मंगलवार, 18 मार्च 2014

आज कि नारी वासना पूर्ति की माध्यम रह गई ?

आज के युवाओ में एक सब्द बहुत सुनने को मिलता है '' मैं उससे  बहुत प्यार करता हु '' जबकि हकीकत में युवको को प्यार सब्द का मतलब ही नहीं पता  है । ज्यादातर युवक अपनी अश्लील भावनाओं को प्रेम की पवित्रता का नाम देकर  अपनी अतृप्त वासना को छुपाने का प्रयास मात्र करता है ।वासना के गंदे कीड़े जब पुरुष मन की धरातल पर रेंगने लगते है तब वह बहसी,दरिंदा हो जाता है ।अपनी सारी संवेदनाओं को दावँ पर रख बस जिस्म की प्यासी भूख को पूरा करने के लिए किसी हद तक गुजर जाता है।जब तक अपनी इच्छानुसार सब कुछ ठीक होता है तब तक वह प्रेम का पुजारी बना होता है।पर जैसे ही उसे विरोध का साया मिलता है वह दरिंदगी पर उतर जाता है।वासना के कुकृत्यों में लिप्त होकर जिस्मानी भूखों के लिए किसी नरभक्षी की तरह स्त्री के मान,मर्यादा और इज्जत को रौंदता रौंदता वह समाज,परिवार और संस्कारों को ताक पर रख बस वही करता है,जो करवाती है उसकी वासना ।
 

              हमारी संस्कृति में और हमारे धर्मग्रंथों में स्त्री को जो सम्मान मिला है।वो आज बस इतिहास के पन्नों में ही सीमट कर रह गया है।क्या स्त्री की संरचना बस पुरुष की काम और वासना पूर्ति के लिए हुई है।वो जननि है,वही हर संरचना की मूलभूत और आधारभूत सता है।पर क्या अब वही ममतामयी पवित्र स्त्री का आँचल बस वासनामय क्रीड़ा का काम स्थल बन गया है।आज समाज में स्त्री को बस वस्तु मात्र समझ कर निर्जीव वस्तुओं की तरह उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।क्या यही है वजूद आज के समाज में स्त्री का।स्त्री पुरुषों को जन्म देकर उनका पालन पोषण कर के उन्हें इसलिए इस लायक बना रही है कि कल किसी परायी स्त्री के अस्मत को लूटों।इन घिनौने कार्यों की पूर्ति के लिए स्त्री का ऊपयोग क्या उसे वासना का परिचायक भर नहीं बना दिया है आज के समाज में। हद की सीमा तब पार हो जाती है जब बाप के उम्र का कोई पुरुष अपनी बेटी की उम्र की नवयौवना के साथ अपने हवस की पूर्ति करता है और अपनी मूँछों को तावँ देते हुये अपनी मर्दांगनी पर इठलाता है।लानत है ऐसी मर्दांगनी पर जो अपनी नपुंसकता को अपनी वासना मयी हवस से दूर करने की कोशिश करता है।क्यों आज भी आजादी के कई वर्षो बाद भी जब पूरा देश स्वतंत्र है।हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना जीवन यापन करने के लिए तत्पर है।पर जहाँ बात आती है स्त्री के सुरक्षा की सभी आँखे मूँद लेते है।क्या आज शक्ति रुपा स्त्री इतनी कमजोर हो गयी है जिसे सुरक्षा की जरुरत है।क्या उसका वजूद जंगल में रह रहे किसी कमजोर पशु सा हो गया है,जिसे हर पल यह डर बना रहता है कि कही उसका शिकार ना हो जाये।पर आज इस जंगलराज में शिकारी कौन है ? वही पुरुष जिसको नियंत्रण नहीं है अपनी कामुक भावनाओं पर और यह भी पता नहीं है कि कब वो इंसान से हैवान बन जायेगा।
स्त्री की कुछ मजबूरियाँ है जिसने उसे बस वासना कि पूर्ति के लिए एक वस्तुमात्र बना दिया है।मजबूरीवश अपने ह्रदय पर पत्थर रख बेचती है अपने जिस्म को और निलाम करती है अपनी अस्मत को।पर वो पहलू अंधकारमय है।वह वासना का निमंत्रण नहीं है अवसान है।वह वासनामयी अग्न की वो लग्न है,जो बस वजूद तलाशती है अपनी पर वजूद पाकर भी खुद की नजरों में बहुत निचे तक गिर जाती है।स्त्री बस वासना नहीं है,वह तो सृष्टि है।सृष्टि के मूल कारण प्रेम की जन्मदात्री है।स्त्री से पुरुष का मिलन बस इक संयोग है,जो सृष्टि की संरचना हेतु आवश्यक है।पर वह वासनामयी सम्भोग नहीं है।
हवस के सातवें आसमां पर पुरुष खुद को सर्वशक्तिमान समझ लेता है पर अगले ही क्षण पिघल जाता है अहंकार उसका और फिर धूल में ही आ मिलता है उसका वजूद।वासना से सर्वकल्याण सम्भव नहीं है पर हाँ स्वयं का सर्वनाश निश्चित है।वासना की आग में जलता पुरुष ठीक वैसा ही हो जाता है जैसे लौ पर मँडराता पतंगा लाख मना करने पर भी खुद की आहुति दे देता है।बस यहाँ भावना विपरीत होती है।वहाँ प्रेममयी आकर्षण अंत का कारक होता है और यहाँ वासनामयी हवस सर्वनाश निश्चित करता है।स्त्री को बस वासना की पूर्ति हेतु वस्तुमात्र समझना पुरुष की सबसे बड़ी पराजय है।क्योंकि ऐसा कर वो खुद के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा बैठता है अनजाने में।अपनी हवस की पूर्ति करते करते इक रोज खुद मौत के आगोश में समा जाता है।
जरुरी है नजरिया बदलने की।क्योंकि सारा फर्क बस सोच का है।समाज भी वही है,लोग भी वही है और हम भी वही है।पर यह जो वासना की दरिंदगी हममें समा गयी है वो हमारी ही अभद्र मानसिकता का परिचायक है ।स्त्री सुख शैय्या है,आनंद का सागर है।बस पवित्र गंगा समझ कर गोते लगाने की जरुरत है ना कि उसकी पवित्रता को धूमिल करने की।जिस दिन स्त्री का सम्मान वापस मिल जायेगा उसे।उसी दिन जग के कल्याण का मार्ग भी ढ़ूँढ़ लेगा आज का पुरुष जो 21वीं सदी में पहुँच तो गया है पर आज भी कौरवों के दुशासन की तरह स्त्री के चिरहरण का कारक है।

रामचरित मानस कि चौपाइयों से कष्ट निवारण


 जाने रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं
घर या काम-काज की कौन-कौन सी परेशानियां?

1. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए-
हनुमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।
2. नौकरी पाने के लिए -
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।
धन-दौलत, सम्पत्ति पाने के लिए -
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
3. पुत्र पाने के लिए -
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।

4. शादी के लिए -
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥

5. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए -
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
6. पढ़ाई या परीक्षा में कामयाबी के लिए-
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

7. जहर उतारने के लिए -
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
8. नजर उतारने के लिए -
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
9. हनुमानजी की कृपा के लिए -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।
10. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

11. सफल व कुशल यात्रा के लिए -
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
12. शत्रुता मिटाने के लिए -
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
13. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -
प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥

14. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
15. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।