कल सुकमा
में जो हुआ, उसका सभी ऐसे भारत वासियों को गहरा दुःख होगा , जो ऐसी घटनाओं
को सीधे सीधे देखते हैं और सोचते हैं कि हमारे अपने ही देश में ऐसे कौन
लोग हैं जो देश की सुरक्षा (चाहे आंतरिक हो या बाह्य) लिये अपनी जान हथेली
पर लेकर चलने वाले नौजवानों को बेरहमी से और कायराना तरीके से हमेशा के
लिये सुला देते हैं ?
इसका जबाव बहुत ईमानदारी से ढूंढ़ना है तो ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि में जाना होगा ।
बस्तर में चल रहा नक्सली आंदोलन अपनी आखिरी सांसें ले रहा है । जाहिर है कि जब नक्सली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तो उसमें वे सबसे घातक भी होंगे । ये जो सशस्त्र संघर्ष है, ये तो उस हिंसक विचारधारा का एक विद्रूप चेहरा मात्र है जो दिल्ली में JNU से लेकर बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय तक देश में नयी आकार लेती राष्ट्रवादी विचारधारा से अपने को अत्यंत आतंकित और भयभीत महसूस कर रही है । क्यों केजरीवाल और ममता बैनर्जी मोदी से अपने आप को इतना आतंकित महसूस करते हैं ? क्यों ये दोनों मुख्यमंत्री नीति आयोग की 2022 के भारत के लिये आयोजित vision पर चर्चा के लिये उपस्थित नहीं होते ? कौन परदे के पीछे से इन नक्सलियों को हवा दे रहा है, संचालित कर रहा है ? कौन अपनी राजनीति ख़त्म होने के डर से कश्मीर से लेकर केरल तक और गुजरात से लेकर मणिपुर तक राष्ट्रविरोधी ताकतों को भड़का रहा है ? ये सारे मोर्चे एक साथ यूपी में हुयी विराट जीत के बाद और उग्रता से क्यों खुल रहे हैं ? इन सब यक्ष प्रश्नों का उत्तर बहुत चतुराई और साहस के साथ ढूँढना भी होगा और परदे के पीछे की ताक़तों को बेनक़ाब भी करना होगा । यही मोदी सरकार की सबसे कड़ी अग्नि परीक्षा भी है । अगर आपने इस देश से भ्रष्टाचार और राष्ट्र विरोधी ताक़तों को ख़त्म करने का संकल्प लिया है तो इसे दृढ़ता और कठोरता के साथ समाप्त करने के उपाय भी करने होंगे और कदम भी उठाने होंगे ।
सुकमा के संदर्भ में ही एक छोटी सी जानकारी बहुत प्रासंगिक है । छत्तीसगढ़ में IG स्तर के एक आईपीएस अधिकारी हैं, शिवराम प्रसाद कल्लूरी, जिन्हें नक्सलियों के विरुद्ध लड़ाई में राज्य का सबसे सफल और असरदार अधिकारी माना जाता है । उन्होंने राज्य के उत्तरी इलाके (सरगुजा), जो कि झारखण्ड से लगता है, से नक्सलियों का जड़ से सफाया कर दिया । उन्हें इस मामले में कुछ हद तक छत्तीसगढ़ का केपीएस गिल भी कहा जा सकता है । अभी कुछ महीने पहले तक वे बस्तर के IG थे और उन्होंने सुकमा जिले को 2018 के पहले नक्सलमुक्त करने की घोषणा तक की थी । उनके कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों का तेजी से सफाया हुआ और सुकमा से उनके पैर उखड़ गये थे । लेकिन लगभग 2 महीने पहले नक्सलियों के दिल्ली में बैठे आकाओं ने उनको मानवाधिकार उल्लंघन मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फंसा दिया और छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर उनको हटा दिया । न केवल हटाया बल्कि लंबी छुट्टी पर भी भेज दिया ।
उनके बस्तर के IG पद से हटने के बाद 2 महीनों में ये दूसरा बड़ा हमला है । मार्च में CRPF के 11 जवान शहीद हुए और अब 26 जवान । नक्सली फिर सुकमा में अपनी मज़बूती दर्ज़ करा रहे हैं । यही उनकी लड़ाई का तरीका है ।
अब ये समझा जा सकता है कि क्या नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई ऐसे लड़ी जा सकती है ?
