मित्रों में आप को सुभाषित माला का एक सुन्दर सुभाषित बता रहा हू जिसमे पाखंडी ब्राह्मण के बारह गुणों का वर्णन किया गया हे...
उच्चेरध्ययनं पुराणकथा स्त्रीभिः सहालापनं
तासामर्भकलालनं पतिनुतिस्तत्पाकमिथ्यास्तुति:|
आदेश्यस्य करावलम्बनविधि: पांडित्यलेखक्रिया
... होरागारुडमंत्रतंत्रकविधिपाखंडोब्राह्मणोंर्गुणा द्वादश || (सुभाषित रत्नावली - ३)
१. (सब को अपना संस्कृत ज्ञान दिखाने के लिए) बड़े बड़े आवाज़ से पाठ करना...
२. (केवल) पुराण की कथाओ का पारायण करना (क्युकी वह वेद ज्ञान में अज्ञानी हे)...
३. स्त्रियो के देख कर (उनके सामने अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित करने) उनके साथ वार्तालाप करना...
४. स्त्रियों के पति की मिथ्या प्रशंसा करना (अर्थात किसी भी व्यक्ति के सामने लाचार हो जाना)
५. (एसी स्त्रियो को प्रभावित करने) उनके बालको को संभालना
६. वह स्त्रियों की रसोई की मिथ्या प्रशंसा करना...
७. (शास्त्रीय मान्यता हो या ना हो केवल यजमान की इच्छा से और उसके द्वारा
पैसा कमाने के लिए) अनावश्यक विधियो का चयन करना (अर्थात यजमान को मुर्ख
बनाना)...
८. (अनावश्यक) लेखनकार्य में पंडिताई का दर्शन करवाना,
९. गारुड़ीविद्या
१०. मंत्र
११. तंत्र
१२. कविता इत्यादि में ही रममाण होना(केवल उसमे ही विद्वत्ता हासिल करना)...
यह बारह पाखंडी ब्राह्मण के लक्षण हे.
मित्रों, ब्राह्मण एक वृत्ति का नाम हे, और वह वृत्ति हे "ब्रह्म जानातीति
ब्राह्मणः" अर्थात जिसने ब्रह्म को जान लिया हे अथवा उसको जानने के लिए
प्रवृत्त हे वह ब्राह्मण हे. जो वेद और उपनिषदों के विचारों को प्रचार
प्रसार करने के लिए व आदर्श समाज निर्माण करने के लिए प्रवृत्त हे वह
ब्राह्मण हे.
अब ऐसा ब्राह्मण कभी भी दिन, हिन्, लाचार नहीं हो सकता,
उसके जीवन में तेजस्विता होती हे, अस्मिता होती हे. वह हर किसी के पैर नहीं
पकड़ता.
अगर स्वार्थ के कारण वह किसी के भी पैर पकड़ लेता हे तो वह ब्राह्मण केसे
इससे उल्टा जो तेजस्वी हे, अस्मितावान हे, वेदवान हे जो वेद और ब्रह्म को
जानने के लिए प्रवृत्त हुआ हे वह ब्राह्मण ही हे. चाहे वह किसी भी जाति
विशेष का क्यों न हो. क्युकी हमारे शास्त्रों में कही भी जातिविषेशता के
आधार पर ब्राह्मणत्व नहीं अपितु वृत्ति व कर्म के आधार पर ब्राह्मणत्व
निश्चित किया गया हे...............
