प्रति वर्ष आठ मार्च के दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाया जाता
है और महिलाओं की अनेक उपलब्धियों को सराहा भी जाता है। महिलाओं ने किए भी
कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य हैं जो कि सराहना देने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन
सही मायने में आज भी अधिकांश औरतों की स्थिति दयनीय ही है। ये कभी डायन के
नाम पर तो कभी कुल्टा के नाम पर त्रासदी का शिकार हो रही हैं। पुरुष समाज
तो इन्हें अपनी बराबरी का समझते ही नहीं हैं बल्कि सदैव दूसरे दर्जे पर
रखते हैं और जब जैसा काम चाहते हैं वैसा काम करा भी लेते हैं। यह जो
धड़ल्ले से कन्या भू्रण हत्या हो रही है इसमें भी पुरुषों का हाथ है
क्योंकि ये ही अपनी पत्नियों को प्रताडि़त करते हैं कि तुम्हारे गर्भ में
लड़की है।
इस संदर्भ में घरेलू महिलाओं की तो बात ही छोडिय़े, ऊंची-ऊंची
डिग्रीधारी नौकरीपेशा औरतें भी मर्दों के प्रताडऩा का शिकार होती हैं और
लांछित भी होती रहती हैं जबकि हमारे संविधान में औरत-मर्द दोनों को एक समान
बराबरी का हक दिया गया है। किंतु सामाजिक व्यवहार में यह एकदम जुदा है
यानी औरतें मर्दों के पीछे रखी गयी हैं और इनकी पहचान फलां की बेटी, फलां
की पत्नी, मां, बहन के रूप में करायी जाती है। यह शोषण आज से नहीं बल्कि
प्राचनी काल से बदस्तूर जारी है। तभी तो एक बार अपने सम्भाषण के दौरान
कवयित्री महादेवी वर्मा ने कहा था —’इस दुनिया में अनेक असंभव परिवर्तन
संभव हो गये मगर औरतों के ललाट पर अंकित ब्रह्मïा की लेखनी नहीं धुल पायी।
नारी के बड़े से बड़े त्याग को पुरुष सिर्फ उनकी दुर्बलता मात्र मानते हैं
और हंसी-मजाक में उड़ा डालते हैं। दरअसल, औरतें किसी भी उम्र में और कहीं
भी सुरक्षित नहीं हैं यानी न माता के गर्भ में और न ससुराल अथवा मैहर में।
कई राज्यों में तो लड़कियों की खरीद-बिक्री पशुओं के समान होती है और ये
खूंटे से बंधी गाय के समान विवश सी खरीदार के पीछे-पीछे चल पड़ती हैं।
यूं यदि इतिहास के पन्नों को उलटिये तो औरतों ने समय-समय पर ऐसे कमाल के
कार्य कर दिखाये हैं जिनसे पुरुष मात खा गये हैं। इनके ज्वलंत उदाहरण हैं
सीता, सावित्री, लोपामुद्रा, गार्गी, गांधारी, दयमंती इत्यदि नारियां। इसके
अलावा ब्रह्मा की पुत्री अहिल्या का वृतांत भी रोंगटे खड़े करने वाला है
क्योंकि पति गौतम के पैरों की ठोकरें खाकर वह पूरे पच्चीस वर्षों तक पत्थर
बनी शून्य में निहारती रह गयी थी फिर श्रीराम के आगमन के बाद ही उसका
उद्धार हो पाया था। आखिर उस परपुरुष (इंद्र) गमन में उसका कसूर क्या था? वह
अनुपम सुंदरी नवयौवना थी जिसके ऊपर छात्र-जीवन से ही इंद्र की कुदृष्टि
टिकी थी। परन्तु ब्रह्मा ने अहिल्या का विवाह गौतम से सम्पन्न करा दिया।
यहां आकर वह खुश थी और पति के साथ समर्पित गृहस्थ जिंदगी जीना चाहती थी।
मगर गौतम तो दार्शनिक स्वभाव के थे। उन्होंने अहिल्या जैसी रूपसी नारी से
विवाह तो कर लिया पर दाम्पत्य सुख से सदैव भागते रहे। उनका मन पठन-पाठन में
ही लगता था जिस बात को भोगी स्वभाव वाले इंद्र समझ गये क्योंकि वे अकसर
गौतम की कुटिया में आते रहते थे एवं यह भी भांप गये थे कि अहिल्या का
सामंजस्य अपने पति गौतम के साथ नहीं बैठ रहा है। बस उन्होंने इसी का लाभ
उठाया और रात के अंधेरे में गौतम भेषधारी बनकर पहुंच गये। अहिल्या ने
उन्हें अपना पति समझा और समर्पित हो गयी। मगर गौतम ने तो क्रूरता की हद कर
दी और पत्नी को इतनी ठोकरें मारी कि वह पाषाण ही हो गयी। क्या यह गौतम का
दोष नहीं था ? कदाचित यह प्रश्न महर्षि विश्वामित्र के मन में उठा और
उन्होंने श्रीराम के द्वारा अहिल्या को नारी-शिरोमणि का संबोधन दिलवाकर
मनोवैज्ञानिक ढंग से उपचार कराया। तब अहिल्या के तन-मन में हलचल हुई और
पत्थर से पुन: नारी बनी...............नारी में आज भी अनुराधा अबाली उर्फ़
फिजा के रूप में आज भी अहिल्या मोजूद थी ...पर इन्द्र (चन्द्रमोहन ) ने छल
किया ............इन्द्र(चन्द्रमोहन )
तो खुलेआम घूम रहा है और अहिल्या (अनुराधा वाली उर्फ़ फिजा) .....को मौत रूपी श्राप मिला ...क्यों ?
