कहीं
पढ़ा था की लोहिया जी ने कहा था की क्रांति जिसके कंधे पर चढ़ कर आती है,
सबसे पहले उसी का शिकार करती है । लोहिया जी तो अब नहीं रहे लेकिन खुद को
लोहिया के लोग कहने वाले समाजवादी टाईप के कुछ लोग बच गए हैं ।
उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप ?
कुछ लोग कहने में भी उन लोगों की तौहीन होगी साहब, पूरा एक कुनबा है ऐसे
लोगों का जो लोग समाजवादी होने के प्रोसेस में लगता है कि समाजवाद पर ही
चढ़ बैठे हैं, साथ ही हाथी की पार्किंग से उकताए जितने भी लोगों ने समर्थन
दिया उस क्रांति में, उनके ऊपर भी ये चढ़े हुए लगते हैं क्योंकि टीवी वाले
लगातार बता रहे हैं कि मुजफ्फरनगर में तमाम लोग अभी भी कराह रहे हैं। खुदा
करे कि टीवी वाले जो बता रहे हैं वो झूठ साबित हो क्योंकि हम इक्कीसवीं सदी
के भारत में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश में जिनके पास हुकूमत है उनके खुद
के गाँव में भी एक साथ आधा दर्जन हेलीकाप्टर और जहाज उतर सकते हैं। जब
गाँव में ये सुविधा है तो पूरे सूबे में कितना विकास हुआ होगा ये कोई
अमेरिका वाला भी असानी से समझ सकता है। जुलियन असान्जे ने बहिन जी के
सैंडिल के बारे में न जाने क्या लीक किया था, भला हो दुनिया के मुक्तिदाता
अमेरिका का जो असान्जे अभी एक दूतावास में बंद है वरना उसको समाजवाद पर भी
नई स्टडी करने का मौका मिल जाता और दुनिया भर में समाजवाद के इण्डियन वर्जन
का डंका बजता।
मुलायम सिंह जैसे नेता कभी कभार पैदा होते हैं
इसलिए आज के दौर में यूपी में किसी को नेताजी कहा जाता है तो वो मुलायम
सिंह जी हैं, इनके बारे में मशहूर रहा है की एक एक कार्यकर्ता को कभी नाम
से पहचानते थे और गर्मियों में भी बिना एसी की गाड़ी में पूरे प्रदेश के
घनघोर दौरे किया करते थे। बहुत योद्धा स्वभाव के रहे हैं नेता जी लेकिन अब
उम्र बढ़ने के साथ इनमें प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता आगई और इन्होने
अपनी पूरी कमाई कुनबे के नाम कर दी और खुद दिल्ली की तरफ फोकस कर दिया जो
जरुरी भी है क्योंकि प्रधानमंत्री पद के जितने भी दावेदार हैं उनमें सबसे
काबिल हमारे यूपी वाले नेता जी ही हैं। उत्तर प्रदेश ने आजकल प्रधानमंत्री
देना बंद कर दिया है, राहुल जी का भले ही नाम उछले लेकिन वो हैं तो आखिर
दिल्ली वाले ही, ऐसे में औसत के कानून के हिसाब से या डकवर्थ लुईस नियम से
भी अबकी बार मुलायम सिंह जी का प्रधानमंत्री बनना तय है, डकवर्थ लुईस नियम
क्रिकेट में लागू होता है जब कुछ देर का खेल होने के बाद बारिश के चलते मैच
रद्द हो जाता है, तब फैसला करते वक्त इस नियम का सहारा लिया जाता है।
दिल्ली में भी जब मोदी जी और राहुल जी में मैच फंसेगा तब अगर लालूजी ने
अम्पायर के फैसले पर आपत्ति न की तो जिन लोगों के चांस बनेंगे उनमें से
नेताजी पहले नंबर पर होंगे, भले ही अभी आप इस बात को गप्प समझें।
तो भईया जैसे अभी दिल्ली की जनता शीला जी के भ्रष्टाचार से त्रस्त थी वैसे
ही बताया जाता है की बहिन जी के हाथी पार्क से भी जनता दुखी हो गई थी,
बाकी भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा होता तो आप फिर काँग्रेस के साथ कैसे आती।
बहिन जी के समय सबसे बड़े खलनायक बन कर उभरे थे बाबू कुशवाहा जी, बताया जाता
