शुक्रवार, 15 जून 2018

जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत की वीरता ....


अंग्रेजो ने दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बन्दी बना लिया और मुगलो का जम कर कत्लेआम किया । सल्तनत खत्म होने से मुगल सेना कई टुकड़ो में बिखर गयी और देश के कई हिस्सों में जान बचा कर छुप गयी । पेट भरने के लिए कोई रोजगार उन्हें आता नही था क्योंकि मुगल सदैव चोरी लूटपाट और बलात्कार जेसे गन्दे और घृणित कार्यो में ही व्यस्त रहे इसलिए वो छोटे गिरोह बना कर लूटपाट करने लगे ।
बीकानेर रियासत में न्याय प्रिय राजा गंगा सिंह जी का शासन था जिन्होंने गंग नहर(सबसे बड़ी नहर) का निर्माण करवाया जिसको कांग्रेस सरकार ने इन्दिरा गांधी नहर नाम देकर हड़प लिया बनवाई थी ।
उन्ही की रियासत के गाँव आसलसर के जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत की वीरता और गौ और धर्म रक्षा के चर्चे सब और होते थे ।
"तीज" का त्यौहार चल रहा था और गाँव की सब महिलाये और बच्चियां गांव से 2 किलोमीटर दूर गाँव के तालाब पर गणगौर पूजने को गयी हुई थी और तालाब के समीप ही गांव की गाये भी चर रही थी उसी समय धूल का गुबार सा उठता सा नजर आया और कोई समझ पाता उससे पहले ही करीब 150 घुड़सवारों ने गायों को घेर कर ले जाना शुरू कर दिया । चारो तरफ भगदड़ मच गयी और सब महिलाये गाँव की और दौड़ी , उन गौओ में से एक उन मुगल लुटेरो का घेरा तोड़ कर भाग निकली तो एक मुसलमान ने भाला फेक मारा जो गाय की पीठ में घुस गया पर गाय रुकी नही और गाँव की और सरपट भागी ।
दोपहर का वक्त था और आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी भोजन करने बेठे ही थे की गाय माता की करुण रंभाने की आवाज सुनी , वो तुरन्त उठे और देखते ही समझ गए की मुसलमानो का ही कृत्य है उन्होंने गाँव के ढोली राणा को नगारा बजाने का आदेश दिया जिससे की गाँव के वीर लोग युद्ध के लिए तैयार हो सके पर सयोंगवश सब लोग खेतो में काम पर गए हुए थे , केवल पांच लोग इकट्ठे हुये और वो पाँच थे दीप सिंह जी के सगे भाई ।
सब ने शस्त्र और कवच पहने और घोड़ो पर सवार हुई तभी दो बीकानेर रियासत के सिपाही जो की छुटी पर घर जा रहे थे वो भी आ गए , दीप सिंह जी उनको कहा की आप लोग परिवार से मिलने छुट्टी लेकर जा रहे हो ,आप जाइये ,पर वो वीर कायम सिंह चौहान जी के वंशज नही माने और बोले हमने बीकानेर रियासत का नमक खाया है हम ऐसे नही जा सकते | युद के लिए रवाना होते ही सामने एक और वीर पुरुष चेतन जी भी मिले वो भी युद्ध के लिए साथ हो लिए । इस तरह आठ "8" योद्धा 150 मुसलमान सेनिको से लड़ने निकल पड़े और उनके साथ युद्ध का नगाड़ा बजाने वाले ढोली राणा जी भी ।
मुस्लिम सेना की टुकड़ी के चाल धीमी पड़ चुकी थी क्योंकि गायो को घेर कर चलना था । और उनका पीछा कर रहे जागीरदार दीप सिंह जी ने जल्दी ही उन मुगल सेनिको को "धाम चला" नामक धोरे पर रोक लिया , मुस्लिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मुखिया को इस बात का अंदाज नही था की कोई इतनी जल्दी अवरोध भी सामने आ सकता है ? उसे आश्चर्य और घबराहट दोनों महसूस हुई , आश्चर्य इस बात का की केवल आठ 8 लोग 150 अति प्रशिक्षित सैनिको से लड़ने