मकर सक्रांति की बदलती तारीख को लेकर समाज में बड़ा भ्रम रहता है। मैं इस पहलूँ से जुड़े तकनीकी पक्ष को थोड़ा डिटेल और आसान भाषा में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद है, इसके बाद वस्तुस्थिति एकदम स्पष्ट हो जाएगी।
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सबसे पहले बात उत्तरायण की। 21 जून को देखिए कि आसमान में सूर्य किस जगह उदित होता है। उसके बाद रोज सुबह उठकर यह कार्य दोहराइए। आप पाएंगे कि सूर्य आसमान में... अपनी उदय की पूर्वस्थिति के.... थोड़ा दक्षिण में उदित होता है। यह सूर्य की दक्षिणायन गति कहलाती है। जो 21 जून से 21 दिसंबर तक रहती है।
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21 दिसंबर तक सूर्य आसमान में दक्षिणतम स्थिति पर पहुंच चुका होता है। अब इस तारीख से सूर्य वापस उत्तर की ओर उदित होना शुरू कर देता है। इसलिए 21-22 दिसंबर से सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश माना जाता है, और 21 जून तक सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर उदित होता है। इस तरह सूर्य 6 महीना उत्तरायण और 6 महीना दक्षिणायन में व्यतीत करता है। इस उत्तर-दक्षिण गति का राशि-फाशी से कुछ लेना-देना नहीं। सूर्य का उत्तरायण 21 दिसंबर को पहले ही हो चुका है। अब आते हैं, राशि पर...
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आपके चारों तरफ आसमान एक वृत के समान है। वृत्त की परिधि होती है 360 डिग्री। परिधि को 12 हिस्सों में बांटिए। यानी, अब आसमान में 30-30 डिग्री के 12 पैच आपके सामने हैं। इन पैच को ही जोडिएक या राशि कहते हैं। अब सूर्य किस राशि में कब है, यह कैसे पता चलेगा क्योंकि सूर्य के क्षितिज में रहते हुए तो कोई सितारा देखना संभव है नहीं?
इसका भी सिंपल लॉजिक है। आसमान को देखिए, नोट करिए कि सूर्यास्त के बाद कौन सी राशि आसमान में उदित हुई और सूर्योदय से पूर्व कौन सी राशि क्षितिज पर सूर्य के करीब थी। सूर्य उन दोनों राशियों के मध्य होगा। अर्थात अगर अस्त होने वाली राशि सिंह है और उदित होने वाली राशि मिथुन... तो सूर्य इन दो राशियों के मध्य विचरण कर रहा है, अर्थात कर्क !!!
So far... So good? Let's move ahead.
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अब एक घूमते लट्टू के बारे में सोचिए। जब लट्टू लड़खड़ा कर गिरने वाला होता है, तो गिरने से पूर्व, घूमने के साथ-साथ, वो शराबी माफिक अपने अक्ष के लंबवत गोल-गोल लहराता है। इस लहराव को हिंदी में पुरस्सरण और अंग्रेजी में Precession कहते हैं। हमारी पृथ्वी भी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ कुछ इसी तरह लहरा रही है।
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अब मान लीजिए कि मैं और आप, एक-दूसरे के सामने एक सीधी रेखा में बैठे हैं। अचानक मैं अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा लेफ्ट में झुक जाऊं, तो मेरी नाक की सीधी रेखा से आपकी पोजीशन के कोण में थोड़ी तब्दीली आएगी न? बिल्कुल आएगी। पृथ्वी भी जब लहराती है, तो आसमान में मौजूद राशियां अपनी पूर्वस्थिति से थोड़ा खिसकी हुई प्रतीत होती हैं । फिलहाल राशियों की पोजीशन में बदलाव लगभग 72 साल में एक डिग्री का है। इस कारण सूर्य का किसी भी राशि में प्रवेशकाल हर साल थोड़ा-थोड़ा खिसकता जाता है। 1737 साल पहले सूर्य उत्तरायण और मकर राशि में प्रवेश एक ही साथ करता था। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में दोनों घटनाओं की एक ही तारीख बताई गई है। वक़्त बीता... उत्तरायण की वही डेट है, पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की तारीख 23-24 दिन आगे खिसक चुकी है। आगे भी हर 72 साल में एक दिन आगे खिसकती रहेगी। इसमें कोई विशेष बात नहीं। ऐसे ही तारीखें खिसकते-खिसकते लगभग 25920 साल बीतने के बाद पृथ्वी पूर्व स्थिति में वापिस आएगी और एक बार फिर, उत्तरायण और मकर में सूर्य का प्रवेश एक साथ 21 दिसंबर को होगा।
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सूर्य की स्थिति में परिवर्तन की गणना को अयनांश कहते हैं। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों को सैकड़ों साल पहले इस विसंगति का एहसास हो गया था। आर्यभट से लेकर वराहमिहिर तक और भास्कर से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों तक, सभी ने अपने-अपने हिसाब से अयनांश की गणना की है। प्राचीनकाल में वराहमिहिर की गणना सबसे सटीक थी। आधुनिक काल में हम लाहिरी कृत अयनांश का उपयोग करते हैं।
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यहां रोचक बात यह है कि पश्चिमी एस्ट्रोलॉजी में आज तक अयनांश वाला सिस्टम है ही नहीं। वे आज तक 2000 साल पुराना सिस्टम ही ढो रहे हैं। अर्थात, पश्चिम के विद्वान आज भी 25 दिसंबर को पैदा हुए बालक की राशि मकर ही बताते हैं, जबकि वास्तव में उस समय सूर्य धनु राशि में होता है।
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भारत मेधाओं की भूमि रहा है। अगर वाकई में प्राचीन भारत की उपलब्धियों पर गर्व करना है तो गर्व आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कर जैसे विद्वानों पर करिए, जिन्होंने अथक परिश्रम से निरंतर आसमान को तकते हुए हमें ब्रह्मांड के पिंडों की सटीक व्याख्या प्रदान की।
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उन सभी प्राचीन मेधाओं को नमन और आप सभी को मकर सक्रांति की शुभकामनाएं।
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मूल लेखक...विजय सिंह ठाकुराय (फेसबुक)