है कि उन्होंने अरबों रुपयों का घोटाला किया था जिससे छवि खराब हो गई और
जनता बसपा के खिलाफ हो गई। कुशवाहा जी चुनाव के वक्त भाजपा में आ गए, फिर
जेल गए और वर्तमान में उनकी पत्नी का नाम समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव
लड़ने वालों की लिस्ट में हैं वो भी सिटिंग एमपी का टिकट काट कर दिया गया
है। अगर ये कैंडिडेट पाक साफ़ है तो फिर बहन जी के समय किस भ्रष्टाचार का
हल्ला मचा भाई? जो भी हो लेकिन दुखी जनता ने मुलायम सिंह जी की अपील पर
युवा सनसनी अखिलेश जी को हाथों हाथ लिया और लगा की उत्तर प्रदेश की तक़दीर
बदल गई, बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि राहुल जी के खानदान और दिल्ली की मीडिया
के सहारे काँग्रेस ने भी जोरदार अभियान चलाया था कि मायावती-मुलायम को
जवाब दिया जाएगा लेकिन जनता ने भारी बहुमत से चुना समाजवाद को।
बाकी सबका सूपड़ा साफ़ और आया झकाझोर समाजवाद। वैसे तो प्रदेश में पहले भी आ
चुका है लेकिन इस बार अकेले अपने दम पर आया, खांटी समाजवाद, जिसके साथ अमर
सिंह भी नहीं थे और अमिताभ बच्चन भी नहीं ,था एक रिफ्रेशिंग नया चेहरा।
लेकिन चेहरे का युवा होना पुराने समाजवादियों को पचा नहीं और लोग बदनाम
करने में लग गए, कहाँ गर्व की बात थी की प्रदेश का मुख्यमंत्री ऐसा युवा है
जो तीस किलोमीटर साईकिल चला सकता है, मैराथन दौड़ सकता है वहीं लोग लगे
मुलायम सिंह जी की सारी कमाई को डुबोने। लगातार कोशिश की जाती रही कि नव
समाजवाद फ्लॉप हो जाए लेकिन उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का
कर लोगे आप? बहिन जी के कार्यकाल में धकाधक विधायक लोग बलात्कार करते थे
जबकि इस सरकार में ऐसा एकदम नहीं है, कभी भूले भटके किसी पर आरोप लगा और
दबाव में मुकदमा-सुकदमा भी हुआ तो जनहित में क्लीनचिट लखनऊ से दे दी गई
क्योंकि जो लोग सरकार में हैं उनको तो पता है कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है
सेवा में, अपने घर जाने, बच्चों के साथ खाना खाने का मौका तो मिलता नहीं,
चले हैं बलात्कार का काण्ड करने। सरकार को बदनाम करने वाले भी न जाने क्या
क्या करते रहते हैं? न शीला जी न बहिन जी चाहती थीं की उनके राज में
बलात्कार हो तो क्या फारेन रिटर्न अखिलेश जी ऐसा चाहेंगे? ये तो कोई मुद्दा
ही नहीं है साहब।
कभी मुलायम सिंह जी ने अंग्रेजी और कंप्यूटर का
विरोध किया था, लेकिन देखिये सुधरे हुए समाजवाद ने हर बच्चे के हाथ में
लैपटॉप पकड़ा दिया, इतनी बड़ी कंप्यूटर क्रांति का सपना तो देश को आईटी-वाईटी
की गिफ्ट देने वाले राजीव जी ने भी नहीं देखा रहा होगा वरना काँग्रेस कभी
का पूरा कर चुकी होती क्योंकि कोई अपने बाप के घर से थोड़े न बांटना होता
है। लैपटॉप से सूबे में बड़ी क्रांति हुई है, शुरुआत में बच्चे वही करेंगे
जो आपने पहली बार किया था लेकिन अगर बिजली मिले और सीखते रहे तो एकदिन देश
में यूपी के बच्चों का नाम होगा, वैसे परीक्षाएं अभी वैसे ही होती हैं जैसे
होती रही हैं। इस बार भी हाईस्कूल में संस्कृत की तैयारी करने वाले तमाम
छात्र अंग्रेजी में पास हो गए क्योंकि जहाँ इम्तेहान का ठेका था वहाँ फार्म
