शनिवार, 17 दिसंबर 2011

ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती है ?

 कहते हैं कि ब्रह्मा ने इस जगत की रचना की। विष्णु इस जगत का पालन करते हैं और महेश यानि भगवान शिव इस दुनिया का विनाश करते हैं। धरती पर भगवान विष्णु और शिव के तो कई मंदिर हैं। लेकिन ब्रह्मा जी के मंदिर इतने कम क्यों? पुष्कर जैसा ब्रह्मा जी का पौराणिक मंदिर कहीं दूसरी जगह कम ही देखने को मिलता है। ये एक ऐसी जगह है जहां धरती के लोग उस रचनाकार की पूजा करते हैं जिसकी वजह से इस दुनिया का अस्तित्व है।
पुष्कर का मतलब है वो तालाब जिसका निर्माण पुष्प यानि फूलों से होता है। मान्यता है कि एक बार ब्रह्मा के मन में धरती की भलाई के लिए यज्ञ करने का ख्याल आया। यज्ञ के लिए जगह की तलाश करनी थी। लिहाजा उन्होंने अपनी बांह से निकले हुए कमल को धरती लोक की ओर भेज दिया। वो कमल इस शहर तक पहुंचा। कमल बगैर तालाब के नहीं रह सकता इसलिए यहां एक तालाब का निर्माण हुआ। यज्ञ के लिए ब्रह्मा यहां पहुंचे। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का समय निकल रहा था। लिहाजा ब्रह्मा जी ने एक स्थानीय ग्वाल बाला से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए।
सावित्री थोड़ी देर से पहुंचीं। लेकिन यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और औरत को देखकर गुस्से से पागल हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को शाप दिया कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। यहां का जीवन तुम्हें कभी याद नहीं करेगा। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए। लेकिन उन्होंने नहीं लिया। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
अब इस कहानी के पीछे का प्रतीक देखिए। ब्रह्मा हिंदू मान्यता में वो देवता हैं जिनके चार हाथ हैं। इन चारों हाथों में आपको चार किताब देखने को मिलेंगी। ये चारों किताब चार वेद हैं। वेद का मतलब ज्ञान होता है। पुष्कर के इस ब्रह्म मंदिर का पद्म पुराण में जिक्र है। इस पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा इस जगह पर दस हजार सालों तक रहे थे। इन सालों में उन्होंने पूरी सृष्टि की रचना की। जब पूरी रचना हो गई तो सृष्टि के विकास के लिए उन्होंने पांच दिनों तक यज्ञ किया था। और उसी यज्ञ के दौरान सावित्री पहुंच गई थीं जिनके शाप के बाद आज भी उस तालाब की तो पूजा होती है लेकिन ब्रह्मा की पूजा नहीं होती। बस श्रद्धालु दूर से ही उनकी प्रार्थना कर लेते हैं।
और तो और यहां के पुरोहित और पंडित तक अपने घरों में ब्रह्मा जी की तस्वीर नहीं रखते। कहते हैं कि जिन पांच दिनों में ब्रह्मा जी ने यहां यज्ञ किया था वो कार्तिक महीने की एकादशी से पूर्णिमा तक का वक्त था। और इसीलिए हर साल इसी महीने में यहां इस मेले का आयोजन होता है। ये है तो एक आध्यात्मिक मेला लेकिन वक्त के हिसाब से इसका स्वरूप भी बदला है। कहा ये भी जाता है कि इस मेले का जब पूरी तरह आध्यात्मिक स्वरूप बदल जाएगा तो पुष्कर का नक्शा इस धरती से मिट जाएगा। वो घड़ी होगी सृष्टि के विनाश की।
हर साल एक विशेष गूंज कार्तिक के इन दिनों में यहां सरोवर के आसपास सुनाई पड़ती है जिसकी पहचान कुछ आध्यात्मिक गुरुओं को है। मान्यता ये भी है कि इन पांच दिनों में जगत की 33 करोड़ शक्तियां यहां मौजूद रहती हैं। ये शक्तियां उस ब्रह्म की उपासना के लिए आती हैं जिनकी वजह से इस दुनिया का वजूद है। इस दौरान सरोवर के पानी में एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति का जिक्र है जिससे सारे रोग दूर हो जाते हैं।
आजतक किसी को पता नहीं कि इस मंदिर का निर्माण कैसे हुआ। बेशक आज से तकरीबन एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक शासक को एक स्वप्न आया था कि इस जगह पर एक मंदिर है जिसके सही रख रखाव की जरूरत है। तब राजा ने इस मंदिर के पुराने ढांचे को दोबारा जीवित किया। लेकिन उसके बाद जिसने भी किसी और जगह ऐसे मंदिर के निर्माण की कोशिश की वो या तो पागल हो गया या फिर उसकी मौत हो गई। भगवान ब्रह्मा के इस शहर में आकर लोगों को एक अलग आध्यात्मिक अहसास होता है। कई सैलानी तो ऐसे भी हैं जो यहां आते हैं तो यहीं के होकर रह जाना चाहते हैं।

