देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव प्रक्रिया होती है और इसी तरह से सरकारों का गठन होता है। आज़ादी के बाद से देश में अनेकों चुनाव हुए और अधिकतर समय कांग्रेस ही सत्ता में रही और जब भी गैर कांग्रेसी सरकारें बनी वो कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं।
केवल अटलजी की एकमात्र गैर कांग्रेसी सरकार थी जो 1998-2004 का अपना कार्यकाल पूरा कर पाई थी। इस कार्यकाल में अटलजी ने अनेक जनहितकारी काम किये, गैस के लिए लगने वाली लंबी लंबी कतारें बंद हो गईं, विदेशी मुद्रा भंडार अपने रिकॉर्ड स्तर पर था। पाकिस्तान से एक परोक्ष युद्ध कारगिल में लड़ा लेकिन इन सबके बावजूद अटलजी एक अच्छी सरकार के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ करने में सफल हुए थे।
अटलजी अपनी लोकप्रियता और सरकार की जनता के बीच छवि से संतुष्ट थे और इस बात के लिए आश्वस्त थे कि 2004 के लोकसभा चुनावों में भी वो प्रचंड बहुमत के साथ दुबारा देश के प्रधानमंत्री की कमान संभालेंगे।
अटल सरकार ने अपने कामों से देश में एक विश्वास जगाया था और एक नारा दिया – “शाइनिंग इंडिया”
जिस नारे के बूते अटलजी दूसरी बार सरकार बनाने का संजोए बैठे थे उसी नारे ने अटलजी को सत्ता से बेदखल कर दिया। कांग्रेस के दरबारी रात दिन “शाइनिंग इंडिया” की हवा निकालने में जुट गए। देश का तमाम मीडिया, अख़बार, न्यूज़ चैनल “शाइनिंग इंडिया” को एक गाली की तरह प्रस्तुत करने लगे।
इसी माहौल में प्याज के दामों में बेतहाशा वृद्धि होने लगी। प्याज के मुद्दे ने इतना तूल पकड़ा कि देश की जनता अटलजी के सारे अच्छे कामों को भूल गई या कहें उसे ‘भुलवा’ दिया गया। 2004 का चुनाव अटलजी हार गए और इस हार से क्षुब्ध अटलजी ने न केवल राजनीतिक बल्कि सार्वजनिक जीवन से भी सन्यास ले लिया। अंतिम समय तक अटलजी जैसे ओजस्वी वक्ता, कवि हृदय राजनेता को देश ने फिर कभी नहीं देखा और न कभी सुना।
अगर इसे ये कहा जाए कि मीडिया ने अटलजी के लंबे समय तक विपक्ष में रहने, विपक्ष में रहकर भी सदैव देशहित को पहले रखने वाले एक मर्मस्पर्शी, प्रखर राष्ट्रवादी नेता की राजनीतिक हत्या की थी तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसके बाद 2004 से 2014 तक यूपीए सरकार रही जिसकी चेयरपर्सन सोनिया गांधी थीं। पूरा देश जानता है कि मनमोहन सिंह केवल कहने और दिखने के प्रधानमंत्री थे, असली खेल तो पर्दे के पीछे ही खेला जाता था।
2004 से 2014 के यूपीए के कालखंड में देश में अरबों खरबों के घोटाले हुए, अनेकों आतंकी घटनाएं हुई, देश पर अब तक का सबसे भीषण आतंकी हमला 26/11 नम्बर 2008 मुंबई में हुआ। जबकि अगले ही वर्ष चुनाव थे। प्याज जैसे मुद्दे पर अटलजी की सरकार गिरवाने वालों ने देश की जनता को एक बार फिर सब कुछ ‘भुलवा’ दिया गया और 2009 में पहले से भी ज़्यादा सीटों के साथ कांग्रेस दुबारा सत्ता पर काबिज़ हो गई लेकिन इस “टूलकिट” के बारे में किसी को पता ही नहीं चला।
अटलजी के बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब एक बार फिर पूर्णतया गैर कांग्रेस शासित सरकार बनी और देश की जनता हर बार की तरह अपने कामों में व्यस्त होने ही वाली थी कि देश की जनता को एक अलग तरह के वातावरण का आभास होने लगा। देश में ‘असहिष्णुता’ का वातावरण बनने लगा, बड़े बड़े लेखक, पत्रकार, फिल्मकार, बुद्धिजीवी अपने ‘एवॉर्ड वापस’ करने लगे।
