गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

क्या यही प्यार है ?

कहते हैं जोड़ियां ऊपर से ही तय होकर आती हैं, नीचे तो सिर्फ उन्हें जोड़ दिया जाता है। यह कहावत तब बिलकुल सही साबित हुई जब ट्रेन में यात्रा के दौरान दो अजनबी मिले और उनके बीच प्यार हुआ और इस कदर हुआ कि दोनों ने ट्रेन में ही शादी करने का फैसला कर लिया।
यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है जो कल यानि इस सदी के सबसे खास तारीख 12/12/12 को घटी। दिल्ली से लखनऊ जाने वाली पूर्वा एक्सप्रेस की एक बोगी में कई मुसाफिर सवार हुए। इन्ही यात्रियों में थे एक युवक और एक युवती।
(फोटो: ट्रेन में शादी करने वाला जोड़ा)
दोनों जब ट्रेन में चढ़े तो एक-दूसरे से बिलकुल अनजान थे, उनकी मंजिल भी अलग थी लेकिन इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि वो दोनों जब ट्रेन से उतरे तो पति-पत्नी के रिश्ते में बंध चुके थे।

ट्रेन की एक छोटी सी यात्रा जिंदगी के सबसे ख़ास और सुहाने सफ़र में तब्दील हो जायेगी इसका अंदाजा उन दोनों को भी न था। साथी यात्री ने पंडितजी की भूमिका निभाई तो वहीं अन्य ने उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की। 
दिल्ली से दोपहर को चलने वाली पूर्वा एक्सप्रेस के कोच में एक युवती और युवक सफर तय करने के लिए चढ़े थे...दोनों न सिर्फ अजनबी थे बल्कि, उनकी मंजिल भी जुदा थी। अलीगढ पहुंचते-पहुंचते दोनों के बीच का अजनबीपन ख़त्म हो चुका था। जैसा आम तौर होता है, दोनों में पहले हल्की-फुल्की बातचीत शुरू हुई और जल्द ही दोस्ती हो गई। सफ़र के साथ दोस्ती का रास्ता कब प्यार की मंजिल पर पहुँच गया दोनों को पता ही नहीं चला। इस सुहाने सफ़र को दोनों ही भूलना नहीं चाहते थे। सफर में ही तय किया कि अब जीवन पथ पर हमराही बन कर ही चलेंगे। शादी का मन बनाया तो रीति रिवाज आड़े आ गए।दोनों ने अपने मन की बात साथी यात्रियों को बताई। यात्री भी दोनों को ट्रेन में ही फेरे दिलाने को तैयार हो गए। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या इत्तेफाक, लेकिन सच है कि उसी कोच में एक पंडितजी भी मिल गए। सो, रही-सही अड़चन भी दूर हो गई। सबकी सहमती से पंडितजी ने वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ युवती की मांग भरवा दी। टूंडला स्टेशन पहुंचने से पहले दो सहयात्रियों का रिश्ता, जीवन साथी में बदल गया।शादी के बाद आशीर्वाद देने का काम ही बचा रह गया था। साथी यात्रियों ने उस रस्म को भी पूरा किया। सबने उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए आशीर्वाद दिया। जब घटना इतनी दिलचस्प हो तो भला मीडिया तक पहुंचने से इसे कौन रोक सकता था। खबर सुनते ही टूंडला स्‍टेशन पर मीडियाकर्मियों का जमघट लग गया।
   अब आई बवाल की बारी: 
 
घटना की खबर पुलिस तक भी पहुंच गई। एका-एक इन दोनों के बीच पुलिस एक विलेन की तरह प्रकट हुई। टूंडला स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचते ही पुलिस ने दोनों से पूछताछ शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक युवती ने युवक के साथ जाने की जिद की। जबकि युवक ने साफ़ कर दिया कि उसके परिजन लखनऊ में रहते हैं और उन्हें इस रिश्ते से कोई परहेज नहीं होगा। जब मियां-बीवी राजी तो पुलिस भी क्या कर पाती। हालांकि, दोनों ने मीडिया से बात करने से मना कर दिया। किसी तरह के झमेले से बचने के लिए युवती ने तो ये तक कह दिया कि वो पहले से ही शादीशुदा है। इस अनोखी शादी के गवाह बने सहयात्रियों ने ही ट्रेन में हुई शादी की पुष्टि की। लोगों की मानें तो युवक लखनऊ का रहने वाला है जबकि युवती के बारे में कुछ पता नहीं है। कुछ यात्रियों ने बताया कि युवती एक शादी समारोह से वापस लौट रही थी..............http://www.bhaskar.com/article/DEL-love-express-marriage-and-organically-in-moving-train-4110088-NOR.html?seq=1&HF-3=
 श्रोत ---भास्कर डाट काम.

