भाजपा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद मोदी ने कहा,
‘मैं पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के प्रति बहुत कृतज्ञ हूं कि उन्होंने न
केवल मुझे नयी जिम्मेदारी सौंपी है बल्कि कार्यकर्ताओं और देश की जनता के
सामने बहुत सम्मान भी दिया है.’ मोदी ने कहा, ‘राजनाथ जी बोलने के लिए खड़े
हुए और मुझे बैठने को कहा. बाहर जो लोग बैठे हैं उनके लिए इसके महत्व को
समझना कठिन है. कोई व्यक्ति केवल पद होने पर ऐसा नहीं करता बल्कि उसके लिए
बड़ा दिल होना भी जरूरी है. इसे दरियादिली कहते हैं, जो पार्टी अध्यक्ष ने
दिखाई.’ मोदी ने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा लेकिन माना जा रहा है कि ऐसी
टिप्पणी करके उन्होंने आडवाणी और कुछ अन्य नेताओं की ओर इशारा किया जो
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नहीं हुए.।
हमारे देश में कई लोगो को ही नहीं बल्कि कई पार्टियों को यह सक ,.नरेन्द्र मोदी को बीजेपी पार्टी की चुनाव सिमित का प्रमुख बनाया है जिसमे की नरेन्द्र मोदी की जीत हुई है पर सिक्के का दुसरा पहलु भी है। आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच के संभावित रिफ्ट का फायदा उठाकर राजनाथ सिंह की यह सियासी जीत है। ऊपर से जो नरेंद्र मोदी की जीत लग रही है, उनका उभरना लग रहा है, वह वास्तव में राजनाथ सिंह की सफलता है। नरेंद्र मोदी का बीजेपी में अहम स्थान तो होना ही था, उन्हें एक किसी औपचारिक पद पर लाकर कार्यकर्ताओं को खुश करना ही पड़ता। राजनाथ सिंह इन दो तथ्यों को लेकर ही आगे बढ़े। आडवाणी कहते रहे कि इस बार और नरेंद्र को वेटिंग में रखा जाए, फिर अगला चुनाव उन्हें दे देंगे। किंतु कांग्रेस की नाकामयाबियों के चलते देश के फेवर टू अदर्स माहौल का फायदा भी तो उठाना है। इसे फेवर टू बीजेपी बनाना है, तो स्ट्रोंग फैसले करना होंगे। राजनाथ सिंह ने इस बात का पूरा ख्याल रखा। अब जब मोदी मैदान में हैं, प्रचार कमेटी के जरिए कार्यकर्ताओं के सीधे संपर्क में रहेंगे, तो राजनाथ सिंह को दो बड़े फायदे मिलेंगे, पहला तो उनके सांगठनिक नेतृत्व में पार्टी जीतेगी, तो दूसरा मोदी सौ फीसदी मेजोरिटी नहीं ला पाएंगे, तब कुछ सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में मोदी के नाम से देश के आधे से ज्यादा तथाकथित सेकुलर साथ नहीं आएंगे और अगर आएंगे तो अनअफोर्डेबल कंडीशन के साथ फिर क्या, ऑप्शन है ? आडवाणी ? तो राजनाथ सिंह यहां पर अपने दोनों ही मकसदों में कामयाब हुए हैं, एक तो मोदी को आगे बढ़ाने में और आडवाणी को मुकम्मल तौर पर किनारा करने में। चूंकि जब ढफली बजेगी कौन है सेकुलर या कौन है भाजपा में सर्वग्राह्य आदमी, तो खोज की सुई आडवाणी पर नहीं राजनाथ सिंह पर रुकेगी। अगर अभी आडवाणी भी मोदी-मोदी कर रहे होते, तो वे पीएम की रेस में सबसे आगे होते। इसलिए एक अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह इस रिफ्ट को बढ़ाना ही चाहते थे।
मोदी तो परीक्षाएं ही देते रह जाएंगे, पहली तो गुजरात में लगातर साबित करते रहने की, दूसरी नवीनतम 6 लोस एवं विस चुनावों में सफलता, तीसरी पार्टी में कोई औपचारिक रूप से अखिल भारतीय स्तर की 2014 के लोस चुनावों से जुड़ी जिम्मेदारी पाने की, चौथी परीक्षा बेहद कठिन पार्टी की जो सीटें एंटी इंकंबेंसी फैक्टर और कांग्रेस की खराब छवि के चलते आनी हैं उनसे वे कितना ज्यादा ला सकते हैं, पांचवी कम पड़ गईं सीटों का गणित वे कैसे बिठाएंगे, छठवीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासकर अमेरिकी नकारात्मक रुख को वे कैसे चेंज करेंगे, सातवीं परीक्षा मोदी की वह होगी जिसमें वे लोगों की महा अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, चूंकि अब लोगों को शांतिपूर्ण कैंडल मार्च, लालकिले पर प्रर्दशन की लपक लग चुकी है, फिर चाहे सरकार का मुखिया मनमोहन हों या मोदी। यूं भी नेवर वोट कॉस्टिंग पार्टिसिपेंट्स वोकेल ऑन इंटरनेट स्पेस प्रोटेस्टर्स के ऊपर यह ज्यादा दबाव है कि वे प्रो बीजेपी हैं, तो वे कुछ अनावश्क मुद्दों पर भी नई सरकार को घेरेंगे। देखिए परीक्षाओं की इतनी सीढिय़ां अगर कोई चढ़ सकता है तो वह बेशक नेता है और फिर सर्वस्वीकार्य है ही । अब यह नेता 2014 के लोकसभा चुनाव में क्या कारनामा दिखाते है यह इन्तजार करना होगा।
