मित्रो , जैसा की आप जानते है की भीमराव आंबेडकर को भारत संविधान को बनाने वाला माना जाता है ?
लेकिन क्या आप ये भी जानते है की बाबा साहब द्वारा निर्मित भारत संविधान में भगवान् राम , माता जानकी , भगवान् श्रीकृष्ण आदि की तस्वीरे भी संविधान में थी ? यहाँ तक की भगवान् शिव ( नटराज रूप में ) की भी तस्वीरे संविधान में लगाईं गयी थी
संविधान की वो मूल प्रति जिसे बाबा साहब अपने साथ संसद में लेकर गए थे और संविधान की जिस किताब से उन्होंने संसद में संविधान को पढ़कर सुनाया था उसमे ये सभी तस्वीरे थी
जी हाँ, ये सच है बंधुओ
आंबेडकर को उनकी शैक्षिक योगयता के कारन संविधान सभा की प्रारूप सभा का अध्यक्ष चुना गया था और उनकी संविधान सभा की अन्य इकाइयों से कई बार संविधान के बारे में चर्चा होती थी
नेहरू और आंबेडकर की संविधान को लेकर कई बार बैठके हुई , ऐसी ही एक बैठक में तय हुआ की संविधान में भगवान् के सभी रूपो यथा राम, कृष्ण , शिव आदि को और भारतीय संस्कृति के अन्य रूपो को भारतीय संविधान में शामिल किया जाना चाहिए
भारतीय संविधान भारत कि संस्कृति और इसके समग्र रूपो का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए तय हुआ की भगवान् के सभी रूपो और भारतीय संस्कृति के अन्य रूपो को चित्रो की शक्ल में भारतीय संविधान में अलग अलग पेजो पर जोड़ा जायेगाये लगना चाहिए की भारतीय संविधान भारतीय संस्कृति के विविध रंगो से सजा हुआ हैप्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस अति महत्वपूर्ण कार्य का भार बिहार के विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस को सौंपा
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर ने नन्दलाल को बताया की वे भगवान्को के अवतारकाल के किन प्रसंगो को तस्वीर के रूप में संविधान में जोड़ना चाहते थे और किस जगह कौन सी तस्वीर लगायी जानी थी , उन्होंने चित्र सम्बन्धी अपनी इच्छाये और अन्य आवश्यक दिशा निर्देश नंदलाल को दिए पश्चात नंदलाल जी ने चित्र बनाना शुरू कियासंविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया
नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए नंदलाल बोस के बनाए चित्र वास्तव में भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैंसुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट सेअगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है
अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है वास्तव में भारतीय सभ्यता की पहचान में इस सील का बड़ा ही महत्व है शायद यही कारण है कि हमारी सभ्यता की इस निशानी को शुरुआत में जगह दी गई है। अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती हैकिसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से होती है इस चित्र में भगवान राम रावण को हराकर पुष्पक विमान में सीता जी को लंका से वापस ले आ रहे हैं राम धनुष-वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं अब कमाल देखिये इस चित्र को लेकर संविधान सभा में विवाद हुआ था कुछ सदस्यों का तर्क था कि जब संविधान में ही भगवान राम का चित्र दिखाया गया है तो फिर यह संविधान पंथनिरपेक्ष कैसे ? लेकिन आंबेडकर इस पर अड़ गए और तस्वीरो को हटाने की किसी भी सम्भावना को सिरे से खारिज कर दिया जब विवाद बढ़ने लगा तो नेहरू ने दखल देते हुए इस पर वोटिंग करवाने का प्रस्ताव दिया जब वोटिंग हुई तो मामला तस्वीरो को बनाये रखने के पक्ष में था , हिन्दू भगवान् और पंथ निरपेक्षता को संतुलित करने के लिए यह तय हुआ कि संविधान में लिखे शब्द भारतीय संविधान के अंग हैं न कि उसमें छपे चित्र
इस तरह वोटिंग के बाद भी भगवान् राम आदि के चित्र भारतीय संविधान का हिस्सा बने रहे अगले भाग में नीति निर्देशक तत्व हैं ऐतिहासिक विकास क्रम के अनुसार त्रेता युग के बाद द्वापर युग आता है भगवान कृष्ण को इस चित्र में दर्शाया गया है। कृष्ण के गीता उपदेश की जो तस्वीर सामान्य: हम देखते हैं, उसे ही नंदलाल ने इस भाग में उकेरा है भारतीय संघ नाम के पाचवें भाग में भगवान विष्णु के अवतार भगवान गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है महात्मा बुद्ध बीच में बैठे हुए हैं और उनके चारों ओर उनके पांच शिष्य घेरकर बैठे हुए हैं हिरन और बारहसिंहा जैसे जानवरों को भी दर्शाया गया है अगले भाग संघ और उनका राज्य क्षेत्र-1 में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है
आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति को उकेरा गया है भारतीय इतिहास में गुप्त काल को स्वर्णिम युग की संज्ञा दी जाती है, इसलिए इस चित्र में तत्कालीन भारतीय संस्कृति के हर अंगों को समेटने की कोशिश की गई है नृत्य करती हुई नर्तकियों के चारों ओर राजाओं का घेरा है यह चित्र कलात्मक दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ है
दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है मोहर पर देवनागरी लिपि में नालंदा विश्वविद्यालय लिखा हुआ है 11वें भाग से मध्यकालीन इतिहास की शुरुआत होती है उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है , उल्लेखनीय है की नटराज भगवन शिव का ही एक रूप है नृत्य करते हुए भगवान् शिव का रूप जो नटराज के नाम से विख्यात है , इस तस्वीर को संविधान के बारहवे भाग में रखा गया तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियों को दर्शाया गया है , भगवान् राम , कृष्ण , शिव के बाद इस भाग में भगवान् के शेषनाग रूप को दर्शाया गया है , इसमें भगवान् के शेषनाग के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं के चित्र हैं भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। हालांकि कालखंड के हिसाब से यह दृश्य अब तक की श्रृंखला को तोड़ता है। 14वां भाग केंद्र और राज्यों के अधीन सेवाएं इस भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है मूल संविधान में 15वां भाग चुनाव है। इस भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है। पहली बार दो अलग-अलग चित्रों को जोड़कर एक चित्र बनाया गया है।
16वें भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को बरतानिया सरकार से लोहा लेते हुए दिखाया गया है
17वें भाग जो कि मूल संविधान में आधिकारिक भाषाओं का खंड है, में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतिनिधित्व करते इस चित्र में गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं
ये चित्र ख़ास इसलिए है क्योकि इसमें एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं
19वें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं चित्र में अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ है कि इस पवित्र युद्ध में हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आवश्यकता हमेशा रहेगी
20वें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयंप्रभा समुजज्वला स्वतंत्रता पुकारती, अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं- बढ़े चलो, बढ़े चलो
ऐसे ही मनोभावों की व्याख्या करता यह चित्र भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ऊंचाई का प्रतिबिंबन है। अगले भाग में रेगिस्तान का चित्रण है। दूर तक फैले रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला वास्तव में इस चित्र का उद्देश्य हमारी प्राकृतिक विविधता को दर्शाना है
अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है एक समय था, जब भारत बर्मा, इंडोनेशिया, मलय जैसे दीपों पर अपना अधिकार रखता है। चित्र में एक विशालकाय पानी का जहाज है, जो हमारे गौरवशाली सामुद्रिक विस्तार और हमारी यात्राओं का प्रतीक है
इन चित्रो से सजा हुई भारतीय संविधान की मूल प्रति को लेकर बाबा साहब संसद में गए थे और उसी प्रति में से पढ़कर उन्होंने देश को भारतीय संविधान से अवगत कराया
अपनी सामर्थ्यनुसार आंबेडकर ने यथा सम्भव संविधान को भारतीय संस्कृति के अनुरूप दिखाया इसके लिए बाबा साहब को मेरी तरफ से लाखो सलाम , वर्ना अगर महात्मा गांधी जैसो की चलती तो इसमें हिन्दू भगवानो को शामिल करना तो दूर है , उल्टा मस्जिद में नमाज पढ़ते नमाजियो की फोटो होती और महात्मा गांधी कहते -- '' देखा , इसे कहते है असली धर्मनिरपेक्षता , ये है भारत का असली संविधान ""
महान हिंदूवादी और अपने समय में अपनी लिमिट के बावजूद हिंदुत्व के लिए परदे के पीछे रहकर निरंतर कार्य करने वाले बाबा साहब नेता अमर रहे संविधान में चित्रित किये गए चित्रो सभी को ये स्पष्ट होना चाहिए की बाबा साहब एक महान हिंदूवादी नेता थे , लेकिन अगर वो खुलकर हिंदुत्व के पक्ष में आ जाते तो हरिजन लोग उनका साथ छोड़ देते , इसलिए उन्हें परदे के पीछे रहकर हिंदुत्व के लिए काम करना पड़ा , उन्होंने हिन्दू महासभा के साथ मिलकर बड़ी चालाकी से हरिजनो को साधे रखा लेकिन इन सब विषयो पर आगे बात होगी
हाँ तो आंबेडकर के ''फर्जी'' चेलो ,बाबा साहब की तारीफ में दो शब्द नहीं कहना चाहोगे ?