इसके बाद तो देश में ऐसे अनेक कार्यक्रम होने लगे। जेएनयू में देश विरोधी, भारत विरोधी नारे लगे और इन नारे लगाने वालों के साथ विपक्ष के तमाम बड़े नेता जा खड़े हुए। इन मुठ्ठी भर देशद्रोही युवाओं को देश के युवाओं की आवाज़ बताने के प्रयास किए गए।
इसके पहले ये सब देश ने कभी नहीं देखा था। लेकिन अब यहाँ पेंच सबसे बड़ा ये था कि सोशल मीडिया अपनी जड़ें जमा चुका था और इस तरह के तमाम हथकंडों, प्रायोजित कार्यक्रमों की पोल खुलने लगी और देश के जन सामान्य तक घर घर पहुँचने लगी।
जिन बड़े बड़े नेताओं, पत्रकारों, लेखकों के पेशाब से सत्ता के गलियारों में चिराग जलते थे वो सत्ता के गलियारों से बुरी तरह लतिया दिए गए। प्रधानमंत्री के साथ सरकारी खर्च पर विदेश यात्राओं में जाने, शराब, शबाब और क़बाब के सिलसिले सब बंद हो गए।
नॉर्थ ब्लॉक, पीएमओ में सत्ता के दलालों का प्रवेश बंद कर दिया गया। उरी हमले का जवाब सर्जिकल स्ट्राइक से दिया गया। पुलवामा हमले का जवाब एयर स्ट्राइक से दिया गया। काले धन पर प्रहार करने के लिए नोटबंदी की गई। ये सारे काम इतनी गोपनीयता के साथ किये गए कि सरकार में ऊँचे पदों पर बैठे लोगों तक को इसकी भनक नहीं लगी।
देश के बड़े नौकरशाहों, सत्ता के दलालों और देश की सबसे बड़ी पार्टी और उनके दरबारियों की अच्छी तरह समझ आ गया था कि ‘सरदार’ बदल चुका है और ये ‘सरदार’ बहुत असरदार है।
इस बीच देश की सबसे पुरानी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री पर सीधे हमले करते रहे और ये सब करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री की पद, मान मर्यादा का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा।
रफाएल विमान सौदों को लेकर कांग्रेस ने “चौकीदार चोर है” का नारा दिया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसी नारे को लपककर “मैं भी चौकीदार” नारे का सृजन कर दिया। कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री के लिए नीच, नपुंसक, ज़हर की खेती करने वाला, खून की दलाली, सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने, सेना को बदनाम करने जैसे अनेक काम किये। कांग्रेस के नेता पाकिस्तान तक से मोदी को बेदखल करने के लिए मदद माँगते देखे गए।
लेकिन इन सबमें भी प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी विपक्ष के नेताओं के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया और न ही कभी पलटकर कोई प्रतिक्रिया दी।
कांग्रेस और विपक्ष द्वारा की जा रही तमाम छीछालेदर के बावजूद देश की जनता ने मई 2019 में प्रधानमंत्री मोदी पर दुबारा विश्वास जताया और उन्हें पहले से भी ज़्यादा सीटों के साथ दुबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया।
दुबारा सत्ता में लौटने के बाद मोदी ने जनता से किए अपने वायदों को निभाते हुए अगस्त 2019 में एक बड़ा निर्णय दिया और वो था कश्मीर में धारा 370 और 35A का ख़ात्मा, साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना।