ब्रह्माजी ने आयुर्वेद की रचना की

आज पूरी दुनिया आयुर्वेद की दीवानी है ,पर क्या अपने  कभी सोचा है,आयुर्वेद धरती पर कैसे आया ,तो लीजिये हम बतातें हैं आपको एक नायाब कहानी I सृष्टी के नियंता ब्रह्मा को जब एहसास हुआ क़ि इस धरती पर मेरी रचित जीव रचनाएँ रोग से ग्रसित होकर दुःख पा रही हैं ,तब उन्होंने आयुर्वेद की रचना की  और अपने इस ज्ञान को सूत्र रूप में दक्ष प्रजापति को दिया,दक्ष प्रजापति से यह ज्ञान देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमार भाइयों को प्राप्त हुआ,जिन्होंने इस ज्ञान को देवताओं के राजा इन्द्र को दिया,इन्द्र से यह ज्ञान पृथ्वीलोक पर महर्षि भारद्वाज सशरीर लेकर आये और महर्षि भारद्वाज से अग्निवेश एवं धन्वन्तरी ऋषियों क़ी परम्पराओं के  आचार्य चरक ,सुश्रुत  एवं अन्य  को यह ज्ञान प्राप्त हुआ I  कालांतर में इन ऋषियों ने अपने अनुभवों को जोड़कर अपनी -अपनी संहिताएँ रचित की I महर्षि चरक यायावर ( घुमंतू ) ऋषि थे,उन्होंने पेड़,पौधों ,जीव ,जंतुओं से प्राकृतिक अनुभव लेकर प्राणियों में उत्पन्न रोगों को ,जानने,पहचानने एवं उनकी चिकित्सा के नुस्खे एवं  पंचकर्म जैसी   विधा को ‘काय- चिकित्सा’ के रूप में विकसित किया,जबकि महर्षि सुश्रुत ने शरीर में उत्पन्न शल्यों की चिकित्सा की विधियां विक्सित  की ,जो बाद में ‘शल्य -चिकित्सा’  के रूप में  ’क्षार-सूत्र’ आदि अनेक विधियों के माध्यम से   लोकप्रिय हुई I  ऐसे ही आचार्य वाग्भट ने आयुर्वेद के आठ अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा  विज्ञान को ‘अष्टांग आयुर्वेद’ के नाम से वर्गीकृत  किया I दक्षिण में ‘अष्टांग हृद्यम’ नामक ग्रन्थ आज भी अत्यंत लोकप्रिय है I  इन बड़े महर्षियों के ग्रन्थ  आज  ’वृहत्त्रयी’ के नाम से जाने जातें हैं I  ऐसे ही रोगों को पहचानने के लिए आचार्य माधव  ने माधव -निदान नामक ग्रन्थ  की रचना की I बच्चों के रोगों की  विशेष व्याख्या एवं चिकित्सा की विधियों  एवं नुस्खों को सूत्र रूप में लाने का श्रेय महर्षि काश्यप को जाता है I ऐसे ही अनेक आचार्यों  की परम्परा से मिलकर बना आयुर्वेद ,जिसमें  इंसान ही नहीं जानवरों से लेकर पेड़ पौधों तक की  चिकित्सा के अनेकों गूढ़ रहस्य एवं नायब नुस्खे मौजूद हैं ,बस जरूरत है तो रह्स्यवेधन की I




