ऎसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो । इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए । उसको मारना उस पर दया करना है । जन्नत ( जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है ) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है । इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है । कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३ |
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मुसलमान सैय्यद , शेख , मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं । जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था । नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८० |
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इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं । जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती । श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता , जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं । अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी , राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थें , एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दसरा और कोई नहीं । इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ , दुराग्रह , ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया , न कि इसको बढ़ाने के लिए । सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है ।। सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१ |
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हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता । हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए । इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं ।किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए । हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें । हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है । । ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६ |
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मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था । मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं । मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है । मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए । मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं , क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी । जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है । वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं । हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो । संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार । |
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हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है । यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं । साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा । विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी । पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है । मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है । कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है , इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है । मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है । इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता । संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया । कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है । गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है । इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं । धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते । मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती । वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते । प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१ |
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पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता , उनकी हत्या , लूट दंगे, आगजनी , बलात्कार , आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है , ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा । पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है । पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है । दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनउ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं । ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके । अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं । सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हें । यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगें । बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७ |
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ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं । उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है । वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते । वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं । सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं । ; - रवीन्द्र नाथ वाडमय २४ वां खण्ड पृच्च्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर |
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मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है । गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग |
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मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है । मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर हिन्दुस्तान पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते । क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है ? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी ? मुझे डर है कि हिन्दुस्तान के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान , मध्य एशिया अरब , मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें । पत्र सी आर दास बी एस ए वाडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५ |
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छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली । मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे । मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे , उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया । - डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८ |
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मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं । और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है । इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए , उनका वध किया , लूटा व उन्हें गुलाम बनाया । वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७ |
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मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं । हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे । मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं , हमारी मातृभूमि के लिए नहीं । यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का का । स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा । - कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५ |
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अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत , अलगाववाद , पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है । मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है । गैर मुसलमानों आर्य खालसा हिन्दुओं की बढ़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया । लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया । उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया । उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया । क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम ? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है । - भारतीय महापुरूषों की दृष्टि में इस्लाम पृष्ठ ३५-३६ |
इस ब्लॉग में मेरा उद्देश्य है की हम एक आम नागरिक की समश्या.सभी के सामने रखे ओ चाहे चारित्रिक हो या देश से संबधित हो !आज हम कई धर्मो में कई जातियों में बटे है और इंसानियत कराह रही है, क्या हम धर्र्म और जाति से ऊपर उठकर सोच सकते इस देश के लिए इस भारतीय समाज के लिए ? सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वें भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत।। !! दुर्भावना रहित सत्य का प्रचार :लेख के तथ्य संदर्भित पुस्तकों और कई वेब साइटों पर आधारित हैं!! Contact No..7089898907
शुक्रवार, 29 मार्च 2013
!! इस्लाम व कुरान पर भारत के महापुरुषों द्वारा दिए गए क्रातिकारी विचार!!
गुरुवार, 28 मार्च 2013
!! केजरीवाल जी का जनता से मोह भंग हुआ क्यों ?
अन्ना से अलग होना, राजनीतिक पार्टी बनाना |
सेकुल्रिज़िम की तरफ झुकाव |
लोकपाल' का दामन छोड़ना
|
जो उम्मीद दूसरों से, उस पर खुद खरे नहीं |
सबका विरोध? |
नीतियों में खामियां, साफगोई की कमी |
!! जो उम्मीद दूसरों से, उस पर खुद खरे नहीं !!
अरविंद केजरीवाल जी के कुछ सहयोगियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। लेकिन
केजरीवाल जी ने उनके खिलाफ एक आंतरिक जांच आयोग गठित कर कुछ दिनों बाद उन्हें
क्लीनचिट दे दी। जब यही काम दूसरी राजनीतिक पार्टियां करती हैं तो केजरीवाल जी
उन्हें भ्रष्ट बताते हैं। लेकिन जब यही आरोप उनके साथियों पर लगे तो
उन्होंने वही किया जो आम तौर पर अन्य पार्टियां भी करती हैं। लोकपाल आंदोलन
की वजह से केजरीवाल जी से जनता की उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं। ऐसे में उनसे
बेहतर बर्ताव की उम्मीद लोगों को रही होगी। लेकिन जब वे उसी रास्ते पर चलते
दिखे, जिस पर अन्य पार्टियां चल रही हैं तो उनकी लोकप्रियता को धक्का लगा।
आरोपों की जांच तक केजरीवाल जी अपने साथ खड़े उन साथियों को दूर कर सकते थे,
जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
!! नीतियों में खामियां, साफगोई की कमी !!