पर संस्कृत की जगह अंग्रेजी भर दिया गया था और कांट्रेक्ट पास कराने का था
तो जो भी पर्चा आये उसे हल तो करवाना ही था। अब ये सब मामूली बातें हैं जो
मुख्यमंत्री तक तो कोई बताने जाएगा नहीं। हाँ कानून व्यवस्था ऐसा मामला है
जो लखनऊ को देखना चाहिए और जहाँ तक दिखता है वहाँ तक लोग देखते ही हैं
लेकिन पता नहीं, शायद नाम में ही दोष है क्योंकि लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास
जिस रस्ते पर है उसे कालिदास रोड कहा जाता है और दुनिया शादी से पहले वाले
कालिदास को अधिक जानती है।
बीच में कोई जियाउल हक़ का भी मामला
हुआ रहा जिसमें जितनी बदनामी उस मरहूम के परिवार को उठानी पड़ी वैसा ड्रामा
खुदा किसी के साथ न करवाए, हाँ इस चक्कर में हिन्दू ह्रदय सम्राट कहे जाने
वाले राजा भईया को न जाने क्यों फँसा लिया गया था और उनको इस्तीफा देना पड़
गया था लेकिन सीएम साहब के बचपन के चचा और काफी जहीन मनिस्टर आजम खान ने
भईया को मना लिया और उनकी मंत्रिमंडल में वापसी हो गई। इसी के साथ जिन
ठाकुर वोटों के बिखरने का खतरा था वो फिर साईकिल पर आगये।
हाँ
जैसा की राहुल जी ने बताया की बीजेपी वाले दंगे कराते हैं और फिर आईएसआई
वाले आ जाते हैं, वैसा भी किसी मुजफ्फरनगर में हुआ लेकिन दंगे कहाँ हो रहे
थे, चचा जी लोगों ने बताया कि वहाँ कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी, केवल मामूली
बात थी जिसका सियासत के चलते कुछ लोगों ने बतंगड़ बना दिया।सच ही तो है, जब
फौज आई तो बाहर के लोगों को पता चला की वहाँ कुछ हो रहा है। फौज भेजने में
भी लगता है की केंद्र सरकार की कोई चाल रही होगी वरना कोई भी काबिल सरकार
आतताईयों पर काबू करना चाहे तो कर सकती है लेकिन समाजवाद को बदनाम करने के
लिए फौज भेज दी गई। कई महीने बाद भी लोग वहाँ की हालत पर सरकार से सवाल पूछ
रहे हैं, जबकि सरकार, जिसकी जिम्मेदारी है की अमन चैन कायम रहे और सब
सुकून से रहें,बहुत पहले ही कह चुकी है की वहाँ आल इज वेल है और राहत
शिविरों में जो थे वो बच्चे और बूढ़े सब भाजपा-काँग्रेस के एजेंट थे, जाहिर
है की दोनों बड़ी पार्टियाँ नहीं चाहतीं की कोई समाजवादी प्रधानमंत्री बने
इसलिए ऐसी साजिशें चल रही होंगी, सियासत में हम कुछ भी कह नहीं सकते, बोलिए
जय समाजवाद। और अगर गड़बड़ हो रही होती तो मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री जी
वहाँ न जाकर विदेश स्टडी टूर पर जाते? जबकि उनसे जहीन कोई है नहीं, कौम के
लिए जितना वो सोचते हैं वहाँ तक किसी की सोच जा ही नहीं सकती। हाँ बीच-बीच
में जनाब बुखारी और तौकीर रजा साहब जैसे लोग भी सोचते हैं लेकिन उन लोगों
की सोच खांटी समाजवादी आजम खान साहब से छोटी ही पड़ जाती है।
इन
सबके बीच मायावती के दौर में समाजवाद के गढ़ सैफई में जो घनघोर लापरवाही
बरती गई उसको ठीक करने की भी जिम्मेदारी भी आगई, आखिर काँग्रेस के नेता
पटेल जी के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री जी बेचैन हो सकते हैं तो समाजवाद के
पुरोधा मुलायम सिंह जी के जन्म स्थान की चिंता समाजवादी सरकार नहीं करेगी
तो कौन करेगा? लोग कह रहे हैं की लगभग सवा सात हजार की आबादी वाले गाँव के
लिए इस सरकार ने 300 करोड़ से ऊपर की योजनायें दी हैं, क्या गलत है साहब?
