मंगलवार, 18 सितंबर 2012

!! हाय रे कांग्रेस की, सत्ता के लिए वोट बैंक की, गंदी और घटिया राजनीती.!!

मित्रो जब  यासिर अराफात ने फिलिस्तीन राष्ट्र की घोषणा की तो फिलिस्तीन को सबसे पहले मान्यता देने वाला देश कौन था ?
सउदी अरब --- नहीं
पाकिस्तान ---- नहीं
अफगानिस्तान --- नहीं
भारत ------ जी हा

इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुस्टीकरण के लिए सबसे पहले फिलिस्तीन को मान्यता दिया और यासिर अराफात जैसे  को नेहरु शांति पुरस्कार [1 करोड़ रूपये ] दिया.....
और राजीव गाँधी ने उसको इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार दिया......!!
राजीव गाँधी ने तो उसको पुरे विश्व में घुमने के लिए बोईंग 747 गिफ्ट में दिया था.....!!!

अब आगे सुनिए ----
वही खुराफात सॉरी अराफात ने OIC [Organisation of Islamic Countries] में कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न भाग बताया और बोला की पाकिस्तान जब चाहे तब मेरे लड़ाके कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ेंगे ..
इतना ही नही जिस व्यक्ति को दुनिया के १०३ देश आतंकवादी घोषित किये हो और जिसने ८ विमानों का अपहरण किया हो और जिसने दो हज़ार निर्दोष लोगो को मारा हो.......
ऐसे आतंकवादी यासिर अराफात को सबसे पहले भारत ने किसी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा .....!?!?

जी हाँ .. इंदिरा गाँधी ने इसे नेहरु शांति पुरस्कार दिया जिसमे एक करोड रूपये नगद और दो सौ ग्राम सोने से बना एक शील्ड होता है .. आप सोचिये १९८३ मे मतलब आज से करीब ३२ साल पहले एक करोड रूपये की क्या वैल्यू होगी ?
फिर राजीव गाँधी ने इसे इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से नवाजा ..
फिर बाद मे यही यासिर अराफात कश्मीर के मामले पर खुलकर पाकिस्तान के साथ हो गया और इसने घूम घूमकर पूरे इस्लामीक देशो मे कहा की फिलिस्तीन और कश्मीर दोनों जगहों के मुसलमान गैर मुसलमानों के हाथो मारे जा रहे है इसलिए पूरे मुस्लिम जगत को इन दोनों मामलो पर एकजुट होना चाहिए.....!
हाय रे कांग्रेस की, सत्ता के लिए वोट बैंक की, गंदी और घटिया राजनीती.....?!! ?
By __ Sachin Khare

!! बीजेपी FDI को लेकर राजनीती कर रही है क्या ?

