शनिवार, 29 दिसंबर 2012

!! दामिनी का बलात्कार के बाद मर्डर किया गया ?

जहा तक मेरे सोचना है की जब लड़की के साथ इस तरह के जानजोखिम में डालनेवाले कई आप्रेसन हो चुके है तो फिर इस तरह से बिदेश भेजने का क्या ओचित्य है ? जब लड़की पर इतने ऑपरेशन हो चुके थे तब क्या ऐसे मरीज़ को हवाई यात्रा पर भेजा जा सकता था?

30,000 फीट की ऊंचाई पर एयर प्रेशर कितना कम हो जाता है उस पर गैंग रेप से पीड़ित लड़की जिसका इतना खून बह चूका हो, जिसका वैसे ही ब्लड प्रेशर बहुत कम होगा, क्या ऐसे मरीज़ को ज़बरदस्ती हवाई यात्रा करा के विदेश भेजना क्या एक कोल्ड ब्लडेड मर्डर नहीं है क्या ? वह भी उस इलाज के लिए जिसकी सुविधा भारत के 40 प्रमुख अस्पता...लों में उपलब्ध हो जैसे की वेदांता अस्पताल जो की दिल्ली के समीप गुड़गाँव मे ही है!

यह सिर्फ एक मर्डर है जो की कांग्रेस सरकार ने एक सोची समझी साजिश के तहत किया है !

कितनी क्रूर, बेरहम और बेशर्म है ये सरकार  जिसे आम जनता को भेड़ बकरी की तरह समझाने की आदत हो चुकी है !

अब भी लोग नहीं जागे और नहीं समझे इस मैकाले और अंग्रेजों के द्वारा बनाई हुई तथा फिलहाल मे पोप के द्वारा भेजी गई एक बार डांसर के कुकर्म और कुल्सित विचारों को तो ऐसे ही कितनी ही दामिनी अस्पतालों मे दम तोड़ती रहेंगी ..........और हम आप इसी तरह से मूकदर्शक बने रहेगे ....ज्यादा से ज्यादा दो चार दिन उछल कूद कर लेगे ..धरना -प्रदर्शन कर लेगे ...बिरोध कर लेगे ....और फिर भूल जायेगे ....यही नियत है हम सभी की ..क्योकि हम तो इस तरह के रोज रोज सुनते है ....अरे भिया कब तक ? क्यों ? क्यों सहन कर रहे हो इन्हें ..उखाड़ फेको इन्हें जड़ से नेस्तनाबूद कर दो .......

!! बलात्कार कारण और निवारण !!

१३ दिनों  के लगातार संघर्ष के बाद आखिर कार उस सामूहिक बलात्कार पीड़ित  लड़की ने दम तोड़ ही दिया ...ये तो होना ही था या नहीं होना था पता नहीं ..पर हो गया अब यही पता है सभी  को ..पर इस घटना ने एक भयंकर प्रश्न छोड़ दिया समाज के लिए की इस तरह की घटनाओं के पीछे कौन से मानसिकता है  ? हम इस मानसकिता को किस तरह से रोक सकते ? प्रधानमंत्री जी ने कहा कि हम इस जघन्य अपराध को लेकर देश में पैदा गुस्से और रोष में लोगों के साथ हैं....पर मुझे यह बात समझ नहीं आई की PM जी साथ कैसे है ? यदि किसी के समझ आया हो तो मुझे भी बताये ....PM जी पीड़िता को साहसी युवती (हद यार साहसी नहीं हो तो क्या करे ..क्या उसके साहसी नहीं होने से कोई फरक पडेगा हमारे सरकार और उन दरिंदो को ?)बताते हुए  कहा कि उसे सर्वश्रेष्ठ संभव इलाज उपलब्ध कराया गया है,PM जी ने कहा कि "हमारी प्रार्थना साहसी युवती के साथ है " बलात्कार के आरोपियों के मामले की जल्द सुनवाई पर पूछे गए सवाल पर प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई है.....हा हा हा हा हा हा हा ...हँसी आती है मुझे PM जी के इस जबाब पर ...समित ..समित ..कितनी और कब कब समित बनी क्या परिणाम निकला ? फिर से एक समित ...हद हो गई यार इस समित की राजनीति से ....प्रश्न ये है की इस घटना के पीछे कौन से मानसिकता जिम्मेदार है ..? आइये कुछ बिश्लेषण करते है .....
                                आज सर्वाधिक  प्रचलित शब्द है,माडर्न  होना या आधुनिक जीवन जीना..बच्चे ,बूढ़े,युवा,स्त्री -पुरुष सब एक ही दिशा में दौड़ लगते नज़र आते हैं, ऐसा लगता है कि उनको एक ही भय है, कि कहीं हम  इस रेस में पिछड  न जाएँ.यही कारण है,हमारा रहन-सहन,वेशभूषा ,वार्तालाप का ढंग सब बदल रहा है.ग्रामीण जीवन व्यतीत करने वाले भी किसी भी शहरी के समक्ष स्वयं को अपना पुरातन चोला उतारते नज़र आते हैं.ऐसा लगता है कि अपने पुराने परिवेश में रहना कोई अपराध है........... ।     समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है,बदलते परिवेश में समय के साथ चलना अनिवार्यता है.भूमंडलीकरण के इस युग में जब “कर लो दुनिया मुट्ठी में “का उद्घोष सुनायी देता है,तो हम स्वयं को किसी शिखर पर खड़ा पाते हैं. आज मध्यमवर्गीय भारतवासी भी फोन ,इन्टरनेट,आधुनिक वस्त्र-विन्यास ,खान-पान ,जीवन शैली को अपना रहा है. वह नयी पीढ़ी के क़दमों के साथ कदम मिलाना चाहता है.आज बच्चों को भूख लगने पर  रोटी का समोसा बनाकर,या माखन पराठा  नहीं दिया जाता,डबलरोटी,पिज्जा,बर्गर ,कोल्ड ड्रिंक दिया जाता है,गन्ने का रस,दही की लस्सी का नाम यदा कदा  ही लिया जाता है.आधुनिकतम सुख-सुविधा,विलासिता के साधन अपनी अपनी जेब के अनुसार सबके घरों में हैं.बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में मोटा डोनेशन देकर पढाये  जा रहे हैं. परन्तु इतना सब कुछ होने पर भी हमारे  विचार वहीँ के वहीँ हैं. फिल्मों से यदि कुछ सीखा है तो किसी लड़की को सड़क पर देखते ही फ़िल्मी स्टाईल में उसपर कोई फब्ती कसना,अवसर मिलते ही उसको अपनी दरिंदगी का शिकार बनाना, ,अपराध के आधुनिकतम तौर तरीके  सीखना ,शराब सिगरेट  में धुत्त रहना आदि आदि ……. और हमारे विचार आज भी वही .पीडिता को ही    अपराधिनी मान लेना (यहाँ तक कि उसके परिजनों द्वारा भी),अंधविश्वासों से मुक्त न हो पाना,लड़की के जन्म को अभिशाप मानते हुए कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप में लिप्त होना,दहेज के लिए भिखारी बन एक सामजिक समस्या उत्पन्न करना आदि आदि .ये कलंक सुशिक्षित  शहरी समाज के माथे के घिनौने दाग हैं.

