दोहे पर चर्चा हो रही है तो फिर हर उस दोहे की चर्चा हो जो स्त्री विरोध में लिखे-कहे गए हैं। आप तुलसीदास पर चर्चा करते हैं फिर कबीर की क्यों नहीं करते? क्या कभी कबीर ने स्त्री विरोध में कुछ नहीं कहा है? यदि तुलसीदास स्त्री विरोधी हैं तो फिर कबीर स्त्री विरोधी कैसे नहीं हैं? पांच सौ साल पुराने किसी दोहे को लेकर उसे आधुनिक युग में बहस का मुद्दा बनाते हैं तो फिर कबीर कैसे अछूते रह जाते हैं?
‘नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग
कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग’
नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है, फिर सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है?
'कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।'
नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जायेंगे।
'कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ
तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।'
यदि आपकी इच्छाएं मर चुकी हैं और आपकी विषय भोग की इन्द्रियां भी आपके हाथ में हैं, तो भी आप धन और नारी की चाहत न करें।
'कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद
इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूं मैं बंद।'
कलियुग में जो धन और स्त्री के मोह में नहीं फंसा है, भगवान उसके हृदय से बंधे हुये हैं
क्योंकि ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे हैं।
'कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार
हरि सनेही उबरै, विषयी खाये झार।'
स्त्री काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु हरि का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।
'कामिनि सुन्दर सर्पिनी, जो छेरै तिहि खाये
जो हरि चरनन राखिया, तिनके निकट ना जाये।'
नारी एक सुन्दर सर्पिणी की भांति है। उसे जो छेड़ता है उसे वह खा जाती है। पर जो हरि के चरणों मे रमा है उसके नजदीक भी वह नहीं जाती है।
नारी कहुँ की नाहरी, नख सिख से येह खाये
जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।
इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पूंछ तक खा जाती है। पानी में डूबने वाला बच सकता है पर विषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।
छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल
बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।
स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है।
दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है।