केजरीवाल जी की राय कई मुद्दों पर उलझी हुई है। कई अहम मुद्दों पर निर्णय
लेने के लिए वे जनमत की वकालत करते हैं। लेकिन केजरीवाल जी इस बात को क्यों
नहीं समझते हैं कि भारत जैसे 1.21 अरब आबादी वाले देश में यह आसान काम नहीं
है। वह भी तब जब आबादी का एक बड़ा हिस्सा पढ़ा-लिखा नहीं है। इसके अलावा
आर्थिक मुद्दों पर उनकी जानकारी बहुत भरोसा नहीं जगा पाती है। मशहूर लेखक
चेतन भगत जी के मुताबिक, 'केजरीवाल को नई वैश्वीकृत विश्व अर्थव्यवस्था की
ज्यादा समझ नहीं है। उनकी विचारधारा विकास विरोधी वामपंथी विचारों के
ज्यादा करीब लगती है, जहां पर तमाम विदेशियों, बड़ी-बड़ी कंपनियों और अमीर
लोगों को बुरा और भ्रष्ट समझा जाता है, जबकि छोटे कारोबार तथा गरीब लोग
अच्छे माने जाते हैं। यह सोच भाषणों में तालियां बटोरने के लिहाज से तो खूब
कारगर हो सकती है, लेकिन राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा नहीं। भले
ही भारत आज भ्रष्टाचार मुक्त देश हो जाए, लेकिन तब भी हम एक अमीर देश नहीं
होंगे। सुनियंत्रित पूंजीवाद, खुली अर्थव्यवस्थाओं और मुक्त बाजारों ने
दुनियाभर में धन-संपत्ति निर्मित की है। हमें इन्हें मंजूर करना चाहिए,
ताकि भारत में भी ऐसा हो।' दिल्ली में बिजली-पानी के बिल का विरोध करते हुए
वे कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति बिजली का बिल न चुकाए। क्या ऐसी अपील से
निरंकुशता नहीं बढ़ेगी? क्या ऐसे मुद्दों पर कोर्ट के दरवाजे बंद हैं ?
!! अन्ना से अलग होना, राजनीतिक पार्टी बनाना !!
अन्ना हजारे से अलग होकर सामाजिक आंदोलनों की राह छोड़कर नई राजनीतिक
पार्टी बनाने के अरविंद केजरीवाल जी के फैसले की भी आलोचना हुई है। कई लोगों
का कहना है कि राजनीति से बाहर रहकर ही नेताओं और पार्टियों पर नैतिक दबाव
बनाया जा सकता है। उनके मुताबिक जब तक अन्ना और अरविंद साथ-साथ थे और उनका
आंदोलन सामाजिक था तब तक लोग उनके साथ थे। लेकिन जैसे ही अरविंद ने आप
पार्टी बनाई, वैसे ही कई लोगों की नजरों में उनकी नैतिक शक्ति खत्म हो गई
और वे भी उसी जमात में शामिल हो गए, जिनकी वे आलोचना कर रहे थे। इसके अलावा
पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ चुके पूर्व सैनिक अन्ना हजारे से अलग होने का
भी खामियाजा अरविंद को भुगतना पड़ रहा है।
!! लोकपाल' का दामन छोड़ना !!
कई लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल जी को लोकपाल कानून के लिए
आंदोलन को राजनीतिक या गैर राजनीतिक तरीके से चलाते रहना चाहिए था। लेकिन
आप पार्टी बनाने के बाद अरविंद ने कहा कि जब तक अच्छे लोग (जैसे उनकी
पार्टी के संभावित उम्मीदवार) संसद या विधानसभाओं में नहीं पहुंचेंगे तब तक
लोकपाल जैसे अन्य अच्छे कानून नहीं बनेंगे। अरविंद जी के इस बयान से कई लोगों
के बीच यह संदेश गया कि मौजूदा हालात में लोकपाल नहीं बन सकता और उन्हें
भ्रष्टाचार से मुक्ति जल्द नहीं मिल सकती। यह लोकपाल आंदोलन ही है, जिसकी
वजह से लोग अन्ना और अरविंद जी से जुड़े थे। लेकिन अरविंद के इस रुख से लोग
निराश हो गए और मीडिया ने भी अरविंद को ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया।
यार ये तो गलत है ..साथी भूखो मर रहा है 6 दिन से और है की होली के रंग गुलाल में मस्त ...! |
मंगलवार, 26 मार्च 2013
!!बुरा ना मानो होली है !!
कास ऐसा देश के सभी कोनो में हो जाए .हिन्दू मनाये ईद और मुस्लिम मनाये होली । |
।।आप सभी को होली की बहुत बहुत शुभ कामनाये ।।
होली के मौके पर वासंती फिज़ाओं में चारों ओर एक नारा डूबने-उतराते लगता है- ‘होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है’। शहर भर के हुड़दंगीलाल हुरियारे दूसरे तमाम होली-भीरू नर-नारियों को खुली चेतावनी सी देते घूमते हैं कि- सुन लो भैया होली है, और भारतीय संस्कृति ने हमें जन्मसिद्ध अधिकार दिया हुआ है, हम तुम्हारे मुँह पर पान की पीक थूक सकते हैं, मूत्र त्याग कर सकते हैं, कालिख, कीचड़-गंदगी का मोटा पलस्तर चढ़ा सकते हैं, तुम्हारे कपड़े फाड़कर दिगम्बर अवस्था में बदबू और संडांध भरे गटर के मेनहोल में तुम्हें डुबकी लगवा सकते हैं, देसी ठर्रे की अख्खी बोतल चढ़ाकर तुम्हारी माँ-बहन एक कर सकते हैं, तुम
साले क़तई बुरा नहीं मानना। जो तुमने बुरा मानने की जुर्रत की तो फिर किसी
अच्छे अस्थि विशेषज्ञ का नाम-पता और फीस की पूछताछ भी लगे हाथों कर रखना, होली की पारम्परिक ‘छूट’ का फायदा उठाकर हम तुम्हारे हाँथ-पाँव तोड़ने की क्रिया भी अंजाम दे सकते हैं।
खान्दानी
आशिक मिज़ाज हुरियारों को होली का विशेष इंतज़ार रहता है। उनकी पवित्र इच्छा
रहा करती है कि उन्हें भँग की तरंग में दूसरों की बीवियों, बहन-बेटियों
के तन पर रगड़-रगड़कर रंग-गुलाल लगाने की विशेष छूट दी जाए और इस कृत्य को
देखकर कोई भी इज्ज़तदार इंसान क़तई बुरा न माने। कुछ टपोरी किस्म के
अत्योत्साही बंदे साल भर होली का इंतजार ही इसलिए करते हैं कि ‘बुरा न मानो होली है’ की
सार्वजनिक अपील की आड़ में अपने प्रिय सामाजिक शत्रुओं की जम कर लू उतारने
