शनिवार, 26 अगस्त 2023

हल्दीघाटी युद्ध के बाद क्या क्या हुआ ?

 हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या क्या हुआ..??

इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गए हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूंकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं.।
इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है.।

क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..
महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.।

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महाराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.।

हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी.।

उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है.

बात सन 1582 की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे. 

कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.

दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए। 
युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई।

महाराणा प्रताप ने बहलोलखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया। शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे  36000  मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया. ।
दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए.।

दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए.।

अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.।

दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.।

इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया.

ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

इस्लाम की आंधी और राजपूतों का प्रतिकार...

गायब की हुई इतिहास की एक झलक:-

622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को मुहम्मद ने  तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर ।(

634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!

640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!

नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!

3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए ।

711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी ।

मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, #तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए ।

#सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! #मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया । मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो । बेचारे मूर्ख #इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया ।

अब आप भारत की स्थिति देखिये ।

उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है ।

जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें ।

636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया ।

कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी । दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर #उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा ।

सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए ।

यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया ।

उसके बाद भी भारत के वीर राजपूतों ने पराजय नही मानी । जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पारावल का जन्म हो चुका था ।

वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया । केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे । जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी ।

उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं । नागभट्ट प्रतिहार (परिहार) द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले । जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा ।

पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है । लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए ।

सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया ।  यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते ।

भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया 

पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी ।           उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी । उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे ।

अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए ।

किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दिया ।
महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए ।

एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए । एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें ।  जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए ?

राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, महराजा छत्रसाल  बुन्देला, आल्हा उदल, बाजीराव पेशवा, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए ।

अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!

ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया । पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था । फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया । अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता ।
जय सनातन 🚩

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की साजिश ??


    कांग्रेस ने भारत को संविधान संशोधन के माध्यम से मुस्लिम राष्ट्र बना चुकी थी बस घोषणा नहीं कर पाई ।।
  
अनुच्छेद 25, 28, 30 (1950)
एचआरसीई अधिनियम (1951)
एचसीबी एमपीएल (1956)
धर्मनिरपेक्षता (1975)
अल्पसंख्यक अधिनियम (1992)
POW अधिनियम (1991)
वक्फ अधिनियम (1995)
राम सेतु शपथ पत्र (2007)
केसर (2009)

1) कांग्रेस अनुच्छेद 25 द्वारा धर्मांतरण को वैध बनाया।
2)कांग्रेस अनुच्छेद 28 के माध्यम से हिंदुओं से धार्मिक शिक्षा छीन ली लेकिन अनुच्छेद 30 के माध्यम से मुस्लिमों और ईसाइयों को धार्मिक शिक्षा की अनुमति दी।
3) कांग्रेस ने एचआरसीई अधिनियम 1951 लागू करके सभी मंदिरों और मंदिरों का पैसा हिंदुओं से छीन लिया।
4) उन्होंने हिंदू कोड बिल के तहत तलाक कानून, दहेज कानून द्वारा हिंदू परिवारों को नष्ट कर दिया लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं छुआ। उन्हें बहुविवाह की अनुमति दी ताकि वे अपनी जनसंख्या बढ़ाते रहें।
5) 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लाया गया ताकि मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों से शादी कर सकें।
6) 1975 में उन्होंने आपातकाल लगाया, जबरदस्ती धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान में जोड़ा और जबरदस्ती भारत को धर्मनिरपेक्ष बना दिया।
7) कांग्रेस यहीं नहीं रुकी. 1991 में वे अल्पसंख्यक आयोग कानून लेकर आये और घोषणा की
एमएसएल  एम को अल्पसंख्यक माना जाता है, हालांकि धर्मनिरपेक्ष देश में बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक नहीं हो सकते।
8) उन्होंने छात्रवृत्ति, सरकारी जैसे विशेष अधिकार दिए। अल्पसंख्यक अधिनियम के तहत उन्हें लाभ मिले।
9) 1992 में, उन्होंने हिंदुओं को उनके मंदिर कानूनी तरीके से वापस लेने से रोक दिया और पूजा स्थल अधिनियम द्वारा 40000 मंदिर हिंदुओं से छीन लिए।




शनिवार, 5 अगस्त 2023

राखी का ऐतिहासिक झूठ


सन 1535 दिल्ली का शासक है हुमायूँ बाबर का बेटा। उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला अफगान शेर खाँ और दूसरा गुजरात का शासक बहादुरशाह। पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में चुनार दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है। अफीम का नशेड़ी हुमायूँ शेर खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।

हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।

इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर राजमाता कर्णावती शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व खनुआ के युद्ध मे महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक, और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।

इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा है, “चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तबतक मुझपर हमला गैर इस्लामिल है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”

हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।

इधर चित्तौड़ राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।

अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…

आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।

इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।

किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है, और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की...!

पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख कर कह रही है, “भारत की आने वाली पीढ़ियों! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जबतक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”

दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।

अगले तीन दिन तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़ पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।

और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।

युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए कथा गढ़ी, “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”

अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता नहीं मांगती पार्थ! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना...!

गुरुवार, 3 अगस्त 2023

जय दुअरा नाथ स्वामी...🚩🚩

एक जगतदेवता के लोकदेवता बनने की पूर्णतः सत्य कहानी..🚩🚩

करीब 150/200 वर्ष पुरानी बात होगी  । मेरे गांव से करीब 6km दूर के घनघोर जंगल में एक चरवाहा अपनी बकरियां चराने लाता था । प्रतिदिन एक पत्थर पर बैठकर रोटी खाया करता था, चूंकि घनघोर जंगल था /है । जब उसे शेर, बाघ,भालू, भूत, प्रेत आदि से डर लगता तो वह  जय बजरंग बली, जय बजरंग करता और बजरंग बली जी को याद करता । 
     एक दिन बजरंग बली ने उसे स्वप्न दिया की "जिस पत्थर पर बैठ कर खाते हो वह मैं ही हूं" । अगले दिन वह चरवाहा गया और उस पत्थर को एक पेड़ के तने के सहारे टिका दिया और उस दिन से पूजा करने लगा । गरीब चरवाहा कहीं से सिंदूर और घी,लंगोट की व्यवस्था किया और पत्थर को सिंदूर लगाकर लंगोट पहना दिया । चूंकि जंगल में और चरवाहे भी जाते थे,यह बात धीरे धीरे फैली, तो अन्य लोग भी पूजा पाठ करना सुरु कर दिया । पूर्णत: चमत्कारी परिणाम आने लगा । कुछ माह बाद जब यह बात पास के 3km दूर गांव कल्याणपुर (कल्याणपुर बाघेल राजपूतों की 12 गांव की जागीर है)  के बाघेल ठाकुर को पता चली तो उन्होंने उसी पेड़ से थोड़ा आगे एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया और हनुमान जी की एक मूर्ति लाकर प्राण प्रतिष्ठा करवा दिया और फिर हनुमान जी सच में उस पत्थर से निकलकर मूर्ति में प्रतिष्ठित हो गए ।
हमारे क्षेत्र में बहुत ही पूज्यनीय देवता हैं दुवरानाथ स्वामी ।। धीरे धीरे मंदिर के प्रति आस्था बढ़ती गई । मंदिर से कुछ km दूर गांव के एक भक्त श्री तिलकधारी जी पटेल ने पूर्व के बने छोटे से मंदिर के चारो तरफ मोटी सी दीवार खड़ी करवा दिया, ऊंचा सा चबूतरा बनवा दिया । 
       हमारे बाघेलखंड में देवी देवताओं को रोट (मोटी मोटी पूड़ी जिसमे हल्का सा गुड़ मिला देते हैं) पंजीरी चढ़ाने की परंपरा है । हनुमान जी को भक्तो ने रोट,पंजीरी चढ़ाना सुरु कर दिया । श्रावण मास में मेला लगने लगा और धीरे धीरे रोट चढ़ाने की परम्परा और बलवती होती गई । 
मंदिर में बिराजे दुवरा नाथ स्वामी के प्रति इतनी आस्था बढ़ी की किसी के बीमार होने पर डाक्टर से पहले मंदिर जाकर या घर से दुवरानाथ स्वामी को मनौती मान देते । किसी के घर कोई मुसीबत आए तो दुवारा नाथ स्वामी को याद कर लिया और परिणाम इतना सकारत्मक है की आस्था दिनिदिन बढ़ती ही जा रही है । 

(एक दिन पोस्ट में मुंबई के एक सेठ के लड़के की बीमारी के बारे में पोस्ट किया था, पढ़िएगा,बसरेही के डाक्टर पटेल जी )

अभी जिस दिन हमारे घर का आयोजित अखंड मानस था उसी दिन बगल में ही एक और अखंड मानस का पाठ चल रहा था क्षेत्र में एक सज्जन की कुछ भैंस गुम गई, उन्होंने दुवरानाथ स्वामी के पास जाकर मनौती किया और एक पंडित जी के पास पूछा तो पंडित जी ध्यान लगाकर कुछ देर बाद बोले "दूवरा नाथ स्वामी ला रहे है तुम्हारी सभी भैंस" और चमत्कार देखिए तीन दिन में उनकी सभी भैंस वापस आ गई  तो उन्होंने तुरंत अखंड मानस सुरु करवा दिया । ऐसे ही अनगिनत चमत्कार किए है वीर बजरंगी यानी दुवरानाथ स्वामी ने ।।

एक वीडियो के आखिरी में छोटी चौकड़ी में लाल चंदन लगाएं बड़े भाई साहब रिटायर्ड डाक्टर है और उनके बगल में एक टोपी वाले व्यक्ति को छोड़कर सफेद बाल में प्रसाद लेने में मग्न भाई साहब रिटायर्ड रेंजर है । जब भाई साहब इसी वन क्षेत्र के रेंजर थे तब दुवरानाथ स्वामी के नाम पर 30 एकड़ भूमि कर दिया था जिससे किसी निर्माण कार्य के लिए वन विभाग से स्वीकृत के लिए नही जाना पड़े ।।

         मेरे भतीजे अमेरिका में साफ्टवेयर इंजीनियर है, दादा यानी बड़े भाई  ने उनके बेटे (नाती) को लेकर कोई मनौती मान दिया था, उसी मनौती को पूरा करने के लिए भतीजे अमेरिका से आए हैं, अखंड मानस और फिर भंडारे का आयोजन किया । उसी भंडारे के आयोजन में सामिल होने के लिए यहां सपरिवार हम आए हुए हैं ।
और दो दिन इतनी व्यस्तता रही की एक भी एफबी पोस्ट और वाट्सअप स्टेट्स नही डाल सका ।
पूर्ण जानकारी के लिए मेरे फेसबुक पेज #NSB से जुड़िए 🙏

शनिवार, 29 जुलाई 2023

रानी अबक्का चौटा' (Abbakka Chowta)

साल था 1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर डाली।

मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर 'उल्लाल' राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी 'अबक्का चौटा' (Abbakka Chowta).।

पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। लेकिन उनमेंसे कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल 'डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा' (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।

चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल 'जाओ पिक्सीटो' (João Peixoto) बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला।

लेकिन यह क्या..?? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लड़े किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पड़ी।

बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।कालीकट के राजा के जनरल ने रानी अब्बक्का की ओर से लड़ाई लड़ी और मैंगलुरु में पुर्तगालियों का किला तबाह कर दिया। लेकिन वहाँ से लौटते वक्त जनरल पुर्तगालियों के हाथों मारे गए।

अब आप अन्त जानने में उत्सुक होंगे..??

रानी अबक्का के देशद्रोही पति लक्षमप्पा ने पुर्तगालियों से धन लेकर उसे पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान मारी गई।

क्या आपने इस वीर रानी अबक्का चौटा के बारे में पहले कभी सुना या पढ़ा है..??  इस रानी के बारे में जो चार दशकों तक विदेशी आततायियों से वीरता के साथ लड़ती रही, हमारी पाठ्यपुस्तकें चुप हैं। अगर यही रानी अबक्का योरोप या अमेरिका में पैदा हुई होती तो उस पर पूरी की पूरी किताबें लिखी गई होती।
है।
आज भी रानी अब्बक्का चौटा की याद में उनके नगर उल्लाल में उत्सव मनाया जाता है और इस ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ में प्रतिष्ठित महिलाओं को ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार से नवाज़ा जाता है।

इस कहानी से दो बातें साफ हैं..

हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से जानबूझ कर वन्चित रखा गया है। "रानी अबक्का चौटा" के बारे में "कुछ लोग" तो शायद पहली बार ही ये सुन रहे होगे, ये हमारी 1000 साल की दासता अपने ही देशवासियों (भितरघातियों) के विश्वासघात का नतीजा है। दुर्भाग्य से यह आज भी यथावत है..🙏🙏

शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

नेहरू की पोल ।।

        
थ्रिलर सिनेमा का शौक हो तो नेहरू खानदान को पढ़ लीजिए रोम रोम में सनसनी दौड़ जाती है। किसी जर्नलिस्ट की बहुत पुरानी पोस्ट कहीं दिखी तो पढ़ते पढ़ते पोस्ट करने की इच्छा को दबा न पाए...

पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने आए हैं क्या?

जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। 

अमर उजाला दफ्तर के नजदीक बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने आए हैं क्या ? 

हंसकर सवाल टालते हुए कहा कि मैडम ऐसा नहीं है, बस बाल कि खाल निकालने कि आदत है इसलिए मजबूर हूं। यह सवाल काफी समय से खटक रहा था। कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित। उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा था। जिसके अनुसार गंगाधर असल में मुसलमान थे जिनका असली नाम था गयासुद्दीन गाजी। इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था और खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। 

नेहरू राजवंश की खोज में मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर मालूम हुआ कि गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था, असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी लेकिन तब गंगा धर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही। 

एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल कि एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू। कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी।कमला शुरु से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया जाता। लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे ? 

सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास जूनागढ गुजरात में था। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं)घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। 

हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। फिरोज खान ने इन्दिरा को बहला फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। 

विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। खैर उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। 

इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज ;पृष्ट 94 पैरा 2 (अब भारत में प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था।कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था। 

यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फिरोज अलग हो गये थे। हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी। 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। 

संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता। लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। 

एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान खूबसूरत और दिलकश थी। एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं।

नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी। उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। 

मथाई लिखते हैं, मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था। 

नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल दिए अमर उजाला जम्मू दफ्तर की ओर ।।

बुधवार, 26 जुलाई 2023

सच्चे दिल से याद करें,प्रभु जरूर आयेंगे ।

(पढ़ते पढ़ते मेरी आंखे छलक पड़ी) ।।

श्री अयोध्या जी में 'कनक भवन' एवं 'हनुमानगढ़ी' के बीच में एक आश्रम है जिसे 'बड़ी जगह' अथवा 'दशरथ महल' के नाम से जाना जाता है।

 काफी पहले वहाँ एक सन्त रहा करते थे जिनका नाम था श्री रामप्रसाद जी। उस समय अयोध्या जी में इतनी भीड़ भाड़ नहीं होती थी। ज्यादा लोग नहीं आते थे। 
श्री रामप्रसाद जी ही उस समय बड़ी जगह के कर्ता धर्ता थे। वहाँ बड़ी जगह में मन्दिर है जिसमें पत्नियों सहित चारों भाई (श्री राम, श्री लक्ष्मण, श्री भरत एवं श्री शत्रुघ्न जी) एवं हनुमान जी की सेवा होती है। चूंकि सब के सब फक्कड़ सन्त थे... तो नित्य मन्दिर में जो भी थोड़ा बहुत चढ़ावा आता था उसी से मन्दिर एवं आश्रम का खर्च चला करता था।

प्रतिदिन मन्दिर में आने वाला सारा चढ़ावा एक बनिए (जिसका नाम था पलटू बनिया) को भिजवाया जाता था। उसी धन से थोड़ा बहुत जो भी राशन आता था... उसी का भोग-प्रसाद बनकर भगवान को भोग लगता था और जो भी सन्त आश्रम में रहते थे वे खाते थे। 
एक बार प्रभु की ऐसी लीला हुई कि मन्दिर में कुछ चढ़ावा आया ही नहीं। अब इन साधुओं के पास कुछ जोड़ा गांठा तो था नहीं... तो क्या किया जाए...? कोई उपाय ना देखकर श्री रामप्रसाद जी ने दो साधुओं को पलटू बनिया के पास भेज के कहलवाया कि भइया आज तो कुछ चढ़ावा आया नहीं है...
 अतः
थोड़ा सा राशन उधार दे दो... कम से कम भगवान को भोग तो लग ही जाए। पलटू बनिया ने जब यह सुना तो उसने यह कहकर मना कर दिया कि मेरा और महन्त जी का लेना देना तो नकद का है... मैं उधार में कुछ नहीं दे पाऊँगा।

श्री रामप्रसाद जी को जब यह पता चला तो "जैसी भगवान की इच्छा" कहकर उन्होंने भगवान को उस दिन जल का ही भोग लगा दिया। सारे साधु भी जल पी के रह गए। प्रभु की ऐसी परीक्षा थी कि रात्रि में भी जल का ही भोग लगा और सारे साधु भी जल पीकर भूखे ही सोए। वहाँ मन्दिर में नियम था कि शयन कराते समय भगवान को एक बड़ा सुन्दर पीताम्बर ओढ़ाया जाता था तथा शयन आरती के बाद श्री रामप्रसाद जी नित्य करीब एक घण्टा बैठकर भगवान को भजन सुनाते थे। पूरे दिन के भूखे रामप्रसाद जी बैठे भजन गाते रहे और नियम पूरा करके सोने चले गए।

धीरे-धीरे करके रात बीतने लगी। करीब आधी रात को पलटू बनिया के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। वो बनिया घबरा गया कि इतनी रात को कौन आ गया। जब आवाज सुनी तो पता चला कुछ बच्चे दरवाजे पर शोर मचा रहे हैं, 'अरे पलटू... पलटू सेठ... अरे दरवाजा खोल...।' 

उसने हड़बड़ा कर खीझते हुए दरवाजा खोला। सोचा कि जरूर ये बच्चे शरारत कर रहे होंगे... अभी इनकी अच्छे से डांट लगाऊँगा। जब उसने दरवाजा खोला तो देखता है कि चार लड़के जिनकी अवस्था बारह वर्ष से भी कम की होगी... एक पीताम्बर ओढ़ कर खड़े हैं।

वे चारों लड़के एक ही पीताम्बर ओढ़े थे। उनकी छवि इतनी मोहक... ऐसी लुभावनी थी कि ना चाहते हुए भी पलटू का सारा क्रोध प्रेम में परिवर्तित हो गया और वह आश्चर्य से पूछने लगा, 
'बच्चों...! तुम हो कौन और इतनी रात को क्यों शोर मचा रहे हो...?'
बिना कुछ कहे बच्चे घर में घुस आए और बोले, हमें रामप्रसाद बाबा ने भेजा है। ये जो पीताम्बर हम ओढ़े हैं... इसका कोना खोलो... इसमें सोलह सौ रुपए हैं... निकालो और गिनो।' ये वो समय था जब आना और पैसा चलता था। सोलह सौ उस समय बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। 

     जल्दी जल्दी पलटू ने उस पीताम्बर का कोना खोला तो उसमें सचमुच चांदी के सोलह सौ सिक्के निकले। प्रश्न भरी दृष्टि से पलटू बनिया उन बच्चों को देखने लगा। तब बच्चों ने कहा, 'इन पैसों का राशन कल सुबह आश्रम भिजवा देना।'

अब पलटू बनिया को थोड़ी शर्म आई, 'हाय...! आज मैंने राशन नहीं दिया... लगता है महन्त जी नाराज हो गए हैं... इसीलिए रात में ही इतने सारे पैसे भिजवा दिए।' पश्चाताप, संकोच और प्रेम के साथ उसने हाथ जोड़कर कहा, 'बच्चों...! मेरी पूरी दुकान भी उठा कर मैं महन्त जी को दे दूँगा तो भी ये पैसे ज्यादा ही बैठेंगे। इतने मूल्य का सामान देते-देते तो मुझे पता नहीं कितना समय लग जाएगा।'

बच्चों ने कहा, 'ठीक है... आप एक साथ मत दीजिए... थोड़ा-थोड़ा करके अब से नित्य ही सुबह-सुबह आश्रम भिजवा दिया कीजिएगा... आज के बाद कभी भी राशन के लिए मना मत कीजिएगा।' पलटू बनिया तो मारे शर्म के जमीन में गड़ा जाए। 

वो फिर हाथ जोड़कर बोला, 'जैसी महन्त जी की आज्ञा।' इतना कह सुन के वो बच्चे चले गए लेकिन जाते जाते पलटू बनिया का मन भी ले गए।

इधर सवेरे सवेरे मंगला आरती के लिए जब पुजारी जी ने मन्दिर के पट खोले तो देखा भगवान का पीताम्बर गायब है। उन्होंने ये बात रामप्रसाद जी को बताई और सबको लगा कि कोई रात में पीताम्बर चुरा के ले गया। जब थोड़ा दिन चढ़ा तो गाड़ी में ढेर सारा सामान लदवा के कृतज्ञता के साथ हाथ जोड़े हुए पलटू बनिया आया और सीधा रामप्रसाद जी के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा।

रामप्रसाद जी को तो कुछ पता ही नहीं था। वे पूछें, 'क्या हुआ... अरे किस बात की माफी मांग रहा है।' पर पलटू बनिया उठे ही ना और कहे, 'महाराज रात में पैसे भिजवाने की क्या आवश्यकता थी... मैं कान पकड़ता हूँ आज के बाद कभी भी राशन के लिए मना नहीं करूँगा और ये रहा आपका पीताम्बर... वो बच्चे मेरे यहाँ ही छोड़ गए थे... बड़े प्यारे बच्चे थे... इतनी रात को बेचारे पैसे लेकर आ भी गये... 

     आप बुरा ना मानें तो मैं एक बार उन बालकों को फिर से देखना चाहता हूँ।' जब रामप्रसाद जी ने वो पीताम्बर देखा तो पता चला ये तो हमारे मन्दिर का ही है जो गायब हो गया था। अब वो पूछें कि, 'ये तुम्हारे पास कैसे आया?' तब उस बनिया ने रात वाली पूरी घटना सुनाई। 
अब तो रामप्रसाद जी भागे जल्दी से और सीधा मन्दिर जाकर भगवान के पैरों में पड़कर रोने लगे कि, 'हे भक्तवत्सल...! मेरे कारण आपको आधी रात में इतना कष्ट उठाना पड़ा और कष्ट उठाया सो उठाया मैंने जीवन भर आपकी सेवा की... मुझे तो दर्शन ना हुआ... और इस बनिए को आधी रात में दर्शन देने पहुँच गए।'

जब पलटू बनिया को पूरी बात पता चली तो उसका हृदय भी धक् से होके रह गया कि जिन्हें मैं साधारण बालक समझ बैठा वे तो त्रिभुवन के नाथ थे... अरे मैं तो चरण भी न छू पाया। अब तो वे दोनों ही लोग बैठ कर रोएँ। इसके बाद कभी भी आश्रम में राशन की कमी नहीं हुई। आज तक वहाँ सन्त सेवा होती आ रही है। इस घटना के बाद ही पलटू बनिया को वैराग्य हो गया और यह पलटू बनिया ही बाद में श्री पलटूदास जी के नाम से विख्यात हुए।

श्री रामप्रसाद जी की व्याकुलता उस दिन हर क्षण के साथ बढ़ती ही जाए और रात में शयन के समय जब वे भजन गाने बैठे तो मूर्छित होकर गिर गए। संसार के लिए तो वे मूर्छित थे किन्तु मूर्च्छावस्था में ही उन्हें पत्नियों सहित चारों भाइयों का दर्शन हुआ और उसी दर्शन में श्री जानकी जी ने उनके आँसू पोंछे तथा अपनी ऊँगली से इनके माथे पर बिन्दी लगाई जिसे फिर सदैव इन्होंने अपने मस्तक पर धारण करके रखा। उसी के बाद से इनके आश्रम में बिन्दी वाले तिलक का प्रचलन हुआ।
वास्तव में प्रभु चाहें तो ये अभाव... ये कष्ट भक्तों के जीवन में कभी ना आए परन्तु प्रभु जानबूझकर इन्हें भेजते हैं ताकि इन लीलाओं के माध्यम से ही जो अविश्वासी जीव हैं... वे सतर्क हो जाएं... उनके हृदय में विश्वास उत्पन्न हो सके।जैसे प्रभु ने आकर उनके कष्ट का निवारण किया ऐसे ही हमारा भी कर दे..!!
‼️🙏जय सियाराम🙏‼️
#NSB