देश की जनता में खुशी की लहर दौड़ गई। मोदी/ भाजपा पर देश की जनता का विश्वास और गहरा हो गया। लेकिन इस ऐतिहासिक निर्णय से विपक्ष के पेट में और जमकर मरोड़ें उठने लगीं। आए दिन विपक्ष और कांग्रेस के दरबारियों का विलाप शुरू हो गया। ये निर्णय हुआ ही था कि सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि मुद्दे की रोज़ाना सुनवाई होने लगी और अंततः हिंदुओं के पक्ष में राम मंदिर का निर्णय आया।
एक के बाद इन दो कामों ने मोदी सरकार की विश्वसनीयता का ग्राफ इतना ऊपर पहुँचा दिया कि विपक्ष इन सबसे हक्का बक्का होकर रह गया। इसी बीच जनवरी 2020 में देश की राजधानी दिल्ली भीषण दंगों की आग में झुलस गई या कहें झुलसा दी गई। इस षड्यंत्र में भी दिल्ली राज्य की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं की संदिग्ध भूमिका सामने आई है।
लेकिन मोदी की अग्निपरीक्षा अभी बाकी थी और फरवरी 2020 में कोरोना ने भारत में दस्तक दे दी। सम्पूर्ण विश्व में कोरोना ने भयंकर तबाही मचानी शुरू कर दी। बड़े बड़े विकसित देशों ने इस अदृश्य शत्रु के सामने घुटने टेक दिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने सम्पूर्ण देश में लॉक डाउन की घोषणा कर दी। देश और विश्व के तमाम लोगों, विशेषज्ञों के लिए ये नया अनुभव था और एक अबूझ पहेली बन चुका था।
लेकिन विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस के लिए ये “आपदा में अवसर” था। देश की जनता को भड़काने के तमाम प्रयास किए जाने लगे। ग़रीब, मजदूर वर्ग को सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर किया गया।
केवल उत्तरप्रदेश के मजदूरों के लिए प्रियंका वाड्रा ने बसों की व्यवस्था की पेशकश की और जब उनसे वाहनों की सूची माँगी गई तो उनमें ऑटो रिक्शा, स्कूटर के नम्बर भी निकल आये। लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने अदम्य साहस और इच्छाशक्ति कर बल पर इस विकट स्थिति को भी संभाल लिया।
देश में धीरे धीरे अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई, और जनजीवन, व्यापार, कामकाज अपनी गति को पकड़ चुका था। इसी बीच कोरोना की वैक्सीन के आविष्कार, निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी थी। लेकिन विपक्ष तो कैसे भी मोदी को बदनाम करने पर आमादा था। शाहीन बाग के बाद इस बार किसान आंदोलन शुरुआत की गई।
बकौल मोदी ये भी एक ‘प्रयोग’ था संयोग नहीं। किसान आंदोलन के नाम पर 26 जनवरी को देश के तिरंगे का अपमान किया गया, जेल में बंद कुछ देशद्रोहियों को रिहा करने की माँग की गई।
इसी बीच कोरोना की वैक्सीन भारत में बननी शुरू हो गई और सरकार ने इसे विभिन्न चरणों में लगाने की प्रक्रिया शुरू की। तब भी देश के बड़े विपक्षी नेताओं, पत्रकारों ने वैक्सीन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, इसे बीजेपी की वैक्सीन करार दिया, लोगों में भ्रम फैलाया लेकिन खुद ने चुपके से वैक्सीन लगवा ली।
तभी कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दी और इस बार की लहर पहले से ज़्यादा घातक सिद्ध हुई। देश में ऑक्सीजन, बेड, ज़रूरी दवाओं की क़िल्लत हुई, कालाबाज़ारी भी जमकर हुई। प्रधानमंत्री के बंगाल में रैली करने को कुछ लोगों ने गलत संदर्भ में लिया जबकि प्रधानमंत्री अपने दैनिक कामों और देश के हालातों पर बराबर नज़रें गड़ाए रहते हैं।