का मौका मिले। किसी पर भयंकर कोटि के शाब्दिक भाले-बर्छियों की बौछार करने, किसी की छीछालेदर करने, या
किसी की इज्ज़त का पंचनामा बनाने का इससे अच्छा मौका और कौन सा हो सकता है।
बीच चैराहे पर किसी की भी पगड़ी हवा में उछाल दो और धीरे से यह नारा छोड़ कर
चलते बनों -होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।
अर्सा पहले शर्म लिहाज के युग में, भारतीयों के किसी भी छोटी-छोटी बात पर बुरा मानकर चुल्लू भर पानी में डूब मरन के लिए दौड़ पड़ने का बड़ा जबरदस्त भय हुआ करता था, इसलिये ‘चोर’ को मुँह पर ‘चोर’ शब्द
फेंककर मारने की बजाए लोग सब्र से साल भर होली की प्रतीक्षा करते थे और
चोर को अच्छी तरह से आगाह करने के बाद कि भई बुरा न मानना, होली है, उसे ‘चोर’ कह
लिया करते थे। इतने में ही अगला शर्म के मारे पानी-पानी हो जाता था और
आत्महत्या करने पर उतारू हो पड़ता था। मगर आजकल जमाना बदल गया है। प्रोफेशनल
बेशर्मो से भरी इस दुनिया में सचमुच बुरा मानने वालों का जबरदस्त टोटा है, आरोपों
की भारी से भारी चार्जशीट पाकर भी कोई बुरा मानने का नाम नहीं लेता। वक्त
के तकाज़े का हवाला देकर किसी को बुरा मानने का मात्र अभिनय भर करने के लिए
कहा जाए तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। बिजली के खंभों पर लाउड स्पीकर के
चैंगे लगाकर भी यदि आप ऐलानिया तौर पर चोर को ‘चोर’ सम्बोधित कर चिल्लाएंगे तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। ‘होली’ का खास मौका हो या रोज़मर्रा का कोई साधारण दिन, डाकू को डाकू कहिये, ठग को ठग कहिये, जालसाज़-घोटालेबाज़ को जालसाज़-घोटालेबाज़ कहिये, कातिल को कातिल, बलात्कारी को बलात्कारी कह दीजिए, वह बुरा मानने से रहा। बोल-बोल आपका मुँह दुख जाएगा, आप मानसिक रूप से थक कर चूर हो जाएंगे मगर फिर भी वह दाँत निपोरता आपके सामने खड़ा मुस्कुराता रहेगा। इतना ही नहीं, वह पूरी शिद्दत से अपनी और भी दो-चार महान खूबियाँ का बखान आपके सामने करके फिर आपसे कहेगा, हाँ अब मेरी बुराई करो, मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
तो दोस्तों देर किस बात की है मनाओ होली निकालो मन की भड़ास ।पर रंग में भंग नहीं पड़ जाए इस बात का ध्यान रखे।
!! गलती से आपकी कोई फ़ाइल डीलिट हो गई तो इस तरह से पुनः प्राप्त करे !!
सभी मित्रो को मेरा प्यार भरा
नमस्कार।
होली के शुभ अवसर पर मेरी ओर से सभी मित्रो ओर पाठको को एक प्यार भरा तोहफा ।
ऐसा अक्सर होता है कि कंप्यूटर पर काम करते हुए आपसे भूलवश कोई फाइल डिलीट हो जाती है। डिलीट हुई फाइल आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में आपका चिंतित होना स्वाभाविक है, लेकिन बाजार में कुछ सॉफ्टवेयर ऐसे हैं जिनसे आपकी परेशानी दूर हो सकती है।आज आपको एक फ्री सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी दे रहा हूँ,मात्र 1.46 Mb के फ्री सॉफ्टवेयर से आप अपनी डिलीट हुई फाइल दोबारा पा सकते हैं,इसका डाउनलोड लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ।
सिस्टम या ई-मेल से डिलीट हुई फाइल को रिकवर करने के लिए सबसे अच्छा सॉफ्टवेयर 'रिकूवा' माना जाता है। रिकूवा की मदद से कंप्यूटर या ई-मेल से डिलीट हुई फाइलें फिर से मिल जाती हैं। यह सॉफ्टवेयर माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज 7, XP, विस्टा, विंडोज 2003 और विंडोज 2000 सभी ऑपरेटिंग सिस्टम पर सपोर्ट करता है।
कैसे करें फाइल रिकवर ..?
सिस्टम से डिलीट हुई फाइल को रिकवर करने के लिए रिकूवा सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने के बाद सिस्टम पर एक विजार्ड विंडो खुलकर आएगा। इस विंडो में कई तरह की फाइलों के बारे में पूछा जाएगा। आप जिस तरह की फाइल रिकवर करना चाहते हैं उस फाइल को सलेक्ट करके नेक्सट (अगले) ऑप्शन पर क्लिक करें। दूसरे ऑप्शन में संबंधित इंट्री को चेक करने के बाद रिकवर बटन पर क्लिक करके डिलीट हुई फाइल फिर से मिल जाएगी।
यदि आपकी फाइल ज्यादा महत्वपूर्ण है तो इस सॉफ्टवेयर में आपसे डीप स्कैन ऑप्शन के बारे में पूछा जाएगा। डीप स्कैन साधारण स्कैन के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से डिलीट फाइलों को खोज सकेगा। रिकूवा से डिलीट हुई ई-मेल जिप फाइल के फारमेट में वापस आती हैं।
फ्री रिकूवा सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें
http://recuva.en.softonic.com/download
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सिस्टम से डिलीट हुई फाइल को रिकवर करने के लिए रिकूवा सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने के बाद सिस्टम पर एक विजार्ड विंडो खुलकर आएगा। इस विंडो में कई तरह की फाइलों के बारे में पूछा जाएगा। आप जिस तरह की फाइल रिकवर करना चाहते हैं उस फाइल को सलेक्ट करके नेक्सट (अगले) ऑप्शन पर क्लिक करें। दूसरे ऑप्शन में संबंधित इंट्री को चेक करने के बाद रिकवर बटन पर क्लिक करके डिलीट हुई फाइल फिर से मिल जाएगी।
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गुरुवार, 21 मार्च 2013
!! मुग़ल शाशक भी होली खेलते थे !!
