मैं कभी रिक्शा खींचता था, पर अब 70 लाख टैक्स देता हूँ---: धरमवीर काम्बोज ।
पेशे से किसान, 51 वर्षीय धरमवीर काम्बोज कुछ वर्षों पहले तक दिल्ली की गलियों में साइकिल रिक्शा चलाते थे. ग़रीबी इतनी थी कि न पैडल पर से पांव हटे, न गांव जाने का मौक़ा मिला. फिर एक हादसा हुआ, घर लौटना पड़ा । मुश्किल दिन थे. धरमवीर बताते हैं, “ग़रीबी सोने नहीं देती थी. काम के लिए इधर-उधर घूमता रहता था. फिर कहीं देखा कि लोग आंवले के जूस, मिठाइयों के लिए पैसे देने को तैयार हैं. हमने बाग़वानी विभाग से मदद मांगी. हमें 25 हज़ार रुपए की सब्सिडी भी मिली. साल 2007 में हमने आंवले की खेती शुरू की, उसका रस निकालते थे और पैकेटों में भरकर बेचते थे. इसकी मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी, नए ग्राहक मिलने लगे. हरिद्वार में कुछ बड़े व्यापारी भी मिले.”
“कई बार आंवला कसने में हाथ छिल जाते थे, तो मैंने और मेरी पत्नी ने एक ऐसी मशीन बनाई, जिसमें आंवला, एलोवेरा, दूसरी सब्ज़ियों और जड़ी-बूटियों के सत्व निकाले जा सकते थे और वो भी बिना बीज तोड़े.”
इस मशीन को बनाने में कई मित्रों ने धरमवीर काम्बोज की मदद की और कुछ ने मुंह पर न भी कह दिया. बहरहाल काफ़ी मेहनत के बाद मशीन ने एक शक्ल अख्तियार कर ली.।
इस मशीन की चर्चा सुनकर नेशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन के लोग भी काम्बोज के गांव पहुंचे और उन्हें सम्मानित करने के लिए दिल्ली बुलाया, जहां राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया.
(हरियाणा के एक किसान ने अपनी कहानी से सैकड़ों लोगों को एक बार फिर सपने देखने को मजबूर किया है )
नोट---: BBC हिंदी से साभार