माननीय CJI साहब से मेरे सवाल 🙏

जज साहब मणिपुर मामले पर गुस्सा हो गए हैं ।
लेकिन मेरे सवाल हैं माननीय CJI साहब और न्यायपालिका से
- जज साहब, आप गुस्सा होने के बजाय जल्दी फैसले सुनाने का प्रबंध क्यों नहीं करते ?
- आप गुस्सा होने के बजाय कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि अदालत के चक्कर काटते हुए आम नागारिक की चप्पलें न घिसें ?
-जैसे आपने तिस्ता सीतलवाद के लिये समय निकाला वैसे आम नागरिकों के लिये समय क्यों नहीं निकालते ? 
- आप गुस्सा होने के बजाय आम आदमी को तारीख पर तारीख देने के सिस्टम में बदलाव क्यों नहीं करते ?
- जज साहब, आप गुस्सा होने के बजाय बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने का आदेश क्यों नहीं देते ?
- जज साहब, निर्भया के बलात्कारियों के बाद किसी भी अन्य बलात्कारी को फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
- जज साहब आप गुस्सा हो रहे हो न ? जबकि दिल्ली की ही अदालत ने श्रद्धा के 35 टुकड़े करने वाले आफताब को फांसी पर लटकाने का फैसला देने के बजाय उसे गर्म कपड़े और किताबें देने का निर्देश दिया था
गुस्सा करने वाले जज साहब आपको याद है न ? 
- 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा में 7 हजार महिलाओं के साथ अत्याचार किया था (Source: फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) लेकिन आप न तो गुस्सा हुए और न ही सजा सुनाई
- बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद 60 साल की बूढ़ी दादी का उनके पोते के सामने घर में घुसकर गैंगरेप किया था, आपको गुस्सा क्यों नहीं आया? अगर आया तो अभी तक उन हैवानों को तारीख पर तारीख देने के बजाय फांसी की सजा क्यों नहीं सुनाई ?
- बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद 17 साल की नाबालिग किशोरी को घर से घसीटकर जंगल ले जाया गया जहां उसके साथ 5 लोगों ने गैंगरेप किया, आपको गुस्सा क्यों नहीं आया? अगर गुस्सा आया तो अभी तक फांसी की सजा क्यों नहीं सुनाई ?
- नादिया में नाबालिग किशोरी के साथ TMC नेता के बेटे की जन्मदिन पार्टी में गैंगरेप किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई जिस पर CM ममता बनर्जी ने कहा कि ये तो लव अफेयर था. इस पर आपको गुस्सा क्यों नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो उन हैवानों को अभी तक फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
माननीय CJI साहब क्या आप बताएंगे कि
- दिल्ली में साक्षी को साहिल ने चाकुओं से गोदकर, पत्थर से कुचलकर मार डाला. क्या आपको इस पर गुस्सा नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो सारे प्रमाण सामने होने के बाद भी अभी तक साहिल को फांसी पर क्यों नहीं लटकाया गया ?
- चंद्रचूड़ साहब, 8 जुलाई को बंगाल के हावड़ा में TMC नेताओं ने एक महिला के कपड़े फाड़े, उसके शरीर को नोंचा और निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया. इस आपको गुस्सा क्यों नहीं आया ?
- कन्हैयालाल, उमेश कोल्हे, निशांक राठौर, प्रवीण नेत्तारू, शानू पांडेय की हत्या/सर तन से जुदा पर आपको गुस्सा नहीं आया जज साहब ? अगर आया तो सारे प्रमाण सामने होने के बाद भी इनके हैवानों को अभी तक फांसी क्यों नहीं दी गई ?
- जज साहब, भारतवर्ष की हजारों बेटियां हैं, जो रेप/गैंगरेप की शिकार हैं. न्याय का इंतजार कर रही हैं लेकिन आपको इस पर गुस्सा क्यों नहीं आता जज साहब ? क्यों बलात्कार के मामलों में जल्द सुनवाई कर न्याय सुनिश्चित नहीं किया जाता ?
- जज साहब, 90 के दशक का अजमेर रेप कांड सुना है आपने ? 250 से ज्यादा बेटियों का रेप/गैंगरेप किया गया था. 30 साल बाद भी एक भी सिंगल बलात्कारी को फांसी नहीं हुई है. क्या आपको इस पर गुस्सा नहीं आता जज साहब ?
जज साहब, मैं भारतवर्ष का एक आम नागरिक हूं, मणिपुर की घटना पर आपको गुस्सा आ गया तो मुझे भी आ गया, इसलिए मैंने गुस्से में ही ये सवाल पूछे हैं. क्या आप जवाब देंगे जज साहब ? अगर दे पाए तो मुझे लगता है कि देश अति प्रसन्न होगा जज साहब
CJI साहब,अगर आपको सच मे गुस्सा आ रहा है न तो एक काम करो. रेप के जिन मामलों में सीधे प्रमाण उपस्थित हैं, उनको तारीख पर तारीख देने के बजाय फैसला सुनाओ, बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाओ
जिस दिन नियमित अंतराल पर बलात्कारी फांसी पर झूलने लग जाएंगे,बहन-बेटियां सुरक्षित हो जाएंगी, निर्वस्त्र कर उनकी परेड निकालने की हिम्मत कोई नहीं कर पाएगा वैसे लगता नहीं है कि आप ऐसा कर पाएंगे क्योंकि न्यायपालिका की क्रेडिबिलिटी आम जन के बीच खत्म सी हो चुकी है. इसका कारण यही है कि जज साहब को भी नेताओं और अभिनेताओ की तरह सेलेक्टिव मामलों पर गुस्सा आता है।अतः मैं सभी ग्रुप के सदस्यों से विनती करूंगा इसी पोस्ट को माननीय नायमूर्ति तक पहुंच जाए।   
जय श्रीराम ....

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

मेरी टीवी कथा....😀

आज यह फोटो देखा तो एक घटना याद आ गई ।।
रामायण सीरियल चल रहा था मेरे मकान मालिक के घर भी टीवी नही थी । तो उनके साथ पड़ोस में जाकर देखते थे । रविवार को सुबह ही नहा धोकर तैयार हो जाते थे और सीरियल सुरु होने के पहले ही पड़ोस में जाकर अपनी सीट सुरक्षित कर लेते थे फर्स पर । 
       सीरियल सुरु होने के पांच मिनट पूर्व ही गृहस्वामिनी टीवी के पास पूजा वाली थाली सजा कर रख लेती थी । सीरियल सुरु होते ही गृहस्वामिनी धूप, दीप, जलाकर आरती करती और फिर जब तक सीरियल चलता तब तक ऐसा सन्नाटा छा जाता रूम में की एक दूसरे की सांस लेने की आवाज तक सुनाई दी जाती । यदि कोई खांसने लगता तो सभी उसी को घूर कर देखने लगते  और यदि किसी ने पूं पां कर दिया तो उसे तुरंत उठाकर बाहर कर देते । कभी कभी तो मुझे भी इस विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता तो बड़ी कुशलता के साथ पृष्ठ भाग को एक किनारे से हल्का सा उठा कर वायु निर्गमन कर प्रदूषण फैला देता, दबाते रहो जिसे अपनी नाक दबाना हो ।।

वैसे तो इस कुकृत्य के लिए विज्ञापन का समय चुनता ।

एक बार पड़ोसी गांव चले गए ।  अब इस रविवार को कहां देखा जाय रामायण ? 
    चूंकि अपुन रंगरूट/बैचलर किराएदार थे इस लिए आस पास वाले ज्यादा भाव नही देते थे । इस लिए कहीं जुगाड नही लगा तो हमारी मित्र मंडली (पांच लोग) पास में ही सिंधी की किराना की दुकान के सामने ही जम गए । चूंकि हम सिंधी के यहां से किराना का समान बहुत कम लेते थे इस लिए सिंधी भी ज्यादा भाव नही देता था । 
     अब रोड में खड़ी भीड़ बात चीत लिए बिना रह नहीं सकती, तो आवाज साफ साफ सुनाई नही देती । कुछ देर बाद मैने सिंधी को बोला "भैया थोड़ा आवाज बढ़ा दीजिए, सुनाई नही दे रहा है" । सिंधी मेरी आवाज तो  सुना पर इग्नोर कर दिया तो  दुबारा फिर से बोला तो बड़ी अकड़ के साथ बोला "जाकर तेरे घर में देख ले, मेरी टीवी में इतनी ही आवाज है" । "तेरे" शब्द सुनते ही तन बदन में आग लग गई । मैं भी अकड़ गया और जोर से चिल्लाकर बोला "ओए,जरा तमीज से बात कर" । सिंधी और जोर से चिल्लाया, सिंधी को लगा की ये तो यहां कालोनी में नया नया किराये दार है, बाहरी है फिर भी चिल्ला रहा है, इस लिए सिंधी जोर से चिल्लाया और बोला "चल हट यहां से नही तो अभी....." बस इतना बोलकर चुप हो गया । अब मैं खड़े हुए लोगो के बीच से आगे बढ़ा और काउंटर में बैठा सिंधी  के पास गया और बोला "अब बोल" । सिंधी कुछ बोलता उसके पहले ही गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया । लो हो गई रामायण की जगह महाभारत । सिंधी जब तक मुझे मारता मैने फिर से धर दिया । अब पकड़ा पकड़ी हुई, मेरे रिवाड़ी (रीवा) संगी साथी मुझे पकड़ कर ले आए कमरे में । सीरियल समाप्त होने के कुछ देर बाद सिंधी मकान मालिक के पास आया और पूरी बात बताया और कमरा खाली करवाने के लिए बोला । मकान मालिक के कुछ बोलते उसके पहले ही उनकी छोटी लड़की मनु बोल दिया " बघेल भईया से कमरा  खाली नहीं करवाऊंगी" । मनु ने बोल दिया, यानी यही होगा, मकान मालिक कुछ नही बोले तो सिंधी फिर बोला "इसको निकालो तुम्हारे घर से" । मकान मालिक बोले "मनु से बात करो" । सिंधी तुनक कर चला गया ।
दरअसल मकान मालिक बिधुर थे तीन लड़कियों में दो को शादी कर दिया , मनु बहुत लाड़ की थी, उसकी बात टालते नही थे ।।
शाम को हम रीवा वाले आठ दस नए नए रंगरूट  इकट्ठे हुए और टीवी खरीदने का प्लान बन गया ।  बाजार गए और टीवी का रेट पता लगा आए । "Crown"  ब्लैक & व्हाइट टीवी (सटर वाली) 3650/ रू की पसंद आई । 3650/ रू 1988 में  बहुत होते थे ।।
        चूंकि तब हम लोगो की अधिकतम सेलरी 300/ रू थी, जी हां 300/ रू. । सबने अपनी अपनी बचत बता दिया । सुबह हम सभी ड्यूटी चले गए । और ड्यूटी के बाद 5 बजे फिर सभी मेरे कमरे में इकठ्ठे हुए और सबने अपनी बचत रख दिया । कुल 3600 रू हो गए । हम 8 लोग टीवी खरीदने गए और ठेले में टीवी रखकर ले आए 😀😀 । दुकान वाले ने 50/ रू की छूट दिया ।।

ठेले में टीवी आते देख मुहल्ले के बच्चे दौड़ पड़े "बघेल भईया टीवी लाए,बघेल भईया टीवी लाए" । सिंधी के साथ मारपीट से लोग मुझे और मेरा उपनाम जानने लगे ।
    टीवी ले तो आए पर ये तो सोचा ही नही था कि रखेंगे किधर, क्योंकि हमारे दस बाय 12 SQ फिट के कमरे में तीन रूम पार्टनर ओ भी जमीन में बिस्तर लगे ।
मकान मालिक के कुल तीन तो कमरे, एक में हम किरायेदार बाकी दो कमरे मकान मालिक यूज करते । 
खैर मकान मालिक के आगे वाले कमरे में टीवी एक टेबल पर रख दिया ।  बड़ी मुस्किल से एंटीना लगाया और हो गई टीवी सुरु । 
टीवी लाने वाली बात हमारे रीवा वालों के बीच चर्चा की विषय बन गया, क्योंकि मुझे नौकरी किए हुए मात्र 7 माह ही हुआ था । इतनी जल्दी इतनी मंहगी टीवी कैसे ले आए ? इतने रुपए कहां पाए ?? आदि आदि....चर्चाएं चली...।
अगले रविवार को OMG.... हमारे रीवा के जितने भी बैचलर लड़के थे सभी आ धमके रामायण देखने...😀😀
बैठने की तो छोड़िए, कमरे में खड़े होने की जगह नही थी । 
हालांकि टीवी लाने के 3 सप्ताह  बाद ही मकान मालिक का रूम छोड़कर पास में ही ठाकुर भवन में आ गया रहने । 
और यहां पर एक साल में तीन लोहे की पलंग टूटी थी 😀🤣 क्योंकि एक पलंग में आठ दस लोग बैठ जाते थे ।