मायावती के भाई आनंद के अरबपति होने के सबूत?

http://www.swatantraawaz.com/anand_mayawati.htm
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ किरीट सौमैय्या ने गुरूवार को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद कुमार की 125 कंपनियों की जांच की मांग को लेकर कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय की जांच समिति और प्रवर्तन निदेशालय को प्रमाण सहित दस्तावेज सौपें। इन दस्तावेजों में कंपनियों के जरिये हुए करोडों रूपए के घपले-घोटाले और पैसे के संदिग्ध लेन-देन के प्रमाण दिए गए हैं।
भाजपा नेताओं ने यह पाया है कि नोएडा प्रधिकरण के भूमि आवंटन-नीलामी-टेंडर अनियमित एवं संदिग्ध है, और इससे नोएडा घोटाला, नोएडा व्यवसायिक भूमि आंवंटन घोटाला, नोएडा फार्म हाऊस घोटाला, यमुना एक्सप्रेस वे घोटाला, नोएडा ग्रुप हाऊसिंग घोटाला और ग्रेटर नोएडा भूमि घोटाला हुआ है। पत्र में भाजपा नेताओं ने मांग की कि 2007 से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद कुमार की वित्तीय स्थितियों में हुई असाधारण वृद्धि की जांच की जरूरत है। बसपा सरकार के सत्ता में आने के बाद आनंद कुमार समूह की कंपनियों की विस्तार से जांच आवश्यक है। इस समूह में आनंद कुमार उनकी पत्नी विचित्र लेखा, सुखदेव कुमार, दीपक बसंल महिपाल राघव, मिश्रा और यादव सिंह शामिल है।
भाजपा नेताओं ने दोनों विभागों को दिए पत्र में अपनी जांच पड़ताल के आधार पर सौपें गए दस्तावेजों में कहा है कि इस समूह में 125 से अधिक कंपनिया हैं, जिनके माध्यम से हजारों करोड़ रूपए का संदिग्ध लेन-देन हुआ है। इस समूह ने ऐसी छाया कंपनियों से लेन-देन दिखाया है जो या तो हैं ही नहीं, लापता हैं अथवा अवैध या अक्रियाशील हैं। दस्तावेजों के जरियें प्रमाण दिए गए की कुछ निजी कंपनियों के समूह को जिनकी पूंजी नहीं के बराबर थी, उन्हें कुछ अन्य प्राईवेट कंपनियों ने ऊंची दरों  पर खरीदा और ऐसे लेन-देन में 10 लाख के शेयर 50 करोड़ में खरीदे गए।
यह भी जानकारी दी गई है कि एक लाख रूपये की पूँजी वाली शिवानंद रीयल स्टेट प्राईवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को वीरेंद्र जैन और भूषण भारत ने 142 करोड़ में खरीदा। इन कंपनियों ने हजारों करोड़ रूपए की आय लेन-देन वायदा बाजार और कमोडिटी एक्सचेंज के जरिये दिखाये हैं। करोड़ो रूपये का वित्तीय लेन-देन विभिन्न चरणों में किया गया है। भाजपा नेताओं ने दस्तावेजों के आधार पर ये निष्कर्ष निकाले हैं कि आनंद कुमार समूह ने 125 कंपनियों का जाल गत दो तीन सालों में फैलाया है। इस समूह में ज्यादातर ऐसी कंपनिया हैं जिनमें वास्तव में कोई व्यवसायिक गतिविधियां नहीं होतीं तथा बिना किसी व्यवहारिक व्यवसाय के हजारों करोड़, करोड़ का लेन-देन किया गया है।
पत्र में मांग की गई है कि इस पूरे मामले की जांच कर कार्रवाई की जाए। कंपनियों के अवैध कार्य और पैसो के लेन-देन की जांच हो, घोटाले से जुड़े कार्यो की जांच हो, सरकार को आडिट से दी गई अधूरी गलत जानकारियों की भी जांच की जाए, साथ ही आनंद कुमार और उनके समूह के प्रकरण में भी पूछताछ और जांच कर समूचित कार्रवाई की जाए। डॉ किरीट सौमैय्या के साथ सांसद प्रभुदयाल कठेरिया तथा हंसराज अहिर ने यह पत्र और दस्तावेज धनराज डायरेक्टर इन्वेस्टिगेशन एंड इंसपेक्‍शन कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय तथा अरूण कुमार निदेशक प्रवर्तन निदेशालय से मिलकर सौपें पत्र और दस्तावेजों की एक प्रति चैयरमैन सीबीडीटी वित्त मंत्रालय भारत सरकार को भी दी गई है।
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दलितो के मसीहा की करतूत देखे


