रविवार, 1 अक्तूबर 2023

अछूत अवधारणा का जन्म...🚩

एक और षड्यंत्र का पर्दाफाश...

हजारों साल से शूद्र दलित मंदिरों में पूजा करते आ रहे थे, पर अचानक 19वी० शताब्दी में ऐसा क्या हुआ कि, दलितों को मंदिरों में प्रवेश नकार दिया गया?

१. क्या इसका सही कारण आपको मालूम है?
२. या सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली दे देते हो?

अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है...? यह काम पुजारी करते थे कि, मक्कार अंग्रेजो के द्वारा किया गया लूटपाट का षड्यंत्र था?

1932 में लोथियन कॉमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ. आंबेडकर नें अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया है वो वही लिस्ट है जो अंग्रेजो ने भारत में कंगाल यानि गरीब लोगों की लिस्ट बनाई थी जो लोग मन्दिर में घुसने (Entry fee) देने के लिए अंग्रेजों के द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे!

षड़यंत्र: 1808 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में लेती है और फिर लोगो से कर वसूला जाता है, तीर्थ यात्रा के नाम पर कर!

हिन्दुओं के चार ग्रुप बनाए जाते हैं! इसमें से चौथा ग्रुप जो कंगाल है, उनकी एक लिस्ट जारी की जाती है!

1932 ई० में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं तो, वे ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं!

भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला। जिससे अरबो रूपये सीधे अंग्रेजो के खजाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे। श्रद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था!

प्रथम श्रेणी: लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री)
द्वितीय श्रेणी: निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री)
तृतीय श्रेणी: भुरंग (यात्री जो दो रुपया दे सके)
चतुर्थ श्रेणी: पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही मिलते थे, उनकी तलाशी लेने के बाद)

चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं!

01. लोली या कुस्बी!
02. कुलाल या सोनारी!
03. मछुवा!
04. नामसुंदर या चंडाल
05. घोस्की
06. गजुर
07. बागड़ी
08. जोगी 
09. कहार
10. राजबंशी
11. पीरैली
12. चमार
13. डोम
14. पौन 
15. टोर
16. बनमाली
17. हड्डी

प्रथम श्रेणी से 10 रूपये! द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये! तृतीय श्रेणी से 2 रूपये और चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही!

अब जो कंगाल की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था। क्योंकि वो एन्ट्री फीस नही दे पाते थे। ठीक वैसे ही जैसे आज आप ताजमहल/लालकिला में बिना एन्ट्री नही जा सकते...

आप यदि उस समय 10 रूपये भर सकते थे तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाते थे...

डॉ आंबेडकर ने अपनी लोथियन कॉमेटी रिपोर्ट में इसी लिस्ट का जिक्र किया है और कहा कि कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे! 

बाद में वही कंगाल अंग्रेजों द्वारा और बाद में काले अंग्रेज कोंग्रेसियों द्वारा षडयंत्र के तहत अछूत बनाये गए! ताकि हिंदु समाज विभाजित कर उन्हें बरगला कर धर्मांतरित किया जा सके...!!

हिन्दुओ के सनातन धर्म में छुआछुत बेसिक रूप से कभी था ही नहीं।

यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओ के श्मशानघाट और चिता अलग अलग होती। और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता।

यह जातिवाद आज भी ईसाई और मुसलमानों में भी है। इनमें जातियों और फिरको के हिसाब से अलग अलग चर्च और अलग अलग मस्जिदें हैं और अलग अलग कब्रिस्तान बने हैं। सनातनी हिन्दुओं में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जडतावाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 1000 वर्षों से मुस्लिम और अंग्रेजी शासको ने षडयंत्र से डाला है, ताकि विभाजित हिंदुओं पर शासन करनें में आसानी हो...

एकजुट हिंदुओं पर शासन विश्व की कोई भी प्रजाति के बस की बात नहीं है। जिस पर से कांग्रेस नाम के राजनीतिक दल ने पिछले 70 वर्षो तक अपनी राजनीति की रोटियां सेकीं और जूते में दाल खिलाई!

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