प्यासा कौन पुरष या नारी ? या दोनों ?

भास्कर डाट कॉम पर एक समाचार पढ़ा की "चलती ट्रेन में हुआ प्यार, इजहार, शादी और फिर बवाल " बस ..फिर क्या था ..एक बिषय  मिल गया कुछ खुल कर कहने का बहाना मिल गया ....जो डर मन में था इस समाचार ने निकाल दिया .अब आगे पढ़िए ..महिलाए और ओरतो के सेक्स संबध में ..आज हम लोग समाज में इस बिषय पर कहने से या कोई भी बात करने से घबराते है ..संकोच करते है ...जबकि हम ..समाज में क्या करते है सभी को नहीं पता है ...पढ़िए .. भारत में पहली बार 1994 में दिखाई गई शेखर कपूर की फिल्म द बैंडिट क्वीन को आम तौर पर मीडिया की अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली. खासकर एक सेक्स सीन की आलोचना की गई जिसमें फूलन देवी अपने प्रेमी विक्रम मल्लाह के ऊपर होती है. समीक्षक और फिल्म निर्माता पंकज बुटालिया ने कहा कि यह सीन इसलिए गले नहीं उतरता क्योंकि ऐसा नहीं लगता कि कोई ‘देहाती’ औरत इस तरह से प्यार करेगी. द बैंडिट क्वीन को लेकर शुरू हुए विवाद से कामुकता को लेकर बहस जारी रही, पर इस मामले में चर्चा के केंद्र में शहरी मध्यवर्गीय औरत आ गई और इसका फायदा उसे ही मिला. यह आम धारणा बरकरार रही कि महानगर की औरत सेक्स संबंधी गतिविधियों में काफी आगे है जबकि छोटे शहरों की रूढ़िवादी टाइप की औरत संकोची होती है या सेक्स संबंधी गतिविधियों में पहल करने में उसे शर्म आती है.
इंडिया टुडे-नीलसन सेक्स सर्वे ने भारतीय औरतों, खासकर छोटे शहरों की औरतों की मर्दों के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छाओं और चलन के अध्ययन में योगदान किया है. इस प्रक्रिया में इसने न सिर्फ औपनिवेशिक धारणाओं और नीतियों की वजह से पिछली एक शताब्दी में बनी भारतीय औरतों की रूढ़ छवि बल्कि औपनिवेशिक काल के बाद के युग में बने जेंडर ज्ञान के राष्ट्रवादी बखान और विद्वता को भी ध्वस्त किया है. छोटे शहरों की औरतें अब इस बात की कल्पना करके दुखी नहीं होती हैं कि पश्चिम की औरतें सेक्स के मामले में कितनी आजाद हैं. सर्वे से पता चलता है कि अब वे खुद भी अपनी झिझक तोड़कर सेक्स की उसी दौड़ में शरीक हैं.
भारत में शादी से पहले के संबंधों के बारे में बहुत पता नहीं चल पाता सिवाय इसके कि इसके बारे में लोगों की त्योरियां चढ़ी रहती हैं. लेकिन इस सर्वेक्षण के नतीजों से पता चलता है कि युवा औरतों की कामुकता पर सख्त निगरानी के बावजूद रिश्ते बनाए जाते हैं और इनमें से कुछ फीसदी रिश्तों की परिणति सेक्स में होती है. उदाहरण के लिए छोटे शहरों की सभी औरतों में से 21 फीसदी कभी-न-कभी किसी मर्द के साथ डेट पर गई हैं. हालांकि, महानगरों की औरतों का आंकड़ा 38 फीसदी है.
