गुरुवार, 23 अगस्त 2012

संबिधान के अनुसार धर्म बदल सकते है पर जाती नहीं ऐसा क्यों ?

हमारे संविधान में ऐसा प्रावधान क्यों रखा गया है कि - कोई भी व्यक्ति अपना धर्म तो बदल सकता है लेकिन कोई हिन्दू अपनी जाति को नहीं बदल सकता ?????

हमारे संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म बदलने के लिए स्वतंत्र है. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहे किसी भी धर्म में क्यों न हुआ हो, वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदल सकता है. धर्म को बदलने पर व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवन शैली ही बदल जाती है. उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन, खान-पान, पूजा पद्धति जैसे अनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमें सामंजस्य बिठाने में पीढियां लग जाती हैं.

जाति जो वास्तव में मात्र एक खानदानी पेशा ही है उसको बदलने का कोई प्राबधान नहीं है. जाति से सुनार अगर लोहे का काम करे तो भी लोहार नही बल्कि सुनार ही कहा जायेगा, ब्राह्मण चाहे सेना में हो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मण ही माना जाएगा, बढई अगर लकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करे तो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढई ही कहा जाता है, क्षत्रीय अगर कपडे सिलने का काम करे तो भी वो दर्जी नही क्षत्रीय ही रहेगा.
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ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओं ने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लिये जानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ ये नेता जाति-पाति को मिटाने का दावा झूठा दावा भी करते रहते हैं और साथ ही हिन्दुओं छोटे-छोटे गुटों में बांटकर कमजोर बनाये रखने की साजिश भी करते रहते हैं. हिन्दू भी इन हिंदुत्व बिरोधियों की चाल में फंसकर दशकों से आपस में लड़कर कमजोर हो रहे है और हिंदुत्व बिरोधी इसका लाभ उठा रहे हैं.

कोई भी सरकारी फ़ार्म भरते समय हिन्दू को अपने खानदानी पेशे का उल्लेख करना पड़ता है जबकि अन्य किसी भी धर्म के व्यक्ति के अपने खानदानी पेशे की जानकारी देने की जरुरत नहीं पड़ती. कोई व्यक्ति या संस्था अगर हिन्दुओं को संगठित करने की कोशिश करती है तो उनको साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता है और कोई गैर-हिंदु संगठित होते है तो उसको भाईचारे की मिशाल बनाकर पेश किया जाता है.

हिन्दुओं में जातिप्रथा को लेकर जानबूझकर झगडे खड़े किये जाते हैं. अगर कही कोई हिन्दू व्यक्ति अपने अज्ञान, लालच, दबाव अथवा दुसरे विवाह की खातिर अपना धर्म बदलता है, तो उस समय जातिप्रथा के नाम पर हिन्दुओं को कोसा जाता है और अगर किसी अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू बनना चाहता है तो उसको बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक पर जुल्म बताया जाता है.

हिन्दुओं को चाहिए कि वो अपनी जाति को केवल खानदानी पेशा ही बताएं और अंतर- जातीय विवाहों को अपना अधिक से अधिक समर्थन दें. विधर्मियों को अपनी जाति प्रथा का लाभ न उठाने दें. जाति के आधार पर होने वाले सामाजिक भेदभाव (उंच नीच) और सरकारी भेदभाव (आरक्षण) दोनों को मिटाने का जीतोड़ प्रयास करें. जातिगत भेदभाव को मिटाकर ही हिन्दुओ और हिन्दुस्थान का भला किया जा सकता है....
 
 
 नोट --यह ब्लॉग मेरे मित्र श्री नवीन वर्मा जी द्वारा लिखित है  ..BY Naveen Verma ji

प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति ?

प्राचीन भारत में (वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित) चिकित्सा एवं सर्जरी प्रौद्योगिकी :
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* प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति ?

कई लोग प्लास्टिक सर्जरी को अपेक्षाकृत एक नई विधा के रूप में मानते हैं। प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति की जड़ें भारत से सिंधु नदी सभ्यता से 4000 से अधिक साल से जुड़ी हैं।

इस सभ्यता से जुड़े श्लोकों(भजनों) को 3000 और 1000 ई॰पू॰ के बीच संस्कृत भाषा में वेदों के रूप में संकलित किया गया है, जो हिंदू धर्म की सबसे पुरानी पवित्र पुस्तकों में हैं। इस युग को भारतीय इतिहास में वैदिक काल (5000 साल ईसा पूर्व) के रूप में जाना जाता है, जिस अवधि के दौरान चारों वेदों, अर्थात् ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को संकलित किया गया। सभी चारों वेद श्लोक(भजन), छंद, मंत्र के रूप में संस्कृत भाषा संकलित किए गए हैं। 'सुश्रुत संहिता' अथर्ववेद का एक हिस्सा माना जाता है।

'सुश्रुत संहिता' (सुश्रुत संग्रह), जो भारतीय चिकित्सा में सर्जरी की प्राचीन परंपरा का वर्णन करता है, को भारतीय चिकित्सा साहित्य के सबसे शानदार रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है। इस ग्रंथ में महान प्राचीन सर्जन 'सुश्रुत' की शिक्षाओं और अभ्यास का विस्तृत विवरण है, जो आज भी महत्वपूर्ण प्रासंगिक शल्य ज्ञान है।