टीवी लाने के बाद एक दिन हम पांच छः रिवाड़ी भाई सिंधी की दुकान में गए और मैं बोला "आपकी टीवी में आवाज कम हो तो  मेरे रूम में देख लिया करें रामायण" । सिंधी कुछ नही बोला हम अकड़ते हुए आ गए उसकी दुकान से ।
तो ये थी टीवी कथा...😀
#NSB

बुधवार, 5 जुलाई 2023

जमीन के बदले रेलवे में नौकरी (लालू यादव का घोटाला)

1.) 2007 में पटना के हजारी राय ने 9527 वर्ग फीट जमीन एके इन्फोसिस्टम प्राइवेट लिमिटेड को ₹10.83 लाख में बेच दी। बाद में हजारी राय के दो भतीजों दिलचंद कुमार और प्रेमचंद कुमार को रेलवे में नौकरी मिली। 2014 में इस कंपनी सारे अधिकार और उसकी सारी संपत्तियाँ राबड़ी देवी और मीसा भारती के नाम पर चली गईं। राबड़ी देवी ने इस कंपनी के ज्यादातर शेयर खरीद लिए और इस कंपनी की डायरेक्टर बन गईं।

2.) नवंबर 2007 में पटना की रहने वाली किरण देवी ने अपनी 80,905 वर्ग फीट की जमीन मीसा भारती के नाम पर कर दी। यह सौदा सिर्फ ₹3.70 लाख में हुआ था। बाद में किरण देवी के बेटे अभिषेक कुमार को मुंबई में रेलवे में नौकरी मिली।

3.) फरवरी 2008 को पटना के किशुन देव राय ने अपनी 3375 वर्ग फीट जमीन ₹3.75 लाख में राबड़ी देवी को बेच दी। इसके बदले में किशुन राय के परिवार के तीन लोगों को रेलवे में नौकरी दी गई।

4.) फरवरी 2008 में पटना के महुआबाग में रहने वाले संजय राय ने 3375 वर्ग फीट की अपनी प्लॉट को राबड़ी देवी को ₹3.75 लाख में बेच दी। इसके बदले में संजय राय और उनके परिवार के 2 सदस्यों को रेलवे में नौकरी दी गई थी।

5.) मार्च 2008 में ब्रिज नंदन राय ने 3375 वर्ग फीट की अपनी जमीन गोपालगंज के रहने वाले ह्रदयानंद चौधरी को ₹4.21 लाख में बेच दी (तत्कालीन असली कीमत: ₹62 लाख)। बाद में ह्रदयानंद चौधरी ने यह जमीन लालू यादव की बेटी हेमा को तोहफे में दे दी। ह्रदयानंद चौधरी को साल 2005 में हाजीपुर में रेलवे में भर्ती किया गया था।

6.)  मार्च 2008 में विशुन देव राय ने अपनी 3375 वर्ग फीट की जमीन सीवान के ललन चौधरी को बेची। उसी साल ललन के पोते पिंटू कुमार को पश्चिमी रेलवे में भर्ती कराया गया। फरवरी 2014 में ललन चौधरी ने यह जमीन लालू यादव की बेटी हेमा को गिफ्ट कर दी।

7.) मई 2015 में पटना के रहने वाले लाल बाबू राय ने अपनी 1360 वर्ग फीट जमीन राबड़ी देवी को ₹13 लाख में बेच दी। 2006 में लाल बाबू राय के बेटे लाल चंद कुमार को रेलवे में नौकरी दी गई थी।

शनिवार, 1 जुलाई 2023

कुछ अनसुना इतिहास...भाग 01

बॉम्बे / मुंबई

1661 में जब इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरिन से विवाह किया तो राजा को दहेज में काफ़ी कुछ मिला। दहेज में शामिल था बॉम्बे का द्वीप। उस समय भारत में पुर्तगाल ने बॉम्बे पर क़ब्ज़ा कर रखा था।

लंदन में अंग्रेज लोग काफ़ी कंफ्यूज हुए- बॉम्बे है किधर? कुछ बड़े अंग्रेज विद्वान बोले- शायद ब्राज़ील के धोरे है। दहेज तो मिला लेकिन एक साल लग गया ये जानने में - बॉम्बे दुनिया में है किधर? 

1662 में जब अंग्रेज़ी हुकूमत को बॉम्बे की लोकेशन कन्फर्म हुई- तो अंग्रेज सूबेदार सर अब्राहम शिपमन को साढ़े चार सौ आदमियों के साथ बॉम्बे पर क़ब्ज़ा करने भेजा। जब शिपमन ने बॉम्बे में कदम रखा तो पुर्तगाली गवर्नर ने इन अंग्रेजों पर बंदूके तान दी। पुर्तगाली गवर्नर को ये नहीं ज्ञात था कि दहेज में बंबई दिया जा चुका है। अंग्रेज और पुर्तगाली फ़ौज में मुठभेड़ हुई- तीन साल तक झड़पें चलती रही। 1665  में अंतः पुर्तगाल के राजा के फ़रमान के बाद पुर्तगाली गवर्नर वहाँ से निकल गया। शिपमन उस से पहले ही ख़ुदा को प्यारा हो लिया था- केवल 115  अंग्रेज लोग शेष बचे थे 450 में से। 

इधर से बॉम्बे की कहानी शुरू हुई थी। दहेज देने वाला पुर्तगाली, लेने वाला अंग्रेज और जगह हिंदुस्तानी।
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मद्रास/ चेन्नई

1626 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपना पहला क़िला बनाया- नये शहर मद्रासपतिनम में । फ़्रांसिस डे नामक अंग्रेज गवर्नर ने वहाँ के नायक से ये गाँव ख़रीदा । 

फ़्रांसिस डे की एक वहाँ की लोकल मछुरनियान महिला से आशनाई थी- फ़्रांसिस डे को इस मछलीवाली से नाईट में मुलाक़ात करना अच्छा लगता था तो उसने ये निर्जन वीरान गाँव कंपनी के नाम ख़रीद लिया। शुरू में इधर कुछ फ़्रेंच पादरी और छः लोकल मछुआरे परिवार रहते थे। कंपनी ने एलान किया आगामी तीस साल तक इधर कोई कस्टम ड्यूटी टैक्स आदि देना ना पड़ेगा। बस इस के तहत जुलाहे ,व्यापारी आदि भर भर कर आने शुरू हो गये - सैंट जॉर्ज क़िला बनने से पहले आबादी बसनी शुरू हो चुकी थी। 
   अगले चालीस वर्षों में लोकल अंगेज़ हुकूमत के चलते चालीस हज़ार से ऊपर लोग इधर बस चुके थी - ख़ुद की बनाये स्वर्ण सिक्के भी चलने लगे थे। जब मद्रास पूर्ण विकसित हो चुका था तब बॉम्बे पर अंग्रेज क़ब्ज़ा होना शुरू हुआ। सूरत में भी प्रचुर मात्रा में अंग्रेज लोग मटरगश्ती करते दिखते। व्यभिचारी पियक्कड़ फ़सादी अंग्रेज लोगों को भारतीय लोग बेटीच* और बहनच* गालियों से सरेआम नवाज़ते थे। अंग्रेज ट्रैवललोग में ये गालीयाँ बक़ायदा नोट है। मतलब उन्हें बाद में समझ आया होगा।

मद्रास बना आशनाई से और बंबई बना दहेज से! 
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कोलकाता / कलकत्ता

1681 तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने पैर जमा लिए थे। मुनाफ़ा भरपूर हो रहा था - चाँदी काट रहे थे। इस समय सर जोशुआ चाइल्ड नामक आदमी कंपनी का डायरेक्टर बना। सर चाइल्ड को मुग़ल सूबेदारों और अफ़सर लोगो को पेशकश अर्थात् रिश्वत देना बहुत अखरता था। औरंगज़ेब का मामू शाइस्ता ख़ान जो बंगाल का नवाब था- उसे अंग्रेज़ लोगो से सख़्त घृणा थी। बादशाह को कई बार आगाह भी किया था।

सर चाइल्ड ने 1686  में लंदन से सैन्य सहायता मंगाई- इरादा था मुग़ल रिश्वतखोरी को ताक़त से क़ाबू करेंगे। लंदन से उन्नीस जहाज़ आये- दो सौ तोप और छः सौ गोरे सिपाही। लेकिन सर चाइल्ड ने समय बड़ा ग़लत चुना। इस टाइम औरंगज़ेब ख़ुद पूरी फ़ौज लेके दखन में पड़ा हुआ था- मराठा और बीजापुर के ख़िलाफ़ लड़ाई में। जुलाहे का ग़ुस्सा दाढ़ी पर निकाला- इन अंग्रेजों को मुग़लिया सेना ने पटक कर मारा- सब सफ़ाचट कर दिया। यही नहीं- हुगली, पटना क़ासिमबाज़ार मसूलीपतनाम विशाखापतनाम आदि में कंपनी की फैक्ट्री सब तबाह कर दी गई। सूरत और ढाका में अंग्रेज़ी अफ़सरन को बेडियो में जकड़ घुमाया गया। 1690 में बादशाह ने काफ़ी लल्लोचप्पो के बाद कंपनी को माफ़ी दी और फिर से व्यापार करने की अनुमति।

हालाँकि औरंगज़ेब ने अंग्रेज कंपनी के व्यापार आदि बंद करवा दिये थे लेकिन हज यात्रा रुके नहीं और ईस्ट इंडिया कंपनी से मिलने वाला पैसा ना मारा जाये- इन कारणों से बादशाह ने तीन साल बाद 1690 में ईस्ट इंडिया कंपनी को तीन हज़ार रुपये सालाना पर फिर से व्यापार करने की अनुमति दे दी। गौर करने वाली दो बाते थी- कंपनी को इतना भारी नुक़सान हुआ था लेकिन फिर भी ये अंग्रेज भारत में व्यापार करने को उतावले थे। दूसरी बात- औरंगज़ेब जैसे फ़क़ीर को रेवन्यू लॉस की इतनी फ़िक्र थी कि मात्र तीन हज़ार सालाना के लिए बंगाल में कंपनी को लाइसेंस फिर से दे दिया।

ख़ैर- जॉन चरणोंडक नामक अंग्रेज बारिश के मौसम में बंगाल में अंग्रेज़ी थीया ढूँढ रहा था। सुतानुति और कालीकटा नामक गाँव के पास उसने दलदल वाली एक जगह देखी और इस जहां उसने कलकत्ता नामक कॉलोनी बसाने का निर्णय लिया। अंग्रेज़ी रोजनामचे के अनुसार इस से बदतर जगह कोई और हो ही नहीं सकती थी- सती प्रथा से लबरेज़ ये स्थान मूर्तिपूजा के लिए जाना जाता था। दलदली जगह और ना रहने योग्य मौसम। जॉन ने इधर एक सती होती हुई स्त्री को बचाया और उससे विवाह किया। ये सब लोग उधर नये बसाये शहर में रहने लगे। 

एक साल के भीतर ही इस नये शहर में एक हज़ार लोग रहने आ चुके थे किंतु चिंता वाली बात और कुछ थी। इसी समय में साढ़े चार सौ लोग मर भी चुके थे। कहावत थी- इधर रहो अंग्रेजों की भाँति और मरो भेड़ बकरियों की भाँति। ख़ैर जो भी हो- शहर बस चुका था और अंग्रेज़ी व्यापार भी जम चुका था। 

औरंगज़ेब को ये तीन हज़ार रुपये बड़े भारी पड़े। कालांतर में बहादुर शाह ज़फ़र की दाढ़ी को जब अंग्रेज़ी अफ़सरान ने पकड़ खींचा तो इन तीन हज़ार रुपये के एक एक कौड़ी को वसूला होगा।

शुक्रवार, 30 जून 2023

भारत का सड़क नेटवर्क...