आखिर नव समाजवाद का तीर्थ स्थल है सैफई। लोग सोचते थे की अमर सिंह के जाने
के बाद अब गाँव के सालाना जलसे में बंबई के नचनिये नहीं आयेंगे, अरे भाई
अमर सिंह लाते थे क्या? बसंती को गब्बर से क्या मतलब, जहाँ पइसा मिलेगा
वहाँ नाचेगी, चाहे दुबई हो या सैफई। बड़े बड़े सितारे बड्डे पार्टी से लेकर
न्यू ईयर के जलसे में नाचते हैं की नहीं? आखिर उनका पेशा है, जहाँ नोट
मिलेगी वहाँ लोट जायेंगे। साहब इस बार तो जबरदस्त जलसा हुआ, जनवरी के महीने
में इतनी गर्मी चढ़ी की लोग पसीना-पसीना हो गए और तमाम व्यस्तताओं के
बावजूद सरकार का वहाँ रहना बताता है की समाजवादी सरकार गाँव-गिराँव की
हितैषी है और अभी भी इसमें धरती पुत्र की आभा बची हुई है क्योंकि ये लोग
अपने तीर्थों को भूले नहीं हैं। अब आप लोग बदनामी कितना भी कर लीजिये लेकिन
हार्ड कोर ने जब मंच से चुटकी ली की सीएम साहेब बहुत सेक्सी हैं और उन्हें
एक्टिंग की भी सीखनी चाहिए तो आप मान लीजिये की प्रदेश धन्य हो गया ऐसा
सीएम पाकर, हार्ड कोर को जो न जानते हों वो लोग गूगल करें क्योंकि उनको तो
अब सैफई का बच्चा बच्चा भी पहचान चुका है।
‘बीइंग ह्यूमन’ वाले
सलमान ने जब ‘पांडेय जी सीटी बजावें’ पर अपने ही अंदाज में जोरदार नृत्य
किया तो अखबार वाले न जाने क्यों आईजी, पांडे जी की फोटो छापते हैं जिनको
की दिखाया गया है की वो सीएम के चरणों में बैठे हैं जबकी सबको पता है की
पाण्डेय जी प्रदेश के बहुत काबिल अफसर हैं। अरे जब मुख्यमंत्री जी बैठे हैं
और अगल बगल जगह खाली नहीं है तो कोई बात करनी हो तो अफसर खुद सीएम को
उठाकर तो बैठेंगे नहीं, नाहक ही समाजवाद से जलने वाले लोग एक काबिल अफसर और
सीएम की जोड़ी को बदनाम कर रहे हैं। ‘राम चाहे लीला, लीला चाहे राम’ से
झूमते लोगों का आनंद उस समय चरम पर पहुँच गया जब मुलायम सिंह जी की छोटी
बहु खुद मंच पर पहुँच गईं और साजिद के साथ ‘नेता जी को दिल्ली पहुंचाना है’
गाने लगीं। ये नया समाजवादी गाना इसी मंच पर लांच किया गया, इस गाने के
दौरान खुद सीएम साहब और उनके भाई प्रतीक भी मंच पर पहुँच गए। आप लोगों को
भी नाहक आलोचना करने की जगह समाजवाद की जय बोलनी चाहिए और साम्प्रदायिकता
के नाश का संकल्प लेना चाहिए। जिस गाने के साथ महान समाजवादी महोत्सव का
समापन हुआ उसे एक बार तो सुर में गाकर देखिये और ऑंखें बंद करके सोचिएगा —
नेता जी को दिल्ली पहुँचाना है।
उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप ?