आ गए और घबराहट इस बात की कि उसने आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी की वीरता के चर्चे सुने थे , उस मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने प्रस्ताव रखा की इस लूट में दो गाँवों की गाये शामिल है अजितसर और आसलसर , आप आसलसर गाँव की गाय वापस ले जाए और हमे निकलने दे पर धर्म और गौ रक्षक श्री दीप सिंह जी शेखावत ने बिलकुल मना कर दिया और कहा की "" ऐ मलेच्छ दुष्ट , ये गाय हमारी माता के सम्मान पूजनीय है कोई व्यपार की वस्तु नही ,तू सभी गौ माताओ को यही छोडेगा और तू भी अपने प्राण यही त्यागेगा ये मेरा वचन है " मुगल टुकड़ी के मुखिया का मुँह ये जवाब सुनकर खुला ही रह गया और फिर क्रोधित होकर बोला की "मार डालो सबको" ।
आठो वीरो ने जबरदस्त हमला किया जो मुसलमानो ने सोचा भी नही था कई घण्टे युद्ध चला और 150 मुसलमानो की टुकड़ी की लाशें जमीन पर आठ वीर योद्धाओ ने बिछा थी, । सभी गऊ माता को गाँव की और रवाना करवा दिया और गंभीर घायल सभी वीर पास में ही खेजड़ी के पेड़ के निचे अपने घावों की मरहमपट्टी करने लगे और गाँव की ही एक बच्ची को बोल कर पीने का पानी मंगवाया ,.| सूर्य देव रेगिस्तान की धरती को अपने तेज से तपा रहे थे और धरती पर मौजूद धर्म रक्षक देव अपने धर्म से ।।
सभी लोग खून से लथपथ हो चुके थे और गर्मी और थकान से निढाल हो रहे थे ,
आसमान में मानव मांस के भक्षण के आदि हो चुके सेंकडो गिद्द मंडरा रहे थे ., इतने ज्यादा संख्या में मंडरा रहे गीधों को लगभग 5 किलोमीटर दूर मौजूद दूसरी मुस्लिमो की टुकड़ी के मुखिया ने देखा तो किसी अनहोनी की आशंका से सिहर उठा ,उसने दूसरे साथियो को कहा " जरूर कोई खतरनाक युद्ध हुआ है वहां और काफी लोग मारे गए है इसलिए ही इतने गिद्ध आकाश में मंडरा रहे है " उसने तुरन्त उसी दिशा में चलने का आदेश दिया और वहां का द्रश्य देख उसे चक्कर से आ गए, 150 सेनिको की लाशें पड़ी है जिनको गिद्ध खा रहे है और दूर खेजड़ी के नीचे 8 आठ घायल लहू लुहान आराम कर रहे है ।
अचानक दीप सिंह शेखावत जी को कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ और उन्होंने देखा की 150 मुस्लिम सेनिक बिलकुल नजदीक पहुँच चुके है । वो तुरन्त तैयार हुए और अन्य साथियो को भी सचेत किया , सब ने फिर से कवच और हथियार धारण कर लिए और घायल शेर की तरह टूट पड़े ,,
खून की कमी तेज गर्मी और गंभीर घायल वीर योद्धा एक एक कर वीरगति को प्राप्त होने लगे , दीप सिंह जी छोटे सगे भाई रिड़मल सिंह जी और 3 तीन अन्य सगे भाई वीरगति को प्राप्त हुए पर तब तक इन वीरो ने मुगल सेना का बहुत नुकसान कर दिया था ।
"7 " सात लोग वीरगति को प्राप्त कर चुके थे और युद्ध अपनी चरम सीमा पर था , अब जागीरदार दीप सिंह जी अकेले ही अपना युद्ध कोशल दिखा कर मलेछो के दांत खट्टे कर रहे की तभी एक मुगल ने धोखे से वार करके दीप सिंह की गर्दन धड़ से अलग कर दी ।
और और मुगल सेना के मुखिया ने जो द्रश्य देखा तो उसकी रूह काँप गयी । दीप सिंह जी धड़ बिना सिर के दोनों हाथो से तलवार चला रहा था धीरे धीरे दूसरी टुकड़ी के 150 मलछ् में से केवल दस ग्यारह मलेच्छ ही जिन्दा बचे थे । बूढ़े मुगल मुखिया ने देखा की धड़ के हाथ नगारे की आवाज के साथ साथ चल रहे है उसने तुरंत जाकर निहथे ढोली राणा जी को मार दिया । ढोली जी के वीरगति को प्राप्त होते ही दीप सिंह का शरीर भी ठंडा पड़ गया । वो मुग़ल मुखिया अपने सात" 7" आदमियो के साथ जान बचा कर भाग निकला और जाते जाते दीप सिंह जी की सोने की मुठ वाली तलवार ले भागा ।
