बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

येरुशलम & इजराइल

 प्राचीन नगर येरुशलम यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्मों के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। फिलिस्तीन इसे अपनी राजधानी बनाना चाहता है जबकि इसराइल अपनी। पैगंबर इब्राहिम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म येरूशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं। 

आज हम इजराइल के माइग्रेशन पुनः स्थापना और इजराइल के इजराइल बनने की कहानी और भारत से इसके रिश्ते पर चर्चा करेंगे पोस्ट थोड़ी लंबी हो सकती है -

यहूदी धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम (अबराहम या इब्राहिम) से मानी जाती है, जो ईसा से 2000 वर्ष पूर्व हुए थे।अब्राहम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं। एडम/आदम से अब्राहम और अब्राहम से मूसा तक यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी के पैगंबर एक ही है किंतु मूसा के बाद सबके अलग अलग । अब्राहम के पोते का नाम याकूब था। याकूब का ही दूसरा नाम इजरायल था। ईसा के  1100 साल पहले जैकब के 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने। और याकूब ने ही यहूदियों की इन 12 जातियों को मिलाकर एक सम्मिलित राष्ट्र इजरायल बनाया था। याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा (जूदा) था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म कहलाया। इब्राहिम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम 'पैगंबर मूसा' का है। मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं। मूसा को ही पहले से चली आ रही एक परंपरा को स्थापित करने के कारण यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है। हालांकि यहूदी फोनीशियन वंशज हैं जो एक सेमिटिक-भाषी लोग थे जो लगभग 3000 ईसा पूर्व लेवंत में उभरे थे, इस्राइल कहे जाने वाले लेवंट (पश्चिमी एशिया व पूर्वी भूमध्य क्षेत्र) में 10 हजार से 4.5 हजार ईसा पूर्व मानव बस्तियों के साक्ष्य मिलते हैं। कांस्य व लौह युग में इन इलाकों में मिस्र के अधीन कैनाइट राज्य बने। इन कैनाइट लोगों की एक शाखा से यहूदी समुदाय की उत्पति मानी जाती है, जो एक ईश्वरवादी थे। यहूदियों के वंशजों ने 900 वर्ष ईसा पूर्व यहां राज्य स्थापित किया, इसे यहूदियों का संयुक्त राज्य भी कहा गया है। (इसपर फिर कभी) ।।

13वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मिस्र से यहूदियों के पलायन और इसराइल के बनने और वहाँ उनके बसने की घटना हुई थी। ये तब की बात है जब मिस्र के फ़ेरो (फ़राओ) यहूदियों को ग़ुलामों की तरह रखते थे,  मूसा के नेतृत्व में वे एक जगह आकर बसे और नाम दिया #इजराइल ।   सदियों से मिस्र में ग़ुलामी झेल रहे यहूदियों के साथ ही उन्होंने इज़रायल बसाया था। मिस्र उस वक्त एक शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करता था। मूसा ने तब अपने लोगों को एकजुट किया और कहा जाता है कि वहाँ से पलायन कर उन्हें मुक्ति दिलाई। इसके बाद ही वो जाकर इज़रायल में बसे थे।यहूदियों के ये 12 कबीले ये दो खेमों में बँट गए - एक, जो 10 कबीलों का बना था इसरायल कहलाया और दूसरा , जो बाकी के दो कबीलों से बना था वो जूदा (यहूदा) कहलाया।  

यहूदियों के जो कुल 12 कबीले थे जिन्हें लेकर यह मान्यता थी कि इन 12 कबीलों में से एक कबीला उनका खो गया, यहूदी मानते हैं कि 3000 साल पहले इजरायल के उत्तरी साम्राज्य के 10 समुदायों को अश्शूर से आए असीरियन लोगों के हमले के कारण पलायन करना पड़ा था। उसके बाद से उनके बारे में बहुत कुछ पता नहीं चल पाया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि वो खोया हुआ कबीला भारतीय है - माना जाता है कि जो समुदाय खो गए हैं, वो जहाँ जाकर बसे वहीं की संस्कृति में घुल-मिल गए हैं। कुकी समाज को भी ऐसे ही एक ट्राइब के रूप में जाना जाता है, जिसे वो ‘Bnei Menashe’ कहा जाता है। इन्हें पैगंबर जोसेफ के बेटे बिबिलिकल मनस्सेह के वंशजों के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है कि 1950 के दशक में मिजोरम-मणिपुर के 10,000 कुकी लोगों ने ईसाई मजहब छोड़ कर यहूदी मजहब अपना लिया था, जब उन्हें अपनी तथाकथित वास्तविक मातृभूमि का पता चला था। (इसपर विस्तार से पोस्ट अलग से करूंगा ताकि ये मूल पोस्ट लंबी न हो)

सदियों से मिस्र में अत्याचार और शोषण के साथ ग़ुलामी में जी रहे हिब्रुओं को एक प्रोमिस्ड लैंड मिलता है जिसे इज़रायल के नाम से जानते हैं।  हिब्रुओं को एक नया धर्म भी मिला जिसने उन्हें नया रास्ता भी दिखाया यानी यहूदी धर्म ज्यूइज़्म या जूडाइज़्म। ईसा पूर्व 1250 में इसराइलियों ने भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित केनान के इलाके पर चढ़ाई की और वहाँ बसना शुरू कर दिया।