तश्वीर मे रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी जो रामविलास पासवान की दो बेटियो की माँ भी है और दलित है ..और दूसरी सवर्ण बीबी रीना जो की ब्राम्हण है .. आखिर मिडिया समाज के इन दरिंदों और दोगलो को बेनकाब क्यों नहीं करता ?

राजकुमारी देवी अपने दोनों बेटियो के साथ लोगो के घरों के काम करके, मजदूरी करके , और घास काटकर किसी तरह गुजारा करती है .. बेचारी अपने बेटियो को पैसे की तंगी की वजह से शिक्षा... भी नहीं दे पाई ..
आक  और अपने आपको दलितो का मसीहा बताते है तो फिर अपनी दलित बीबी को और दो बच्चियो को फटेहाल छोडकर एक ब्राम्हण के साथ शादी क्यों किये ?
और मजे की बात अपने ब्राम्हण बीबी से पैदा हुए दोनों संतानों को पूरी तरह से सेटल कर दिये है ..लड़का चिराग आज उन्ही फिल्मो के एक्टर बनता है जिसको रामविलास अपने काले धन से फाइनेंस करते है .
और लड़की अमेरिका मे हीउसटन मे उच्च शिक्षा ले रही है ..
मैंने जब इस बाबत उनको और उनकी ऑफ़ीस को मेल किया तो जबाब आया कि ये उनकी निजी जिंदगी है और उन्होंने राजकुमारी देवी से परस्पर सहमती से तलक ले लिया है .लेकिन जब मैंने अपने एक पत्रकार मित्र जो बिहार टाइम्स चलाते है उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि तलाक नहीं हुआ है .
http://bihartimes.in/articles/nalin/ramvilas&wives.html 

ये मुर्ख कौन है ??

