मंगलवार, 11 जून 2013

!! महाराणा प्रताप जी की जयन्ती पर आप सभी को बहुत बहुत शुभ कामनाये !!

महाराणा प्रताप जी की जयन्ती पर आप सभी को बहुत बहुत शुभ कामनाये ! 


मित्रों एक कविता पेश कर रहा हु (स्वरचित नहीं है) इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी के सन्दर्भ में ,क्षत्रिय राजपूत सिरोमणि महाराणा प्रताप जी की वीरता और त्याग की मिसाल मिलना दुर्लभ है  !

 चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल–पानी को।
राणा प्रताप सिर काट–काट
करता था सफल जवानी को।।

कलकल बहती थी रण–गंगा
अरि–दल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी
चटपट उस पार लगाने को।।

वैरी–दल को ललकार गिरी¸
वह नागिन–सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो¸बचो¸
तलवार गिरी¸ तलवार गिरी।।

पैदल से हय–दल गज–दल में
छिप–छप करती वह विकल गई!
क्षण कहां गई कुछ¸ पता न फिर¸
देखो चमचम वह निकल गई।।

क्षण इधर गई¸ क्षण उधर गई¸
क्षण चढ़ी बाढ़–सी उतर गई।
था प्रलय¸ चमकती जिधर गई¸
क्षण शोर हो गया किधर गई।

क्या अजब विषैली नागिन थी¸
जिसके डसने में लहर नहीं।
उतरी तन से मिट गये वीर¸
फैला शरीर में जहर नहीं।।

थी छुरी कहीं¸ तलवार कहीं¸
वह बरछी–असि खरधार कहीं।
वह आग कहीं अंगार कहीं¸
बिजली थी कहीं कटार कहीं।।

लहराती थी सिर काट–काट¸
बल खाती थी भू पाट–पाट।
बिखराती अवयव बाट–बाट
तनती थी लोहू चाट–चाट।!

सेना–नायक राणा के भी
रण देख–देखकर चाह भरे।
मेवाड़–सिपाही लड़ते थे
दूने–तिगुने उत्साह भरे।।

क्षण मार दिया कर कोड़े से
रण किया उतर कर घोड़े से।
राणा रण–कौशल दिखा दिया
चढ़ गया उतर कर घोड़े से।।

क्षण भीषण हलचल मचा–मचा
राणा–कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह
रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।

वह हाथी–दल पर टूट पड़ा¸
मानो उस पर पवि छूट पड़ा।
कट गई वेग से भू¸ ऐसा
शोणित का नाला फूट पड़ा।।

जो साहस कर बढ़ता उसको
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ–बीच फेंक¸
बरछे पर उसको रोक दिया।।

क्षण उछल गया अरि घोड़े पर¸
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर।
वैरी–दल से लड़ते–लड़ते
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।।

क्षण भर में गिरते रूण्डों से
मदमस्त गजों के झुण्डों से¸
घोड़ों से विकल वितुण्डों से¸
पट गई भूमि नर–मुण्डों से।।

ऐसा रण राणा करता था
पर उसको था संतोष नहीं
क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह
पर कम होता था रोष नहीं।।

कहता था लड़ता मान कहां
मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां।
जिस पर तय विजय हमारी है
वह मुगलों का अभिमान कहां।।

भाला कहता था मान कहां¸
घोड़ा कहता था मान कहां?
राणा की लोहित आंखों से
रव निकल रहा था मान कहां।।

लड़ता अकबर सुल्तान कहां¸
वह कुल–कलंक है मान कहां?
राणा कहता था बार–बार
मैं करूं शत्रु–बलिदान कहां?।।

तब तक प्रताप ने देख लिया,
लड़ रहा मान था हाथी पर।
अकबर का चंचल साभिमान
उड़ता निशान था हाथी पर।।

वह विजय–मन्त्र था पढ़ा रहा¸
अपने दल को था बढ़ा रहा।
वह भीषण समर–भवानी को
पग–पग पर बलि था चढ़ा रहा।।