कुछ लोग कहने में भी उन लोगों की तौहीन होगी साहब, पूरा एक कुनबा है ऐसे लोगों का जो लोग समाजवादी होने के प्रोसेस में लगता है कि समाजवाद पर ही चढ़ बैठे हैं, साथ ही हाथी की पार्किंग से उकताए जितने भी लोगों ने समर्थन दिया उस क्रांति में, उनके ऊपर भी ये चढ़े हुए लगते हैं क्योंकि टीवी वाले लगातार बता रहे हैं कि मुजफ्फरनगर में तमाम लोग अभी भी कराह रहे हैं। खुदा करे कि टीवी वाले जो बता रहे हैं वो झूठ साबित हो क्योंकि हम इक्कीसवीं सदी के भारत में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश में जिनके पास हुकूमत है उनके खुद के गाँव में भी एक साथ आधा दर्जन हेलीकाप्टर और जहाज उतर सकते हैं। जब गाँव में ये सुविधा है तो पूरे सूबे में कितना विकास हुआ होगा ये कोई अमेरिका वाला भी असानी से समझ सकता है। जुलियन असान्जे ने बहिन जी के सैंडिल के बारे में न जाने क्या लीक किया था, भला हो दुनिया के मुक्तिदाता अमेरिका का जो असान्जे अभी एक दूतावास में बंद है वरना उसको समाजवाद पर भी नई स्टडी करने का मौका मिल जाता और दुनिया भर में समाजवाद के इण्डियन वर्जन का डंका बजता।मुलायम सिंह जैसे नेता कभी कभार पैदा होते हैं इसलिए आज के दौर में यूपी में किसी को नेताजी कहा जाता है तो वो मुलायम सिंह जी हैं, इनके बारे में मशहूर रहा है की एक एक कार्यकर्ता को कभी नाम से पहचानते थे और गर्मियों में भी बिना एसी की गाड़ी में पूरे प्रदेश के घनघोर दौरे किया करते थे। बहुत योद्धा स्वभाव के रहे हैं नेता जी लेकिन अब उम्र बढ़ने के साथ इनमें प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता आगई और इन्होने अपनी पूरी कमाई कुनबे के नाम कर दी और खुद दिल्ली की तरफ फोकस कर दिया जो जरुरी भी है क्योंकि प्रधानमंत्री पद के जितने भी दावेदार हैं उनमें सबसे काबिल हमारे यूपी वाले नेता जी ही हैं। उत्तर प्रदेश ने आजकल प्रधानमंत्री देना बंद कर दिया है, राहुल जी का भले ही नाम उछले लेकिन वो हैं तो आखिर दिल्ली वाले ही, ऐसे में औसत के कानून के हिसाब से या डकवर्थ लुईस नियम से भी अबकी बार मुलायम सिंह जी का प्रधानमंत्री बनना तय है, डकवर्थ लुईस नियम क्रिकेट में लागू होता है जब कुछ देर का खेल होने के बाद बारिश के चलते मैच रद्द हो जाता है, तब फैसला करते वक्त इस नियम का सहारा लिया जाता है। दिल्ली में भी जब मोदी जी और राहुल जी में मैच फंसेगा तब अगर लालूजी ने अम्पायर के फैसले पर आपत्ति न की तो जिन लोगों के चांस बनेंगे उनमें से नेताजी पहले नंबर पर होंगे, भले ही अभी आप इस बात को गप्प समझें।
