हमारे
संविधान में ऐसा प्रावधान क्यों रखा गया है कि - कोई भी व्यक्ति अपना धर्म
तो बदल सकता है लेकिन कोई हिन्दू अपनी जाति को नहीं बदल सकता ?????
हमारे संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म बदलने के
लिए स्वतंत्र है. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहे किसी भी धर्म में क्यों न
हुआ हो, वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदल सकता है. धर्म को बदलने पर व्यक्ति
की सम्पूर्ण जीवन शैली ही बदल जाती है. उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन,
खान-पान, पूजा पद्धति जैसे अनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमें सामंजस्य
बिठाने में पीढियां लग जाती हैं.
जाति जो वास्तव में मात्र एक
खानदानी पेशा ही है उसको बदलने का कोई प्राबधान नहीं है. जाति से सुनार अगर
लोहे का काम करे तो भी लोहार नही बल्कि सुनार ही कहा जायेगा, ब्राह्मण
चाहे सेना में हो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मण ही माना जाएगा, बढई अगर
लकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करे तो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढई ही कहा
जाता है, क्षत्रीय अगर कपडे सिलने का काम करे तो भी वो दर्जी नही क्षत्रीय
ही रहेगा.
...
ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओं ने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लिये
जानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ ये नेता जाति-पाति को मिटाने का दावा झूठा दावा
भी करते रहते हैं और साथ ही हिन्दुओं छोटे-छोटे गुटों में बांटकर कमजोर
बनाये रखने की साजिश भी करते रहते हैं. हिन्दू भी इन हिंदुत्व बिरोधियों की
चाल में फंसकर दशकों से आपस में लड़कर कमजोर हो रहे है और हिंदुत्व बिरोधी
इसका लाभ उठा रहे हैं.
कोई भी सरकारी फ़ार्म भरते समय हिन्दू को
अपने खानदानी पेशे का उल्लेख करना पड़ता है जबकि अन्य किसी भी धर्म के
व्यक्ति के अपने खानदानी पेशे की जानकारी देने की जरुरत नहीं पड़ती. कोई
व्यक्ति या संस्था अगर हिन्दुओं को संगठित करने की कोशिश करती है तो उनको
साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता है और कोई गैर-हिंदु संगठित होते है
तो उसको भाईचारे की मिशाल बनाकर पेश किया जाता है.
हिन्दुओं में
जातिप्रथा को लेकर जानबूझकर झगडे खड़े किये जाते हैं. अगर कही कोई हिन्दू
व्यक्ति अपने अज्ञान, लालच, दबाव अथवा दुसरे विवाह की खातिर अपना धर्म
बदलता है, तो उस समय जातिप्रथा के नाम पर हिन्दुओं को कोसा जाता है और अगर
किसी अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू बनना चाहता है तो उसको बहुसंख्यक
को अल्पसंख्यक पर जुल्म बताया जाता है.
हिन्दुओं को चाहिए कि वो
अपनी जाति को केवल खानदानी पेशा ही बताएं और अंतर- जातीय विवाहों को अपना
अधिक से अधिक समर्थन दें. विधर्मियों को अपनी जाति प्रथा का लाभ न उठाने
दें. जाति के आधार पर होने वाले सामाजिक भेदभाव (उंच नीच) और सरकारी भेदभाव
(आरक्षण) दोनों को मिटाने का जीतोड़ प्रयास करें. जातिगत भेदभाव को मिटाकर
ही हिन्दुओ और हिन्दुस्थान का भला किया जा सकता है....
नोट --यह ब्लॉग मेरे मित्र श्री नवीन वर्मा जी द्वारा लिखित है ..BY Naveen Verma ji
हमारे
संविधान में ऐसा प्रावधान क्यों रखा गया है कि - कोई भी व्यक्ति अपना धर्म
तो बदल सकता है लेकिन कोई हिन्दू अपनी जाति को नहीं बदल सकता ?????
हमारे संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म बदलने के लिए स्वतंत्र है. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहे किसी भी धर्म में क्यों न हुआ हो, वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदल सकता है. धर्म को बदलने पर व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवन शैली ही बदल जाती है. उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन, खान-पान, पूजा पद्धति जैसे अनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमें सामंजस्य बिठाने में पीढियां लग जाती हैं.
जाति जो वास्तव में मात्र एक खानदानी पेशा ही है उसको बदलने का कोई प्राबधान नहीं है. जाति से सुनार अगर लोहे का काम करे तो भी लोहार नही बल्कि सुनार ही कहा जायेगा, ब्राह्मण चाहे सेना में हो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मण ही माना जाएगा, बढई अगर लकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करे तो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढई ही कहा जाता है, क्षत्रीय अगर कपडे सिलने का काम करे तो भी वो दर्जी नही क्षत्रीय ही रहेगा.
...
ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओं ने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लिये जानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ ये नेता जाति-पाति को मिटाने का दावा झूठा दावा भी करते रहते हैं और साथ ही हिन्दुओं छोटे-छोटे गुटों में बांटकर कमजोर बनाये रखने की साजिश भी करते रहते हैं. हिन्दू भी इन हिंदुत्व बिरोधियों की चाल में फंसकर दशकों से आपस में लड़कर कमजोर हो रहे है और हिंदुत्व बिरोधी इसका लाभ उठा रहे हैं.
