गुरुवार, 25 मई 2023

आरएसएस बनाम आतंकी संगठन

पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए कितने संगठन और कितने देशों में कार्य कर रहे हैं इसको नीचे से जानकारी ले सकते हैं जबकि हिन्दुस्तान के हिन्दुओं को हिन्दू बने रहने के लिए केवल एक संगठन कार्य कर रहा और उसका इतना विरोध केवल हिन्दू ही कर रहे वास्तव में चिंतनीय है ।
1) अल -शबाब (अफ्रीका), 
2) अल मुराबितुंन (अफ्रीका), 
3) अल -कायदा (अफगानिस्तान), 
4) अल -क़ाएदा (इस्लामिक मघरेब), 
5) अल -क़ाएदा (इंडियन सबकॉन्टिनेंट), 
6) अल -क़ाएदा (अरेबियन पेनिनसुला),
7) हमास (पलेस्टाइन), 
8) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन), 
9) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ (पलेस्टाइन), 
10) हेज़बोल्ला (लेबनान), 
11) अंसार अल -शरीया -बेनग़ाज़ी (लेबनान), 
12) असबात अल -अंसार (लेबनान), 
13) ISIS (इराक), 
14) ISIS (सीरिया),
15) ISIS (कवकस)
16) ISIS (लीबिया)
17) ISIS (यमन)
18) ISIS (अल्जीरिया), 
19) ISIS (फिलीपींस)
20) जुन्द अल -शाम (अफगानिस्तान), 
21) मौराबितौं (लेबनान), 
22) अलअब्दुल्लाह अज़्ज़म ब्रिगेड्स (लेबनान), 
23) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
24) अल -हरमैन फाउंडेशन (सऊदी अरबिया), 
25) अंसार -अल -शरीया (मोरोक्को),
26) मोरोक्को मुदजादिने (मोरक्को), 
27) सलफीआ जिहदिआ (मोरक्को), 
28) बोको हराम (अफ्रीका), 
29) इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (उज़्बेकिस्तान), 
30) इस्लामिक जिहाद यूनियन (उज़्बेकिस्तान), 
31) इस्लामिक जिहाद यूनियन (जर्मनी), 
32) DRW True -रिलिजन (जर्मनी)
33) फजर नुसंतरा मूवमेंट (जर्मनी)
34) DIK हिल्देशियम (जर्मनी)
35) जैश -ए -मुहम्मद (कश्मीर), 
36) जैश अल -मुहाजिरीन वल -अंसार (सीरिया), 
37) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टाइन (सीरिया), 
38) जमात अल दावा अल क़ुरान (अफगानिस्तान), 
39) जुंदल्लाह (ईरान)
40) क़ुद्स फाॅर्स (ईरान)
41) Kata'ib हेज़बोल्लाह (इराक), 
42) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया), 
43) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt), 
44) जुन्द अल -शाम (जॉर्डन)
45) फजर नुसंतरा  बहुत (ऑस्ट्रेला)
46) सोसाइटी ऑफ़ द रिवाइवल ऑफ़ इस्लामिक हेरिटेज (टेरर फंडिंग, वर्ल्डवाइड ऑफिसेस)
47) तालिबान (अफगानिस्तान), 
48) तालिबान (पाकिस्तान), 
49) तहरीक -i-तालिबान (पाकिस्तान), 
50) आर्मी ऑफ़ इस्लाम (सीरिया), 
51) इस्लामिक मूवमेंट (इजराइल)
52) अंसार अल शरीया (तुनिशिया), 
53) मुजाहिदीन शूरा कौंसिल इन द एनवीरोंस ऑफ़ (जेरूसलम), 
54) लिबयान इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप (लीबिया), 
55) मूवमेंट फॉर वेनेस्स एंड जिहाद इन (वेस्ट अफ्रीका), 
56) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन)
57) तेव्हीद-सेलम (अल -क़ुद्स आर्मी)
58) मोरक्कन इस्लामिक कोंबटेंट ग्रुप (मोररोको), 
59) काकेशस अमीरात (रूस), 
60) दुख्तरान -ए -मिल्लत फेमिनिस्ट इस्लामिस्ट्स (इंडिया),
61) इंडियन मुजाहिदीन (इंडिया), 
62) जमात -उल -मुजाहिदीन (इंडिया)
63) अंसार अल -इस्लाम (इंडिया)
64) स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (इंडिया), 
65) हरकत मुजाहिदीन (इंडिया), 
66) हिज़्बुल मुझेडीन (इंडिया)
67) लश्कर ए इस्लाम (इंडिया)
68) जुन्द अल -खिलाफह (अल्जीरिया), 
69) तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी ,
70) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt),
71) ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स' फ्रंट (तुर्की),
72) हरकत -उल -जिहाद अल -इस्लामी (पाकिस्तान),
73) तहरीक -ए -नफ़ज़ -ए -शरीअत -ए -मोहम्मदी (पाकिस्तान), 
74) लश्कर ए तोइबा (पाकिस्तान)
75) लश्कर ए झांगवी (पाकिस्तान)
76) अहले सुन्नत वल जमात (पाकिस्तान ),
77) जमात उल -एहरार (पाकिस्तान), 
78) हरकत -उल -मुजाहिदीन (पाकिस्तान), 
79) जमात उल -फुरकान (पाकिस्तान), 
80) हरकत -उल -मुजाहिदीन (सीरिया), 
81) अंसार अल -दिन फ्रंट (सीरिया), 
82) जब्हत फ़तेह अल -शाम (सीरिया), 
83) जमाह अन्शोरूट दौलाह (सीरिया), 
84) नौर अल -दिन अल -ज़ेन्कि मूवमेंट (सीरिया),
85) लिवा अल -हक़्क़ (सीरिया), 
86) अल -तौहीद ब्रिगेड (सीरिया), 
87) जुन्द अल -अक़्सा (सीरिया), 
88) अल-तौहीद ब्रिगेड(सीरिया), 
89) यरमूक मार्टियर्स ब्रिगेड (सीरिया), 
90) खालिद इब्न अल -वालिद आर्मी (सीरिया), 
91) हिज़्ब -ए इस्लामी गुलबुद्दीन (अफगानिस्तान), 
92) जमात -उल -एहरार (अफगानिस्तान) 
93) हिज़्ब उत -तहरीर (वर्ल्डवाइड कलिफाते), 
94) हिज़्बुल मुजाहिदीन (इंडिया), 
95) अंसार अल्लाह (यमन), 
96) हौली लैंड फाउंडेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट (USA), 
97) जमात मुजाहिदीन (इंडिया), 
98) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया), 
99) हिज़्बुत तहरीर (इंडोनेशिया), 
100) फजर नुसंतरा मूवमेंट (इंडोनेशिया), 
101) जेमाह इस्लामियाह (इंडोनेशिया), 
102) जेमाह इस्लामियाह (फिलीपींस), 
103) जेमाह इस्लामियाह (सिंगापुर), 
104) जेमाह इस्लामियाह (थाईलैंड), 
105) जेमाह इस्लामियाह (मलेशिया), 
106) अंसार दीने (अफ्रीका), 
107) ओस्बत अल -अंसार (पलेस्टाइन), 
108) हिज़्ब उल -तहरीर (ग्रुप कनेक्टिंग इस्लामिक केलिफेट्स अक्रॉस द वर्ल्ड इनटू वन वर्ल्ड इस्लामिक केलिफेट्स)
109) आर्मी ऑफ़ द मेन ऑफ़ द नक्शबंदी आर्डर (इराक)
110) अल नुसरा फ्रंट (सीरिया), 
111) अल -बदर (पाकिस्तान), 
112) इस्लाम 4UK (UK), 
113) अल घुरबा (UK), 
114) कॉल टू सबमिशन (UK), 
115) इस्लामिक पथ (UK), 
116) लंदन स्कूल ऑफ़ शरीया (UK), 
117) मुस्लिम्स अगेंस्ट क्रुसडेस (UK), 
118) नीड 4Khilafah (UK), 
119) द शरिया प्रोजेक्ट (UK), 
120) द इस्लामिक दवाह एसोसिएशन (UK), 
121) द सवियर सेक्ट (UK), 
122) जमात उल -फुरकान (UK), 
123) मिनबर अंसार दीन (UK), 
124) अल -मुहाजिरों (UK) (Lee Rigby, लंदन 2017 मेंबर्स), 
125) इस्लामिक कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन (UK) (नॉट टू बी कन्फ्यूज्ड विद ओफ़फिशिअल मुस्लिम कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन), 
126) अहलुस सुन्नाह वल जमाह (UK), 
128) अल -गामा'अ (Egypt), 
129) अल -इस्लामियया (Egypt), 
130) आर्म्ड इस्लामिक मेन ऑफ़ (अल्जीरिया), 
131) सलाफिस्ट ग्रुप फॉर कॉल एंड कॉम्बैट (अल्जीरिया), 
132) अन्सारु (अल्जीरिया), 
133) अंसार -अल -शरीया (लीबिया), 
134) अल इत्तिहाद अल इस्लामिआ (सोमालिया), 
135) अंसार अल -शरीया (तुनिशिया), 
136) शबब (अफ्रीका), 
137) अल -अक़्सा फाउंडेशन (जर्मनी)
138) अल -अक़्सा मार्टियर्स' ब्रिगेड्स (पलेस्टाइन), 
139) अबू सय्याफ (फिलीपींस), 
140) अदेन-अबयान इस्लामिक आर्मी (यमन), 
141) अजनाद मिस्र (Egypt), 
142) अबू निदाल आर्गेनाइजेशन (पलेस्टाइन), 
143) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया)

अपने देश के कई नेता ये कहते है कि, कई लोग गलत तरीके से इस्लाम को बदनाम करते हैं। ये ऊपर लिखे सारे इस्लामिक संगठन तो शांति की स्थापना में लगे हुए है।
बस केवल "आरएसएस" ही ऐसा संगठन है, जो पूरे विश्व में भगवा आतंकवाद फैलाता है।

ऐसी सोच का क्या मतलब है.? ये तो है मानसिक विकलांगता है ।

शनिवार, 20 मई 2023

2000 की नोट बंद ही होना था...??

2016 में जब नोटबन्दी हुई थी तब आपको नोटबन्दी की जरूरत बताई थी। इसमें काला धन, पाकिस्तान पर चोट आदि शामिल नही थे। बस भारत के आर्थिक हालात जो कांग्रेस कर चुकी थी उसे समझाया गया था। तो पेश है पुनः पोस्ट आपकी खिदमत में।

अर्थशास्त्र का एक अंग होता है वित्त। वित्त ही अर्थशास्त्र नही होता। अर्थशास्त्र संसाधनों के समूह को कहते है और संसाधन, प्रकृति के स्रोत से मिलता है। मतलब इकोलॉजी से निकलता है इकोनॉमिक्स और इकोनॉमिक्स से निकलता है फाइनेंस।

भारत मे हम इस पर कंफ्यूज रहते है, क्योंकि हमने संसाधन से अर्थशास्त्र को अलग कर दिया है। एक समय मे सोने से मुद्रा तय होती थी, आज सरकार अपनी पावर से मुद्रा तैयार करती है। मैं धारक को 100 रुपये अदा करने का वचन देता हूँ। उस वचन का आधार सरकारी संवैधानिक शक्ति है, ना कि संसाधन।

कई बार हम सोने से या डॉलर से तुलना कर उसे नोट में परिवर्तित समझते हैं, लेकिन ऐसा नही है। सरकार जितना चाहे मुह उठा नोट छाप सकती है और ये दुनिया भर की कहानी है। आज की अर्थव्यवस्था संसाधन से कटके वित्त पे टिक गई है। इसी लिए GDP के लिए भी आपको वित्त के अंदर आना होगा, वरना आप GDP में योगदान नही दे रहे हो।

इसी का नतीजा था नोटबन्दी। लेकिन नोटबन्दी थी क्या? इससे पहले ये समझें कि नोट होता क्या है?