दिन रात बिलखते रहने वाले खांगरेसियों की जली हुई गेंद पर नमक छिड़कने के पवित्र उद्देश्य से एक जानकारी दे रहा हूँ ---
2013 - 14 में सड़क नेटवर्क 91287 किलोमीटर था , केवल नौ साल में बढ़ कर  145240 किलोमीटर हो गया है ।
2013-14में चार लेन राष्ट्रीय राजमार्ग  18371 किलोमीटर थे  अब यह 44657 किलोमीटर हो गए हैं ।
वैश्विक दृष्टि से देखें तो सड़क नेटवर्क के मामले में भारत ने चीन को पछाड़ कर दूसरा स्थान प्राप्त कर लिया है ।
तीन प्रमुख देशों में सड़क नेटवर्क 
1. अमेरिका -- 6830479 किलोमीटर 
2. भारत -- 6372613 किलोमीटर 
3. चीन -- 5198000 किलोमीटर

गुरुवार, 29 जून 2023

सैन्य कमांडरसंताजी & बादशाह औरंगजेब

Lसितंबर 1689 से 1696 वर्ष अर्थात सात वर्ष के भीतर मराठा सैन्य कमांडर संताजी घोरपड़े का बर्बर मुगलिया बादशाह औरंगजेब के साथ 11 बार घनघोर संघर्ष हुआ और इसमें से 9 बार औरंगजेब की सेना का जनाजा निकाला था सत्रहवीं सदी के सबसे महानतम सैन्य जनरल संता जी ने।

लेकिन इतिहास की पुस्तकें, मुख्यधारा के वामपंथी इतिहासकारों के इतिहास लेखन से एकदम गायब अध्याय !

ऐसा ही किया गया है !

कुत्सित, भ्रष्ट, विकृत और अर्द्धसत्यों का तम्बू खड़ा किए ये मक्कार इतिहास के इस सर्वाधिक रोमांचक व प्रेरक अध्याय को इग्नोर करके चलते हैं !

लेकिन सत्य तो तदयुगीन कृतियों में, ऐतिहासिक वृत्तांतों के भीतर मुकम्मल तस्वीर लेकर प्रस्तुत हुआ है।

आज 363 वीं जयंती है इस अतुलनीय जनरल की।

देखिए उस महासूरमा के कारनामे -----

1) सितंबर 1689 --- औरंगजेब के जनरल शेख निजाम को रौंदा।

2) 25 मई 1690 को सरजाखान उर्फ रुस्तम खान को सतारा के पास घसीट घसीट कर मारा।

3) 16 दिसंबर 1692 को औरंगजेब के जनरल अली मर्दान खान को पराजित करके जिंजी के दुर्ग में बंधक बना दिया।

4) 27 दिसंबर 1692 में मुगल सेनापति जुल्फिकार अली खान को जमकर रगड़ा संताजी ने और 5 वर्ष से जिन्जी दुर्ग की घेराबंदी करने वाले इस मुगलिया सेनापति को उसकी औकात दिखाई।

5) 5 जनवरी 1693 ईस्वी में देसूर स्थित औरंगजेब की विशाल सैन्यवाहिनी को 2000 चपल मराठा घुड़सवारों के साथ लैस होकर संताजी ने पूरी तरह ध्वस्त कर डाला था।
बादशाह किस्मत के संयोग और ईश्वरीय दुआ से उस रात अपने शिविर में मौजूद न होकर अपनी बेटी के तम्बूखाने में आराम फरमा रहा था, नहीं तो उसी दिन मुगलों का तबेला निकल जाता पूरे देश से !

6) 21 नवम्बर 1693 ईस्वी को मुगल जनरल हिम्मत खान को विक्रमहल्ली, कर्नाटक में बुरी तरह रौंदा संताजी घोरपड़े ने...

7) जुलाई 1695 में खटाव के पास घेरा डाले उछल रही मुगल सेना का कचमूर निकाला इस महान जनरल ने।

8) 20 नवम्बर 1695 ईस्वी को कर्नाटक में तैनात औरंगज़ेब के शक्तिशाली जनरल कासिमखान को चित्रदुर्ग के पास डाडेरी में घेरकर उसका सिर उतार लिया। मुगल राजकोष के 60 लाख रुपए संताजी ने हथियाए।

9) 20 जनवरी 1696 को कासिम खान के सहायतार्थ तैनात किए गए मुगल सैन्य कमांडर हिम्मत खान बहादुर को बसवपाटन(डाडेरी से 40 मील पश्चिम) के युद्ध में अभिभूत करते हुए जन्नत प्रदान किया।

10) 26 फरवरी 1696 को मुगल जनरल हामिद-उद्दीन खान ने संता जी को हराने में सफलता पाई थी।

11) अप्रैल 1696 में जुल्फिकार खान ने अरनी, कर्नाटक के पास एक बार युद्ध मैदान में संताजी को हराने में सफलता प्राप्त की थी।

आजीवन हिन्दू पद पादशाही और मराठा स्वाधीनता आन्दोलन के अपराजेय स्वर को ऊंचाई देने वाले इस अप्रतिम मराठा सेनानी से मुगल कितना भय और खौफ खाते थे तथा उनके मन में एशिया के इस सर्वोच्च सैन्य जनरल के प्रति कितनी नफरत भरी थी, इसका प्रमाण मुगलों के दरबारी इतिहासकार खाफी खान के शब्दों में पढ़िए :

         [ "...... जिस किसी ने भी संताजी का सामना किया, उन्हें या तो मार दिया गया या घायल कर दिया गया या बंदी बना लिया गया, या यदि कोई भाग निकला तो अपनी सेना और जान माल की हानि के साथ केवल अपनी जान बचा पाने में सफल हो पाया।

     ......यह शापित कुत्ता(संताजी घोरपड़े) जहां भी गया, किसी भी शाही अमीर में इतनी हिम्मत व साहस नहीं हुआ कि इसका मुकाबला कर सकें। किसी के करते कुछ न हो सका। मुगल सेना उसकी शक्ति व प्रतिष्ठा को अकेले इसने जितनी क्षति पहुंचाई है, शायद किसी भारतीय शक्ति ने कभी पहुंचाई हो।
स्थिति यह है कि मुगल खेमे का बड़े से बड़ा साहसी सूरमा दक्कन की जमीन पर भय व खौफ के साए में जी रहा है !

बादशाह द्वारा इस कुत्ते को नेस्तनाबूद करने के लिए जब अपने सबसे बडे़ जनरल फिरोज जंग को तैनात किया गया और उसे खबर मिली कि संताजी उससे सिर्फ 16 से 18 मील की दूरी पर आ खड़ा हुआ है घेरने, उस मुगल सैन्य कमांडर का चेहरा खौफ से बदरंग हो उठा। मुगल कमांडर के पास कोई रास्ता नहीं था, लिहाजा उसने सैन्य शिविर में घोषणा की कि वह संताजी से मुकाबला करने जा रहा है, लेकिन सेना को आगे भेजते हुए यह बड़का मुगल तोप गोल चक्कर वाले रास्ते से कल्टी मार बीजापुर की तरफ भाग गया।"

                (मुंतखुब-उल-लुआब, खाफी खान.)]

मुगलों के दरबारी इतिहासकारों द्वारा तथा फारसी स्रोतों में इस दुर्दांत सूरमा के बारे में जिस तरह के विशेषण प्रयुक्त हुए हैं, वे सबसे बडे़ व वास्तविक प्रमाण हैं कि औरंगजेब और मुगल साम्राज्य के गुरूर व दर्प को कितना अभिभूत कर डाला था इस मराठा रक्त ने !

प्रसिद्ध इतिहासकार सर यदुनाथ सरकार अपनी पुस्तक "भारत के सैन्य इतिहास" में संताजी के बारे में लिखते हुए इसी बात को रेखांकित करते हैं :

       ("संताजी की ख्याति व प्रसिद्धि का सबसे बड़ा स्मारक मुगल सेना के सभी सैन्य कमांडरों के मन में उनके द्वारा संचारित भय व खौफ है, और यह सब फारसी स्रोतों में संताजी के नाम के साथ विशेषण के रूप में उपयोग किए जाने वाले शाप और गालियों में ईमानदारी के साथ परिलक्षित होता हुआ दिखता है।")

संताजी के नेतृत्व में हिन्दू धर्म और संस्कृति के रक्षार्थ प्रतिबद्ध मराठा स्वराज और हिन्दू पद पादशाही की भयानक मुठभेड़ का सिलसिलेवार विवरण इतालवी यात्री तथा मुगल दरबार में तैनात तोपची निकोलाओ मनूची की शानदार कृति "स्टोरिया द मोगोर"(मुगल कथाएं) में अंकित है। सर्वाधिक रोमांच व जीवन्त अहसास पाने के लिए अध्येताओं को इन अंशों को इसी पुस्तक से पढ़ना चाहिए।

"इतिहास के पृष्ठों में एक जनरल तथा सैन्य कमांडर के रूप में प्रतिष्ठित संताजी की तुलना तैमूर और चंगेज खान जैसे महान एशियाई जनरलों से की गई। यह वास्तविक तुलना और हकीकत भी है। संताजी हमेशा 20 से 25 हजार तीव्रगामी अश्वों से लैस घुड़सवार सेना का नेतृत्व करते थे। गुरिल्ला रणनीति के साथ पार्थियन युद्ध सैन्यकला से उनके कौशल की तुलना की जा सकती है। कारण, वह रात्रि में न केवल मार्च करते थे बल्कि तीव्र गति से लंबी दूरी भी तय करते थे। व्यापक क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों को अंजाम देते हुए शत्रु खेमे में आतंक की सृष्टि कर देते थे। सटीकता तथा समय की पाबन्दी के साथ प्रचंड आक्रामक कार्यवाही जो चंगेज खान व तैमूरलंग के अलावा किसी भी एशियाई सेना के लिए नामुमकिन थी, संताजी के सैनिक कारनामों में यह सर्वत्र दिखती है। दुश्मन की योजना और परिस्थितियों के भीतर हर बदलाव का तुरन्त फायदा उठाने के लिए अपनी रणनीति को बदलते हुए लम्बी दूरी तक फैली बड़ी संख्या में सैनिकों को संभालने और विफलता के जोखिम के बिना संयुक्त सैन्य प्रहार को अंजाम देने की जन्मजात प्रतिभा संताजी में थी।" 

                     (मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इण्डिया; सर यदुनाथ सरकार.)

अपनी इस असाधारण सैन्य रणनीति के चलते संताजी मराठा सेनापतियों में छत्रपति शिवाजी के बाद सर्वोच्च घुड़सवार सेनापति के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी इस विरासत का विस्तार और क्रियान्वयन आगे पेशवाओं के शासनकाल में बाजीराव प्रथम और रघुजी भोंसले द्वारा सफलतापूर्वक किया गया। मराठों की सैन्य सर्वोच्चता के प्रवर्तक संताजी ही थे जिन्हें इतिहास के भीतर वह गौरव और महत्ता मिली नहीं, जिसके वास्तविक हकदार वे थे !

मराठा इतिहास के भीतर सर्वोच्च कमांडर तीन ही गिने गए ---- छत्रपति शिवाजी महाराज, संताजी घोरपड़े और बाजीराव।

इतिहास के चमकदार पृष्ठों में छत्रपति राजे और बाजीराव का नाम तो फिर भी हिन्दू जनसमुदाय जानता है। काफी हद तक बूझता गुनता है ! लेकिन संताजी घोरपड़े के बारे में अध्येताओं से चर्चा कीजिए तो....??

