कभी क़ासिम तो कभी गजनी तो कभी गोरी से,कभी तैमूर से भिड़ा ठाकुर (राजपूत) ।
हार तो तय थी...फिर भी लड़ा ठाकुर ।
हारना ही था उसे , फिर भी वो अकेला लड़ा था ठाकुर ।
क्या ये जन्मभूमि हम सभी की नहीं थी ?
फिर क्यों अकेला लड़ा ठाकुर ?
भार्या सती हुई ,बच्चे हुए अनाथ । हिन्दू तो बचा पर , भरी जवानी में मरा ठाकुर ।
सदियों से रक्त दे माटी को सींचा,जन,जन्मभूमि और धर्म की वेदी पर बार बार मिटा ठाकुर ।
मौत होती तो भी लड़ लेता, पर...अपनों की घृणा से ..अब सहमा ठाकुर ।
जिनके लिए सब कुछ खोया , क्यों उनकी ही नज़रों में बुरा हुआ ठाकुर ?
फ़िल्मों का ठाकुर ।
कहानियों-क़िस्सों का ठाकुर ।
कविताओं का ठाकुर ।
जब दुबक बैठे थे घरों में सब तमाशबीन,तब पीढियां दर पीढियां युद्धभूमि में बलिदान कर रहा था ठाकुर ।
आज बुद्धिजीवी पानी पी पीकर बरगलाते और कोसते
कि ....
आखिर कौन है ये ठाकुर..?
कौन बताए उन्हें कि "केशरिया बाना लेकरके,मूंछों पर तांव देकर मौत को गले लगाने वाला जांबाज ही था ठाकुर ।।
ठाकुर का दुर्भाग्य ?
😥😥😥
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