शनिवार, 26 अगस्त 2023

हल्दीघाटी युद्ध के बाद क्या क्या हुआ ?

 हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या क्या हुआ..??

इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं.।
इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है.।

क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..
महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.।

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महाराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.।

हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी.।

उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है.

बात सन 1582 की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे. 

कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.

दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए। 
युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई।

महाराणा प्रताप ने बहलोलखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया। शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे  36000  मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया. ।
दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए.।

दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए.।

अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.।

दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.।

इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया.

ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

इस्लाम की आंधी और राजपूतों का प्रतिकार...

गायब की हुई इतिहास की एक झलक:-

622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने  तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर ।(

634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!

640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!

नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!

3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए ।

711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी ।

मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, #तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! #मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया । मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो । बेचारे मूर्ख #इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया ।

अब आप भारत की स्थिति देखिये ।

उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है ।

जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें ।

636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया ।

कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी । दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर #उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा ।

सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए ।

यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया ।

उसके बाद भी भारत के वीर राजपूतों ने पराजय नही मानी । जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पारावल का जन्म हो चुका था ।

वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया । केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे । जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी ।

उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं । नागभट्ट प्रतिहार (परिहार) द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले । जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा ।

पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है । लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए ।

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया ।  यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते ।

भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया 

पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी ।           उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी । उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे ।

अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए ।

किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दिया ।
महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए ।

एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए । एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें ।  जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए ?

राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, महराजा छत्रसाल  बुन्देला, आल्हा उदल, बाजीराव पेशवा, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए ।

अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!

ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया । पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था । फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया । अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता ।
जय सनातन 🚩