अविवाहित औरतों में महानगरों और छोटे शहरों के आंकड़ों का यह अंतर काफी कम हो जाता है. सर्वे में शामिल छोटे शहरों की 22 फीसदी अविवाहित औरतें मर्दों के साथ डेट पर गई हैं जबकि महानगरों की ऐसी औरतों का आंकड़ा 30 फीसदी है. हां, अंतरंगता का स्तर जैसे-जैसे बढ़ता है, यह खाई और कम होती जाती है. मर्द को चूमने और 16 से 18 वर्ष की उम्र के बीच पहली बार चुंबन का स्वाद चखने वाली अविवाहित औरतों का आंकड़ा देखें तो छोटे शहरों की औरतें पुरुषों के साथ रोमांस को आगे बढ़ाने के मामले में महानगरों की औरतों से पीछे नहीं हैं.Sex survey 2012
वास्तव में औरतों के डेटिंग पर जाने की उम्र की बात करें तो छोटे शहरों की औरतें इस मामले में महानगरों की औरतों से आगे दिखती हैं: डेट पर जाने वाली छोटे शहरों की औरतों के 30 फीसदी ने पहली बार 16 से 18 वर्ष की उम्र में ऐसा किया था जबकि इसी आयु वर्ग की महानगरों की सिर्फ 19 फीसदी औरतें डेट पर गई थीं. लेकिन विवाहित और अविवाहित, दोनों तरह की औरतों के आंकड़ों की तुलना करें तो यह तस्वीर बदल जाती है: उस उम्र में पहली बार डेटिंग पर जाने का अविवाहित औरतों का आंकड़ा महानगरों और छोटे शहरों दोनों में 31 फीसदी रहा है.
लेकिन छोटे शहरों में 16 से 18 वर्ष की उम्र में पहली बार डेट पर जाने की बात स्वीकार करने वाली विवाहित महिलाओं का प्रतिशत करीब 33 फीसदी है जबकि महानगरों में यह सिर्फ 13 फीसदी है. इस भारी अंतर की वजह क्या है? कोई यह अनुमान लगा सकता है कि छोटे शहरों की औरतों की शादी जल्दी होती है, लेकिन यह दिखाने की उनकी इच्छा कि वे भी डेटिंग पर जा चुकी हैं, असल में खुद को आधुनिक दिखाने से जुड़ी है, इसलिए वे अपने पति के साथ बाहर जाने को भी ‘‘डेटिंग’’ बताती हैं.Sex Survey
शादी से पहले रिश्तों को महानगर और छोटे शहरों में हर जगह देखा जा सकता है. एक पति और पत्नी वाले वैवाहिक ढांचे को अब भी यौन गतिविधियों का स्वीकृत रूप माना जाता है. सर्वे में शामिल 80 फीसदी औरतों ने कहा कि उनके पहले सेक्स पार्टनर उनके पति ही थे; 82 फीसदी ने अपने जीवन में सिर्फ एक व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाए थे और 90 फीसदी का कभी भी कोई विवाहेतर संबंध नहीं रहा.
बड़ी संख्या में औरतें सेक्स के मामले में अपने पति से बराबर की साझेदारी की उम्मीद करती हैं और उन्हें ऐसा मिल भी रहा है, साथ ही 60 फीसदी के बहुमत के साथ औरतें यह दावा भी करती हैं कि सेक्स के मामले में उनका भी बराबर का दखल रहता है.
हालांकि शादी के दायरे के बाहर सैक्सुअलिटी की अभिव्यक्ति बहुत कम है, लेकिन भारत के छोटे शहरों में दंपतियों के बेडरूम अब उबाऊ जगह नहीं रह गए हैं. छोटे शहरों की औरतों के जीवन और दिमाग से जुड़े सेक्स के बारे में साफ तस्वीर दिखाने के मामले में यह सर्वे उल्लेखनीय है. 66 फीसदी औरतें मानती हैं कि उनके रिश्ते में सेक्स की महत्वपूर्ण भूमिका है. 23 फीसदी यौन फंतासियां बुनने की बात मानती हैं और 30 फीसदी ने कभी-न-कभी पोर्न फिल्म देखी है.
पोर्न फिल्में देखने वाली औरतों में लगभग आधी ऐसी हैं जो हर दो महीने पर ऐसी फिल्में देख लेती हैं. हालांकि ज्यादातर महिलाओं ने यौन संबंध बनाने के दौरान पोजीशन को लेकर प्रयोग करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है, लेकिन कम से कम 10 फीसदी ने यह माना कि उन्हें सेक्स के दौरान ऊपर रहना पसंद है. संयोग से, महानगरों की औरतों के मामले में यह आंकड़ा समान है.Sex survey 2012
सेक्स और कामुकता में इस सक्रिय दिलचस्पी का आंकड़ा सेक्स के बारे में बातचीत की अनिच्छुक महिलाओं की संख्या के बराबर बैठता है. सर्वे में शामिल 76 फीसदी औरतें अपने परिवार के साथ यौन मामलों पर चर्चा नहीं करतीं और अकेले या पति-पत्नी के साथ सेक्स थेरेपिस्ट की सलाह लेने के लिए तैयार लोगों का आंकड़ा भी कोई खास बड़ा नहीं है. सेक्स के बारे में सूचना के सबसे बड़े स्रोत के रूप में दोस्त और टीवी उभरे हैं. सेक्स के बारे में खुलकर चर्चा करने की इस हिचक की वजह से ही यह हैरत की बात नहीं है कि सर्वे में शामिल छोटे शहरों की औरतों के 34 फीसदी ने माना है कि सेक्स एजुकेशन के मामले में पोर्न की कुछ भूमिका हो सकती है...........!
