इतिहास में उल्लेख है कि राणा पूंजा का जन्म मेरपुर के मुखिया दूदा सोलंकी (चालूूक्या) के परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता का
देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया
बना दिया गया।
यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे
जल्दी ही ‘भोमट के राजा’ बन गए। अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति
प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़
में फैल गई। इस दौरान 1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा। इस संकट के काल
में महाराणा प्रताप ने भील राणा पूंजा का सहयोग मांगा। ऐसे समय में भील मां
के वीर पुत्र राणा पूँजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ
अपने दल के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि राणा
पूंजा और मेवाड़ के सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तत्पर है। इस
घोषणा के लिए महाराणा ने पूंजा भील को गले लगाया और अपना भाई कहा। 1576 ई.
के हल्दीघाटी युद्ध में पूँजा भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए
झोंक दी।
हल्दीघाटी के युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था जिसे पूंजा भील के नेतृत्व में काम में लिया गया। इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक मुगलों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा है तथा उनके वंश में जन्मे वीर नायक पूंजा भील के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में एक ओर राजपूत तथा एक दूसरी तरफ भील प्रतीक अपनाया गया है। यही नहीं इस भील वंशज सरदार की उपलब्धियों और योगदान की प्रमाणिकता के रहने उन्हें ‘राणा’ की पदवी महाराणा द्वारा दी गई। अब हमारा राजा पूंजा भील ‘राणा पूंजा भील’ कहलाकर जाने लगे।
हल्दीघाटी के युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था जिसे पूंजा भील के नेतृत्व में काम में लिया गया। इस युद्ध के बाद कई वर्षों तक मुगलों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा है तथा उनके वंश में जन्मे वीर नायक पूंजा भील के इस युगों-युगों तक याद रखने योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में एक ओर राजपूत तथा एक दूसरी तरफ भील प्रतीक अपनाया गया है। यही नहीं इस भील वंशज सरदार की उपलब्धियों और योगदान की प्रमाणिकता के रहने उन्हें ‘राणा’ की पदवी महाराणा द्वारा दी गई। अब हमारा राजा पूंजा भील ‘राणा पूंजा भील’ कहलाकर जाने लगे।
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