तो भईया जैसे अभी दिल्ली की जनता शीला जी के भ्रष्टाचार से त्रस्त थी वैसे ही बताया जाता है की बहिन जी के हाथी पार्क से भी जनता दुखी हो गई थी, बाकी भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा होता तो आप फिर काँग्रेस के साथ कैसे आती। बहिन जी के समय सबसे बड़े खलनायक बन कर उभरे थे बाबू कुशवाहा जी, बताया जाता है कि उन्होंने अरबों रुपयों का घोटाला किया था जिससे छवि खराब हो गई और जनता बसपा के खिलाफ हो गई। कुशवाहा जी चुनाव के वक्त भाजपा में आ गए, फिर जेल गए और वर्तमान में उनकी पत्नी का नाम समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट में हैं वो भी सिटिंग एमपी का टिकट काट कर दिया गया है। अगर ये कैंडिडेट पाक साफ़ है तो फिर बहन जी के समय किस भ्रष्टाचार का हल्ला मचा भाई? जो भी हो लेकिन दुखी जनता ने मुलायम सिंह जी की अपील पर युवा सनसनी अखिलेश जी को हाथों हाथ लिया और लगा की उत्तर प्रदेश की तक़दीर बदल गई, बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि राहुल जी के खानदान और दिल्ली की मीडिया के सहारे काँग्रेस ने भी जोरदार अभियान चलाया था कि मायावती-मुलायम को जवाब दिया जाएगा लेकिन जनता ने भारी बहुमत से चुना समाजवाद को।
बाकी सबका सूपड़ा साफ़ और आया झकाझोर समाजवाद। वैसे तो प्रदेश में पहले भी आ चुका है लेकिन इस बार अकेले अपने दम पर आया, खांटी समाजवाद, जिसके साथ अमर सिंह भी नहीं थे और अमिताभ बच्चन भी नहीं ,था एक रिफ्रेशिंग नया चेहरा। लेकिन चेहरे का युवा होना पुराने समाजवादियों को पचा नहीं और लोग बदनाम करने में लग गए, कहाँ गर्व की बात थी की प्रदेश का मुख्यमंत्री ऐसा युवा है जो तीस किलोमीटर साईकिल चला सकता है, मैराथन दौड़ सकता है वहीं लोग लगे मुलायम सिंह जी की सारी कमाई को डुबोने। लगातार कोशिश की जाती रही कि नव समाजवाद फ्लॉप हो जाए लेकिन उम्मीदों की साईकिल है भाई, चलती ही जाएगी, का कर लोगे आप? बहिन जी के कार्यकाल में धकाधक विधायक लोग बलात्कार करते थे जबकि इस सरकार में ऐसा एकदम नहीं है, कभी भूले भटके किसी पर आरोप लगा और दबाव में मुकदमा-सुकदमा भी हुआ तो जनहित में क्लीनचिट लखनऊ से दे दी गई क्योंकि जो लोग सरकार में हैं उनको तो पता है कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है सेवा में, अपने घर जाने, बच्चों के साथ खाना खाने का मौका तो मिलता नहीं, चले हैं बलात्कार का काण्ड करने। सरकार को बदनाम करने वाले भी न जाने क्या क्या करते रहते हैं? न शीला जी न बहिन जी चाहती थीं की उनके राज में बलात्कार हो तो क्या फारेन रिटर्न अखिलेश जी ऐसा चाहेंगे? ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है साहब।
कभी मुलायम सिंह जी ने अंग्रेजी और कंप्यूटर का विरोध किया था, लेकिन देखिये सुधरे हुए समाजवाद ने हर बच्चे के हाथ में लैपटॉप पकड़ा दिया, इतनी बड़ी कंप्यूटर क्रांति का सपना तो देश को आईटी-वाईटी की गिफ्ट देने वाले राजीव जी ने भी नहीं देखा रहा होगा वरना काँग्रेस कभी का पूरा कर चुकी होती क्योंकि कोई अपने बाप के घर से थोड़े न बांटना होता है। लैपटॉप से सूबे में बड़ी क्रांति हुई है, शुरुआत में बच्चे वही करेंगे जो आपने पहली बार किया था लेकिन अगर बिजली मिले और सीखते रहे तो एकदिन देश में यूपी के बच्चों का नाम होगा, वैसे परीक्षाएं अभी वैसे ही होती हैं जैसे