रंगों का त्यौहार होली पूरी दुनिया में अपने अनोखे अंदाज के लिए जाना
जाता है।कहते हैं कि इस दिन रंगों में रंग ही नहीं मिलते बल्कि दिल भी आपस
में मिल जाते हैं। फिल्म शोले के एक सुप्रसिद्ध गाने के बोल भी इसी ओर
इशारा करते हैं।हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह में होली का
त्यौहार मनाया जाता है, इस माह की पूर्णिमा को पूरी दुनिया में होली
पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
मान्यता के अनुसार होली पूर्णिमा के दिन हिरणकश्यपू नाम के राक्षस ने
अपने पुत्र प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग लगा दी थी लेकिन इस आग
में होलिका जलकर भस्म हो गई और भगवान विष्णु का भक्त होने के कारण प्रहलाद
का बाल भी बांका नहीं हुआ जबकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त
था। तभी से होली पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा चल निकली। होलिका दहन
की इस परंपरा और कथा के बारे में सभी जानते हैं।
होली खेलने की परंपरा कोई आधुनिक परंपरा नहीं है इसका उल्लेख हमारे
धार्मिक ग्रंथों नारद पुराण, भविष्य पुराण में मिलता है।कुछ प्रसिद्ध
पुस्तकोंजैसे जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र में भी
होली पर्व के बारे में वर्णनं किया गया है।
इतिहास पर अगर प्रकाश डालें तो मुग़ल काल में होली की परंपरा के सटीक
उदाहरण मिलते हैं।इतिहास में इस बात का वर्णन मिलता है कि अकबर अपनी पत्नी
जोधाबाई के साथ होली खेला करते थे।अकबर के समय होली के दिन मेलों का आयोजन
किया जाता था जिसकी सभी तैयारियां खुद अकबर की निगरानी में पूरी होती थीं।
अब बात करते हैं जहांगीर के समय की, जहांगीर अपनी बेगम नूरजहां के साथ होली
का त्यौहार मनाया करते थे। अलवर के ऐतिहासिक संग्रहालय में एक प्राचीन
चित्र लगा हुआ है जिसमें जहांगीर को नूरजहां के साथ होली खेलते दिखाया गया
है।इतना ही नहीं जहांगीर ने होली की परंपरा का उल्लेख अपनी पुस्तक तुज्क-ए
-जहांगीरी में भी किया है।
शाहजहां का समय आते-आते होली खेलने का मुगलिया अंदाज बिलकुल बदल गया।
इतिहास पर गौर किया जाए तो मिलता है कि शाहजहां के समय होली को ईद-ए
-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) के नाम से जाना जाता था।इस अवसर पर
मिलन समारोहों का आयोजन किया जाता था जिसमें विभिन्न रियासतों के
राजे-महाराजे हिस्सा लिया करते थे, इन मिलन समारोहों का मुख्य उद्देश्य
आपसी दुश्मनी को भुलाकर भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना हुआ करता था।
मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफ़र के समय में भी होली का विशेष
महत्त्व हुआ करता था, इतिहास इस ओर इंगित करता है कि होली के अवसर पर
बहादुर शाह जफ़र के मंत्री रंग लगाने जाया करते थे।यही कारण था कीसन 1857 की क्रांति में पुरे हिन्दुस्तान के हिन्दू बादशाह बहादुर शाह जफ़र के झंडे के नीचे क्रांति किया ।
पर दुःख का विषय यह है की आज ज्यादातर मुस्लिम भाई हिन्दुओ के त्यौहार में सरीक नहीं होती है और यही हाल हिन्दुओ का भी है (अपवाद की बात नहीं कर रहा हु ) जहा तक मेरी ब्यक्तिगत राय है की हम सभी धर्मो के लोगो को आपस ने सभी त्यौहार मिल जुल कर मानना और मनाना चाहिए । पर यहाँ एक बहुत बड़ा अंतर है साकाहार और मांसाहार का जो हमें इन त्योहारों पर साथ खडा नहीं होने देता है । फिर भी रंगों का त्यौहार होली में इस तरह का कोई भी अड़चन नहीं होना चाहिए । आखिर हम भी तो ईद में मीठी सेवैया खाते है मुस्लिमो के घर में फिर मुस्लिम भाई होली का रंग से दूर क्यों ?
शुक्रवार, 15 मार्च 2013
!! 'वेदांत ??
