सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत और स्वामीभक्त घोड़े 'शुभ्रक' का बलिदान

ग़ुलाम वंश दिल्ली में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था.यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा. इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए.कुतुबुद्दीन 1206-10 ई. मूलत: शहाबुद्दीन मोहम्मद ग़ोरी का तुर्क दास था और 1192 ई. के ‘तराइन के युद्ध’ में विजय प्राप्त करने में उसने अपने स्वामी की विशेष सहायता की. उसने अपने स्वामी की ओर से दिल्ली पर अधिकार कर लिया था.कुतुबुद्दीन के लिए लिखी गयी यह बातें, आप सीबीएसई और अन्य शिक्षा बोर्ड की पुस्तकों में पढ़ सकते हैं. यहाँ आप पढ़ेंगे कि कुतुबुद्दीन ऐबक एक महान राजा था और उसने देश की एकता-अखंडता के लिए काम किया था.लेकिन आज हम आपको कुतुबुद्दीन ऐबक के दुष्कर्म बताने वाले हैं. यह सब बातें जो आपको हम बतायेंगे इन बातों को न्यायमूर्ति के.एम पाण्डेय की पुस्तक VOICE OF CONSCIENCE नामक पुस्तक में पढ़ सकते हैं. ना जाने क्यों आपको इस सच्चाई से वाकिफ नहीं किया जाता है.न्यायमूर्ति के.एम पाण्डेय ने अपनी पुस्तक में त्वारीख ताजुल के कुछ प्रमाण देते हुए लिखा गया है किसंवत 1263 विक्रमी विच जद कुतुबुद्दीन एबक बादशाह ने मेरठ शहर राणे बंसपाल पासों छुडाया ता सत सत सौ ‘700’ बड़े-बड़े देवाले तोड़ के मसीतां बनाई.  ते बसंपाल दे कुटम्ब दा तीन ‘3000’ जीव कतल कराया.जिस आर्य ने इस्लाम न कबूल कीता, ओहे मौत ते घाट उतार दिया. एक लाख तेती हजार. जी हाँ. अब अगर इसका हिंदी अनुवाद हो तो यहाँ बताया गया है कि कुतुबुद्दीन ने शहर के कई मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई हैं. इस अनुमान के तहत तो मेरठ की कई मस्जिदें, पहले मंदिर रही होंगीं.इसके बाद इस महान राजा ने 3000 बे जुबान जानवरों का क़त्ल करा दिया. अब जिस राजा को कत्लेआम में इतना मजा आ रहा था क्या उसको महान बोला जा सकता है?सबसे अंत में बताया गया है कि एक लाख तैतीस हजार लोग मार दिए गये थे. तो इतना सब कत्लेआम कुतुबुद्दीन जैसे महान राजा ने किया था.इस राजा का सबसे बड़ा मकसद यही था कि भारत में कैसे भी कैसे इस्लाम को बढ़ाया जाए और यहाँ का धन लुटा जाए. किन्तु हम अपने बच्चों को खुश होकर कुतुबमीनार का सच बताते हैं. लेकिन कभी नहीं बताते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने महिलाओं की इज्जत लुटी थी और हिन्दुओं का कत्लेआम कराया था.छोटे से कार्यकाल में बड़ा जिहादऐसा बोला जाता है कि कुतुबुद्दीन ने अपने छोटे से कार्यकाल में बड़ा जिहाद कर दिया था. अगर यह और सालों तक सत्ता पर रहता तो भारत पूरी तरह से मुस्लिमों का देश बन चुका होता.कुछ जगह पर तो यह भी सबूत दिए गये हैं कुतुबमीनार, कुतुबुद्दीन ने नहीं बनवाई है. यहाँ के 27 मंदिरों को तोड़ दिया गया ताकि कोई भी इस जगह को पहचान न सके. बाद में खूबसूरत कल को अपना बना लिया. लेकिन आज तक कहीं नहीं लिखा है कि कुतुबुद्दीन इसका प्रयोग किस लिए करता था? स्लाम के अन्दर कहीं भी किसी भी तरह की मूर्ति नहीं बनाई जा सकती है. जबकि ये लोग ना तो चित्रकारी कर सकते हैं और ना ही फोटोग्राफी कर सकते हैं. तो कुतुबमीनार में चित्रकला किस मुस्लिम राजा ने बनवाई थीं.तो अब आगे का अध्ययन आपको खुद शुरू कर देना चाहिए ताकि आप कुतुबुद्दीन ऐबक के असली इतिहास से वाकिफ हो जाएँ. भारत को इस्लाम देश बनाने आया यह गुलाम, देश में कत्लेआम करके गया और हजारों मंदिरों को तोड़ गया. लेकिन हम आज भी इसे महान राजा बोलते हैं.
किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें। इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया। हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे-हिसाब जुल्म किये थे।
*कुतुबुद्दीन* कुल चार साल (1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा। इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा। हाँसी, कन्नौज, बदायूँ, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता। अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।
जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेधशाला थी जहाँ बैठकर खगोलशास्त्री *वराहमिहिर* ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर *'विक्रम संवत'* का आविष्कार किया था। यहाँ पर 27 छोटे-छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में *'विष्णुस्तम्भ'* था, जिसको *'ध्रुवस्तम्भ'* भी कहा जाता था।
दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड़ दिया। विशाल विष्णुस्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तबसे उसे *क़ुतुबमीनार* कहा जाने लगा। कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनवाया था, जबकि वो एक विध्वंसक था न कि कोई निर्माता।
*अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।* इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई। ये अफगान / तुर्क लोग 'पोलो' नहीं खेलते थे, अफगान / तुर्क लोग *बुजकशी* खेलते हैं जिसमें एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते हैं, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुँचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कड़ा विरोध उदयपुर (वर्तमान उदयपुर से भिन्न) के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा। उसने धोखे से राजकुँवर को बंदी बना लिया और उनको और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़कर लाहौर ले आया।
एक दिन राजकुँवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सिर काटने का हुकुम दिया। दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा - बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुँवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा।
कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुँवर का *'शुभ्रक'* चुना।
कुतुबुद्दीन शुभ्रक पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुँचा। राजकुँवर को भी ज़ंज़ीरों में बाँधकर वहाँ लाया गया। राजकुँवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंज़ीरों को खोला गया, *शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई वार किये जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया*।
इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुँवर शुभ्रक पर सवार होकर वहाँ से निकल गए। कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड़ न सके।
शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आकर रुका। वहाँ पहुँचकर जब राजकुँवर ने उतरकर पुचकारा तो वह मूर्ति की तरह शांत खड़ा रहा।
वह मर चुका था, सिर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया।
कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।
धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामीभक्ति के लिए प्राण दाँव पर लगा देते हैं।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

