पोस्ट थोड़ी लम्बी है पर आग्रह करूंगा पढियेगा जरूर
हम इंडियन लोगो में एक बहुत ही गन्दी आदत है ''मांगने'' की, ज़रा सी बात पर पडोसी के यहाँ पहुंच गए,कभी चाय की पत्ती,तो कभी शक़्कर, तो कभी बेसन, तो कभी आलू -प्याज आदि आदि
अब राजीव गाँधी जी तो 200 % इंडियन थे,तभी तो विदेशी मेम पसंद किया ! इसी आदत के चलते राजीव जी चल दिए कटोरा लेकर अमेरिका के पास की हमे सुपर कम्पुटर और क्रायोजेनिक इंजन (अन्तरिक्ष रॉकेट मे काम आने वाला इंजन) दे दो। तो रोनाल्ड रीगन ने कहा हम सोचेंगे और राजीव जी वापस भारत लौट आये। कुछ महीनों बाद फिर राजीव गांधी अमेरिका पहुँच गए और पूछा क्या सोचा आपने ?
रोनाल्ड रीगन ने उन्हें उत्तर दिया ''न तो हम आपको सुपर कंप्यूटर न ही उसे बनाने वाली तकनीक देंगे और ना ही हम आपको क्रायोजेनिक इंजन सोपेंगे''। राजीव अपना मुह लटकाए भारत वापिस लौट आये, वाशिंगटन मे बेईज्ज़ती हुयी वो अलग। भारत वापिस आने के बाद उनहोने CSIR (Council of Scientific and Industrial Research) के वैज्ञानिको की मीटिंग बुलाई, यकीन मानियेगा हमारे देश का प्रधानमंत्री उस मीटिंग मे रो पड़ा। और रोते हुए कहा की ''में अमेरिका गया था सुपर कंप्यूटर और क्रायोजेनिक इंजन मांगने पर उन्होंने सीधा मन कर दिया''।
उस वक्त CSIR के डायरेक्टर SK Joshi थे, इन्होने कहा की हमने तो आपको पहले ही मना किया था, फिर क्यू गए अपनी और देश की बेईज्ज़ती करवाने। राजीव जी ने कह कोई तो रास्ता होगा इस समस्या के हल का? जोशी जी ने कह रूस से क्रायोजेनिक इंजन का समझोता कर लीजिये। भारत ने रूस के साथ समझोता कर लिया लेकिन जैसे ही डिलीवरी का समय आया अमेरिका ने टांग बीच मे डालदी। अमेरिका ने रूस को ब्लैकलिस्टेड कर दिया। रूस इस बात से घबरा गया और उसने भी भारत को इंजन देने से मना कर दिया। इस बात से आहत भारतीय वैज्ञानिको ने कहा की क्यू आप बार बार दुसरे देशो से मांगने पहुच जाते हैं..क्यू आप अपने वैज्ञानिको पर भरोसा नहीं करते ?
सभी वैज्ञानिको ने भरोसा दिलाया की भारत के वैज्ञानिक भी उतने ही प्रतिभाशाली हैं जितने के वो सब हैं बशर्ते उन्हें काम देने की ज़रुरत हैं और साथ मे प्रोटेक्शन भी। ये सब सुनने के बाद राजीव जी ने बड़ी देर बाद मन बनाया के अब कंप्यूटर भारत के वैज्ञानिक ही बनायेंगे। CSIR का सहयोगी CDAC पुणे मे दिन रात एक करके जितना समय और पैसा दिया गया था उसकी बचत करके देश को पहला सुपर कंप्यूटर दे दिया जिसे नाम दिया गया “परम 10000″। इसके बाद परम युवा 1, परम युवा 2, और अन्य सुपर कंप्यूटर भारत को सोंपे गए। आज भारत सुपर कंप्यूटर को निर्यात करने में सबसे अग्रणी देश बन गया !
इसी तरह DRDO (Defense Research and Development Organisation) के वैज्ञानिको ने क्रायोजेनिक इंजन भी बना डाला बिना किसी देश से इसकी तकनीक लिए हुए। 5 जनवरी 2014 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण कर लिया !
