गोधरा काण्ड का सच- दंगे में 1004 लोग मारे गये, 12548 लोग घायल, 223 लापता, 919 महिलायें विधवा हुईं और 606 बच्चे अनाथ.....
गोधरा काण्ड भारतीय इतिहास का वो काला दिन जो मानो गुजरात की सरकार को चारो चारो तरफ से सवालो को घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। दंगों को कभी भी और किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता, चाहे वो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बंटवारे के समय हुए हों, या नौआखली में हुआ हिंदुआ का कत्लेआम हो, या 1984 में सिखों का कत्लेआम. हमेशा से भारत में साम्प्रदायिक दंगे होते रहे और उन पर राजनीति भी लीपापोती हुई और सब समाप्त लेकिन 2002 में गुजरात में हुए दंगों में कुछ अलग ही हुआ जो मानो भारतीय में सबस बड़ा काला दिन माना गया हो। दंगों में कुल 1044 लोग मारे गए, जिनमें 720 मुस्लिम और 254 हिन्दू थे. 12548 घायल, 223 लापता, 919 महिलायें विधवा हुईं और 606 बच्चे अनाथ. सात साल बाद लापता लोगों को भी मृत मान लिया गया और मृतकों की संख्या 1267 हो गयी. 1 मार्च 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई। पुलिस ने दंगों को रोकने में लगभग 10000 राउण्ड गोलियां चलायीं, जिनमें जिनमें 96 मुसलमानों और 77 हिन्दुओं की मौत हुई. दंगों के दौरान 17947 हिन्दुओं और 3616 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया बाद में कुल मिला कर 27901 हिन्दुओं को और 7651 मुस्लमों को गिरफ्तार किया गया.
कैसे शुरू हुआ दंगा
27 फरवरी 2002 के गोधरा काण्ड में 57 हिन्दू जलाकर मारे गए जिसमें 25 औरतें और 15 बच्चे भी शामिल थे. जिसके उपरान्त 27 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में दंगे भड़के जिसका प्रमुख कारण वो अफवाह थी जिसमें कहा गया की गोधरा काण्ड के बाद तीन हिन्दू लड़कियों का अपहरण मुस्लिमों ने कर लिया है हालांकि इस अफवाह के सच या झूठ की कितनी जांच पड़ताल हुई ये तो सरकार ही जाने . दंगों की शुरुआत गुलबर्ग सोसाइटी से हुई. तत्पश्चात मस्जिदों से ये ऐलान किया गया की ” दूध में जहर है और इस्लाम खतरे में है” और गुजरात के विभिन्न जिलों में दंगा फ़ैल गया. अहमदाबाद, वड़ोदरा, साबरकांठा, पंचमहल, मेहसाना, खेडा, जूनागड़, पतन,आनंद, नर्मदा और गांधीनगर जिलों में अधिकतर हमले हिन्दुओं ने मुस्लिमों पर किये तथा मोडासा, हिम्मतनगर, भरूच, राजकोट, सूरत, भंडेरी पोल तथा दानिलिम्डा में मुसलामानों ने हिन्दुओं पर हमले किये.
साबरमती एक्सप्रेस से शुरू हुआ दंगा
27 फरवरी 2002 की सुबह 7:30 बजे के लगभग साबरमती एक्सप्रेस के गोधरा स्टेशन पहुँचने के एक किलोमीटर पहले इस ट्रेन की एक बोगी के साथ ऐसा कुछ हुआ कि जिसने भारत के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने पर गहरा असर डाला. ये असर नकारात्मक था अथवा सकारात्मक, इसका उत्तर भविष्य के इतिहासविदों के लिए छोड़ते हुए एक गहरी नजर डालते हैं उस खौफनाक सुबह हुई लोमहर्षक घटना पर.