लगभग 100 किलोमीटर दूर बीकानेर रियासत के दूसरे छोर पर भाटियो की जागीरे थी जो अपनी वीरता के लिए जाने पहचाने जाते है। मुगल टुकड़ी के मुखिया ने एक भाटी जागीरदार के गाँव में जाकर खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था मांगी और बदले में सोने की मुठ वाली तलवार देने की पेशकश करी ।।
भाटी जागीरदार ने जेसे ही तलवार देखी चेहरे का रंग बदल गया और जोर से चिल्लाये ,,"" अरे मलेछ ये तलवार तो आसलसर जागीरदार दीप सिंह जी की है तेरे पास कैसे आई ?" मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने डरते डरते पूरी घटना बताई और बोला ठाकुर साहब 300 आदमियो की टुकड़ी को गाजर मूली जेसे काट डाला और हम 10 जने ही जिन्दा बच कर आ सके । भाटी जागीरदार दहाड़ कर गुस्से से बोले अब तुम दस भी मुर्दो में गिने जाओगे और उन्होंने तुरंत उसी तलवार से उन मलेछो के सिर कलम कर दिए ।।
और उस तलवार को ससम्मान आसलसर भिजवा दिया।।
ये सत्य घटना आसलसर गाँव की है और दीप सिंह जी जो इस गाँव के जागीरदार थे आज भी दीपसिंह जी की पूजा सभी समाज के लोग श्रदा से करते है। और हाँ वो "धामचला " धोरा जहाँ युद्ध हुआ वहां आज भी युद्ध की आवाजे आती है और इनकी पत्नी सती के रूप में पूजी जाती है और उनके भी चमत्कार के चर्चे दूर दूर तक है।
आज जो टीवी फिल्मो के माध्यम से दिखाया जाता है किसी भी गाँव के जागीरदार या सामंत सिर्फ शोषण करते थे और कर वसूल करते थे उनके लिए करारा जवाब है । गाँव के मुखिया होते हुए भी इनकी जान बहुत सस्ती हुआ करती थी कैसी भी मुसीबत आये तो मुकाबले में आगे भी ठाकुर ही होते थे। गाँव की औरतो बच्चो गायों और ब्राह्मणों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहते थे। सत् सत् नमन है ऐसे वीर योद्धाओ को.......

इस्लाम बनाम अन्य....??


आज इस्लाम इंग्लैंड में दूसरा सबसे बड़ा धर्म बन गया है।
यों तो अब भी इंग्लैंड में मुस्लिमों की आबादी कुल आबादी का 5 प्रतिशत है, लेकिन लंदन में मुस्लिमों की आबादी 12 प्रतिशत से अधिक है। लंदन बोरो के कई सबर्ब्स, ब्लैकबर्न, ब्रैडफ़र्ड जैसे इलाक़ों में यह आंकड़ा तो 25 से 35 प्रतिशत तक चला गया है। यह बहुत बहुत बड़ा नम्बर है। और ये नम्बर्स तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।
बर्मिंघम में 21, लेस्टर में 19 प्रतिशत, मैनचेस्टर में 16 प्रतिशत, वेस्टमिंस्टर में 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी हो चुकी है। आज लंदन का मेयर ख़ुद एक मुस्लिम है। और अब फ़िरंगियों को महसूस होने लगा है कि गंगा जमुनी का क्या मतलब होता है।
आज इंग्लैंड में 130 से ज़्यादा शरीया कोर्ट संचालित हो रही हैं ये मुस्लिम आर्बिट्रेशन ट्रायब्यूनल कहलाती हैं। इंग्लैंड के मुस्लिम अपने मामलात का निपटारा करने इन शरीया अदालतों में जाते हैं।
यूनिवर्सल सिविल कोड की ऐसी की तैसी! हम अपना ख़ुद का क़ानून चलाएंगे!