बुधवार, 28 जून 2023

धान की रुपाई.....पुरानी यादें

जेठ के महीने में  ही इंजन (ट्यूबबेल) के पास वाली डेबरी ( छोटे खेत)  में इंजन से पानी भर दिया गया है। तीन-चार दिन बाद ओंठि हो गई है यानि खेत अब  जोतने योग्य हो गया है। 

आज बड़े वाले बैल की गोई (जोड़ी) से खेत की जुताई हो रही है।  खेत के कोनों को फरुहा( फ़ावड़ा)  से गोंड़ (खुदाई)  दिया गया है।  सरावनि (लकड़ी का मोटा पटरा) से खेत को बराबर कर दिया गया है।खेत की जितनी खरपतवार,  घास-दूब है उसे  निकाल लिया गया है।

 अब खेत में पानी भर दिया गया है।  पानी भरे हुए खेत में दो-तीन बार अमिला (जुताई और पटाई) दे  दिया गया है। अब खेत की मिट्टी  बिल्कुल मुलायम, भुरभुरी हो गई है। खेत धान बोने के लिए बिल्कुल तैयार है।

 आज आषाढ़ का पहला दिन है।  भाई बाबा ने दो-तीन दिन पहले  से घर में फूल रहे धान को खेत में ले आए हैं। धान बोने से पहले पूरे खेत के पानी को खूब गंदा कर दिया गया है ताकि जब धान बो दिए जाएं तो इस गंदे पानी की परत धान के बीज के ऊपर चढ़ जाए और पक्षियों को ऊपर से धान न दिखे और वह इसे चुग न सके।

अब बाबा धान को एक बड़ी टोकरी में लेकर पहले खेत को झुक कर प्रणाम करते हैं , भगवान का नाम लेते हैं और फिर धान को दाहिने हाथ से पूरे खेत में बिथराते  चले जा रहे हैं। धान की बुआई हो रही है।

खेत का पानी गंदा करने के बावजूद शुरुआत के 1 हफ्ते   पक्षियों से धान की निगरानी करनी ही पड़ती है।  यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि नीलगाय, गाय या भैंस खेत में पानी पीने के लिए या गर्मी से राहत पाने के लिए घुस न जाएं।  नहीं तो उनके खुर के निशान जहां पड़ जाएंगे उस स्थान पर बेंड़ न उगेगी।

 आज धान बोए हुए पूरा एक हफ्ता हो गया है । धान  से छोटी-छोटी हरी मुलायम कोंपले बाहर निकलने लगी हैं।   अब पक्षियों का डर नहीं रहा, बस जानवरों का ध्यान रखना है। आज पूरे 25 दिन हो गए हैं । अब बेंड़  पूरी तरह रोपने के लिए तैयार है। 

 भाई बाबा पासिन टोला, गुड़ियन का पुरवा,  अहिरन का पुरवा में 15 मजूरों (मजदूरों) की गिनती कल और परसों के लिए कर आए हैं। आज सुबह से घर के लोग, सुंदर बाबा, हिरऊ बाबा सरावनि में बैठकर बेंड़ उखाड़ने लगे हैं।   बेंड़ के एक-एक पौधे को जड़ से उखाड़ कर  मूठी (मुट्ठी) भर जाने पर उसकी जोरई  (जूरी)बनाकर पीछे रखते जा रहे हैं।  

जैसे-जैसे बेंड़ उखड़ती  जा रही है, खेत खाली होता जा रहा है और सरावनि आगे बढ़ती जा रही है।   अब एक झौआ से अधिक बेंड़ की जूरी तैयार हो गई है । उसे लेकर चाचा धान रोपने के लिए तैयार बड़े वाले खेत 'बीजर'  में पहुंच गए हैं।  एक छोटे छीटा(टोकरी) में बेंड़ लेकर मैं भी उनके पीछे-पीछे पहुंच गया हूं। चाचा बेंड़ को पूरे खेत में  कुछ कुछ फासले पर फैलाते  जा रहे हैं ताकि मजूरों को बेंड़ लगाते समय इधर उधर न भागना पड़े ।

 अब बेंड़ लगाने वाली  मजूरों की टोली आ चुकी है । सभी महिलाएं हैं। हंसी मजाक करती महिलाएं अपनी धोती को घुटनो तक समेट कर पानी भरे खेत में प्रवेश कर चुकी हैं । राम का नाम लेकर उन्होंने बेंड़ की जूरी खोली और अब एक-एक धान का पौधा सधे हाथों से बराबर दूरी पर रोपना शुरू  कर दिया है । मैं महिलाओं के पीछे-पीछे उन्हें बेंड़ देते जा रहा हूँ।  जहां बेंड़ ज्यादा हो जाती  या बच जाती, वहां से हटाते जा रहा हूँ और जहां कम होती वहां पर बेंड़ रखते जा रहा हूँ। 

अब महिलाओं ने सावन का  गीत सामूहिक स्वर में गाना शुरू कर दिया है-

"चला सखी रोपि आई खेतवन में धान, बरसि जाई पानी रे हारी..'',

एक महिला गीत की पहली पंक्ति गाती है और बाकी महिलाएं उसके पीछे दुहराती जा रही हैं। उनके गीतों में देसी पन है,  स्वरलय भी कभी गड़बड़  हो जाता  है लेकिन भाव बिल्कुल शुद्ध, सात्विक हैं। भगवान इंद्र भी शायद ही उनकी इस निर्दोष जन हितकारी मांग को ठुकरा पाएं। बीच-बीच में वे एक दूसरे से चुहलबाजी भी करती जा रही हैं।

 अरे यह क्या ? मैंने जोर से बेंड़ उठा कर महिलाओं के पीछे फेंक दी।  पानी का छिट्टा  दो महिलाओं पर गिरा,  वे मुझे घूरने लगी। चाचा ने मुझे जोर से डांटा।   बेंड़ ऐसे  दूर से नहीं फेंकनी है,  वहां  पास जाकर रखना होता है। इनके कपड़े गीले हो गए तो  यह लोग दिनभर इन्हीं गीले कपड़ों में कैसे काम करेंगी?  यह उनका रोज का काम है। बीमार हो जाएंगी। खैर महिलाओं ने ज्यादा बुरा नहीं माना। बच्चा समझकर मुझे माफ कर दिया और फिर से अपने काम में जुट गई  हैं। 

अब दोपहर होने को है । बाबा खुद घर की तरफ जा रहे हैं और मुझे अपने साथ ले गए हैं।  वहां  गेंहू और चना  उबालकर और उसमें थोड़ा लोन (नमक) डालकर  बनाई हुई घुघरी अजिया ने बनाकर पहले से  तैयार रखी हुई है । उसके साथ  हरी धनिया, हरी मिर्च  को मिलाकर सिलवट (सिलबट्टे)  में पीसा हुआ नमक भी तैयार है ।

अब बाबा एक बड़ी डलिया में  कपड़े के ऊपर घुघुरी डालकर,  डलिया को पूरा भर दिए हैं और फिर  उसी कपड़े से घुघुरी को पूरा ढककर  खेत की ओर चल पड़े हैं।  उनके वहां पहुंचते ही महिलाएं हाथ- पैर धोकर मेंड़ पर बैठ गई हैं।  बाबा उन्हें अपनी अजूरे (दोनों हाथों)  से भर- भर कर घुघुरी देते जा रहे हैं। महिलाएं अपने आंचल में इसे लेती जा रही हैं। दोबारा मांगने पर भी बाबा मना नहीं करते,  हंस-हंसकर देते जा रहे हैं।

 हाथ से नमक देने और लेने से लड़ाई होती है,  मनमुटाव होता है इसलिए महिलाएं  कागज में या किसी साफ पत्ते में चम्मच से  नमक  ले रही हैं। अरे यह क्या मैंने रूपा को हाथ से नमक दे दिया,  अब उसे चुटकी काटनी पड़ेगी।  नहीं तो लड़ाई हो जाएगी ।  

 दुनिया में बहुत से स्वादिष्ट व्यंजन होंगे।  लेकिन  बदरी (बादल)  वाले मौसम में आषाढ़ के महीने  में खूब तेज भूख लगने पर  खेत की मेड़ पर बैठकर घुघुरी खाने  का जो स्वाद है वह अकल्पनीय है, अद्भुत, दैवीय है।

अब  बाबा ने कुछ देर के लिए इंजन  चला दिया है।  सब महिलाएं इंजन की हौदी से  ताज़ा पानी पीकर  पुनः बेंड़ रोपने  लगी है। उनका गाना भी बदस्तूर जारी है - 

" हरी हरी काशी रे , हरी हरी जवा के खेत। 
हरी हरी पगड़ी रे बांधे बीरन भैया,
चले हैं बहिनिया के देस।
केकरे दुआरे घन बँसवारी,
केकरे दुआरे फुलवारी, नैन रतनारी हो।
बाबा दुआरे घन बंसवारी,
सैंया दुआरे फुलवारी, नैन रतनारी हो।”---------------

अब  सूरज ढलने को है।  खेत भी थोड़ा ही बचा हुआ है।  बाबा खेत में आ गए हैं । संयोग देखिए कि शाम होने से पहले ही पूरे खेत में बेंड़ लग गई है । अब महिलाएं  हाथ -पैर धोकर बाबा को घेर कर खड़ी हो गई हैं।  बाबा उन्हें 7- 7 रुपए देते जा रहे हैं।   रूपा की अम्मा , उसकी बहन और वह खुद भी आई है  इसलिए रूपा की अम्मा को पूरे 21/- रुपये मिले हैं, सबसे ज्यादा।

 सबका हिसाब करने के बाद बाबा ने याद दिला दिया है कि  कल भी सब लोगों को आना है, बलदुआ  खेत में बेड़ लगाने के लिए। थकी -हारी लेकिन संतुष्ट महिलाएं अपने घर जा रही हैं। रूपा भी मुझे कनखियों से एक बार और देखकर अपनी अम्मा के साथ  घर जा रही है, कल फिर से आने के लिए।
(विनय सिंह बैस.. बैसवारा वाले)
(गांव-बरी लालगंज रायबरेली UP)
 

मंगलवार, 20 जून 2023

यहूदी धर्म का वैदिक इतिहास

विश्व के केवल दो समुदाय ऐसे है,
जो पुनर्जन्म को मानते है,
एक तो हमारे यदुवंशी यहूदी भाई,
ओर एक हिन्दू ....

यहूदी पंथ को Judaism कहा जाता है । 
वह Yeduism का अपभ्रंश है ।
सौराष्ट्र यह यदु लोगों का प्रदेश था ।
श्रीकृष्ण की द्वारिका उसी प्रदेश में है ।

वहाँ के शासक जाडेजा कहलाते हैं ।
जाडेजा यह " यदु-ज " शब्द का वैसा ही अपभ्रंश है 
जैसे Judaism है । 

जाडेजा और Judaism दोनों का अर्थ है यदु उर्फ जदुकुलवंशी । 
उसी पंथ का दूसरा नाम है Xionism | 
उसका उच्चार है "जायोनिज्म् " जो " देवनिज्म् " का अपभ्रंश है ।
भगवान कृष्ण देव थे अत : उनका यदुपंथ देवपंथ कहलाने लगा ।
 द या ध का अन्य देशों में " ज " उच्चार होने लगा ।
जैसे ध्यान वौद्धपंथ का उच्चार चीन - जापान में " जेन् " बौद्ध पंथ किया जाता है , 
उसी प्रकार " देवनिजम् " का उच्चार ज्ञायोनिजम हुआ ।

यहूदी परम्परा के प्रथम नेता अब्रह्म माने गए हैं ।
यह " ब्रह्म"शब्द का अपभ्रंश है ।
उनके दूसरे नेता " मोजेस् " कहलाते हैं ,
जो महेश शब्द का विकृत उच्चार है ।
मोझेस् की जन्मकथा कृष्ण की जन्मकथा से मेल खाती है , अत : वह महा-ईश भगवान कृष्ण ही हैं , इसके सम्बन्ध में किसी को शंका नहीं रहनी चाहिए ।

महाभारतीय युद्ध के पश्चात् द्वारिकाप्रदेश में शासकों के अभाव से लूटपाट , दंगे आदि आरम्भ हुए ।
धरती कम्पन आदि से सागर तटवर्ती प्रदेश जलमग्न होने लगा । 
अत : यादव लोग टोलियाँ बनाकर अन्यत्र जा बसने के लिए निकल पड़े ।
कुल २२ टोलियों में वे निकले ।
उनमें से १० टोलियां उत्तर की ओर कश्मीर की दिशा में चल पड़ी और कश्मीर , रूस आदि प्रदेशों में जा बसीं । अन्य १२ टोलियां इराक , सीरिया , पॅलेस्टाईन , जेरूसलेम , ईजिप्त , ग्रीम आदि देशों में जा बसीं ।

मध्य एशिया के १२ देशों में यदुवंशियों की वही १२ टोलियाँ हैं । वही यहूदियों की १२ टोलियां कहलाती हैं । भगवान कृष्ण के अवतार समाप्ति के पश्चात् यहूदी लोगों को जब कठिन और भीषण अवस्था में द्वारिका प्रदेश त्यागना पड़ा तभी से यहूदी लोगों ने मातृभूमि से बिछड़ने के दिन गिनने शुरू किए । उसी को यहूदियों का passover गक कहा जाता है । उसका अर्थ है मातृभूमि त्यागने के समय से आरम्भ की गई कालगणना ।
अब कोई बताएं की यहूदियो की मातृभूमि कौनसी थी ?

