गुरुवार, 5 जनवरी 2012

बाबु सिंह कुशवाहा का बीजेपी में जाने से क्या फायदे और नुक्सान है ?

बाबु सिंह कुशवाहां  जिस समाज से आते है वह समाज ६ साल पहले तक बीजेपी का
परंपरागत वोट था जो बसपा की झोली में चला गया था. १२% मतदाता हिस्से के साथ
मौर्या/ कुशवाहा/सैनी /शाक्य समाज यूपी में पिछड़े वर्ग में यादवो के ९% हिस्से
से काफी ज्यादा है जो बहुत सारे विधान सभा क्षेत्रो में निर्णायक भूमिका में
है. मुलायम सिह यादव की राजनीति में स्थायित्व उनके ९% यादव बिरादरी के वोटो
पर पकड़ के कारन है इस लिहाज से १२% वोटो केलिए बाबु सिंह को अपने पाले में
लाना बीजेपी के लिए किसी भी लिहाज से नुकसान का सौदा नहीं है,
२-क्योकि इस समाज में कोई प्रभावशाली नेता नहीं है इसलिए यादव समाज  से ज्यादा
संख्या होने के बावजूद यह समाज राजनैतिक रूप से हासिये पर है जिसका फायदा बसपा
ने बखूबी उठाया था और उसने कम महत्वकांक्षी नेता स्वमिप्रसाद मौर्य को ज्यादा
तरजीह दिया क्योकि स्वामी प्रसाद कभी मायावती के लिए चुनौती नहीं बनेंगे.
लेकिन बसपा को बाबु सिंह कुशवाहा की पकड़ का अंदाजा उन्हें पार्टी से निकालने
के बाद हुआ.
३-बाबू सिंह कुशवाहा का बीजेपी में जाना सबसे बढ़िया विकल्प इसलिए था की मौर्या
समाज कांग्रेस में जायेगा नहीं, बीजेपी में पहले ये जुड़े रहे है इसलिए इनका
बीजेपी से पुनः जुडना ज्यादा आसान भी है. कांग्रेस बीजेपी और सपा में वंशवाद
की वजह से ज्यादा संख्या होने के बावजूद भी मौर्य समाजियो को समझौता करना
पडेगा जबकि बीजेपी कैडर वाली पार्टी है.
४-कांग्रेस पहले ही बाबु सिंह कुशवाहा को भले ही अपने पाले में न लाकर गलती का
अहसास कर रही हो, लेकिन वह इस गलती से बीजेपी को इसका फायदा नहीं उठाने देगी
और चुनाव होने तक बाबू सिंह कुशवाहा के बारे में तरह तरह की भ्रम की स्थिति
बनाकर रखने के लिए पुरे सरकारी तंत्र का उपयोग करेगी जिसमे सपा, बसपा का भी
सहयोग लिया जायेगा. यूपी जहा की ६५% ज्यादा मतदान नहीं होता है, १२% मतदाताओ
को अपने पाले में लाना खेल को पलटने वाली चाल है जो बीजेपी के लिए तुरुप चाल
भी सिद्ध हो सकती है.
५-नुकसान किसको कितना होगा—(१) १२% वोटो वाले इस समाज के बीजेपी से जुडने पर
सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को होगा जो जो कांग्रेस के लिए चुनाव बाद की गणित को
जरुर गडबड करेगा. (२) समाज वादी पार्टी के मुस्लिम वोटो का पीस पार्टी से
जुडने की वजह से मुलायम सिंह के वोट घटेंगे ही, कांग्रेस चुनाव बाद सपा को
केंद्र में शामिल करा सकती है जिसके लिए सपा का कमजोर होना कांग्रेस के लिए
हताशा की बात होगी. (३)मुस्लिम वोटो के लिए कांग्रेस कुछ भी करेगी लेकिन पीस
पार्टी का रोल कभी भी नाकारा नहीं जा सकता है. अब जब की बसपा नम्बर की लड़ाई
लड़ा रही है, उसका वोट काटकर बीजेपी में जाने से दोगुने का नुकसान उठाना नहीं
चाहेगी जिसके लिए वह कांग्रेस की मदद से बीजेपी की इस तुरुप चाल को नाकाम करने
की हर कोशिश करेगी क्योकि केंद्र में कांग्रेस को अभी ३० महीने सरकार चलानी है.
     बीजेपी को अब कदम पीछे न खीचकर अपने को मौर्य/कुशवाहा समाज का झंडाबरदार
प्रस्तुत करना चाहिए और अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने वाले इस तुरुप की चाल का बड़ी
सावधानी से प्रबंधन करना चाहिए क्योकि बाबु सिंह कुशवाह की समाज पर पकड़ किसी
भी अन्य नेता से बहुत ज्यादा और निर्णायक है जो आगे चलकर २०१४ में भी काम
आयेगा. कांग्रेस भी इसमे कुछ ठोस कार्यवाही न कर पाने की स्थिति में अपनी जानी
 पहचानी शैली “समय बिताओ” से चुनाव होने तक कुशवाहा के असर को निष्क्रिय करना
चाहेगी क्योकि सवाल १२% वोटो का है. 
उत्तर प्रदेश में घोटाले और उनके आरोपी:-
1. योजना : 134 जिला अस्पतालों के 13.4 करोड़ की लागत से पुनरोद्धार -घोटाला : 5.46 करोड़
-आरोपी : बाबूसिंह कुशवाहा, पूर्व परिवार कल्याण मंत्री, पीके जैन, महाप्रबंधक, कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेस [उप्र जल निगम की एक इकाई]
-मेसर्स सर्जिकोइन, गाजियाबाद
2. योजना : 4.42 करोड़ की लागत से चिकित्सकीय उपकरणों की खरीद
-घोटाला : 1.5 करोड़
-आरोपी : एसपी राम, पूर्व महानिदेशक परिवार कल्याण, परिवार कल्याण महानिदेशक कार्यालय के अज्ञात अधिकारी, मेसर्स गुरुकृपा, मुरादाबाद, मेसर्स कपिल मेडिकल एजेंसी, मुरादाबाद
3. योजना : 13.7 करोड़ रुपये की लागत से होल्डिंग, बैनर आदि प्रचार सामग्री की खरीद
-घोटाला : आठ करोड़
-आरोपी : परिवार कल्याण महानिदेशक कार्यालय के अज्ञात अधिकारी, मेसर्स सिद्धि ट्रेडर्स, मुरादाबाद
4. योजना : 31.59 करोड़ की लागत से मेडिकल उपकरणों की खरीद
-घोटाला :10 करोड़
-आरोपी : परिवार कल्याण महानिदेशक कार्यालय के अज्ञात अधिकारी, मेसर्स सर्जिकोइन, गाजियाबाद
5. योजना : 8.11 करोड़ की राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी द्वारा उप्र के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम श्रीटोन इंडिया लिमिटेड के मार्फत कंप्यूटरों की खरीद
-घोटाला : 2.93 करोड़
-आरोपी : परिवार कल्याण महानिदेशक कार्यालय के अज्ञात अधिकारी, श्रीटोन इंडिया लिमिटेड के अज्ञात अधिकारी, मेसर्स राधेश्याम इंटरप्राइजेज, लखनऊ, मेसर्स एक्सिस मार्केटिंग, नोएडा/दिल्ली
 अब आप ही सोचे की इतने घोटालो में से कुछ आरोपी तो अज्ञात है क्यों ? फिर बाबू सिंह कुशवाह पर ही कार्यवाही क्यों ?