एक दिन  समाचार पत्र में पढ़ा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने देश में घटित बच्चों के सामूहिक हत्याकांड से व्यथित हैं,और कड़े  से कड़े कदम उठाने के लिए योजना बना रहे हैं. और निश्चित रूप से वहाँ  इस घटना की पुनरावृत्ति बहुत शीघ्र नहीं होगी ,दूसरी ओर हमारे देश में  बलात्कार,किसी भी बहिन,बेटी की इज्जत सरेआम नीलाम होने जैसी घटनाएँ आम होती जा रही हैं.जिनमें से अधिकांश पर तो पर्दा डाल दिया जाता है,  जो  राजधानी,कोई भी गाँव ,क़स्बा,महानगर ,छोटे शहर की सीमाओं में बंधी हुई नहीं हैं,सुर्ख़ियों में तब आती है,जब मीडिया की सुर्खी बन जाती है,या फिर किसी वी आई पी परिवार से सम्बन्धित घटना होती है.
           पूर्वी उत्तरप्रदेशवासिनी ,देहरादून से पेरामेडिकल की छात्रा ,जो अकेली नहीं अपने मित्र के साथ राजधानी दिल्ली में रात  को 9.30 बजे   चलती बस में सामूहिक बलात्कार ,उत्पीडन का शिकार बनी और  दोनों की बर्बर तरीके से पिटाई के बाद उनको बस  से नीचे फैंक दिया गया. इसके पश्चात एक अन्य समाचार पढ़ा जो इस घटना के बाद का ही है, चलती बस में युवती के साथ गैंगरेप के बाद दिल्ली में दो और बलात्कार के मामले सामने आए हैं। पहला, पूर्वी दिल्ली के न्यू अशोक नगर इलाके का है, जहां एक युवक ने पड़ोस में रहने वाली लड़की के घर में घुसकर उसका बलात्कार किया और पुलिस को बताने पर तेजाब डालने की धमकी दी
     पुलिस ने मामला दर्ज करके आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी जब घर में घुसा तो लड़की अकेली थी, परिवारवालों के घर लौटने पर पीड़ित ने घटना के बारे में उन्हें बताया। घरवालों की रिपोर्ट के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए लड़के को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
दूसरी घटना, पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके की है, जहां एक वहशी ने पड़ोस में रहने वाली सिर्फ 6 साल की बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया।
            चादंनी महल पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद पुलिस ने बच्ची का मेडिकल कराया, जिसमें बलात्कार की पुष्टि होते ही आरोपी रशीद को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी को तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया है। पिछले 48 घंटे में दिल्ली में बलात्कार की यह तीसरी घटना है।
             इस प्रकार ,एक रूटीन के रूप में  ऐसे समाचार प्राय सुनने  और पढ़ने को मिलते  हैं.कुछ दिन विशेष कवरेज मिलती है,कुछ घोषणाएँ की जाती हैं,महिला संगठन आवाज बुलंद करते हैं,और फिर वही. .एक प्रश्न  उठता है कि इस असाध्य रोग का  निदान  क्या है?
यद्यपि कोई भी सजा,कोई भी आर्थिक सहारा किसी पीडिता का जीवन तो नहीं संवार सकता,तथापि    बलात्कार के अपराधी को जिस  कठोर दंड की संस्तुति की जाती है,वह है,फांसी,परन्तु फांसी से अपराध तो खत्म होगा नहीं ,वैसे भी हमारे देश में फांसी की सजा लागू होने में वर्षों व्यतीत हो जाते हैं,और इतने समय पश्चात तो आम आदमी की स्मृति से वो घटनाएँ धूमिल होने लगती हैं. अतः दंड इतना कठोर हो    फांसी या कोई अन्य ऐसा दंड जिसकी कल्पना मात्र से बलात्कारी का रोम रोम काँप जाए.! 
                       कठोरतम क़ानून ,त्वरित न्याय,जिसके अंतर्गत ऐसी व्यवस्था हो कि न्याय अविलम्ब हो. सशस्त्र महिला पुलिस की संख्या में वृद्धि,अपनी सेवाओं में लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों का निलंबन ,सी सी  टी वी कैमरे ,निष्पक्ष न्याय मेरे विचार से सरकारी उपाय हो सकते हैं.जब तक हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया इतनी सुस्त रहेगी अपराधी को कोई भी भय नहीं होगा,सर्वप्रथम तो इस मध्य वो गवाहों को खरीद कर या अन्य अनैतिक साधनों के बल पर न्याय को ही खरीद लेता है .अतः न्यायिक प्रक्रिया में अविलम्ब सुधार अपरिहार्य है., अन्यथा तो आम स्मृतियाँ धूमिल पड़ने लगती हैं और सही समय पर दंड न मिलने पर पीडिता और उसके परिवार को तो पीड़ा सालती ही है,शेष  कुत्सित मानसिकता सम्पन्न अपराधियों को भी कुछ चिंता नहीं होती.दंड तो उसको मिले ही साथ ही उस भयंकर दंड का इतना प्रचार हो कि सबको पता चल सके महिलाओं की आत्मनिर्भरता ,साहस और कोई ऐसा प्रशिक्षण उनको मिलना चाहिए कि छोटे खतरे का सामना वो स्वयम कर सकें ,विदेशों  की भांति उनके पास मिर्च का पावडर या ऐसे कुछ अन्य आत्म रक्षा के साधन अवश्य होने चाहियें. !
        मातापिता को भी ऐसी परिस्थिति में लड़की को संरक्षण अवश्य प्रदान करना चाहिए.साथ ही संस्कारों की घुट्टी बचपन से पिलाई जानी चाहिए,जिससे  आज जो वैचारिक पतन  और एक दम माड बनने का जूनून जो लड़कियों पर हावी है,उससे वो मुक्त रह सकें.
ऐसे पुत्रों का बचाव मातापिता द्वारा किया जाना पाप हो अर्थात मातापिता भी ऐसी संतानों को सजा दिलाने में ये सोचकर सहयोग करें  कि यदि पीडिता उनकी कोई अपनी होती तो वो अपराधी के साथ क्या व्यवहार करते ,साथ ही सकारात्मक संस्कार अपने आदर्श को समक्ष रखते हुए बच्चों को  दिए जाएँ..!
          एक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐसे अपराधी का केस कोई अधिवक्ता न लड़े ,समाज के सुधार को दृष्टिगत रखते हुए अधिवक्ताओं द्वारा  इतना योगदान आधी आबादी के  हितार्थ देना एक योगदान होगा.
जैसा कि ऊपर लिखा भी है पतन समाज के सभी क्षेत्रों में है,अतः आज महिलाएं भी  निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर या चर्चित होने के लिए  कभी कभी मिथ्या आरोप लगती हैं,ऐसी परिस्थिति में उनको भी सजा मिलनी चाहिए. एक तथ्य और किसी नेत्री ने आज कहा कि दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के विशेष प्रबंध होने चाहियें.केवल दिल्ली में ही भारत नहीं बसता ,सुरक्षा प्रबंध सर्वत्र होने चाहियें .! आप सभी की क्यां राय है जरुर ब्यक्त करिए ....क्योकि यह समस्या आज हम सभे के लिए बहुर बड़ी ,भयानक ,लाइलाज बेमारी बंटी जा रही है ..और हम सभी मिलकर इस बीमारी से नहीं लड़ेगे तो एक दिन पूरा का पूरा समाज इस महामारी की चपेट में आ जाएगा ....और फिर हम हाथ मलते रह ज्क़येगे ........अछा है अभी इसी वक्त विचार करे ..और अपने विचार को ....मूर्त रूप देने के लिए आगे आये ...आज नहीं तो कभी नहीं .....चलिए उठिए ..जो जहा है वही से उठाकर इस कार्य को अंजाम देने के लिए पुरे मनोयोग से जुट जाए .......
.जय हिन्द जय भारत .....एन एस बाघेल...
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दिल्ली  गैंग रेप की घटना ने देश को उद्देलित कर दिया है . सारे देश में महिलाओं के साथ होने वाले ऐसे दुर्व्यवहार पर आक्रोश है . यह आक्रोश समाज के जागरूक होने की निशानी है . इसका सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि - अब हर दुष्कर्म पीडिता अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की खुलकर शिकायत कर सकेगी . पहले अनेकों दुष्कर्म की शिकार लड़कियां शर्म की बजह से इसकी शिकायत तक करने से डरती थीं . उनके परिवार वाले भी अपमानित होने के डर से मामले को दबाना ही बेहतर समझते थे .

हमारे देश के जिम्मेदार लोग तक ऐसी घटनाओं पर कार्यवाही करने के बजाये महिलाओं को ही सलाह देते थे कि - ऐसे कपडे न पहने या रात को बाहर न निकलें . इस की बजह से असमाजिक तत्वों के हौसले बहुत बढ़ चुके थे, लेकिन इस आन्दोलन का सबसे बड़ा लाभ ये अवश्य होगा कि - अब पीडिता और उसका परिवार खुल कर अपनी शिकायत करेगा और उस परिवार को समाज की तरफ से अपमान नहीं बल्कि सहानुभूति मिलेगी . यह सहानुभूति उस पीड़ित परिवार को मानसिक सहारा और असमाजिक तत्वों को हतोसाहित करेगी . लोगों के खुल कर सामने आने से , कानून को भी असमाजिक तत्वों को सजा देने में मदद मिलेगी .

इस समय बलात्कारियों को फांसी या कठोर सजा देने की मांग चल रही है वो बिलकुल उचित है . अगर ऐसे दो - चार अपराधियों भी सजा मिलती है सारे देश के असमाजिक तत्व भयभीत होंगे . लेकिन कठोर कानून बनाते इस बात का भी ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता है कि - कहीं इस कानून का दुरूपयोग - दहेज़ उत्पीडन कानून , हरिजन एक्ट , लेवर एक्ट , टाडा , पोटा , आदि की तरह न हो . सभी को पता है कि - आज इन कानूनों के अंतर्गत जितने भी केस चल रहे हैं उनमे से अधिकाँश केस झूठे हैं और उनका असली उद्देश्य केवल दुसरे पक्ष से अधिक से अधिक पैसा बसूलने में होता है..
By --Naveen Verma ji


शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

!! बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल।!

आज हम आपको 22 साल के एक ऐसे जवान के बारे में बता रहे हैं, जिसने मात्र पांच घुड़सवार और 25 तलवारधारी सैनिकों के बल पर दिल्ली की मुगलिया सल्तनत के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया था और मुगल सम्राट औरंगजेब की सत्ता को हिलाकर रख दिया था। इस जवान ने जीवनभर कभी मुगलों की सत्ता के सामने अपना सिर नहीं झुकाया।

इस जवान का नाम था - छत्रसाल। इसका जन्म मध्य प्रदेश के कचार कचनाई में 4 मई 1649 को चंपरातय और लालकुंअर के यहां हुआ था। युवा छत्रसाल ने अपनी ताकत के बल पर बुंदेलखंड के अधिकाश हिस्से पर अपना आधिपत्य स्थापित कर खुद को महाराजा बनाया। छत्रसाल के वंशज महाराजा रुद्रप्रताप सिंह थे, जिन्होंने ओरछा राज की स्थापना की थी। रुद्र प्रताप मुगलों के जागीरदार थे।
वीर युवा छत्रसाल ने 22 साल की उम्र में पांच घुड़सवार और 25 तलवारधारी सैनिकों को लेकर 1671 में मुगलों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की। दस साल के लगातार संघर्ष के दौरान छत्रसाल ने पूर्व में चित्रकूट और पन्ना के बीच का क्षेत्र और पश्चिम में ग्वालियर तक इलाका जीत लिया था। उनके राज्य का हिस्सा उत्तर में कालपी से लेकर दक्षिण में सागर, गढ़कोटा और दमोह तक था। उन्होंने 1680 में महोबा पर भी कब्जा किया।
    हालांकि संघर्ष के दूसरे दौर में 1681 और 1707 में उन्हें कुछ नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन औरंगजेब ने अपना मुख्य ध्यान दक्षिण की ओर कर रखा था, इस कारण वह कभी भी छत्रसाल के खिलाफ अपनी पूरी सेना का उपयोग नहीं कर पाए।
           मुगलों के कई सेनापतियों को हराया : बुंदेल केसरी ने अपने कुशल युद्धकला से मुगलों के कई सेनापतियों रोहिल्ला खान, कलिक मुनव्वर खान, सद्रुद्दीन, शेख अनवर, सैय्यद लतीफ, बहलोल खान और अब्दुस अहमद को युद्ध के मैदान में हराया।
              महाराजा छत्रसाल के मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के साथ उनके गहरे रिश्ते रहे। उनके बाद पेशवाओं से भी यह रिश्ते प्रगाढ़ होते चले गए। इलाहाबाद के मुगल शासक मोहम्मद खान बंगश ने 1727-1728 में जब महाराजा छत्रसाल के राज्य पर हमला किया, तो इस संकट के दौर में छत्रसाल ने बाजीराव पेशवो से मदद मांगी।
सेना के साथ एक अभियान पर निकले बाजीराव ने संकट में फंसे महाराजा छत्रसाल की मदद के लिए अपनी सेना भेजी और मुगल शासक बंगश की सेना को हराकर महाराज छत्रसाल को बुंदेलखंड की गद्दी पर बिठाया। छत्रसाल ने मदद मिलने पर बाजाीराव को एक पर्सियन मुस्लिम महिला से पैदा हुई अपनी बेटी मस्तानी और झांसी, सागर और कालपी के साथ ही 33 लाख सोने की मुद्राएं भेंट में दी।
कला, साहित्य और धर्म के संरक्षक थे महाराजा छत्रसाल : महाराजा छत्रसाल ने प्रणामी समुदाय के संत प्राणनाथ जी को अपना गुरु माना और उनके मत को स्वीकार किया था। बुंदेल केसरी के दरबार में कवि भूषण, लाल कवि, बख्सी हंसराज जैसे कवियों को विशेष संरक्षण भी था।

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बुधवार, 26 दिसंबर 2012

बैराग्य के भाव

मेरे मन में कभी कभी बैराग्य के भाव उत्पन्न होते है ....और ये भाव उस समय ज्यादा उत्पन्न होता है जब मैं किसी न किसी कारन बहुत परेसान होता हु ....उस समय ऐसा लगता है की छोड़ दो सब कुछ और कही चले जाओ एकान्त में ..और सब कुछ भूल जाओ ....धन ,दौलत ,सुख ,पत्नी ,बच्चे ,,अपना ब्यवसाय ......
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सच में क्या करना चाहिए ..ऐसे समय में ..इस प्रकार के भाव मन से किस तरह से हटाना चाहिए ...या फिर मन जो कहे उसे कर देना चाहिए ...............