       सगे-संबंधियों के साथ सेक्स और समलैंगिकता अब भी छोटे शहरों के लिए सबसे बड़ी वर्जनाएं हैं. सगे रिश्तेदारों के व्यभिचार की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं-इस मामले में पिंकी विरानी की बिटर चॉकलेट का हवाला दिया जा सकता है-फिर भी सर्वे में ‘घर को स्वर्ग’ मानने की लोकप्रिय धारणा को चुनौती बहुत कम मिल पाई है. समलैंगिकता एक और ‘वर्जित’ क्षेत्र है..........
         सर्वे में शामिल 17 फीसदी औरतों का कहना है कि वे परिवार को साथ बनाए रखने के लिए विवाहेतर संबंध के लिए पति को माफ  कर देंगी. इनमें से 63 फीसदी औरतों के साथ विवाहेतर संबंध के लिए पति को माफ करने की बात मानती हैं, लेकिन सिर्फ 14 फीसदी औरतें समलैंगिक रिश्ते के लिए पति को माफ  करने को तैयार हैं. 80 फीसदी औरतों की बाइसेक्सुअलिटी (औरत और पुरुष दोनों के साथ सेक्स संबंध) को किसी भी तरह से स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और 79 फीसदी ने समलैंगिकता को भी खारिज किया है. हालांकि महानगरों की औरतों के मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 67 और 64 फीसदी है..................
         सर्वे में अपनी सेक्सुअलिटी से जुड़े रवैए और आदत के बारे में आम तौर पर बात करते समय मर्द आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं ताकि यह दिखा सकें कि औरतें उनके प्रति किस हद तक आकर्षित रहती हैं. कई बार डेटिंग पर जाने के मामले में मर्दों का प्रतिशत ज्यादा होने का मतलब यह हो सकता है कि उन्हें औरतों के मुकाबले सेक्स संबंधों के मौके ज्यादा मिले हैं.....लेकिन सर्वे में आए आंकड़ों से यह मजबूत संकेत मिलता है कि मर्द और औरतें या तो अपने अनुभवों को बढ़ा-चढ़ाकर या कम करके बताती हैं और ये कमोबेश दोनों के लिए समान ही हैं. इस तरह छोटे शहरों के मर्दों-औरतों के डेटिंग पर जाने के आंकड़े बार-बार कई मामलों में एक जैसे लगते हैं. यहां तक कि इस सवाल के बारे में कि आपने सबसे पहले किसके साथ यौन संबंध कायम किए थे, छोटे शहरों में मर्दों और औरतों का आंकड़ा एकदम समान है.......सर्वे से साबित होने वाली महिलाओं की यौन अभिव्यक्ति की स्पष्टता भारतीय औरतों के बारे में बनाई गई उस छवि से टकराती है जिनमें उनको या तो सती-सावित्री और पतिव्रता बताया जाता है या कामुक और सेक्स की भूखी. इस सर्वे से सामने आई छोटे शहरों की औरतों की छवि एक अत्यंत जटिल तस्वीर पेश करती है जो इस तरह के सरलीकरण के खिलाफ जाती है. अगर सभी आंकड़ों के मद्देनजर कोई आसान निष्कर्ष निकाल लिया जाए तो उन आंकड़ों के ब्यौरे उसे फौरन चुनौती देते हैं.
सर्वेक्षण एक और वजह से भी महत्वपूर्ण है: पिछले दो दशक में भारत में सेक्सुअलिटी के अध्ययन को लगातार स्वीकार्यता हासिल हुई है, लेकिन जैसा कि सोशल एंथ्रोपोलॉजिस्ट मैनुएला सिओटी बताती हैं कि छोटे शहरों में लोगों को प्रचलित हेट्रोसेक्सुअल (विपरीत लिंग सेक्स) तरीकों के बारे में सीमित जानकारी है. इस तरह यह सर्वे संभावित सवाल-जवाब की पूरी एक नई राह के दरवाजे खोल देता है और निश्चित रूप से इसे ही इसकी मुख्य उपलब्धि भी माना जाना चाहिए.........!