यहूदी बायबल में कृष्ण का बाल नाम स्पष्ठतः उल्लेखित है ।

हिब्रू भाषा यानी " हरिबूते इति हब्रू 

यहूदियों की भाषा का नाम “ हिब्रू " है । यहूदियों के आंग्ल ज्ञानकोष का नाम है Encyclopaedia Judaica | 
उसमें "हब्रु" शब्द का विवरण देते हुए कहा है कि
उस शब्द का पहला अक्षर जो " ह " है वह परमात्मा के नाम का संक्षिप्त रूप है । 
अब देखिए कि ऊपरले विवरण में दो न्यून हैं । 
एक न्यून तो यह है कि " ह " से निर्देशित होने वाला यहूदियों के भगवान का पूरा नाम क्या है ? यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया । करेंगे भी कैसे , जब ज्ञानकोषकारों का ही ज्ञान अधूरा है । 

हम वैदिक संस्कृति के आधार पर उस कमी को दूर करते हैं । " हरि " यह कृष्ण का नाम है , उसी का " ह " अद्याक्षर है । अब दूसरा न्यून यह है कि यहूदी ज्ञानकोष वालों ने हब्रू शब्द में ब्रू अक्षर क्यों लगा है ? यह कहा ही नहीं । उस महत्त्वपूर्ण बात का उन्हें ज्ञान न होने से वे उसे टाल गए । ब्रु अक्षर का तो बड़ा महत्त्व है । "ब्रूते " यानी बोलता है इस संस्कृत शब्द का वह अद्याक्षर है । अतः हब्रू का अर्थ है " हरि ( यानी कृष्ण ) बोलता था वह भाषा " । ठीक इसी व्याख्यानुसार संस्कृत और हब्रू में बड़ी समानता है ।

यहूदी लोगों वा धर्मचिह्न यहूदी लोगों के मन्दिर को Synagogue कहते हैं ।

उसका वर्तमान उच्चार “ सिनेगॉग " मूल संस्कृत " संगम " शब्द है ।

" संगम " शब्द का अर्थ है " सारे मिलकर प्रार्थना करना " ।
संकीर्तन , संतसमागम आदि शब्दों का जो अर्थ है वही सिनेगॉग उर्फ संगम शब्द का अर्थ है ।

यहूदी मन्दिरों पर षट्कोण चिह्न खींचा जाता है ।
वह वैदिक संस्कृति का शक्तिचक्र है ।

देवीभक्त उस चिह्न को देवी का प्रतीक मानकर उसे पूजते हैं ।
वह एक तांत्रिक चिह्न है ।
घर के प्रवेश द्वार के अगले आँगन में हिन्दु महिलाएं रंगोली में वह चिह्न खींचती हैं ।

दिल्ली में हुमायूं की कब्र कही जाने वाली जो विशाल इमारत है वह देवीभवानी का मन्दिर था । उसके ऊपरले भाग में चारों तरफ बीसों शक्तिचक्र संगमरमर प्रस्तर पट्टियों से जड़ दिए गए हैं ।

यहूदी लोगों में David नाम होता है वह " देवि + द " यानी देवी का दिया पुत्र इस अर्थ से डेविदु उर्फ डेविड कहलाता है । अरबों में उसी का अपभ्रंश दाऊद हुआ है । अतः हब्रू और अरबी दोनों संस्कृतोद्भव भाषाएँ हैं ।

भारत में यादव का उच्चार जाधव और जाडेजा जैसे बना वैसे ही यदु लोग यहूदी , ज्यूडेइस्टस् , ज्यू और झायोनिटस् कहलाते हैं ।
निर्देशित देश ज्यू लोग जब द्वारिका से निकल पड़े तो उन्हें साक्षात्कार हुआ जिसमें उन्हें कहा गया कि " Canaan प्रदेश तुम्हारा होगा " |

"कानान " यह कृष्ण कन्हैया जैसा ही कृष्ण प्रदेश का द्योतक था ।
यहूदी लोगों को भविष्यवाणी के अनुमार भटकते - भटकते सन् १९४६ में उनकी अपनी भूमि प्राप्त हो ही गई जिसका नाम उन्होंने Isreal रखा जो Isr=ईश्वर और ael = आलय इस प्रकार का " ईश्वरालय " संस्कृत शब्द है ।

यह एक और प्रमाण है कि यहूदी लोगों की परम्परा वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा से निकली है ।
हिटलर उनसे टकराकर नामशेष हो गया । मुसलमान भी यहूदियों से टकराने के लिए आतुर हैं तो उनका भी हिटलर जैसा ही अन्त होगा ।

यहूदी ग्रन्थ की भविष्यवाणी कृस्ती बायबल का Testament नाम का जो पूर्व खण्ड है उससे समय समय पर ईश्वर का अवतरण होता है ऐसी भविष्यवाणी है । वह भगवद्गीता से ही यहूदी धर्मग्रन्थ में उतर आई है । भगवद्गीता में भगवान कहते हैं
 
यदा यदा हि धर्मस्यग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् " ।

यहूदी नेता Moses की जन्मकथा श्रीकृष्ण की जन्मकथा जैसी ही है । और तो और श्रीकृष्ण का जैसा विराट रूप कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने देखा वैसा ही विराट रूप यहूदी लोगों ने रेगिस्तान में मोझेस का देखा , ऐसी यहूदियों की दन्तकथा है ।

पूर्ववर्ती पर्वत यदुईशालयम् उर्फ जेरूसलेम नगरी में दो पहाड़ियाँ हैं ।
उनमें से पूर्व वी पहाड़ी पर #Dome_on_the_Rock और #अलअक्सा नाम के दो प्राचीन वैदिक मन्दिर हैं , जो सातवीं शताब्दी से मुसलमानों के कब्जे में होने के कारण मस्जिदें कहलाती हैं ।
Dome on the Rock स्वयम्भू महादेव का मन्दिर है और अल्अक्सा अक्षय्य भगवान कृष्ण का मन्दिर है, एवं शक्तिपीठ भी  ।पूर्ववर्ती पहाड़ी पर ये मन्दिर बनाए जाना उनकी वैदिक विशेषता का द्योतक है ।

जिस प्रकार भारत में दो कुटुम्बों के बुजुर्गों से विवाह प्रस्ताव सम्मत होने पर युवक - युवतियों के विवाह होते हैं वैसी ही प्रथा - यहूदियों में भी है ।
वे भी भारतीयों की तरह प्रेम - विवाह को अच्छा नहीं समझते ।
वैदिक विवाहों के लिए मण्डप बनाए जाते हैं ।
यहूदियों को भी वही प्रथा है ।

वे भी मण्डपों में विवाह - संस्कार कराना शुभ समझते हैं।

यहूदियों में भी अनेक दीप लगाकर वैसा ही एक त्यौहार मनाया जाता है जैसे भारतीय लोग दीपावली मनाते हैं । वृक्ष - पूजन वैदिक संस्कृति में जिस प्रकार तुलसी , पीपल , बड़ आदि वृक्षों का पूजन किया जाता है ,
उन्हें पानी दिया जाता है और उनकी परिक्रमा की जाती है , वैसे ही यहूदी भी वृक्षों को पूज्य मानते हैं ।

यही शत्रु मुसलमान लोग यहूदियों को उतना ही कट्टर शत्रु मानते हैं जितना वे भारत के हिन्दू लोगों को मानते हैं ।

यहूदियों में वेदों का उल्लेख मार्कोपोलो के प्रवास वर्णन के ग्रन्थ में पृष्ठ ३४६ पर एक टिप्पणी इस प्रकार है- " Much has been written about the ancient settlement of Jews at Kaifungfu ( in China ) . One of the most interesting papers on the subject is in Chinese Reposi tory , Vol . XX . It gives the translation of a Chinese Jewish inscription ... Here is a passage " with respect to the Israeli tish religion we find an inquiry that its first ancestor , Adam came originally from India and that during the ( period of the ) Chau State the sacred writings were already in existence . . The sacred writings embodying eternal reason consist of 53 sections . The principles therein contained are very abstruse and the external reason therein revealed is very mysterious being treated with the same veneration as Heaven . The founder of the religion is Abraham , who is considered the first teacher of it . Then came Moses , who established the law , and handed down the sacred writings . After his time this religion entered China . " " इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा

" चीन के कायपुंगफू नगर में यहूदियों की एक बस्ती थी जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है । उसमें एक बड़ा ही रोचक लेख #Chinese_Repository नाम के ग्रन्थ के बीसवें खण्ड में सम्मिलित है । चीन में प्राप्त एक यहूदी शिलालेख का वह अनुवाद है । उसमें ऐसा उल्लेख है कि " यहूदियों के मूल धर्मसंस्थापक अँडम् ( यह " आदिम " ऐसा संस्कृत शब्द है । उसी से इस्लामी भाषा में आदमी यह शब्द बना है ) भारत - निवासी था । #चौ शासन के पूर्व ही उनके पवित्र ग्रन्थ उपलब्ध हो गए थे । उन ग्रन्थों में अनादि , अनन्त तत्स्व का विवरण ५३ भागों में प्रस्तुत है ।उसके तत्त्व बड़े गूढ़ हैं और उसमें दिया अनादि - अनन्त का वर्णन बड़ा रहस्यमय है । प्रत्यक्ष परमात्मा के जितना ही उनका महत्त्व माना गया है ।

वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास💐
शोभना राष्ट्रवादी 💐
जयति सनातन💐
जयतु भारतं💐
ॐ नमो नारायणाय💐

शनिवार, 17 जून 2023

हिंदु राजा और मुस्लिम रानी...

अक्सर हिंदू राजाओ को नीचा दिखाने के लिए जोधा अकबर का झूठा वैवाहिक संबंध इतिहास बता दिया जाता है..

तो आज हम बताते हैं हिन्दू राजा और मुस्लिम लड़कियो के वैवाहिक संबंध बनाने का इतिहास..

1-अकबर की बेटी शहज़ादी खानूम से महाराजा अमर सिंह जी का विवाह।

2-कुँवर जगत सिंह ने उड़ीसा के अफगान नवाब कुतुल खा कि बेटी मरियम से विवाह।

3-महाराणा सांगा मुस्लिम सेनापति की बेटी मेरूनीसा से ओर तीन मुस्लिम लड़किया से विवाह ।

4 -विजयनगर के सम्राट कृष्ण देव राय का गुजरात के नवाब सुल्तान महमूदशाह की बेटी मिहिरिमा सुल्तान से विवाह।

5-महाराणा कुंभा (अपराजित योद्धा) का जागीरदार वजीर खा की बेटी से विवाह।

6-बप्पा रावल (फादर ऑफ रावलपिंडी) गजनी के मुस्लिम शासक की पुत्री से और 30 से अधिक मुस्लिम राजकुमारीयो से विवाह ।

7-विक्रमजीत सिंह गोतम का आज़मगढ़ की मुस्लिम लड़की से विवाह।

8-जोधपुर के राजा राजा हनुमंत सिंह का मुस्लिम लड़की ज़ुबेदा से विवाह।

9-चंद्रगुप्त मौर्य का सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर की बेटी हेलेना से विवाह ।

10- कश्मीर के राजा सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ का  तुर्की के खालीफा मुहम्मद बिन क़ासिम की बेटी जैनम से विवाह इसके अलावा उनकी 8 मुस्लिम बीबीया भी थी ।

11-महाराणा उदय सिंह ने एक मुस्लिम लड़की लाला बाई से विवाह ।

12-राजा मान सिंह मुस्लिम लड़की मुबारक से विवाह।

13-अमरकोट के राजा वीरसाल का हामिदा बानो से विवाह।

14-राजा छत्रसाल का हैदराबाद के निजाम की बेटी रूहानी बाई से विवाह।

15-मीर खुरासन की बेटी नूर खुरासन का राजपूत राजा बिन्दुसार से विवाह।

ये तो वैवाहिक संबंध की बात हुई अब हिंदू राजाओ की मुस्लिम प्रेमिकाओ पर बात करते हैं ।

1-अल्लाउदीन खिलजी की बेटी "फिरोजा"" जो जालोर के राजकुमार विरमदेव की दीवानी थी वीरमदेव की युद्ध मै वीरगति प्राप्त होने पर फिरोजा सती हो गयी थी ।

2-औरंगजेब की एक बेटी ज़ेबुनिशा जो कुँवर छत्रसाल के पीछे दीवानी थी ओर प्रेम पत्र लिखा करती थी ओर छत्रसाल के अलावा किसी ओर से शादी करने से इंकार कर दिया था ।


3-औरंगजेब की पोती ओर मोहम्मद अकबर की बेटी सफियत्नीशा जो राजकुमार अजीत सिंह के प्रेम की दीवानी थी ।

4-इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान जो राजपूत जागीरदार कर्म चंद्र से प्रेम करती थी ।

5-औरंगजेब की बहन भी छत्रपति शिवाजी की दीवानी थी शिवाजी से मिलने आया करती थी ।

हिन्दू राजाओ की और भी बहुत सी मुस्लिम बीवीया थी लेकिन वो राज परिवार और कुलीन वर्ग से नहीं थी।
लेकिन उस समय की किताबो में ब्रिटिश और उस समय के कवियों के रचनाओ मैं जिक्र स्पष्ट है ।

और ब्रिटिश रिकॉर्ड में भी औऱ ज्यादातर हिन्दू राजाओ की एक से ज्यादा मुस्लिम बीवीया थी लेकिन रक्त शुध्दता की वजह से इनके बच्चो को अपनाया नहीं जाता ओर उन बच्चों को वर्णशंकर मान के जागिर दे दी जाती थी ।

तो ये ऐतिहासिक प्रक्षेप चप्पल की तरह फेंक कर उनके मुह पर अवश्य मारिए जो हिन्दुओ को जोधा अकबर जैसे झूठे ऐतिहासिक तथ्यों पर बहस करते हैं
कभी इनपर भी "बॉलीवुड" फिल्म बनाए ।


गुरुवार, 15 जून 2023

सरयूपारीण ब्राहमणों के गांव...

सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : 

गर्ग (शुक्ल- वंश)

गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज  कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|

(१) मामखोर (२) खखाइज खोर  (३) भेंडी  (४) बकरूआं  (५) अकोलियाँ  (६) भरवलियाँ  (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार  गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|

उपगर्ग (शुक्ल-वंश) 

उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|

बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार

यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल     बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

गौतम (मिश्र-वंश)

गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|

(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी

इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

उप गौतम (मिश्र-वंश)

उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|

(१)  कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े  (६) कपीसा

इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति  मानी जाति है|

वत्स गोत्र  ( मिश्र- वंश)

वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|

(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा

बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

कौशिक गोत्र  (मिश्र-वंश)

तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|

(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी

बशिष्ट गोत्र (मिश्र-वंश)

इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है|

(१) बट्टूपुर  मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी

शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश) 

शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|

(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ  (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच

गुरुवार, 25 मई 2023

आरएसएस बनाम आतंकी संगठन ।।

पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए कितने संगठन और कितने देशों में कार्य कर रहे हैं इसको नीचे से जानकारी ले सकते हैं जबकि हिन्दुस्तान के हिन्दुओं को हिन्दू बने रहने के लिए केवल एक संगठन कार्य कर रहा और उसका इतना विरोध केवल हिन्दू ही कर रहे वास्तव में चिंतनीय है ।
1) अल -शबाब (अफ्रीका), 
2) अल मुराबितुंन (अफ्रीका), 
3) अल -कायदा (अफगानिस्तान), 
4) अल -क़ाएदा (इस्लामिक मघरेब), 
5) अल -क़ाएदा (इंडियन सबकॉन्टिनेंट), 
6) अल -क़ाएदा (अरेबियन पेनिनसुला),
7) हमास (पलेस्टाइन), 
8) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन), 
9) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ (पलेस्टाइन), 
10) हेज़बोल्ला (लेबनान), 
11) अंसार अल -शरीया -बेनग़ाज़ी (लेबनान), 
12) असबात अल -अंसार (लेबनान), 
13) ISIS (इराक), 
14) ISIS (सीरिया),
15) ISIS (कवकस)
16) ISIS (लीबिया)
17) ISIS (यमन)
18) ISIS (अल्जीरिया), 
19) ISIS (फिलीपींस)
20) जुन्द अल -शाम (अफगानिस्तान), 
21) मौराबितौं (लेबनान), 
22) अलअब्दुल्लाह अज़्ज़म ब्रिगेड्स (लेबनान), 
23) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
24) अल -हरमैन फाउंडेशन (सऊदी अरबिया), 
25) अंसार -अल -शरीया (मोरोक्को),
26) मोरोक्को मुदजादिने (मोरक्को), 
27) सलफीआ जिहदिआ (मोरक्को), 
28) बोको हराम (अफ्रीका), 
29) इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (उज़्बेकिस्तान), 
30) इस्लामिक जिहाद यूनियन (उज़्बेकिस्तान), 
31) इस्लामिक जिहाद यूनियन (जर्मनी), 
32) DRW True -रिलिजन (जर्मनी)
33) फजर नुसंतरा मूवमेंट (जर्मनी)
34) DIK हिल्देशियम (जर्मनी)
35) जैश -ए -मुहम्मद (कश्मीर), 
36) जैश अल -मुहाजिरीन वल -अंसार (सीरिया), 
37) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टाइन (सीरिया), 
38) जमात अल दावा अल क़ुरान (अफगानिस्तान), 
39) जुंदल्लाह (ईरान)
40) क़ुद्स फाॅर्स (ईरान)
41) Kata'ib हेज़बोल्लाह (इराक), 
42) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
43) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt), 
44) जुन्द अल -शाम (जॉर्डन)
45) फजर नुसंतरा  बहुत (ऑस्ट्रेला)
46) सोसाइटी ऑफ़ द रिवाइवल ऑफ़ इस्लामिक हेरिटेज (टेरर फंडिंग, वर्ल्डवाइड ऑफिसेस)
47) तालिबान (अफगानिस्तान), 
48) तालिबान (पाकिस्तान), 
49) तहरीक -i-तालिबान (पाकिस्तान), 
50) आर्मी ऑफ़ इस्लाम (सीरिया), 
51) इस्लामिक मूवमेंट (इजराइल)
52) अंसार अल शरीया (तुनिशिया), 
53) मुजाहिदीन शूरा कौंसिल इन द एनवीरोंस ऑफ़ (जेरूसलम), 
54) लिबयान इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप (लीबिया), 
55) मूवमेंट फॉर वेनेस्स एंड जिहाद इन (वेस्ट अफ्रीका), 
56) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन)
57) तेव्हीद-सेलम (अल -क़ुद्स आर्मी)
58) मोरक्कन इस्लामिक कोंबटेंट ग्रुप (मोररोको), 
59) काकेशस अमीरात (रूस), 
60) दुख्तरान -ए -मिल्लत फेमिनिस्ट इस्लामिस्ट्स (इंडिया),
61) इंडियन मुजाहिदीन (इंडिया), 
62) जमात -उल -मुजाहिदीन (इंडिया)
63) अंसार अल -इस्लाम (इंडिया)
64) स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (इंडिया), 
65) हरकत मुजाहिदीन (इंडिया), 
66) हिज़्बुल मुझेडीन (इंडिया)
67) लश्कर ए इस्लाम (इंडिया)
68) जुन्द अल -खिलाफह (अल्जीरिया), 
69) तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी ,
70) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt),
71) ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स' फ्रंट (तुर्की),
72) हरकत -उल -जिहाद अल -इस्लामी (पाकिस्तान),
73) तहरीक -ए -नफ़ज़ -ए -शरीअत -ए -मोहम्मदी (पाकिस्तान), 
74) लश्कर ए तोइबा (पाकिस्तान)
75) लश्कर ए झांगवी (पाकिस्तान)
76) अहले सुन्नत वल जमात (पाकिस्तान ),
77) जमात उल -एहरार (पाकिस्तान), 
78) हरकत -उल -मुजाहिदीन (पाकिस्तान), 
79) जमात उल -फुरकान (पाकिस्तान), 
80) हरकत -उल -मुजाहिदीन (सीरिया), 
81) अंसार अल -दिन फ्रंट (सीरिया), 
82) जब्हत फ़तेह अल -शाम (सीरिया), 
83) जमाह अन्शोरूट दौलाह (सीरिया), 
84) नौर अल -दिन अल -ज़ेन्कि मूवमेंट (सीरिया),
85) लिवा अल -हक़्क़ (सीरिया), 
86) अल -तौहीद ब्रिगेड (सीरिया), 
87) जुन्द अल -अक़्सा (सीरिया), 
88) अल-तौहीद ब्रिगेड(सीरिया), 
89) यरमूक मार्टियर्स ब्रिगेड (सीरिया), 
90) खालिद इब्न अल -वालिद आर्मी (सीरिया), 
91) हिज़्ब -ए इस्लामी गुलबुद्दीन (अफगानिस्तान), 
92) जमात -उल -एहरार (अफगानिस्तान) 
93) हिज़्ब उत -तहरीर (वर्ल्डवाइड कलिफाते), 
94) हिज़्बुल मुजाहिदीन (इंडिया), 
95) अंसार अल्लाह (यमन), 
96) हौली लैंड फाउंडेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट (USA), 
97) जमात मुजाहिदीन (इंडिया), 
98) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया), 
99) हिज़्बुत तहरीर (इंडोनेशिया), 
100) फजर नुसंतरा मूवमेंट (इंडोनेशिया), 
101) जेमाह इस्लामियाह (इंडोनेशिया), 
102) जेमाह इस्लामियाह (फिलीपींस), 
103) जेमाह इस्लामियाह (सिंगापुर), 
104) जेमाह इस्लामियाह (थाईलैंड), 
105) जेमाह इस्लामियाह (मलेशिया), 
106) अंसार दीने (अफ्रीका), 
107) ओस्बत अल -अंसार (पलेस्टाइन), 
108) हिज़्ब उल -तहरीर (ग्रुप कनेक्टिंग इस्लामिक केलिफेट्स अक्रॉस द वर्ल्ड इनटू वन वर्ल्ड इस्लामिक केलिफेट्स)
109) आर्मी ऑफ़ द मेन ऑफ़ द नक्शबंदी आर्डर (इराक)
110) अल नुसरा फ्रंट (सीरिया), 
111) अल -बदर (पाकिस्तान), 
112) इस्लाम 4UK (UK), 
113) अल घुरबा (UK), 
114) कॉल टू सबमिशन (UK), 
115) इस्लामिक पथ (UK), 
116) लंदन स्कूल ऑफ़ शरीया (UK), 
117) मुस्लिम्स अगेंस्ट क्रुसडेस (UK), 
118) नीड 4Khilafah (UK), 
119) द शरिया प्रोजेक्ट (UK), 
120) द इस्लामिक दवाह एसोसिएशन (UK), 
121) द सवियर सेक्ट (UK), 
122) जमात उल -फुरकान (UK), 
123) मिनबर अंसार दीन (UK), 
124) अल -मुहाजिरों (UK) (Lee Rigby, लंदन 2017 मेंबर्स), 
125) इस्लामिक कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन (UK) (नॉट टू बी कन्फ्यूज्ड विद ओफ़फिशिअल मुस्लिम कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन), 
126) अहलुस सुन्नाह वल जमाह (UK), 
128) अल -गामा'अ (Egypt), 
129) अल -इस्लामियया (Egypt), 
130) आर्म्ड इस्लामिक मेन ऑफ़ (अल्जीरिया), 
131) सलाफिस्ट ग्रुप फॉर कॉल एंड कॉम्बैट (अल्जीरिया), 
132) अन्सारु (अल्जीरिया), 
133) अंसार -अल -शरीया (लीबिया), 
134) अल इत्तिहाद अल इस्लामिआ (सोमालिया), 
135) अंसार अल -शरीया (तुनिशिया), 
136) शबब (अफ्रीका), 
137) अल -अक़्सा फाउंडेशन (जर्मनी)
138) अल -अक़्सा मार्टियर्स' ब्रिगेड्स (पलेस्टाइन), 
139) अबू सय्याफ (फिलीपींस), 
140) अदेन-अबयान इस्लामिक आर्मी (यमन), 
141) अजनाद मिस्र (Egypt), 
142) अबू निदाल आर्गेनाइजेशन (पलेस्टाइन), 
143) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया)

अपने देश के कई नेता ये कहते है कि, कई लोग गलत तरीके से इस्लाम को बदनाम करते हैं। ये ऊपर लिखे सारे इस्लामिक संगठन तो शांति की स्थापना में लगे हुए है।
बस केवल "आरएसएस" ही ऐसा संगठन है, जो पूरे विश्व में भगवा आतंकवाद फैलाता है।

ऐसी सोच का क्या मतलब है.? ये तो है मानसिक विकलांगता है ।