वेदांत' शब्द संस्कृत के दो
शब्दों से मिलकर बना है -'वेद' और 'अंत।' हमारे वेद चार हैं -ऋग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन चारों वेदों के चार-चार भाग हैं। आखिरी
भाग 'उपनिषद' हैं। उपनिषद ही 'वेदांत' हैं। वेदों के अंत में होने से वे
वेदांत कहलाए। वेदांत भावनाओं को महत्व नहीं देता। जैसे गणित तर्क पर
आधारित है, वह हमारी कल्पना अथवा मन की भावना से नहीं चलता, उसी प्रकार
वेदांत भी नियमों पर आधारित है। वेदांत के नियमों का पालन जीवन को सुखी
बनाने के लिए जरूरी है। इन नियमों का उद्देश्य है अपने मन का विश्लेषण।
वेदांत का प्रमुख नियम है, 'जितना हम आध्यात्मिक स्तर पर ऊपर उठेंगे उतनी हमारी संसार पर निर्भरता कम होगी।' जो व्यक्ति संसार पर जितना अधिक निर्भर है, वह उतना ही कम आध्यात्मिक है। कोई व्यक्ति कितना आध्यात्मिक है, यह हम कैसे माप सकते हैं? हम देखते हैं कि शरीर का तापमान, ब्लडप्रेशर, हीमोग्लोबिन, शुगर आदि नापने के लिए सैकड़ों उपकरण हैं। पर किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति कितनी है, इसको मापने के लिए कोई उपकरण नहीं है।
जो व्यक्ति पूजा करता है, माला जपता है, तिलक लगाकर सुबह-शाम मंदिर जाता है, क्या हम उसे आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कह सकते हैं? अथवा जो व्यक्ति वस्त्र त्याग चुका है, दाढ़ी बढ़ा रखी है, क्या उसे हम आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कह सकते हैं? वेदांत ने इसे जानने का एक थर्मामीटर इस नियम के रूप में दिया है। हमारी संसार पर निर्भरता जितनी अधिक होगी, हम अध्यात्म से उतने ही दूर होंगे। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से अस्सी प्रतिशत उन्नत है, उसकी संसार पर निर्भरता बीस प्रतिशत होगी। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से बीस प्रतिशत उन्नत है, तो उसकी संसार में प्रवृत्ति अस्सी प्रतिशत होगी। आध्यात्मिक विकास का प्रतिशत जितना बढ़ता जाएगा, सांसारिक निर्भरता उतनी कम होती जाएगी।
जो व्यक्ति सांसारिक अथवा इंद्रिय विषयों पर जितना अधिक निर्भर है वह उतना कम आध्यात्मिक है। इंद्रिय विषय जितने हमारे वश में होते जाते हैं, उतनी हम आध्यात्मिक उन्नति करते जाते हैं। यदि दवाई अधिक मात्रा में ली जाए तो वह विष बन जाती है, ऐसे ही विषयों का अधिक सेवन किया जाए तो वे विष बन जाते हैं। आज हम इस बात से दुखी नहीं हैं कि तालिबान ने पाकिस्तान पर आक्रमण कर दिया अथवा ईरान -इराक में लड़ाई हो रही है, हम इस बात से दुखी हैं कि वह व्यक्ति मुझे नमस्ते करके नहीं गया। अथवा उसने मेरी प्रशंसा नहीं की, मुझे सम्मान नहीं दिया। छोटी-छोटी बातों को लेकर आज हम दुखी होते हैं। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत है, वह इन छोटी-छोटी बातों से दुखी नहीं होता। वह इन सबके मोह से परे हो जाता है।
ईशावास्योपनिषद में कहा है, जो संसार से मोह रखते हैं वे अंधकार में हैं, पर जो अध्यात्म में मोह रखते हैं वे गहन अंधकार में हैं। अध्यात्म पर निर्भरता भी एक बंधन है, इस बंधन से भी जो व्यक्ति मुक्त हो जाता है वह वास्तविक रूप से आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है।
इस संसार का ज्ञान नियमों पर आधारित है। गणित, रसायन शास्त्र, भौतिक विज्ञान, समाज शास्त्र नियमों पर आधारित हैं। हमारा शरीर भी नियमों पर आधारित है। पूरा संसार नियमों पर चलता है। ये नियम दो प्रकार के हैं -कुछ परिवर्तनीय हैं जो समय के साथ-साथ बदलते रहते हैं। कुछ अपरिवर्तनीय हैं जिन पर देश, काल, परिस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन अपरिवर्तनीय नियमों को ही 'सनातन धर्म' कहा जाता है। 'सनातन' से अभिप्राय है 'जो अनादि काल से चला आ रहा है।' और 'धर्म' से अभिप्राय है 'नियम।' इस सनातन धर्म का ही दूसरा नाम 'वेदांत' है।
वेदांत का प्रमुख नियम है, 'जितना हम आध्यात्मिक स्तर पर ऊपर उठेंगे उतनी हमारी संसार पर निर्भरता कम होगी।' जो व्यक्ति संसार पर जितना अधिक निर्भर है, वह उतना ही कम आध्यात्मिक है। कोई व्यक्ति कितना आध्यात्मिक है, यह हम कैसे माप सकते हैं? हम देखते हैं कि शरीर का तापमान, ब्लडप्रेशर, हीमोग्लोबिन, शुगर आदि नापने के लिए सैकड़ों उपकरण हैं। पर किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति कितनी है, इसको मापने के लिए कोई उपकरण नहीं है।
जो व्यक्ति पूजा करता है, माला जपता है, तिलक लगाकर सुबह-शाम मंदिर जाता है, क्या हम उसे आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कह सकते हैं? अथवा जो व्यक्ति वस्त्र त्याग चुका है, दाढ़ी बढ़ा रखी है, क्या उसे हम आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कह सकते हैं? वेदांत ने इसे जानने का एक थर्मामीटर इस नियम के रूप में दिया है। हमारी संसार पर निर्भरता जितनी अधिक होगी, हम अध्यात्म से उतने ही दूर होंगे। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से अस्सी प्रतिशत उन्नत है, उसकी संसार पर निर्भरता बीस प्रतिशत होगी। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से बीस प्रतिशत उन्नत है, तो उसकी संसार में प्रवृत्ति अस्सी प्रतिशत होगी। आध्यात्मिक विकास का प्रतिशत जितना बढ़ता जाएगा, सांसारिक निर्भरता उतनी कम होती जाएगी।
