तो शास्त्रोक्त वैवाहिक विधि-विधान में पत्नी या पति को आज्ञा-पालन करने के लिए सीधे तौर पर नहीं कहा गया.... वैदिक विवाह पद्धति बेहद आसान थी पर धीरे-धीरे हिंदू पद्धति में बहुत सी वैवाहिक प्रक्रियाएं जुड़ती चली गईं.....हिंदू रीति-रिवाज में मधुवर्क, लाजामोह, पाणिग्रहण आदि वैवाहिक प्रक्रियाओं के क्रम में सप्तपदी का बहुत महत्व माना गया है.... सप्तपदी विवाह संस्कार का आधार है.... पति को विष्णु स्वरूप माना गया है और वह वधू को सात पग रखवाता है जो सप्तपदी कहलाते हैं.... इन सात पगों में (ॐ दूष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव-आश्वालायन गृहसूत्र 1-7.9 पहले पद से (विष्णु रूप पति) घर के अन्नादिक के लिए, अनुपालन के लिए पग रखवाता है.... दूसरा पद (ॐ द्वे अर्जे) पत्नी का बल बढ़ाने के लिए, (ॐ रायस्पोषय त्रिपदी) तीसरा यश और धन बढ़ाने के लिए, (ॐ मयोभवाय चतुष्पदी) चौथा सुविधारूपी माया का सुख प्रदान करने के लिए (ॐ पज्यम पषुम्य:) गो आदि पशुओं को भी सुख प्राप्त करने के लिए, छठा (ॐ षद त्रतुभ्य:) छहों ऋतुओं में आनंद की प्राप्ति के लिए और सातवां (ॐ सखे सप्तपदी भव) विष्णु भगवान तुम्हें सप्त पदों की प्राप्ति कराएं इसलिए रखवाया जाता है.... विवाह की इस सप्तपदी में कहीं भी पत्नी द्वारा पति की आज्ञा-पालन की बात नहीं कही गई.... वैसे विद्वानों के मत में हिंदू विवाह पद्धति में मूलरूप से आज्ञा पालन की बात न कहकर परामर्श की बात कही गई है..... भगवान शिव और पार्वती के प्रसंग में शिवपुराण के स्कन्दखंड के विवाह प्रकरण में मौजूदा विवाह पद्धति में वधू द्वारा दिये जाने वाले सात वचनों और वर द्वारा दिये जाने वाले पांच वचनों की चर्चा है.... विवाह में फेरों के वचनों की 'हां' होने पर ही वधू वर की पत्नी बनने के लिए तैयार होती है.... पहले वचन में कन्या तीर्थ, व्रत, उद्यापन, यज्ञ कार्य में सहभागिनी बनाने पर ही वर की पत्नी बनने का वचन लेती है.... दूसरे वचन में देव कार्य, पितृ कार्य में सहभागिता, तीसरे वचन में परिवार की रक्षा, भरण-पोषण और पशु पालन का वचन देने पर ही वामांग आने की बात कहती है...... चौथे में आय, व्यय, धन-धान्यादि की जानकारी देने का वचन, पांचवें वचन में मंदिर, तालाब, कुआं आदि के निर्माण एवं पूजन में सहभागिता......छठे में देश-विदेश में संपत्ति की खरीद बेच करने की जानकारी और सातवें वचन में विवाह से पहले तथा बाद में अन्य स्त्री से संबंध न रखना.....इन सात वचनों को अगर वर स्वीकार करता है तभी कन्या उसकी पत्नी बनना स्वीकार करती है..... शिव पुराण के मुताबिक, कन्या को भी पांच वचन वर को भी देने पड़ते हैं जिनमें पहला वचन होता है कि वर से परामर्श कर फैसले लिए जाएं, दूसरा पति की आर्थिक स्थिति के अनुसार वित्त की व्यवस्था, तीसरे वचन में पति के परिवार की परंपराओं का पालन, चौथे में दोनों परिवारों को जोड़कर रखना और पतिव्रता धर्म का पालन करना शामिल है.....वर एवं वधू की ओर से दिये गये वचनों में कहीं भी आज्ञापालन की बात नहीं आती......वैदिक पुराण शास्त्रोक्त विधि विधान में यह परंपरा नहीं थी.....परंतु विवाह पद्धति की कुछ पुस्तकों में उद्यान आदि स्थानों में भ्रमण के लिए, मदिरा पान किये गये व्यक्ति के सामने जाने में, अपने पिता के घर जाने में पति की आज्ञा पालन किया जाना चाहिए, ऐसी चर्चा की गई है...