लालकृष्ण आडवाणी जी भाजपा को दो से 180 सीटों तक लेकर आए हैं। मगर उन्हें
अपनी ही पार्टी के भीतर कई बार दांवपेंच में उलझना पड़ा। उन्हें कई बार
अपनी बात मनवाने के लिए मनोवैज्ञानिक संघर्ष करने पर मजबूर होना पड़ा। इतना
ही नहीं वे बेहद उग्र स्वभाव के भी माने जाते हैं। छोटीछोटी बातों पर
नाराज भी होते हैं। अटल जी से उनकी कई मौकों पर परदे के पीछे सियासी दांवपेंच
भी चली। वे साइकोलॉजी व इमोशन के भंवर से कई बार जीतकर बाहर निकले, लेकिन
इस बार मामला कुछ अलग है।
खुद को भाजपा का भीष्म पितामह मानने वाले आडवाणी जी को अगर आज ये दिन देखने पड़े हैं, तो कहीं न कहीं इसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं। अब तो कांग्रेस भी ये कहने लगी है कि जो जैसा बोता है, वैसा ही फल काटता है। .
1989 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने की योजना बनाई।
मकसद थादेश में हिंदुत्व की लहर पैदा करना। अटल जी ने विरोध किया। लेकिन
आडवाणी जी ने उनकी नहीं सुनी। इस बात को 25 दिसंबर 2009 को आडवाणी जी ने मीडिया
से कहा। उन्होंने कहा था अटल जी खुद को लोकतांत्रिक दिखाना चाहते थे, लेकिन
मैं सहमत नहीं था।
1992 में बाबरी विध्वंस हो गया। आडवाणी जी समेत पूरी भाजपा में मौन जश्न मन रहा था। लेकिन अटल जी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे। तब संसद में उन्होंने अपना दुख इन शब्दों में बयां किया था। 'इस उम्र में मैं पार्टी छोड़कर जा भी नहीं सकता। आज पार्टी जीत गई, लेकिन मैं हार गया।
अटल जी को आडवाणी जी ने ही भावी प्रधानमंत्री घोषित किया था। वे परोक्ष रूप से सत्ता में दखल चाहते थे। इसीलिए उन्होंने 1999 में संघ के जरिये पार्टी पर दबाव बढ़ाया और रातोंरात उपप्रधानमंत्री मनोनीत हो गए ...
2002 के गुजरात दंगे के बाद मोदी जी से प्रधानमंत्री अटलबिहारी जी नाराज थे। पार्टी के कई नेता भी चाहते थे कि मोदी जी को हटा दिया जाए। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसा हुआ तो कांग्रेस से हर मुद्दा छिन जाएगा और देश भी नहीं बंटेगा। लेकिन आडवाणी जी अड़ गए। कहा मोदी को किसी कीमत पर नहीं हटाया जाए। इससे पार्टी खत्म हो जाएगी। नहीं सुनी अटल जी की। वही किया जो खुद चाहते थे।
2004 की घटना। अटल जी बीमार रहने लगे थे। आडवाणी जी आगे बढऩा चाहते थे। आडवाणी जी को इसके लिए प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली की मदद चाहिए थी। इनका साथ लेने के लिए आडवाणी जी ने उमा जी का साथ छोड़ा। क्योंकि ये चारों नेता हर हाल में उमा को पार्टी से निकालना चाहते थे। इन्हें आडवाणी जी की और आडवाणी जीको इनकी जरूरत थी। अंतत: उमा जी भाजपा से निकाल दी गई। तब उमा जी ने अटल जी को पत्र लिखा था जिसमें कहा था "यहां एक विमान चालक (अटलजी) है और 5 विमान अपहरणकर्ता "
2013 में बताई दिल की बात। आडवाणी ने गोवा बैठक के दौरान ब्लॉग लिखा। महाभारत के कई प्रसंगों का जिक्र किया। पार्टी को द्रौपदी, खुद को भीष्म पितामह और संघ को धृतराष्ट्र की संज्ञा दी। एक किस्सा भी सुनाया। जिसमें संकेतों में खुद को पोप और मोदी-राजनाथ को हिटलर-मुसोलिनी बताया। विपक्ष ने चुटकी ली और कहा, आडवाणी आज पछता रहे होंगे कि आखिर उन्होंने मोदी को बचाया क्यों ?