नोट को बनाया गया था विनिमय के माध्यम हेतु, नोट कभी विनिमय की वस्तु नही था। माध्यम जो होता है उसे आप एक जगह रोक नही सकते हो, वस्तु एक जगह रोकी जा सकती है। नोट माध्यम के लिए बनाया गया है कि जैसे ही आपने इस्तेमाल किया इसे आगे बढ़ाए, अब दूसरा इस्तेमाल करेगा। हुआ क्या कि लोगों ने नोट को वस्तु की तरह होल्ड पे रखना शुरू कर दिया, जैसे वो सोना चांदी या सम्पत्ति रखते थे। उसकी फ्लोटिंग बंद कर दी। अब जब फ्लोटिंग बंद होती है मार्किट में नोट की कमी शुरू हो जाती है, ऐसे में बाजार में नए नोट उतारने पड़ते हैं, और फिर मांग से ज्यादा आपूर्ति मार्किट में होती है, नतीजा महंगाई।

लेकिन ये महंगाई सीधे तौर पर ना आकर, पिछले दरवाजे से आती है, जिससे देश मे एक समांतर अर्थव्यवस्था बन जाती है। वो अर्थ्यवस्था देश तो चला रही होती है लेकिन सरकार के पास उसका कोई लेखा जोखा नही रहता। उदाहरण के लिए; एक घर खरीदते वक्त 50% सफेद धन दी और 50% काला धन, तो बाजार में तो 100% पैसा घुमा लेकिन आधिकारिक रुप से आधा ही गिना गया। इसके अलावा जब हम अपने पैसे को होल्ड पर रख उसे वस्तु या कमोडिटी बना देते हैं, तो वो सार्वजनिक उपयोग से बाहर हो जाता है और काला ना भी हो लेकिन बाजार से बाहर रहता है। जिस वजह से वो जीडीपी का हिस्सा भी नही बन पाता।

एक और मुख्य बात थी कि आज जो हम नोट बना रहे हैं अगर वो 2000 की है तो उसको बनाने का खर्चा करीब 4 रुपये आता है। यानी 4 रुपया खर्च के आप 2000 का मूल्य बाजार में उत्पन्न कर सकते हैं। यही होता आया था कि आज से पहले जितने नोट बनते थे उनका कागज स्याही सब बाहर से आता था और वही कंपनियां ये कागज स्याही दुश्मन देशों को बेच देती थी और वो अपनी सरकारी प्रिंट्स में वही 1000-500 का नोट बना भारत मे उसे भेज देते थे। मतलब 4 रुपये खर्च कर दुश्मन यहां 2000 के मूल्य से काम कर रहा था।

ये वो मुख्य वजह थी जिससे नोटबंदी जरूर हो गयी थी, ताकि आज तक कि जितनी मुद्रा थी वो एक बार बैंकिंग सिस्टम में आये और इस समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करे। इससे भले ही कुछ समय के लिए बाजार रुक गया हो, रोजगार बंद हो गया हो, लेकिन यही धन जब रफ्तार पकड़ता है तो रोजगार और बाज़ार को बूम देता है। जो बाजार सुस्त हुआ भी था या रोजगार बंद भी हुआ उसका कारण भी समांतर अर्थव्यवस्था थी, नाकि नोटबन्दी। अब एक व्यापारी अपने काले धन में से दो कर्मचारी रखता है तो अचानक उसका काला धन बैंकिंग में चला गया तो स्वतः ही उसके दो कर्मचारी कम हो गए और उतना काम भी ठप्प हो गया। लेकिन कल को जब वो फिर से उस काम को गति देगा तो इस बार वो अर्थव्यवस्था के दायरे में आयेगा और जैसा बताया गया है कि दायरे में होने वाले हर वित्तीय कार्य GDP का हिस्सा बनते हैं।

कुछ लोग 2004 से 2011 के GDP की बात करते हैं कि उस समय भारत की अर्थव्यवस्था चरम पर थी, लेकिन वो एक खोखली अर्थव्यवस्था थी। ये वो दौर था जब औसतन 8.5 जीडीपी जितनी अच्छी अर्थव्यवस्था कही गयी लेकिन वो सिर्फ 27 लाख नौकरियां ही सृजन कर सकी आखरी 5 साल में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में। जबकि इससे पहले NDA1 में 5.7 की जीडीपी से 6 करोड़ नौकरियां सृजन हुई थी।

ऐसा क्यों हुआ? कि नौकरियां नही बढ़ी सिर्फ जीडीपी बढ़ी।

क्योंकि NDA1 के समय जहां महंगाई दर 4.5 थी जो 5 से कम थी, जिसे अच्छा कहा जाता है, लेकिन उस दौर में एसेट्स वैल्यू थी वो भी नियंत्रण में थी। सोने का मूल्य इस 5 साल के दौरान 38% बढ़ा, स्टॉक मार्केट 32% बढ़ा, रियल स्टेट 25 से 30% बढ़ा। वो सही तरीके से थी तो नौकरियां सृजन की।

जबकि अगले 5 साल UPA की सरकार में रियल स्टेट 10 गुना महंगा हो गया जो 5 साल में 38% बढ़ा था, स्टॉक मार्केट 300% से ज्यादा हो गया, गोल्ड 330% बढ़ गया जबकि इस दौरान नई मुद्रा बाजार में सिर्फ 17% ज्यादा आयी। तो ये इतना ज्यादा दाम वो भी बिना नौकरियां बढ़ कैसे गया?

इसका कारण था बड़े नोट, 500 और 1000. NDA1 के समय कुल बड़े नॉट थे करीब 1 लाख 40 हज़ार करोड़ थे, जो UPA1 & UPA 2 के खत्म होते होते सन 2015 में 15 लाख 50 हज़ार करोड हो गए। यानी 10 गुना ज्यादा। दूसरे अर्थों में, बड़े नोट कुल नोट में 37% से बढ़कर 87% हो गए।

जब मोदी सरकार बनी तो RBI से रिपोर्ट मांगी गई, जिसमे रघुराम राजन ने रिपोर्ट दी कि देश मे जितने 500 और 1000 के नोट हैं उनमें से एक तिहाही 500 के और 1000 के दो तिहाई नोट कभी बैंकिंग सिस्टम में वापस आये ही नही। मतलब 5 से 6 लाख करोड़ रुपया भारतीय अर्थव्यवस्था से बाहर खुद ही डील कर रहा था। यही समांतर अर्थव्यवस्था थी। यही कारण था गोल्ड, शेयर मार्केट और प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने का। जो जीडीपी को भी बढ़ा रहा था। इनमे से सबसे ज्यादा सोना वस्तु ऐसी थी जो पकड़ से बाहर रहती थी लेकिन उसकी खपत तब भी होते जा रही थी।

भारत दुनिया का एक तिहाही सोने खरीदता है और चीन भारत मिलकर दुनिया का आधे से ज्यादा सोना खरीदते हैं। कहने का मतलब दुनिया मे सोने के दाम नही बढ़ रहे थे बल्कि समांतर धन को खपाने के लिए बढ़वाए जा रहे थे, ताकि सोने के नाम पर उतने मूल्य की संपत्ति बनी रहे। लेकिन नोटबन्दी होते ही सोने के दाम तुरन्त 15% गिर गए? क्यों? क्योंकि समान्तर पैसा रोक दिया गया। ऐसा ही रियल स्टेट के साथ हुआ था।

इसके अलावा भारत के चोर जिन्होंने सहभागी नोट बनाये थे, वो हवाला के जरिये इन्हें बाहर भेजते थे और फिर मॉरिशस या सिंगापुर मार्ग से इसे भारत मे निवेश करते थे, जिससे ये दिखता था कि जीडीपी बढ़ रही है। इसके कारण  2004 में शेयर मार्केट जो 64000 करोड़ का था वो 2007 में ही 5.7 लाख करोड़ का हो गया, जिससे सेंसेक्स अपने चरम पर पहुंच गया।

रिज़र्व बैंक बार बार मना करता रहा कि बड़े नोट छपने बंद हो लेकिन वो छपते गए, यही वजह रही कि जब इस सरकार को ये सब बताया गया तो नोटबंदी का फैसला लिया गया। इसलिए जो GDP गिरने की बात हो रही है, अब आप समझ रहे होंगे कि वो क्यों गिर रही है? क्यों चिंदम्बरम जैसे हवाला अर्थशास्त्री इसे फेल बता रहे हैं, क्यों कांग्रेस जिसका काला धन डूब गया वो मनमोहन जैसे अर्थशास्त्री से इसे फेल बता रही है। क्यों दुश्मन देश के पैसे पे पलने वाले रो रहे हैं। क्यों गलत तरीके से कमाने वाले लोग और व्यापारी सरकार को गाली दे रहे हैं।

यकीन मानिए भले ही आपका रोजगार और जीडीपी कुछ समय के लिए सुस्त है, लेकिन इतने आश्वस्त हो जाइए कि आगे के समय वाली अर्थव्यवस्था समान्तर नही होगी। सोना या प्रॉपर्टी में काला धन जमा नही होगा, नोट को होल्ड पे कोई नही रखेगा। मॉरीशस सिंगापुर से कोई फ़र्ज़ी कम्पनी के नाम पर काले को सफेद नही कर पायेगा। दुश्मन देश नकली नोट नही बेच पाएंगे। क्योंकि ऐसे में वो पुनः झटका खाने को तैयार रहेगा।

मोदी जी इसीलिए डिजिटल ट्रांसक्शन की बात करते है ताकि आप बैंकिंग सिस्टम से चले। सोने पे एक्साइज इसी लिए कि उसपर नज़र रखे। मॉरीशस सिंगापुर से अग्रीमनेट इसलिए किये कि अब इस तरह की कम्पनी नही चलेंगी, हमे उनका डिटेल देना होगा और टेक्स भी वो यहां भरेंगे।

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा, इसी का नाम है। 2000 का नोट भी कब बंद हो जाये कोई नही जानता, इस देश मे अब सबसे बड़ा नोट 200 का ही रह जाएगा आने वाले दिनों में।

नोट:- पोस्ट 2016 की है इसलिए कन्फ्यूज न होयें कुछ पुरानी बातों से। पोस्ट ज्यों की त्यों चेपी गयी है।

मंगलवार, 16 मई 2023

मुगल डकैत थे,निर्माता नही ।।

मुगलों को लेकर सेक्युलर्स, लिबेरल्स, वामी, और तालिबानी मीडिया गैंग एक सवाल करते हैं कि मुगल तो यहीं बस गए थे, उन्होंने अंग्रेजो के जैसे लूट कर अपना देश नही भरा। यहाँ की चीज यहीं रही। वे लुटेरे कैसे हुए बल्कि वे तो भारत के निर्माता थे। 

भारत के निर्माता मुगल थे कहने वाले मार्क्सवादी अपने बाप कार्ल मार्क्स के साथ धोखा करते हैं। वह ऐतिहासिक भौतिकवादी सिद्धांतों को भूल जाते हैं, खैर धोखाधड़ी तो इन लोगों के रग रग में है वापस अपने मुद्दे पर आते हैं। भारत मुगलों से पहले सुशिक्षित, सुसभ्य, सम्पन्न और समृद्ध देश था। ये लुटेरे लूटने के लिए अपनी बंजर भूमि छोड़कर आये और यहां पीढ़ियों लूटकर्म में रत रहे। अगर हम लूट का माल देश मे है इसलिए वह लूट नही है वाले तर्क का इस्तेमाल करें तो देश मे जितने डकैत चोर उचक्के हैं उन सबको भारत का निर्माता घोषित कर देना चाहिए क्योंकि वे डकैती से प्राप्त माल कहीं बाहर एक्सपोर्ट नही कर रहे बल्कि देश मे ही निवेश कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे। इन्हें तो भारत रत्न मिलना चाहिए। कितना वाहियात तर्क है। 

मुगलों की लूट को लूट न मानने वाले भूल जाते हैं कि यहां की अधिसंख्य जनता को अपने धर्म का पालन करने के लिए भी पैसा देना पड़ता था, जजिया लूट का घृणितम तरीका था। जिस राज्य पर मुगल आक्रमण करते थे वहां क्या कुछ छोड़ देते होंगे? एक सजीव उदाहरण देता हूँ शायद लोगों की आंख खुल जाए। महाराणा और वहां के लोग जो अपने मेवाड़ को बचाने के लिए घास की रोटी खाने पर विवश हो गए, वहां के राजपूत आज भी उस दरिद्रता से निकल नही पाए और आज भी यायावरी की जिंदगी जीने को अभिशप्त हैं। यह लूट का जीता जागता उदाहरण नही है क्या?  

महिलाओं की लूट मुगलों का प्रिय कर्म था। बाबर ने 1528 में हिन्दू मंडरों को लूटने के लिए चढ़ाई की जिसने उस इलाक़े के हिन्दुओं पर जमकर ज़ुल्म ढाया। मंडाहर बस्ती को जमींदोज कर दिया गया। हथियाई गई हिन्दू महिलाओं में से 20 को छांटकर बाबर ने स्वयं के लिए रख लिया व बाकी उसने अपने साथियों में बांट दी । अहमद यादगार लिखता है कि हिन्दू मंडाहर पुरूषों को ज़मीन में आधा दफ्न कर तीरों से मारा गया था और उनकी स्त्रियों को फौज में बांट दिया गया । जनवरी 1624 में जहांगीर अपनी आत्मकथा में जाटों के लिए तिरस्कारपूर्ण संबोधन का प्रयोग करते हुए बताता है कि उसने उन्हें दबाने के लिए फौज भेजी। इसी प्रकार अपनी आत्मकथा में पृष्ठ संख्या 285 पर वह लिखता है कि, 1634 में भेजी गई एक मुगल फौज ने आगरा क्षेत्र में 10000 जाट पुरूषों को मार डाला ...महिलाओं को "गणना से परे" संख्या में बंदी बना लिया गया।

1619 में, कालपी कनौज के चौहान राजपूतों ने विद्रोह कर दिया था। जिसे दबाने हेतु अब्दुल्लाह खान नामक एक उज़्बेक मुसलमान आप्रवासी सैन्य अधिकारी को फौज सहित भेजा गया। हिन्दू वीरों ने भरपूर मुकाबला किया, लेकिन मुगलों की ज़्यादा तादाद, बेहतर बख्तर व बंदूकों के सामने वह जीत न सके। हिन्दू किले के जीते जाने से पहले कुछ कठिन लड़ाई हुई, जिसमें 30,000 हिन्दू यौद्धा मारे गए । 10,000 सिर काट कर 20 लाख रुपयों के लगभ लूट की गई ।