!! आर्य प्रजाति की आदिभूमि !!

मैं कई दिनों से देख रहा हु की फेसबुक में कुछ तथाकथित "मूल निवाशी "दिन भर चिल्लाते रहते है की आर्य बाहर  के है बिदेशी है ,और यहाँ की जनजातीय ही मूल निवाशी है ,मैं इन बातो को सिरे से नकार रहा हु ,फिर भी किसी को चिल्लाना है तो चिल्लाओ फाड़ो अपना गला और नष्ट करो अपनी उर्जा ,सच्चाई तो जो है ओ ये ही है की आर्य  प्रजाति की आदिभूमि के संबंध में अभी तक विद्वानों में बहुत मतभेद हैं। भाषावैज्ञानिक अध्ययन के प्रारंभ में प्राय: भाषा और प्रजाति को अभिन्न मानकर एकोद्भव (मोनोजेनिक) सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ और माना गया कि भारोपीय भाषाओं के बोलनेवाले के पूर्वज कहीं एक ही स्थान में रहते थे और वहीं से विभिन्न देशों में गए। भाषावैज्ञानिक साक्ष्यों की अपूर्णता और अनिश्चितता के कारण यह आदिभूमि कभी मध्य एशिया, कभी पामीर-कश्मीर, कभी आस्ट्रिया-हंगरी, कभी जर्मनी, कभी स्वीडन-नार्वे और आज दक्षिण रूस के घास के मैदानों में ढूँढ़ी जाती है। भाषा और प्रजाति अनिवार्य रूप से अभिन्न नहीं। आज आर्यों की विविध शाखाओं के बहूद्भव (पॉलिजेनिक) होने का सिद्धांत भी प्रचलित होता जा रहा है जिसके अनुसार यह आवश्यक नहीं कि आर्य-भाषा-परिवार की सभी जातियाँ एक ही मानववंश की रही हों। भाषा का ग्रहण तो संपर्क और प्रभाव से भी होता आया है, कई जातियों ने तो अपनी मूल भाषा छोड़कर विजातीय भाषा को पूर्णत: अपना लिया है। जहां तक भारतीय आर्यों के उद्गम का प्रश्न है, भारतीय साहित्य में उनके बाहर से आने के संबंध में एक भी उल्लेख नहीं है। कुछ लोगों ने परंपरा और अनुश्रुति के अनुसार मध्यदेश (स्थूण) (स्थाण्वीश्वर) तथा कजंगल (राजमहल की पहाड़ियां) और हिमालय तथा विंध्य के बीच का प्रदेश अथवा आर्यावर्त (उत्तर भारत) ही आर्यों की आदिभूमि माना है। पौराणिक परंपरा से विच्छिन्न केवल ऋग्वेद के आधार पर कुछ विद्वानों ने सप्तसिंधु (सीमांत एवं पंजाब) को आर्यों की आदिभूमि माना है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ऋग्वेद में वर्णित दीर्घ अहोरात्र, प्रलंबित उषा आदि के आधार पर आर्यों की मूलभूमि को ध्रुवप्रदेश में माना था। बहुत से यूरोपीय विद्वान् और उनके अनुयायी भारतीय विद्वान् अब भी भारतीय आर्यों को बाहर से आया हुआ मानते हैं।
अब आर्यों के भारत के बाहर से आने का सिद्धान्त (AIT) गलत सिद्ध कर दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करके अंग्रेज़ और यूरोपीय लोग भारतीयों में यह भावना भरना चाहते थे कि भारतीय लोग पहले से ही गुलाम हैं। इसके अतिरिक्त अंग्रेज इसके द्वारा उत्तर भारतीयों (आर्यों) तथा दक्षिण भारतीयों (द्रविड़ों) में फूट डालना चाहते थे।
आर्य धर्म प्राचीन आर्यों का धर्म और श्रेष्ठ धर्म दोनों समझे जाते हैं। प्राचीन आर्यों के धर्म में प्रथमत: प्राकृतिक देवमण्डल की कल्पना है जो भारत, ईरान, यूनान, रोम, जर्मनी आदि सभी देशों में पाई जाती है। इसमें द्यौस् (आकाश) और पृथ्वी के बीच म...ें अनेक देवताओं की सृष्टि हुई है। भारतीय आर्यों का मूल धर्म ऋग्वेद में अभिव्यक्त है, ईरानियों का अवेस्ता में, यूनानियों का उलिसीज़ और ईलियद में। देवमंडल के साथ आर्य कर्मकांड का विकास हुआ जिसमें मंत्र, यज्ञ, श्राद्ध (पितरों की पूजा), अतिथि सत्कार आदि मुख्यत: सम्मिलित थे। आर्य आध्यात्मिक दर्शन (ब्राहृ, आत्मा, विश्व, मोक्ष आदि) और आर्य नीति (सामान्य, विशेष आदि) का विकास भी समानांतर हुआ। शुद्ध नैतिक आधार पर अवलंबित परंपरा विरोधी अवैदिक संप्रदायों-बौद्ध, जैन आदि-ने भी अपने धर्म को आर्य धर्म अथवा सद्धर्म कहा।