!! कांग्रेस की डिवाइड & रूल पोलिसी:!!


1. 2008 के महारास्त्र के इलेक्शन में राज ठाकरे को अपने मीडिया पॉवर से हीरो बनाया। कांग्रेस विरोधी वोट शिव सेना + बीजेपी vs मनस (MNS) में बट गए। सरकार कांग्रेस की बनी। कांग्रेस ने डिवाइड और रूल अपनाया क्योकि 2008 के मुंबई हमलो के बाद कांग्रेस की अपने बलबूते जीतने की सम्भावन बहुत कम थी।

2. 2012 के गुजरात के इलेक्शन में केशु भाई पटेल को अपनी मीडिया पॉवर से हीरो बनाया। कांग्रेस विरोधी वोट बीजेपी और गुजरात विकास पार्टी के बीच बट गए। कांग्रेस को 2 सीट ज्यादा मिले, बीजेपी को 2 सीते कम और कांग्रेस को नेट फायदा हुआ लेकिन सरकार कांग्रेस की नहीं बन पाई। कांग्रेस ने डिवाइड और रूल अपनाया क्योकि नरेन्द्र मोदी के विकास कार्यो के कारन गुजरात में कांग्रेस के जीतने की संभावना बहुत कम थी।
...
3. 2014 के लोकसभा इलेक्शन के लिए अरविन्द केजरीवाल को अपनी मीडिया पॉवर से हीरो बनाया। कांग्रेस विरोधी वोट बट रही है "बीजेपी" और "आम आदमी पार्टी" के बीच। कांग्रेस को बहुत ज्यादा फायदा होने की उम्मीद बताई जा रही है। अरविन्द केजरीवाल के सहयोग से 2014 में कांग्रेस की सरकार बंनने के बहुत ज्यादा संभावना है। कांग्रेस फिर से डिवाइड और रुल अपना रही है क्योकि कांग्रेस पार्टी के घोटालो, महंगाई, अत्याचारों इत्यादि के कारन कांग्रेस के जीतने की सम्भावना बहुत कम दिख रही है।

कांग्रेसी मीडिया के दिखावे पर मत जाओ, अपनी अकल लगाओ !
BY.---Arvind Jadoun ji FB .

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

!! दुर्घटना में घायल ब्यक्ति की मदद जरुर करे !!


Photo: दोस्तों आज सुबह सुबह ..करीब ६.०० बजे मोर्निंग वाक् से लौट 
रहा था की ..रोड पर एक एक इंसान को तड़पते हुए देखा ..पास ही उसके बाइक रोड 
के किनारे पडी हुई थी .सायद किसी बड़े वाहन ने उसे टक्कर मारकर भाग गया 
...मैं भी पास गया जहा पर पहले से ही कुछ लोग भीड़ लगाकर खड़े थे ..वह 
ब्यक्ति बेहोस था मैं ने तुरंत ही 100 नंबर पर पुलिश को फोन किया ..जबाब 
मिला "ज्यादा सीरियस हो तो पंहुचा दो .अभी हमारे पास कोई वाहन नहीं है
 हम(पुलिश) 20 मिनट तक आयेगे "...ओह ..मैंने सोचा की तब तक तो ये 
बन्दा मर जाएगा ..मैंने तुरंत एक बाइक वाले को रोका और उसे कहा की आप मुझे 
मेरे घर तक छोड़ दीजिये {मेरा घर दुर्घटना स्थल से करीब १.५ KM पर है}..जहा 
से मैं मेरी कर लेकर आता हु और इन्हें कार से आस्पताल तक छोड़ता हु ....ओ 
नेक सज्जन  थे ओ तुरंत ही तैयार हो गए ..मैं घर पहुचा और तुरंत ही कार 
निकला और पर्स लिए और दुर्घटना स्थल पर पहुचा और जल्दी से उसे कुछ लोगो की 
मदद  से कार में लिटा कर ..अकेले ही (क्योकि कोई साथ चलने के लिए तैयार 
नहीं हुआ )उसे करीब ४.५ KM दूर अस्पताल में भर्ती करा दिया ...डाक्टरों ने 
उसे तुरंत केयर किया ..उसे सर पर बहुत ज्यादा चोट लगी थी ..बहुत सारा खून 
बह गया था ..उसके सर में १८ टाके लगे ..और उसे १ घंटे बाद होस आ गया ..तो 
उससे पूछ कर उसके  घर वालो को फोन लगाया ...ओ देवास के ही......जब उनके घर 
वाले आ गए तो मैं फिर वापस आ गया .......बहुत ही प्रशान्तता हुई ..की चलो 
मैं किसी के काम तो आया ...ऐसे समय में............दोस्तों आज सुबह सुबह ..करीब ६.०० बजे मोर्निंग वाक् से लौट रहा था की ..रोड पर एक एक इंसान को तड़पते हुए देखा ..पास ही उसके बाइक रोड के किनारे पडी हुई थी .सायद किसी बड़े वाहन ने उसे टक्कर मारकर भाग गया ...मैं भी पास गया जहा पर पहले से ही कुछ लो...ग भीड़ लगाकर खड़े थे ..वह ब्यक्ति बेहोस था मैं ने तुरंत ही 100 नंबर पर पुलिश को फोन किया ..जबाब मिला "ज्यादा सीरियस हो तो पंहुचा दो .अभी हमारे पास कोई वाहन नहीं है हम(पुलिश) 20 मिनट तक आयेगे "...ओह ..मैंने सोचा की तब तक तो ये बन्दा मर जाएगा ..मैंने तुरंत एक बाइक वाले को रोका और उसे कहा की आप मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिये {मेरा घर दुर्घटना स्थल से करीब १.५ KM पर है}..जहा से मैं मेरी कर लेकर आता हु और इन्हें कार से आस्पताल तक छोड़ता हु ....ओ नेक सज्जन थे ओ तुरंत ही तैयार हो गए ..मैं घर पहुचा और तुरंत ही कार निकला और पर्स लिए और दुर्घटना स्थल पर पहुचा और जल्दी से उसे कुछ लोगो की मदद से कार में लिटा कर ..अकेले ही (क्योकि कोई साथ चलने के लिए तैयार नहीं हुआ )उसे करीब ४.५ KM दूर अस्पताल में भर्ती करा दिया ...डाक्टरों ने उसे तुरंत केयर किया ..उसे सर पर बहुत ज्यादा चोट लगी थी ..बहुत सारा खून बह गया था ..उसके सर में १८ टाके लगे ..और उसे १ घंटे बाद होस आ गया ..तो उससे पूछ कर उसके घर वालो को फोन लगाया ...ओ देवास के ही......जब उनके घर वाले आ गए तो मैं फिर वापस आ गया .......बहुत ही प्रशान्तता हुई ..की चलो मैं किसी के काम तो आया ...ऐसे समय में............

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

!! धन्य है काँग्रेस सरकार !!

नेहरू वकील मगर कभी किसी क्रांतिकारी का केस नहीं लड़ा गोरी औरतों से अँखियाँ लड़ाते रहे। महात्मा गाँधी वकील मगर कभी किसी क्रांतिकारी का केस नहीं लड़ा मगर नेहरू की वकालत खूब करी।
इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, संजय गाँधी अध्याय शुरू होते ही खत्म हो गए।
सोनिया गाँधी जिसका जन्म रहस्यमय, पढाई रहस्यमय, बीमारी रहस्यमय ?
काँग्रेस कि चहेती इन्द्रा गाँधी का स्वरुप प्रियंका गाँधी चुनावी प्रचार का माध्यम भर।
राहुल गाँधी जिसको समझना किसी के बस में ही नहीं है।
... मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री मगर देश का अर्थशास्त्र आज तक किसी को समझ नहीं आया।
शीला दीक्षित एक महिला मुख्यमंत्री जो कहती है कि 600 रुपये में 5 लोगो का पेट महिना भर भरा जा सकता है जबकि मुस्लिम विधवाओं के लिए इनका खजाना 1500 रुपये प्रति महिला देता है, इनका कहना है कि शाम के बाद महिलाए घर से बाहर ना निकले।
कानून मंत्री सलमान खुर्शीद कानून की धज्जियाँ सरे आम उडाता रहा खुन करने कि धमकी देते हैं। वित्तमंत्री वित्तिय व्यवस्था को सँभालने में नाकाम रहा मगर देश का सर्व्वोच पद सँभालने के बाद से कई पार्टियों की वित्रीय व्यवस्था सुधार दी।
कोयला मंत्री खरबों का कोयला बेच कर दलाली में खा गया, डकार तक नहीं मारी।
नागरिक उड्डयन मंत्री जो कभी किसी पार्टी में उड़ान भरते हैं, तो कभी किसी में।
विदेश मंत्री अपनी विदेश निति की वजह से देश की किरकिरी करते रहे।
खेल मंत्री ने ऐसा खेल खेला कि भारत को ओलम्पिक खेलने पर ही विश्व ओलम्पिक संघ ने प्रतिबन्ध लगा दिया।
रक्षा मंत्री बांग्लादेश से आने वाले बांग्लादेशियों की रक्षा करने के लिए नीतिया बनाते रहे और सैनिको के हाथ में बन्दुक की जगह बांग्लादेशियों की तलाशी लेने वाला इलेक्ट्रोनिक डिवाइस पकड़ा दिया। ....................धन्य है काँग्रेस सरकार...

