आज अपने मन की एक गुप्त सच्चाई लिखता हूँ !
मैं सुरु से ही मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था ! हालांकि की बड़े बुजर्गो की नक़ल करके बचपन से ही अपने गाँव के शिव मंदिर में शिव जी को जल अवश्य अर्पित करता था पर सिर्फ दिखावे के लिए ! बड़े बुजुर्गो के कहने पर रोज हनुमान चालीसा का पाठ करता था बचपन से सिर्फ अंदर के भय से लड़ने के लिए ! पर मुझे मूर्ति पूजा पर विश्वास हुआ सन नवम्बर 1995 से !
दरअसल 1995 की शीतकालीन नवरात्रि के समय पत्नी जी गर्भवती थी ! नवरात्री में माँ चामुंडा के दर्शन करने की जिद किया, क्योकि उस समय पर लगभग आठ माह से अधिक का गर्भ था, मैं ऊंची पहाड़ी पर इन्हे नहीं ले जाना चाहता था पर इनकी जिद के आगे झुक गया और बहुत ही मुश्किल से माता जी के दरबार में पहुंचा ! रस्ते में जो भी पत्नी जी को ऐसी हालत में देखता वही मुझे शिकायत भरी नजरो से देखता ! एक माता जी ने तो मुझे बहुत डाटा पत्नी को इस स्थित में मंदिर लाने के लिए
माता जी के दरबार के सामने सच्चे मन ही मन एक पुत्र की याचना किया क्योकि एक लड़की पहले से ही थी ! और परिक्रमा मार्ग में पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े से एक घर बनाया और माता जी से याचना किया की मेरा पुत्र अपने ही घर में बकोईयां करे (घुटनो के बल रेंगे) ! (उस समय मैं किराए के मकान में रहता था) ! बड़ी मुश्किल से कई जगह बैठ बैठ कर पत्नी जी को पाहडी से नीचे लाया !
समय बीता और 20 नवम्बर 1995 को मेरे यहाँ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ! और माता जी पर विश्वास बढ़ गया ! मेरे ही गाँव के एक कालोनाइजर टी. पी. तिवारी जी और सरस्वती ज्ञान पीठ स्कूल के संचालक प्रेमनाथ तिवारी जी बालक को देखने आये और किराए के मकान में मुझे देखकर मकान बनाने की पेशकस किया तो मैं आर्थिक तंगी का हवाला देकर मना कर दिया ! तो ओ LIC हाउसिंग फाइनेस से लोन करवा कर मकान बनाने की बात किया तो मैं सहर्ष तैयार हो गया !
मेरे जैसे कम वेतन वालों को LIC लोन नहीं देती थी पर माता जी का कमाल देखिये 9 दिसंबर 1995 को मेरा लोन सेंसन हो गया और 12 जून 1996 को मैं अपने निजी मकान में रहने चला गया !
बस उस दिन के बाद मुझे मूर्ति पूजा में पूर्ण विश्वास हो गया ! माँ चामुंडा- माँ तुलजा भवानी की जय !
मैं सुरु से ही मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था ! हालांकि की बड़े बुजर्गो की नक़ल करके बचपन से ही अपने गाँव के शिव मंदिर में शिव जी को जल अवश्य अर्पित करता था पर सिर्फ दिखावे के लिए ! बड़े बुजुर्गो के कहने पर रोज हनुमान चालीसा का पाठ करता था बचपन से सिर्फ अंदर के भय से लड़ने के लिए ! पर मुझे मूर्ति पूजा पर विश्वास हुआ सन नवम्बर 1995 से !
दरअसल 1995 की शीतकालीन नवरात्रि के समय पत्नी जी गर्भवती थी ! नवरात्री में माँ चामुंडा के दर्शन करने की जिद किया, क्योकि उस समय पर लगभग आठ माह से अधिक का गर्भ था, मैं ऊंची पहाड़ी पर इन्हे नहीं ले जाना चाहता था पर इनकी जिद के आगे झुक गया और बहुत ही मुश्किल से माता जी के दरबार में पहुंचा ! रस्ते में जो भी पत्नी जी को ऐसी हालत में देखता वही मुझे शिकायत भरी नजरो से देखता ! एक माता जी ने तो मुझे बहुत डाटा पत्नी को इस स्थित में मंदिर लाने के लिए
माता जी के दरबार के सामने सच्चे मन ही मन एक पुत्र की याचना किया क्योकि एक लड़की पहले से ही थी ! और परिक्रमा मार्ग में पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े से एक घर बनाया और माता जी से याचना किया की मेरा पुत्र अपने ही घर में बकोईयां करे (घुटनो के बल रेंगे) ! (उस समय मैं किराए के मकान में रहता था) ! बड़ी मुश्किल से कई जगह बैठ बैठ कर पत्नी जी को पाहडी से नीचे लाया !
समय बीता और 20 नवम्बर 1995 को मेरे यहाँ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ! और माता जी पर विश्वास बढ़ गया ! मेरे ही गाँव के एक कालोनाइजर टी. पी. तिवारी जी और सरस्वती ज्ञान पीठ स्कूल के संचालक प्रेमनाथ तिवारी जी बालक को देखने आये और किराए के मकान में मुझे देखकर मकान बनाने की पेशकस किया तो मैं आर्थिक तंगी का हवाला देकर मना कर दिया ! तो ओ LIC हाउसिंग फाइनेस से लोन करवा कर मकान बनाने की बात किया तो मैं सहर्ष तैयार हो गया !
मेरे जैसे कम वेतन वालों को LIC लोन नहीं देती थी पर माता जी का कमाल देखिये 9 दिसंबर 1995 को मेरा लोन सेंसन हो गया और 12 जून 1996 को मैं अपने निजी मकान में रहने चला गया !
बस उस दिन के बाद मुझे मूर्ति पूजा में पूर्ण विश्वास हो गया ! माँ चामुंडा- माँ तुलजा भवानी की जय !