मुसलमानो में जातियां

जानो मुस्लिम की जातियों के बारे में..
मुस्लिम में भी जातिवाद होता है और ऊॅच नीच का भेद भाव होता है जानो मुस्लिम की जातियों के बारे में......इस्लाम में जातियों का कडवा सचइस्लाम में जातिवाद” के कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने ....
१. जबसे इस्लाम मज़हब बना है तभी से “शिया और सुन्नी” मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग आपस में लड़ते-मरते रहते हैं ...!!
२. अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया, पठान आदि मुस्लिमों की जातियां हैं, और हंसी की बात, यह एक ही अल्लाह को मानने वाले, एक ही मस्जिद में नमाज़ नहीं पढते!!! सभी जातियों के लिए अलग अलग मस्जिदें होती हैं .!!
३. सउदी अरब, अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि अन्य अरब राष्ट्रों के मुस्लिम पाकिस्तान, भारत और बंगलादेशी मुस्लिमों को फर्जी मुसलमान मानते हें और इनसे छुआछूत मानते हैं । सउदी अरब मे ऑफिसो मे भारत और पाक के मुसलमानों के लिए अलग पानी रखा रखता है |
४. शेख अपने आपको सबसे उपर मानते हैं और वे किसी अन्य जाति में निकाह नहीं करते.
५. इंडोनेशिया में १०० वर्षों पूर्व अनेकों बौद्ध और हिंदू परिवर्तित होकर मुस्लिम बने थे, इसी कारण सेसभी इस्लामिक राष्ट्र, इंडोनेशिया से घृणा की भावना रखते हैं..
६. क़ाज़ी मुस्लिम, ''भारतीय मुस्लिमों'' को मुस्लिम ही नहीं मानते... क्यूंकि उन का मानना है के यह सब भी हिंदूधर्म से परिवर्तित हैं !!!
७. अफ्रीका महाद्वीप के सभी इस्लामिक राष्ट्र जैसे मोरोक्को, मिस्र, अल्जीरिया, निजेर,लीबिया आदि राष्ट्रों के मुस्लिमों को तुर्की के मुस्लिम सबसे निम्न मानते हैं ।
८. सोमालिया जैसे गरीब इस्लामिक राष्ट्रों में अपने बुजुर्गों को ''जीवित'' समुद्र में बहाने की प्रथा चल रही है!!!
९. भारत के ही बोहरा मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नहीं जाते, वो मात्र मज़ारों पे जाते हैं... उनका विश्वास सूफियों पे है... अल्लाह पे नहीं !!
१०. मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ। अशरफ से तात्पर्य है 'कुलीन' और शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के मुसलमान शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है।कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं।उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा- जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ) मलिक और (अप) मिर्ज़ा।२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान......(A) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जोमूलतः हिन्दू थे, किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।(B) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।(C) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई,धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा,लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।(D) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग भानार, हलालखोदर,हिजड़ा , कसंबी, लालबेगी, मोगता, मेहतर।अल्लाह एक, एक कुरान, एक .... नबी ! और महान एकता......... बतलाते हैं स्वंय में ?जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है।अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है ।और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं, जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.