|| इन्सान एक चेहरे अनेक ||

आज हर आदमी एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए घूम रहा है  सायद मैं भी उन्ही लोगो में सामिल हु ..जिससे जीवन के इस खेल में उसके अंदर छिपा असली आदमी कभी भीउजागर हो ही नही पाता ! या यूं कहे कि वह जिंदगी भर एक अच्छा नाट्यकर्मी जरूर बना रहता है! खुद को अनछुआ ही इस दुनिया से रूखसतकर जाता है ! आदमी अपने जीवन को एक ड्राईंग रूम की ही तरह अपने उसूलों से सजाए रहता है! बाकी का असली जीवन को देखने का समयही नहीं मिल पाता!इस नकलीपन से आज हर कोई आदमी को समझने में भारी भूल कर बैठता है!इसीलिए इस दुनिया में आए दिन हमें ऐसेकिस्से देखने को मिलते है कि देवता सा दिखने वाला फलां आदमी शैतान, वहशी निकला ! अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि नकली सिक्के असलीसिक्कों को चलन से बाहर कर देते है
!आज भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है, असली चरित्रवान आदमी घर में दुबका बैठा है और नकली चरित्र का आदमी धड़ल्ले से चलरहा है! यहां मुझे एक छोटी सी कहानी याद आ रही है! एक सूफी फकीर गुरजियत के बड़े चर्चे थे! चर्चे इस बात के वह किसी को भी अपनाशिष्य बनाने के पहले महिना भर पहले शराब में डुबाए रखते थे! जब कुछ लोगों ने इसका कारण उनसे जानना चाहा तो उनका कहना था आजआदमी बाहर से कुछ अंदर से कुछ और होता है ! आदमी होश में तो बड़ा बनावटी हो सकता है लेकिन शराब के नशे में उसमें छिपा असलीआदमी बाहर आ जाता है! आखिर जिसे मैं अपना शिष्य बनाने जा रहा हूं उसके अंदर छिपा असली आदमी कौन है, कैसा है, पहले में जान तोलू, पहचान तो लू कि वह शिष्य बनने लायक भी है या नहीं ! हो सकता है दुनिया वालों को उनका शिष्य बनाने का यह तरीका उचित न लगे,लेकिन है तो सत्य.....
यूं तो नकली, दिखावटी चरित्र का आदमी हर जगह हर क्षेत्र में मौजूद है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा भरमार राजनीति के माध्यम सेसमाजसेवा जैसे पवित्र कार्य में अधिक है जो चिंता का विषय है.....


नोट -- यह ब्लॉग मेरे परम आदरणीय  फेसबुक मित्र श्री............पांडे जी और श्री ,श्री  .............मिश्रा जी को सादर  समर्पित है .....

रविवार, 23 दिसंबर 2012

बलात्कार रोकने की अपील का ये भी क्या तरीका है ?

बलात्कार रोकने की इससे ज्यादा असरदार अपील में तो सोच भी नहीं सकता .....इन्ही नोटंकियो की वजह से तो समाज में ये नोबत आ रही हँ
बाद में ज्यादातर ऐसी ही ओरते पंचायत करती फिरती हँ
अरे , ये में क्या केह रहा हु , में तो सहमत हु जी .... ओरते तो बहुत मर्यादित आचरण करती हँ पर इन साले मर्दों की नीयत ही खराब होती हँ
इन मर्दों की नजर ही उलटी सीढ़ी जगह जाकर टिकती हँ ,.... पता नहीं क्यों ?????................. :

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

!! बिधवा का दर्द !!

मैं अभी एक दिन पहले एक दिन एक प्रापर्टी बेचेने के चक्कर में एक कलोनो में घूम रहा था (मैं समय निकाल कर प्रापर्टी ब्रोकर का भी काम करता हु )....उस समय पर मैं एक घर के सामने कुछ भीड़ देखा ..उत्सुकता बस मैं भी उस भीड़ वाली जगह पर मेरी कार खड़ी ..कर दिया और कार से ही झाकने लगा की क्या माजरा है ..?  (माफ़ करे मैं भी भारतीय हु ..भीड़ देखा और मनोरंजन करने  के लिए ठहर  गए ...आदत है हम भारतीयियो की)....
          मैंने देखा की उस भीड़ में एक महिला करीब ३०-३२ साल के आस पास की थी रोड पर बैठ कर रो रही थी  ...और घर  के देहली से एक महिला लगभग ५५-५८ साल की रही होगी ...जोर जोरी से चिल्ला रही थी  की नासपीटी ने मेरे बच्चे को खा लिया ...और अब मुझे खाने के लिए बैठी है घर में कही मर भी नहीं जाती ...कही जा कर ....मुझे अचानक लगा की रोड में बैठी हुई महिला को मैं पहचान रहा हु ..मैं कार से नीचे उतर कर देखा तो पता चला की ये तो हमारे संस्थान से PGDCA का कोर्ष कर रही है ...मैंने नजदीक गया और पूछा की क्या है ,ज्योति क्या ये सब ,,,ओ ज्योति ने सर्मिन्दा होते हुए रोड से उठ गई और बोली की सोरी सर ....मैंने कहा टीक है ..कोई बात नहीं पर ये सब क्या है रोड में इसतरह से आप जैसे पढी लिखी महिला करेगी ...तो समाज में क्या संदेस जाएगा .??..ज्योति ने फिर से sorry बोला और घर के अन्दर चली गई ...बुजुर्ग महिला का भी चिल्लाना बंद हो गया ओ भी अन्दर  चली गई ....मैं वापस अपने कार में बैठने लगा तो अक ६५ साल के  बुजुर्ग आये मेरे पास और बोले की सर चलिए घर ...मैंने उन बुजुर्ग का आग्रह नहीं ठुकराया और उनके घर गया ...चुकी ज्योति मेरी स्टूडेंट है ..इस कारन मेरी आव -भगत कुछ ज्यादा ही हो रही है ..मैं वह पर बैठकर बाते करने लगा ..बात बात में पता चला की ज्योति का उनके सास से बिलकुल नहीं पटती है ...कारण पूछने पर पता चला की ज्योति की सास का ममना है की ज्योति के कारण ही उनके पुत्र का निधन हुआ ..जबकि जहा तक मेरी जानकारी मिली उससे ज्योति के पति की मृतु दुर्घटना में हुई ..अब इसमें ज्योति का क्या दोष ? .फिर कुछ देर बाद ज्योति आई मेरे सामने............ 

क्रमश ....समय मिला तो आगे लिखुगा ..बहुत ही दर्दनाक  हकीकत है .....


!! क्या हम पूर्र्ण है ? क्या हम सम्पूर्ण है ?

  
क्या हमारे जीवन में कोई पूर्णता या सम्पूर्णता ला सकता है ....यह निश्चय है की स्त्री और पुरुष एक दुसरे के बगैर अधूरे हैं.. विवाह अथवा प्रेम पूर्णता लाता है , लेकिन 'सम्पूर्णता' नहीं...एक पुरुष के जीवन में उसकी पत्नी के अतिरिक्त उसके माता-पिता, भाई-बहन ,मित्र , नौकरी , कलीग , पडोसी और समाज , सभी का कुछ न कुछ योगदान होता है उसके जीवन को पूर्ण बनाने में..... उसी प्रकार एक स्त्री के जीवन में उसके पति अथवा प्रेमी के अतिरिक्त , उसके माता-पिता, भाई, बहन, परिजन, उसकी अपनी महत्वाकांक्षाएं और समाज सभी का थोडा-थोडा योगदान होता है उसके जीवन को पूर्ण बनाने में... अतः किसी का यह कहना की वो अमुक व्यक्ति को सभी खुशियाँ दे देगा , यह मात्र एक भ्रम है... आप किसी के भी जीवन में पूर्णता तो ला सकते है पर सम्पूर्णता ..कभी नहीं ला सकते है .....हम किसी से बहुत प्रेम करते है उसके लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर है .हम सोचते है की इसे सम्पूर्ण खुसी दे सकते है ....पर यह मेरा आपका .हमारा ..सिर्फ एक अहंकार है ..और कुछ नहीं ....आप होते कौन है किसी को कुछ देने वाले ...........

!! गुजरात में मुसलमान असुरक्षित है ?

.अहमदाबाद। गुजरात की तरक्की का लाभ मुसलमानों को भी मिला है, एक आम मुसलमान को संविधान प्रदत्त अधिकार चाहिए न की टिकट। कांग्रेस व अन्य दल मुस्लिम समुदाय को अपना पिट्ठू समझते हैं, लेकिन मुसलमान कौम कोई बेवकूफ नहीं जो खुद का भला बुरा नहीं समझती।

कांग्रेस ने पुरे चुनाव में मुसलमानों का नाम तक नहीं लिया उनको छुपाकर रखने की कोशिश की, जबकि बीजेपी ने इस बार सबको साथ रखा। यह कहना है परासोली कोर्पोरेसन के अध्यक्ष जफर सरेशवाला का। उनका मानना है कि मोदी ने गुजरात को तरक्की की राह पर लाकर दिखा दिया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी देश प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश का भला होगा।

मुस्लिम समुदाय को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिय सरेशवाला अपनी कंपनी के जरिए निवेश व बचत का पाठ मुस्लिमों को समझाने में सफल रहे हैं और गुजरात दंगा के बाद से अब तक बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़े हैं। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पटेल समाज के एकजुट होने को गलत मानते हुए कहा की उसके खिलाफ मुस्लिम समुदाय ने बीजेपी के पक्ष में आकर समझदारी दिखाई।
...
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां कहा की गुजरात में मुसलमान असुरक्षित है, इस पर सरेशवाला कहते हैं की देश में इससे बड़ा मजाक नहीं किया जा सकता है। यह बात वर्ष 2002 में दंगों के बाद करते तो माना जा सकता था, लेकिन 2012 के चुनाव में जब प्रधानमंत्री ही पुरानी बातों का रेकार्ड बजाएंगे तो उसे कौन सुनेगा।

जफर भाई इस मामले में उलटा कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हुए कहते हैं कि कांग्रेस समेत अन्य छोटे दलों ने भी मुस्लिम समुदाय को अपनी पॉकेट में रखी वस्तु समझ रखी है। वार्ड चुनाव में भी उम्मीदवार वोट के लिए मतदाता से मिलता है, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने विश्व हिंदू परिषद् की बी टीम की तरह काम करते हुए मुस्लिमों को उपेक्षित रखा। सरेशवाला यहां तक कहते हैं कि मुसलमानों को लेकर कई तरह की बात होती है, लेकिन उन्हें किसी पार्टी का टिकट नहीं अधिकार चाहिए। उन्होंने कहा कि एक टिकट पा जाने से कोई उम्मीदवार विधायक तो बन जाता है, लेकिन आम आदमी को तो टिकट नहीं विकास से मतलब है। मोदी के राज में मुस्लिम सुखी और समृद्ध हुआ है अगर राज्य तरक्की कर रहा है तो उसका फायदा मुस्लिमों को भी हुआ है। मोदी ने विकास की जो गति गुजरात को दी है उससे हर समाज का भला हुआ है।

जफर भाई कहते हैं कि देश में अब तक प्रधानमंत्री बनने वालों में किसी को राज चलाने का अनुभव नहीं था, मोदी ने खुद को गुजरात में इस बात को साबित किया है। उन्होंने कहा कि मोदी अगर एक राज्य चला सकते हैं तो देश को भी बेहतर तरीके से चला सकते हैं। गुजरात के मुस्लमानों ने मोदी को स्वीकार किया है, उनका नेतृत्व तारीफ के काबिल है, अब देश उन्हें स्वीकारेगा पुरे मुल्क में उनके समर्थक भारी संख्या में हैं।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

बलात्कार क्यों ?