प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है - "शरीर के किसी हिस्से को ठीक करना।" प्लास्टिक सर्जरी में प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता है। सर्जरी के पहले जुड़ा प्लास्टिक ग्रीक शब्द- "प्लास्टिको" से आया है। ग्रीक में "प्लास्टिको" का अर्थ होता है बनाना या तैयार करना। प्लास्टिक सर्जरी में सर्जन शरीर के किसी हिस्से के उत्तकों को लेकर दूसरे हिस्से में जोड़ता है। भारत में सुश्रुत को पहला सर्जन (शल्य चिकित्सक) माना जाता है। आज से करीब 2500 साल पहले सुश्रुत युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में जिनकी नाक खराब हो जाती थी उन्हें ठीक करने का काम करते थे। 'सुश्रुत' प्राचीन भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। आयुर्वेद की एक संहिता के सुश्रुतसंहिता के प्रणेता। ये ६ठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में पैदा हुए थे। इनको शल्य क्रिया का पितामह माना जाता है।"


* चिकित्सा एवं सर्जरी:


प्राचीन भारत में ही ऑपरेशन की कला का प्रदर्शन किया गया। जटिल से जटिल ऑपरेशनों को किया गया। इन सभी ऑपरेशनों को एक आश्चर्य के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए क्यूंकी सर्जरी, प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद) की आठ शाखाओं में से एक है। सर्जरी के क्षेत्र का सबसे प्राचीन ग्रंथ सुश्रुत संहिता (सुश्रुत संग्रह) है।


सुश्रुत जो काशी में रहते थे, कई भारतीय चिकित्सकों जैसे अत्रि और चरक में से एक थे। उन्होनें सबसे पहले मानव शरीर रचना विज्ञान (Human Anatomy) का अध्ययन किया था। सुश्रुत संहिता में, उन्होनें शरीर रचना विज्ञान के अध्ययन को एक मृत शरीर की सहायता से विस्तार के साथ वर्णित किया है। सुश्रुत को नासासंधान/राइनोंप्लासी (नाक की प्लास्टिक सर्जरी) और नेत्र विज्ञान (मोतियाबिंद के निष्कासन) में दक्षता प्राप्त थी। सुश्रुत ने सर्जरी (शल्य चिकित्सा) में आठ प्रकार की शल्य क्रियाएं का वर्णन किया है: छेद्य (छेदन हेतु), भेद्य (भेदन हेतु), लेख्य (अलग करने हेतु), वेध्य (शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए), ऐष्य (नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए), अहार्य (हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए), विश्रव्य (द्रव निकालने के लिए), सीव्य (घाव सिलने के लिए)।


योग शारीरिक और मानसिक पोषण के लिए व्यायाम की एक प्रणाली है। योग का मूल पुरातनता और रहस्य में डूबा हुआ है। वैदिक काल के समय हजारों साल पहले योग के सिद्धांतों और अभ्यास का संघनन हुआ था लेकिन 200 ई॰पू॰ के आसपास योग की सभी बुनियादी बातों को 'पतंजलि' द्वारा अपने ग्रंथ "योगसूत्र" में एकत्र किया गया था। पतंजलि ने सर्वप्रथम अनुमान लगाया था कि योग के अभ्यास के माध्यम से शरीर और मन को एक स्वास्थ्यप्रद बनाया जा सकता है। आधुनिक चिकित्सकों का भी मानना है कि उच्च रक्तचाप, अवसाद, भूलने की बीमारी, अम्लता सहित कई बीमारियों को योग के द्वारा नियंत्रण इया जा सकता है। भौतिक चिकित्सा में भी योग के सिद्धांतों को सम्मान और स्वीकृति मिल रही है।


प्राचीन भारत की चिकित्सा व्यवस्था इतनी उन्नत थी की इंग्लैंड की 'रॉयल सोसाइटी ऑफ सर्जन' अपने इतिहास में लिखते हैं की "हमने सर्जरी भारत से सीखी है और उसके बाद पूरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखायी है।" अंग्रेजों के आने से पहले के भारत के सर्जन या वैद्य कितने योग्य थे इसका अनुमान एक घटना से हो जाता है। सन १७८१ में कर्नल कूट ने हैदर अली पर आक्रमण किया और उससे हार गया। हैदर अली ने कर्नल कूट को मारने के बजाय उसकी नाक काट कर उसे भगा दिया. भागते, भटकते कूट बेलगाँव नामक स्थान पर पहुंचा तो एक नाई सर्जन को उस पर दया आ गई। उसने कूट की नई नाक कुछ ही दिनों में बना दी। हैरान हुआ कर्नल कूट ब्रिटिश पार्लियामेंट में गया और उसने सबने अपनी नाक दिखा कर बताया कि मेरी कटी नाक किस प्रकार एक भारतीय सर्जन ने बनाई है। नाक कटने का कोई निशान तक नहीं बचा था। उस समय तक दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी की कोई जानकारी नहीं थी। तब इंग्लॅण्ड के चिकित्सक उसी भारतीय सर्जन के पास आये और उससे शल्य चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी सीखी। उसके बाद उन अंग्रेजों के द्वारा यूरोप में यह प्लास्टिक सर्जरी पहुंची।