By-Samarpan Trivedi Facebook
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हिंदुस्तान में हिन्दू सदियों से निशाने पर रहा है, पहले इस्लामी
आतंकियों का जेहादी जुनून फिर अंग्रेजों द्वारा धार्मिक सांस्कृतिक हृदय
बिन्दुओं पर कुटिल प्रहार और स्वतंत्रता के बाद से सेकुलरिज्म के डाहपूर्ण
षड़यंत्र.! जम्मू कश्मीर में लाखों हिन्दू अपने ही घरों से बेघर कर दिया
गया, मुसलमानों के लिए विशेष कानून देकर देश को कमजोर और शरीयती अवधारणा को
मजबूत किया गया, हिन्दू बाहुल्य भारत में मुस्लिमों के पहले हक की
दुस्साहसिक व निर्लज्ज घोषणाएं की गयीं, सरकारी शिक्षा पाठ्यक्रम में
शिवाजी जैसे हिन्दू आदर्शों को लुटेरा भगोड़ा बताया गया, हिन्दू धर्म के
प्राणबिंदु राम कृष्ण का उपहास बनाया गया, समूचे इतिहास की हत्या की गयी,
धर्मांतरण को सह दी गयी, हिन्दू धर्मगुरुओं और संतों पर कीचड उछाला गया और
आज जारी है|आज
त्रावंकर पद्मनाभ स्वामी मंदिर की प्राचीन संपत्ति के प्रकाश में आने के
बाद हिन्दू द्वेष की यह मानसिकता पुनः नंगी हो गयी है| मैकाले की संतानों
और सत्ता के पिशाचों के षड्यंत्रों का ही शायद परिणाम है कि जिस पद्मनाभ
स्वामी मंदिर की संपत्ति की रक्षा हिन्दू राजवंश विगत ८०० बर्षो से
त्यागपूर्वक कर रहे थे उसे कोर्ट का सहारा लेकर सार्वजनिक कर दिया गया| और
अब केरल की नवोदित सेकुलर सरकार राजनैतिक लुटेरों और देशी-विदेशी गिद्धों
की नजरें उस अमूल्य संपत्ति पर गड़ चुकीं हैं| इसे तस्करों का षड़यंत्र
नहीं तो और क्या कहें कि देश की विरासत का मूल्य फ्रांस के जानकारों द्वारा
निकलवाया जायेगा.!
सेकुलर मीडिया अपनी लफ्बाजिओं पर उतर आया, केरल की “मलयालय मनोरमा” जोकि
सेकुलरिज्म की ठेकेदार है और इसके लिए उसके executive एडिटर “जैकब मैथ्यू”
को WAN-IFRA के प्रेसिडेंट का पद देकर शाबासी भी दी गयी, ने संपत्ति की
सुरक्षा चिंताओं को ताक पर रखते हुए तहखानो के नक्से तक छाप डाले| आधुनिकता
का डींग हांक-हांक के हिंदी और हिन्दू संस्कृति की गर्दन पे सवार रहने
बाले “टाइम्स ग्रुप” के “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” ने तो मंदिर संपत्ति के विवेचन
और १ लाख करोड़ की इस सम्पत्ति से देश का कैसे-कैसे भला(?) हो सकता है और
मनरेगा और खाद्य सुरक्षा बिल के लिए कितने दिन तक पैसा मिल सकता है, यह
बताने के लिए पूरा एक पेज ही भर डाला| दैनिक जागरण जैसे अखबार जोकि भारत की
संस्कृति और आत्मा के संवाहक रहे है और जिनका आधार भी धार्मिक जनता ही है
शर्मनाक तरीके से सेकुलरिज्म की बेशर्म दौड़ में शामिल होने के लिए सत्य और
तथ्य को ताक पर रखकर आम जनमानस की भावनाओं को कुचलते हुए इन अखबारों का
अनुसरण करते दिख रहे हैं| मुझे आश्चर्य है कि इन अखबारों ने यह क्यों नहीं
बताया कि इस धनराशि से कितने दिनों तक हज सब्सिडी दी जा सकती है.?
हिन्दुओं की आस्थाओं को मजाक समझने वाले ये विश्लेषक आखिर क्या कहना चाहते
हैं.? क्या इस देश में अब मंदिरों की संपत्ति जिसमे पुरातत्विक महत्व के
अमूल्य रत्न और भगवान् विष्णु की स्वर्णमयी प्रतिमा व आभूषण शामिल हैं को
बेचकर मनरेगा चलाई जाएगी.? क्या हिन्दुओ के भगवान् की प्रतिमा गलाकर अब
राज्य सरकारें अपना कर्ज उतारेंगी.? क्या अब भारत की ऐतिहासिक और
सांस्कृतिक विरासत बेंचकर औद्योगिक विकास किया जाएगा.?
हमारे पर्वत जंगल और नदियाँ और विदेशी कूड़े के लिए (जिसमे नाभिकीय अवशिष्ट
भी हैं) जमीन सब बेंच दिए गए, प्रश्न यह है कि उनसे हमे कितना विकास दिया
गया.?
भामाशाह की परंपरा का हिन्दू आवश्यकता पड़ने पर आज भी राष्ट्र के लिए अपना
सर्वस्व न्योछावर करने की तत्परता रखता है किन्तु उनकी आस्था की बाजारू
कीमत लगाने वाले क्या चर्च और मस्जिदों की संपत्तियों से सरकारी खर्च चलाने
की बात कहने का साहस रखते हैं.?