आप सभी को सुप्रभात ..जय हिन्द जय भारत ..जय जय श्री राम....जय श्री कृष्णा ........
 बलात्कार क्यों ? संस्कारों का अभाव या कामवासना की अधिकता ?

भारत भूमि में जहाँ स्त्री को इतना सम्मान दिया जाता था, वहीँ आज स्त्री को मात्र उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है। उसे आम की तरह चूसकर, फिर उसे दर्दनाक तरीके से मार-मारकर चलती गाडी से फेंक दिया जाता है! बलात्कारी खुले सांड की तरह घुमते हैं , सत्ता चैन की वंशी बजाती है और स्त्री कलप-कलप कर मरती है! दिल्ली में गैंग रेप की शिकार एक युवती जिस तरह की असहनीय मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुज़र रही है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उसके माता पिता जितने दारुण दुःख झेल रहे हैं उसका अनुमान भी नहीं कर सकते हैं ये वीर बलात्कारी! दिल्ली की मुख्यमंत्री को यदि लड़कियों की सुरक्षा की ज़रा भी चिंता हो...तो उचित कदम उठाये ..अन्यथा .....डूब मरे ..जमुना में जाकर ..........
कल शाम की बात है ., मैं ग्रामीण क्षेत्र की एक मोबाईल शॉप पर खड़ा था ., की इतने में एक तेरह - चौदह वर्ष का लड़का आया और दुकानदार से बोला की इसमें " वो " वाली ...( यानी एडल्ट / पोर्न फिल्मे ) पिक्चर डाल दो ... दुकानदार ने उस लड़के की मंशा भांप ली ., उसने भी उसे अपना पारिश्रमिक बताया ., लड़का राजी हुआ ., तो उस दूकान संचालक ने उस लड़के की एक्सटर्नल मेमोरी कार्ड में कुछ पोर्न फिल्मे डाल के दे दी ., और वो लड़का चलता बना .... मैंने दूकानदार की तरफ घूर कर देखा ., तो उसने मुझे अपनी कुटिल मुस्कान बिखेर कर कहा की -" सर ...!!! यहाँ तो सब चलता है ...." उसे शौक था ., मैंने उसका शौक पूरा कर दिया ...."
खैर ., ऐसे दृश्य बहुतो ने सुने और देखे होंगे .., लेकिन सोचने वाली बात ये है की हम और हमारा समाज किस ओर जा रहा है ...???
इतनी कम उम्र में सेक्स-ज्ञान लेने वाले बच्चे भविष्य में रेपिस्ट नहीं बनेंगे तो और क्या बनेंगे ...???
एक तेरह - चौदह साल का बालक ., यदि " काम -वासना " का इतना ज्ञान समेटे हुए है ., तो सोचिये की हम पश्चिम से फिर कैसे भिन्न हुए ....???
हम संस्कार की बात करते है ., लेकिन वर्तमान परिवेश में " संस्कार " शब्द जैसे अछूता सा लगता है ...

वर्तमान में घटित घटना को ही लीजिये .... हर गली चौक-चौराहों ., प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ., यहाँ तक की फेसबुक और ट्वीटर पर भी चर्चा है तो सिर्फ और सिर्फ दिल्ली - गैंगरेप की ... हो भी क्यूँ न ., ये शर्मनाक - काण्ड है ही कुछ ऐसा ...लेकिन .,
क्या आपको लगता है ., की ये देश में हुआ पहला रेप-काण्ड है .???
या दोषीयो को सज़ा हो जाने के बाद ऐसे शर्मनाक कृत्यों की भविष्य में फिर कभी पुनरावृत्ति नहीं होगी ...???
भविष्य में कभी किसी बहन / बेटी की अस्मिता पर आंच नहीं आएगी ...???
शायद ., इन सारी बातो पर नकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी जाएगी ...

मित्रो ., भारत और विश्व के किसी भी कोने में हो रही ऐसी शर्मनाक घटनाओ का मूलतः एक ही कारण हो सकता है ., " संस्कारों का अभाव "...
ज़रा सोचिये .., वर्तमान में घटित घटना के आरोपी ., हैवान की शक्ल में " इंसान " ही है .... यदि इन आरोपीयो को उचित संस्कार प्राप्त होते ., तो शायद ये काण्ड न कभी हुआ होता ., और न ही ये सारी बातें चर्चा योग्य विषय बनती .... असल में पोर्न फिल्मे ., अश्लील सामग्रीया एवं नंग - धडंग फिल्मो -गानों ., पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण ने युवा तो युवा ., यहाँ तक की तेरह - चौदह वर्ष के किशोरों एवं किशोरियों को भी " काम-वासना " के दलदल में घसीट लिया है .... यदि वास्तव में हम इस प्रकार की घटनाओ की पुनरावृत्ति नहीं चाहते . तो आवश्यकता है एक शुरुवात की ., जिसमे प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक अपने परिवार में " संस्कारों " का उचित रूप से सिंचन करके अपना योगदान दे सकता है ....

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

क्या जाति ब्यवस्था टूट रही है ?

वैदिक काल के शुरूआती दौर में जब समाज के प्राचीन युग की कृषि दस्तकारी तथा अन्य सामाजिक कामो व पेशो का उदय हो रहा था , उस समय विभिन्न कामो में लगे रहे लोगो का काम न ही पुश्तैनी था और न ही प्रतिबंधित था ...! वर्तमान युग में खासकर ब्रिटिश दासता के काल से चल रहे आधुनिक युग में आधुनिक कामो पेशो के आगमन के साथ हम एक तरह से वैदिक काल की पुनरावृत्ति देख सकते है....किसी जाति के एक ही परिवार के सदस्यों को अपने पुश्तैनी पेशे और उससे अलग दुसरे पेशो मेंजाता बखूबी देख सकते है ....जैसे की मैं एक राजपूत जाति से हु ..और आज मैं राजपूतो वाला पेसा चाहते हुए भी  नहीं अपना सकता हु ...अब मैं ब्राह्मणी पेसा (धंधा) अपना लिया है !