इसके बाद 1632 में एक अंग्रेज़ यात्री पीटर मुंडी भी इसी क्षेत्र से गुजरने के 4 दिनों के दौरान उस ने 200 मीनार या खंभे देखे, जिन पर कुल 7,000 कटे इंसानी सिर चिन दिए गए थे । इसे मुंडी अब्दुल्ला खान और उसकी 12,000 घोड़े और 20,000 पैदल मुग़ल सेना का कारनामा बताता है | मुंडी के अपने शब्दों में, "उसने सभी को नष्ट कर दिया उनके शहर, उनके (हिन्दुओं के) सभी सामान लूट लिए गए, उनकी पत्नियों और बच्चों को गुलाम बना लिया गया, और उनके पुरूषों के सिर काट काट कर मीनारों में चिनवा दिए गए" । किसी मुगल द्वारा यह पूछे जाने पर की उसने कितने काफिरों को मौत के घाट उतार दिया होगा, अब्दुल्लाह खान ने जवाब दिया, "इतने कटे हुए सिर होंगे कि आगरा से पटना तक दो कतारों में लगाए जा सकें"।

चार महीने बाद जब पीटर मुंडी इसी रास्ते पटना से आगरा आया, तो उसने देखा कि हर मीनार पर 2,100 से 2,400 कटे हुए हिन्दू सिरों के साथ 60 नई मीनारें बना दी गई हैं और नई मीनारों का निर्माण अब तक रुका ही नहीं था। डच इतिहासकार डर्क कोफ बताते हैं कि मुगल काल में हर वर्ष हजारों हिन्दू किसानों को गुलाम बनाकर मध्य एशिया में बेचे जाने के अकाट्य सबूत हैं । 

दरअसल , मुगल अभिजात्य वर्ग हिन्दू किसानों से कर वसूली निर्दयता से करता था। किसी साल फसल खराब होने की सूरत में भी कर कम नहीं होता था और किसानों को अपनी पत्नियों, बच्चों व खुद को बेच कर उसे चुकाना पड़ता था। जो अपने परिवारों को बेचने को तैयार नहीं होते थे, उनके साथ वैसा व्यवहार किया जाता था जैसा कि ऊपर वर्णित है।

चित्तौड़ के तीसरे शाके के बारे में कई हिन्दू जानते ही हैं। जब किले की रक्षा में जुटे 8,000 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए व उनकी महिलाओं के राख बने जिस्म देखकर भी जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ने हुक्म दे दिया कि किले में कत्ल ए आम किया जाए। 40,000 बेकसूर हिन्दू पुजारियों, किसानों, काश्तकारों व व्यापारियों को बेरहमी से काट दिया गया। उनके परिवारों को गुलाम बना लिया गया।

औरंगजेब ने लगभग सभी मंदिरों को नष्ट करने के आदेश दिए ताकि मंदिरों के पैसे की लूट से मुगल दरबार की तामीर की जा सके। और हां मुगलों की लूट का एक बड़ा हिस्सा मध्य एशिया बड़ा भेजा जाता रहा। यह हिस्सा धन, गुलाम और वस्तुओं के रूप में था। 

मुगल डकैत ही थे निर्माता नही। इस लेख में कुछ संदर्भ इसलिए लिए गए ताकि तथाकथित कहानीबाज इतिहासकारों को थप्पड़ लगाया जा सके जो 'एक अनुमान के आधार पर' पूरा इतिहास लिख देते।

ऐसे अत्याचारी मुगलों की डकैती/ क्रूरता  पर लगाम लगाने वाले महाराणा प्रताप की आज जयंती है, महायोद्धा को प्रणाम। 🙏

मुस्लिमो का इतिहास जो छिपाया गया है

9 सितम्बर 1947 की मध्यरात्रि को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा सरदार पटेल को सूचना दी गई कि 10 सितम्बर को संसद भवन उड़ा कर एवं सभी मन्त्रियों की हत्या कर के लाल किले पर पाकिस्तानी झण्डा फहराने की दिल्ली के मुसलमानों की योजना है। 
सूचना क्यों कि संघ की ओर से थी, इसलिये अविश्वास का प्रश्न नहीं था। पटेल तुरंत हरकत में आए और सेनापति आकिन लेक को बुला कर सैनिक स्थिति के बारे में पूछा। 
उस समय दिल्ली में बहुत ही कम सैनिक थे। आकिन लेक ने कहा कि आस-पास के क्षेत्रों में तैनात सैनिक टुकड़ियों को दिल्ली बुलाना भी खतरे से खाली नहीं है। कुल मिला कर आकिन लेक का तात्पर्य था कि यह इतनी जल्दी भी नहीं किया जा सकता, इसके लिये समय चाहिए। यह सारी वार्ता वायसराय माउंटबैटन के सामने ही हो रही थी, लेकिन पटेल तो पटेल ही थे। उन्होंने आकिन लेक को कहा-“विभिन्न छावनियों को संदेश भेजो, उनके पास जितनी जितनी भी टुकड़ियाँ फालतू हो सकती हैं, उन्हें तुरंत दिल्ली भेजें।” आखिर ऐसा ही किया गया। 

उसी दिन शाम से टुकड़ियाँ आनी शुरू हो गई। अगले दिन तक पर्याप्त टुकड़ियाँ दिल्ली पहुँच चुकी थीं।

सैनिक कार्यवाही....
सैनिक कार्यवाही आरम्भ हुई। दिल्ली के जिन-जिन स्थानों के बारे में संघ ने सूचना दी थी, उन सभी स्थानों पर एक साथ छापे मारे गये और हर जगह से बड़ी मात्रा में शस्त्रास्त्र बरामद हुए। पहाड़गंज की मस्जिद, सब्ज़ी मंडी मस्जिद तथा मेहरौली की मस्जिद से सब से अधिक शस्त्र मिलेl अनेक स्थानों पर मुसलमानों ने स्टेन गनों तथा ब्रेन गनों से मुकाबला किया, लेकिन सेना के सामने उन की एक न चली। सब से कड़ा मुकाबला हुआ सब्जी मण्डी क्षेत्र में स्थित ‘काकवान बिल्डिंग’ में। इस एक बिल्डिंग पर कब्जा करने में सेना को चौबीस घण्टों से भी अधिक समय लगा।

मेहरौली की मस्जिद से भी स्टेनगनों व ब्रेनगनों से सेना का मुकाबला किया गया। चार-पाँच घंटे के लगातार संघर्ष के बाद ही सेना उस मस्जिद पर कब्जा कर सकी।

तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष आचार्य कृपलानी के अनुसार....
“मुसलमानों ने हथियार एकत्र कर लिए थे। उन के घरों की तलाशी लेने पर बम, आग्नेयास्त्र और गोला बारूद के भण्डार मिले थे। स्टेनगन, ब्रेनगन, मोर्टार और वायर लेस ट्रांसमीटर बड़ी मात्रा में मिले। इन को गुप्तरूप से बनाने वाले कारखाने भी पकड़े गए।

अनेक स्थानों पर घमासान लड़ाई हुई, जिस में इन हथियारों का खुल कर प्रयोग हुआ। पुलिस में मुसलमानों की भरमार थी। इस कारण दंगे को दबाने में सरकार को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इन पुलिस वालों में से अनेक तो अपनी वर्दी व हथियार लेकर ही फरार हो गए और विद्रोहियों से मिल गए। शेष जो बचे थे, उन की निष्ठा भी संदिग्ध थी। सरकार को अन्य प्रान्तों से पुलिस व सेना बुलानी पड़ी।” (कृपलानी, गान्धी, पृष्ठ  292-293)

मुसलमान सरकारी अधिकारी थे योजनाकार....
दिल्ली पर कब्जा करने की योजना बनाने वाले कौन थे ये लोग? ये कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। इन में बड़े – बड़े मुसलमान सरकारी अधिकारी थे, जिन पर भारत सरकार को बड़ा विश्वास था। इन में उस समय के दिल्ली के बड़े पुलिस अधिकारी तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी थे, जो कि मुसलमान थे।
एक-एक पहलू को अच्छी तरह सोच-विचार करके लिख लिया गया था और वे लिखित कागज-पत्र विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की ही कोठी में एक तिजोरी में सुरक्षित रख लिए गए थे।

       उन दिनों मुसलमान बन कर मुस्लिम अधिकारियों की गुप्तचरी करने वाले संघ के स्वयंसेवकों को इस की जानकारी मिल गई और उन्होंने संघ अधिकारियों को सूचित किया । संघ अधिकारियों ने योजना के कागजात प्राप्त करने का दायित्व एक खोसला नाम के स्वयंसेवक को सौंपा ।
खोसला ने उपयुक्त स्वयंसेवकों की एक टोली तैयार की और सभी मुसलमानी वेश में रात को विश्वविद्यालय के उस अधिकारी की कोठी पर पहुँच गए। मुस्लिम नेशनल गार्ड के कार्यकर्ता वहाँ पहरा दे रहे थे। खोसला ने उन्हें ‘वालेकुम अस्सलाम’ किया और कहा – “हम अलीगढ़ से आए हैं। अब यहाँ पहरा देने की हमारी ड्यूटी लगी है। आप लोग जाकर सो जाओ।” वे लोग चले गए।

कोठी से तिजोरी ही उठा लाए....
खोसला के लोग कोठी से उस तिजोरी को ही निकाल कर ट्रक पर रख कर ले गए। उस में से वे कागज निकाल कर देखे गए तो सब सन्न रह गए।

नई दिल्ली में आजकल जो संसद सदस्यों की कोठियाँ हैं, इन्हीं में से ही किसी कोठी में रात को कुछ स्वयंसेवक सरकारी अधिकारियों की बैठक बुलाई गई और दिल्ली पर कब्जे की उन कागजों में अभिलिखित योजना पर मन्थन किया गया। इसी मन्थन में से यह बात सामने आई कि यह योजना इतने बड़े और व्यापक स्तर की है कि हम संघ के स्तर पर उस को विफल नहीं कर सकते। इसे सेना ही विफल कर सकती है। अतः इस की सूचना हमें सरदार पटेल को देनी चाहिए। फलतः उस बैठक से ही दो - तीन कार्यकर्ता रात्रि को एक बजे के लगभग सीधे सरदार पटेल की कोठी पर पहुँचे तथा उन्हें जगा कर यह सारी जानकारी दी। पटेल बोले – “अगर यह सच न हुआ तो?” कार्यकर्ताओं ने उत्तर दिया - “आप हमें यहीं बिठा लीजिए तथा अपने गुप्तचर विभाग से जाँच करा लीजिए। अगर यह सच साबित न हुआ तो हमें जेल में डाल दीजिए।” इस के बाद सरदार हरकत में आए।

कल्पना करें कि यदि सरदार पटेल संघ की उक्त सूचना पर विश्वास न करते अथवा वे आकिन लेक की बातों में आ जाते तो भारत सरकार को भाग कर अपनी राजधानी लखनऊ, कलकत्ता या मुम्बई में बनानी पड़ती और परिणाम स्वरूप आज पाकिस्तान की सीमा दिल्ली तक तो जरूर ही होती।

साभार : पुस्तक : ”विभाजनकालीन भारत के साक्षी” (पृष्ठ संख्या 92-93)
लेखक - श्री कृष्णानन्द सागर जी ।

बुधवार, 10 मई 2023

अकबर की महानता का काला सच

अकबर के समय के इतिहास लेखक “अहमद यादगार" ने लिखा: “बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और “गाज़ी” की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही गाज़ी (काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया। इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टाँग दिया।”

अबुल फजल ने आगे लिखा: “हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया... जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है; मैं अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ? मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।” (अकबर नामा, अबुल फजल: एलियट और डाउसन, पृष्ठ २१)

इस विजय के तुरन्त बाद अकबर ने काफिरों के कटे हुए सिरों से एक ऊँची मीनार बनवायी। २ सितम्बर १५७३ को भी अकबर ने अहमदाबाद में २००० दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊँची सिरों की मीनार बनवायी और अपने दादा बाबर का रिकार्ड तोड़ दिया। यानी घर का रिकार्ड घर में ही रहा।

अकबरनामा के अनुसार ३ मार्च १५७५ को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवायी कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयीं। यह फिर से एक नया रिकार्ड था। जब वहाँ के हारे हुए शासक दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में भरकर पानी पीने के लिए दिया गया।

अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था: “अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८००० राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया, और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।” (अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)

चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीखों-पुकार के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएँ।
अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी। “सन् १५६४ में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्म हत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को को बन्दी बना लिया गया। और अकबर ने उसे अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र २२ वर्ष और रानी दुर्गावती की ४० वर्ष थी।”

सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके ३ राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री को साम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया। औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।

अकबर ने अपनी सगी बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।

सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई; जबकि इसके पीछे उसका मुख्य मकसद केवल यही था कि राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर ऐय्याशी करना। राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही उसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।

शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूँस दिया। इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में ले लिया।

अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे।

जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।

अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है, ऐसी शादियों को अरबी में “मुतअ” कहा जाता है।

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है: “अकबर के हरम में पाँच हजार औरतें थीं और ये पाँच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया।”

बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की। इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी। रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की “रीति” से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को माँग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था।

