जय समाजवाद .........? अच्छा है समाजवाद .??? मुस्लिम तुष्टीकरण ही असली समाजवाद है ???
उत्तरप्रदेश सरकार को अपने वोट बैंक की अधिक चिंता है और अन्य राजनीतिक पार्टियां
अल्पकालिक फायदों पर ज्यादा नजर रखती हैं. प्रायःहर राजनीतिक दल अपने वोट
के नजरिए से चीजों को तौलता और देखता है ! धार्मिक संवेदनाओं का खुला
इस्तेमाल अपना वोट बैंक बचाने और बनाने के लिए किया जाता रहा है. वह चाहे
कश्मीर का मुद्दा हो . गुजरात के दंगे हो या असम की ताजातरीन
घटना, सब राजनीति के इसी सोच के प्रतिफल हैं.असम में वोटों की खातिर सरकार
ने लाखों घुसपैठियों को न सिर्फ रहने की जगह दी, उन्हें भारत का नागरिक
होने का हक भी प्रदान किया. इसका परिणाम यह हुआ कि असम सांप्रदायिक हिंसा
की भेट चढ़ा जिसमे लाखो लोग बेघर हो गए और न जाने कितने लोगों को अपनी जान
गँवानी पड़ी. असम की आग देखते-देखते पूरे देश में फैल गयी. पूर्वोत्तर
राज्यों के लोगों को जिस तरह उत्तर और दक्षिण भारत के शहरों से भागना पड़ा
है और उसमें देश के सांप्रदायिक तत्वों और पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथियों
द्वारा संचालित वेबसाइटों, फेसबुक और ट्वीटर ने जैसी भूमिका निभाई है, वह
चिंता का विषय है.! धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश में पाकिस्तानी झंडे
लहराने और शहीद स्मारक को तोड़ने और भगवान् बुध्ध के प्रतिमा को तोड़ने वाले लोगों को मनमानी छूट नही मिलनी
चाहिए, सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय पाना और जीवन को दोबारा
पटरी पर लाना बेहद कठिन होता है......
तुष्टीकरण सामान्यतः ऐसी राजनयिक नीति को कहते हैं जो किसी दूसरी शक्ति
या पक्ष को इसलिये छूट दे देता है ताकि युद्ध से बचा जा सके, एक स्वतंत्र,
लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकों का तुष्टीकरण उचित नहीं है,
गांधी जी के अनुसार तुष्टीकरण तो सिर्फ दुश्मनों के बीच होता है, अम्बेडकर
ने तुष्टीकरण को हमेशा राष्ट्र विरोधी बताया था ! तुष्टीकरण की नीति से ऊपर
उठकर ऐसा खुशहाल समाज बनाने की कोशिश की जानी चाहिए जिसमें सबके लिए अवसर,
उम्मीद और आकांक्षाएं हों ,, इसके लिए बहुत ही ईमानदार कोशिशों की जरूरत है....
देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी कांग्रेस पर सपा पर ,बासापा पर ,हमेशा से ही मुस्लिम
तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है,, अतीत की बातें छोड़ दें, हाल के दिनों में
अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण के लिए केन्द्र सरकार ने मजहब के आधार पर आरक्षण
देने की घोषणा की थी, सर्वोच्च न्यायालय में जब इस मुद्दे को चुनौती दी गई
तो सरकार को मुंह की खानी पड़ी, मजहब के आधार पर आरक्षण सम्बंधी
असंवैधानिक निर्णय क्या सांप्रदायिकता को बढ़ावा देनेवाला नहीं हैं ? यह
कैसी धर्मनिरपेक्षता है ? इतना ही नहीं सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के द्वारा तैयार किए गए सांप्रदायिक एवं लक्ष्य
केन्द्रित हिंसा निवारण अधिनियम के मसौदे में ये दलील दी गयी है कि
सांप्रदायिक हंगामें के लिए कथित तौर पर बहुसंख्यक ज़िम्मेदार हैं,ये मान
कर चलना कि बहुसंख्यक समुदाय के लोग ही हिंसा करेंगें या फैलाएंगे, ये गलत
और आपत्तिजनक सोच है ! अजमल कसाब तथा अफजल गुरु जैसे लोगों के साथ नरमी
सरकार के तुष्टीकरण नीति का ही परिचायक है!मुल्सिम वोट बैंक के मद्देनजर
जो काम कांग्रेस करती है वही काम पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा, बिहार में
राजद और अब जदयू, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, तमिलनाडु में द्रमुक
जैसी पार्टियां करती हैं, वोट की राजनीति के कारण ही उग्र हिन्दुत्व का
उभार हुआ है, भाजपा ने कांग्रेस की तुष्टीकरण की कथित नीति के खिलाफ
हिन्दुओं के असंतोष को उभारा है.....धर्म और क्षेत्र के नाम पर मुखर होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही
है, जिससे क्षेत्रों व समुदायों के बीच शांति स्थापित करना और भी ज्यादा
मुश्किल हो गया है, सबको यह समझना चाहिए कि देश में रहने वाले सर्वप्रथम
भारतीय हैं, उसके बाद ही कोई हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख या ईसाई हैं !आम
धारणा है कि मुसलमान सिर्फ अपने धर्म की ही परवाह करते हैं, अपने देश की
नहीं,एक साजिश के तहत मुस्लिम समाज को कट्टरपन, दकियानूसीपन और पृथकतावादी
मानसिकता के रास्ते पर धकेला जा रहा है, वह भ्रष्टाचार, आर्थिक विकास,
राष्ट्रीय एकता, समाज सुधार आदि सब प्रश्नों से मुंह मोड़कर केवल और केवल
मुसलमान के नाते सोचता और निर्णय लेता है ! इस संकुचित और पृथकतावादी
मानसिकता के कारण कई तरह की शंकाएं पैदा होती हैं !आखिर क्या वजह है कि
जमीयाते उलेमा ए हिंद तथा दारूल उलूम देवबंद जैसी संस्थाओं द्वारा ‘वंदे
मातरम’ के खिलाफ फतवा जारी करना पड़ता है, जहां कोई अल्पसंख्यक समुदाय
बहुसंख्यक समुदाय के साथ एकाकार होने से इंकार करता है वहां स्थानीय
सांप्रदायिक संघर्ष उठ खड़े होते हैं,,मुसलमानों की तीव्र अतिसंवेदनशीलता,
छोटे-बड़े मसलों पर उनका आक्रामक और उग्र रवैया उन्हें दूसरों से अलग-थलग
करता है,,जैसे अभी हाल में हुआ है मोहम्द्दा पैगम्बर साहब पर तथाकथित फिल्म !! अल्पसंख्यक समुदाय को असुरक्षा का भाव एक-दूसरे के नजदीक लाता है
और एकजुट समुदाय की तरह चलने के लिए प्रेरित करता है और इसी हाल के वर्षों में
भारत कट्टरपंथी हमले का सबसे आसान निशाना बनकर उभरा है और यही असुरक्षा की भावना का दोहन करते है सेकुलर ! इस्लामी कट्टरपंथी
अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए समुदाय के गुमराह युवकों का इस्तेमाल कर
रहे हैं! ऐसे युवकों को भी इस्लामी कट्टरता में अपना भविष्य नजर आ रहा है,मुसलमान अपनी पहचान बनाये रखने के लिए जितना मुखर होते हैं हिन्दुओं में
उसकी प्रतिक्रिया उतनी ही उग्र होती है और परिणाम के रूप में असम ,गुजरात और UP के दंगे है .........