समाज में जातिया आज भी विद्यमान है ... वे जातीय पेशो के साथ जातीय उंचाई -- निचाई , बड़ाई छोटाई के  अंतरजातीय संबंधो में तथा शादी -- विवाह , नातेदारी रिश्तेदारी के जाति के भीतर के संबंधो के रूप में विद्यमान है !इसके साथ ही वे समाज में जातीय  लगावो -- विरोधो की मनोवृत्तियो एवं प्रवृतियों आदि के रूप में भी मौजूद है , इसके अलावा आज ये जातीय सम्बन्ध एक नए रूप में भी खड़े होते जा रहे है.  लेकिन
वर्तमान युग में जात -- पात की यह सदियों पुरानी समाज व्यवस्था अपने उस  पुराने जड़ कट्टर रूप में कदापि मौजूद नही है,जिसके अंतर्गत समाज के  विभिन्न काम व पेशे विभिन्न जातियों के पुश्तैनी पेशो के रूप में विभाजित  थे , विभिन्न जातियों में न केवल पुश्तैनी श्रम विभाजन था , बल्कि वह  प्रतिबंधित भी था, अर्थात एक तरह के काम व पेशे को करने वाली जाति दूसरा  कोई काम व पेशा नही कर सकती थी ,,उदाहरण पूजा -- पाठ  कराने  का काम ब्राहमणों  का काम था , जिसे किसी दूसरे जाति का कोई भी आदमी नही कर सकता था, जबकि आज ऐसा नहीं रहा अ..आज ऐसे बहुत से लोग मिल जायेगे ..जो ब्राह्मण जाति से नहीं है फिर भी पूजा -पाठ का कार्य समाज में बखूबी करा रहे है ...हलाकि लोगो ने आज तक पूर्र्ण रूप से अन्य जाति के पुजारी को स्वीकार नहीं किया ....फिर भी मैं गायत्री शक्ति पीठ के कार्य कर्ताओं को साधुवाद दुगा की ओ इस काम में बखूबी कर रहे है ..मैं ब्यक्तिगत रूप से भे इस कार्म को बढ़ावा देना चाहता हु ....उसी तरह क्षेत्राधपति या क्षेत्राधिकारी होने , अस्त्र चलाने या युद्ध लड़ने का काम मुख्यत: क्षत्रियो का जातिगत काम व पेशा था , हालाकि इस काम या पेशे में  ब्राह्मण जाति के लोग भी अपने शास्त्रीय  काम व पेशे के साथ हिस्सा ले  सकते थे और लेते भी थे ,, वैश्य का पुश्तैनी पेशा समाज में विनिमय व व्यापार का था ! इन जातियों से  नीचे छूत मानी जाने वाली शुद्र -- जातियों में वे  तमाम कंकर जातिया थी ( और आज भी है ) जिनके काम व पेशे एक दुसरे से भिन्न  थे . इनमे बढ़ई -- लोहार , कुम्हार , गो पालक , कृषक तथा नाऊ खार माली जैसी  जातिया शामिल है.. इनके नीचे और समाज में सबसे नीचे वे और अछूत समझी जाने  वाली शुद्र जातियों के लोग थे और आज भी है , इन जातियों के लिए समाज में  सबसे नीचे समझे जाने वाले काम व पेशे पुश्तैनी रूप निर्धारित थे ! समाज में अपने उपर की सभी जातियों -- ब्राहमणों , क्षत्रियो विषयों से लेकर छुट शुद्र जातियों के निम्नतर स्तर के कामो को करते हुए उनका दास व सेवक बने  रहना इन अछूत जातियों का पुश्तैनी पेशा निर्धारित था ....!
             हम इस  विषय पर  चर्चा करने नही जा रहे कि इस देश में पुराने सामन्ती युगों में सामाजिक  कामो व पेशो का यह निर्धारण पुश्तैनी और एक दुसरे के लिए प्रतिबंधित कैसे  हो गया और फिर सदियों तक वह क्यों व कैसे बना रह गया ?  इस पर हम कभी अलग से बाते करेंगे.| यहाँ हमारी चर्चा का विषय यह है कि वर्तमान समय में इन  पुश्तैनी व प्रतिबंधित जातीय पेशो के बने रहने की दशा व दिशा क्या है ? और  उससे अपेक्षित सुधार - बदलाव के लिए क्या कुछ  किया जा सकता है ? जातीय  पेशो , संबंधो और  उसमे बदलाव की दशा -- दिशा के संदर्भ में यह बात ध्यान  देने योग्य है कि ये बदलाव आधुनिक युग के कामो व पेशो के खड़े होने के साथ -- साथ अपने आप भी होते गये है ,और फिर इन बदलावों के लिए सामाजिक सुधार -- आंदोलनों से लेकर राजनितिक --  सामाजिक प्रयास भी किये जाते रहे है , हालाकि इस संदर्भ में सबसे अफसोसजनक  बात यह है कि पिछले 30 -- 40 सालो से जाति व्यवस्था के अंतर्भेदो को कम  करने और फिर उसे समाप्त करने का कोई महत्वपूर्ण व उल्लेख्य्नीय प्रयास नही  किया गया और न ही इस समय किया जा रहा है ! जबकि ब्रिटिश राज और उसके  विरुद्ध आन्दोलन में ब्रम्ह समाज आन्दोलन , आर्य समाज आन्दोलन के आन्दोलन  और डाक्टर अम्बेडकर के नेतृत्व में चले दलित मुक्ति और जाति विरोधी आन्दोलन  कांग्रेस पार्टी के अछुतोद्दार आन्दोलन आदि के रूप में जातीय दूरी --  दुराव को घटाने -- मिटाने के सचेत प्रयास किये गये ,हलाकि इस प्रयास में वांछित सफलता नहीं मिली ..फिर भी एक आन्दोलन की सुरुआत तो हो ही गिया है जो आज भी बखूबी आगे को बढ़ रही है ...!1947 के बाद के दौर  में यह काम खासकर उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रो में कम्युनिस्ट एवं  सोशलिस्ट पार्टी के लोग करते रहे है ,लेकिन बिडम्बना यह है कि वर्तमान दौर में जातीय अन्तर्भेद को घटाने और समाप्त करने का पहले ऐसा कोई उल्लेखनीय   प्रयास नही किया जा रहा है , देश के उच्च व प्रचार माध्यमी स्तर पर तो  जातीय व्यवस्था को घटाने -- मिटाने की जगह उसका सत्ता -- स्वार्थी इस्तेमाल ही किया जाता रहा है , उसे राजनितिक सामाजिक संबंधो के रूप में परस्पर  विरोधी गोलबंदी के रूप में मजबूत किया जा रहा है ,उसे निरंतर बढाने का काम किया जा रहा है ...... ! इसे देखते हुए यह बात तो अब निश्चित हो चुकी है कि देश के धनाढ्य व उच्च  हिस्से , विभिन्न जातियों के उच्च हिस्से एवं सुविधा प्राप्त माध्यम वर्गीय से बने हुकमती शासकीय व प्रशासकीय हिस्से तथा प्रभावकारी प्रचार माध्यमी  एवं विद्वान् हिस्से , अब जाति व्यवस्था को घटाने मिटाने का कोई प्रयास नही कर सकते है , जातीय उंचाई -- निचाई को खत्म करते हुए विभिन्न जातियों के  जनसाधारण में नए युग की जनतांत्रिक या जनवादी सोच व व्यवहार प्रस्तुत नही  कर सकते , उन्हें आधुनिक समाज के जनसाधारण नागरिक के रूप में एकजुट करने का काम भी नही कर सकते ,कयोंकि उन्हें महगाई , बेकारी रोजी -- रोटी शिक्षा  चिकित्सा तथा सामाजिक सुरक्षा आदि जैसी जन समस्याओं को भोगते हुए विभिन्न  धर्म , जाति इलाका भाषा के समस्या ग्रस्त जनसाधारण से उसकी एकता से और उसके फलस्वरूप खड़े होने वाले जनसंघर्ष या विद्रोह से खतरा है, दूसरे यह काम   वे  इसलिए भी नही कर सकते कि वे अब बढती जनसमस्याओ के मुख्य आधार पर न तो वोट व समर्थन मांग सकते है और न ही उसे पा सकते है , कयोंकि समूचा हुकूमती  हिस्सा जनविरोधी नीतियों को खुलेआम लागू करते हुए देश -- दुनिया के धनाढ्य  एवं उच्च हिस्सों की सेवा में ही जी जान से लगा हुआ है , इसलिए वे अपने इस  चुनावी वोट के लिए भी समाज के कर्म , जाति , इलाका भाषा के सदियों पुराने  अन्तरभेदों व अलगावो को ही अपना प्रमुख हथकंडा बनाये हुए है ....यह बताने की जरूरत नही है कि समूचा उच्च प्रचार माध्यमी हिस्सा और इन सबका पालक  बुद्धिजीवी हिस्सा और इन सबका पालक धनकुबेरो का हिस्सा एक दूसरे के साथ एक जुट होकर इस हथकंडे को बढाने आजमाने और मजबूत करने में लगा हुआ है ...
लिहाजा अब जातीय उंचाई -- नीचे के साथ हर तरह के जातीय अन्तरभेदों को मिटाने तथा जाति व्यवस्था को समाप्त करने और धर्म -- सम्प्रदाय व इलाका -- भाषा के विरोधो या अंतरभेदों को भी मिटाने का दायित्व जनसाधारण पर है ,जनसाधारण समाज के आगे बढ़े हुए प्रबुद्ध व्यक्तियों से लेकर निचले आर्थिक सामाजिक स्तर पर बैठे हुए प्रत्येक व्यक्ति पर है, कयोंकि यह उन्ही की राह का रोड़ा है, उनके बुनियादी एवं जनतांत्रिक अधिकारों के रास्ते का रोड़ा है ,उनके वास्तविक आधुनिक विकास का पत्थर है...........!
         जाति व्यवस्था के संदर्भ में यह वैदिक युग और आज के युग की समानता को देखना भी दिलचस्प है,फिर यह समानता वर्तमान युग में जाति व्यवस्था को समाप्त करने का एक सबक है सन्देश भी जरुर देता है , वैदिक काल के शुरूआती दौर में जब समाज के प्राचीन युग की कृषि दस्तकारी तथा नानी सामजिक कामो व पेशो का उदय हो रहा था , उस समय विभिन्न कामो व पेशो में लगे रहे लोगो का काम न ही पुश्तैनी था और न ही प्रतिबंधित था ! एक ही परिवार का एक व्यक्ति मंत्रोचार  करने वाला ब्राह्मण हो सकता है तो दूसरा व्यक्ति रथ बनाने वाला रथकार हो सकता है,तीसरा खेती किसानी करने वाला कृषक हो सकता है , समाज के हर काम पेशे का पुश्तैनी और दुसरो के लिए प्रतिबंधित चरित्र तब कदापि नही था , यह काम तो समाज के आगे के विकास के दौर में हुआ , वर्तमान युग में खासकर ब्रिटिश दासता के काल से चल रहे आधुनिक युग में आधुनिक कामो पेशो के आगमन के साथ हम एक तरह से वैदिक काल की यह पुनरावृत्ति देख सकते है , किसी जाति के एक ही परिवार के सदस्यों को अपने पुश्तैनी पेशे और उससे अलग पेशो में जाता बखूबी देख सकते है ,...
नि: सन्देह यह परिवर्तन वैदिक युग की वापसी का नही है बल्कि मध्य युग का आधुनिक युग में परिवर्तन का है . यह समाज के एक अग्रगामी परिवर्तन का है.इस परिवर्तन की दिशा में लक्षित है . इसे समझना क्त्तई मुश्किल नही है .लेकिन यह काम कब तक होगा इसे कहना एकदम मुश्किल है . इसके किसी समय सीमा की भविष्यवाणी नही की जा सकती
लेकिन जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा को समझकर हम उसके लिए प्रयास जरुर कर सकते है ,इस संदर्भ में हम यह बात भी बखूबी समझ सकते है कि जातीय अन्तरभेदों का और फिर जातीय व्यवस्था के पूर्ण उन्मूलन धन -- सत्ता के वर्तमान मालिको संचालको के रहते हुए कदापि संभव नही है , कयोंकि वे जातीय पहचानो संबंधो को अपने -- अपने सत्ता स्वार्थ में इस्तेमाल करने से हट नही सकते है, इसीलिए जाति व्यवस्था के उन्मूलन का गम्भीर प्रयास जनसाधारण के ही सचेतन व संगठित प्रयासों से संभव है,, किसी दो या कुछ जातियों के जनसाधारण के ही नही बल्कि सभी जातियों के जनसाधारण प्रयासों से ही संभव है , वर्तमान युग में , जातीय व्यवस्था और जातीय पेशो में आ रहे टूटन के साथ जनसाधारण के बढ़ते संकटों के दौर में जाति व्यवस्था के उन्मूलन का सचेत , संगठित प्रयास अनिवार्य एवं अपरिहार्य हो चुका है ,, कयोंकि विभिन्न धर्म , जाति इलाका के जनसाधारण के जीवन के गम्भीर संकट , उसे एक प्लेटफार्म पर आने की अधिकाधिक एकजुट होने की मांग कर रहा है,आपसी अन्तविरोधो को घटाते -- मिटाते हुए उसके उन्मूलन की दिशा में बढना जनसाधारण का ही काम है ,क्या आप इस पुनीत कार्य में समाज में कुछ कर रहे है ?

हमें ‘गुस्‍सा’ क्यों आता है ?


वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में पाये जाने वाले ऐसे ब्रेन रिसेप्‍टर को खोज निकाला है जो गुस्सा के लिये जिम्मेदार है.. यह मस्तिष्क रिसेप्टर एक एंजाइम है जिसका नाम मोनोएमीन आक्सीडेस ए है... इतना ही नहीं इस रिसेप्टर को बंद कर गुस्से से निजात भी दिलाई जा सकती है............
इस एंजाइम के उचित तरीके से कार्य नहीं करने से चूहों में तुरंत गुस्सा आते देखा गया है... ये रिसेप्टर मानव में भी पाए जाते हैं...
इस रिसेप्टर को बंद कर वैज्ञानिकों को चूहों को गुस्से से मुक्त करने में सफलता मिली है, जिससे गुस्सा से निजात पाने का एक नया रास्ता सामने आया है....
विज्ञान पत्रिका न्यूरोसांइस जर्नल के मुताबिक साउथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और इटली के शोधार्थियों की यह खोज उन्मादी व्यवहार तथा अल्जाइमर रोग, ऑटिज्म, बाइपोलर डिसऑर्डर और सिजोफ्रेनिया जैसे कई अन्य मनोवैज्ञानिक वकृतियों के इलाज के लिए औषधि का विकास करने में मदद कर सकती है.....इस बिषय पर खोज अभी जारी है ...

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

!! जिस्म पर तिल !!

किसी शायर ने क्या खूब कहा है- ‘अब मै समझा तेरे रूखसार पर तिल का मतलब.... दौलते हुस्न पर दरबान बिठा रखा है’//// कहने का मतलब यह है कि पुरूषों से ज्यादा महिलाओं के चेहरे पर तिल (काली बिन्दी) उनकी सुंदरता में हमेशा चार चांद लगा देता है। यही वजह है कि इन तिलों ने कवियों, शायरों, लेखकों, गीतकारों और प्रेमियों को हमेशा से ही प्रभावित किया है और वे हमेशा कुछ न कुछ इस निशान को लेकर लिखते रहते हैं।

चेहरा यदि काला हो तो तिल अधिक आकर्षक नहीं लगता, परन्तु गोरे और सावंले चेहरे पर तिल से सौंदर्य बढ़ जाता है और देखने वाला पहली नजर में ही कह उठता है कि यह तिल आपकी खूबसूरती को बढ़ा रहा है। यदि व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभा का धनी हो और उस पर तिल का निशान भी हो, तो फिर क्या कहना! शरीर के विभिन्न अंगों पर तिल के निशान को लेकर अनेक प्रकार की धारणाएं देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती है। बदन पर तिल होने पर यह भी कहा जाता है कि उक्त स्थान पर व्‍यक्ति को पूर्व जन्म में चोट लगी थी। इस तरह की कई बातें तिल के बारे में प्रचलित हैं। आइए नजर डालते हैं, ऐसी कुछ धारणाओं पर।

    * जिनके दायें कंधे पर तिल होता है, वे दृढ संकल्पित होते हैं।
    * यदि तिल पर बाल हो, तो वो शुभ नहीं माना जाता और न ही अच्छा लगता है।
    * तिल यदि बड़ा हो, तो शुभ होने के साथ सगुन बढ़ाता है।
    * तिल गहरे रंग का हो, तो माना जाता है कि बड़ी बाधाएं सामने आएंगी।
    * हल्के रंग का तिल सकारात्मक विशेषता का सूचक माना जाता है।
    * जिस व्‍यक्ति के ललाट पर दायीं तरफ तिल हो, उसे प्रतिभा का धनी माना जाता है और बायीं तरफ होने पर उसे फिजूलखर्च व्यक्ति माना जाता है। जिसके ललाट के मध्य में तिल हो, उस व्‍यक्ति को अच्छा प्रेमी माना जाता है।
    * दायीं गाल पर तिल हो, वैवाहिक जीवन सफल रहता है। बायीं गाल पर तिल संघर्षपूर्ण जीवन का द्योतक है। पर बायीं गाल पर तिल वाली बिधवा महिला का संबध किसी अच्छे पर पुरष से होने पर उसका शेष जीवन बहुत सुखी होता है
   
 * जिस व्‍यक्ति के होंठों पर तिल होता है, उसे विलासी प्रवृत्ति का माना जाता है।
    * ठोड़ी पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति सफल और संतुष्ट है।
    * आंख पर तिल हो, तो माना जाता है कि व्यक्ति कंजूस प्रवृत्ति का है।
    * पलकों पर तिल होना इस बात का द्योतक है कि व्यक्ति संवेदनशील और एकांतप्रिय है।
    * कान पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति धीर, गंभीर और विचारशील है।
    * नाक पर तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा।
    * गर्दन पर तिल वाला वाला व्यक्ति अच्छा दोस्त होता है।
    * कूल्हे पर तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति शारिरिक व मानसिक दोनों स्तर पर परिश्रमी होता है।
    * जिसके मुंह के पास तिल होता है, वह एक न एक दिन धन प्राप्त करता है।
    * जिसके आंख के अंदर तिल हो, वह व्यक्ति कोमल हृदय अर्थात भावुक होता है।
    * दायीं भौं पर तिल वाले व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहता है।
    * टखना पर तिल इस बात का सूचक है कि आदमी खुले विचारों वाला है।
    * जोड़ों पर तिल होना शारिरिक दुर्बलता की निशानी माना जाता है।
    * पांव पर तिल लापरवाही का द्योतक है।
    * नाभि पर तिल मनमौजी प्रवृत्ति का संकेत है।
    * कोहनी पर तिल होना विद्वान होने का संकेत है।
    * कमर पर दायीं ओर तिल होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपनी बात पर अटल रहने वाला और सच्चाई पसंद करने वाला है।
    * जिसके घुटने पर तिल हो, वह व्यक्ति सफल वैवाहिक जीवन जीता है।
    * जिसके बायें कंधे पर तिल होता है, वह व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है।
    * कंधे और कोहनी के मध्य तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति में उत्सुक प्रवृत्ति का है।
    * जिस व्‍यक्ति के कोहनी और पोंहचे के मध्य कहीं तिल होता है, वह रोमांटिक प्रवृत्ति का होता है।


      !! आप और तिल !!

शरीर पर तिल होने का फल

माथे पर---------बलवान हो

ठुड्डी पर--------स्त्री से प्रेम न रहे दोनों बांहों के बीच--यात्रा होती रहे

दाहिनी आंख पर----स्त्री से प्रेम

बायीं आंख पर-----स्त्री से कलह रहे

दाहिनी गाल पर-----धनवान हो

बायीं गाल पर------खर्च बढता जाए

होंठ पर----------विषय-वासना में रत रहे

कान पर----------अल्पायु हो

गर्दन पर----------आराम मिले

दाहिनी भुजा पर-----मान-प्रतिष्ठा मिले

बायीं भुजा पर------झगडालू होना

नाक पर----------यात्रा होती रहे

दाहिनी छाती पर-----स्त्री से प्रेम रहे

बायीं छाती पर------स्त्री से झगडा होना

कमर में-----------आयु परेशानी से गुजरे

दोनों छाती के बीच----जीवन सुखी रहे

पेट पर----------उत्तम भोजन का इच्छुक

पीठ पर---------प्राय: यात्रा में रहा करे

दाहिने हथेली पर------बलवान हो

बायीं हथेली पर------खूब खर्च करे

दाहिने हाथ की पीठ पर--धनवान हो

बाएं हाथ की पीठ पर---कम खर्च करे

दाहिने पैर में---------बुद्धिमान हो

बाएं पैर में----------खर्च अधिक हो
कहने का आशय यह है कि जन्म से हमारे शरीर पर जो निशान बन जाते हैं, उनको लेकर सामाजिक स्तर पर अनेक प्रकार की धारणाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। इनका सत्‍य से कितना करीबी नाता है, यह कहा नहीं जा सकता। फिर भी बहुत सारे लोग इन मान्‍यताओं पर काफी यकीन करते हैं.......

आरक्षण ?

देखिये किस तरह अयोग्य शिक्षको का चयन होता है जातिगत आरक्षण के कारण :

जयपुर. प्रधानाध्यापक भर्ती परीक्षा में मात्र 6 फीसदी अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी सेकंडरी स्कूलों केहैडमास्टर बन गए। जबकि 61 फीसदी अंक प्राप्त करने वाले सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी इससे बाहरहो गए।
अंकों की न्यूनतम सीमा का प्रावधान नहीं होने से इस भर्ती में बेहद खराब प्रदर्शन करनेवाले भी राजपत्रित अधिकारी बन गए हैं। मेरिट में 2072वां स्थान हासिल करने वाली एक अभ्यर्थी 34.07 (6%) अंक हासिल कर हैडमास्टर बनी हैं।इस परीक्षा में करीब 60 फीसदी से ज्यादा तृतीय श्रेणी के शिक्षक हैडमास्टर बने हैं।

...
माध्यमिक शिक्षा में प्रधानाध्यापकों की भर्ती परीक्षा इस साल मई में हुई थी। पिछले दिनों आए परिणाम ने उन अभ्यर्थियों को हतप्रभ कर दिया जो 366 अंक हासिल करके भी मेरिट में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सके। दूसरी तरफ एसटी, विधवा कोटे का कट ऑफ 34.07 अंक रहा और इस सीमा में आने वाले अभ्यर्थी हैडमास्टर बन गए।

'संविधान प्रदत्त आरक्षण का प्रावधानजरूर होना चाहिए, लेकिन शिक्षा जैसे पेशे में एक कट ऑफ लाइन होना भी निहायत जरूरी है। यदि न्यूनतम अंकों की कोई सीमा तय नहींहोगी तो शिक्षा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ती जाएगी। इस तरह की भर्ती परीक्षाओं के लिए श्रेणीवार न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान तय किया जाए। ऐसा होने से एकसीमा के नीचे अंक लाने वाले स्वत: ही बाहर हो जाएंगे।'
-के.एल. कमल, पूर्व कुलपति, राजस्थान विवि

'नियमों में न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान नहीं होने से यह परेशानी पैदा हो रही है। इसीकारण काफी कम अंकों वाले अभ्यर्थी चयनित हो गए।'
-के.के. पाठक, सचिव, राज्य लोक सेवा आयोग

सामान्य ज्ञान में 300 में से 3 अंक :
प्रधानाध्यापक भर्ती में 300-300 अंक के दो पेपर हुए थे। एसटी विडो कोटे में कट ऑफ सीमा पर चयनितहुईं चांद के सामान्य ज्ञान के पहले पेपर में मात्र 3.47 अंक हैं। शिक्षा एवं शिक्षा प्रशासन की जानकारीवाले दूसरे पेपर में 30.6 अंक हैं। उनके कुल अंक 34.07 हैं और ऑवर ऑल मेरिटक्रमांक 2072 है।