रोजगार: एक आकलन के मुताबिक भारत में खुदरा अर्थव्यवस्था करीब 400 अरब अमेरिका डॉलर का है। इसमें 1. 2 करोड़ खुदरा व्यापारी करीब 4 करोड़ लोगों को रोजगार दिए हुए हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि वॉल-मार्ट का टर्नओवर 420 अरब अमेरिकी डॉलर का है। लेकिन इस कंपनी ने सिर्फ 21 लाख लोगों को रोजगार दिया है। खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के विरोधियों का कहना है कि अगर वॉल-मार्ट जैसी कंपनी इतने कम लोगों के दम पर उतना ही कारोबार कर रही है, जितना की भारत का कुल खुदरा बाज़ार है तो उस कंपनी से क्या उम्मीद की जा सकती है। एफडीआई के विरोधी पूछते हैं कि क्या ऐसी कंपनी से 4-5 करोड़ लोगों को रोज़गार देने की उम्मीद की जा सकती है? 
नए तरह के बिचौलिए आ जाएंगे सामने: खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के समर्थकों का कहना है कि इससे बाजा़र में सबसे ज़्यादा फायदे में रहने वाले बिचौलिए गायब हो जाएंगे क्योंकि खुदरा की विदेशी दुकानें किसानों से उनके उत्पाद सीधे तौर पर खरीदेंगे और इससे किसानों को काफी फायदा होगा। लेकिन कृषि विशेषज्ञ डॉ. देविंदर शर्मा का कहना है कि यह धारणा गलत है। उन्होंने अमेरिका में हुए एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि 20 वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका के किसानों को लागत निकालने के बाद करीब 70 फीसदी की कमाई होती थी। लेकिन 2005 में यह फायदा गिरकर 4 फीसदी पर आ गया। ऐसे में किसानों को कहां फायदा हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि खुदरा की बड़ी दुकानें अपने साथ नए तरह के बिचौलिए लेकर आती हैं। एफडीआई के बाद क्वॉलिटी कंट्रोलर, स्टैंडर्डाइजर, सर्टिफिकेशन एजेंसी, प्रॉसेसर और पैकेजिंग कंसलटेंट के रूप में नए बिचौलिए सामने आएंगे।
 अनाज को सड़ने से नहीं बचाएंगी कंपनियां: एफडीआई के समर्थकों का कहना है कि खुदरा बाज़ार में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियां वैज्ञानिक ढंग से लाखों टन अनाज को सड़ने से बचाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करेंगी। लेकिन खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के विरोधी पूछते हैं कि दुनिया के किस देश में ऐसी बड़ी कंपनियां किसानों के अनाज को सड़ने से बचाने के लिए भंडारण की सुविधा दे रही हैं? गौर करने वाली बात यह है कि सरकार ने भंडारण (स्टोरेज) के क्षेत्र में एफडीआई की इजाजत पहले ही दे रखी है। लेकिन अब तक इस क्षेत्र में कोई विदेशी निवेश नहीं हुआ है। 
दाम में कमी नहीं: बडी़ खुदरा दुकानें बाज़ार पर धीरे-धीरे एकाधिकार (मोनोपली) बना लेती हैं। एकाधिकार के बाद यही कंपनियां मनमानी दरों पर अपने उत्पाद बेचती हैं। एफडीआई का विरोध कर रहे जानकारों का दावा है कि अफ्रीका और एशिया में कुछ सुपरमार्केट में वस्तुओं के दाम खुले बाज़ार से 20 से 30 फीसदी से ज़्यादा पाए गए।
कृषि: प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का दावा है कि एफडीआई भारत के कृषि क्षेत्र के लिए 'वरदान' साबित होगा। लेकिन कृषि विशेषज्ञ डॉ. देविंदर शर्मा के मुताबिक यह सच नहीं है। उनका कहना है कि खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के सबसे बड़े पैरोकार अमेरिका में भी खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ है। अमेरिका में फेडरल सरकार की मदद की वजह से वहां के किसान फायदे में रहते हैं। 2008 में आए फार्म बिल में अमेरिका ने अगले 5 सालों के लिए कृषि क्षेत्र के लिए 307 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रावधान किया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर खुदरा में एफडीआई या बड़ी पूंजी लगाने से किसानों को बडा़ फायदा होता तो अमेरिकी सरकार को अपने किसानों को इतनी भारी भरकम सब्सिडी क्यों देनी पड़ती? पश्चिमी देशों में किसानों को कई तरह की सब्सिडी के बावजूद एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि यूरोप में हर मिनट एक किसान खेती बाड़ी का काम छोड़ रहा है
गांवों को होगा सीधा फायदा: एफडीआई के समर्थकों का दावा है कि विदेशी पूंजी आने से एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि इससे गांवों के विकास में विदेशी पूंजी लगेगी। कुछ जानकारों का दावा है कि भारत में खुदरा बाज़ार में उतरने के लिए किसी भी विदेशी निवेशक को 100 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करना होगा। इस राशि में से 50 फीसदी यानी 100 अरब अमेरिकी डॉलर में से 50 अरब अमेरिकी डॉलर उन जगहों पर खर्च करना होगा, जहां से कंपनियां माल खरीदेंगी
 उपभोक्ता को सस्ते में मिलेगी चीजें: एफडीआई के समर्थक दक्षिण अमेरिकी देशों-ब्राजील और अर्जेंटीना का उदाहरण देकर यह कहते हैं कि उन देशों में रिटेल में एफडीआई की इजाजत के बाद करीब सभी चीजों के दाम करीब 18 फीसदी गिरे हैं.....