हमारे देश में कई लोगो को ही नहीं बल्कि कई पार्टियों को यह सक ,.नरेन्द्र मोदी को बीजेपी पार्टी की चुनाव सिमित का प्रमुख बनाया है जिसमे की नरेन्द्र मोदी की जीत हुई है पर सिक्के का दुसरा पहलु भी है। आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच के संभावित रिफ्ट का फायदा उठाकर राजनाथ सिंह की यह सियासी जीत है। ऊपर से जो नरेंद्र मोदी की जीत लग रही है, उनका उभरना लग रहा है, वह वास्तव में राजनाथ सिंह की सफलता है। नरेंद्र मोदी का बीजेपी में अहम स्थान तो होना ही था, उन्हें एक किसी औपचारिक पद पर लाकर कार्यकर्ताओं को खुश करना ही पड़ता। राजनाथ सिंह इन दो तथ्यों को लेकर ही आगे बढ़े। आडवाणी कहते रहे कि इस बार और नरेंद्र को वेटिंग में रखा जाए, फिर अगला चुनाव उन्हें दे देंगे। किंतु कांग्रेस की नाकामयाबियों के चलते देश के फेवर टू अदर्स माहौल का फायदा भी तो उठाना है। इसे फेवर टू बीजेपी बनाना है, तो स्ट्रोंग फैसले करना होंगे। राजनाथ सिंह ने इस बात का पूरा ख्याल रखा। अब जब मोदी मैदान में हैं, प्रचार कमेटी के जरिए कार्यकर्ताओं के सीधे संपर्क में रहेंगे, तो राजनाथ सिंह को दो बड़े फायदे मिलेंगे, पहला तो उनके सांगठनिक नेतृत्व में पार्टी जीतेगी, तो दूसरा मोदी सौ फीसदी मेजोरिटी नहीं ला पाएंगे, तब कुछ सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में मोदी के नाम से देश के आधे से ज्यादा तथाकथित सेकुलर साथ नहीं आएंगे और अगर आएंगे तो अनअफोर्डेबल कंडीशन के साथ फिर क्या, ऑप्शन है ? आडवाणी ? तो राजनाथ सिंह यहां पर अपने दोनों ही मकसदों में कामयाब हुए हैं, एक तो मोदी को आगे बढ़ाने में और आडवाणी को मुकम्मल तौर पर किनारा करने में। चूंकि जब ढफली बजेगी कौन है सेकुलर या कौन है भाजपा में सर्वग्राह्य आदमी, तो खोज की सुई आडवाणी पर नहीं राजनाथ सिंह पर रुकेगी। अगर अभी आडवाणी भी मोदी-मोदी कर रहे होते, तो वे पीएम की रेस में सबसे आगे होते। इसलिए एक अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह इस रिफ्ट को बढ़ाना ही चाहते थे।
मोदी तो परीक्षाएं ही देते रह जाएंगे, पहली तो गुजरात में लगातर साबित करते रहने की, दूसरी नवीनतम 6 लोस एवं विस चुनावों में सफलता, तीसरी पार्टी में कोई औपचारिक रूप से अखिल भारतीय स्तर की 2014 के लोस चुनावों से जुड़ी जिम्मेदारी पाने की, चौथी परीक्षा बेहद कठिन पार्टी की जो सीटें एंटी इंकंबेंसी फैक्टर और कांग्रेस की खराब छवि के चलते आनी हैं उनसे वे कितना ज्यादा ला सकते हैं, पांचवी कम पड़ गईं सीटों का गणित वे कैसे बिठाएंगे, छठवीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासकर अमेरिकी नकारात्मक रुख को वे कैसे चेंज करेंगे, सातवीं परीक्षा मोदी की वह होगी जिसमें वे लोगों की महा अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, चूंकि अब लोगों को शांतिपूर्ण कैंडल मार्च, लालकिले पर प्रर्दशन की लपक लग चुकी है, फिर चाहे सरकार का मुखिया मनमोहन हों या मोदी। यूं भी नेवर वोट कॉस्टिंग पार्टिसिपेंट्स वोकेल ऑन इंटरनेट स्पेस प्रोटेस्टर्स के ऊपर यह ज्यादा दबाव है कि वे प्रो बीजेपी हैं, तो वे कुछ अनावश्क मुद्दों पर भी नई सरकार को घेरेंगे। देखिए परीक्षाओं की इतनी सीढिय़ां अगर कोई चढ़ सकता है तो वह बेशक नेता है और फिर सर्वस्वीकार्य है ही । अब यह नेता 2014 के लोकसभा चुनाव में क्या कारनामा दिखाते है यह इन्तजार करना होगा।