भारतबर्ष में वक्फ बोर्ड नाम की संस्था भारत की अकूत अचल संपत्ति को
इस्लामिक संपत्ति घोषित कर उस पर कुंडली मारे बैठी है, यह संपत्ति मंदिरों
की संपत्ति की भांति श्रद्धालुओं द्वारा अर्पित दान नहीं वरन वह संपत्ति है
जो किसी भी रूप में मुसलामानों से सम्बद्ध रही है|
आज वक्फ के पास ८,००,००० से अधिक रजिस्टर्ड संपत्तियां हैं| ६,००,००० एकड़
से अधिक जमीन वक्फ के कब्जे में है, जोकि अपने विश्व की सबसे बड़ी संपत्ति
है, भारतीय रेलवे और रक्षा विभाग की भूमि के बाद देश का यह तीसरा सबसे बड़ा
भू स्वामित्त्व है| किन्तु क्या आपको कभी बताया गया कि इस संपत्ति का
मनरेगा और खाद्य सुरक्षा के लिए कैसे प्रयोग किया जा सकता है.?
वक्फ की जमीन को यदि किराये पर उठा दिया जाये तो इससे प्रतिबर्ष १०,०००
करोड़ रु. की आय होगी जोकि पद्मनाभ स्वामी मंदिर की ८०० बर्षों की संपत्ति
को मात्र १० बर्षो में पार कर देगी|
यदि अन्य संपत्ति को छोड़ कर सिर्फ जमीन की बार्षिक आय को ही लें तो यह
प्रतिबर्ष उत्तराखंड के कुल बजट (७,८०० करोड़ रु.) से २,८०० करोड़ रु. अधिक
होगा, इस आय से प्रति २.५ बर्ष में दिल्ली का बजट, प्रति ३ बर्ष में
झारखण्ड का बजट, प्रति ४ बर्ष में मनरेगा का बजट, और प्रति ७ बर्ष में
खाद्य सुरक्षा बजट निकल आयेगा| यदि हम १ लाख रु. प्रति व्यक्ति को देकर
स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न करें तो तो प्रतिबर्ष १,००,००० व्यक्तियों को
रोजगार मिल जायेगा| इमारतों को छोड़कर वक्फ के कब्जे की जमीन कोई
सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत भी नहीं जिसका व्यवसायिक उपयोग संभव न हो,
किन्तु क्या आपने सेकुलरिस्ट चिंतकों अथवा मीडिया के मुख से ऐसे आंकड़े और
तर्क सुने जैसा कि मंदिरों की संपत्ति के बारे में राग अलापा जाता है.?
मंदिरों की संपत्ति श्रद्धालुओं द्वारा समर्पित धन होता है जिसका उद्देश्य
धर्मसेवा व प्रसार ही है किन्तु फिर भी देश की वर्तमान आवश्यकताओं को समझते
हुए अनेकानेक हिन्दू मंदिर व संस्थाएं उन जिम्मेदारियों को उठा रहीं हैं
जिनका नैतिक दायित्व सरकार का है| सत्य साईं ट्रस्ट जिसकी संपत्ति पर
मीडिया ने जमकर हंगामा किया ७५० गाँव में पेयजल आपूर्ति के साथ साथ
चिकित्सा महाविद्यालय व उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थानों के माध्यम से शिक्षा
चिकित्सा प्रदान कर रहा है, इसी तरह शिर्डी साईं ट्रस्ट, तिरुपति बालाजी
ट्रस्ट, अक्षरधाम ट्रस्ट, संत आशाराम आश्रम जैसे अनेकानेक हिन्दू आस्था के
केंद्र अपने अपने स्तर से बिजली, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, व गरीबों को
सीधे आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं| इसके बाद भी इन दुराग्रही तथाकथित
राष्ट्रचिन्तकों को मंदिर और संत लुटेरे नजर आते हैं और इनकी संपत्तियों के
अधिग्रहण से ही देश की समस्याओं का निदान दिखाई देता है| बेशर्मी के सभी
बांध तब टूट जाते हैं जब नेताओं, थानेदारों और ठेकेदारों की जूठन के
टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया के कर्णधार अपने लेखो और टेलीकास्ट में शब्दों
की कलाबाजियां करते हुए धर्म की मनमानी परिभाषाएं गढ़ते और संतों
धर्मगुरुओं को त्याग का उपदेश देते नजर आते हैं.!