''क्रायो’ यूनानी शब्द ‘क्रायोस’ से बना है, जिसका अर्थ ‘बर्फ जैसा ठण्डा’ होता है। क्रायोजेनिक तकनीक का मुख्य प्रयोग रॉकेटों में किया जाता है, जहाँ ईधनों को क्रायोजेनिक तकनीक से तरल अवस्था में प्राप्त कर लिया जाता है। इस तकनीक में द्रव हाइड्रोजन एवं द्रव ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। बेहद कम ताप उत्पन्न करने का विज्ञान क्रायोजेनिक्स कहलाता है ! प्रायः 0 डिग्री सेल्सियस से माइनस 253 डिग्री सेल्सियस तापमान को क्रायोजेनिक कहते है''।
मैं विज्ञान के मामले में अनपढ़ अज्ञानी ही हूँ.। .लेकिन कल के स्वदेशी लांच पे वही अनपढ़ों वाली बाते करना चाहता हूँ । भारत अभी तक रक्षा उत्पाद में आत्मनिर्भर नही हो पा रहा था. क्योंकि इसके 50 से ज्यादा क्रायोजेनिक इंजिन सफल नही हुए । अमेरिका हो या रसिया यहाँ तक की इज़राइल ,फ्रांस,ब्रिटेन और इटली की मुँह हम सदैव इसके लिए ताकते थे. अपना लड़ाकू विमान हो या मिसाइल सिस्टम .फेल सिर्फ इस इंजिन के लिए हो रहा था । क्रायोजेनिक इंजन के टरबाइन और पंप जो ईंधन और ऑक्सीकारक दोनों को दहन कक्ष में पहुंचाते हैं, को भी खास किस्म के मिश्रधातु से बनाया जाता है। द्रव हाइड्रोजन और द्रव ऑक्सीजन को दहन कक्ष तक पहुंचाने में जरा सी भी गलती होने पर कई करोड़ रुपए की लागत से बना जीएसएलवी रॉकेट रास्ते में जल सकता है। पर कल भारतीय वैज्ञनिको ने सिद्ध कर दिया की ''हम किसी से कम नहीं'' कल की सफलता एक माइल स्टोन है जो टेक्नोलॉजी भारत को ये अहंकारी देश नही दे रहे थे वो डेवलप हो गया । जीएसएलवी रॉकेट सिर्फ़ क्रायोजेनिक इंजन से ही प्रक्षेपित किया जा सकता है । दरअसल सैटेलाइट तो बस बहाना है .अब हमे कोई रोक नही सकता ''सुपर पावर'' बनने से । बस अब देखते रहिये कैसी कैसी मिसाइल अब हम बनाएंगे की इस अमेरिका, चीन की नींद हराम कर देंगे ।
अब राजीव गाँधी जी तो 200 % इंडियन थे,तभी तो विदेशी मेम पसंद किया ! इसी आदत के चलते राजीव जी चल दिए कटोरा लेकर अमेरिका के पास की हमे सुपर कम्पुटर और क्रायोजेनिक इंजन (अन्तरिक्ष रॉकेट मे काम आने वाला इंजन) दे दो। तो रोनाल्ड रीगन ने कहा हम सोचेंगे और राजीव जी वापस भारत लौट आये। कुछ महीनों बाद फिर राजीव गांधी अमेरिका पहुँच गए और पूछा क्या सोचा आपने ?
रोनाल्ड रीगन ने उन्हें उत्तर दिया ''न तो हम आपको सुपर कंप्यूटर न ही उसे बनाने वाली तकनीक देंगे और ना ही हम आपको क्रायोजेनिक इंजन सोपेंगे''। राजीव अपना मुह लटकाए भारत वापिस लौट आये, वाशिंगटन मे बेईज्ज़ती हुयी वो अलग। भारत वापिस आने के बाद उनहोने CSIR (Council of Scientific and Industrial Research) के वैज्ञानिको की मीटिंग बुलाई, यकीन मानियेगा हमारे देश का प्रधानमंत्री उस मीटिंग मे रो पड़ा। और रोते हुए कहा की ''में अमेरिका गया था सुपर कंप्यूटर और क्रायोजेनिक इंजन मांगने पर उन्होंने सीधा मन कर दिया''।
उस वक्त CSIR के डायरेक्टर SK Joshi थे, इन्होने कहा की हमने तो आपको पहले ही मना किया था, फिर क्यू गए अपनी और देश की बेईज्ज़ती करवाने। राजीव जी ने कह कोई तो रास्ता होगा इस समस्या के हल का? जोशी जी ने कह रूस से क्रायोजेनिक इंजन का समझोता कर लीजिये। भारत ने रूस के साथ समझोता कर लिया लेकिन जैसे ही डिलीवरी का समय आया अमेरिका ने टांग बीच मे डालदी। अमेरिका ने रूस को ब्लैकलिस्टेड कर दिया। रूस इस बात से घबरा गया और उसने भी भारत को इंजन देने से मना कर दिया। इस बात से आहत भारतीय वैज्ञानिको ने कहा की क्यू आप बार बार दुसरे देशो से मांगने पहुच जाते हैं..क्यू आप अपने वैज्ञानिको पर भरोसा नहीं करते ?