हिन्दुस्तान में भी मुस्लिम जातियों मे भेद भाव है भारतीय मुस्लिम समाज में जाति व्यवस्था::--नजमुल करीम साहब के अनुसार, सैय्यद मुसलमानों में, वेलोग अपने को मानते हैं, जो मुस्लिम समाज में हिंदुओंकी तरह ब्राह्मणों का स्तर रखते हैं। वैसे 'सैयद'का शाब्दिक अर्थ "राजकुमार" से है। ये लोग अपने नाम केआगे मीर और सैय्यद शब्दों का प्रयोग करते हैं।सैय्यदों में अनेको उपजातिया हैं, जिनमें असकरी, बाकरी,हसीनी, हुसैनी, काज़मी, तकवी, रिज़वी, जैदी, अल्वी,अब्बासी, जाफरी और हाशमी जातियां आती हैं।शैख़ जातियों में, उस्मानी सिद्दीकी, फारुखी , खुरासनी,मलिकी और किदवई इत्यादी जातियां आती हैं।इनका सैय्यदों के बाद दूसरा स्थान है। शैख़ शब्द का अर्थहै मुखिया, परन्तु व्यवहार में मुसलमानों के धार्मिक गुरु शैख़कहलाते थे, भारत के सभी प्रान्तों में ये लोग पाए जाते हैं।मुगुल लोगों में, उजबेक, तुर्कमान, ताजिक, तैमूरी, चंगताई,किब और जिंश्वाश जाति के लोग आते हैं। माना जाता है कि ये लोग मंगोलिया में मंगोल जाती के लोग हैं और अपने नाम केआगे 'मिर्ज़ा' शब्द का प्रयोग करते हैं।पठानों में, आफरीदी, बंगल, बारक, ओई, वारेच्छ, दुर्रानी,खलील, ककार, लोदहो, रोहिल्ला और युसुफजाईइत्यादी आते हैं। इनके पूर्वज अफगानिस्तान से आये थे।अधिकांशतः ये लोग अपने नाम के पीछे 'खान' शब्दका प्रयोग करते हैं।मुस्लिम जातियाॅइन जातियों में, चंदेल, तोमर, बरबुजा, बीसने, भट्टी,गौतम, चौहान, पनबार, राठौर, और सोमवंशी हैं।मुसलमानों में कुछ जातियों को व्यवसाय के आधार परभी समझा जा सकता है, इनमें अंसारी (जुलाहे/बुनकर),कुरैशी (कसाई) छीपी, मनिहार, बढाई, लुहार, मंसूरी (धुनें)तेली, सक्के, धोबी नाई (सलमानी ), दर्जी (इदरीसी), ठठेरेजूता बनाने वाले और कुम्हार इत्यादी शामिल हैं। येव्यावसायिक जातियां थी जो पहले हिंदू थी और बाद मेंमुसलमान में परिवर्तित हो गईं। इसके अतिरिक्त अनेकव्यवसायिक जातियां है जैसे-आतिशबाज़, बावर्ची, भांड,गद्दी, मोमिन, मिरासी, नानबाई, कुंजडा, दुनिया,कबाड़ियों, चिकुवा फ़कीर इत्यादी।मुसलमानों में अस्पृश्य जातियां भी है।जातियों में अनेक उपजातियां मिलती है जैसे- गाजीपुरी,रावत, लाल बेगी, पत्थर फोड, शेख, महतर, बांस फोड और वाल्मीकि इत्यादी।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

पूजा राणा महान योद्धा

इतिहास में उल्लेख है कि राणा पूंजा का जन्म मेरपुर के मुखिया दूदा सोलंकी (चालूूक्या) के परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता का देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया।

यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही ‘भोमट के राजा’ बन गए। अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़ में फैल गई। इस दौरान 1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा। इस संकट के काल में महाराणा प्रताप ने भील राणा पूंजा का सहयोग मांगा। ऐसे समय में भील मां के वीर पुत्र राणा पूँजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ अपने दल के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और मेवाड़ के सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है। इस घोषणा के लिए महाराणा ने पूंजा भील को गले लगाया और अपना भाई कहा। 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में पूँजा भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी।
हल्दीघाटी के युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था जिसे पूंजा भील के नेतृत्व में काम में लिया गया। इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक मुगलों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा है तथा उनके वंश में जन्मे वीर नायक पूंजा भील के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में एक ओर राजपूत तथा एक दूसरी तरफ भील प्रतीक अपनाया गया है। यही नहीं इस भील वंशज सरदार की उपलब्धियों और योगदान की प्रमाणिकता के रहने उन्हें ‘राणा’ की पदवी महाराणा द्वारा दी गई। अब हमारा राजा पूंजा भील ‘राणा पूंजा भील’ कहलाकर जाने लगे।