कोई भी सरकारी फ़ार्म भरते समय हिन्दू को अपने खानदानी पेशे का उल्लेख करना पड़ता है जबकि अन्य किसी भी धर्म के व्यक्ति के अपने खानदानी पेशे की जानकारी देने की जरुरत नहीं पड़ती. कोई व्यक्ति या संस्था अगर हिन्दुओं को संगठित करने की कोशिश करती है तो उनको साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता है और कोई गैर-हिंदु संगठित होते है तो उसको भाईचारे की मिशाल बनाकर पेश किया जाता है.
हिन्दुओं में जातिप्रथा को लेकर जानबूझकर झगडे खड़े किये जाते हैं. अगर कही कोई हिन्दू व्यक्ति अपने अज्ञान, लालच, दबाव अथवा दुसरे विवाह की खातिर अपना धर्म बदलता है, तो उस समय जातिप्रथा के नाम पर हिन्दुओं को कोसा जाता है और अगर किसी अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू बनना चाहता है तो उसको बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक पर जुल्म बताया जाता है.
हिन्दुओं को चाहिए कि वो अपनी जाति को केवल खानदानी पेशा ही बताएं और अंतर- जातीय विवाहों को अपना अधिक से अधिक समर्थन दें. विधर्मियों को अपनी जाति प्रथा का लाभ न उठाने दें. जाति के आधार पर होने वाले सामाजिक भेदभाव (उंच नीच) और सरकारी भेदभाव (आरक्षण) दोनों को मिटाने का जीतोड़ प्रयास करें. जातिगत भेदभाव को मिटाकर ही हिन्दुओ और हिन्दुस्थान का भला किया जा सकता है....
हमारे संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म बदलने के लिए स्वतंत्र है. किसी भी व्यक्ति का जन्म चाहे किसी भी धर्म में क्यों न हुआ हो, वो वयस्क होने पर अपना धर्म बदल सकता है. धर्म को बदलने पर व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवन शैली ही बदल जाती है. उसकी धार्मिक मान्यताएं, रहन-सहन, खान-पान, पूजा पद्धति जैसे अनेकों परिवर्तन आ जाते हैं जिनमें सामंजस्य बिठाने में पीढियां लग जाती हैं.
जाति जो वास्तव में मात्र एक खानदानी पेशा ही है उसको बदलने का कोई प्राबधान नहीं है. जाति से सुनार अगर लोहे का काम करे तो भी लोहार नही बल्कि सुनार ही कहा जायेगा, ब्राह्मण चाहे सेना में हो तो भी उसे क्षत्रीय नहीं ब्राह्मण ही माना जाएगा, बढई अगर लकड़ी का काम छोड़कर व्यापार करे तो भी उसे वैश्य नहीं बल्कि बढई ही कहा जाता है, क्षत्रीय अगर कपडे सिलने का काम करे तो भी वो दर्जी नही क्षत्रीय ही रहेगा.
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ऐसा प्रावधान हिंदुत्व विरोधी नेताओं ने, हिन्दुओं को कमजोर करने के लिये जानबूझकर बनाया है. एक तरफ़ ये नेता जाति-पाति को मिटाने का दावा झूठा दावा भी करते रहते हैं और साथ ही हिन्दुओं छोटे-छोटे गुटों में बांटकर कमजोर बनाये रखने की साजिश भी करते रहते हैं. हिन्दू भी इन हिंदुत्व बिरोधियों की चाल में फंसकर दशकों से आपस में लड़कर कमजोर हो रहे है और हिंदुत्व बिरोधी इसका लाभ उठा रहे हैं.
कोई भी सरकारी फ़ार्म भरते समय हिन्दू को अपने खानदानी पेशे का उल्लेख करना पड़ता है जबकि अन्य किसी भी धर्म के व्यक्ति के अपने खानदानी पेशे की जानकारी देने की जरुरत नहीं पड़ती. कोई व्यक्ति या संस्था अगर हिन्दुओं को संगठित करने की कोशिश करती है तो उनको साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता है और कोई गैर-हिंदु संगठित होते है तो उसको भाईचारे की मिशाल बनाकर पेश किया जाता है.
हिन्दुओं में जातिप्रथा को लेकर जानबूझकर झगडे खड़े किये जाते हैं. अगर कही कोई हिन्दू व्यक्ति अपने अज्ञान, लालच, दबाव अथवा दुसरे विवाह की खातिर अपना धर्म बदलता है, तो उस समय जातिप्रथा के नाम पर हिन्दुओं को कोसा जाता है और अगर किसी अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू बनना चाहता है तो उसको बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक पर जुल्म बताया जाता है.
हिन्दुओं को चाहिए कि वो अपनी जाति को केवल खानदानी पेशा ही बताएं और अंतर- जातीय विवाहों को अपना अधिक से अधिक समर्थन दें. विधर्मियों को अपनी जाति प्रथा का लाभ न उठाने दें. जाति के आधार पर होने वाले सामाजिक भेदभाव (उंच नीच) और सरकारी भेदभाव (आरक्षण) दोनों को मिटाने का जीतोड़ प्रयास करें. जातिगत भेदभाव को मिटाकर ही हिन्दुओ और हिन्दुस्थान का भला किया जा सकता है....
नोट --यह ब्लॉग मेरे मित्र श्री नवीन वर्मा जी द्वारा लिखित है ..BY Naveen Verma ji