जो व्यक्ति सांसारिक अथवा इंद्रिय विषयों पर जितना अधिक निर्भर है वह उतना कम आध्यात्मिक है। इंद्रिय विषय जितने हमारे वश में होते जाते हैं, उतनी हम आध्यात्मिक उन्नति करते जाते हैं। यदि दवाई अधिक मात्रा में ली जाए तो वह विष बन जाती है, ऐसे ही विषयों का अधिक सेवन किया जाए तो वे विष बन जाते हैं। आज हम इस बात से दुखी नहीं हैं कि तालिबान ने पाकिस्तान पर आक्रमण कर दिया अथवा ईरान -इराक में लड़ाई हो रही है, हम इस बात से दुखी हैं कि वह व्यक्ति मुझे नमस्ते करके नहीं गया। अथवा उसने मेरी प्रशंसा नहीं की, मुझे सम्मान नहीं दिया। छोटी-छोटी बातों को लेकर आज हम दुखी होते हैं। जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत है, वह इन छोटी-छोटी बातों से दुखी नहीं होता। वह इन सबके मोह से परे हो जाता है।
ईशावास्योपनिषद में कहा है, जो संसार से मोह रखते हैं वे अंधकार में हैं, पर जो अध्यात्म में मोह रखते हैं वे गहन अंधकार में हैं। अध्यात्म पर निर्भरता भी एक बंधन है, इस बंधन से भी जो व्यक्ति मुक्त हो जाता है वह वास्तविक रूप से आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है।
इस संसार का ज्ञान नियमों पर आधारित है। गणित, रसायन शास्त्र, भौतिक विज्ञान, समाज शास्त्र नियमों पर आधारित हैं। हमारा शरीर भी नियमों पर आधारित है। पूरा संसार नियमों पर चलता है। ये नियम दो प्रकार के हैं -कुछ परिवर्तनीय हैं जो समय के साथ-साथ बदलते रहते हैं। कुछ अपरिवर्तनीय हैं जिन पर देश, काल, परिस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन अपरिवर्तनीय नियमों को ही 'सनातन धर्म' कहा जाता है। 'सनातन' से अभिप्राय है 'जो अनादि काल से चला आ रहा है।' और 'धर्म' से अभिप्राय है 'नियम।' इस सनातन धर्म का ही दूसरा नाम 'वेदांत' है।
गुरुवार, 14 मार्च 2013
!! बलात्कार पर आधा कानून या अँधा कानून ?
मंत्रियों के समूह ने बलात्कार विरोधी कानून का मसौदा तैयार कर दिया है
और गुरुवार को इसे कैबिनेट में रखा जा रहा है लेकिन बलात्कार के खिलाफ सख्त
कानून के नाम पर जिस तरह से आपसी सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 से 16
किया गया है उस पर सवाल खड़े हो गए हैं. इसके अलावा जिस तरह के आरोपों को
गैर जमानती बनाया गया है उससे भी मुश्किल खड़ी हो सकती है !
मतलब अब सरकार ने संबंध बनाने के लिए विवाह योग्य उम्र की वर्जना तोड़ने
की तैयारी कर ली है. 16 साल में शादी नहीं कर सकते लेकिन संबंध बना
सकेंगे. शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 साल है. शादी छोड़ दीजिए 16 साल में
एडल्ट श्रेणी की फिल्म तक नहीं देख सकते लेकिन संबंध बना सकते हैं, 16 साल
में शराब नहीं पी सकते लेकिन शारीरिक संबंध बना सकते हैं.!
अब देखिए है किस ज़ुर्म पर कितनी सजा है मंत्री समूह से पास किए गए एंटी रेप कानून में. रेप पर उम्र कैद, तेज़ाब फेंकने पर उम्र कैद, नाबालिग से दुष्कर्म पर उम्र कैद, लेकिन जो हाहाकारी है वो ये कि इस कानून में ज़्यादातर गुनाहों को ग़ैर जमानती बना दिया गया है.
मतलब कोई पुरुष ट्रैफिक जाम में फंस गया हो और इत्तेफाक से उसकी कार किसी महिला की कार के पीछे हो तो महिला उसपर पीछा करने का आरोप लगा सकती है और उसकी जमानत नहीं होगी !
इसी तरह आप किसी महिला को पहचानने की कोशिश कर रहे हों और महिला को ये पसंद न आए तो वो उसे 100 नंबर डायल करके अंदर करा सकती है. अगर कोई पुरुष काम करते हुए किसी महिला की तरफ बीच-बीच में देख लेता है तो वो गैर जमानती अपराध का भागीदार है और पुलिस के लिए महिला का बयान आख़िरी होगा. हद ये है कि अगर महिला झूठी निकली तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी.!
है ना मजेदार कानून ?
कैबिनेट से पास होने के बाद एंटी रेप कानून सर्वदलीय बैठक में रखा जाएगा और वहां से सहमति / असहमति के बाद संसद में लेकिन सवाल है कि इस कानून में बचाव की नीयत ज़्यादा है या भय की भूमिका.?
अब देखिए है किस ज़ुर्म पर कितनी सजा है मंत्री समूह से पास किए गए एंटी रेप कानून में. रेप पर उम्र कैद, तेज़ाब फेंकने पर उम्र कैद, नाबालिग से दुष्कर्म पर उम्र कैद, लेकिन जो हाहाकारी है वो ये कि इस कानून में ज़्यादातर गुनाहों को ग़ैर जमानती बना दिया गया है.
मतलब कोई पुरुष ट्रैफिक जाम में फंस गया हो और इत्तेफाक से उसकी कार किसी महिला की कार के पीछे हो तो महिला उसपर पीछा करने का आरोप लगा सकती है और उसकी जमानत नहीं होगी !
