पिछले कुछ वर्षो मे दुनिया ने बहुत प्रगति की है और इसी का परिणाम है दुनिया मे समझदारों की सँख्या मे बेतहाशा वृद्धि नजर आने लगी है। कई बार भ्रम होता है की दुनिया कि तरक्की से समझदारों की सँख्या मे इजाफा हो रहा है या समझदारों की संख्या मे वृद्धि होने से दुनिया मे तरक्की हो रही है।
खैर जो भी कारण रहा हो दुनिया की तरक्की होना और समझदारों की सँख्या मे बढोत्तरी होना दोनो ही खुशी और उत्साह-वर्धक बातें हैं, लैकिन तरक्की की इस चकाचौंध मे समाज का एक वर्ग अपने आप को थोड़ा अलग थलग महसूस कर रहा है और उसे लगने लगा है कि अब उसका मह्त्व कम होता जा रहा है, समझदारों ने उसे स्थानापन्न कर दिया है और उसकी जगह स्वयं आसीन हो गये हैं।
दिया तले अंधेरे के भाँति ही समझदारों की समझदारी तले मुर्खों की मुर्खता पनपती है, समाज मे मुर्ख उतने ही आवश्यक हैं जितने कि जीने के लिये प्राण-वायु। प्राण-वायु के न होने पर कृत्रिम प्राण-वायु से काम चलाया जा सकता है लैकिन मुर्खों के न होने पर उनका विकल्प ढूंढना अत्यंत मुश्किल काम है, अभी तक तो मुर्खों का स्थान किसी अन्य प्राणी ने अधिग्रहित नही किया है।
दुनिया की सारी तरक्की और समझदारी के नमूनों का तभी तक महत्व है जब तक कि दुनिया मे मुर्ख हैं, आप इसे इस तरह समझ सकते हैं, अगर दुनिया मे सभी लोग समझदार हो जायेंगे तो समझदारी का कोई मोल रहेगा क्या, जैसे अंगूर के बागान मे अंगूर का क्या मोल? उसी प्रकार मुर्खों की इस दुनिया को उसी प्रकार आवश्यकता है जैसे जलते रेगिस्तान मे पानी से भरे मसक की।
इस दुनिया मे समझदारों की हजारों प्रजातियाँ पाई जाती हैं मगर मुर्खों की कैवल दो प्रजातियाँ ही देखने मे आती हैं। इसमे भी पहली प्रजाती तो लुप्त-प्राय है और इस प्रजाती के प्राणीयों की रक्षा के लिये सरकार की और से भी कोई पहल नही की जा रही है न ही इनके कल्याण की ही कोई योजना सरकार के किसी विभाग के पास है। इस प्रजाती के प्राणियों का एकमात्र अनुठा लक्षण यह है कि ये जानाते हैं कि ये मुर्ख है और यही लक्षण इन्हे विशिष्ठ भी बनाता है और इनके लिये खतरनाक भी है, क्योंकि इन्हे अपने इसी महामुर्ख होने के कारण बहुत मुश्किलोँ का सामना करना होता है।
वहीं दूसरी और मुर्खों की अन्य प्रजाती पर किसी प्रकार का कोई खतरा नही है, वे दिन दूनी रात चोगुनी तरक्की कर रहे हैं, उन की सँख्या मे काफी वृद्धि देखी जा रही है, कुछ लोग तो यहाँ तक कहते सुने गये हैं कि ये अन्य प्रजातियों के प्राणियों को भी नाना प्रकार के प्रलोभन देकर “कन्वर्ट” भी करा लेते हैं। इस प्रजाती के प्राणियों की खासियत यह है कि यह स्वयं को मुर्ख नही मानते और अगर कोई उन्हें आईना दिखाने की कोशिश करे तो समझलो उसकी सामत आना निश्चित है।
ये लोग होते तो निरे मुर्ख ही हैं लेकिन दिखावा समझदार होने का करते हैं, इनके कार्यकलाप समझदारों से इतने समान हो जाते हैं कि समझदार और इनमे भेद कर पाना अच्छों- अच्छों के बस मे नही होता।
इस तरह के मुर्खों मे एक विशेष लक्षण “पर-मस्तिष्क-भक्षण” भी है, ये कई दिनो तक बिना भोजन के जीवित रह सकते हैं परंतु दिन मे दो बार किसी के दिमाग का पलीता न लगाये तो इनका जीना दुभर हो जाता हैं।
इनकी एक विशेषता इनका संक्रामक होना भी है, लेकिन इनके किटाणु कैवल कमजोर मन और मस्तिष्क वालों पर असर करते हैं, इनके सम्पर्क मे आने पर सामान्य समझदार व्यक्ति भी स्वयं को प्रखर विद्वान समझने लगता है और जहाँ कहीं, जब कभी मोका मिलते ही अपने पाण्डित्य से दुनिया को परिचित कराता रहता है।
आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह भी सत्य है कि ये हीन भावना से ग्रसित प्राणी होते हैं, पहली प्रजाती के विलुप्त होते मुर्ख प्राणियों से जलन की भावना रखते हैं, उनकी आत्म संतुष्टी और सात्विक सुख देख कर जल भुन जाते हैं।
वहीं दूसरी और प्रथम प्रजाती के मुर्ख अपनी ही दुनिया मे मस्तमौला की भाँति रहते हैं और सदैव प्रयासरत रहते हैं कि उनकी मुर्खता अपने चर्मोत्कर्ष को प्राप्त हो, इन्हे दुनिया के झमेलों से कुछ लेना देना नही होता, इनमे न तो किसी से कुछ होड़ करने की इच्छा होती है और न ही ये हार जीत मे विश्वास रखते हैं। इस तरह के मुर्खों का कैवल एक ही सिद्धांत होता है, खुश रहना।
ये मुर्ख वास्तव मे मुर्ख होते हैं, कहते हैं खुश रहने के लिये कुछ नही चाहिये कैवल खुश रहने की इच्छा होना चाहिये, हर हाल और परिस्थितियों मे खुश रहा जा सकता है। ये इतने मुर्ख होते हैं कि दुनिया मे रहकर भी दुनियावि बातों से अपने को अलग बनये रखते हैं यहाँ तक कि टेलिविजन और फिल्मों के माध्यम से दिये हाने वाला नया ज्ञान और संसकार एवं भाँति भाँति के नैतिक मुल्य् भी इन्हे प्रभावित नही कर पाते।
ये दुनिया के समझदारों के द्वारा तिरस्कार झेलने के इतने आदी हो चुके होते हैं कि तिरस्कार, मान अपमान भी इन पर अपना प्रभाव नही डाल पाते और ये सदा एक समान बने रहते हैं। समझदार तो यहाँ तक कहते सुने गये हैं कि ये मोटी चमड़ी के होते हैं और इनकी बुद्धी भी स्थूल हो चुकी होती है इसलिये सारी दुनिया से अलग सोचते है, दुनिया से अलग काम करने की ईच्छा रखते हैं और विड्म्बना तो देखिये कि ये मुर्ख दुनिया को कुछ अलग, अनुठा और अभिनव काम कर के भी दिखा देते हैं। ये तो हद ही है न बेचारा समझदार आदमी बाते करता रह जाता है और ये मुर्ख कहीं के न जाने क्या क्या कर गुजरते हैं।
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