पुरानी कहावत है कि मन के हारे हार है...मन के जीते जीत...यानी सब कुछ जब आपके भीतर छिपा है तो क्यों न जिंदगी के प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखें...
पॉजिटिव सोच रखना आपको जीवन के हर मोड़ पर अच्छा ही देता है साथ ही यह शब्द हर अक्षर के जरिए आपसे बहुत कुछ कहता भी है। आइए जानें क्या संदेश देता है यह - पी-ओ-एस-आई-टी-आई-वी-ई ....
पी - पेशेंस यानी धैर्य
ओ - ऑप्टीमिस्टीक यानी आशावादी
एस - सैटीसफैक्शन यानी संतुष्टि
आई - इंसपीरेशन यानी प्रेरणा
टी - टारगेट यानी लक्ष्य
आई - आइडीयल यानी आदर्श
वी - विक्टर यानी विजेता
ई - इजी यानी सहजता
पी - पेशेंस यानी धैर्य। धैर्य सफलता की सबसे बडी कुंजी है। अगर आपमें धैर्य की भावना है तो स्वाभाविक है कि आपके मन में कभी भी नकारात्मक विचार नहीं आ सकते। मुझे यह अवसर नहीं मिला, काश! मेरा बच्चा वह बना होता जो मैंने चाहा... पति बहुत धौंस जमाता है,अब क्या होगा, जैसी बातों के लिए रोना रोते रहने से कुछ हासिल नहीं होता। अगर आप ऎसे मोड़ पर धैर्य बरतेंगी और परिस्थिति से निबटने का रास्ता खोजेंगी तभी उस चिंता को दूर कर सकेंगी।
ओ- ऑप्टीमिस्टीक यानी आशावादी बनें। आशाएं ही सफलता की सीढ़ी तक पहुंचाती हैं, निराशा कुंठाओं से भर देती है। मैं क्यों नहीं कर सकती, इस बार अवसर मुझे ही मिलेगा, आप सोच ऎसी ही रखें। यह न सोचें कि मेरी किस्मत ही अच्छी नहीं, सारी दुनिया को मुझसे परेशानी है। आशावादी बनकर तो देखें, आपकी सारी समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाएंगी।
एस- सैटीसफैक्शन यानी सुख संतोष। जिस घड़ी आप अपने भीतर संतोष का भाव पैदा कर लेंगी, उसी पल से आप सकारात्मक सोचने लगेंगी और अनावश्यक तनाव बचेंगी। जो मिला है, जितना भी मिला है उसमें संतोष बरतें। कहते हैं कि संतोषम् परमसुखम्। संतोष से बढ़कर कुछ भी नहीं। अवसाद की स्थिति से बचने लिए संतोष एकमात्र इलाज है।
आई -इंसपीरेशन यानी प्रेरणा। हर कोई अपने जीवन में किसी न से प्रेरित होता है। ऎसे लोगों से प्रेरणा लीजिए जो जीवन कोç जंदादिली और खुशहाली से जीना जानते हैं। हर व्यक्ति के भीतर कुछ-न-कुछ अच्छाइयां जरूर होती हैं। कोई व्यक्ति व्यवस्थित होता तो कोई धैर्यवान, कोई पॉजिटिव सोच रखता है, तो कोई जागरूक रहता है। आप उन गुणों/अच्छाइयों से प्रेरित होकर अपने भीतर भी सकारात्मक भाव पैदा करें।
टी - टारगेट यानी लक्ष्य। अगर आपका लक्ष्य निर्धारित हो तो आपको निराशा या विफलता का मुंह देखना नहीं पडता। आपको क्या काम करना है, कैसा घर बनाना है, कहां रहना है, यह निर्धारित करना आवश्यक है। साथ ही उसका विकल्प भी तैयार रखना जरूरी होता है। लक्ष्य साफ हो तो उसे पाना आसान हो जाता है। यह नहीं, कि मैं इंजीनियर नहीं बनीं तो डॉक्टर बनूंगी वरना म्यूजिक की लाइन चुन लूंगी और वह भी न बनी तो घरेलू जीवन जी लूंगी।
आई - आइडीयल यानी आदर्श बनें। अपने व्यक्तित्व को ऎसा बनाएं कि दूसरे आपको अपना आदर्श मानें। जब आप कठिन परिस्थितियों में भी अपना दिमागी संतुलन बनाए रखेंगी, हर हाल में खुश रहेंगी, दूसरों के सुख-दुख में उनकी मदद करने को हमेशा तत्पर रहेंगी तो आप किसी आदर्श व्यक्ति से कम नहीं होंगी। सोचिए आखिर आप अपने पिता या माता या गुरू को अपना आदर्श क्यों मानती हैं। उनमें जरूर ऎसे गुण होंगे जो हर किसी को प्रभावित करते होंगे, तो क्यों न आप भी दूसरों की आदर्श बनें।
वी - विक्टर यानी विजेता। विजेता बनना अपना लक्ष्य बनाएं, लेकिन अगर सफलता हासिल न हो तो निराश न हों, दोबारा दुगने जोश के साथ उसके लिए जुट जाएं। जीत और हार जीवन में लगी ही रहती है। हार मिलने पर निराश होकर न बैठ जाएं, खुद को समझाएं, बार-बार कहें कि हम होंगे कामयाब एक दिन।
ई - इजी यानी सहज/ आसान। जो लोग सहज जीवन जीते हैं उन्हें कभी भी नकारात्मक विचार नहीं घेरते। बनावटी जीवन जीने से बेहतर होगा कि वास्तविकता में जिएं। इससे कभी भी आपको दिक्कत का सामना नहीं करना पडेगा। घर-परिवार से लेकर प्रोफेशनल जीवन तक सहजता जरूरी है। असहजता न सिर्फ आपकी सफलता के मार्ग में बाधक होती है, बल्कि आपके इस व्यवहार से दूसरे से भी परेशान होकर किनारा कर लेते हैं...तो करलो दुनिया मुट्ठी में।