वक्फ
हिन्दुस्तान के तंत्र को धता बताते हुए ७७% दिल्ली को अपनी संपत्ति बता
डालता है और ताजमहल जैसी राष्ट्रीय संपत्ति को इस्लामिक संपत्ति घोषित कर
देता है (जुलाई २००५) तब भी इन तथाकथित तर्कविदों और चिंतकों की जीभ
केंचुली उतारकर सो जाती है और इनकी आर्थिक गणनाएं दिखाई नहीं देतीं| क्या
आप जानते हैं इस बोर्ड की सालाना अरबों की सालाना आय से कितने
देशवासियों(या केवल मुसलामानों का ही जैसा कि बोर्ड का उद्देश्य है) का भला
होता है अथवा दारुल-इस्लाम की स्थापना के लिए लगातार चलने बाले अभियानों
यात्राओं (जिसमे कि विदेशी मौलवियों का आना जाना शामिल है) के खर्चे कहाँ
से निकलते हैं.?
राजा महमूदाबाद जोकि शत्रुसंपत्ति घोषित कर अधिग्रहित की जा चुकी संपत्ति
पर अपना दावा ठोंकते हैं (यह संपत्ति इनके पूर्वजों की थी जोकि १९४७ में
देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे और संपत्ति राजा के नाम भी नहीं की गयी थी
अतः यह संपत्ति शत्रु संपत्ति अधिनियम १९६८ के अंतर्गत शत्रुसंपत्ति घोषित
कर दी गयी थी) तब यही तर्कशास्त्री उस संपत्ति का देश के किये आर्थिक
मूल्य भूलकर उसे उनका हक बताते फिरते हैं और हमारी सरकार शत्रुसंपत्ति को
वापस करने के लिए संशोधन विधयेक २०१० तक ले आती है| अकेले सीतापुर लखनऊ में
यह संपत्ति लगभग ३०,००० करोड़ रु. है, इसी तरह उ.प्र. व उत्तराखंड के कई
जिलों में उनका संपत्ति पर दावा है| इसके बाद सभी शत्रुसम्पत्तियों पर दावे
मुखर होने लगें हैं और देश को लाखों करोड़ की चपत लगने की तैयारी है|
हज सब्सिडी के नाम पर प्रतिव्यक्ति लगभग ४५००० रु. हवाईयात्रा का खर्च देश
पर डाला जाता है, अन्य सुविधाएँ देने में खर्च होने वाली राशि अलग है| २०१०
में १७,००,००० से अधिक मुस्लिमों ने यात्रा की, अर्थात हम १,००,००० रु.
प्रतिव्यक्ति के हिसाब से ८०,००० से ८५,००० गरीबों को एक बर्ष में
स्वरोजगार दे सकते थे| किन्तु क्या इस तथ्य की वकालत करने की जहमत किसी
बुद्धिजीवी ने उठाई.?इसाई
मिशनरियों द्वारा देश में अवैध स्रोतों से से आने वाले हजारों करोड़
रुपयों से गरीब कमजोर लोगों का ईमान ख़रीदा जाता है, क्या देश धन के उन
रहस्यमई स्रोतों पर प्रश्न उठाने का अधिकार नहीं रखता.? किन्तु न तो मीडिया
और सत्ता के सेकुलरिस्टों की आवाज अथाह धन के स्रोतों पर ही उठती है और न
ही धर्मांतरण के षड्यंत्रों के विरुद्ध.!
मायावती, लालू, करूणानिधि, और मधु कोड़ा जैसे नेताओं की संपत्ति से कितने
गरीबों का भला हो सकता है, क्या इनसे कोई आंकड़े नहीं बनते.?
राजीव गाँधी की स्विस बैंक में जमा संपत्ति, जिसका खुलासा अमेरिका के दबाब
में स्विस बैंक के माद्ध्यम से एक डच मैगज़ीन में हुआ था यदि सोनिया
गाँधी देश को सौंप दे तो उससे कितने दिन मनरेगा चलेगी क्या यह हिसाब आपको
दिया गया.? सरकार में बिना किसी पद के सोनिया गाँधी ने देश के लगभग १८००
करोड़ रु. पिछले १बर्ष में अपनी विदेश यात्राओं पर बर्बाद किये| ऐसा किस
आधार पर किया गया और इन १८०० करोड़ रु. से कितने बेरोजगारों के जीवन को
साँसे मिल सकती थीं, मंदिर की संपत्ति को सरकारी कब्जे में लेने की वकालत
वालों ने क्या आपको यह बताया.?
यदि नहीं तो हर नाले के कीचड़ से अपने दामन को सजाये इन तथाकथित
बुद्धिजीवियों, तर्कशास्त्रियों व चिंतकों के प्रहार देश के हिन्दुओं, देश
की संस्कृति व सांस्कृतिक मूल्यों पर ही क्यों होते हैं.? उत्तर एक ही
है, बच सको तो बचो……. बचा सको तो बचाओ…… …हिन्दू निशाने पर है..!
BY- वासुदेव त्रिपाठी