साल 2011 में यूके के मुस्लिमों ने मांग की थी कि जिन इलाक़ों में मुस्लिम आबादी अधिक हो गई है, वहां ब्रिटिश कॉमन लॉ को समाप्त कर शरीया लागू किया जाए और अनेक मुस्लिम बस्तियों में इस आशय के पोस्टर लगा दिए गए थे कि "अब आप शरीया द्वारा नियंत्रित क्षेत्र में हैं!" दूसरे शब्दों में अगर कोई ब्रिटिश महिला भूल से इन इलाक़ों में हिजाब पहने बिना घुस जाए तो उसकी ख़ैर नहीं। जबकि वो उसका ही मुल्क़ है!
आज से बीस साल बाद अगर इंग्लैंड में एक छोटा-मोटा पाकिस्तान बंटवारे की मांग कर ले तो लॉर्ड माउंटबेटन की रूह को क़ब्र में बहुत बेचैनी महसूस होनी चाहिए, है ना?
लंदन ग्लोबल सिटी है। एक ज़माने में पूरी दुनिया लंदन से चलती थी। लेकिन आज वहां शरीयत, बुर्क़ा, इस्लामिक अदालतें, और सघन मुस्लिम बस्तियां। मैनेचेस्टर से इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन की शुरुआत हुई। वहां भी यही आलम।
अब यूके में फ़र्नाज़ एयरलाइंस की शुरुआत की गई है। मुस्लिमों के लिए विशेष उड़ानें, जिसमें पोर्क और शराब पर बैन और एयरहोस्टेस हिजाब पहनेंगी!
सेप्रेटिज़्म। अलगाववाद। जहां भी जाएं, वहां अलग-थलग। जैसे पानी की सतह पर तेल की परत तैरती है। शकर की तरह पानी में घुलती नहीं। इस बीमारी का कोई क्या इलाज करे?
दुनिया के बहुसंख्य मुस्लिम जहां भी, जिस भी सिस्टम के तहत रह रहे हैं, उन्हें वह मंज़ूर नहीं है, उन्हें अपने लिए शरीया चाहिए।
और शरीया क्या है? शरीया में हुदूद का कॉन्सेप्ट क्या है? यह हमारे आलिम लिबरल दोस्तों से पूछा जाना चाहिए। हुदूद यानी इस्लामिक दंडविधान। चोरी करने पर हाथ काट देना, व्यभिचार करने पर पत्थर मारकर मार डालना, इतना ही नहीं, धर्म बदल लेने पर सिर काट देना, यह बाक़ायदा हुदूद के अंदर लिखा गया है।
क्या बर्तानवी हुक़ूमत ने इतनी तरक़्क़ी यही दिन देखने के लिए की थी? जिस एम्पायर का सूरज दुनिया में कहीं डूबता नहीं था, आज उसके अपने घर में अंधकार व्याप्त हो रहा है।
सभ्यता के व्यतिक्रम की वैसी स्थिति केवल दो ही मौक़ों पर निर्मित हो सकती है-
1) जनसांख्यिकीय असंतुलन, जिसके चलते आबादी में मुस्लिमों का प्रतिशत बढ़ता है।
2) लिबरल विचारधारा, जो बहुलता और समावेश के नाम पर शरीया को स्वीकार करती है।
तो सभ्यता की रक्षा का तरीक़ा क्या होगा? इसका ठीक उल्टा।
1) जनसांख्यिकी पर नियंत्रण।
2) लिबरल विचारधारा में निहित बहुसांस्कृतिक छल का निषेध।
ब्रिटेन आज लिबरलिज़्म की क़ीमत चुका रहा है।
इसके सामने जापान का उदाहरण लीजिए, जो आप अपने संरक्षणवाद यानी प्रोटेक्शनिज़्म के कारण सुखी है। आज जापान में मुस्लिम आबादी नगण्य है, दो लाख से भी कम। और जब मुस्लिम शरणार्थियों को स्वीकार करने की बात आती है तो जापान इससे सौ प्रतिशत इनकार कर देता है। इस संरक्षणवाद ने जापान की रक्षा की है।
चीन में पंद्रह से बीस लाख से अधिक मुस्लिम नहीं हैं। इनमें भी बड़ी तादाद शिनशियांग में रहने वाले उइगरों (तुर्क मुस्लिमों की एक नस्ल) की है, जो कि चीनी मुख्यधारा का हिस्सा नहीं हैं। शिनशियांग एक ऑटोनोमस रीजन है। और कितनी ख़ूबसूरत बात है कि शिनशियांग के मुस्लिमों को लम्बी दाढ़ी रखने, हिजाब पहनने और यहां तक कि रोज़ा रखने की भी मनाही है। गुड! वेलडन, चाइना!
