इंडिया टुडे-नीलसन सेक्स सर्वे ने भारतीय औरतों, खासकर छोटे शहरों
की औरतों की मर्दों के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छाओं और चलन के अध्ययन
में योगदान किया है. इस प्रक्रिया में इसने न सिर्फ औपनिवेशिक धारणाओं और
नीतियों की वजह से पिछली एक शताब्दी में बनी भारतीय औरतों की रूढ़ छवि बल्कि
औपनिवेशिक काल के बाद के युग में बने जेंडर ज्ञान के राष्ट्रवादी बखान और
विद्वता को भी ध्वस्त किया है. छोटे शहरों की औरतें अब इस बात की कल्पना
करके दुखी नहीं होती हैं कि पश्चिम की औरतें सेक्स के मामले में कितनी आजाद
हैं. सर्वे से पता चलता है कि अब वे खुद भी अपनी झिझक तोड़कर सेक्स की उसी
दौड़ में शरीक हैं.
भारत में शादी से पहले के संबंधों के बारे में बहुत पता नहीं चल
पाता सिवाय इसके कि इसके बारे में लोगों की त्योरियां चढ़ी रहती हैं. लेकिन
इस सर्वेक्षण के नतीजों से पता चलता है कि युवा औरतों की कामुकता पर सख्त
निगरानी के बावजूद रिश्ते बनाए जाते हैं और इनमें से कुछ फीसदी रिश्तों की
परिणति सेक्स में होती है. उदाहरण के लिए छोटे शहरों की सभी औरतों में से
21 फीसदी कभी-न-कभी किसी मर्द के साथ डेट पर गई हैं. हालांकि, महानगरों की
औरतों का आंकड़ा 38 फीसदी है.
अविवाहित औरतों में महानगरों और छोटे शहरों के आंकड़ों का यह अंतर
काफी कम हो जाता है. सर्वे में शामिल छोटे शहरों की 22 फीसदी अविवाहित
औरतें मर्दों के साथ डेट पर गई हैं जबकि महानगरों की ऐसी औरतों का आंकड़ा 30
फीसदी है. हां, अंतरंगता का स्तर जैसे-जैसे बढ़ता है, यह खाई और कम होती
जाती है. मर्द को चूमने और 16 से 18 वर्ष की उम्र के बीच पहली बार चुंबन का
स्वाद चखने वाली अविवाहित औरतों का आंकड़ा देखें तो छोटे शहरों की औरतें
पुरुषों के साथ रोमांस को आगे बढ़ाने के मामले में महानगरों की औरतों से
पीछे नहीं हैं.
वास्तव में औरतों के डेटिंग पर जाने की उम्र की बात करें तो छोटे
शहरों की औरतें इस मामले में महानगरों की औरतों से आगे दिखती हैं: डेट पर
जाने वाली छोटे शहरों की औरतों के 30 फीसदी ने पहली बार 16 से 18 वर्ष की
उम्र में ऐसा किया था जबकि इसी आयु वर्ग की महानगरों की सिर्फ 19 फीसदी
औरतें डेट पर गई थीं. लेकिन विवाहित और अविवाहित, दोनों तरह की औरतों के
आंकड़ों की तुलना करें तो यह तस्वीर बदल जाती है: उस उम्र में पहली बार
डेटिंग पर जाने का अविवाहित औरतों का आंकड़ा महानगरों और छोटे शहरों दोनों
में 31 फीसदी रहा है.
लेकिन छोटे शहरों में 16 से 18 वर्ष की उम्र में पहली बार डेट पर
जाने की बात स्वीकार करने वाली विवाहित महिलाओं का प्रतिशत करीब 33 फीसदी
है जबकि महानगरों में यह सिर्फ 13 फीसदी है. इस भारी अंतर की वजह क्या है?