पिछले कुछ वर्षो मे दुनिया ने बहुत प्रगति की है और इसी का परिणाम है दुनिया मे समझदारों की सँख्या मे बेतहाशा वृद्धि नजर आने लगी है। कई बार भ्रम होता है की दुनिया कि तरक्की से समझदारों की सँख्या मे इजाफा हो रहा है या समझदारों की संख्या मे वृद्धि होने से दुनिया मे तरक्की हो रही है।
खैर जो भी कारण रहा हो दुनिया की तरक्की होना और समझदारों की सँख्या मे बढोत्तरी होना दोनो ही खुशी और उत्साह-वर्धक बातें हैं, लैकिन तरक्की की इस चकाचौंध मे समाज का एक वर्ग अपने आप को थोड़ा अलग थलग महसूस कर रहा है और उसे लगने लगा है कि अब उसका मह्त्व कम होता जा रहा है, समझदारों ने उसे स्थानापन्न कर दिया है और उसकी जगह स्वयं आसीन हो गये हैं।
दिया तले अंधेरे के भाँति ही समझदारों की समझदारी तले मुर्खों की मुर्खता पनपती है, समाज मे मुर्ख उतने ही आवश्यक हैं जितने कि जीने के लिये प्राण-वायु। प्राण-वायु के न होने पर कृत्रिम प्राण-वायु से काम चलाया जा सकता है लैकिन मुर्खों के न होने पर उनका विकल्प ढूंढना अत्यंत मुश्किल काम है, अभी तक तो मुर्खों का स्थान किसी अन्य प्राणी ने अधिग्रहित नही किया है।
दुनिया की सारी तरक्की और समझदारी के नमूनों का तभी तक महत्व है जब तक कि दुनिया मे मुर्ख हैं, आप इसे इस तरह समझ सकते हैं, अगर दुनिया मे सभी लोग समझदार हो जायेंगे तो समझदारी का कोई मोल रहेगा क्या, जैसे अंगूर के बागान मे अंगूर का क्या मोल? उसी प्रकार मुर्खों की इस दुनिया को उसी प्रकार आवश्यकता है जैसे जलते रेगिस्तान मे पानी से भरे मसक की।
इस दुनिया मे समझदारों की हजारों प्रजातियाँ पाई जाती हैं मगर मुर्खों की कैवल दो प्रजातियाँ ही देखने मे आती हैं। इसमे भी पहली प्रजाती तो लुप्त-प्राय है और इस प्रजाती के प्राणीयों की रक्षा के लिये सरकार की और से भी कोई पहल नही की जा रही है न ही इनके कल्याण की ही कोई योजना सरकार के किसी विभाग के पास है। इस प्रजाती के प्राणियों का एकमात्र अनुठा लक्षण यह है कि ये जानाते हैं कि ये मुर्ख है और यही लक्षण इन्हे विशिष्ठ भी बनाता है और इनके लिये खतरनाक भी है, क्योंकि इन्हे अपने इसी महामुर्ख होने के कारण बहुत मुश्किलोँ का सामना करना होता है।
वहीं दूसरी और मुर्खों की अन्य प्रजाती पर किसी प्रकार का कोई खतरा नही है, वे दिन दूनी रात चोगुनी तरक्की कर रहे हैं, उन की सँख्या मे काफी वृद्धि देखी जा रही है, कुछ लोग तो यहाँ तक कहते सुने गये हैं कि ये अन्य प्रजातियों के प्राणियों को भी नाना प्रकार के प्रलोभन देकर कन्वर्ट भी करा लेते हैं। इस प्रजाती के प्राणियों की खासियत यह है कि यह स्वयं को मुर्ख नही मानते और अगर कोई उन्हें आईना दिखाने की कोशिश करे तो समझलो उसकी सामत आना निश्चित है।
ये लोग होते तो निरे मुर्ख ही हैं लेकिन दिखावा समझदार होने का करते हैं, इनके कार्यकलाप समझदारों से इतने समान हो जाते हैं कि समझदार और इनमे भेद कर पाना अच्छों- अच्छों के बस मे नही होता।

इस तरह के मुर्खों मे एक विशेष लक्षण पर-मस्तिष्क-भक्षण भी है, ये कई दिनो तक बिना भोजन के जीवित रह सकते हैं परंतु दिन मे दो बार किसी के दिमाग का पलीता न लगाये तो इनका जीना दुभर हो जाता हैं।
इनकी एक विशेषता इनका संक्रामक होना भी है, लेकिन इनके किटाणु कैवल कमजोर मन और मस्तिष्क वालों पर असर करते हैं, इनके सम्पर्क मे आने पर सामान्य समझदार व्यक्ति भी स्वयं को प्रखर विद्वान समझने लगता है और जहाँ कहीं, जब कभी मोका मिलते ही अपने पाण्डित्य से दुनिया को परिचित कराता रहता है।
आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह भी सत्य है कि ये हीन भावना से ग्रसित प्राणी होते हैं, पहली प्रजाती के विलुप्त होते मुर्ख प्राणियों से जलन की भावना रखते हैं, उनकी आत्म संतुष्टी और सात्विक सुख देख कर जल भुन जाते हैं।
वहीं दूसरी और प्रथम प्रजाती के मुर्ख अपनी ही दुनिया मे मस्तमौला की भाँति रहते हैं और सदैव प्रयासरत रहते हैं कि उनकी मुर्खता अपने चर्मोत्कर्ष को प्राप्त हो, इन्हे दुनिया के झमेलों से कुछ लेना देना नही होता, इनमे न तो किसी से कुछ होड़ करने की इच्छा होती है और न ही ये हार जीत मे विश्वास रखते हैं। इस तरह के मुर्खों का कैवल एक ही सिद्धांत होता है, खुश रहना।
ये मुर्ख वास्तव मे मुर्ख होते हैं, कहते हैं खुश रहने के लिये कुछ नही चाहिये कैवल खुश रहने की इच्छा होना चाहिये, हर हाल और परिस्थितियों मे खुश रहा जा सकता है। ये इतने मुर्ख होते हैं कि दुनिया मे रहकर भी दुनियावि बातों से अपने को अलग बनये रखते हैं यहाँ तक कि टेलिविजन और फिल्मों के माध्यम से दिये हाने वाला नया ज्ञान और संसकार एवं भाँति भाँति के नैतिक मुल्य् भी इन्हे प्रभावित नही कर पाते।
ये दुनिया के समझदारों के द्वारा तिरस्कार झेलने के इतने आदी हो चुके होते हैं कि तिरस्कार, मान अपमान भी इन पर अपना प्रभाव नही डाल पाते और ये सदा एक समान बने रहते हैं। समझदार तो यहाँ तक कहते सुने गये हैं कि ये मोटी चमड़ी के होते हैं और इनकी बुद्धी भी स्थूल हो चुकी होती है इसलिये सारी दुनिया से अलग सोचते है, दुनिया से अलग काम करने की ईच्छा रखते हैं और विड्म्बना तो देखिये कि ये मुर्ख दुनिया को कुछ अलग, अनुठा और अभिनव काम कर के भी दिखा देते हैं। ये तो हद ही है न बेचारा समझदार आदमी बाते करता रह जाता है और ये मुर्ख कहीं के न जाने क्या क्या कर गुजरते हैं।