सभी वैज्ञानिको ने भरोसा दिलाया की भारत के वैज्ञानिक भी उतने ही प्रतिभाशाली हैं जितने के वो सब हैं बशर्ते उन्हें काम देने की ज़रुरत हैं और साथ मे प्रोटेक्शन भी। ये सब सुनने के बाद राजीव जी ने बड़ी देर बाद मन बनाया के अब कंप्यूटर भारत के वैज्ञानिक ही बनायेंगे। CSIR का सहयोगी CDAC पुणे मे दिन रात एक करके जितना समय और पैसा दिया गया था उसकी बचत करके देश को पहला सुपर कंप्यूटर दे दिया जिसे नाम दिया गया “परम 10000″। इसके बाद परम युवा 1, परम युवा 2, और अन्य सुपर कंप्यूटर भारत को सोंपे गए। आज भारत सुपर कंप्यूटर को निर्यात करने में सबसे अग्रणी देश बन गया !
इसी तरह DRDO (Defense Research and Development Organisation) के वैज्ञानिको ने क्रायोजेनिक इंजन भी बना डाला बिना किसी देश से इसकी तकनीक लिए हुए। 5 जनवरी 2014 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण कर लिया !
''क्रायो’ यूनानी शब्द ‘क्रायोस’ से बना है, जिसका अर्थ ‘बर्फ जैसा ठण्डा’ होता है। क्रायोजेनिक तकनीक का मुख्य प्रयोग रॉकेटों में किया जाता है, जहाँ ईधनों को क्रायोजेनिक तकनीक से तरल अवस्था में प्राप्त कर लिया जाता है। इस तकनीक में द्रव हाइड्रोजन एवं द्रव ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। बेहद कम ताप उत्पन्न करने का विज्ञान क्रायोजेनिक्स कहलाता है ! प्रायः 0 डिग्री सेल्सियस से माइनस 253 डिग्री सेल्सियस तापमान को क्रायोजेनिक कहते है''।
मैं विज्ञान के मामले में अनपढ़ अज्ञानी ही हूँ.। .लेकिन कल के स्वदेशी लांच पे वही अनपढ़ों वाली बाते करना चाहता हूँ । भारत अभी तक रक्षा उत्पाद में आत्मनिर्भर नही हो पा रहा था. क्योंकि इसके 50 से ज्यादा क्रायोजेनिक इंजिन सफल नही हुए । अमेरिका हो या रसिया यहाँ तक की इज़राइल ,फ्रांस,ब्रिटेन और इटली की मुँह हम सदैव इसके लिए ताकते थे. अपना लड़ाकू विमान हो या मिसाइल सिस्टम .फेल सिर्फ इस इंजिन के लिए हो रहा था । क्रायोजेनिक इंजन के टरबाइन और पंप जो ईंधन और ऑक्सीकारक दोनों को दहन कक्ष में पहुंचाते हैं, को भी खास किस्म के मिश्रधातु से बनाया जाता है। द्रव हाइड्रोजन और द्रव ऑक्सीजन को दहन कक्ष तक पहुंचाने में जरा सी भी गलती होने पर कई करोड़ रुपए की लागत से बना जीएसएलवी रॉकेट रास्ते में जल सकता है। पर कल भारतीय वैज्ञनिको ने सिद्ध कर दिया की ''हम किसी से कम नहीं'' कल की सफलता एक माइल स्टोन है जो टेक्नोलॉजी भारत को ये अहंकारी देश नही दे रहे थे वो डेवलप हो गया । जीएसएलवी रॉकेट सिर्फ़ क्रायोजेनिक इंजन से ही प्रक्षेपित किया जा सकता है । दरअसल सैटेलाइट तो बस बहाना है .अब हमे कोई रोक नही सकता ''सुपर पावर'' बनने से । बस अब देखते रहिये कैसी कैसी मिसाइल अब हम बनाएंगे की इस अमेरिका, चीन की नींद हराम कर देंगे ।
तो मित्रो बार बार पास पड़ोस से मांगने की आदत छोड़िये और आत्म निर्भर बनिए, नहीं तो हमेसा ही हॅसी के पात्र बने रहेगें । जय जय श्री राम ......