कहने का अर्थ ये है कि जो दिखता है, वो अधूरा सच है और उसे पूर्णता में देखने के लिये हमेशा बड़ी पिक्चर को देखना चाहिये । तभी पूरा सच सामने आता है ।
शहीद वीर जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि और ऐसे नेताओं को ईश्वर जल्दी उठायें जो देश की रक्षा में शहीद होने वालों की जान की कीमत पर अपनी राजनीति चमकाने का सपना सँजोये हुए हैं ।
इसका जबाव बहुत ईमानदारी से ढूंढ़ना है तो ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि में जाना होगा ।
बस्तर में चल रहा नक्सली आंदोलन अपनी आखिरी सांसें ले रहा है । जाहिर है कि जब नक्सली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तो उसमें वे सबसे घातक भी होंगे । ये जो सशस्त्र संघर्ष है, ये तो उस हिंसक विचारधारा का एक विद्रूप चेहरा मात्र है जो दिल्ली में JNU से लेकर बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय तक देश में नयी आकार लेती राष्ट्रवादी विचारधारा से अपने को अत्यंत आतंकित और भयभीत महसूस कर रही है । क्यों केजरीवाल और ममता बैनर्जी मोदी से अपने आप को इतना आतंकित महसूस करते हैं ? क्यों ये दोनों मुख्यमंत्री नीति आयोग की 2022 के भारत के लिये आयोजित vision पर चर्चा के लिये उपस्थित नहीं होते ? कौन परदे के पीछे से इन नक्सलियों को हवा दे रहा है, संचालित कर रहा है ? कौन अपनी राजनीति ख़त्म होने के डर से कश्मीर से लेकर केरल तक और गुजरात से लेकर मणिपुर तक राष्ट्रविरोधी ताकतों को भड़का रहा है ? ये सारे मोर्चे एक साथ यूपी में हुयी विराट जीत के बाद और उग्रता से क्यों खुल रहे हैं ? इन सब यक्ष प्रश्नों का उत्तर बहुत चतुराई और साहस के साथ ढूँढना भी होगा और परदे के पीछे की ताक़तों को बेनक़ाब भी करना होगा । यही मोदी सरकार की सबसे कड़ी अग्नि परीक्षा भी है । अगर आपने इस देश से भ्रष्टाचार और राष्ट्र विरोधी ताक़तों को ख़त्म करने का संकल्प लिया है तो इसे दृढ़ता और कठोरता के साथ समाप्त करने के उपाय भी करने होंगे और कदम भी उठाने होंगे ।
सुकमा के संदर्भ में ही एक छोटी सी जानकारी बहुत प्रासंगिक है । छत्तीसगढ़ में IG स्तर के एक आईपीएस अधिकारी हैं, शिवराम प्रसाद कल्लूरी, जिन्हें नक्सलियों के विरुद्ध लड़ाई में राज्य का सबसे सफल और असरदार अधिकारी माना जाता है । उन्होंने राज्य के उत्तरी इलाके (सरगुजा), जो कि झारखण्ड से लगता है, से नक्सलियों का जड़ से सफाया कर दिया । उन्हें इस मामले में कुछ हद तक छत्तीसगढ़ का केपीएस गिल भी कहा जा सकता है । अभी कुछ महीने पहले तक वे बस्तर के IG थे और उन्होंने सुकमा जिले को 2018 के पहले नक्सलमुक्त करने की घोषणा तक की थी । उनके कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों का तेजी से सफाया हुआ और सुकमा से उनके पैर उखड़ गये थे । लेकिन लगभग 2 महीने पहले नक्सलियों के दिल्ली में बैठे आकाओं ने उनको मानवाधिकार उल्लंघन मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फंसा दिया और छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दबाव में आकर उनको हटा दिया । न केवल हटाया बल्कि लंबी छुट्टी पर भी भेज दिया ।
उनके बस्तर के IG पद से हटने के बाद 2 महीनों में ये दूसरा बड़ा हमला है । मार्च में CRPF के 11 जवान शहीद हुए और अब 26 जवान । नक्सली फिर सुकमा में अपनी मज़बूती दर्ज़ करा रहे हैं । यही उनकी लड़ाई का तरीका है ।
अब ये समझा जा सकता है कि क्या नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई ऐसे लड़ी जा सकती है ?
कहने का अर्थ ये है कि जो दिखता है, वो अधूरा सच है और उसे पूर्णता में देखने के लिये हमेशा बड़ी पिक्चर को देखना चाहिये । तभी पूरा सच सामने आता है ।
शहीद वीर जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि और ऐसे नेताओं को ईश्वर जल्दी उठायें जो देश की रक्षा में शहीद होने वालों की जान की कीमत पर अपनी राजनीति चमकाने का सपना सँजोये हुए हैं ।