यही कारण था की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएँ हुईं।

जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ इण्डिया” में अकबर को 'महान' कहकर उसकी प्रशंसा की है। हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी अकबर को एक परोपकारी उदार, दयालु और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया है।

अकबर के दादा बाबर का वंश तैमूरलंग से था और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी और खूनी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। जिसके खानदान के सारे पूर्वज दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद थे और अकबर के बाद भी जहाँगीर और औरंगजेब दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे थे तो ये बीच में महानता की पैदाईश कैसे हो गयी।

अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने साफ़ लिखा है की अकबर एक दुष्कर्मी, घृणित एवं नृशंस हत्याकांड करने वाला क्रूर शाशक था। विन्सेंट स्मिथ ने किताब ही यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था। उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था। अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था”।

चित्तौड़ की विजय के बाद अकबर ने कुछ फतहनामें प्रसारित करवाये थे। जिससे हिन्दुओं के प्रति उसकी गहन आन्तरिक घृणा प्रकाशित हो गई थी।

उनमें से एक फतहनामा पढ़िये: “अल्लाह की ख्याति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया। हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे और उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों, उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है।” (फतहनामा-ई-चित्तौड़ मार्च १५८६,नई दिल्ली)

महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के अभियानों के लिए सबसे बड़ा प्रेरक तत्व था इस्लामी जिहाद की भावना जो उसके अन्दर कूट-कूटकर भरी हुई थी। अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदाउनी ने अपने इतिहास अभिलेख, 'मुन्तखाव-उत-तवारीख' में लिखा था कि १५७६ में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रहीं थीं तो मैनें (बदाउनीने) “युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोंकर शाहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की। मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होनें प्रसन्न होकर मुझे मुठ्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं।” (मुन्तखाब-उत-तवारीख: अब्दुल कादिर बदाउनी, खण्ड II, पृष्ठ ३८३,अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ १०८)

बदाउनी ने हल्दी घाटी के युद्ध में एक मनोरंजक घटना के बारे में लिखा था: “हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत, और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु ही मरे। तब कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।”

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया और अंत में इसने दोनों ही तरफ के लोगों को अपने सैनिकों से मरवा डाला और फिर अकबर महान जोर से हँसा।

एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को मीनार से नीचे फिंकवा दिया।

अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था। विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा। उसने किले के राजा मीरां बहादुर को संदेश भेजकर अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा। जब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया तो उसे अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुकने का आदेश दिया गया क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था।

उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। मीराँ के सेनापति ने इसे मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने उसके बच्चे से पूछा क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए उसका पिता समर्पण नहीं करेगा। यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। यह घटना अकबर की मृत्यु से पाँच साल पहले की ही है।

हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया। असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि इस्लाम के लिए हराम है और इसीलिए इसके नाम की मस्जिद भी हराम है।

अकबर स्वयं पैगम्बर बनना चाहता था इसलिए उसने अपना नया धर्म “दीन-ए-इलाही - ﺩﯾﻦ ﺍﻟﻬﯽ ” चलाया। जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद की बड़ाई करवाना था। यहाँ तक कि मुसलमानों के कलमें में यह शब्द “अकबर खलीफतुल्लाह - ﺍﻛﺒﺮ ﺧﻠﻴﻔﺔ ﺍﻟﻠﻪ ” भी जुड़वा दिया था। उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में अस्सलाम वालैकुम नहीं बल्कि “अल्लाह ओ अकबर” कहकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाए।

यही नहीं अकबर ने हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक फर्जी उपनिषद् “अल्लोपनिषद” बनवाया था जिसमें अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल और अकबर को खलीफा बताया गया था। इस फर्जी उपनिषद् का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है।

उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया। जबकि वास्तविकता ये है कि उस धर्म को मानने वाले अकबरनामा में लिखित कुल १८ लोगों में से केवल एक हिन्दू बीरबल था।

अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले। जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी। उसके दरबारियों को तो इसलिए अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए।

अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग उसे पसंद नहीं। अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कत्ल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब जो इसे नापसंद थे। पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है।
स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ १०८)

बदाउनी ने हल्दी घाटी के युद्ध में एक मनोरंजक घटना के बारे में लिखा था: “हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत, और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु ही मरे। तब कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।”

थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था। अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया और अंत में इसने दोनों ही तरफ के लोगों को अपने सैनिकों से मरवा डाला और फिर अकबर महान जोर से हँसा।

एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को मीनार से नीचे फिंकवा दिया।

अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था। विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा। उसने किले के राजा मीरां बहादुर को संदेश भेजकर अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा। जब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया तो उसे अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुकने का आदेश दिया गया क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था।

उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। मीराँ के सेनापति ने इसे मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने उसके बच्चे से पूछा क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए उसका पिता समर्पण नहीं करेगा। यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। यह घटना अकबर की मृत्यु से पाँच साल पहले की ही है।

हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया। असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि इस्लाम के लिए हराम है और इसीलिए इसके नाम की मस्जिद भी हराम है।

अकबर स्वयं पैगम्बर बनना चाहता था इसलिए उसने अपना नया धर्म “दीन-ए-इलाही - ﺩﯾﻦ ﺍﻟﻬﯽ ” चलाया। जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद की बड़ाई करवाना था। यहाँ तक कि मुसलमानों के कलमें में यह शब्द “अकबर खलीफतुल्लाह - ﺍﻛﺒﺮ ﺧﻠﻴﻔﺔ ﺍﻟﻠﻪ ” भी जुड़वा दिया था। उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में अस्सलाम वालैकुम नहीं बल्कि “अल्लाह ओ अकबर” कहकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाए।

यही नहीं अकबर ने हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक फर्जी उपनिषद् “अल्लोपनिषद” बनवाया था जिसमें अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल और अकबर को खलीफा बताया गया था। इस फर्जी उपनिषद् का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है।

उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया। जबकि वास्तविकता ये है कि उस धर्म को मानने वाले अकबरनामा में लिखित कुल १८ लोगों में से केवल एक हिन्दू बीरबल था।

अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले। जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी। उसके दरबारियों को तो इसलिए अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए।

अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग उसे पसंद नहीं। अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कत्ल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब जो इसे नापसंद थे। पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है।

अकबर के सभी धर्म के सम्मान करने का सबसे बड़ा सबूत: अकबर ने गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम का तीर्थनगर “प्रयागराज” जो एक काफिर नाम था को बदलकर इलाहाबाद रख दिया था।
वहाँ गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो वहाँ की हिन्दू जनता ने उसका इस्तकबाल नहीं किया। यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है। अकबर ने हिन्दू राजाओं द्वारा निर्मित संगम प्रयाग के किनारे के सारे घाट तुड़वा डाले थे। आज भी वो सारे साक्ष्य वहाँ मौजूद हैं।

२८ फरवरी १५८० को गोवा से एक पुर्तगाली मिशन अकबर के पास पहुँचा और उसे बाइबल भेंट की जिसे इसने बिना खोले ही वापस कर दिया।

4 अगस्त १५८२ को इस्लाम को अस्वीकार करने के कारण सूरत के २ ईसाई युवकों को अकबर ने अपने हाथों से क़त्ल किया था... जबकि इसाईयों ने इन दोनों युवकों को छोड़ने के लिए १००० सोने के सिक्कों का सौदा किया था। लेकिन उसने क़त्ल ज्यादा सही समझा।

सन् 1582 में बीस मासूम बच्चों पर भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में रखा जहाँ किसी भी प्रकार की आवाज़ न जाए और उन मासूम बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी वो गूंगे होकर मर गये । यही परीक्षण दोबारा 1589 में बारह बच्चों पर किया।

सन् 1567 में नगर कोट को जीत कर कांगड़ा देवी मंदिर की मूर्ति को खण्डित की और लूट लिया फिर गायों की हत्या कर के गौ रक्त को जूतों में भरकर मंदिर की प्राचीरों पर छाप लगाई।

जैन संत हरिविजय के समय सन् 1583-85 को जजिया कर और गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की झूठी घोषणा की जिस पर कभी अमल नहीं हुआ।

एक अंग्रेज रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की।कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ डाली और उस स्थान पर नमाज पढ़ी।

1587 में जनता का धन लूटने और अपने खिलाफ हो रहे विरोधों को ख़त्म करने के लिए अकबर ने एक आदेश पारित किया कि जो भी उससे मिलना चाहेगा उसको अपनी उम्र के बराबर मुद्राएँ उसको भेंट में देनी पड़ेगी।

जीवन भर इससे युद्ध करने वाले महान महाराणा प्रताप जी से अंत में इसने खुद ही हार मान ली थी यही कारण है कि अकबर के बार बार निवेदन करने पर भी जीवन भर जहाँगीर केवल ये बहाना करके महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह से युद्ध करने नहीं गया की उसके पास हथियारों और सैनिकों की कमी है... जबकि असलियत ये थी की उसको अपने बाप का बुरा हश्र याद था।

विन्सेंट स्मिथ के अनुसार अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया। हमजबान की जबान ही कटवा डाली।

मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं। उसके 300 साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरों पर अजीबो- गरीब तरीकों से गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया।

मुग़ल आक्रमणकारी थे यह सिद्ध हो चुका है। मुगल दरबार तुर्क एवं ईरानी शक्ल ले चुका था। कभी भारतीय न बन सका। भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल साम्राज्य को कभी स्थिर नहीं होने दिया। राजपूताना ने मुगलों को कभी स्वीकार नहीं किया। गुजरात, मालवा, मराठा, बिहार, बंगाल, असम तथा दक्षिण का कोई प्रदेश कभी भी मुगलों के पूर्ण अधिकार में नहीं रहा। फिर भी कुछ चापलूस लोग अकबर को शहंशाहे हिन्द कहते हैं।

रविवार, 30 अप्रैल 2023

पेशवा बाजीराव के वंशज मुसलमान हैं क्या ??

फेसबुक पर भ्रम फैलाया जा रहा है कि पेशवा बाजीराव के वंशज मुसलमान हैं । पेशवा बाजीराव की दो पत्नियां थीं काशीबाई और मस्तानी । मस्तानी महाराज छत्रसाल की पर्सियन रखैल से उत्पन्न एक अद्वितीय  सुंदर कन्या थी जिसे महाराज छत्रसाल ने भेंट स्वरूप पेशवा को प्रदान किया था । पेशवा बाजीराव के पुत्र बाला जी राव, जनार्दन राव, रघुनाथ राव और शमशेर बहादुर थे । बाला जी राव, रघुनाथ राव और जनार्दन राव काशीबाई के पुत्र थे,  पहले दो आगे चल कर पेशवा भी बने । शमशेर बहादुर का जन्म मस्तानी से हुआ था, जिन का पालन पोषण हिन्दू की तरह ही हुआ पर तत्कालीन परिस्थितियों में पुना के ब्रह्मण समाज ने  उनका यज्ञोपवीत नहीं होने दिया और वह शमसेर बहादुर बनकर ही रहे । बांदा की रियासत उन्ही के वंशजों के पास रही । शमशेर बहादुर का यज्ञोपवीत कराकर उन्हें हिन्दू बनाने या न बनाने पर तर्क वितर्क हो सकता है पर उनके सभी वंशजों को मुसलमान कहना  बालाजी राव , जनार्दन राव और रघुनाथ राव का अपमान है । 

 वैसे शास्त्रों की व्यवस्था अनुरूप ब्राह्मण यदि चतुर्थ वर्ण या म्लेच्छ कन्या से विवाह करकर संतानोपत्ति करता है तो वह संतान यज्ञोपवीत की अधिकारी नहीं होती है । वैसे मस्तानी भी पूर्ण म्लेच्छ कन्या नहीं थी क्योंकि उसका जन्म क्षत्रिय पिता से हुआ था । पर पुरोहित  कोई भी धार्मिक कार्य  शास्त्रों के मत अनुरूप करता है, यहां व्यक्तिगत इच्छा का कोई स्थान नहीं है । इसलिए पूना के ब्रह्मण समाज को दोष देना मूर्खता ही होगी । जिनका  एजेंडा सदैव  ब्राह्मणों को दोष देना ही  है  या जिनके लिए यज्ञोपवीत एक धागा मात्र है  उनके लिए यह  घटना भी ब्राह्मणों को गरियाने का एक अवसर है । पर यदि पूर्ण अवलोकन करें तो इतिहास में यह अवसर एक धार्मिक विमर्श का था । जहां सभी  शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और अन्य बड़े विद्वानों द्वारा विमर्श करके जनित परिस्थिति को देखते हुए समयानुकुल शास्त्रोचित हल निकालना था जो कि आगे के लिए भी शास्त्रसम्मत मार्ग बनता। पेशवा बाजीराव यह करवाने में सक्षम भी थे पर निरंतर युद्धरत होने के कारण संभवतः यह हो न सका । 

इतिहास पूर्व में हुई गलतियों से सीख लेने के लिए भी पढ़ा जाता है । आज इस तरह के तमाम मामले समाज के सामने हैं । इन विषयों पर सभी धर्माचार्यों की धर्म सभा आयोजित करके एक समग्र राय क्यों नहीं बनाई जाती है ?  हिन्दू संगठन  इस विषय पर विमर्श करवाने का बीड़ा क्यों नहीं उठाते हैं ?  इतना बड़ा विषय गांव मुहल्ले के सामान्य पुरोहित के जिम्मे कैसे छोड़ सकते हैं ? वह बेचारे तो हमेशा की तरह शास्त्र मर्यादा का पालन ही करेंगे और गाली भी खायेंगे । पुरोहितों को इस विषय पर गाली देने वालों को आगे आकर इस विमर्श की व्यवस्था स्थापित करनी चाहते ।

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

फिर भी लड़ा ठाकुर....