इसी तरह आप किसी महिला को पहचानने की कोशिश कर रहे हों और महिला को ये पसंद न आए तो वो उसे 100 नंबर डायल करके अंदर करा सकती है. अगर कोई पुरुष काम करते हुए किसी महिला की तरफ बीच-बीच में देख लेता है तो वो गैर जमानती अपराध का भागीदार है और पुलिस के लिए महिला का बयान आख़िरी होगा. हद ये है कि अगर महिला झूठी निकली तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी.!
है ना मजेदार कानून ?
कैबिनेट से पास होने के बाद एंटी रेप कानून सर्वदलीय बैठक में रखा जाएगा और वहां से सहमति / असहमति के बाद संसद में लेकिन सवाल है कि इस कानून में बचाव की नीयत ज़्यादा है या भय की भूमिका.?
!!क्या महाभारत का युद्ध और इस्लामिक जिहाद समान हो सकते हैं ?
ये जाकिर नाइक अपनी एक वेव साईट "ISLAMIC RESEARCH FOUNDATION " में महाभारत और इस्लामिक युद्ध (जिहाद) की समांतर तुलना कर के ये बता रहा हैं की जिस तरह महाभारत एक धर्म युद्ध था उसी तरह मुहम्मद साहब द्वारा चलाया गया इस्लामिक युद्ध ( जिहाद) भी एक धर्म युद्ध है ?
जिस तरह महाभारत का युद्ध अधर्मियों के खिलाफ लड़ा गया था
उसी तरह इस्लामिक जिहाद को भी अधर्मियों के खिलाफ युद्ध सिद्ध करके जायज कहा है ?
पर क्या महाभारत का युद्ध और इस्लामिक जिहाद समान हो सकते हैं ?
क्या जिहाद धर्म युद्ध हो सकता है ?
महाभारत का युद्ध लगभग ५००० वर्ष पहले लड़ा गया
इस्लामिक जिहाद १४०० साल पहले ..
महाभारत के युद्ध में नियम और सभ्यता थी
इस्लामिक जिहाद में कोई नियम नहीं केवल बर्बरता थी ....
आइये देखते हैं...
जिस तरह महाभारत का युद्ध अधर्मियों के खिलाफ लड़ा गया था
उसी तरह इस्लामिक जिहाद को भी अधर्मियों के खिलाफ युद्ध सिद्ध करके जायज कहा है ?
पर क्या महाभारत का युद्ध और इस्लामिक जिहाद समान हो सकते हैं ?
क्या जिहाद धर्म युद्ध हो सकता है ?
महाभारत का युद्ध लगभग ५००० वर्ष पहले लड़ा गया
इस्लामिक जिहाद १४०० साल पहले ..
महाभारत के युद्ध में नियम और सभ्यता थी
इस्लामिक जिहाद में कोई नियम नहीं केवल बर्बरता थी ....
आइये देखते हैं...
१-शत्रु
महाभारत - कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवो और पांडवो के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया , युद्ध केवल कौरवो - पांड्वो और उनकी सेनाओ के बीच लड़ा गया , इसमें बाहरी लोगो को कोई हानि नहीं पहुचाई गयी|
=====
इस्लामिक जिहाद - युद्ध इस्लाम के अनुयायियों और संसार के गैर मुस्लिम(काफ़िर ) के बीच में लड़ा गया , यानी दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम बनाने के लिए |
..........
देखें: सुरा २ कि आयत १९३ ............"उनके विरूद्ध जब तक लड़ते रहो, जब तकमूर्ती पूजा समाप्त न हो जाए और अल्लाह का मजहब(इस्लाम) सब पर हावी न होजाए. "
२-युद्ध भूमि
महाभारत - युद्ध केवल कुरुक्षेत्र में लड़ा गया ,युद्ध भूमि के बाहर युद्ध निषेद था | युद्ध भूमि के बाहर घरो को नुकसान पहुचना निषेद था |
==
जिहाद - इसमें ऐसा कोई भी नियम नहीं था , गैर मुस्लिम को जहां भी दिखे उसे तुरंत मारने का आदेश था ... वो सब करने की छूटथी जिससे गैर मुस्लिम को अधिक-से -अधिक हानि हो |
देखें: सुरा ९ आयत ५ में लिखा है,......." फिर जब पवित्र महीने बीत जायें तोमुशरिकों (मूर्ती पूजक) को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें पकड़ो व घेरो और हरघाट की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तोबा करले ,नमाज कायम करे,और जकातदे तो उनका रास्ता छोड़ दो। निसंदेह अल्लाह बड़ा छमाशील और दया करने वाला है।"
http://quran.com/9/5
महाभारत - कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवो और पांडवो के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया , युद्ध केवल कौरवो - पांड्वो और उनकी सेनाओ के बीच लड़ा गया , इसमें बाहरी लोगो को कोई हानि नहीं पहुचाई गयी|
=====
इस्लामिक जिहाद - युद्ध इस्लाम के अनुयायियों और संसार के गैर मुस्लिम(काफ़िर ) के बीच में लड़ा गया , यानी दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम बनाने के लिए |
..........