कोई यह अनुमान लगा सकता है कि छोटे शहरों की औरतों की शादी जल्दी होती है,
लेकिन यह दिखाने की उनकी इच्छा कि वे भी डेटिंग पर जा चुकी हैं, असल में
खुद को आधुनिक दिखाने से जुड़ी है, इसलिए वे अपने पति के साथ बाहर जाने को
भी ‘‘डेटिंग’’ बताती हैं.
शादी से पहले रिश्तों को महानगर और छोटे शहरों में हर जगह देखा जा
सकता है. एक पति और पत्नी वाले वैवाहिक ढांचे को अब भी यौन गतिविधियों का
स्वीकृत रूप माना जाता है. सर्वे में शामिल 80 फीसदी औरतों ने कहा कि उनके
पहले सेक्स पार्टनर उनके पति ही थे; 82 फीसदी ने अपने जीवन में सिर्फ एक
व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाए थे और 90 फीसदी का कभी भी कोई विवाहेतर
संबंध नहीं रहा.
बड़ी संख्या में औरतें सेक्स के मामले में अपने पति से बराबर की
साझेदारी की उम्मीद करती हैं और उन्हें ऐसा मिल भी रहा है, साथ ही 60 फीसदी
के बहुमत के साथ औरतें यह दावा भी करती हैं कि सेक्स के मामले में उनका भी
बराबर का दखल रहता है.
हालांकि शादी के दायरे के बाहर सैक्सुअलिटी की अभिव्यक्ति बहुत कम
है, लेकिन भारत के छोटे शहरों में दंपतियों के बेडरूम अब उबाऊ जगह नहीं रह
गए हैं. छोटे शहरों की औरतों के जीवन और दिमाग से जुड़े सेक्स के बारे में
साफ तस्वीर दिखाने के मामले में यह सर्वे उल्लेखनीय है. 66 फीसदी औरतें
मानती हैं कि उनके रिश्ते में सेक्स की महत्वपूर्ण भूमिका है. 23 फीसदी यौन
फंतासियां बुनने की बात मानती हैं और 30 फीसदी ने कभी-न-कभी पोर्न फिल्म
देखी है.
पोर्न फिल्में देखने वाली औरतों में लगभग आधी ऐसी हैं जो हर दो
महीने पर ऐसी फिल्में देख लेती हैं. हालांकि ज्यादातर महिलाओं ने यौन संबंध
बनाने के दौरान पोजीशन को लेकर प्रयोग करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई
है, लेकिन कम से कम 10 फीसदी ने यह माना कि उन्हें सेक्स के दौरान ऊपर रहना
पसंद है. संयोग से, महानगरों की औरतों के मामले में यह आंकड़ा समान है.
सेक्स और कामुकता में इस सक्रिय दिलचस्पी का आंकड़ा सेक्स के बारे
में बातचीत की अनिच्छुक महिलाओं की संख्या के बराबर बैठता है. सर्वे में
शामिल 76 फीसदी औरतें अपने परिवार के साथ यौन मामलों पर चर्चा नहीं करतीं
और अकेले या पति-पत्नी के साथ सेक्स थेरेपिस्ट की सलाह लेने के लिए तैयार
लोगों का आंकड़ा भी कोई खास बड़ा नहीं है. सेक्स के बारे में सूचना के सबसे
बड़े स्रोत के रूप में दोस्त और टीवी उभरे हैं. सेक्स के बारे में खुलकर
चर्चा करने की इस हिचक की वजह से ही यह हैरत की बात नहीं है कि सर्वे में
शामिल छोटे शहरों की औरतों के 34 फीसदी ने माना है कि सेक्स एजुकेशन के
मामले में पोर्न की कुछ भूमिका हो सकती है...........!
सगे-संबंधियों के साथ सेक्स और समलैंगिकता अब भी छोटे शहरों के लिए
सबसे बड़ी वर्जनाएं हैं. सगे रिश्तेदारों के व्यभिचार की खबरें समय-समय पर
आती रहती हैं-इस मामले में पिंकी विरानी की बिटर चॉकलेट का हवाला दिया जा
सकता है-फिर भी सर्वे में ‘घर को स्वर्ग’ मानने की लोकप्रिय धारणा को
चुनौती बहुत कम मिल पाई है. समलैंगिकता एक और ‘वर्जित’ क्षेत्र है..........