कभी क़ासिम तो कभी गजनी तो कभी गोरी से,कभी तैमूर से भिड़ा  ठाकुर (राजपूत) ।
हार तो तय थी...फिर भी लड़ा ठाकुर ।

हारना ही था उसे , फिर भी वो अकेला लड़ा था ठाकुर ।
क्या ये जन्मभूमि  हम सभी की  नहीं थी ?
 फिर क्यों अकेला लड़ा ठाकुर ?

भार्या सती हुई ,बच्चे हुए अनाथ । हिन्दू तो बचा पर , भरी जवानी में मरा ठाकुर ।

सदियों से रक्त दे माटी को सींचा,जन,जन्मभूमि और धर्म की वेदी पर बार बार मिटा ठाकुर ।

मौत होती तो भी लड़ लेता, पर...अपनों की घृणा से ..अब सहमा ठाकुर ।

जिनके लिए सब कुछ खोया , क्यों उनकी ही नज़रों में बुरा हुआ ठाकुर ?
फ़िल्मों का ठाकुर ।
कहानियों-क़िस्सों का ठाकुर ।
कविताओं का ठाकुर ।

जब दुबक बैठे थे घरों में सब तमाशबीन,तब पीढियां दर पीढियां युद्धभूमि में बलिदान कर रहा था ठाकुर ।

आज बुद्धिजीवी पानी पी पीकर बरगलाते और कोसते
कि ....
आखिर कौन है ये ठाकुर..?

कौन बताए उन्हें कि "केशरिया बाना लेकरके,मूंछों पर तांव देकर मौत को गले लगाने वाला जांबाज ही था ठाकुर ।।
ठाकुर का दुर्भाग्य ?
😥😥😥
#NSB

रविवार, 12 मार्च 2023

बैंक क्यों डूबता है ? अमेरिका का SVB बैंक क्यों डूबा ??




जब बैंक के पास जो पैसा होता है वो जब कर्ज के रूप में बाहर चला जाये और फिर वापिस न आ पाए। ये सामान्य सा नियम है।

ऐसा ही हुआ अमेरिका के 16वें सबसे बड़े बैंक SVB के साथ। यह सिलिकॉन वैली बैंक नए स्टार्ट अप्स को लोन देता था। साथ ही बड़े स्टार्ट अप्स कम्पनियों को उनके बांड्स के बदले लोन देता था। अब हुआ यूं कि अमेरिका के स्टार्ट अप्स तो डूबे ही लेकिन बड़े बड़े टेक कम्पनियों के डूबने के दिन भी शुरू हो गए। इसके संकेत आपने तब देखने शुरू कर दिए थे जब इन कम्पनियों ने घाटे से उभरने को छंटनी करनी शुरू कर दी थी। नतीजा ये हुआ कि जो बांड्स पर बैंक ने पैसे कम्पनियों को दे दिए थे उसकी भरपाई बैंक नही कर पाया। यानि कर्ज जो दिया सो दिया, इन्वेस्टमेंट जो किया था वहां से भी पैसा डूब गया।

नतीजा बैंक के मालिक अपने शेयर बेच गए और एक दिन में ही बैंक के शेयर 70% डूब गए और अब बैंक बन्द हो रहा है। यह करीब 210 अरब डॉलर का बैंक था जिसकी वैल्यू 147 अरब डॉलर डूब गई। इससे जिनकी नौकरी आदि गयी ही लेकिन जिनका पैसा इस बैंक में था वो भी चला गया और अमेरिका में कोई नियम नही है कि जनता का पैसा सरकार भरपाई करे। मजे की बात ये है कि इस बैंक को फोर्ब्स जैसे बेस्ट बैंक और रेटिंग एजेंसियां टॉप रेटिंग हफ्ते भर पहले तक दे रही थी। ये औक़ात है इन पश्चिमी रैंकिंग देने वाली संस्थाओं की जिनकी रैंकिंग पर ये भारत को बताते हैं कि यहां कितनी भूखमरी है या कितना लोकतंत्र बचा है।

अब मुद्दे की बात कि 2016 में नोटबन्दी न होती तो ये हाल आप भारत के बैंकों का देखते और आप बर्बाद हो चुके होते। उस समय तक बैंकों का 52 लाख करोड़ कर्ज में बांटा जा चुका था जिसमें से करीब 10 लाख करोड़ से ऊपर NPA हो गया था। बैंक ICU में थे और नई सरकार पर उनके अधिकारी दबाव डाल रहे थे कि पुरानी सरकार के बंदरबांट पर आप स्वेतपत्र जारी कर दीजिए वरना इसका दोष आप पर आ जायेगा। मोदी सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि इससे निवेशक डर जाते और साथ ही सड़को पर आम जनता की अफरातफरी मच जाती और भारत को खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ता।

इसकी जगह सरकार नोटबन्दी करती है और सारा कैश बैंकों का वापिस कराया जाता है जिससे बैंकों को ऑक्सीजन मिल सके। जितना पैसा आता है उसमें से संदिग्ध पैसा होल्ड कर दिया जाता है और समय के साथ और उसपर टैक्स लगा उन लोगों का वापिस होता है जो अपनी समांतर अर्थव्यवस्था चला रहे थे। बाकी एंगल अलग थे नोटबन्दी के लेकिन फिलहाल इसपर ही बात जारी रखेंगे। इस तरह सारा कैश जिसमें से 70% बैंकिंग सिस्टम में कभी वापिस आया ही नही था वो वापस आ जाता है।

बैंक फिर से मजबूत होना शुरू होते हैं क्योंकि अब उनके पास पैसा था। जनता लाइन में खड़ी होती है लेकिन एक भरोसे के साथ कि हमारी भलाई के लिए सरकार ने कुछ किया है। हालांकि उन्हें इस बात का अंदाजा तक नही था कि वो फाइनेंसियल बारूद के किस मुहाने पर खड़े कर दिए गए थे। इसके बाद नए नए कानून बनाये जाते हैं जिसमें इंसोल्वेंसी कानून सबसे मुख्य था। बैंक अपना NPA भी वसूलना शुरू करते हैं जो अब तक 8 लाख करोड़ वसूल कर गए हैं।

आज बैंक इस हालत में है कि हजारों करोड़ का प्रॉफिट हर क्वार्टर में दे रहे हैं। इस तरह भारत के बैंकों को एक नोटबन्दी ने बर्बाद होने से बचा लिया। नया कानून भी बना जिसमें 5 लाख तक का कैश यदि किसी बैंक से जनता का डूबता है तो सरकार उसकी भरपाई करेगी जिससे 99% बैंकों से जुड़े लोग भी कवर हो गए।
बैंकों को मजबूत करने को उनके मर्जर का भी काम शुरू कर दिया गया जिससे बड़ा झटका सहने की ताकत उनपर आये। कांग्रेस की फोन बैंकिंग(नेताओं के फोन) बंद हो गए जिससे माल्या या चौकसी जैसों को फोन पर ही लोन मिलने बन्द हो गए और पुराना लोन न चुका पाने से वो भाग गए. लेकिन नए कानूनों ने उनकी विदेशों तक कि संपति जब्त कर लोन से ज्यादा वसूली कर ली, अब बस उनको उनकी सजा दे जेल भेजने तक का ही मुद्दा बचा है और ये सब भगोड़े हैं।

 आज इंसान भाग सकता है लेकिन बैंकों का पैसा धरती के किसी भी कोने से वसूलने की ताकत इन बैंकों को सरकार ने दे दी है।

अब वापिस आते हैं SVB पर.. इस बैंक के पास ये अधिकार थे ही नहीं क्योंकि अमेरिका में ऐसे कानून ही नही है। वहां तो आम लोन देने के लिए भी वो कुछ गिरवी नही रखते हैं। इसलिए वहां क्रेडिट कार्ड लोगों के पास चिल्लर से ज्यादा पड़े होते हैं। अब इनका इतना बड़ा बैंक डूब गया। जाहिर है आने वाले समय मे अन्य बैंक भी प्रभावित होंगे और इसका असर ये हुआ कि कल दुनिया भर के शेयर मार्केट डूब गए। और सोमवार को जब खुलेंगे तब भी वापिस ये सिलसिला जारी रहेगा।

शेयर मार्केट डूबने से याद आया कि भारत का शेयर मार्केट इसी तरह अडानी के जरिये डुबाने का प्लान इसी अमेरिका की रिसर्च कम्पनी कर रही थी लेकिन अपने देश के बैंक पर वो रिसर्च न कर सकी क्योंकि अमेरिकी कानूनों ने उसे ऐसा करने से बैन कर रखा है और उसका टारगेट भी अडानी था नाकि अपने देश की संस्थाएं। यही हमला करवाकर फिर SBI और LIC को टारगेट करना था कि इनका पैसा भी डूब गया यानि जनता को इन्हें जमा कराया पैसा डूब गया जिससे जनता सड़को पर आती जैसा इस समय अमेरिका में आ रखी है।

लेकिन एक तो इन्होंने अडानी को कच्चा खिलाड़ी समझ लिया था और दूसरा इन्होंने भारत के नए सिस्टम की स्टडी ठीक से नही की थी जिससे ये पता नही लगा पाए कि SBI हो या LIC दोनों का अडानी को एक्सपोजर 1% भी नही था और जो लोन भी था वो अडानी के हार्ड एसेट्स को गिरवी रख कर था नाकि किसी बांड पर। इन फर्जी रेटिंग एजेंसियों ने भी अडानी की रेटिंग्स गिराई जिससे उसे और ज्यादा नुकसान हो लेकिन अडानी ने न एक कर्मचारी निकाला बल्कि अपना FPO भी लौटाया और अपने लोन भी समय से पहले क्लियर कर रहा है। ये फर्क है किसी भारतीय अडानी और भारतीय सिस्टम का जो अमेरिका में है ही नही क्योंकि जैसा अमेरिका देश के नाम पर खोखला है वैसे ही उसका सिस्टम भी है।

इसलिए समझदारी कहती है कि निवेश करना है तो भारत पर कीजिये। भारत की कम्पनियों पर कीजिये। ये फैंसी अमेरिकी कम्पनियां आज है तो कल नही हैं। ये अडानी पर ओवरप्राइस होने का आरोप लगाती हैं लेकिन खुद इन्होंने जो ट्रिलियन-बिलियन डॉलर का मार्केट कैप दिखा रखा है इसके सामने तो अडानी साधु आदमी लगता है। कल को इनका मार्केट कैप क्रेश होगा तो इन्हें जिन जिन बैंकों या फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन ने पैसा दिया है सब बर्बाद हो जाएंगे। और इनके पास इससे उभरने को कुछ है भी नहीं। वैसे भी अमेरिका का कर्ज 34 ट्रिलियन पार कर चुका है जो उसकी नेशनल सेविंग से भी पार हो चुका है। 

आज अमेरिका भी बारूद के ढेर पर खड़ा है और उसका नेतृत्व बड़े घटिया लोग कर रहे हैं जैसा कभी यहां कांग्रेस ने भारत को बर्बाद करकर छोड़ ही दिया था और आज दूसरों को चोर बताते हैं जैसा बाइडन की पार्टी दूसरों को बताती थी और सत्ता में आने के बाद खुद का लौंडा हंटर बाइडन ही यूक्रेन और चीन में इलीगल निवेश में आरोपी बना हुआ है और उसका बाप उसे बचाने में लगा है, देश को नहीं।

इसलिए चोरों की बातों में न आएं क्योंकि विपक्ष में रहते हुए भौंकना आसान होता है और सत्ता मिलते ही किस तरह 12 लाख करोड़ का घोटाला यही चोर कर डालते हैं, आप जानते ही हैं। फिर देश बर्बाद हो तो हो।

बुधवार, 18 जनवरी 2023

कौन है राधिका पंडिताइन...?

जरूर पढ़िए कौन है... 
राधिका पंडिताइन...?
95 साल की उम्र की राधिका पंडिताइन 2004 में गुमनाम मौत मर गयीं.जमीन जायजाद जाने कब की रिश्तेदार हड़प चुके थे और मायका जवानी में मुंह मोड़ चुका था..।
70 साल लम्बी जिंदगी उन्होंने अकेले काट दी अपने स्वर्गीय पति की गर्वित यादों के साथ...
क्यों कि यही उनकी इकलौती पूंजी थी..।

और ये पूंजी उन्हें भारत की सबसे समृद्ध महिला बनाती थी...