देखें: सुरा २ कि आयत १९३ ............"उनके विरूद्ध जब तक लड़ते रहो, जब तकमूर्ती पूजा समाप्त न हो जाए और अल्लाह का मजहब(इस्लाम) सब पर हावी न होजाए. "
२-युद्ध भूमि
महाभारत - युद्ध केवल कुरुक्षेत्र में लड़ा गया ,युद्ध भूमि के बाहर युद्ध निषेद था | युद्ध भूमि के बाहर घरो को नुकसान पहुचना निषेद था |
==
जिहाद - इसमें ऐसा कोई भी नियम नहीं था , गैर मुस्लिम को जहां भी दिखे उसे तुरंत मारने का आदेश था ... वो सब करने की छूटथी जिससे गैर मुस्लिम को अधिक-से -अधिक हानि हो |
देखें: सुरा ९ आयत ५ में लिखा है,......." फिर जब पवित्र महीने बीत जायें तोमुशरिकों (मूर्ती पूजक) को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और उन्हें पकड़ो व घेरो और हरघाट की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तोबा करले ,नमाज कायम करे,और जकातदे तो उनका रास्ता छोड़ दो। निसंदेह अल्लाह बड़ा छमाशील और दया करने वाला है।"
http://quran.com/9/5
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महाभारत - चुकी युद्ध केवल युद्ध क्षेत्र तक ही सिमित था इसलिए शत्रु पक्ष के घरो को हाथ लगाना या हानि पहुचना निषेध था ....लूटने की तो बात सोचना ही पाप था|
===
जिहाद - ऐसा कोई भी निषेध यहाँ नहीं था , शत्रु पक्ष के घरो को लूटना जायज़ था |
देखें:- सूरा न. ८:४१ जो भी युद्ध में हासिल हो उसका ५ वाँ हिस्सा अल्लाह , रसूल को अता करे |
अल्बुखारी की हदीस जिल्द १ सफा १९९ में मोहम्मद कहता है ,."लूट मेरे लिएहलाल कर दी गई है ,मुझसे पहले पेगम्बरों के लिए यह हलाल नही थी।
http://islam-watch.org/
http://www.islamicity.com/
४-युद्ध बंदियों को गुलाम बनाना
महाभारत -युद्ध में जितने वाले पक्ष को हारने वाले पक्ष की स्त्रियों , बच्चो , रिश्तेदारों आदि को नुकसान पहुचना निषेध था , युद्ध पुरे मानवता को ध्यान में रख कर लड़ा गया ...किसी आम नागरिक को हानि नहीं पहुचाई गय��� |
===
जिहाद - युद्ध में हारे गए शत्रु (काफिरों) के बच्चो, औरतो ,रिश्तेदारों को गुलाम बनाओ .युद्ध में हारे हुए पक्ष को गुलाम बनाने का प्रवधान , इसलिए गुलाम बने लोगो की बच्चे और औरते मुस्लिमो की वैध सम्पति थी, शरिया कानून के तहत उनका भोग करो |
देखें- सूरा ८, आयत ६९..........."उन अच्छी चीजो का जिन्हें तुमने युद्ध करके प्राप्तकिया है,पूरा भोग करो। "
सूरा ४ ,आयत २४.............."विवाहित औरतों के साथ विवाह हराम है , परन्तुयुद्ध में माले-गनीमत के रूप में प्राप्त की गई औरतें तो तुम्हारी गुलाम है ,उनके साथसम्बन्ध बनाना जायज है।
अरब शरियत में " मा मलाकात अय्मनुकुम " के अनुसार मालिक अपनी युद्ध में गुलाम बनायीं गयी स्त्री के साथ जबरन सम्भोग करने का अधिकार था |
http://en.wikipedia.org/
युद्ध का समय
महभारत - सूर्य उदय के समय दोनों पक्ष के सैनिक युद्ध भूमि में जमा हो जाते और शंख बजने के साथ युद्ध शुरू होता , सूर्य अस्त के समय शंख बजते ही युद्ध समाप्त हो जाता , रात में युद्ध निषेध था |
====
इस्लामिक युद्ध - कोई नियम नहीं जहां भी काफ़िर दिखे उसे तुरंत ख़त्म करने का आदेश था , यदि शत्रु सोता हुआ हो तब भी उस पर आक्रमण करते थे |
मार्च ६२४ को मुहम्मद ने अपने ३०० साथियों के साथ रात में बदर में मक्का के व्यपारियों पर आक्रमण किया |
देखें:
Battle of Badr - Wikipedia, the free encyclopedia
en.wikipedia.org/wiki/
युद्ध का कारण
महभारत -युद्ध केवल राज्य को लेके लड़ा गया था ..किसी धर्म को फ़ैलाने के लिए नहीं , जैसे ही राज्य पुन: जीत लिया गया युद्ध समाप्त कर दिया गया | युद्ध जीतने के बाद भी पांडवो को आत्मग्लानी हुयी और उन्होंने राज्य त्याग कर हिमालय पर प्रस्थान कर दिया |
===
इस्लामिक युद्ध -युद्ध इस्लाम को फ़ैलाने और उसकी प्रभुत्व कायम करने के लिए लड़ा गया , ...केवल विश्व को दारुल इस्लाम बनाने का उदेश्य
सुरा ४ की आयत ५६ ..........."जिन लोगो ने हमारी आयतों से इंकार किया उन्हेंहम अग्नि में झोंक देगे। जब उनकी खाले पक जाएँगी ,तो हम उन्हें दूसरी खालों सेबदल देंगे ताकि वे यातना का रसा-स्वादन कर लें। निसंदेह अल्लाह ने प्रभुत्वशालीतत्व दर्शाया है।"
महाभारत के युध में किसी पक्ष ने दूसरे पक्ष के धर्म स्थलो को नुकसान नही पहुचाया पर
इस्लामिक युध में दूसरे धर्म के पूजा स्थलो को तोड़ दिया गया ....
काबा इसका उधारण है जहाँ तोड़ी गयी मूर्तिया अब हैं |
क्या अब भी महाभारत के युद्ध और इस्लामिक युद्ध (जिहाद ) में कोई समानता है ?
इसका मतलब अब इस्लाम और मुसलमानों का अहंकार अपने चरम सीमा तक पहुँच गया है,
ये महामूर्ख जाकिर नाइक उन अहंकार से भरे अंधे युवकों को और ज्यादा अज्ञान के गर्त में धकेलने का काम कर रहा है अब इनके समूल खात्मे को भगवान भी रोक नहीं सकते,
ये अपने सबसे बड़े आत्मघाती मंजिल तक बस पहुँचने ही वाले हैं,
..........................