 बिचौलिए से छुटकारा: बाज़ार में सबसे ज्‍यादा फायदा बिचौलिए उठाते हैं। न तो किसी भी माल का उत्पादन करने वाले किसान और न ही वस्तु के अंतिम खरीदार (ग्राहक) को ही इसमें कोई फायदा होता है। बिचौलिए बेहद सस्ती दरों पर किसानों से उनके उत्पाद लेकर ग्राहकों को दूनी या कई बार तीन गुनी कीमत पर बेचते हैं। एफडीआई के समर्थक जानकारों का दावा है कि एफडीआई के आने से बिचौलिए गायब हो जाएंगे, जिससे किसानों को पहले से कहीं अधिक दाम मिलेगा और ग्राहकों को भी पहले की तुलना में काफी सस्ती चीजें मिल जाएंगी।
 
किराना नहीं लगेगा 'किनारे': खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के हामी जानकारों का दावा है कि देश में संगठित खुदरा दुकानों (जैसे बिग बाज़ार, वी मार्ट और मोर) को इजाजत दिए जाने के बाद किराना के कारोबार में 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जानकारों का यह भी दावा है कि भारती-वॉलमार्ट से करीब 30 हजार किराना स्टोर मालिक माल खरीदते हैं। इसकी वजह यही है कि इन किराना मालिकों को सस्ता माल मिलता है।

FDI से किसानों को फायदा

उपभोक्ता को सस्ते में मिलेगी चीजें: एफडीआई के समर्थक दक्षिण अमेरिकी देशों-ब्राजील और अर्जेंटीना का उदाहरण देकर यह कहते हैं कि उन देशों में रिटेल में एफडीआई की इजाजत के बाद करीब सभी चीजों के दाम करीब 18 फीसदी गिरे हैं...
किसानों को फायदा: देश में किसानों की हालत किसी से छुपी नहीं है। उनकी तंगहाली का आलम यह है कि पिछले कुछ सालों में हजारों किसानों ने खेती में घाटे के चलते आत्महत्या का रास्ता अपनाया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का तर्क है कि रिटेल में एफडीआई से किसानों को सीधा फायदा होगा। जानकार बताते हैं कि ब्राजील और अर्जेंटीना ने जब से रिटेल सेक्टर में एफडीआई की इजाजत दी है, तब से किसानों को मिलने वाले आर्थिक फायदे में 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है .......... .


खुदरा व्यापार में एफ.डी.आई के मुद्दे पर भाजपा घडियाली आंसू बहा रही है...सच यह है कि वह सैद्धांतिक तौर पर इसकी विरोधी नहीं है और केवल राजनीतिक रूप से इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है..
अगर भाजपा वालमार्ट की विरोधी होती तो भारती-वालमार्ट की कैश एंड कैरी यानी थोक व्यापार वाले स्टोर्स मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब में नहीं खुलते...आप भी देखिये कि वालमार्ट पहले से कहाँ-कहाँ मौजूद है: http://www.bharti-walmart.in/Ourstores-Overview.aspx
दूसरे, भाजपा के शोर-शराबे और नकली गुस्से पर मत जाइए...भाजपा के नेतृत्ववाली तत्कालीन एन.डी.ए सरकार के वित्त मंत्री जसवंत सिंह के इस इंटरव्यू को पढ़िए जिसमें वे खुदरा व्यापार में एफ.डी.आई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं: http://www.business-standard.com/india/news/jaswant-firmfdi-in-retail/149173/
यही नहीं, उसके २००४ के चुनाव घोषणापत्र में भी यह वायदा किया गया था कि सत्ता में आने पर वह खुदरा व्यापार में १०० प्रतिशत एफ.डी.आई की इजाजत देगी : http://www.indianexpress.com/news/10-years-ago-nda-had-pitched-for-100-fdi-in-retail-sector/882221/0