क्यों कि राधिका देवी गुमनाम होकर भी भारत की वो बेटी थी जिनका पूरा देश कर्जदार था.. रहेगा ।

वो महज़ 14 साल की बच्ची ही थी जब विवाह आज़ के वैशाली जिले के एक समृद्ध किसान परिवार में कर दिया गया.... पति के तौर पर मिले बैकुंठ शुक्ल. उनसे तीन साल बड़े..।
अब गौना हो ससुराल पहुंची तब तक बैकुंठ बाबू तो अलग राह चल पड़े थे.देश को आज़ाद कराने..।
घर परिवार बैकुंठ बाबू के साथ न था सो घर छोड़ दिया पर राधिका को तो समझ ही न थी इन बातों की सीधी सरल घरेलू लड़की जिसकी दुनियाँ घर का आंगन भर थी.पति के साथ हो ली..।

राधिका को चम्पारण के गाँधी आश्रम में छोड़ बैकुंठ बाबू अपने काम में जुट गए तो आश्रम में रह देश और आज़ादी के मायने समझ राधिका भी उस लड़ाई का हिस्सा हो ली. ।

बैकुंठ शुक्ल को एक चीज खटकती थी...।
जिस  फणिन्द्र नाथ घोष की गद्दारी ने भगत सिंह,राजगुरु, सुखदेव को फाँसी दिलवाई वो आराम से बेतिया के मीना बाजार में सेठ बन जी रहा था..।
सरकारी इनाम से खोली दुकान और गोरी सरकार की दी सुरक्षा में वो बेतिया का प्रतिष्ठित व्यक्ति था..
न किसी ने उसके कारोबार का बहिष्कार किया न उसका सामाजिक बहिष्कार हुआ....
लोग आराम से इस गद्दार को सर आँखों पर रखे थे..... भले आज हम भगत सिंह के कितने भी गीत गाएं तब की सच्चाई यही थी हमारी...

9 नवंबर 1932 को फणिन्द्र नाथ अपनी दुकान पर अपने मित्र गणेश प्रसाद गुप्ता के साथ बैठा था..... तभी वहाँ बैकुंठ शुक्ल और चन्द्रमा_सिंह पहुँचे.... उन्होंने अपनी साइकिल खड़ी की और ओढ़ रखी चादर निकाल फैकी.... कोई कुछ समझता तब तक बैकुंठ शुक्ल के गंडासे के प्रहार फणिन्द्र नाथ और गणेश गुप्ता को उनके ही खून से नहला चुके थे ... सुरक्षा में मिले सिपाही ये देख भाग खड़े हुए....

वे दौनो निकल गए..... और सोनपुर में साथी रामबिनोद सिंह के घर पहुँचे जो भगत सिंह के भी साथी थे.... वहाँ तय हुआ के कपडे और साइकिल के चलते पकडे ही जायेंगे तो बेहतर है एक ही फाँसी चढ़े और ये जिम्मा भी बैकुंठ शुक्ल ने अपने सर ले लिया....

बैकुंठ छिपे नहीं आराम से चौड़े हो बाजार घूमते और थाने का चक्कर भी लगा आते.... उधर राधिका देवी को भी पति के किये की खबर थी
और उन्हें पति के किये पर गर्व था....

बैकुंठ बाबू पकडे गए और अंग्रेजी कोर्ट ने मृत्युदण्ड दिया.... उन्होंने पूरा अपराध अपने सर लिया.... जेल में बैकुंठ जम के कसरत करते और
हर साथी को बिस्मिल का गीत सरफ़रोशी की तमन्ना सुनाते.... रत्ती भर भय न था मृत्यु का फाँसी के लिए लेजाते समय भी वे एकदम हँसते मज़ाक करते ही गए और सर पर काला कपड़ा पहनने से मना कर दिया... उनका वजन जेल में रह बढ़ गया था और इसके लिए उन्होंने गया जेल के गोरे जेलर को धन्यवाद दिया.... रस्सी गले में डलने के बाद भी बैकुंठ ने अपने ही अंदाज़ में जल्लाद को कहा "भाई तू क्यों परेशान है खींच न.... तेरा काम कर"

14 मई 1934 को बैकुंठ 27 साल कि उम्र में फाँसी चढ़ गए... खुद जेल के अधिकारी अपने संस्मरण में लिखे के ऐसा जियाला उन्होंने कभी न देखा.... जिसने मौत को यूँ आँखों में आंख डाल गले लगाया हो...
पर बैकुंठ शुक्ल को भी एक अफ़सोस था.... पत्नी राधिका देवी के प्रति कर्तव्य पालन न कर पाने का.. इसी लिए फाँसी से एक दिन पूर्व साथी क्रन्तिकारी विभूति भूषण दास से उन्होंने कहा था
देश जब आज़ाद हो जाये आप बाल विवाह की रीत बंद करवा देना.... इसके लिए लड़ाई लड़ना

खैर बैकुंठ शुक्ल देश पर बलिदान हुए और भुला दिए गए..... पत्नी राधिका को भला कौन याद रखता.... लेकिन आश्रम में मिले नाम राधिका पंडिताइन और बैकुंठ बाबू की स्मृतियों के साथ उन्होंने एक लम्बा जीवन काटा..... अकेले.... गुमनाम.... और 2004 में उनकी मृत्यु भी कहीं कोई खबर न बनी....

बैकुंठ शुक्ल के गाँव वैशाली के जलालपुर में आज भी एक खंडहर नुमा उनका मकान जिसे गाँववाले कूड़ा डालने के स्थान के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.गाँव के लोग तक नहीं जानते कोई बैकुंठ शुक्ल इस घर में जन्मे थे..।
साभार Ajai Singh जी फेसबुक से ।
#NSB

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

कबीर महिला विरोधी थे क्या ??


दोहे पर चर्चा हो रही है तो फिर हर उस दोहे की चर्चा हो जो स्त्री विरोध में लिखे-कहे गए हैं। आप तुलसीदास पर चर्चा करते हैं फिर कबीर की क्यों नहीं करते? क्या कभी कबीर ने स्त्री विरोध में कुछ नहीं कहा है? यदि तुलसीदास स्त्री विरोधी हैं तो फिर कबीर स्त्री विरोधी कैसे नहीं हैं? पांच सौ साल पुराने किसी दोहे को लेकर उसे आधुनिक युग में बहस का मुद्दा बनाते हैं तो फिर कबीर कैसे अछूते रह जाते हैं?

‘नारी की झांई पड़त, अंधा होत भुजंग
कबिरा तिन की कौन गति, जो नित नारी को संग’

नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है, फिर सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है?

'कबीर नारी की प्रीति से, केटे गये गरंत
केटे और जाहिंगे, नरक हसंत हसंत।'

नारी से प्रेम के कारण अनेक लोग बरबाद हो गये और अभी बहुत सारे लोग हंसते-हंसते नरक जायेंगे।

'कबीर मन मिरतक भया, इंद्री अपने हाथ
तो भी कबहु ना किजिये, कनक कामिनि साथ।'

यदि आपकी इच्छाएं मर चुकी हैं और आपकी विषय भोग की इन्द्रियां भी आपके हाथ में हैं, तो भी आप धन और नारी की चाहत न करें।

'कलि मंह कनक कामिनि, ये दौ बार फांद
इनते जो ना बंधा बहि, तिनका हूं मैं बंद।'

कलियुग में जो धन और स्त्री के मोह में नहीं फंसा है, भगवान उसके हृदय से बंधे हुये हैं
क्योंकि ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे हैं।

'कामिनि काली नागिनि, तीनो लोक मंझार
हरि सनेही उबरै, विषयी खाये झार।'

स्त्री काली नागिन है जो तीनों लोकों में व्याप्त है। परंतु हरि का प्रेमी व्यक्ति उसके काटने से बच जाता है। वह विषयी लोभी लोगों को खोज-खोज कर काटती है।

'कामिनि सुन्दर सर्पिनी, जो छेरै तिहि खाये
जो हरि चरनन राखिया, तिनके निकट ना जाये।'

नारी एक सुन्दर सर्पिणी की भांति है। उसे जो छेड़ता है उसे वह खा जाती है। पर जो हरि के चरणों मे रमा है उसके नजदीक भी वह नहीं जाती है।

नारी कहुँ की नाहरी, नख सिख से येह खाये
जाल बुरा तो उबरै, भाग बुरा बहि जाये।

इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पूंछ तक खा जाती है। पानी में डूबने वाला बच सकता है पर विषय भोग में डूबने वाला संसार सागर में बह जाता है।

छोटी मोटी कामिनि, सब ही बिष की बेल
बैरी मारे दाव से, येह मारै हंसि खेल।

स्त्री छोटी बड़ी सब जहर की लता है।
दुश्मन दाव चाल से मारता है पर स्त्री हंसी खेल से मार देती है।

सोमवार, 16 जनवरी 2023

मकर संक्रांति की तारीख क्यों बदलती है ?

मकर सक्रांति की बदलती तारीख को लेकर समाज में बड़ा भ्रम रहता है। मैं इस पहलूँ से जुड़े तकनीकी पक्ष को थोड़ा डिटेल और आसान भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद है, इसके बाद वस्तुस्थिति एकदम स्पष्ट हो जाएगी। 
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सबसे पहले बात उत्तरायण की। 21 जून को देखिए कि आसमान में सूर्य किस जगह उदित होता है। उसके बाद रोज सुबह उठकर यह कार्य दोहराइए। आप पाएंगे कि सूर्य आसमान में... अपनी उदय की पूर्वस्थिति के.... थोड़ा दक्षिण में उदित होता है। यह सूर्य की दक्षिणायन गति कहलाती है। जो 21 जून से 21 दिसंबर तक रहती है। 
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21 दिसंबर तक सूर्य आसमान में दक्षिणतम स्थिति पर पहुंच चुका होता है। अब इस तारीख से सूर्य वापस उत्तर की ओर उदित होना शुरू कर देता है। इसलिए 21-22 दिसंबर से सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश माना जाता है, और 21 जून तक सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर उदित होता है। इस तरह सूर्य 6 महीना उत्तरायण और 6 महीना दक्षिणायन में व्यतीत करता है। इस उत्तर-दक्षिण गति का राशि-फाशी से कुछ लेना-देना नहीं। सूर्य का उत्तरायण 21 दिसंबर को पहले ही हो चुका है। अब आते हैं, राशि पर...
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आपके चारों तरफ आसमान एक वृत के समान है। वृत्त की परिधि होती है 360 डिग्री। परिधि को 12 हिस्सों में बांटिए। यानी, अब आसमान में 30-30 डिग्री के 12 पैच आपके सामने हैं। इन पैच को ही जोडिएक या राशि कहते हैं। अब सूर्य किस राशि में कब है, यह कैसे पता चलेगा क्योंकि सूर्य के क्षितिज में रहते हुए तो कोई सितारा देखना संभव है नहीं?
इसका भी सिंपल लॉजिक है। आसमान को देखिए, नोट करिए कि सूर्यास्त के बाद कौन सी राशि आसमान में उदित हुई और सूर्योदय से पूर्व कौन सी राशि क्षितिज पर सूर्य के करीब थी। सूर्य उन दोनों राशियों के मध्य होगा। अर्थात अगर अस्त होने वाली राशि सिंह है और उदित होने वाली राशि मिथुन... तो सूर्य इन दो राशियों के मध्य विचरण कर रहा है, अर्थात कर्क !!!
So far... So good? Let's move ahead. 
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अब एक घूमते लट्टू के बारे में सोचिए। जब लट्टू लड़खड़ा कर गिरने वाला होता है, तो गिरने से पूर्व, घूमने के साथ-साथ, वो शराबी माफिक अपने अक्ष के लंबवत गोल-गोल लहराता है। इस लहराव को हिंदी में पुरस्सरण और अंग्रेजी में Precession कहते हैं। हमारी पृथ्वी भी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ कुछ इसी तरह लहरा रही है।
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अब मान लीजिए कि मैं और आप, एक-दूसरे के सामने एक सीधी रेखा में बैठे हैं। अचानक मैं अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा लेफ्ट में झुक जाऊं, तो मेरी नाक की सीधी रेखा से आपकी पोजीशन के कोण में थोड़ी तब्दीली आएगी न? बिल्कुल आएगी। पृथ्वी भी जब लहराती है, तो आसमान में मौजूद राशियां अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा खिसकी हुई प्रतीत होती हैं । फिलहाल राशियों की पोजीशन में बदलाव लगभग 72 साल में एक डिग्री का है। इस कारण सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेशकाल हर साल थोड़ा-थोड़ा खिसकता जाता है। 1737 साल पहले सूर्य उत्तरायण और मकर राशि में प्रवेश एक ही साथ करता था। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में दोनों घटनाओं की एक ही तारीख बताई गई है। वक़्त बीता... उत्तरायण की वही डेट है, पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की तारीख 23-24 दिन आगे खिसक चुकी है। आगे भी हर 72 साल में एक दिन आगे खिसकती रहेगी। इसमें कोई विशेष बात नहीं। ऐसे ही तारीखें खिसकते-खिसकते लगभग 25920 साल बीतने के बाद पृथ्वी पूर्व स्थिति में वापिस आएगी और एक बार फिर, उत्तरायण और मकर में सूर्य का प्रवेश एक साथ 21 दिसंबर को होगा। 
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सूर्य की स्थिति में परिवर्तन की गणना को अयनांश कहते हैं। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों को सैकड़ों साल पहले इस विसंगति का एहसास हो गया था। आर्यभट से लेकर वराहमिहिर तक और भास्कर से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों तक, सभी ने अपने-अपने हिसाब से अयनांश की गणना की है। प्राचीनकाल में वराहमिहिर की गणना सबसे सटीक थी। आधुनिक काल में हम लाहिरी कृत अयनांश का उपयोग करते हैं। 
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यहां रोचक बात यह है कि पश्चिमी एस्ट्रोलॉजी में आज तक अयनांश वाला सिस्टम है ही नहीं। वे आज तक 2000 साल पुराना सिस्टम ही ढो रहे हैं। अर्थात, पश्चिम के विद्वान आज भी 25 दिसंबर को पैदा हुए बालक की राशि मकर ही बताते हैं, जबकि वास्तव में उस समय सूर्य धनु राशि में होता है।
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भारत मेधाओं की भूमि रहा है। अगर वाकई में प्राचीन भारत की उपलब्धियों पर गर्व करना है तो गर्व आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कर जैसे विद्वानों पर करिए, जिन्होंने अथक परिश्रम से निरंतर आसमान को तकते हुए हमें ब्रह्मांड के पिंडों की सटीक व्याख्या प्रदान की। 
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उन सभी प्राचीन मेधाओं को नमन और आप सभी को मकर सक्रांति की शुभकामनाएं। 
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मूल लेखक...विजय सिंह ठाकुराय (फेसबुक)

शनिवार, 14 जनवरी 2023

क्या है ब्रह्माकुमारी संस्था ?

'ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर 'ओम् शान्ति' लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप विश्वविद्यालय नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है ।


स्थापना:  इस संस्था का संस्थापक लेखराज खूबचंद कृपलानी था । इसने अपने जन्म-स्थान सिन्ध (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन 1938 में कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान पर चढ़ गया। इस दुश्चरित्रता व धूर्तता का बादशाह लेखराज अप्रैल सन् 1950 में कराची से 150 सुंदर नवयुवतियों को साथ लाकर माउण्ट आबू (राजस्थान) की पहाड़ी पर रहने लगा और यहीं अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा ।


सिन्ध में लेखराज की चलने वाली ओम मंडली की जगह माउण्ट आबू में 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है। 


संचालन : लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय लंदन (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एन.जी.ओ. बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के न्युयार्क शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। कथित रूप से इस संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है । 


कार्य व उद्देश्य : ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल


प्रचार-प्रसार : इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमार' कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमारी' कहते हैं ।


ईसाईयत का नया रुप- ब्रह्माकुमारी ??

आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है। 


ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है:


''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमी पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''


कई वर्षो से  देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं। ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।


ब्रह्माकुमारी द्वारा हिन्दुत्व को मिटाने का खुला षड्यंत्र :

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजस्थान से प्रकाशित 'भारत के त्यौहार' भाग -1, भाग-2 में वर्णित..


शिवरात्रि : प्रजापिता ब्रह्मा लेखराज ने कल्प के अंत मे अवतरित होकर तमोगुण, दुःख अशान्ति को हरा था। उसी की याद में शिवरात्रि मनायी जाती है। 

होली : कलियुग के अन्त में व सतयुग के शुरुआत में परमपिता ब्रह्मा लेखराज द्वारा सुख शान्ति के दिन शुरु किये गये थे। उसी की याद में होली मनाई जाती है। लकड़ी, गोबर के कंड़े जलाने से क्या होगा? देहातों में रोज जलते हैं। बहुत से शिष्ट लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति घृणा पैदा हो गई है। इनके मतानुसार शास्त्रों में झूठी, मनगढन्त कल्पनाएं हैं।

रक्षाबंधन : ब्रह्माकुमारी बहनें लेखराज के ज्ञान द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर भाई को राखी बांधती है तथा बहन पवित्रत्रा के संकल्प की रक्षा करती है। रक्षाबंधन वास्तव में नारी के द्वारा नर की रक्षा का प्रतीक है, न कि नर द्वारा नारी की रक्षा का। इनके मतानुसार हिन्दू शास्त्रों में रक्षा बंधन विषयक उलटी, गड़बड़ कल्पनायें जड़कर रखी है। 

दीपावली : कलयुग के अन्त में परमपिता ब्रह्मा लेखराज ने पूर्व की भांति दुबारा इस धरा पर आकर सर्व आत्माओं की ज्योत जगाने के लिए अवतरित हुए हैं। लोग अपनी ज्योत जलाने की याद में दीपावली मनाते हैं। इनके मतानुसार शास्त्रकारों ने झूठी कल्पनाएं फैला रखी है। इसी कारण लोग मिट्टी का दीप जला कर खेल खेलते हैं।

नवरात्रि : लेखराज ने ब्रह्माकुमारियों को ज्ञान देकर दिव्य गुण रुपी शक्ति से सुसज्जित किया है। अन्तर्मुखता, सहनशीलता, आदि दिव्य शक्तियाँ ही इनकी अष्ट भुजायें हैं। इन्हीं शक्तियों के कारण ये आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति बन गई हैं। ब्रह्माकुमारियां दुर्गा आदि शक्ति बनकर भारत के नर-नारियों को जगा रही हैं। इसी के याद में नवरात्रि मनाई जाती है। लोगों को ज्ञान देने की याद्गार में कलश स्थापना, जगाये जाने की स्मृति में जागरण करते है। लोग इन कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण कन्या-पूजन करते हैं।

दशहरा : द्वापर युग (1250 वर्ष पूर्व) में आत्मा-रुपी सीता कंचन-मृग के आकर्षण में पड़कर माया रुपी रावण के चंगुल में फंसती है। उस समय से लेकर अब तक सारी सृष्टि शोक-वाटिका बन जाती है। ऐसे समय में परमात्मा लेखराज आकर ज्ञान के शस्त्र से माया रुपी रावण पर विजय दिलाते हैं तब सतयुगी राज्य की पुनर्स्थापना होती है। 5000 साल पहले भी परमात्मा लेखराज ने ऐसा किया था, अभी भी कर रहे हैं। मनुष्य रुपी राम ने भी इसी दिन दस विकार रुपी रावण पर विजय पायी थी तभी से दशहरा मनाते है। शास्त्रों में वर्णन काल्पनिक है। राम, रावण, बंदरो की सेना इत्यादि सब गप-शप व उपन्यास है।

ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड..

माउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा। अन्ततोगत्वा 18 जनवरी 1969 को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया। लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्यु पर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे 'ज्ञान मुरली' कहा जाता है। ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है। लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है। उसे टैप रिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था। लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं। अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं। 

ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को ब्रह्मा बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी जसोदा को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।

ब्रह्माकुमारी के संस्थापक लेखराज के काले कारनामे...


हैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान 15 दिसम्बर 1876 में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में हीरे का व्यापार करता रहा। उसने दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी। हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा। सन् 1932 से इसने खुद के समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा 'ओम मंडली' नामक संगठन बनाया। सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिये। इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में शिवजी प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं।


मायावी लेखराज की पापलीला ...


लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने आश्रम नाम दे दिया, जिससे वहाँ महिलाओं  का आना-जाना शुरु हो गया। लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया। महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब सिन्धी समाज भड़क गया । ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा । राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी।


18 जनवरी सन् 1939 मेें 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में ओम मंडली के खिलाफ एक याचिका दायर की। महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है। अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया।


लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही .....

सिन्ध में ओम मंडली ने भयंकर पाखण्ड किया। लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा। लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ। उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध भाई बंध मंडली के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया। ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचाया गया। सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था।


सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना....


मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक

कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया। ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया।

लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया। वहाँ ओम निवास नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए। ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से माउण्ट आबू भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया। लेखराज की जवान लड़की 'पुट्टू' एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक 'बोधराज' को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया।

लेखराज के बाद दूसरा शिव बना वीरेन्द्र देव दीक्षित...

वीरेन्द्र देव दीक्षित ब्रह्माकुमारी संस्था माउण्ट आबू से लेखराज का ज्ञान सीखा और अहमदाबाद में रहकर इस पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने लगा। यहाँ बहुत समय बाद वीरेन्द्र खुद को शंकर सिद्ध करने लगा। इसके लिये वह खुद की मुरली (जिसे वह नगाड़ा कहता था) सुनाने लगा। इसके तमाम अधार्मिक कुकृत्यों के लिये अहमदाबाद की जनता ने इसे खूब पीटा। अहमदाबाद से भाग कर वह पुष्पा माता के पास दिल्ली चला गया। इनके घर एक गरीब चपरासी की 9 साल की लड़की कमला दीक्षित रहती थी। वीरेन्द्र कमला के साथ बलात्कार करता रहा और उसे रोज कहता कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। पुष्पा माता का घर छोड़ दिल्ली में ही प्रेमकान्ता के घर चला गया। यहाँ प्रेमकान्ता का भी बलात्कार करता रहा और इसे भी कहा कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। वीरेन्द्र लोगों को कहता था कि मैं कामीकांता (कामी देवता) हूँ और मेरे पास 8 पटरानियाँ हैं। सन् 1973 से सन् 1976 तक तथाकथित शिव बनकर इन लड़कियों को पटरानी बनाकर सहवास करता रहा।

सन् 1976 में वीरेन्द्र ने एडवांस पार्टी नामक संगठन खड़ा किया तथा 'आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविघालय' चालू किया। सन् 1976 में उत्तर प्रदेश के कम्पिल गाँव (जिला फर्रुखाबाद) में एक आश्रम बनाया। वीरेन्द्र लोगों को कहने लगा कि लेखराज मेरे शरीर में आ गये हैं और मैं कृष्ण की आत्मा हूँ, इसलिए मुझे 16108 गोपियों की जरुरत है। आश्रम में आती जवान औरतों के साथ बलात्कार करना चालू किया। 

लेखराज की तरह वीरेन्द्र ने भी घोर अनैतिकता व पाखण्ड फैलाया, जिसके लिये फर्रुखाबाद की युवा शक्ति, मिसाइल फोर्स, रेड आर्मी आदि की महिला संगठनों ने इन कुकृत्यों के खिलाफ आन्दोलन किया। सन् 1998 में बलात्कार के केस में वीरेन्द्र व उसके साथियों को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसी दौरान आयकर वालों ने इसके आश्रम में छापा मारकर 5 करोड़ रुपये जब्त किये। 

ब्रह्माकुमारी के पाखण्डी मतों का खण्डन .....

(1) ब्रह्माकुमारी मत- मैं इस कलियुगी सृष्टि रुपी वेश्यालय से निकालकर सतयुगी, पावन सृष्टि रुप शिवालय में ले जाने के लिये आया हूँ । (सा.पा.पेज 170)

खण्डन- लेखराज अगर इस सृष्टि को नरक व वेश्यालय मानता है तो इस वेश्यालय में रहने वाली सभी ब्रह्माकुमारियां भी साक्षात् वेश्यायें होनी चाहिए। क्या यह सत्य है? 

(2) ब्रह्माकुमारी मत- रामायण तो एक नॉवेल (उपन्यास) है, जिसमें 101 प्रतिशत मनोमय गप-शप डाल दी गई है। मुरली सं. 65 में लेखराज कहता है कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है। (घोर कलह -युग विनाश, पेज सं.15)

खण्डन- भूगर्भशास्त्रियों को अयोध्या, श्रीलंका आदि की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से तथा नासा का अन्वेषण समुद्र में श्रीरामसेतु का होना आदि रामायण को प्रमाणित करता है। पूरा हिन्दू इतिहास रामायण के प्रमाण से भरा हुआ है। इसे उपन्यास व गप-शप कहना और सनातन-धर्म पर अनर्गल बातें कहना ही वास्तव में गप्पाष्टक है, कमीनापन है।

(3) ब्रह्माकुमारी मत- जप, तप, तीर्थ, दान व शास्त्र अध्ययन इत्यादि से भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड और क्रियायों से किसी की सद्गति नहीं हो सकती। (सतयुग में स्वर्ग कैसे बने? पे. सं. 29)

खण्डन - यह बातें तथ्यों से परे, नासमझी से पूर्ण हैं। जप से संस्कार शुद्ध होते हैं। तप से मन के दोष मिटते हैं )। जहाँ संत रहते हैं उन तीर्थों में जाने से, उनके सत्संग से विचारों में पवित्रता व ज्ञान मिलता है। दान व परोपकार से पुण्य बढ़ता है। शुभ कर्म का शुभ फल मिलता है। शास्त्र अध्ययन से ज्ञान बढ़ता है, सन्मार्ग दर्शन मिलता है, विवेक, बुद्धि जागृत होती है। कर्मकाण्ड से मानव की प्रवृत्ति धर्म व परोपकार में लगी रहती है और इन सब बातों से जीवों का तथा स्वयं मानव का कल्याण होता है। ईन शुभ कर्मों की निंदा करना लेखराज एवं उसके सर्मथकों की मूर्खता प्रकट करता है। जो वेदों और शास्त्रों का विरोध करता है वह मनुष्य रुप में साक्षात असुर है।

(4) ब्रह्माकुमारी मत- श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापरयुग में नहीं हुए, बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग में हुए थे। श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ.सं.140,143)