फिर रक्त देह का उबल उठा
जल उठा क्रोध की ज्वाला से।
घोड़े से कहा बढ़ो आगे¸
बढ़ चलो कहा निज भाला से।।

हय–नस नस में बिजली दौड़ी¸
राणा का घोड़ा लहर उठा।
शत–शत बिजली की आग लिए,
वह प्रलय–मेघ–सा घहर उठा।।

क्षय अमिट रोग¸ वह राजरोग¸
ज्वर सन्निपात लकवा था वह।
था शोर बचो घोड़ा–रण से
कहता हय कौन¸ हवा था वह।।

तनकर भाला भी बोल उठा,
राणा मुझको विश्राम न दे।
बैरी का मुझसे हृदय गोभ,
तू मुझे तनिक आराम न दे।।

खाकर अरि–मस्तक जीने दे¸
बैरी–उर–माला सीने दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी
बढ़ने दे¸ शोणित पीने दे।।

मुरदों का ढेर लगा दूं मैं¸
अरि–सिंहासन थहरा दूं मैं।
राणा मुझको आज्ञा दे दे
शोणित सागर लहरा दूं मैं।।

रंचक राणा ने देर न की¸
घोड़ा बढ़ आया हाथी पर।
वैरी–दल का सिर काट–काट
राणा चढ़ आया हाथी पर।।

गिरि की चोटी पर चढ़कर
किरणों निहारती लाशें¸
जिनमें कुछ तो मुरदे थे¸
कुछ की चलती थी सांसें।।

वे देख–देख कर उनको
मुरझाती जाती पल–पल।
होता था स्वर्णिम नभ पर
पक्षी–क्रन्दन का कल–कल।।

मुख छिपा लिया सूरज ने
जब रोक न सका रूलाई।
सावन की अन्धी रजनी
वारिद–मिस रोती आई।।

!! आडवाणी जी की कुछ गलतिया जिसके कारण आज ये दिन देखना पडा !!

लालकृष्ण आडवाणी जी भाजपा को दो से 180 सीटों तक लेकर आए हैं। मगर उन्हें अपनी ही पार्टी के भीतर कई बार दांवपेंच में उलझना पड़ा। उन्हें कई बार अपनी बात मनवाने के लिए मनोवैज्ञानिक संघर्ष करने पर मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं वे बेहद उग्र स्वभाव के भी माने जाते हैं। छोटीछोटी बातों पर नाराज भी होते हैं। अटल जी से उनकी कई मौकों पर परदे के पीछे सियासी दांवपेंच भी चली। वे साइकोलॉजी व इमोशन के भंवर से कई बार जीतकर बाहर निकले, लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है।
            