सर्वे में शामिल 17 फीसदी औरतों का कहना है कि वे परिवार को साथ
बनाए रखने के लिए विवाहेतर संबंध के लिए पति को माफ कर देंगी. इनमें से 63
फीसदी औरतों के साथ विवाहेतर संबंध के लिए पति को माफ करने की बात मानती
हैं, लेकिन सिर्फ 14 फीसदी औरतें समलैंगिक रिश्ते के लिए पति को माफ करने
को तैयार हैं. 80 फीसदी औरतों की बाइसेक्सुअलिटी (औरत और पुरुष दोनों के
साथ सेक्स संबंध) को किसी भी तरह से स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और 79
फीसदी ने समलैंगिकता को भी खारिज किया है. हालांकि महानगरों की औरतों के
मामले में यह आंकड़ा क्रमश: 67 और 64 फीसदी है..................
सर्वे में अपनी सेक्सुअलिटी से जुड़े रवैए और आदत के बारे में आम तौर
पर बात करते समय मर्द आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं ताकि यह दिखा सकें कि
औरतें उनके प्रति किस हद तक आकर्षित रहती हैं. कई बार डेटिंग पर जाने के
मामले में मर्दों का प्रतिशत ज्यादा होने का मतलब यह हो सकता है कि उन्हें
औरतों के मुकाबले सेक्स संबंधों के मौके ज्यादा मिले हैं.....लेकिन सर्वे में आए आंकड़ों से यह मजबूत संकेत मिलता है कि मर्द और
औरतें या तो अपने अनुभवों को बढ़ा-चढ़ाकर या कम करके बताती हैं और ये कमोबेश
दोनों के लिए समान ही हैं. इस तरह छोटे शहरों के मर्दों-औरतों के डेटिंग पर
जाने के आंकड़े बार-बार कई मामलों में एक जैसे लगते हैं. यहां तक कि इस
सवाल के बारे में कि आपने सबसे पहले किसके साथ यौन संबंध कायम किए थे, छोटे
शहरों में मर्दों और औरतों का आंकड़ा एकदम समान है.......सर्वे से साबित होने वाली महिलाओं की यौन अभिव्यक्ति की स्पष्टता
भारतीय औरतों के बारे में बनाई गई उस छवि से टकराती है जिनमें उनको या तो
सती-सावित्री और पतिव्रता बताया जाता है या कामुक और सेक्स की भूखी. इस
सर्वे से सामने आई छोटे शहरों की औरतों की छवि एक अत्यंत जटिल तस्वीर पेश
करती है जो इस तरह के सरलीकरण के खिलाफ जाती है. अगर सभी आंकड़ों के
मद्देनजर कोई आसान निष्कर्ष निकाल लिया जाए तो उन आंकड़ों के ब्यौरे उसे
फौरन चुनौती देते हैं.
सर्वेक्षण एक और वजह से भी महत्वपूर्ण है: पिछले दो दशक में भारत
में सेक्सुअलिटी के अध्ययन को लगातार स्वीकार्यता हासिल हुई है, लेकिन जैसा
कि सोशल एंथ्रोपोलॉजिस्ट मैनुएला सिओटी बताती हैं कि छोटे शहरों में लोगों
को प्रचलित हेट्रोसेक्सुअल (विपरीत लिंग सेक्स) तरीकों के बारे में सीमित
जानकारी है. इस तरह यह सर्वे संभावित सवाल-जवाब की पूरी एक नई राह के
दरवाजे खोल देता है और निश्चित रूप से इसे ही इसकी मुख्य उपलब्धि भी माना
जाना चाहिए.........!
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