हमारी राष्ट्रीय चेतना उत्तरोत्तर शिथिल हो रही है और जाति, क्षेत्र, भाषा व सम्प्रदाय की संकीर्ण चेतनाएं प्रबल हो रही हैं, क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता के उभार के कारण लोग अपने ही देश में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं !अलगावादी और कट्टरवादी शक्तियों को सख्ती से नहीं कुचला गया तो वह आधारशिला ही ढह जाएगी जिस पर एक उदार धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील समाज बनाने का सपना देखा गया था! कट्टरवाद किसी भी सूरत में ठीक नहीं है चाहे वह धार्मिक हो या सामाजिक! कट्टरवाद से केवल नुकसान ही होता है.. कट्टरवादी मानसिकता के कारण इंसान ऐसा रास्ता चुन लेता है जिसकी इजाजत न तो मानवता देती है न ही विश्व का कोई धर्म देता है......(इस्लाम में कट्टरवादी संस्कृत है ?)
कट्टरपंथ वहीं संभव होता है जहां लोकतंत्र नहीं होता, किसी भी लोकतांत्रिक देश के विकास के लिए परस्पर सौहार्द का होना नितांत आवश्यक है,,पूरे देश और सभी क्षेत्रों का सामान आर्थिक विकास, भाषा और धर्म के मामले में सच्चे अर्थों में सहिष्णुता तथा जातिवाद को समाप्त करने की सुदृढ़ चेष्टा यदि रही तो भारत सशक्त और संगठित देश के रूप में फिर उठ खड़ा होगा.....अन्यथा .....क्या होगा सोच लीजिये ..कही एक और पकिस्तान और बंगलादेश की माग नहीं उठने लगे ..........क्या करना है आप सोचे .....हम सोचे ..सभी सोचे ......अन्यथा जा कर घर में लम्बी तान कर सो जाइए .....देश जाए चूल्हे ......जले तो जले ......हम तो सतरंज के खेल में माहिर है और यह खेल खेलेगे ..............नमस्कार ..जय हिंद जय भारत ..जय जय श्री राम........
हमारी राष्ट्रीय चेतना उत्तरोत्तर शिथिल हो रही है और जाति, क्षेत्र, भाषा व सम्प्रदाय की संकीर्ण चेतनाएं प्रबल हो रही हैं, क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता के उभार के कारण लोग अपने ही देश में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं !अलगावादी और कट्टरवादी शक्तियों को सख्ती से नहीं कुचला गया तो वह आधारशिला ही ढह जाएगी जिस पर एक उदार धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील समाज बनाने का सपना देखा गया था! कट्टरवाद किसी भी सूरत में ठीक नहीं है चाहे वह धार्मिक हो या सामाजिक! कट्टरवाद से केवल नुकसान ही होता है.. कट्टरवादी मानसिकता के कारण इंसान ऐसा रास्ता चुन लेता है जिसकी इजाजत न तो मानवता देती है न ही विश्व का कोई धर्म देता है......(इस्लाम में कट्टरवादी संस्कृत है ?)
कट्टरपंथ वहीं संभव होता है जहां लोकतंत्र नहीं होता, किसी भी लोकतांत्रिक देश के विकास के लिए परस्पर सौहार्द का होना नितांत आवश्यक है,,पूरे देश और सभी क्षेत्रों का सामान आर्थिक विकास, भाषा और धर्म के मामले में सच्चे अर्थों में सहिष्णुता तथा जातिवाद को समाप्त करने की सुदृढ़ चेष्टा यदि रही तो भारत सशक्त और संगठित देश के रूप में फिर उठ खड़ा होगा.....अन्यथा .....क्या होगा सोच लीजिये ..कही एक और पकिस्तान और बंगलादेश की माग नहीं उठने लगे ..........क्या करना है आप सोचे .....हम सोचे ..सभी सोचे ......अन्यथा जा कर घर में लम्बी तान कर सो जाइए .....देश जाए चूल्हे ......जले तो जले ......हम तो सतरंज के खेल में माहिर है और यह खेल खेलेगे ..............नमस्कार ..जय हिंद जय भारत ..जय जय श्री राम........