जातिगत आरक्षण के कारण और चयन के कोई न्यूनतम मापदण्ड न होने के कारण अयोग्य शिक्षको का चयन हो जाता है इसी वहज से सरकारी शिक्षण व्यवस्था बदहाल है …
प्रत्यक्ष आरक्षण से अपनी सीटे भरने के बाद रोस्टर से भी आरक्षित वर्ग के अयोग्य अभ्यर्थी इतनी सीटो पर चयनित हो जाते है कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी योग्य होते हुये भी चयनित नही हो पाते ,
देखिये किस तरह अयोग्य शिक्षको का चयन होता है जातिगत आरक्षण के कारण
 :

जयपुर. प्रधानाध्यापक भर्ती परीक्षा में मात्र 6 फीसदी अंक हासिल करने वाले
 अभ्यर्थी भी सेकंडरी स्कूलों केहैडमास्टर बन गए। जबकि 61 फीसदी अंक 
प्राप्त करने वाले सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी इससे बाहरहो गए।
अंकों की न्यूनतम सीमा का प्रावधान नहीं होने से इस भर्ती में बेहद खराब 
प्रदर्शन करनेवाले भी राजपत्रित अधिकारी बन गए हैं। मेरिट में 2072वां 
स्थान हासिल करने वाली एक अभ्यर्थी 34.07 (6%) अंक हासिल कर  हैडमास्टर बनी
 हैं।इस परीक्षा में करीब 60 फीसदी से ज्यादा तृतीय श्रेणी के शिक्षक 
हैडमास्टर बने हैं।

माध्यमिक शिक्षा में प्रधानाध्यापकों की भर्ती परीक्षा इस साल मई में हुई 
थी। पिछले दिनों आए परिणाम ने उन अभ्यर्थियों को हतप्रभ कर दिया जो 366 अंक
 हासिल करके भी मेरिट में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सके। दूसरी तरफ 
एसटी, विधवा कोटे का कट ऑफ 34.07 अंक रहा और इस सीमा में आने वाले अभ्यर्थी
 हैडमास्टर बन गए।

'संविधान प्रदत्त आरक्षण का प्रावधानजरूर होना चाहिए, लेकिन शिक्षा जैसे 
पेशे में एक कट ऑफ लाइन होना भी निहायत जरूरी है। यदि न्यूनतम अंकों की कोई
 सीमा तय नहींहोगी तो शिक्षा की गुणवत्ता लगातार बिगड़ती जाएगी। इस तरह की 
भर्ती परीक्षाओं के लिए श्रेणीवार न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान तय किया 
जाए। ऐसा होने से एकसीमा के नीचे अंक लाने वाले स्वत: ही बाहर हो जाएंगे।'
-के.एल. कमल, पूर्व कुलपति, राजस्थान विवि

'नियमों में न्यूनतम अंक सीमा का प्रावधान नहीं होने से यह परेशानी पैदा हो
 रही है। इसीकारण काफी कम अंकों वाले अभ्यर्थी चयनित हो गए।'
-के.के. पाठक, सचिव, राज्य लोक सेवा आयोग

सामान्य ज्ञान में 300 में से 3 अंक :
प्रधानाध्यापक भर्ती में 300-300 अंक के दो पेपर हुए थे। एसटी विडो कोटे 
में कट ऑफ सीमा पर चयनितहुईं चांद के सामान्य ज्ञान के पहले पेपर में मात्र
 3.47 अंक हैं। शिक्षा एवं शिक्षा प्रशासन की जानकारीवाले दूसरे पेपर में 
30.6 अंक हैं। उनके कुल अंक 34.07 हैं और ऑवर ऑल मेरिटक्रमांक 2072 है।

जातिगत आरक्षण के कारण और चयन के कोई न्यूनतम मापदण्ड न होने के कारण 
अयोग्य शिक्षको का चयन हो जाता है इसी वहज से सरकारी शिक्षण व्यवस्था बदहाल
 है …
प्रत्यक्ष आरक्षण से अपनी सीटे भरने के बाद रोस्टर से भी आरक्षित वर्ग के 
अयोग्य अभ्यर्थी इतनी सीटो पर चयनित हो जाते है कि सामान्य वर्ग के 
अभ्यर्थी योग्य होते हुये भी चयनित नही हो पाते ,

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

!! विश्व के शक्तिशाली शख्सियतों की शर्मसार करने वाली हरकतें !!

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फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा।
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बराक ओबामा

कनाडा में प्रोग्रेसिव कंजरवेटिव पार्टी के नेता रॉबर्ट स्टेनफील्ड
वर्ष 1992 में जापान दौरे के दौरान बुश ने जापानी प्रधानमंत्री मियाजावा किची पर उल्टी कर दी थी।
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बराक ओबामा और जॉन मैक्केन
फोन का रिसीवर उल्टा पकड़े हुए जॉर्ज बुश। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि ये तस्वीर असली नहीं है
जॉन कैरी क्या कर रहे है पता नहीं ..आप अंदाजा लागाये ..
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश दूरबीन के ग्लास से कवर हटाए बिना देखने की कोशिश करते हुए....
2
आपने अभी तक राजनेताओं को सम्मेलनों में चर्चा करते और जनरैलियों को संबोधित करते देखा होगा, लेकिन क्या कभी आपने नेताओं का ये रूप देखा है ? शायद नहीं.........

आपके लिए इंटरनेट पर मौज़ूद कुछ ऐसी तस्वीरें प्रस्तुत कर रहा है जो काफी अनोखी और हास्यास्पद हैं.....
    ( 2) हेनरी किसिंगर की यह तस्वीर उस दौरान खींची गई है, जब वो ब्राजील में आयोजित एक व्यापार काफ्रेंस में हिस्सा ले रहे थे। यह तस्वीर एड्रियाना लोरेटे द्वारा खींची गई है और इसे ब्राजील के 'रियो डे जेनेरो' के फ्रंट पेज पर13 नवंबर, 1992 को प्रकाशित किया गया था। कई वर्षों बाद किसिंगर के वकील द्वारा अख़बार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर किया गया था।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

क्या यही प्यार है ?

कहते हैं जोड़ियां ऊपर से ही तय होकर आती हैं, नीचे तो सिर्फ उन्हें जोड़ दिया जाता है। यह कहावत तब बिलकुल सही साबित हुई जब ट्रेन में यात्रा के दौरान दो अजनबी मिले और उनके बीच प्यार हुआ और इस कदर हुआ कि दोनों ने ट्रेन में ही शादी करने का फैसला कर लिया।
यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है जो कल यानि इस सदी के सबसे खास तारीख 12/12/12 को घटी। दिल्ली से लखनऊ जाने वाली पूर्वा एक्सप्रेस की एक बोगी में कई मुसाफिर सवार हुए। इन्ही यात्रियों में थे एक युवक और एक युवती।
(फोटो: ट्रेन में शादी करने वाला जोड़ा)
दोनों जब ट्रेन में चढ़े तो एक-दूसरे से बिलकुल अनजान थे, उनकी मंजिल भी अलग थी लेकिन इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि वो दोनों जब ट्रेन से उतरे तो पति-पत्नी के रिश्ते में बंध चुके थे।

ट्रेन की एक छोटी सी यात्रा जिंदगी के सबसे ख़ास और सुहाने सफ़र में तब्दील हो जायेगी इसका अंदाजा उन दोनों को भी न था। साथी यात्री ने पंडितजी की भूमिका निभाई तो वहीं अन्य ने उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की। 
दिल्ली से दोपहर को चलने वाली पूर्वा एक्सप्रेस के कोच में एक युवती और युवक सफर तय करने के लिए चढ़े थे...दोनों न सिर्फ अजनबी थे बल्कि, उनकी मंजिल भी जुदा थी। अलीगढ पहुंचते-पहुंचते दोनों के बीच का अजनबीपन ख़त्म हो चुका था। जैसा आम तौर होता है, दोनों में पहले हल्की-फुल्की बातचीत शुरू हुई और जल्द ही दोस्ती हो गई। सफ़र के साथ दोस्ती का रास्ता कब प्यार की मंजिल पर पहुँच गया दोनों को पता ही नहीं चला। इस सुहाने सफ़र को दोनों ही भूलना नहीं चाहते थे। सफर में ही तय किया कि अब जीवन पथ पर हमराही बन कर ही चलेंगे। शादी का मन बनाया तो रीति रिवाज आड़े आ गए।दोनों ने अपने मन की बात साथी यात्रियों को बताई। यात्री भी दोनों को ट्रेन में ही फेरे दिलाने को तैयार हो गए। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या इत्तेफाक, लेकिन सच है कि उसी कोच में एक पंडितजी भी मिल गए। सो, रही-सही अड़चन भी दूर हो गई। सबकी सहमती से पंडितजी ने वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ युवती की मांग भरवा दी। टूंडला स्टेशन पहुंचने से पहले दो सहयात्रियों का रिश्ता, जीवन साथी में बदल गया।शादी के बाद आशीर्वाद देने का काम ही बचा रह गया था। साथी यात्रियों ने उस रस्म को भी पूरा किया। सबने उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए आशीर्वाद दिया। जब घटना इतनी दिलचस्प हो तो भला मीडिया तक पहुंचने से इसे कौन रोक सकता था। खबर सुनते ही टूंडला स्‍टेशन पर मीडियाकर्मियों का जमघट लग गया।
   अब आई बवाल की बारी: 
 
घटना की खबर पुलिस तक भी पहुंच गई। एका-एक इन दोनों के बीच पुलिस एक विलेन की तरह प्रकट हुई। टूंडला स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचते ही पुलिस ने दोनों से पूछताछ शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक युवती ने युवक के साथ जाने की जिद की। जबकि युवक ने साफ़ कर दिया कि उसके परिजन लखनऊ में रहते हैं और उन्हें इस रिश्ते से कोई परहेज नहीं होगा। जब मियां-बीवी राजी तो पुलिस भी क्या कर पाती। हालांकि, दोनों ने मीडिया से बात करने से मना कर दिया। किसी तरह के झमेले से बचने के लिए युवती ने तो ये तक कह दिया कि वो पहले से ही शादीशुदा है। इस अनोखी शादी के गवाह बने सहयात्रियों ने ही ट्रेन में हुई शादी की पुष्टि की। लोगों की मानें तो युवक लखनऊ का रहने वाला है जबकि युवती के बारे में कुछ पता नहीं है। कुछ यात्रियों ने बताया कि युवती एक शादी समारोह से वापस लौट रही थी..............http://www.bhaskar.com/article/DEL-love-express-marriage-and-organically-in-moving-train-4110088-NOR.html?seq=1&HF-3=
 श्रोत ---भास्कर डाट काम.