गोधरा में दंगों का है पुराना इतिहास
मुस्लिम बहुल गोधरा में दंगों का एक पुराना इतिहास रहा है. वीकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार गोधरा में 1947-48, 1953-55, 1965, 1980-81 और 1985 में भी भीषण दंगे हुए थे, जिन्हें नियंत्रित करने के लिए कई बार सेना की मदद भी लेनी पड़ी. 27 फरवरी 2002 की घटना के बाद दंगों की इस गाथा में एक काला अध्याय और जुड़ गया है. गोधरा की इस भीषण घटना में जीवित बचे एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार उस दिन सुबह गोधरा स्टेशन के पास 'सिग्नल फालिया' में लगभग 3000 लोग एकत्रित थे. द ट्रिब्यून (The Tribune)के अनुसार साबरमती एक्सप्रेस जैसे ही स्टेशन से आगे बढ़ी, गाड़ी में पहले से सवार हो चुके लोगों में से किसी ने चेन खींचकर ट्रेन रोक दी और तुरंत ही बाहर से भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया. इससे बचने के लिए अंदर बैठे यात्रियों ने दरवाजे और खिड़कियाँ बंद कर लीं. कुछ ही देर बाद बाहर से पेट्रोल और केरोसीन छिड़ककर डिब्बे में आग लगा दी गई. गोधरा के एक पेट्रोल पंप पर काम करनेवाले दो कर्मचारियों के अनुसार एक दिन पूर्व ही कुछ लोगों द्वारा उनके पेट्रोल-पंप से 140 लीटर पेट्रोल खरीदा गया था.
1500 लोगो ने मिलकर लगाई आग, 60 से ज्यादा लोग जिंदा जले
श्रीराम को दर्शन कर लौटे तीर्थयात्रियो के क्या मालूम था कि ये उनका अन्तिम दर्शन है। साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर S-6 में विश्व हिन्दू परिषद् (VHP) के कार-सेवक यात्रा कर रहे थे. इस बोगी को निशाना बना कर एक संप्रदाय विशेष के लोगों द्वारा हिन्दू विरोधी नारों के बीच आग लगा दी गई. बताया जाता है कि आग लगाने वालों की संख्या 1500 के क़रीब थी. इस अग्निकांड में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जिसमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे. कोच को आग के हवाले करने वाले लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि कोच एस 6 में कारसेवक और उनके परिवार वाले यात्रा कर रहे है. कोई हिंदू यात्री बोगी से बाहर ना निकल पाए इसीलिए योजना के अनुसार उन पर पत्थर भी बरसाए जाने लगे. इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस घटना को एक सोची-समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया. गुजरात पुलिस ने भी अपनी जांच में ट्रेन जलाने की इस वारदात को आईएसआई की साजिश ही करार दिया,जिसका मकसद हिन्दू कारसेवकों की हत्या कर राज्य में साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना था. इस हत्याकांड ने गुजरात की सामाजिक और राजनैतिक परिस्थिति को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया। वंही इस मामले में 1 मार्च 2011 में 11 लोगो को फांसी औऱ 20 को उम्र कैद की सजा सुनाई।
गोधरा कांड के बाद भड़के दंगे, 2002 के दंगे में 1044 लोगों की हुई थी मौत
गोधरा में कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा कार सेवकों को जलाने के बाद भड़के गुजरात दंगे को रोकने के लिए मुख्य्मंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कााल कदम उठाया था. इसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच करने वाले एसआईटी की रिपोर्ट में भी है. नानावती कमीशन ने भी लिखा है कि मोदी सरकार ने दंगों से निपटने में कोई कोताही नहीं बरती. यूपीए सरकार ने 11 मई 2005 में संसद के अंदर अपने लिखित जवाब में बताया था कि 2002 के दंगे में 1044 लोगों की मौत हुई थी,जिसमें से 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे. अब सवाल उठता है कि कांग्रेस, तीस्तां सितलवाड़,संजीव भट्ट और कांग्रेस व व विदेशी फंड पर पलने वाली मीडिया की बात यदि सच है तो फिर 254 हिंदुओं की हत्याा किसने की थी।
2012 में आया फैसला 19 मुकदमे में 249 लोगों को हुई सजा
27 फरवरी 2002 की सुबह अयोध्या से आ रहे 59 कार सेवकों को गोधरा रेलवे स्टे शन पर साबरमती एक्स प्रेस में जिंदा जला कर मार डाला गया था. इस घटना के बाद 28 फरवरी को गुजरात के विभिन्नय शहर में दंगे भड़कने शुरू हो गए. पहली और दूसरी मार्च को दंगा अपने उग्र रूप में था, लेकिन तीन मार्च को सरकार ने दंगे पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया था. इस दंगे में कुल 1044 लोगों की मौत हुई, जिसमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू शामिल थे. गुजरात दंगा पूरे आजाद भारत के इतिहास का एक मात्र दंगा है जिस पर अदालती फैसला इतनी शीघ्रता से आया है और इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सजा भी हुई है. अगस्तर 2012 में आए अदालती फैसले में 19 मुकदमे में 249 लोगों को सजा हुई है, जिसमें से 184 हिंदू और 65 मुसलमान हैं. इन 65 मुसलमान में से 31 को गोधरा में रेलगाड़ी जलाने और 34 को उसके बाद भड़के दंगे में संलिप्तसता के आधार पर सजा मिली है.
