कास ऐसा देश के सभी कोनो में हो जाए .हिन्दू मनाये ईद और मुस्लिम मनाये होली । |
होली के मौके पर वासंती फिज़ाओं में चारों ओर एक नारा डूबने-उतराते लगता है- ‘होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है’। शहर भर के हुड़दंगीलाल हुरियारे दूसरे तमाम होली-भीरू नर-नारियों को खुली चेतावनी सी देते घूमते हैं कि- सुन लो भैया होली है, और भारतीय संस्कृति ने हमें जन्मसिद्ध अधिकार दिया हुआ है, हम तुम्हारे मुँह पर पान की पीक थूक सकते हैं, मूत्र त्याग कर सकते हैं, कालिख, कीचड़-गंदगी का मोटा पलस्तर चढ़ा सकते हैं, तुम्हारे कपड़े फाड़कर दिगम्बर अवस्था में बदबू और संडांध भरे गटर के मेनहोल में तुम्हें डुबकी लगवा सकते हैं, देसी ठर्रे की अख्खी बोतल चढ़ाकर तुम्हारी माँ-बहन एक कर सकते हैं, तुम
साले क़तई बुरा नहीं मानना। जो तुमने बुरा मानने की जुर्रत की तो फिर किसी
अच्छे अस्थि विशेषज्ञ का नाम-पता और फीस की पूछताछ भी लगे हाथों कर रखना, होली की पारम्परिक ‘छूट’ का फायदा उठाकर हम तुम्हारे हाँथ-पाँव तोड़ने की क्रिया भी अंजाम दे सकते हैं।
खान्दानी
आशिक मिज़ाज हुरियारों को होली का विशेष इंतज़ार रहता है। उनकी पवित्र इच्छा
रहा करती है कि उन्हें भँग की तरंग में दूसरों की बीवियों, बहन-बेटियों
के तन पर रगड़-रगड़कर रंग-गुलाल लगाने की विशेष छूट दी जाए और इस कृत्य को
देखकर कोई भी इज्ज़तदार इंसान क़तई बुरा न माने। कुछ टपोरी किस्म के
अत्योत्साही बंदे साल भर होली का इंतजार ही इसलिए करते हैं कि ‘बुरा न मानो होली है’ की
सार्वजनिक अपील की आड़ में अपने प्रिय सामाजिक शत्रुओं की जम कर लू उतारने
का मौका मिले। किसी पर भयंकर कोटि के शाब्दिक भाले-बर्छियों की बौछार करने, किसी की छीछालेदर करने, या
किसी की इज्ज़त का पंचनामा बनाने का इससे अच्छा मौका और कौन सा हो सकता है।
बीच चैराहे पर किसी की भी पगड़ी हवा में उछाल दो और धीरे से यह नारा छोड़ कर
चलते बनों -होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है।
अर्सा पहले शर्म लिहाज के युग में, भारतीयों के किसी भी छोटी-छोटी बात पर बुरा मानकर चुल्लू भर पानी में डूब मरन के लिए दौड़ पड़ने का बड़ा जबरदस्त भय हुआ करता था, इसलिये ‘चोर’ को मुँह पर ‘चोर’ शब्द
फेंककर मारने की बजाए लोग सब्र से साल भर होली की प्रतीक्षा करते थे और
चोर को अच्छी तरह से आगाह करने के बाद कि भई बुरा न मानना, होली है, उसे ‘चोर’ कह
लिया करते थे। इतने में ही अगला शर्म के मारे पानी-पानी हो जाता था और
आत्महत्या करने पर उतारू हो पड़ता था। मगर आजकल जमाना बदल गया है। प्रोफेशनल
बेशर्मो से भरी इस दुनिया में सचमुच बुरा मानने वालों का जबरदस्त टोटा है, आरोपों
की भारी से भारी चार्जशीट पाकर भी कोई बुरा मानने का नाम नहीं लेता। वक्त
के तकाज़े का हवाला देकर किसी को बुरा मानने का मात्र अभिनय भर करने के लिए
कहा जाए तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। बिजली के खंभों पर लाउड स्पीकर के
चैंगे लगाकर भी यदि आप ऐलानिया तौर पर चोर को ‘चोर’ सम्बोधित कर चिल्लाएंगे तब भी वह बुरा नहीं मानेगा। ‘होली’ का खास मौका हो या रोज़मर्रा का कोई साधारण दिन, डाकू को डाकू कहिये, ठग को ठग कहिये, जालसाज़-घोटालेबाज़ को जालसाज़-घोटालेबाज़ कहिये, कातिल को कातिल, बलात्कारी को बलात्कारी कह दीजिए, वह बुरा मानने से रहा। बोल-बोल आपका मुँह दुख जाएगा, आप मानसिक रूप से थक कर चूर हो जाएंगे मगर फिर भी वह दाँत निपोरता आपके सामने खड़ा मुस्कुराता रहेगा। इतना ही नहीं, वह पूरी शिद्दत से अपनी और भी दो-चार महान खूबियाँ का बखान आपके सामने करके फिर आपसे कहेगा, हाँ अब मेरी बुराई करो, मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
तो दोस्तों देर किस बात की है मनाओ होली निकालो मन की भड़ास ।पर रंग में भंग नहीं पड़ जाए इस बात का ध्यान रखे।