प्रति वर्ष आठ मार्च के दिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाया जाता है और महिलाओं की अनेक उपलब्धियों को सराहा भी जाता है। महिलाओं ने किए भी कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य हैं जो कि सराहना देने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन सही मायने में आज भी अधिकांश औरतों की स्थिति दयनीय ही है। ये कभी डायन के नाम पर तो कभी कुल्टा के नाम पर त्रासदी का शिकार हो रही हैं। पुरुष समाज तो इन्हें अपनी बराबरी का समझते ही नहीं हैं बल्कि सदैव दूसरे दर्जे पर रखते हैं और जब जैसा काम चाहते हैं वैसा काम करा भी लेते हैं। यह जो धड़ल्ले से कन्या भू्रण हत्या हो रही है इसमें भी पुरुषों का हाथ है क्योंकि ये ही अपनी पत्नियों को प्रताडि़त करते हैं कि तुम्हारे गर्भ में लड़की है।
इस संदर्भ में घरेलू महिलाओं की तो बात ही छोडिय़े, ऊंची-ऊंची डिग्रीधारी नौकरीपेशा औरतें भी मर्दों के प्रताडऩा का शिकार होती हैं और लांछित भी होती रहती हैं जबकि हमारे संविधान में औरत-मर्द दोनों को एक समान बराबरी का हक दिया गया है। किंतु सामाजिक व्यवहार में यह एकदम जुदा है यानी औरतें मर्दों के पीछे रखी गयी हैं और इनकी पहचान फलां की बेटी, फलां की पत्नी, मां, बहन के रूप में करायी जाती है। यह शोषण आज से नहीं बल्कि प्राचनी काल से बदस्तूर जारी है। तभी तो एक बार अपने सम्भाषण के दौरान कवयित्री महादेवी वर्मा ने कहा था —’इस दुनिया में अनेक असंभव परिवर्तन संभव हो गये मगर औरतों के ललाट पर अंकित ब्रह्मïा की लेखनी नहीं धुल पायी। नारी के बड़े से बड़े त्याग को पुरुष सिर्फ उनकी दुर्बलता मात्र मानते हैं और हंसी-मजाक में उड़ा डालते हैं। दरअसल, औरतें किसी भी उम्र में और कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं यानी न माता के गर्भ में और न ससुराल अथवा मैहर में। कई राज्यों में तो लड़कियों की खरीद-बिक्री पशुओं के समान होती है और ये खूंटे से बंधी गाय के समान विवश सी खरीदार के पीछे-पीछे चल पड़ती हैं।
यूं यदि इतिहास के पन्नों को उलटिये तो औरतों ने समय-समय पर ऐसे कमाल के कार्य कर दिखाये हैं जिनसे पुरुष मात खा गये हैं। इनके ज्वलंत उदाहरण हैं सीता, सावित्री, लोपामुद्रा, गार्गी, गांधारी, दयमंती इत्यदि नारियां। इसके अलावा ब्रह्मा की पुत्री अहिल्या का वृतांत भी रोंगटे खड़े करने वाला है क्योंकि पति गौतम के पैरों की ठोकरें खाकर वह पूरे पच्चीस वर्षों तक पत्थर बनी शून्य में निहारती रह गयी थी फिर श्रीराम के आगमन के बाद ही उसका उद्धार हो पाया था। आखिर उस परपुरुष (इंद्र) गमन में उसका कसूर क्या था? वह अनुपम सुंदरी नवयौवना थी जिसके ऊपर छात्र-जीवन से ही इंद्र की कुदृष्टि टिकी थी। परन्तु ब्रह्मा ने अहिल्या का विवाह गौतम से सम्पन्न करा दिया। यहां आकर वह खुश थी और पति के साथ समर्पित गृहस्थ जिंदगी जीना चाहती थी। मगर गौतम तो दार्शनिक स्वभाव के थे। उन्होंने अहिल्या जैसी रूपसी नारी से विवाह तो कर लिया पर दाम्पत्य सुख से सदैव भागते रहे। उनका मन पठन-पाठन में ही लगता था जिस बात को भोगी स्वभाव वाले इंद्र समझ गये क्योंकि वे अकसर गौतम की कुटिया में आते रहते थे एवं यह भी भांप गये थे कि अहिल्या का सामंजस्य अपने पति गौतम के साथ नहीं बैठ रहा है। बस उन्होंने इसी का लाभ उठाया और रात के अंधेरे में गौतम भेषधारी बनकर पहुंच गये। अहिल्या ने उन्हें अपना पति समझा और समर्पित हो गयी। मगर गौतम ने तो क्रूरता की हद कर दी और पत्नी को इतनी ठोकरें मारी कि वह पाषाण ही हो गयी। क्या यह गौतम का दोष नहीं था ? कदाचित यह प्रश्न महर्षि विश्वामित्र के मन में उठा और उन्होंने श्रीराम के द्वारा अहिल्या को नारी-शिरोमणि का संबोधन दिलवाकर मनोवैज्ञानिक ढंग से उपचार कराया। तब अहिल्या के तन-मन में हलचल हुई और पत्थर से पुन: नारी बनी...............नारी में आज भी अनुराधा अबाली उर्फ़ फिजा के रूप में आज भी अहिल्या मोजूद थी ...पर इन्द्र (चन्द्रमोहन ) ने छल किया ............इन्द्र(चन्द्रमोहन ) तो खुलेआम घूम रहा है और अहिल्या (अनुराधा वाली उर्फ़ फिजा) .....को मौत रूपी श्राप मिला ...क्यों ?