2013 में बताई दिल की बात से ही आडवाणी जी के बीजेपी से पराभाव की राजनीति सुरु हुई और 2013 ख़त्म होने के पहले ही ये दिन देखने पद गए।
कुछ भी आडवाणी जी को आज भी बीजेपी की जरुरत है , इस उम्र के पड़ाव में आडवाणी जी की कोई राजनैतिक कैरियर नहीं बचता है ..ये भी निश्चय है की आद्चानि जी यदि कोई दूसरी पार्टी बनाए है तो ओ सफल नहीं होगे क्योकि जो आज अडवानी जी के साथ है नई पार्टी बनाने के मुद्दे पर ओ सभी नेता आडवाणी जी का साथ छोड़ देगे और आडवाणी जी हालत धोबी के कुत्ते माफिक हो जायेगी " न घर के न घाट के "
पर बीजेपी को भी अडवानी जी की 2014 के लोकसभा चुनाव तक बहुत जरुरत है .बीजेपी के उच्च नेतृत्व को चाहिए की अडवानी जी को कैसे भी मनाये पर मोदी जी की इज्जत बचा कर क्योकि बीजेपी का भविष्य मोदी जी के हाथ सुरक्षित है । नमो नाम की आंधी आई है बीजेपी में यह नमो नाम की अंधी में कांग्रेस उडेगी या नहीं ये तो भविष्य के गारत में छिपा हुआ है ।
खुद को भाजपा का भीष्म पितामह मानने वाले आडवाणी जी को अगर आज ये दिन देखने पड़े हैं, तो कहीं न कहीं इसके लिए वे खुद जिम्मेदार हैं। अब तो कांग्रेस भी ये कहने लगी है कि जो जैसा बोता है, वैसा ही फल काटता है। .
एक म्यान में दो तलवार तो नहीं आती पर दो तलवारों की दोस्ती संभव है |
1992 में बाबरी विध्वंस हो गया। आडवाणी जी समेत पूरी भाजपा में मौन जश्न मन रहा था। लेकिन अटल जी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे। तब संसद में उन्होंने अपना दुख इन शब्दों में बयां किया था। 'इस उम्र में मैं पार्टी छोड़कर जा भी नहीं सकता। आज पार्टी जीत गई, लेकिन मैं हार गया।
अटल जी को आडवाणी जी ने ही भावी प्रधानमंत्री घोषित किया था। वे परोक्ष रूप से सत्ता में दखल चाहते थे। इसीलिए उन्होंने 1999 में संघ के जरिये पार्टी पर दबाव बढ़ाया और रातोंरात उपप्रधानमंत्री मनोनीत हो गए ...
2002 के गुजरात दंगे के बाद मोदी जी से प्रधानमंत्री अटलबिहारी जी नाराज थे। पार्टी के कई नेता भी चाहते थे कि मोदी जी को हटा दिया जाए। इसके पीछे तर्क दिया कि ऐसा हुआ तो कांग्रेस से हर मुद्दा छिन जाएगा और देश भी नहीं बंटेगा। लेकिन आडवाणी जी अड़ गए। कहा मोदी को किसी कीमत पर नहीं हटाया जाए। इससे पार्टी खत्म हो जाएगी। नहीं सुनी अटल जी की। वही किया जो खुद चाहते थे।
2004 की घटना। अटल जी बीमार रहने लगे थे। आडवाणी जी आगे बढऩा चाहते थे। आडवाणी जी को इसके लिए प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली की मदद चाहिए थी। इनका साथ लेने के लिए आडवाणी जी ने उमा जी का साथ छोड़ा। क्योंकि ये चारों नेता हर हाल में उमा को पार्टी से निकालना चाहते थे। इन्हें आडवाणी जी की और आडवाणी जीको इनकी जरूरत थी। अंतत: उमा जी भाजपा से निकाल दी गई। तब उमा जी ने अटल जी को पत्र लिखा था जिसमें कहा था "यहां एक विमान चालक (अटलजी) है और 5 विमान अपहरणकर्ता "
2013 में बताई दिल की बात। आडवाणी ने गोवा बैठक के दौरान ब्लॉग लिखा। महाभारत के कई प्रसंगों का जिक्र किया। पार्टी को द्रौपदी, खुद को भीष्म पितामह और संघ को धृतराष्ट्र की संज्ञा दी। एक किस्सा भी सुनाया। जिसमें संकेतों में खुद को पोप और मोदी-राजनाथ को हिटलर-मुसोलिनी बताया। विपक्ष ने चुटकी ली और कहा, आडवाणी आज पछता रहे होंगे कि आखिर उन्होंने मोदी को बचाया क्यों ?
2013 में बताई दिल की बात से ही आडवाणी जी के बीजेपी से पराभाव की राजनीति सुरु हुई और 2013 ख़त्म होने के पहले ही ये दिन देखने पद गए।
कुछ भी आडवाणी जी को आज भी बीजेपी की जरुरत है , इस उम्र के पड़ाव में आडवाणी जी की कोई राजनैतिक कैरियर नहीं बचता है ..ये भी निश्चय है की आद्चानि जी यदि कोई दूसरी पार्टी बनाए है तो ओ सफल नहीं होगे क्योकि जो आज अडवानी जी के साथ है नई पार्टी बनाने के मुद्दे पर ओ सभी नेता आडवाणी जी का साथ छोड़ देगे और आडवाणी जी हालत धोबी के कुत्ते माफिक हो जायेगी " न घर के न घाट के "
पर बीजेपी को भी अडवानी जी की 2014 के लोकसभा चुनाव तक बहुत जरुरत है .बीजेपी के उच्च नेतृत्व को चाहिए की अडवानी जी को कैसे भी मनाये पर मोदी जी की इज्जत बचा कर क्योकि बीजेपी का भविष्य मोदी जी के हाथ सुरक्षित है । नमो नाम की आंधी आई है बीजेपी में यह नमो नाम की अंधी में कांग्रेस उडेगी या नहीं ये तो भविष्य के गारत में छिपा हुआ है ।
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