तमाम आलोचनाओं से विचलित हुए बिना प्रधानमंत्री मोदी तन मन धन से देश की जनता की रक्षा में जुट गए। देश में सर्वाधिक कोरोना केसेस देनेवाले राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, केरल और पंजाब की बजाय ‘दरबारियों’ ने अपनी सारी ऊर्जा उत्तरप्रदेश में झोंक दी क्योंकि कांग्रेस को मोदी के बाद दूसरा सबसे बड़ा खतरा योगी से है।
कल जब कांग्रेस की तथाकथित टूलकिट की जानकारी लीक हुई और सोशल मीडिया से लेकर तो न्यूज़ चैनलों तक पर ये खबर गूँजी तो कांग्रेस फिर हक्का बक्का होकर रह गई। कांग्रेसी प्रवक्ताओं के चेहरों पर उड़ रही हवाईयां बता रहीं थीं कि दाल में काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है।
कांग्रेस की इस तथाकथित टूलकिट के मुख्य बिंदु कुछ इस प्रकार हैं –
▪️कोरोना के इस नए स्ट्रेन को ‘इंडियन स्ट्रेन’ या ‘मोदी स्ट्रेन’ कहकर प्रचारित करना
▪️ ऑक्सीजन, बेड की कमी करना और केवल INC यानी इंडियन नेशनल कांग्रेस के ट्विटर हैंडल को टैग करके माँगी गई मदद पर ही कार्रवाई करना
▪️ पत्रकारों द्वारा माँगी गई मदद पर तुरंत कार्रवाई करना
▪️ देश की जनता में मोदी सरकार के प्रति घृणा फैलाना
▪️ देश के बुद्धिजीवियों और पूर्व नौकरशाहों द्वारा सरकार पर सवालिया निशान लगाना
▪️ कुंभ को ‘सुपर स्प्रेडर’ के रूप में प्रचारित करना और ईद, इफ़्तार को प्रेम और सद्भावना का संदेश देना
सत्ता पाने के लिए अपने ही देश की जनता को मौत के मुँह में धकेलना, देश और सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने जैसा घिनौना षड्यंत्र कांग्रेस और उसके पाले हुए गुर्गों द्वारा करना ये बताता है कि सत्ता पाने के लिए कांग्रेस पार्टी किसी भी हद तक गिर सकती है, गिरती रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और अन्य कांग्रेस शासित प्रदेश भी इस टूलकिट का एक अहम हिस्सा हैं। आये दिन केवल विज्ञापन देने, सोशल मीडिया पर लाइव आने, व्यवस्था में कमी होने पर केंद्र को ज़िम्मेदार बताने, केंद्र सरकार की मदद को अपना काम बताने, हाइकोर्ट के जजों के लिए विशेष व्यवस्था करने और दिल्ली की जनता को भगवान भरोसे छोड़ने का घिनौना काम केजरीवाल बखूबी कर रहे हैं।
एक बार राहुल गांधी ने बाक़ायदा सार्वजनिक तौर पर कहा था कि – मोदी की ताकत उनकी इमेज है और मैं इस इमेज को तोड़कर रख दूँगा।
“कांग्रेस की टूलकिट” भी वही कहती है और जो कुछ भी टूलकिट में कहा गया है वैसा हुआ भी है, हो भी रहा है। सत्ता से बाहर होने पर कांग्रेस सदैव ही “टूलकिट” का इस्तेमाल करती आई है। लेकिन सोशल मीडिया के ज़माने में पहली बार ये टूलकिट लीक होकर जनता के सामने आ पाई है। एक बार फिर कांग्रेस का देश विरोधी, हिंदुत्व विरोधी चेहरा सामने आया है।
लेकिन मोदी से पार पाना विपक्ष और कांग्रेस के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है। इस संकट के बाद जब मोदी वापस अपने फॉर्म में आएंगे तब उन्हें रोक पाना विपक्ष और कांग्रेस के लिए असंभव हो जाएगा।
अपने ऊपर फेंके गए पत्थरों से इमारत खड़ी करना मोदी बखूबी जानते हैं।
ताकि सनद रहे !!
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