अब्राहम और मूसा के बाद इज़रायल में जो दो नाम सबसे अधिक आदरणीय माने जाते हैं वे दाऊद (ईसाइयत में David) और उसके बेटे सुलेमान (ईसाइयत में Solomons) के हैं। ईसा पूर्व 961 से 922 तक सोलोमन का राज रहा जिन्होंने यरूशलम में पवित्र मंदिर बनवाया। सोलोमन के बाद यह इलाका दो अलग-अलग साम्राज्यों में बंट गया।सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इज़रायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई।  सुलेमान के ही समय इब्रानी यहूदियों की राष्ट्रभाषा बनी। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन् 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।सुलेमान की मृत्यु होते ही इज़रायली और जूदा (यहूदा) दोनों फिर अलग-अलग स्वाधीन रियासतें बन गईं। सुलेमान की मृत्यु के बाद 50 वर्ष तक इज़रायल और जूदा के आपसी झगड़े चलते रहे। इसके बाद लगभग 884 ई.पू. में उमरी नामक एक राजा इज़रायल की गद्दी पर बैठा। उसने फिर दोनों शाखों में प्रेमसंबंध स्थापित किया। किंतु उमरी की मृत्यु के बाद यहूदियों की ये दोनों शाखाएं पुनः युद्ध में उलझ गईं।

यहूदियों की इस स्थिति को देखकर असुरिया के राजा शुलमानु अशरिद पंचम ने सन् 722 ई.पू. में इज़रायल की राजधानी समरिया पर चढ़ाई की और उसपर अपना अधिकार कर लिया। अशरिद ने 27,290 प्रमुख इज़रायली सरदारों को कैद करके और उन्हें गुलाम बनाकर असुरिया भेज दिया और इज़रायल का शासनप्रबंध असूरी अफसरों को सपुर्द कर दिया। सन् 610 ई.पू. में असुरिया पर जब खल्दियों ने आधिपत्य कर लिया तब इज़रायल भी खल्दी सत्ता के अधीन हो गया। कालांतर में  फ़ारस के हखामनी शासकों ने असीरियाइयों को ईसापूर्व 530 तक हरा दिया तो यह क्षेत्र फ़ारसी शासन में आ गया। इस समय जरदोश्त के धर्म का प्रभाव यहूदी धर्म पर पड़ा। यूनानी विजेता सिकन्दर ने जब दारा तृतीय को ईसापूर्व 330 में हराया तो यह यहूदी ग्रीक शासन में आ गए।

नव-असीरियाई और नव-बेबिलोनियाई साम्राज्य के हमलों से परेशान हो यहूदियों को कई बार पलायन करने पड़े। 539 ईसा पूर्व फारसी साम्राज्य के शासक साइरस महान ने यहूदियों को अपने राज्य लौटने, वहां खुद का शासन करने और अपने मंदिर बनाने की अनुमति दी। अगले करीब 600 साल उनके लिए अनुकूल रहे। लेकिन बाद में सिकंदर, रोमनों और बाइजेंटाइन साम्राज्य ने यहूदियों को जीता, उनके शहर जरुशलम व मंदिरों को तोड़ा। 5वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र में ईसाई धर्म बहुसंख्यक हो गया, अधिकतर यहूदियों ने पलायन किया। सन 118 से 138 के बीच रोमन सम्राट हद्रियान के राज्यकाल में पहले तो यहूदियों को वापस यरुशलम आनेजाने की इजाज़त थी, लेकिन सन 133 में एक और यहूदी विद्रोह के बाद शहर पूरी तरह तबाह कर दिया गया और यहां के लोगों को गुलाम बनाकर बेच दिया गया।
सन 638 में अरब मुसलमानों के हमले ने रोमन साम्राज्य के वारिस बाइज़ैंटाइन राज्य का ख़ात्मा किया और इस्लाम के दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने आठवीं सदी की शुरुआत में वहां उस जगह पर एक मसजिद बनवाई जहां अब अल अक्सा मस्जिद है। 

#विशेष 
सातवीं शताब्दी में अगले 600 साल के लिए इस्लामी खलीफा का शासन आया। 11वीं शताब्दी में मुस्लिम व ईसाइयों में धर्म युद्ध शुरू हुए, जिसका अहम लक्ष्य पवित्र जरुशलम को इस्लामी शासन से मुक्त करवाना था। साल 1516 में ओटोमन साम्राज्य ने क्षेत्र पर कब्जा किया। यहूदियों की मौजूदगी बनी रही। वो लड़ते रहे भागते रहे और वापसी करते रहे। इसके बाद 1099 से 1187 तक चले जेहाद के दौर को छोड़कर यहां मुसलिम राज रहा जब तक कि 20वीं सदी के अंत में औटोमन साम्राज्य का पतन नहीं हो गया। लंबे समय तक पूरी दुनिया में बिखरे रहने के बाद वियेना में रह रहे एक यहूदी लेखक और पत्रकार थियोडोर हर्ज़्ल ने डेर जुडेन्स्टाट यानी यहूदी राष्ट्र नामकी एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने कहा था कि यहूदियों का अपना राष्ट्र होना चाहिए।
समझा जाता है कि उनके इस विचार की मुख्य वजह यूरोप का यहूदी विरोधी माहौल था। और उसके बाद 1896 में बास्ले, स्विटज़रलैंड में पहली ज़ियोनिस्ट कॉंग्रेस हुई।यहां पास हुए बास्ले प्रस्ताव में कहा गया कि "फ़लस्तीन में यहूदियों के एक विधिसम्मत घर" की स्थापना की जाएगी और इसके लिए विश्व यहूदी संगठन बनाया जाएगा। पोस्ट लम्बी हो रही है इसका एक भाग आपको कल मिलेगा ।।

छायाचित्र - 830 ईसा पूर्व में यहूदियों के दोनो कबीले
इजराइल और जूदा (यहूदा) का राज्य ।।