सामाजिक अर्थ में "आर्य' का प्रयोग पहले संपूर्ण मानव के अर्थ में होता था। कभी-कभी इसका प्रयोग सामान्य जनता विश के लिए ("अर्य' शब्द से) होता था। फिर अभिजात और श्रमिक वर्ग में अंतर दिखाने के लिए आर्य वर्ण और शूद्र वर्ण का प्रयोग होने लगा। फिर आर्यों ने अपनी सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्ण को बनाया और समाज चार वर्णों में वृत्ति और श्रम के आधार पर विभक्त हुआ।

  
""आर्य संस्कृति पर अब भी हो रहे हैं शोध "" 
(जनमाध्यम, समाचार पत्र, लखनऊ, 1जनवरी,2012 पृष्ठ 9)
... यह निर्विवाद सत्य विश्व स्तर पर स्वीकार्य है कि आर्य बहुत ही ज्ञानी, विज्ञानी कौम है। लिहाज आर्यों पर दार्शनिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक शोध भी खूब हुये हैं। हैदराबाद के सेन्टर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी ने आर्य भारत के मूल निवासी हैं या नहीं...इस विषय पर आनुवांशिकी आधारित शोध कर यह निष्कर्ष निकाला है कि भारतीयों की कोशिकाओं का जो जेनेटिक ढ़ांचा हैं वह पाँच हजार बर्ष से भी अधिक पुराना है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत के लोग (आर्य) भारत के मूल निवासी है...आर्यों का भारत आगमन 3500 वर्ष पूर्व हुआ था, यह अवधारणा गलत है। यदि मूल निवासी नहीं है तो वे 3500 वर्ष पूर्व नहीं बल्कि 5000 वर्ष से भी पहले भारत आये थे। जलवायु परिवर्तन के अनुसार 125 से 150 वर्षों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित मानव का चौथी -पाँचवीं पीढ़ी में जेनेटिक ढ़ांचा बदल जाता है।अंग्रेजो ने हमेशा से ही फुट डालो और शासन करो की नीत पर चले थे  उसी का परिणाम है की देश २०० वर्षो तक गुलाम रहा ,और आज भी कुछ तथाकथित "मूल निवाशी " हम लोगो के बीच में अलगाव की भावना रोपित कर रहे है ,पर उनके मनसूबे कभी भी पुरे नहीं होगे ,,जय जय श्री राम ...........
http://htcedws.blogspot.in/2012/01/blog-post_864.html 
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Aryan-Dravidian-divide-a-myth-Study/articleshow/5053274.cms?intenttarget=no