होती रही हैं। इस बार भी हाईस्कूल में संस्कृत की तैयारी करने वाले तमाम छात्र अंग्रेजी में पास हो गए क्योंकि जहाँ इम्तेहान का ठेका था वहाँ फार्म पर संस्कृत की जगह अंग्रेजी भर दिया गया था और कांट्रेक्ट पास कराने का था तो जो भी पर्चा आये उसे हल तो करवाना ही था। अब ये सब मामूली बातें हैं जो मुख्यमंत्री तक तो कोई बताने जाएगा नहीं। हाँ कानून व्यवस्था ऐसा मामला है जो लखनऊ को देखना चाहिए और जहाँ तक दिखता है वहाँ तक लोग देखते ही हैं लेकिन पता नहीं, शायद नाम में ही दोष है क्योंकि लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास जिस रस्ते पर है उसे कालिदास रोड कहा जाता है और दुनिया शादी से पहले वाले कालिदास को अधिक जानती है।
बीच में कोई जियाउल हक़ का भी मामला हुआ रहा जिसमें जितनी बदनामी उस मरहूम के परिवार को उठानी पड़ी वैसा ड्रामा खुदा किसी के साथ न करवाए, हाँ इस चक्कर में हिन्दू ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले राजा भईया को न जाने क्यों फँसा लिया गया था और उनको इस्तीफा देना पड़ गया था लेकिन सीएम साहब के बचपन के चचा और काफी जहीन मनिस्टर आजम खान ने भईया को मना लिया और उनकी मंत्रिमंडल में वापसी हो गई। इसी के साथ जिन ठाकुर वोटों के बिखरने का खतरा था वो फिर साईकिल पर आगये।
हाँ जैसा की राहुल जी ने बताया की बीजेपी वाले दंगे कराते हैं और फिर आईएसआई वाले आ जाते हैं, वैसा भी किसी मुजफ्फरनगर में हुआ लेकिन दंगे कहाँ हो रहे थे, चचा जी लोगों ने बताया कि वहाँ कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी, केवल मामूली बात थी जिसका सियासत के चलते कुछ लोगों ने बतंगड़ बना दिया।सच ही तो है, जब फौज आई तो बाहर के लोगों को पता चला की वहाँ कुछ हो रहा है। फौज भेजने में भी लगता है की केंद्र सरकार की कोई चाल रही होगी वरना कोई भी काबिल सरकार आतताईयों पर काबू करना चाहे तो कर सकती है लेकिन समाजवाद को बदनाम करने के लिए फौज भेज दी गई। कई महीने बाद भी लोग वहाँ की हालत पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं, जबकि सरकार, जिसकी जिम्मेदारी है की अमन चैन कायम रहे और सब सुकून से रहें,बहुत पहले ही कह चुकी है की वहाँ आल इज वेल है और राहत शिविरों में जो थे वो बच्चे और बूढ़े सब भाजपा-काँग्रेस के एजेंट थे, जाहिर है की दोनों बड़ी पार्टियाँ नहीं चाहतीं की कोई समाजवादी प्रधानमंत्री बने इसलिए ऐसी साजिशें चल रही होंगी, सियासत में हम कुछ भी कह नहीं सकते, बोलिए जय समाजवाद। और अगर गड़बड़ हो रही होती तो मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री जी वहाँ न जाकर विदेश स्टडी टूर पर जाते? जबकि उनसे जहीन कोई है नहीं, कौम के लिए जितना वो सोचते हैं वहाँ तक किसी की सोच जा ही नहीं सकती। हाँ बीच-बीच में जनाब बुखारी और तौकीर रजा साहब जैसे लोग भी सोचते हैं लेकिन उन लोगों की सोच खांटी समाजवादी आजम खान साहब से छोटी ही पड़ जाती है।