गोधरा और उसके बाद भड़के दंगे पर मोदी सरकार की कार्रवाई रिपोर्ट
जानकारी के लिए बता दें कि गुजरात दंगे की जांच सीधे सर्वोच्चर न्या यालय की निगरानी में हो रही है और ऐसा इस देश में पहली बार हो रहा है. अन्यकथा कांग्रेस सरकार में हुए कई दंगों की तो आज तक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई है. भाजपा प्रवक्ताह शाहनवाज हुसैन ने मीडिया से बातचीत में बताया था कि मलियाना में लाइन से मुस्लिमों को खड़ा कर गोली मार दी गई थी लेकिन आज तक उसमें कई मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित स्पेथशल इंवेस्टीमगेशन टीम (SIT) और गुजरात हाई कोर्ट द्वारा वर्ष 2005 में गठित जस्टिस नानावती कमीशन इस झूठ का पर्दाफाश करती है कि नरेंद्र मोदी ने गोधरा के बाद भड़के दंगे के बाद कार्रवाई करने में देरी की. रिपोर्ट की डिटेल
27 फ़रवरी 2002- गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
28 फ़रवरी 2002- गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए। मारे गए लोगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे।
03 मार्च 2002- गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया।
06 मार्च 2002- गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।
09 मार्च 2002- पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादसं की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंकत्र) लगाया।
25 मार्च 2002- केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया।
18 फ़रवरी 2003- गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।
21 नवंबर 2003- उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन जलाए जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगाई।
04 सितंबर 2004- राजद नेता लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश यूसी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जाँच का काम सौंपा गया।
21 सितंबर 2004- नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।
17 जनवरी 2005- यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
16 मई 2005- पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाए जाएँ।
13 अक्टूबर 2006- गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यूसी बनर्जी समिति का गठन‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जाँच कर रहा है। उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जाँच के परिणाम ‘अमान्य’ हैं।
26 मार्च 2008- उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जाँच के लिए विशेष जाँच आयोग बनाया।
18 सितंबर 2008- नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जाँच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंोत्र था और एस6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।
12 फ़रवरी 2009- उच्च न्यायालय ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता है।
20 फरवरी 2009- गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाए जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले पर सुनवाई अभी भी लंबित है।
01 मई 2009- उच्चतम न्यायालय ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जाँच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जाँच में तेजी आई।
01 जून 2009- गोधरा ट्रेन कांड की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर शुरू हुई।
06 मई 2010- उच्चतम न्यायालय सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े नौ संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका।
28 सितंबर 2010- सुनवाई पूरी हुई लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाए जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया।
18 जनवरी 2011- उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध हटाया।
22 फरवरी - विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।
1 मार्च 2011- विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।
दंगे के दौरान गुजरात पुलिस ने 103,559 राउंड गोलियां चलाई थी. इसमें से आधे से अधिक केवल 72 घंटे में चलाए गए थे.
पूरे दंगे के दौरान 66,268 हिंदू और 10,861 मुसलमानों को preventive detention law के तहत हिरासत में लिया गया था.