लेकिन क्या आप ये भी जानते है की बाबा साहब द्वारा निर्मित भारत संविधान में भगवान् राम , माता जानकी , भगवान् श्रीकृष्ण आदि की तस्वीरे भी संविधान में थी ? यहाँ तक की भगवान् शिव ( नटराज रूप में ) की भी तस्वीरे संविधान में लगाईं गयी थी
संविधान की वो मूल प्रति जिसे बाबा साहब अपने साथ संसद में लेकर गए थे और संविधान की जिस किताब से उन्होंने संसद में संविधान को पढ़कर सुनाया था उसमे ये सभी तस्वीरे थी
जी हाँ, ये सच है बंधुओ
आंबेडकर को उनकी शैक्षिक योगयता के कारन संविधान सभा की प्रारूप सभा का अध्यक्ष चुना गया था और उनकी संविधान सभा की अन्य इकाइयों से कई बार संविधान के बारे में चर्चा होती थी
नेहरू और आंबेडकर की संविधान को लेकर कई बार बैठके हुई , ऐसी ही एक बैठक में तय हुआ की संविधान में भगवान् के सभी रूपो यथा राम, कृष्ण , शिव आदि को और भारतीय संस्कृति के अन्य रूपो को भारतीय संविधान में शामिल किया जाना चाहिए
भारतीय संविधान भारत कि संस्कृति और इसके समग्र रूपो का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए तय हुआ की भगवान् के सभी रूपो और भारतीय संस्कृति के अन्य रूपो को चित्रो की शक्ल में भारतीय संविधान में अलग अलग पेजो पर जोड़ा जायेगाये लगना चाहिए की भारतीय संविधान भारतीय संस्कृति के विविध रंगो से सजा हुआ हैप्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस अति महत्वपूर्ण कार्य का भार बिहार के विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस को सौंपा
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर ने नन्दलाल को बताया की वे भगवान्को के अवतारकाल के किन प्रसंगो को तस्वीर के रूप में संविधान में जोड़ना चाहते थे और किस जगह कौन सी तस्वीर लगायी जानी थी , उन्होंने चित्र सम्बन्धी अपनी इच्छाये और अन्य आवश्यक दिशा निर्देश नंदलाल को दिए पश्चात नंदलाल जी ने चित्र बनाना शुरू कियासंविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया
नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए नंदलाल बोस के बनाए चित्र वास्तव में भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैंसुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट सेअगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है
अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है वास्तव में भारतीय सभ्यता की पहचान में इस सील का बड़ा ही महत्व है शायद यही कारण है कि हमारी सभ्यता की इस निशानी को शुरुआत में जगह दी गई है। अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती हैकिसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से होती है इस चित्र में भगवान राम रावण को हराकर पुष्पक विमान में सीता जी को लंका से वापस ले आ रहे हैं राम धनुष-वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं अब कमाल देखिये इस चित्र को लेकर संविधान सभा में विवाद हुआ था कुछ सदस्यों का तर्क था कि जब संविधान में ही भगवान राम का चित्र दिखाया गया है तो फिर यह संविधान पंथनिरपेक्ष कैसे ? लेकिन आंबेडकर इस पर अड़ गए और तस्वीरो को हटाने की किसी भी सम्भावना को सिरे से खारिज कर दिया जब विवाद बढ़ने लगा तो नेहरू ने दखल देते हुए इस पर वोटिंग करवाने का प्रस्ताव दिया जब वोटिंग हुई तो मामला तस्वीरो को बनाये रखने के पक्ष में था , हिन्दू भगवान् और पंथ निरपेक्षता को संतुलित करने के लिए यह तय हुआ कि संविधान में लिखे शब्द भारतीय संविधान के अंग हैं न कि उसमें छपे चित्र
इस तरह वोटिंग के बाद भी भगवान् राम आदि के चित्र भारतीय संविधान का हिस्सा बने रहे अगले भाग में नीति निर्देशक तत्व हैं ऐतिहासिक विकास क्रम के अनुसार त्रेता युग के बाद द्वापर युग आता है भगवान कृष्ण को इस चित्र में दर्शाया गया है। कृष्ण के गीता उपदेश की जो तस्वीर सामान्य: हम देखते हैं, उसे ही नंदलाल ने इस भाग में उकेरा है भारतीय संघ नाम के पाचवें भाग में भगवान विष्णु के अवतार भगवान गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है महात्मा बुद्ध बीच में बैठे हुए हैं और उनके चारों ओर उनके पांच शिष्य घेरकर बैठे हुए हैं हिरन और बारहसिंहा जैसे जानवरों को भी दर्शाया गया है अगले भाग संघ और उनका राज्य क्षेत्र-1 में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है
आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति को उकेरा गया है भारतीय इतिहास में गुप्त काल को स्वर्णिम युग की संज्ञा दी जाती है, इसलिए इस चित्र में तत्कालीन भारतीय संस्कृति के हर अंगों को समेटने की कोशिश की गई है नृत्य करती हुई नर्तकियों के चारों ओर राजाओं का घेरा है यह चित्र कलात्मक दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ है
दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है मोहर पर देवनागरी लिपि में नालंदा विश्वविद्यालय लिखा हुआ है 11वें भाग से मध्यकालीन इतिहास की शुरुआत होती है उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है , उल्लेखनीय है की नटराज भगवन शिव का ही एक रूप है नृत्य करते हुए भगवान् शिव का रूप जो नटराज के नाम से विख्यात है , इस तस्वीर को संविधान के बारहवे भाग में रखा गया तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियों को दर्शाया गया है , भगवान् राम , कृष्ण , शिव के बाद इस भाग में भगवान् के शेषनाग रूप को दर्शाया गया है , इसमें भगवान् के शेषनाग के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं के चित्र हैं भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। हालांकि कालखंड के हिसाब से यह दृश्य अब तक की श्रृंखला को तोड़ता है। 14वां भाग केंद्र और राज्यों के अधीन सेवाएं इस भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है मूल संविधान में 15वां भाग चुनाव है। इस भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है। पहली बार दो अलग-अलग चित्रों को जोड़कर एक चित्र बनाया गया है।
16वें भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को बरतानिया सरकार से लोहा लेते हुए दिखाया गया है
17वें भाग जो कि मूल संविधान में आधिकारिक भाषाओं का खंड है, में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतिनिधित्व करते इस चित्र में गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं
ये चित्र ख़ास इसलिए है क्योकि इसमें एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं
19वें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं चित्र में अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ है कि इस पवित्र युद्ध में हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आवश्यकता हमेशा रहेगी
20वें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयंप्रभा समुजज्वला स्वतंत्रता पुकारती, अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं- बढ़े चलो, बढ़े चलो
ऐसे ही मनोभावों की व्याख्या करता यह चित्र भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ऊंचाई का प्रतिबिंबन है। अगले भाग में रेगिस्तान का चित्रण है। दूर तक फैले रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला वास्तव में इस चित्र का उद्देश्य हमारी प्राकृतिक विविधता को दर्शाना है
अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है एक समय था, जब भारत बर्मा, इंडोनेशिया, मलय जैसे दीपों पर अपना अधिकार रखता है। चित्र में एक विशालकाय पानी का जहाज है, जो हमारे गौरवशाली सामुद्रिक विस्तार और हमारी यात्राओं का प्रतीक है
इन चित्रो से सजा हुई भारतीय संविधान की मूल प्रति को लेकर बाबा साहब संसद में गए थे और उसी प्रति में से पढ़कर उन्होंने देश को भारतीय संविधान से अवगत कराया
अपनी सामर्थ्यनुसार आंबेडकर ने यथा सम्भव संविधान को भारतीय संस्कृति के अनुरूप दिखाया इसके लिए बाबा साहब को मेरी तरफ से लाखो सलाम , वर्ना अगर महात्मा गांधी जैसो की चलती तो इसमें हिन्दू भगवानो को शामिल करना तो दूर है , उल्टा मस्जिद में नमाज पढ़ते नमाजियो की फोटो होती और महात्मा गांधी कहते -- '' देखा , इसे कहते है असली धर्मनिरपेक्षता , ये है भारत का असली संविधान ""
महान हिंदूवादी और अपने समय में अपनी लिमिट के बावजूद हिंदुत्व के लिए परदे के पीछे रहकर निरंतर कार्य करने वाले बाबा साहब नेता अमर रहे संविधान में चित्रित किये गए चित्रो सभी को ये स्पष्ट होना चाहिए की बाबा साहब एक महान हिंदूवादी नेता थे , लेकिन अगर वो खुलकर हिंदुत्व के पक्ष में आ जाते तो हरिजन लोग उनका साथ छोड़ देते , इसलिए उन्हें परदे के पीछे रहकर हिंदुत्व के लिए काम करना पड़ा , उन्होंने हिन्दू महासभा के साथ मिलकर बड़ी चालाकी से हरिजनो को साधे रखा लेकिन इन सब विषयो पर आगे बात होगी
हाँ तो आंबेडकर के ''फर्जी'' चेलो ,बाबा साहब की तारीफ में दो शब्द नहीं कहना चाहोगे ?
(संविधान में चित्रित किये गए चित्र )