आपको लगता है कि चीन में कम्युनिस्ट हुक़ूमत है, फिर भी वो ऐसा क्यूं कर रही है, तो आपको बता दूं कि कम्युनिस्ट हुक़ूमतें अपने मुल्क में मज़हबों के साथ ऐसा ही सलूक़ करती हैं, दूसरों मुल्क़ों को लेकर उनकी चाहे जो पॉलिसी हो।
चीन उन्नीस है, तो क्यूबा इक्कीस है! चीन से बड़ा वाला कम्युनिस्ट! तो सुनिए, आज क्यूबा में मुस्लिमों की तादाद दस हज़ार से भी कम है और एक भी मस्जिद क्यूबा में नहीं है। जब तुर्की के रिलीजियस अफ़ेयर्स फ़ाउंडेशन द्वारा क्यूबा में मस्जिद खुलवाने की चेष्टा की गई तो उसे हुक़ूमत द्वारा ख़ारिज़ कर दिया गया।
लिबरलों को नींद से जाग जाना चाहिए कि उनके प्रिय कम्युनिस्ट मुल्क़ "मल्टीकल्चरलिज़्म" की कैसी बारह बजा रहे हैं।
अफ्रीका में एक ख़ूबसूरत मुल्क है अंगोला। ख़ूबसूरत इसलिए कि अंगोला में इस्लाम पर ही पाबंदी है! वहां पर इस्लाम को क़ानूनी मान्यता ही नहीं प्रदान की गई है। इसके बावजूद अंगोला में कोई 90 हज़ार मुस्लिम रह रहे हैं, लेकिन मस्जिद और मदरसे के बिना।
अगर अंगोला में जी सकते हैं तो पूरी दुनिया में भी जी सकते हैं!
चेक गणराज्य का भी मुस्लिमों के प्रति यही रुख़ है। पोलैंड के 16 राज्यों से शरीया समाप्त करने के लिए क़ानून बनाए जा रहे हैं। नीदरलैंड्स में सांसदगण मस्जिदों पर बैन लगवाने की बात कर रहे हैं। डेनमार्क में बुर्क़ों पर बैन लगा ही दिया गया है। इधर नॉर्वे ने भी एक अनूठा प्रयोग किया। अपराधों में बढ़ोतरी दर्ज किए जाने के बाद जब उसने इसकी जड़ में जाने की कोशिश की तो पाया कि समस्या कहां पर है। उसने कोई दो हज़ार मुस्लिमों को डिपोर्ट कर दिया। नतीजा, अपराधों की दर में 72 फ़ीसदी की गिरावट आ गई। माशाअल्ला!
म्यांमार में रोहिंग्याओं के साथ क्या हुआ, सभी जानते हैं। लेकिन जो हुआ, वैसा क्यों हुआ, इसकी तफ़सीलें जानने की कोशिश करेंगे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आएंगे। लेकिन उन कारणों में किनकी दिलचस्पी है? हिंदुस्तान की तो यक़ीनन नहीं, जिसने रोहिंग्याओं को शरण दी है। और ब्रिटेन को भी हरगिज़ नहीं, जो बहुत आला दर्जे का लिबरल मुल्क़ है। तो फिर साहब, भुगतिये!
"इस्लाम बनाम अन्य" की थ्योरी के मूल में यही है।
यह कि हम तो चाहते हैं कि आप हमारे साथ मिल-जुलकर रहें और सभ्य तरीक़े से रहें। लेकिन अगर आप ही ऐसा नहीं चाहते तो फिर हम आपके ख़िलाफ़ एकजुट होकर रहेंगे। क्योंकि मानवीय सभ्यता की रक्षा बहुत ज़रूरी है।
सुनामी से मर जाएं, इबोला से मर जाएं, उल्कापिंड के टकराने से मर जाएं, ग्लोबल वॉर्मिंग से मर जाएं, देखा जाएगा।
लेकिन इस्लाम को यह इजाज़त नहीं दी जाएगी कि मनुष्यता का अंत कर दे।
हरगिज़ नही।।