अकबर,और रीवा

यह सभी जानते हैं कि महान मुगल शासक अकबर अनपढ़ था लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि अकबर का बचपन मध्यप्रदेश के रीवा जिले के मुकुन्दपुर नामक स्थान में गुजरा था। हालांकि लोग कहते हैं कि अकबर द्वितीय का बचपन यहां गुजरा था लेकिन चल रहे नये शोध से यह सामने आ रहा है कि अकबर द्वितीय नहीं मुकुन्दपुर में जलालुद्दीन अकबर का ही बचपन बीता था। यहां उसे सुरक्षा की दृष्टि से छिपा कर रखा गया था इसलिये उसकी पढ़ाई लिखाई नहीं हो पाई थी। इस दौरान तब के राजकुमार रामसिंह भी उनके साथ कभी-कभी अपना समय व्यतीत करते थे। रीवा राज्य के शासक महाराजा रामचन्द्र जी हुआ करते थे।
नीचे देखे विकीपीडिया के कुछ अंश
हुमायुं को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। [22] किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां(वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा
Humayun had been driven into exile in Persia by the Pashtun leader Sher Shah Suri. Akbar did not go to Persia with his parents but grew up in the village of Mukundpur in Rewa(see link:- http://emperors-shirshak.blogspot.com/2011/02/akbar-great.html)


यह लिंक भी देखे- http://indicaspecies.blogspot.com/2008/02/akbar-and-cultural-synthesis.html




अकबर का हिन्दुओं व हिन्दु धर्म के प्रति झुकाव की भी यही वजह रही कि उसका बचपन का लालन पालन मूल रूप से हिन्दुओं के बीच ही हुआ और उसे इनके बीच ही बचपना गुजारना पड़ा।

अब बात आती है अकबर को जोधाबाई कैसे पसंद आई। हालांकि इस पर शोध चल रहा है लेकिन जो बात प्रारंभिक तौर पर सामने आ रही है उसके अनुसार अकबर यहां भी जंगली क्षेत्र (तत्कालीन) मुकुन्दपुर में ही नहीं रहा बल्कि रीवा राजघराने के सदस्यों के साथ उसका आना जाना होता था। तभी कभी वह किसी आयोजन में राजस्थान राजघराने में गया होगा और तब उसे जोधाबाई मिली थी वहीं यादे बाद में अकबर के जिंदगी का फैसला बनी(हालांकि अभी यह प्रमाणिक नहीं है) लेकिन इतिहास शोधार्थी इस पर शोध कर रहे हैं।



रीवा राजघराने को कटार की पात्रता
शोध कह रहे हैं अकबर के दरबार में किसी को भी कटार ले जाने की अनुमति नहीं थी लेकिन रीवा राज घराने में गुजरे बचपन की वजह से रीवा राजघराने को अकबर के दरबार में कटार की अनुमति थी।(शोध जारी है)





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