इन सबके बीच मायावती के दौर में समाजवाद के गढ़ सैफई में जो घनघोर लापरवाही बरती गई उसको ठीक करने की भी जिम्मेदारी भी आगई, आखिर काँग्रेस के नेता पटेल जी के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री जी बेचैन हो सकते हैं तो समाजवाद के पुरोधा मुलायम सिंह जी के जन्म स्थान की चिंता समाजवादी सरकार नहीं करेगी तो कौन करेगा? लोग कह रहे हैं की लगभग सवा सात हजार की आबादी वाले गाँव के लिए इस सरकार ने 300 करोड़ से ऊपर की योजनायें दी हैं, क्या गलत है साहब? आखिर नव समाजवाद का तीर्थ स्थल है सैफई। लोग सोचते थे की अमर सिंह के जाने के बाद अब गाँव के सालाना जलसे में बंबई के नचनिये नहीं आयेंगे, अरे भाई अमर सिंह लाते थे क्या? बसंती को गब्बर से क्या मतलब, जहाँ पइसा मिलेगा वहाँ नाचेगी, चाहे दुबई हो या सैफई। बड़े बड़े सितारे बड्डे पार्टी से लेकर न्यू ईयर के जलसे में नाचते हैं की नहीं? आखिर उनका पेशा है, जहाँ नोट मिलेगी वहाँ लोट जायेंगे। साहब इस बार तो जबरदस्त जलसा हुआ, जनवरी के महीने में इतनी गर्मी चढ़ी की लोग पसीना-पसीना हो गए और तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सरकार का वहाँ रहना बताता है की समाजवादी सरकार गाँव-गिराँव की हितैषी है और अभी भी इसमें धरती पुत्र की आभा बची हुई है क्योंकि ये लोग अपने तीर्थों को भूले नहीं हैं। अब आप लोग बदनामी कितना भी कर लीजिये लेकिन हार्ड कोर ने जब मंच से चुटकी ली की सीएम साहेब बहुत सेक्सी हैं और उन्हें एक्टिंग की भी सीखनी चाहिए तो आप मान लीजिये की प्रदेश धन्य हो गया ऐसा सीएम पाकर, हार्ड कोर को जो न जानते हों वो लोग गूगल करें क्योंकि उनको तो अब सैफई का बच्चा बच्चा भी पहचान चुका है।
‘बीइंग ह्यूमन’ वाले सलमान ने जब ‘पांडेय जी सीटी बजावें’ पर अपने ही अंदाज में जोरदार नृत्य किया तो अखबार वाले न जाने क्यों आईजी, पांडे जी की फोटो छापते हैं जिनको की दिखाया गया है की वो सीएम के चरणों में बैठे हैं जबकी सबको पता है की पाण्डेय जी प्रदेश के बहुत काबिल अफसर हैं। अरे जब मुख्यमंत्री जी बैठे हैं और अगल बगल जगह खाली नहीं है तो कोई बात करनी हो तो अफसर खुद सीएम को उठाकर तो बैठेंगे नहीं, नाहक ही समाजवाद से जलने वाले लोग एक काबिल अफसर और सीएम की जोड़ी को बदनाम कर रहे हैं। ‘राम चाहे लीला, लीला चाहे राम’ से झूमते लोगों का आनंद उस समय चरम पर पहुँच गया जब मुलायम सिंह जी की छोटी बहु खुद मंच पर पहुँच गईं और साजिद के साथ ‘नेता जी को दिल्ली पहुंचाना है’ गाने लगीं। ये नया समाजवादी गाना इसी मंच पर लांच किया गया, इस गाने के दौरान खुद सीएम साहब और उनके भाई प्रतीक भी मंच पर पहुँच गए। आप लोगों को भी नाहक आलोचना करने की जगह समाजवाद की जय बोलनी चाहिए और साम्प्रदायिकता के नाश का संकल्प लेना चाहिए। जिस गाने के साथ महान समाजवादी महोत्सव का समापन हुआ उसे एक बार तो सुर में गाकर देखिये और ऑंखें बंद करके सोचिएगा — नेता जी को दिल्ली पहुँचाना है।