खण्डन- भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता के अध्याय 10 के 31 वें श्लोक में कहा 'पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्' अर्थात् मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने श्रीराम का उदाहरण देकर श्रीराम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है, दृष्टान्त सदैव अपने से पूर्व हुई अथवा वर्तमान बात का ही दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि इस मत का संस्थापक लेखराज पूरा गप्पी, शेखचिल्ली था जिसने पूरी श्रीमदभगवद्गीता भी नहीं पढ़ी थी।

(5) ब्रह्माकुमारी मत- गीता ज्ञान परमपिता परमात्मा (लेखराज के मुख से) शिव ने दिया था। (सा.पा.पेज सं.144)

खण्डन - गीता को लेखराज द्वारा उत्पन्न बताना यह किसी तर्क व प्रमाण पर सिद्ध नहीं होता। इतिहास साक्षी है कि 5151 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था।

(6) ब्रह्माकुमारी मतः आत्मा रूपी ऐक्टर तो वही हैं, कोई नई आत्मायें तो बनती नहीं हैं, तो हर एक आत्मा ने जो इस कल्प में अपना पार्ट बजाया है अगले कल्प में भी वह वैसे ही बजायेगी, क्योंकि सभी आत्माओं का अपना जन्म-जन्मान्तर का पार्ट स्वयं आत्मा में ही भरा हुआ है । जैसे टेप रिकार्डर में अथवा ग्रामोफोन रिकार्डर में कोई नाटक या गीत भरा होता है, वैसे ही इस छोटी-सी ज्योति-बिन्दु रुप आत्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट भरा हुआ है। यह कैसी रहस्य-युक्त बात है। छोटी-सी आत्मा में मिनट-मिनट का अनेक जन्मों का पार्ट भरा होना, यही तो कुदरत है। यह पार्ट हर 5000 वर्ष (एक कल्प) के बाद पुनरावृत्त होता है, क्योंकि हरेक युग की आयु बराबर है अर्थात् 1250 वर्ष है।  (सा.पा., पृ.सं. 86)

खण्डन- एक कल्प में एक हजार चतुर्युग होते हैं, इन एक हजार चतुर्युगों में चौदह मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युग होते हैं, प्रत्येक चतुर्युगी में चार युग (कलियुग 4,32,000 वर्ष, द्वापर 8,64,000 वर्ष, त्रेता 12,96,000 वर्ष एवं सतयुग 17,28,000 वर्ष के) होते हैं। 

हर पाँच हजार साल में कर्मो की हूबहू पुनरावृत्ति होती है, इसको सिद्ध करने के लिए ब्रह्माकुमारी के पास कोई तर्क या कोई भी शास्त्रीय प्रमाण नहीं है, सिर्फ और सिर्फ इनके पास लेखराज की गप्पाष्टक है जिसे मूर्ख व कुन्द बुद्धि वाले लोग ही सत्य मानते हैं। मानों यदि व्यक्ति की ज्यों की त्यों पुनरावृत्ति हो तो वह कर्म-बंधन व जन्म-मरण से कैसे मुक्त होगा?

(7) ब्रह्माकुमारी मत- परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है, वह सर्वव्यापक नहीं है।...भला बताइये कि अगर परमात्मा सर्वव्यापक है तो शरीर में से आत्मा निकल जाने पर परमात्मा तो रहता ही है तब उस शरीर में चेतना क्यों नहीं प्रतीत होती? मोहताज व्यक्ति, गधे, कुत्ते आदि में परमात्मा को व्यापक मानना तो परमात्मा की निन्दा करने के तुल्य है। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ. सं. 44, 55, 68)

खण्डन- ईश्वर सर्वव्यापक है क्योंकि जोे एक देश में रहता है वह सर्वान्तर्यामी, सर्वर्ज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का (होना) असम्भव है।

प्राण-अपान की जो कला है जिसके आश्रय में शरीर होता है। मरते समय शरीर के सब स्थानों को प्राण त्याग जाते हैं और मूर्छा से जड़ता आ जाती है। महाभूत, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण, अविद्या, काम, कर्म के संघातरुप पुर्यष्टक शरीर को त्यागकर निर्वाण हो जाता है। शरीर अखंडित पड़ा रहता है, जिसमें सामान्य रूप से चेतन परमात्मा स्थित रहता है। कुन्द बुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए कि एक बल्ब बुझा देने से पूरा पॉवर हाऊस बंद नहीं हो जाता।

लेखराज व उसके सर्मथकों ने सनातन धर्म की सनातन सत्यता पर आक्षेप करने के पूर्व विधिवत अध्ययन, श्रवण, मनन व निदिध्यासन कर लिया होता तो ऐसी धूर्तता व पाखण्ड भरी बातेें नहीं करते ।

वैदिक संस्कृति विश्व मानव संस्कृति....

विश्व की प्राचीनतम आर्य संस्कृति के अवशेष किसी न किसी रूप में मिले हैं। वैदिक काल से विश्व के प्रत्येक कोने में वैदिक आर्यों की पहुँच हुई और समस्त प्रकार का ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता उन्होंने ही विश्व को प्रदान की थी। नवीनतम खोज के अनुसार अमेरिका में रिचमण्ड से 70 किलोमीटर दूर केप्सहिल पर जो अवशेष पुरातत्व अन्वेषकों ने खोजे हैं, वह 17 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के हैं और उस समय विश्व में केवल आर्य संस्कृति ही विकसित थी तथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जर्मनी आदि के विश्वविद्यालय में चरकॉलोजी, इंडोलोजी आदि के नाम से वेदों की गुह्यतम विद्याओं पर अन्वेषण हो रहे हैं। विश्व के कोने-कोने में सनातन संस्कृति के अवशेष, प्रमाण मिले है।

ब्रह्माकुमारों के काले-कारनामे-

बलात्कार व जबरन गर्भपात....

छतरपुर, जिला भोपाल (म.प्र.) की एक 26 वर्षीय दलित महिला ने ब्रह्माकुमारीयों का अड्डा सिंगरौली और भोपाल में ब्रह्माकुमारों द्वारा बलात्कार करने तथा गर्भ ठहर जाने पर जबरन गर्भपात करा देने का आरोप लगाया। महिला ने बताया 17 साल की उम्र में तलाक होने के बाद 2001 में वह शांति पाने के लिए छतरपुर स्थित ब्रह्माकुमारी अड्डे में आयी जहां से उसे भोपाल भेज दिया गया। एस.पी. को लिखित शिकायती आवेदन में महिला ने कहा कि सिंगरौली और भोपाल के ब्रह्माकुमारीयों के अलग-अलग अड्डो में युवकों द्वारा बलात्कार किया गया। 

(देशबन्धु, 15 दिसम्बर 2013)


सेक्स व व्यभिचार का अड्डा बना ब्रह्माकुमारी ध्यान-योग केन्द्र....


पुलिस के मुताबिक 'ब्रह्माकुमारी ध्यान योग केन्द्र' ट्राँस यमुना कॉलोनी आगरा, व्यभिचार एवं अय्याशी का अड्डा है, न कि ध्यान केंद्र। केन्द्र पर रहने वाले हरि भाई से सेविका भारती के अवैध संबंध ऐसे थे। पूरा केंद्र ही व्यभिचार का अड्डा बना हुआ था। भारती चाहती थी कि हरिभाई उससे शादी कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इस पर भारती ने हरिभाई की पोल खोलने की धमकी दी। जब भारती को यह पता चला कि हरिभाई उसे सिर्फ मौजमस्ती का साधन समझता है तो वह काफी उत्तेजित हो उठी थी। उसने बड़ा हंगामा मचाया। इसी के बाद वकील की सलाह से उसे ठिकाने लगाने की योजना तैयार की गई। 27 दिसम्बर 2003 की रात को हरिभाई भारती के साथ जिस कमरे में हमबिस्तर होता था, उसी कमरे में भारती को बेहद क्रूर तरीके से और अत्यन्त रहस्यमय परिस्थितियों में जिंदा जलाकर मार दिया गया। उसकी लाश को उसी रात फरह (मथुरा) पुल के नीचे फेंक दिया गया।

(नवभारत टाइम्स 18 जनवरी 2004, पल-पल इडिया 14 दिसम्वर, 2013)

सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि में हिन्दुत्व .....

हिन्दुत्व भारतीय समाज की परम्परा, संस्कृति तथा विरासत की सामूहिक अभिव्यक्ति है। देवत्व, विश्वत्व तथा मनुष्यता का संयोग है हिन्दुत्व। हिन्दुत्व किसी के प्रति असहिष्णु का भाव नहीं रखता है, यह जीवन का एक मार्ग है।

जनता की आवाज:

वास्तव में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ना तो कोई विश्वविद्यालय है और ना ही कोई धर्म, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक झूठ, फरेब से काम करने वाला अधार्मिक एवं गैरकानूनी काम करने वाले लोगों का संगठन है। - डॉ. सुरेंद्रसिंह नेगी (अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल)

लेखराज की करतूतों को छुपाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया गया है। वह धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता और ना ही किसी धर्म का उसने कभी पालन किया है । - लोबो और कालुमल (न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय हैदराबाद)

ब्रह्माकुमारियों को साक्षात् विषकन्या समझना चाहिए। ये हिन्दू-सभ्यता, इतिहास, शास्त्र, धर्म एवं सदाचार सभी की शत्रु हैं। इनके अड्डे दुराचार प्रचार के केन्द्र होते हैं । - डा. श्रीराम आर्य (लेखक व महान विचारक)

ब्रह्माकुमारियाँ शब्दाडम्बर में हिन्दू जनता को फँसाने के लिए गीता का नाम लेकर अनेक प्रकार के भ्रम मूलक विचार बड़ी चालाकी से फैलाने का यत्न करती हैं। - श्री रामगोपाल शालवाले (लेखक व वरिष्ट आर्य समाजी) 

वेद व उपनिषदों पर विद्वानों के विचार.........

भारत वेदों का देश है। इनमें न केवल सम्पूर्ण जीवन के लिए धार्मिक विचार मौजूद हैं, बल्कि ऐसे तथ्य भी हैं जिनको विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। वेदों के सर्जकों को बिजली, रेडियम, इलेक्टॉनिक्स, हवाई जहाज, आदि सबकुछ का ज्ञान था। - एल्ला व्हीलर विलकॉक्स (अमेरिकी कवयित्री व पत्रकार)

पूरी दुनिया में उपनिषदों के ज्ञान जैसा लाभदायक और उन्नतिकारक और कोई अध्ययन नहीं है, यह मेरे जीवन का आश्वासन रहा है और यही मेरी मृत्यु पर भी आश्वासन रहेगा। यह उच्चतम विद्या की उपज है। - आर्थर सोपेनहर (जर्मनी के दार्शनिक व लेखक)

हम लोग भारतीयों के अत्यधिक ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बगैर कोई भी महत्वपूर्ण खोज संभव नहीं था । - अलवर्ट आईंस्टाईन (महान वैज्ञानिक) 

उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में, संभवतः सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। - पॉल डायसन

यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस, दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया। - मोनीयर विलियम्स

जब-जब मैंने वेदों के किसी भाग का पठन किया है, तब-तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है। वेदों के महान उपदेशों में सांप्रदायिकता की गंध भी नहीं है । यह सर्व युगों के लिए, सर्व स्थानों के लिए और सर्व राष्टों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है । - हेनरी डेविड थोरो

उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है । मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है । उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरुप में जगाना है । - बेनेडिफ्टीन फादर ली. सो.

विषघातक ब्रह्माकुमारियों से  सावधान......

सुन्दर, पढ़ी-लिखीं, श्वेत वस्त्रधारिणी नवयुवतीयाँ इस मत की प्रचारिका होती हैं। इनको ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, सृष्टि-रचना, स्वर्ग, ब्रह्मलोक, मुक्ति आदि के विषय में काल्पनिक (जो शास्त्र-सम्मत नहीं है) बेतुकी सिद्धांत कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, जिसेे वे अपने अन्धभक्त चेले-चेलियों को सुना दिया करती हैं। इस मत की पुस्तकों में जो कुछ लिखा है उनका कोई आधार नहीं है। आध्यात्मिकता और भक्ति की आड़ में ये लोग सैक्स (व्यभिचार) की भावना से काम कर रहे हैं। इनके अड्डे जहां भी रहे हैं सर्वत्र जनता ने इनके चरित्रों पर आक्षेप किये हैं। अनेक नगरों में इनके दुराचारों के भण्डाफोड़ भी हो चुके हैं। 

ब्रह्माकुमारियों का नयनयोग ....

लेखराज द्वारा दृष्टिदान अर्थात् नयन योग (एक दूसरे के आखों में आखें डालकर त्राटक करना) शुरु किया गया था। अब वही नयन योग ब्रह्माकुमारियाँ करती हैं। अपने यहां आने वाले युवकों से आंख लड़ाती हैं काजल लगाकर। ब्रह्माकुमारीयों का पाखण्ड तेजी से फैल रहा है। ये प्रत्येक समाज के लिए विषघातक हैं। इनके अड्डेे धूर्तता, पाखण्ड, व्यभिचार प्रचार के केन्द्र हैं। सभी को चाहिए कि इन अड्डों पर अपनी बहू-बेटियों को न जाने दें।

और लड़को को अपने सुन्दर मोह जाल में फसाती है और हिन्दू धर्म से दूर करती है ।