 खुद को भाजपा का भीष्म पितामह मानने वाले आडवाणी जी को अगर आज ये दिन देखने पड़े हैं, तो कहीं न कहीं इसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं। अब तो कांग्रेस भी ये कहने लगी है कि जो जैसा बोता है, वैसा ही फल काटता है। .
एक म्यान में दो तलवार तो नहीं आती पर दो तलवारों की दोस्ती संभव है
       1989 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने की योजना बनाई। मकसद थादेश में हिंदुत्व की लहर पैदा करना। अटल जी ने विरोध किया। लेकिन आडवाणी जी ने उनकी नहीं सुनी। इस बात को 25 दिसंबर 2009 को आडवाणी जी ने मीडिया से कहा। उन्होंने कहा था अटल जी खुद को लोकतांत्रिक दिखाना चाहते थे, लेकिन मैं सहमत नहीं था।
                     1992 में बाबरी विध्वंस हो गया। आडवाणी जी समेत पूरी भाजपा में मौन जश्न मन रहा था। लेकिन अटल जी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे। तब संसद में उन्होंने अपना दुख इन शब्दों में बयां किया था। 'इस उम्र में मैं पार्टी छोड़कर जा भी नहीं सकता। आज पार्टी जीत गई, लेकिन मैं हार गया।
             अटल जी को आडवाणी जी ने ही भावी प्रधानमंत्री घोषित किया था। वे परोक्ष रूप से सत्ता में दखल चाहते थे। इसीलिए उन्होंने 1999 में संघ के जरिये पार्टी पर दबाव बढ़ाया और रातोंरात उपप्रधानमंत्री मनोनीत हो गए ...
                 2002 के गुजरात दंगे के बाद मोदी जी से प्रधानमंत्री अटलबिहारी जी नाराज थे। पार्टी के कई नेता भी चाहते थे कि मोदी जी को हटा दिया जाए। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसा हुआ तो कांग्रेस से हर मुद्दा छिन जाएगा और देश भी नहीं बंटेगा। लेकिन आडवाणी जी अड़ गए। कहा मोदी को किसी कीमत पर नहीं हटाया जाए। इससे पार्टी खत्म हो जाएगी। नहीं सुनी अटल जी की। वही किया जो खुद चाहते थे।
          2004 की घटना। अटल जी बीमार रहने लगे थे। आडवाणी जी आगे बढऩा चाहते थे। आडवाणी जी को इसके लिए प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली की मदद चाहिए थी। इनका साथ लेने के लिए आडवाणी जी ने उमा जी का साथ छोड़ा। क्योंकि ये चारों नेता हर हाल में उमा को पार्टी से निकालना चाहते थे। इन्हें आडवाणी जी की और आडवाणी जीको इनकी जरूरत थी। अंतत: उमा जी भाजपा से निकाल दी गई। तब उमा जी ने अटल जी को पत्र लिखा था जिसमें कहा था "यहां एक विमान चालक (अटलजी) है और 5 विमान अपहरणकर्ता "
              2013 में बताई दिल की बात। आडवाणी ने गोवा बैठक के दौरान ब्लॉग लिखा। महाभारत के कई प्रसंगों का जिक्र किया। पार्टी को द्रौपदी, खुद को भीष्म पितामह और संघ को धृतराष्ट्र की संज्ञा दी। एक किस्सा भी सुनाया। जिसमें संकेतों में खुद को पोप और मोदी-राजनाथ को हिटलर-मुसोलिनी बताया। विपक्ष ने चुटकी ली और कहा, आडवाणी आज पछता रहे होंगे कि आखिर उन्होंने मोदी को बचाया क्यों ?
     2013 में बताई दिल की बात से ही आडवाणी जी के बीजेपी से पराभाव की राजनीति सुरु हुई और 2013 ख़त्म होने के पहले ही ये दिन देखने पद गए
     कुछ भी आडवाणी जी को आज भी बीजेपी की जरुरत है , इस उम्र के पड़ाव में आडवाणी जी की कोई राजनैतिक कैरियर नहीं बचता है ..ये भी निश्चय है की आद्चानि जी यदि कोई दूसरी पार्टी बनाए है तो ओ सफल नहीं होगे क्योकि जो आज अडवानी जी के साथ है नई पार्टी बनाने के मुद्दे पर ओ सभी नेता आडवाणी जी का साथ छोड़ देगे और आडवाणी जी हालत धोबी के कुत्ते माफिक हो जायेगी " न घर के न घाट के " 
                पर बीजेपी को  भी अडवानी  जी की 2014 के लोकसभा चुनाव तक बहुत जरुरत है .बीजेपी के उच्च नेतृत्व को चाहिए की अडवानी  जी को कैसे भी मनाये पर मोदी जी की इज्जत बचा कर क्योकि बीजेपी का भविष्य मोदी जी के हाथ सुरक्षित है । नमो नाम की आंधी आई है बीजेपी में यह नमो नाम की अंधी में कांग्रेस उडेगी या नहीं ये तो भविष्य के गारत में छिपा हुआ है ।